InterviewSolution
This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.
| 1. |
भारत में जनसंख्या की दृष्टि से महान विभाजक वर्ष कौन-सा है? |
|
Answer» वर्ष 1921 को जनसंख्या की दृष्टि से महान विभाजक वर्ष माना जाता है। |
|
| 2. |
मिश्रित अर्थव्यवस्था को नियन्त्रित अर्थव्यवस्था की संज्ञा किसने दी है?(क) प्रो० हैन्सन ने(ख) प्रो० लर्नर ने(ग) डॉ० डाल्टन ने(घ) लॉक्स ने |
|
Answer» सही विकल्प है (ख) प्रो० लर्नर ने । |
|
| 3. |
योजना उद्देश्य के रूप में समानता के साथ संवृद्धि’ की व्याख्या कीजिए। |
|
Answer» भारत में पंचवर्षीय योजनाओं के लक्ष्य हैं-संवृद्धि, आधुनिकीकरण, आत्मनिर्भरता और समानता। संक्षेप में, आयोजन से जनसामान्य के जीवन-स्तर में सुधार होना चाहिए। केवल संवृद्धि, आधुनिकीकरण और आत्मनिर्भरता के द्वारा ही जनसामान्य के जीवन-स्तर में सुधार नहीं आ सकता। किसी देश में उच्च संवृद्धि दर और विकसित प्रौद्योगिकी का प्रयोग होने के बाद भी अधिकांश लोग गरीब हो सकते हैं। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि आर्थिक समृद्धि के लाभ देश के निर्धन वर्ग को भी सुलभ हों, केवल धनी लोगों तक ही सीमित न रहें। अतः संवृद्धि, आधुनिकीकरण और आत्मनिर्भरता के साथ-साथ समानता भी महत्त्वपूर्ण है। प्रत्येक भारतीय को भोजन, अच्छा आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करवाने में समर्थ होना चाहिए और धन-वितरण की असमानताएँ भी कम होनी चाहिए। संक्षेप में, आर्थिक संवृद्धि, समानता के अभाव में अर्थहीन होती है। |
|
| 4. |
भारत ने योजना को क्यों चुना? |
|
Answer» 1947 ई० (स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात्) में भारतीय अर्थव्यवस्था गतिहीन तथा पिछड़ी अर्थव्यवस्था थी। कृषि ही जीवन-निर्वाह का मुख्य साधन थी किंतु कृषि की अवस्था अत्यधिक दयनीय थी। अर्थव्यवस्था के द्वितीयक तथा तृतीयक क्षेत्र अविकसित थे और देश की बहुत बड़ी जनसंख्या घोर निर्धनता का जीवन व्यतीत कर रही थी। अर्थव्यवस्था मुख्यत: माँग और पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों पर आधारित थी। जिसका परिणाम था-निर्धनता, असमानता एवं गतिहीनता। ऐसी अर्थव्यवस्था को बाजार की शक्तियों पर नहीं छोड़ा जा सकता है। अतः इन समस्याओं के त्वरित समाधान के लिए भारत ने ‘नियोजन’ का मार्ग अपनाया। |
|
| 5. |
स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए। |
|
Answer» स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं- 1. प्रति व्यक्ति आय का निम्न स्तर–स्वतंत्रता के समय देश की प्रति व्यक्ति आय बहुत कम थी। देश में निर्धनता व्यापक रूप में विद्यमान थी। इस समय, अभाव तथा भुखमरी भारतीय अर्थव्यवस्था की दशा का बयान करती थी। ⦁ महालवाड़ी प्रथा तथा ⦁ रैयतवाड़ी प्रथा। सरकार तथा किसानों के बीच मध्यस्थों की एक बड़ी श्रृंखली थी। ये मध्यस्थ किसानों से बहुत अधिक लगान वसूल करने लगे। मध्यस्थों द्वारा किए जाने वाले इस शोषण ने कृषि उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाला। |
