InterviewSolution
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तो ईष्र्यालु लोगों से बचने का क्या उपाय है? नीत्से कहता है कि “बाजार की मक्खियों को छोड़कर एकान्त की ओर भागो। जो कुछ भी अमर तथा महान् है, उसकी रचना और निर्माण बाजार तथा सुयश से दूर रहकर किया जाता है। जो लोग नये मूल्यों का निर्माण करने वाले होते हैं, वे बाजारों में नहीं बसते, वे शोहरत के पास भी नहीं रहते।” जहाँ बाजार की मक्खियाँ नहीं भिनकतीं, वहाँ एकान्त है। यह तो हुआ ईष्र्यालु लोगों से बचने का उपाय, किन्तु ईष्र्या से आदमी कैसे बच सकता है?(अ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।(ब) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।(स)⦁ ईष्र्यालु व्यक्तियों से बचने का क्या उपाय है ?⦁ प्रस्तुत गद्यांश में लेखक क्या कहना चाहता है ?⦁ ‘बाजार की मक्खियों’ से क्या आशय है ? स्पष्ट कीजिए।⦁ नये मूल्यों का निर्माण करने वाले लोग कहाँ नहीं रहते हैं ?[ नीत्से = यूरोप का एक प्रसिद्ध दार्शनिक, विद्वान् व लेखक। शोहरत = यश, प्रसिद्धि।] |
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Answer» (अ) प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘गद्य-खण्ड में संकलित एवं श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा लिखित ‘ईष्र्या, तू न गयी मेरे मन से’ नामक मनोवैज्ञानिक निबन्ध से उद्धृत है। अथवा अग्रवत् लिखिए पाठ का नाम-ईष्र्या, तू न गयी मेरे मन से। लेखक का नाम-श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’। (ब) प्रथम रेखांकित अंश की व्याख्या–लेखक ईर्ष्यालु व्यक्तियों से दूर रहने की सलाह देता है। प्रसिद्ध दार्शनिक नीत्से ने ईष्र्यालु व्यक्तियों को ‘बाजार की मक्खियाँ’ कहा है। जिस प्रकार मक्खियाँ गन्दगी पर बैठकर बीमारियाँ फैलाती हैं, उसी प्रकार ईर्ष्यालु लोग दूसरों की निन्दा कर समाज के वातावरण में जहर घोलकर उसे प्रदूषित करते हैं। यदि मनुष्य अपने जीवन में कोई श्रेष्ठ कार्य करना चाहता है तो उसे एकान्त स्थान में जाना चाहिए, जहाँ ये लोग न पहुँच सकें। द्वितीय रेखांकित अंश की व्याख्या-लेखक श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी कहते हैं कि ईर्ष्यालु लोगों के साथ रहकर श्रेष्ठ रचना, नये सामाजिक मूल्यों को निर्माण अथवा कोई भी महान् कार्य नहीं किया जा सकता है। रचनात्मक महान् कार्य भीड़ से दूर रहकर ही किये जाते हैं। महान् कार्य करने के लिए प्रसिद्धि के लोभ को छोड़ना पड़ता है। जो व्यक्ति समाज के नये मूल्यों का निर्माण करते हैं, वे बाजार जैसे प्रतिस्पर्धा के स्थानों से दूर रहते हैं। नीत्से के अनुसार एकान्त स्थान वही है, जहाँ ये बाजार की मक्खियाँ (ईर्ष्यालु लोग) नहीं होती हैं। (स) |
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