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आई सीधी राह से, गई न सीधी राह ।सुषुम-सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह !जेब टटोली, कौड़ी न पाई ।माझी को ढूं, क्या उतराई ?भावार्थ : कवयित्री कहती हैं कि ईश्वर को पाने के लिए संसार में वह सीधे रास्ते से आई थी, लेकिन संसार में आकर मोहमाया आदि के चक्कर में पड़कर रास्ता भूल गई । वह जीवनभर योग-साधना, सुषुम्ना नाड़ी के सहारे कुंडलिनी जागरण में ही लगी रही । इसी तरह देखते-देखते समय बीत गया । अब मृत्यु की घड़ी निकट आ चुकी है । जब उन्होंने अपने जीवन का लेखाजोखा किया तो पाया कि उनके पास तो कुछ भी नहीं है । भवसागर पार उतारनेवाले प्रभु सपी माँझी उतराई के रूप में पुण्यकर्भ माँगेंगे तो वह क्या देगी ? अपनी स्थिति पर उन्हें बहुत पश्चाताप हो रहा है ।1. ‘गई न सीधी राह’ का क्या तात्पर्य है ?2. ‘जेब टटोली कौड़ी न पाई’ का क्या अर्थ है ?3. कवयित्री क्यों पश्चाताप कर रही है ?4. ‘माझी’ किसे कहा गया है ?5. माझी रूपी ईश्वर को उतराई के रूप में क्या देना होगा ?6. ‘सुषुम-सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह !’ रेखांकित शब्द में कौन-सा अलंकार है ?

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1. ‘गई न सीधी राह’ का तात्पर्य है कि उसने अच्छे कर्म करके प्रभु-प्राप्ति का प्रयास नहीं किया बल्कि वह मोहमाया, हठमार्ग आदि के चक्कर में पड़कर उलझा गई ।

2. ‘जेब टटोली कौड़ी न पाई’ अर्थात् जीवन के अन्तिम समय में जब उसने पुण्यकर्मों का हिसाब लगाया तो उसके पास कुछ भी नहीं था । उसकी झोली पुण्यकर्मों से खाली थी ।

3. कवयित्री कहती हैं कि मैं संसार में प्रभु-प्राप्ति के लिए आई थी, परन्तु पूरे जीवनभर मोहमाया और कुंडलिनी जागरण में पड़ी रही । देखते-देखते जीवन बीत गया, उसकी झोली सत्कर्मों से खाली है, इसीलिए यह पश्चाताप कर रही है।

4. ‘माझी’ ईश्वर को कहा गया है ।

5. माझी रूपी ईश्वर को उतराई के रूप में सत्कर्म की पूँजी देनी होगी ।

6. ‘सुषुम-सेतु’ में रूपक और अनुप्रास अलंकार है ।



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