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दिए गए पद्यांशों को फ्ढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिएकह न ठंडी साँस में अब भूल वह जलती कहानी,आग हो उर में तभी दृग में सजेगा आज पानी;हार भी तेरी बनेगी मानिनी जय की पताका,राख क्षणिक पतंग की है अमर दीपक की निशानी !है तुझे अंगार-शय्या पर मृदुल कलियाँ बिछाना !जाग तुझको दूर जाना !(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।(iii) इस पद्यांश से कवयित्री का आशय स्पष्ट कीजिए।(iv) किसकी राख अमर दीपक की भाग बनकर अमर हो जाती है?(v) ‘क्षणिक’ शब्द से मूल शब्द और प्रत्यय अलग करके लिखिए।

Answer»

(i) प्रस्तुत पद्यांश श्रीमती महादेवी वर्मा द्वारा रचित सान्ध्यगीत नामक कविता-संग्रह से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘गीत 1′ शीर्षक कविता से उद्धृत है।
अथवा
शीर्षक का नाम-
 गीत 1
कवयित्री का नाम-महादेवी वर्मा।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-कवयित्री का कहना है कि यदि किसी के हृदय में अज्ञात प्रियतम के प्रति सच्चा प्रेम है तथा उसके हृदय में अपने प्रियतम से मिलने की एकनिष्ठ छटपटाहट विद्यमान है तो इस स्थिति में उसको मिलने वाली हार भी जीत ही मानी जाएगी। भाव यह है कि प्रेम की सफलता इसी में है कि हम एकनिष्ठ भाव से अपने प्रेम को प्रदर्शित करते रहें, चाहे हमारा अपने प्रियतम से मिलन हो या न हो। आशय यह है कि जीवात्मा अविनाशी परमात्मा पर अपने को मिटाकर भी अक्षय पुण्य एवं गौरव की अधिकारिणी बनती है।
(iii) इस पद्यांश से कवयित्री का आशय है कि साधना के कष्टों से घबराकर साधक को हार नहीं माननी चाहिए। साधना-पथ पर मिली असफलता भी गौरव का ही कारण बनती है।।
(iv) पतंगा दीपक पर जलकर राख बन जाता है। उसकी राख अमर दीपक का भाग बनकर अमर हो जाती
(v) क्षणिक = क्षण + इक।



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