|
| 6. |
योजनाओं के लक्ष्य क्या होने चाहिए? |
|
Answer» किसी योजना के स्पष्टत: निर्दिष्ट लक्ष्य होने चाहिए। भारत में पंचवर्षीय योजनाओं के लक्ष्य हैं ⦁ आधुनिकीकरण, ⦁ आत्मनिर्भरता, ⦁ समानता, ⦁ रोजगार। |
|
| 7. |
भारतीय अर्थव्यवस्था में कुछ विशेष अनुकूल परिस्थितियाँ हैं जिनके कारण यह विश्व का बाह्य प्रापण केन्द्र बन रहा है। अनुकूल परिस्थितियाँ क्या हैं? |
|
Answer» विश्व के बाह्य प्रापण केन्द्र के रूप में भारतीय अर्थव्यवस्था में अनुकूल परिस्थितियाँ। निम्नलिखित हैं| ⦁ भारत में तीव्र गति से सूचना प्रौद्योगिकी का विस्तार हुआ है। ⦁ भारत में प्रापण सेवाओं की लागत बहुत कम आती है। ⦁ कार्य का निष्पादन कुशलतापूर्वक हो जाता हैं। ⦁ सेवा दर निम्न है और श्रमशक्ति कुशल है। |
|
| 8. |
लाइसेन्स नीति के दो उद्देश्य बताइए। |
|
Answer» (1) उद्योगों के स्वामित्व के केन्द्रीकरण को रोकना। |
|
| 9. |
वर्तमान औद्योगिक नीति, 1991 की मुख्य बातें बताइए। |
|
Answer» सभी पूर्व औद्योगिक नीतियाँ देश के औद्योगिक विकास को गति नहीं दे सकीं। अतः उद्योगों पर लाइसेन्सिग व्यवस्था के अनावश्यक प्रतिबन्धों को समाप्त करने तथा उद्योगों की कुशलता, विकास और तकनीकी स्तर को ऊँचा करने और विश्व बाजार में उन्हें प्रतियोगी बनाने की दृष्टि से 24 जुलाई, 1991 को तत्कालीन उद्यो: राज्यमन्त्री पी० जे० कुरियन द्वारा लोकसभा में औद्योगिक नीति, 1991 की घोषणा की गई। औद्योगिक नीति, 1991 की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं (अ) नीतिगत विशेषताएँ (ब) प्रक्रियात्मक विशेषताएँ ⦁ आरम्भ में ही कम्पनियों में रुग्णता का पता लगाने और उपचारात्मक उपायों को तेजी से लागू करने के लिए दिसम्बर, 1993 में रुग्ण औद्योगिक कम्पनी (विशेष उपबन्ध) अधिनियम, 1985 में संशोधन किया गया। |
|
| 10. |
अल्पविकसित (विकासशील अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषत । |
|
Answer» अल्पविकसित (विकासशील) अर्थव्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं ⦁ ये देश आर्थिक दृष्टि से पिछड़े होते हैं और इनकी प्रति व्यक्ति आय विकसित देशों की तुलना में बहुत कम होती है। ⦁ अधिकांश विकासशील देश कृषिप्रधान होते हैं किन्तु कृषि तकनीकी परम्परागत और कृषि उत्पादकता निम्न होती है। ⦁ पूँजी की कमी पायी जाती है जिसके कारण पूँजी निर्माण की दर न्यून रहती है। ⦁ आधुनिक संरचना परिवहन व संचार के साधन, बैंकिंग सुविधाओं तथा शिक्षा व चिकित्सा | सुविधाओं का अभाव पाया जाता है। ⦁ कृषि पर जनसंख्या का भार अधिक होता है और औद्योगीकरण के अभाव में व्यापक रूप से बेरोजगारी वे अर्द्ध-बेरोजगारी पायी जाती है। ⦁ प्राकृतिक साधन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं किन्तु तकनीकी पिछड़ेपन के कारण वे अप्रयुक्त व | अल्प-प्रयुक्त पड़े रहते हैं ⦁ आधारभूत उद्योगों के अभाव के कारण इन देशों में औद्योगिक पिछड़ापन पाया जाता है। . |
|
| 11. |
चमत्कारी बीज क्या होते हैं? |
|
Answer» उच्च पैदावार वाली किस्मों के बीजों (HYV) को चमत्कारी बीज कहते हैं। इन बीजों का प्रयोग करने से कृषि उत्पादन में बढ़ोतरी हुई है। |
|
| 12. |
आयात प्रतिस्थापन नीति का क्या उद्देश्य है? |
|
Answer» आयात प्रतिस्थापन नीति का उद्देश्य आयात के बदले घरेलू उत्पाद द्वारा पूर्ति करना है। |
|
| 13. |
भारत के किस क्षेत्र में रैयतवाड़ी प्रथा लागू की गई? |
|
Answer» सर टॉमस मुनरो ने सन् 1792 में मद्रास में रैयतवाड़ी प्रथा प्रारम्भ की। बाद में इसका विस्तार मुंबई एवं उत्तर भारत के ब्रिटिश क्षेत्रों में कर दिया गया। |
|
| 14. |
भारत की औद्योगिक नीति, 1956 की मुख्य विशेषताएँ बताइए। |
|
Answer» सन् 1948 में औद्योगिक नीति की घोषणा के बाद देश के राजनीतिक, आर्थिक तथा दार्शनिक चिन्तन में अनेक परिवर्तन आए। परिणामस्वरूप 30 अप्रैल, 1956 को नई औद्योगिक नीति की घोषणा की गई। इसकी प्रमुख विशेषताएँ, निम्नलिखित थीं ⦁ प्रथम समूह में वे उद्योग हैं, जो पूर्ण-रूप से राज्य के एकाधिकार में रहेंगे। इस सूची में 17 महत्त्वपूर्ण उद्योग हैं; जैसे-हथियार, गोला-बारूद और रक्षा सम्बन्धी अन्य सामग्री, परमाणु शक्ति, लोहा व इस्पात, लौह-इस्पात की भारी मशीनें, उद्योगों के लिए भारी संयन्त्र, खनिज तेल, लोहा, मैंगनीज, जिप्सम, गन्धक, सोना व हीरों का खनन, वायु तथा रेल परिवहन आदि। ⦁ द्वितीय समूह में वे उद्योग हैं, जिनके विकास में सरकार उत्तरोत्तर अधिक भाग लेगी। इस सूची में 12 उद्योग शामिल हैं। इसे हम मिश्रित क्षेत्र भी कह सकते हैं, इस वर्ग में छोटे खनिजों को छोड़कर अन्य खनिज, ऐलुमिनियम तथा अलौह धातुएँ, मशीनरी औजार, जीवन निरोधक तथा अन्य दवाएँ, उर्वरक, कृत्रिम रबड़, सड़क परिवहन आदि उद्योग शामिल हैं। ⦁ तृतीय समूह में शेष सभी उद्योगों को रखा गया है। इस श्रेणी में लगभग सभी उपभोक्ता उद्योग की जाते हैं। सरकार इन उद्योगों के विकास के लिए आवश्यक वित्तीय तथा अन्य सुविधाएँ प्रदान करेगी। 2. कुटीर तथा लघु उद्योग- सरकार कुटीर उद्योगों के विकास के लिए हर सम्भव सहायता देगी। सहायता कार्यक्रमों में इनकी वित्तीय तथा प्राविधिक कठिनाइयों का निवारण, औद्योगिक बस्तियों का विस्तार, ग्रामीण क्षेत्र में कार्यशालाओं की स्थापना, विद्युत सुविधाओं का विस्तार, औद्योगिक सहकारी समितियों का गठन, प्रत्यक्ष आर्थिक सहायता आदि को शामिल किया गया। 