InterviewSolution
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खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं,न खाकर बनेगा अहंकारी ।सम खा तभी होगा समभावी,खुलेगी साँकल बंद द्वार की ।भावार्थ : कवयित्री कहती है कि हे मनुष्य ! तू बाह्याडंबरों से बाहर निकल । सांसारिक भोग-विलासिता में लिप्त रहने से कुछ भी प्राप्त नहीं होगा । और न ही त्याग तपस्या का जीवन अपने से ही प्रभु की प्राप्ति होगी, क्योंकि इससे तो तू अहंकारी बन जाएगा । यदि परमात्मा को पाना है तो भोग-त्याग, सुख-दुःख में मध्य का मार्ग अपना कर समभावी बनना होगा तब प्रभु प्राप्ति का द्वार खुलेगा । प्रभु से मिलन होगा ।1. कवयित्री ने क्या खाने की ओर संकेत किया है ?2. ‘न खाकर बनेगा अहंकारी’ से क्या तात्पर्य है ?3. बंद द्वार की साँकल कब खुलेगी ?4. प्रस्तुत वान के माध्यम से क्या संदेश दिया गया है ? |
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Answer» 1. कवयित्री ने ‘खाने’ शब्द के माध्यम से सांसारिक उपभोग की वस्तुओं की ओर संकेत किया है। 2. ‘न खाकर बनेगा अहंकारी’ से तात्पर्य है कि त्याग, तपस्या का जीवन अपनाओगे तो मन में अहंकार पैदा होगा । 3. मनुष्य जब भोग-त्याग, सुख-दुःख के बीच मध्यम मार्ग अपनाएगा तब प्रभु-प्राप्ति के द्वार लगी अज्ञानता की साँकल खुलेगी और 4. प्रस्तुत वाख के माध्यम से कवयित्री ने हृदय को उदार, अहंकारमुक्त और समानता के भाव से परिपूर्ण बनाने का संदेश दिया है । सांसारिक वस्तुओं के भोग-विलास से व्यक्ति विलासी और त्याग से अहंकारी बनता है । इसलिए हमें भोग करना चाहिए किन्तु न के बराबर और त्याग भी अवश्य करना चाहिए किन्तु सीमा से परे नहीं । अर्थात् भोग और त्याग के बीच समानता रखनी चाहिए । समानता से समभाव उत्पन्न होगा और हृदय में उदारता का जन्म होगा, जिससे हृदय की संकीर्णता नष्ट हो जाएगी । हृदय का द्वार खुलेगा और प्रभु से मिलन होगा । |
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