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This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.
| 1. | उदित उदयगिरि मंच पर, रघुबर बालपतंग।बिकसे संत सरोज सब, हरषे लोचन शृंग ॥ | 
| Answer» [ उदयगिरि = उदयाचल पर्वत। बालपतंग = बाल सूर्य, प्रात:कालीन सूर्य। सरोज = कमल। लोचन = नेत्र। भुंग = भंवरे।] सन्दर्भ-प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘काव्य-खण्ड’ के ‘धनुष-भंग’ कविता शीर्षक से अवतरित हैं। यह अंश हमारी पाठ्य-पुस्तक में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस के बालकाएड से संकलित है। प्रसंग-प्रस्तुत पद्य में धनुष-भंग के लिए बने हुए मंच पर रामचन्द्र जी के चढ़ने का वर्णन किया गया है। व्याख्या-श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि उदयाचल पर्वत के समान बने हुए विशाल मंच पर श्रीरामचन्द्र जी के रूप में बाल सूर्य के उदित होते ही सभी सन्त रूपी कमल खिल उठे और नेत्ररूपी भंवरे हर्षित हो उठे। आशय यह है कि श्रीराम के मंच पर चढ़ते ही सभा में उपस्थित सभी सज्जन पुरुष अत्यधिक प्रसन्न हो गये। काव्यगत सौन्दर्य- ⦁    यहाँ पर मंच की विशालता और श्रीरामचन्द्र जी के सौन्दर्य का वर्णन किया गया है। | |
| 2. | रावण द्वारा मंदोदरी का सीख न मानने का क्या परिणाम हुआ? | 
| Answer» मंदोदरी की सीख न मानने के कारण रावण युद्ध में राम के द्वारा मारा गया और उसके लिए कुल में कोई रोने वाला भी नहीं बचा। | |
| 3. | रावण ने पत्नी मंदोदरी की सीख क्यों नहीं मानी? | 
| Answer» अपने बल के अहंकार में डूबे होने से तथा राम को साधारण मनुष्य मानने के कारण रावण ने मंदोदरी की सीख नहीं स्वीकार की। | |
| 4. | सीता का अपहरण करके ले जाने वाले रावण को मंदोदरी ने क्या सीख दी ? | 
| Answer» बहिन शूर्पनखा के अपमान से और खर-दूषण के वध से क्रोधित और शंकित रावण ने छलपूर्वक सीता का अपहरण किया। मंदोदरी ने उसके इस अनैतिक आचरण पर उसे सीख दी कि वह राम से बैर त्याग दे। उसने उसे हनुमान द्वारा किए गए विध्वंश की याद दिलाई। मंदोदरी ने कहा कि वह अपने सचिव के द्वारा सीता को राम के पास भिजवा दे। मंदोदरी ने कहा कि यह सीता सारे राक्षसों के विनाश का कारण बनेगी। इससे पहले कि राम राक्षसों को अपने वाणों का निशाना बनाए, उसे अपनी भूल सुधार लेनी चाहिए। | |
| 5. | मंदोदरी की रावण को सीख’ प्रसंग कहाँ से संकलित किया गया है? | 
| Answer» यह प्रसंग तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस महाकाव्य के सुन्दरकाण्ड तथा लंकाकाण्ड से संकलित है। | |
| 6. | ‘मंदोदरी की रावण को सीख’ काव्यांश के भावपक्ष पर अपने विचार लिखिए। | 