3. निजी क्षेत्र का दायित्व– निजी क्षेत्र योजना आयोग द्वारा निर्धारित आर्थिक नीतियों तथा कार्यक्रमों के अनुसार कार्य करेगा और सरकार निजी क्षेत्र को बिना किसी भेदभाव के सहायता प्रदान करेगी। ⦁ औद्योगिक शान्ति स्थापित करने के लिए सरकार श्रम को प्रबन्ध में उचित स्थान प्रदान करेगी और उनकी कार्य की दशाओं में सुधार करेगी। ⦁ सरकार विदेशी पूँजी को आमन्त्रित करेगी तथा विदेशी पूँजी व स्वदेशी पूँजी में भेदभाव नहीं करेगी। ⦁ नए-नए प्रशिक्षण कार्यक्रम लागू किए जाएँगे। ⦁ भारी एवं आधारभूत उद्योगों की स्थापना की जाएगी। ⦁ देश के सभी वर्गों का समर्थन व सहयोग प्राप्त करने का प्रयास किया जाएगा। |
|
| 15. |
आयात प्रतिस्थापन किस प्रकार घरेलु उद्योगों को संरक्षण प्रदान करता है? |
|
Answer» हमारे नीति-निर्माताओं द्वारा अपनाई गई औद्योगिक नीति व्यापार नीति से घनिष्ट रूप से सम्बद्ध थी। हमारी योजनाओं में व्यापार की विशेषता अंतर्मुखी व्यापार नीति थी। तकनीकी रूप से इस नीति को आयात-प्रतिस्थापन कहा जाता है। इस नीति का उद्देश्य आयात के बदले घरेलू उत्पादन द्वारा पूर्ति करना है। इस नीति द्वारा राज्य ने घरेलू उद्योगों की वस्तुओं का उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहित किया और विदेशी प्रतिस्पर्धा से घरेलू उद्योगों की रक्षा की। आयात संरेक्षण दो प्रकार के थे- ⦁ कोटा-कोटे में वस्तुओं की मात्रा तय होती है, जिन्हें आयात किया जा सकता है। प्रशुल्क एवं कोटे का प्रभाव यह होता है कि उनसे आयात प्रतिबंधित हो जाते हैं और विदेशी प्रतिस्पर्धा से देशी फर्मों की रक्षा होती है। |
|
| 16. |
भारत में औद्योगीकरण की दो समस्याएँ बताइए। |
|
Answer» भारत में औद्योगीकरण की दो समस्याएँ हैं| (1) तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या भारत के औद्योगिक विकास में बाधक बनी है। |
|
| 17. |
स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था पिछड़ी हुई थी। दो तर्क दीजिए। |
|
Answer» 1. देश का आर्थिक ढाँचा अत्यधिक क्षीण था। |
|
| 18. |
गाँवों में फसल की बिक्री की विवशता के लिए उत्तरदायी दो कारण बताइए। |
|
Answer» (1) भण्डारण सुविधाओं का अभाव। |
|
| 19. |
अनियमित मण्डियों में कोई दो प्रचलित बुराइयाँ बताइए। |
|
Answer» (1) विभिन्न प्रकार की अनुचित कटौतियाँ काटना। |
|
| 20. |
यान्त्रिक कृषि का अर्थ बताइए। |
|
Answer» यान्त्रिक कृषि का अभिप्राय भूमि सम्बन्धी कार्यों में, जिन्हें प्राय: बैलों, घोड़ों अथवा अन्य पशुओं की सहायता से अथवा मानव श्रम द्वारा अथवा पशु एवं मानव श्रम दोनों के द्वारा किया जाता है, में यान्त्रिक शक्ति का प्रयोग करने से है। |
