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दिए गए पद्यांशों को फ्ढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिएचिर सजग आँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना !जाग तुझको दूर जाना !अचल हिमगिरि के हृदय में आज चाहे कम्प हो ले,या प्रलय के आँसुओं में मौन अलसित व्योम रो ले;आज पी आलोक को डोले तिमिर की घोर छाया,जाग या विद्युत-शिखाओं में निठुर तूफान बोले ! पर तुझे है नाश-पथ पर, चिह्न अपने छोड़ आना !जाग तुझको दूर जाना !(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।(iii) प्रस्तुत पद्यांश के माध्यम से कवयित्री ने पथिक को क्या प्रेरणा दी है?(iv) मार्ग में आने वाली अनेकानेक कठिनाइयों के बावजूद भी पथिक को विनाश और विध्वंश के बीच क्या छोड़ जाना है?(v) ‘हिमगिरि’ शब्द के दो पर्यायवाची शब्द लिखिए।

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(i) प्रस्तुत पद्यांश श्रीमती महादेवी वर्मा द्वारा रचित सान्ध्यगीत नामक कविता-संग्रह से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘गीत 1′ शीर्षक कविता से उद्धृत है।
अथवा
शीर्षक का नाम–
 गीत 1
कवयित्री का नाम-महादेवी वर्मा।।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-कवयित्री महादेवी वर्मा कहती हैं कि हे पथिक! तुम्हारी सदा सचेत रहने वाली आँखों में यह खुमारी कैसी है और तुम्हारी वेशभूषा इतनी अस्त-व्यस्त क्यों हो रही है? ऐसा प्रतीत हो रहा है कि तुम अपने घर पर ही विश्राम कर रहे हो। सम्भवतः तुम यह भूल गये हो कि तुम्हें लम्बी यात्रा पर जाना है। इसीलिए तुम जाग जाओ, क्योंकि तुम्हारा प्राप्य या लक्ष्य बहुत दूर है। इसीलिए तुम्हें आलस्य में पड़े न रहकर तुरन्त निकल जाना चाहिए। आशय यह है कि साधक को साधना-मार्ग में अनेक कठिनाइयों-बाधाओं का सामना करना पड़ता है। जो साधक इनसे घबराकर या हताश होकर बैठ जाता है, वह अपने लक्ष्य तक कभी नहीं पहुँच पाता। इसलिए साधक को आगे बढ़ते रहने के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए।
(iii) प्रस्तुत पद्यांश के माध्यम से कवयित्री ने पथिक को निरन्तर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते जाने की प्रेरणा दी है।
(iv) मार्ग में आने वाली अनेकानेक कठिनाइयों के बावजूद भी पथिक को विनाश और विध्वंस के बीच नव-निर्माण के चित्र छोड़ जाना है।
(v) ‘हिमगिरि’ शब्द के दो पर्यायवाची हैं–हिमालय, गिरिराज।



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