| Answer» प्रश्नगत काव्यांश कलापक्ष के कलेवर में भावपक्ष के प्रभावशाली प्रस्तुतीकरण का सुन्दर उदाहरण है। इस पूरे काव्यांश में केवल एक ही पात्र मंदोदरी की भावनाओं का उल्लेख हुआ है। एक पति हितैषिणी पत्नी की भूमिका में मंदोदरी की विविध भावनाएँ पाठक को गहराई से प्रभावित करती हैं। पराई स्त्री के अपहरण जैसे अनुचित और निन्दनीय आचरण में पति को लिप्त देखकर मंदोदरी आहत हो उठती है। वह पति को समझाती है कि वह तुरन्त सीता को सम्मान से उसके पति के पास भिजवा दे। एक स्त्री ही अपहरित स्त्री की पीड़ा को पूर्णता से समझ सकती हैं। काव्यांश के आरम्भ से अंत तक हम मंदोदरी की भावनाओं से परिचित होते चलते हैं। कभी वह पतिव्रता पत्नी के रूप में है। कभी मित्र के रूप में, कभी आँसू भरी आँखों से और कभी व्यंग्य तथा मधुर उलाहना देकर पति को सही मार्ग पर लाने का प्रयत्न करती है। काव्यांश के अंत में विलाप करती मंदोदरी के उद्गार एक उद्देश्य में असफलता, असहाय पत्नी की भावनाओं को उजागर करते हैं। इस प्रकारे कवि नारी हृदय की विविध भावनाओं को सामने लाकर इस काव्यांश के भावपक्ष को बड़ा प्रभावशाली बना दिया है। | |
| 7. | ‘वन-पथ पर’ कविता किस छन्द में लिखी गयी है, सलक्षण लिखिए। | 
| Answer» यह कविता सवैया छन्द में लिखी गयी है। बाइस से छब्बीस तक के वर्णवृत्त ‘सवैया’ कहलाते हैं। मत्तगयन्द तथा सुन्दरी इसके भेद हैं। | |
| 8. | सुनि सुन्दर बैन सुधारस-साने, सयानी हैं जानकी जानी भली।तिरछे करि नैन दै सैन तिन्हें, समुझाइ कछू मुसकाइ चली ॥तुलसी तेहि औसर सोहै सबै, अवलोकति लोचन-लाहु अली।अनुराग-तड़ाग में भानु उदै, बिगसीं मनो मंजुल कंज-कली ॥ | 
| Answer» [ बैन = शब्द। सुधारस-साने = अमृत-रस में सने हुए। सयानी = चतुर। भली = अच्छी तरह से। सैन = संकेत। अवलोकति = देखती है। लाहु = लाभ। अली = सखी। अनुराग-तड़ाग = प्रेम रूपी सरोवर। बिगसीं = खिल रही हैं। मंजुल = सुन्दर। कंज = कमल।] प्रसंग-इन पंक्तियों में ग्रामवधुओं के प्रश्न का उत्तर देती हुई सीताजी अपने हाव-भावों से ही राम के विषय में सब कुछ बता देती हैं। व्याख्या-ग्रामवधुओं ने राम के विषय में सीताजी से पूछा कि ये साँवले और सुन्दर रूप वाले तुम्हारे क्या लगते हैं?’ ग्रामवधुओं के अमृत जैसे मधुर वचनों को सुनकर चतुर सीताजी उनके मनोभाव को समझ गयीं। सीताजी ने उनके प्रश्न का उत्तर अपनी मुस्कराहट तथा संकेत भरी दृष्टि से ही दे दिया, उन्हें मुख से कुछ बोलने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी। उन्होंने स्त्रियोचित लज्जा के कारण केवल संकेत से ही राम के विषय में यह समझा दिया कि ये मेरे पति हैं। तुलसीदास जी कहते हैं कि सीताजी के संकेत को समझकर सभी सखियाँ राम के सौन्दर्य को एकटक देखती हुई अपने नेत्रों का लाभ प्राप्त करने लगीं। उस समय ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानो प्रेम के सरोवर में रामरूपी सूर्य का उदय हो गया हो और ग्रामवधुओं के नेत्ररूपी कमल की सुन्दर कलियाँ खिल गयी हों। काव्यगत सौन्दर्य ⦁    सीता जी का संकेतपूर्ण उत्तर भारतीय नारी की मर्यादा तथा ‘लब्धः नेत्र . निर्वाण:’ की भावना के अनुरूप है। | |
| 9. | राम के बाणों की शक्ति तथा रावण का राम का सामना करने से बचना; ये बातें मंदोदरी ने रावण को किस प्रकार स्मरण कराईं? लिखिए। | 