|
| 21. |
पूँजीवाद क्या है? पूँजीवाद की प्रमुख विशेषताएँ बताइए। |
|
Answer» पूँजीवाद का अर्थ एवं परिभाषाएँ प्रो० पीगू के अनुसार- “एक पूँजीवादी उद्योग वह है, जिसमें उत्पत्ति के भौतिक साधन निजी लोगों की सम्पत्ति होते हैं अथवा उनके द्वारा किराए पर लिए जाते हैं और उनका परिचालन इन लोगों के आदेश पर उनकी सहायता से उत्पन्न होने वाली वस्तुओं को लाभ पर बेचने के लिए किया जाता है। एक पूँजीवादी अर्थव्यवस्था अथवा पूँजीवादी प्रणाली वह है, जिसके उत्पादन के साधनों का मुख्य भाग पूँजीवादी उद्योग । में लगा होता है।” पूँजीवाद की विशेषताएँ ⦁ बिना सम्पत्ति वाला (निर्धन) वर्ग। इन दोनों वर्गों के मध्य निरंतर संघर्ष बढ़ता रहता है। |
|
| 22. |
मूल्य स्थिरीकरण का क्या अर्थ है? |
|
Answer» मूल्य स्थिरीकरण से आशय मूल्यों में होने वाले उच्चावचनों को एक सीमा तक रखने से है अर्थात् उच्चावचनों को नियन्त्रित करने से है। |
|
| 23. |
समाजवाद क्या है? समाजवाद की प्रमुख विशेषताएँ बताइए। |
|
Answer» समाजवाद का अर्थ एवं परिभाषाएँ समाजवाद आर्थिक संगठन की एक ऐसी प्रणाली है, जिसमें उत्पत्ति के साधनों पर सरकार अथवा लोकसत्ता का अधिकार होता है, इनका संचालन एक सामान्य योजना के अनुसार सरकारी अथवा समाजिक संस्थाओं द्वारा किया जाता है और समस्त आर्थिक क्रियाएँ निजी क्षेत्र में न रहकर सार्वजनिक क्षेत्र में रहती हैं। समाजवादे की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं प्रो० शुम्पीटर के अनुसार- “समाजवाद एक ऐसी संस्थागत व्यवस्था को कहते हैं, जिसमें उत्पत्ति के साधनों तथा स्वयं उत्पादन पर नियंत्रण एक केन्द्रीय सत्ता के हाथ में होता है या जिसमें सैद्धान्तिक रूप से समाज की आर्थिक क्रियाएँ व्यक्तिगत क्षेत्र के अधिकार में न होकर सार्वजनिक क्षेत्र में होती हैं।” समाजवाद की विशेषताएँ 1. उत्पत्ति के साधनों पर समाज का स्वामित्व— समाजवादी अर्थव्यवस्था में उत्पत्ति के साधन व्यक्तिगत अधिकार में न होकर सम्पूर्ण समाज के अधिकार में होते हैं। इनका स्वामित्व, नियमन तथा नियंत्रण राज्य के हाथों में होता हैं। इनका प्रयोग निजी लाभ के लिए नहीं वरन् सामाजिक उद्देश्यों के लिए किया जाता है। 8. प्रतियोगिता का अभाव–उत्पादन के साधनों पर स्वामित्व व्यक्तिगत न होकर सामूहिक होता है। | और उत्पादन की मात्रा, किस्म तथा कीमत का निर्धारण प्रतियोगिता द्वारा न होकर केन्द्रीय सत्ता द्वारा होता है। |
|
| 24. |
औपनिवेशिक काल में भारतीय सैम्पत्ति के निष्कासन से आप क्या समझते हैं? |
|
