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| 1. | सौरभ भीनी झीना गीलालिपटा मृदु अंजन-सा दुकूल;चल अंचल में झर-झर झरते।पथ में जुगनू के स्वर्ण-फूल;दीपक से देता बार-बार |तेरा उज्ज्वल चितवन-विलास !रूपसि तेरा घन-केश-पाश ! | 
| Answer» [सौरभ = सुगन्ध। भीना = सुरभित हुआ। झीना = पतला। अंजन = काजल। दुकूल = रेशमी वस्त्र, दुपट्टा। चल = हिलते हुए, चलायमान। जुगनू के स्वर्ण-फूल = जुगनूरूपी सुनहरे फूल देता बार-बार = जला देता है। चितवन विलास = दृष्टि की भंगिमा।] प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में वर्षा सुन्दरी के श्रृंगार का अद्भुत वर्णन किया गया है। व्याख्या–कवयित्री कहती है कि हे वर्षारूपी नायिका! तुमने बादलों के रूप में एक सुगन्धित, पारदर्शक, कुछ गीला एवं हल्का काले रंग का झीना रेशमी वस्त्र धारण कर लिया है। आकाश में चमकने वाले जुगनू ऐसे लग रहे हैं, मानो तुम्हारे हिलते हुए आँचल से मार्ग में सोने के फूल झर रहे हों। बादलों में चमकती बिजली ही तुम्हारी उज्ज्वल चितवन है। जब तुम अपनी ऐसी सुन्दर दृष्टि किसी पर डालती हो तो उसके मन में प्रेम के दीपक जगमगाने लगते हैं। हे रूपवती वर्षा सुन्दरी! तुम्हारी बादलरूपी केश-राशि अत्यधिक सुन्दर है। काव्यगत सौन्दर्य- ⦁    कवयित्री ने प्रकृति के मानवीकरण के सहारे उसकी भाव-भंगिमाओं को सुन्दर वर्णन किया है। | |