| Answer» मंदोदरी ने रावण से कहा कि राम के बाणों के प्रताप को भूल गया है। राम के बाणों में कितनी शक्ति है? इसे मारीच अच्छी प्रकार से जानता था पर उसकी सीख को उसने नहीं माना। छल से राम को दूर भेजकर उसने सीता का अपहरण किया। इसी प्रकार जनक की सभा में सभी राजाओं और स्वयं उसके सामने राम ने धनुष तोड़कर सीता से विवाह किया। तब उसने राम को युद्ध में क्यों नहीं जीता है। शूर्पनखा की गति देखकर भी रावण ने राम को युद्ध के लिए क्यों नहीं ललकारा ? इन सब बातों से मंदोदरी ने रावण को सचेत करने का प्रयास किया। | |
| 10. | मंदोदरी द्वारा राम के विश्वरूप के वर्णन को अपने शब्दों में लिखिए। | 
| Answer» रावण को राम के पराक्रम और प्रभाव से परिचित करा कर सही मार्ग पर चलने को प्रेरित करते हुए मंदोदरी ने राम के विराट् स्वरूप से परिचित कराया। मंदोदरी ने कहा कि राम कोई सामान्य राजा या योद्धा नहीं है, वह तो सर्वव्यापी और सर्वस्वरूप विराट पुरुष हैं। उनके चरण पाताल हैं, सिर ब्रह्मलोक है। अन्य लोक उनके ही अंगों में निवास करते हैं। उनका क्रोध भयंकर काल है, नेत्र सूर्य और केश बादल हैं। नासिका अश्विनी कुमार उनके पलकों की गति असंख्य रात-दिन हैं। कान दश दिशाएँ हैं, साँस पवन है, वाणी वेद हैं, होठ लोभ का स्वरूप और दाँत भयंकर यमराज हैं। उनकी हँसी ही माया है, भुजाएँ दिशाओं के रक्षक देवता हैं। मुख अग्नि, जीभ वरुण तथा उनके संकल्प से ही सृष्टि की उत्पत्ति, पालन और संहार हो रहा है। उनके रोंए अठारह पुराण या विद्याएँ हैं, उनकी अस्थियाँ ही पर्वत और नाड़ियाँ असंख्य नदियाँ हैं। मंदोदरी ने कहा कि विश्वरूप राम का अहंकार ही शिव है, बुद्धि ब्रह्म है, मन चन्द्रमा और चित्त महत् तत्व या सृष्टि का मूल्य तत्व है। यह समस्त ब्रह्माण्ड और चेतन तथा जड़ जीव उन्हीं के स्वरूप हैं। अतः तुम उनसे द्वेष त्याग कर उनकी भक्ति करो। इसी में तुम्हारा और सभी लंकावासियों का कल्याण निहित है। | |
| 11. | मंत्र परम लघु जासु बस, बिधि हरि हर सुर सर्ब ।महामत्त गजराज कहुँ, बस कर अंकुस खर्ब ।। | 
| Answer» [ बस = वशीभूत। बिधि = ब्रह्मा। हरि = विष्णु। हर = शंकर। सुर = देवता। अंकुस = अंकुश। खर्ब = छोटा।] प्रसंग—प्रस्तुत पद्य में मन्त्र और अंकुश के द्वारा सभी देवताओं और हाथी को नियन्त्रित किये जाने । का वर्णन है। | व्याख्या-गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि धनुष-भंग के समय जब सीताजी की माता श्रीराम को छोटा समझकर, धनुष तोड़ने में असमर्थ मानकर अपनी सखी से शंका प्रकट करती हैं, तब उनकी सखी विभिन्न उदाहरणों के द्वारा उनको समझाती हुई कहती हैं कि, “जिस मन्त्र के वश में सभी देवता, ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि भी रहने को विवश होते हैं, वह मन्त्र भी अत्यधिक छोटा ही होता है।” अत्यधिक विशाल और मदमत्त गजराज को भी महावत छोटे से अंकुश के द्वारा अपने वश में कर लेता है। | काव्यगत सौन्दर्य- | |