Answer» ब्रिटिश शासकों ने नागरिक प्रशासन तथा सेना के लिए बड़ी संख्या में अंग्रेज अधिकारी भर्ती किए तथा उन्हें भारतीय सहयोगियों की अपेक्षा बहुत अधिक वेतन और भत्ते दिए गए। सभी उच्च पदों पर ब्रिटिश अधिकारी ही नियुक्त किए गएं। असीमित प्रशासनिक शक्ति के कारण वे रिश्वत के रूप में भारी धनराशि लेने लगे। सेवानिवृत्त होने पर उन्हें पेंशन भी मिलती थी। भारत में रह रहे अधिकारी अपनी बचतों, पेंशन व अन्य लाभों के एक बड़े भाग को इंग्लैण्ड भेज देते थे। इन्हें पारिवारिक प्रेषण कहा गया। यह प्रेषण भारतीय सम्पत्ति को इंग्लैण्ड को निष्कासन था। इसके अतिरिक्त स्टर्लिंग ऋणों पर भारी ब्याज देना पड़ता था। इन्हें गृह ज्ञातव्य (home charges) का भुगतान करना पड़ता था। भारत को ईस्ट इण्डिया कम्पनी के युद्धों का खर्च भी देना पड़ता था। इस प्रकार औपनिवेशिक काल में भारतीय सम्पत्ति का निष्कासन होता रहा। |
|
| 25. |
जनांकिकीय संक्रमण के प्रथम से द्वितीय सोपान की ओर संक्रमण का विभाजन वर्ष कौन-सा माना जाता है? |
|
Answer» जनांकिकीय संक्रमण के प्रथम से द्वितीय सोपान की ओर संक्रमण का विभाजन वर्ष 1921 माना जाता है। |
|
| 26. |
“स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था एक पिछड़ी अर्थव्यवस्था थी।” स्पष्ट कीजिए। |
|
Answer» विभिन्न शोषणकारी नीतियों एवं गरीबी और बेरोजगारी के परिणामस्वरूप अर्थचक्र बदलते-बदलते ऐसी स्थिति आ गई कि स्वतंत्रता के समय देश का आर्थिक ढाँचा अत्यधिक क्षीण हो गया था। अक्षम कृषि प्रणाली और दूषित भू-स्वामित्व व्यवस्था के नीचे करोड़ों किसान पिस रहे थे। कृषि मूलतः जीवन निर्वाहपरक ही बनी हुई थी। औद्योगिक क्षेत्र में भी स्थिति संतोषजनक न थी। वास्तव में, ब्रिटिश सरकार की दोषपूर्ण आर्थिक नीतियों ने हमारे देश को मुख्य रूप से प्राथमिक वस्तुओं के उत्पादक के रूप में परिवर्तित कर दिया। कुल राष्ट्रीय आय का केवल 17.1% भाग ही खनन उद्योग तथा लघु उद्योगों से प्राप्त होता था। उत्पादक उद्योगों में उपभोक्ता वस्तु उद्योगों की प्रधानता थी। इन उपभोक्ता वस्तु उद्योगों के वर्ग में भी कृषि क्षेत्र से प्राप्त उत्पादन की प्रक्रिया (process) करने वाले उद्योगों का प्रमुख स्थान था। ये उद्योग तकनीकी दृष्टि से अत्यधिक पिछड़े थे। उत्पादकता का स्तर भी निम्न था। पूँजीगत वस्तुओं, विद्युत उपकरणों तथा रसायन उत्पादनों की मात्रा अत्यधिक नगण्ये थी। वास्तव में, यह ब्रिटेन के हितों के अनुकूल ही था कि भारत औद्योगिक दृष्टि से एक पिछड़ा देश रहा। जो थोड़े-बहुत उद्योग देश में स्थापित थे उनमें विदेशी पूँजी की प्रधानता थी। |
|
| 27. |
पूँजीवाद क्या है? |
|
Answer» पूँजीवाद आर्थिक संगठन की एक ऐसी प्रणाली है जिसमें उत्पादन के साधनों पर व्यक्ति का निजी अधिकार होता है तथा वह उत्पादन के साधनों का प्रयोग लाभ कमाने की दृष्टि से करता है। |
|
| 28. |
भारत में आधारिक संरचना विकास की नीतियों से अंग्रेज अपने क्या उद्देश्य पूरे करना चाहते थे? |
|
