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स्त्रियों की शिक्षा का स्वरूप पुरुषों की शिक्षा के स्वरूप से अलग रहना चाहिए। कताई, बुनाई, सिलाई, कटाई आदि की शिक्षा तो उन्हें दी ही जाए, किंतु इसी के साथ उन्हें कुटीर उद्योगों में भी निपुण बनाया जाना चाहिए, जिससे कि बुरा समय आने पर वे किसी की मोहताज न रहें। स्त्रियों को शिक्षित करने से हमारा घर स्वर्ग बन सकता है। नासमझ और फूहड़ औरतों से परिवार के परिवार तबाह हो जाते हैं। जिस घर की स्त्रियाँ सुशिक्षित और सुसंस्कृत होती हैं, वे घर जिंदा विश्वविद्यालय होते हैं। शिक्षा का अर्थ किताबी ज्ञान ही नहीं है और न ही अक्षरज्ञान है, वह तो जीने की कला है।स्त्रियों को किस प्रकार की शिक्षा देनी चाहिए?हमारा घर स्वर्ग कब बन सकता है?शिक्षा का अर्थ क्या है?बुरे समय में स्त्रियाँ स्वावलम्बी कैसे रह सकती हैं?इस परिच्छेद के लिए एक उचित शीर्षक दीजिए।

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1) पुरुषों को जो शिक्षा दी जाती है उससे भिन्न प्रकार की शिक्षा स्त्रियों को दी जानी चाहिए। कताई, बुनाई, सिलाई, कटाई आदि की शिक्षा के साथ ही साथ स्त्रियों को कुटीर उद्योग की भी शिक्षा देनी चाहिए।

2) स्त्रियों को उचित शिक्षा देने से हमारा घर स्वर्ग बन सकता है।

3) शिक्षा का सही अर्थ है सुंदरता से जीवनयापन करने की कला। केवल किताबी ज्ञान या अक्षरज्ञान ही शिक्षा नहीं है।

4) कताई, बुनाई, सिलाई आदि काम सीखकर तथा कुटीर उद्योगों में निपुणता पाकर इनके सहारे बुरे समय में भी स्त्रियाँ स्वावलम्बी रह सकती हैं।

5) उचित शीर्षक: स्त्री-शिक्षा का महत्त्व अथवा शिक्षा और स्त्रियां



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