| 12. | देखि देखि रघुबीर तन, सुर मनाव धरि धीर।भरे बिलोचन प्रेम जल, पुलकावली सरीर ॥ | 
| Answer» [रघुबीर = रामचन्द्र जी। सुर = देवता। धीर = धैर्य। बिलोचन = नेत्रों में। पुलकावली = प्रेम और हर्ष से उत्पन्न रोमांच।] प्रसंग-प्रस्तुत पद में सीताजी की श्रीराम के प्रति प्रेमानुरक्ति का वर्णन हुआ है। व्याख्या-गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि सीताजी बार-बार श्रीरामचन्द्र जी की ओर देख रही हैं और धैर्य धारण करके देवताओं को मनोवांछित वर प्रदान करने के लिए मनाती जा रही हैं; अर्थात् अनुनय-विनय कर रही हैं। उनके नेत्रों में प्रेम के आँसू भरे हुए हैं और शरीर में रोमांच हो रहा है। काव्यगत सौन्दर्य | |
| 13. | काम कुसुम धनु सायक लीन्हे । सकल भुवन अपने बस कीन्हे ॥देबि तजिअ संसउ अस जानी। भंजब धनुषु राम सुनु रानी ॥सखी बचन सुनि भै परतीती । मिटा बिषादु बढी अति प्रीती ॥तब रामहि बिलोकि बैदेही । सभय हृदयँ बिनवति जेहि तेही ॥मनहीं मन मनाव अकुलानी । होहु प्रसन्न महेस भवानी ॥करहु सफल आपनि सेवकाई । करि हितु हरहु चाप गरुआई ॥गननायक बरदायक देवा । आजु लगें कीन्हिउँ तुझे सेवा ॥बार बार बिनती सुनि मोरी । करहु चाप गुरुता अति थोरी ॥ | 
| Answer» [ कुसुम = पुष्प। सायक = बाण। संसउ = संशय। भंजब = तोड़ेंगे। बिषाद् = उदासी, निराशा। बिलोकि = देखकर। जेहि तेही = जिस किसी की। अकुलानी = व्याकुल होकर। सेवकाई = सेवा। हरहु = हरण कर लीजिए। गरुआई = गुरुता, भारीपन।] प्रसंग-प्रस्तुत पद में सीताजी की माताजी का राम की क्षमता के सम्बन्ध में विश्वास और सीता द्वारा विभिन्न देवताओं की प्रार्थना किये जाने का वर्णन किया गया है। | व्याख्या-गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि पुनः सीताजी की माताजी की सहेली उनको समझाती हुई कहती है कि कामदेव ने फूलों का ही धनुष-बाण लेकर समस्त लोकों को अपने वशीभूत कर रखा है। हे देवी ! इस बात को अच्छी तरह से समझकर आप अपने सन्देह का त्याग कर दीजिए। हे रानी ! गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि जनकनन्दिनी सीताजी व्याकुलचित्त होकर मन-ही-मन में प्रार्थना कर रही हैं कि “हे भगवान् शंकर ! हे माता पार्वती ! मुझ पर प्रसन्न हो जाइए और मैंने आपकी जो कुछ भी सेवा-आराधना की है उसका सुफल प्रदान करते हुए और मुझ पर कृपा करके धनुष की गुरुता अर्थात् भारीपन को बहुत ही कम कर दीजिए।” पुन: गणेश जी की प्रार्थना करती हुई कहती हैं कि “हे गणों के नायक और मन-वांछित वर देने वाले गणेश जी ! मैंने आज ही के दिन के लिए; अर्थात् श्रीराम जैसे पुरुष को पति-रूप में प्राप्त करने की इच्छा से; आपकी पूजा-अर्चना की थी। आप बार-बार की जा रही मेरी विनती को सुनिए और धनुष के भारीपन को बहुत ही कम कर दीजिए।” काव्यगत सौन्दर्य- ⦁    मनवांछित प्राप्ति के लिए विभिन्न देवताओं की प्रार्थना करने की भारतीय परम्परा को स्पष्ट किया गया है। | |