Answer» औपनिवेशिक शासन के अंतर्गत देश में रेलों, पत्तनों, जल-परिवहन व डाक-तार आदि का विकास हुआ। इसका उद्देश्य जनसामान्य को अधिक सुविधाएँ प्रदान करना नहीं था। अपितु देश के भीतर प्रशासन व पुलिस व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त रखने एवं देश के कोने-कोने से कच्चा माल एकत्र करके अपने देश में भेजने तथा अपने देश में तैयार माल को भारत में पहुँचाना था। |
|
| 29. |
भारत में दि-औद्योगीकरण के क्या परिणाम हुए? |
|
Answer» भारत में वि-औद्योगीकरण (उद्योगों के पतन) के निम्नलिखित परिणाम हुए ⦁ उद्योगों में कार्यरत कर्मचारियों, शिल्पकारों व अन्य कारीगरों के समक्ष जीवन-यापन की समस्या आरम्भ हो गई। वैकल्पिक रोजगार के अभाव में कृषि ने उन्हें आश्रय दिया। फलतः कृषि पर आश्रित जनसंख्या का अनुपात बढ़ता गया। यह सन् 1861 में 55% से बढ़कर सन् 1911 तक 72% हो गया। ⦁ भारत की व्यापारिक स्थिति में व्यापक परिवर्तन हुए। 18वीं शताब्दी के अंत तक भारत अधिकांशत: तैयार वस्तुएँ बाहर भेजता था। इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप कच्चे माल की माँग बढ़ी जिसकी आपूर्ति भारत जैसे विशाल उपनिवेशों से ही हो सकती थी। दूसरी ओर इंग्लैण्ड के कारखानों में बनी वस्तुओं के लिए भारत में विशाल बाजार उपलब्ध था। अतः भारतीय उद्योगों के पतन के साथ-साथ इंग्लैण्ड में तैयार वस्तुएँ भारत में आने लगीं और इसके बदले यहाँ से कच्चे माल का निर्यात बढ़ता गया। ⦁ शिल्पकारों के कृषि के क्षेत्र में आने पर भूमि की माँग बढ़ गई। 19वीं शताब्दी के अकालों केकारण भी कारीगर ग्रामीण उद्योगों में अपनी जीविकोपार्जन करने में असमर्थ हो चले थे। अत: कृषि क्षेत्र में आने वाले बहुत कम व्यक्ति भूमि खरीदकर खेती करने की स्थिति में थे। फलस्वरूप कृषि क्षेत्र में ऐसे व्यक्तियों की संख्या बढ़ती गई जो भूमिहीन थे और केवल श्रम द्वारा ही जीविकोपार्जन करना चाहते थे। ⦁ शिल्पकारों की आर्थिक स्थिति खराब होती गई। |
|
| 30. |
न्यूनतम समर्थन मूल्य से क्या आशय है? |
|
Answer» न्यूनतम समर्थन मूल्य से आशय सरकार द्वारा ऐसे आश्वासन से है कि यदि खुले बाजार में मूल्य कम हो जाए तो सरकार न्यूनतम मूल्य पर इसका क्रय करने की व्यवस्था करेगी। |
|
| 31. |
औद्योगीकरण से क्या आशय है? |
|
Answer» औद्योगीकरण से आशय निर्माणी उद्योगों की स्थापना एवं उनके विकास से है। |
|
| 32. |
समाजवाद क्या है? |
|
Answer» समाजवाद आर्थिक संगठन की एक ऐसी प्रणाली है जिसमें उत्पत्ति के साधनों पर सरकार अथवा लोकसत्ता का अधिकार होता है तथा समस्त आर्थिक क्रियाएँ निजी क्षेत्र में न रहकर सार्वजनिक क्षेत्र में रहती है। |
|
| 33. |
उपदान (आर्थिक सहायता) से क्या आशय है? |
|
