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इन स्निग्ध लटों से छा दे तनपुलकित अंकों में भर विशाल;झुक सस्मित शीतल चुम्बन से ।अंकित कर इसका मृदल भाल;दुलरा दे ना, बहला दे ना |यह तेरा शिशु जग है उदास !रूपसि तेरा घन-केश-पाश !

Answer»

[ स्निग्ध = चिकनी। पुलकित = रोमांचित। सस्मित = मुस्कराते हुए। अंकित = चिह्नित। मृदल = सुन्दर। दुलराना = प्यार करना। शिशु जग = संसाररूपी बालक।]

प्रसंग-इन पंक्तियों में महादेवी वर्मा ने वर्षारूपी सुन्दरी को एक माता के रूप में चित्रित किया है।

व्याख्या-कवयित्री वर्षारूपी सुन्दरी से आग्रह करती है कि हे वर्षा सुन्दरी! तुम अपने कोमल बालों की छाया में इस संसाररूपी अपने शिशु को समेट लो। उसे अपनी रोमांचित एवं विशाल गोद में रखकर उसका सुन्दर मस्तक अपने बादलरूपी बालों  से ढककर अपने हँसीयुक्त शीतल चुम्बन से चूम लो। हे सुन्दरी! तुम्हारे बादलरूपी बालों की छाया से, मधुर चुम्बन और दुलार से इस संसाररूपी; शिशु का मन बहल जाएगा और उसकी उदासी दूर हो जाएगी। हे वर्षारूपी सुन्दरी! तुम्हारी बादल रूपी काली केश-राशि बड़ी मोहक लग रही है।

काव्यगत सौन्दर्य-
⦁    वर्षा में मातृत्व का सजीव चित्रण हुआ है तथा बच्चे के प्रति माता के कर्तव्य को समझाया गया हैं।
⦁    प्रकृति का ऐसा सुन्दर चित्रण कम ही देखने को मिलता है।
⦁    भाषासाहित्यिक खड़ी बोली।
⦁    शैली—चित्रात्मक और भावात्मक।
⦁    रस-शृंगार एवं वात्सल्य।
⦁    गुण-माधुर्य।
⦁    छन्द-अतुकान्त-मुक्त।
⦁    अलंकाररूपक और मानवीकरण।



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