Answer» उपदान वह आर्थिक सहायता है जिसे सरकार वस्तुओं के मूल्यों को निम्न स्तर पर बनाए रखने के लिए उत्पादकों, वितरकों व निर्यातकों को प्रदान करती है। |
|
| 34. |
मिश्रित अर्थव्यवस्था क्या है? |
|
Answer» मिश्रित अर्थव्यवस्था पूँजीवाद और समाजवाद के बीच की अवस्था है। इसमें पूँजीवाद व समाजवाद दोनों के दोषों से अर्थव्यवस्था को मुक्त करके दोनों प्रणालियों के गुणों को अपनाया जाता है। इसमें निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र को सह-अस्तित्व पाया जाता है। |
|
| 35. |
ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन द्वारा अपनाई गई औद्योगिक नीतियों की कमियों की आलोचनात्मक विवेचना करें। |
|
Answer» ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन द्वारा अपनाई गई औद्योगिक नीति की निम्नलिखित कमियाँ थीं ⦁ देश की विश्वप्रसिद्ध शिल्पकलाओं का धीरे-धीरे ह्रास होने देना। ⦁ भारत को इंग्लैण्ड में विकसित हो रहे उद्योगों के लिए कच्चे माल का निर्यातक बनाना। ⦁ इंग्लैण्ड के उद्योगों में बने माल के लिए भारत को ही विशाल बाजार बनाना। ⦁ भावी औद्योगीकरण को हतोत्साहित करने हेतु पूँजीगत उद्योगों का विकास न करना। |
|
| 36. |
भारतीय शिल्प उद्योगों के पतन के मुख्य कारण बताइए। |
|
Answer» 18वीं शताब्दी के अंत तक भारत आर्थिक दृष्टि से अत्यंत सम्पन्न तथा समृद्ध देश था। यहाँ के कृषकों, शिल्पकारों तथा व्यापारियों की कार्यकुशलता विश्वभर में प्रसिद्ध थी। भारतीय औद्योगिक आयोग, 1916 ने लिखा है-“जिस समय आधुनिक औद्योगिक व्यवस्था के उद्गम पश्चिमी यूरोप में असभ्य जातियाँ निवास करती थीं, भारत अपने शासकों के वैभव तथा शिल्पकारों की उच्चकोटि की काना हेतु विख्यात था।” परंतु 19वीं शताब्दी की अनेक घटनाओं ने हमारे उद्योगों व हस्तकलाओं को प्रायः नष्ट कर दिया। डॉ० गाडगिल के अनुसार, 1880 तक भारतीय उद्योगों का पराभव हो चुका था। भारतीय शिल्प उद्योगों के पतन के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे 1. राजदरबारों की समाप्ति- सामान्यतः राजा, महाराजा और सामंत लोग हस्तकलाओं के पारखी हुआ करते थे। उनके संरक्षण में ही भारतीय उद्योग फले-फूले थे। ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार के साथ-साथ इनकी स्थिति दयनीय होती गई और हस्तकलाओं का पराभव होने लगा। |
|
| 37. |
द्वितीय विश्वयुद्ध का भारतीय उद्योगों पर क्या प्रभाव पड़ा? |
|
Answer» मुद्रा प्रसार के कारण मूल्यों में तेजी से वृद्धि हुई, सामान्य उपभोक्ता वस्तुओं का अभाव हो गया और आधारभूत उद्योगों की उपेक्षा हुई। |
|
| 38. |
भारतीय उद्योगों के प्रति ब्रिटिश सरकार की नीति कैसी थी? |
|
Answer» ब्रिटिश सरकार की नीति भारतीय उद्योगों के विकास को अवरुद्ध करने की थी। |
|
| 39. |
आर्थिक नियोजन से क्या आशय है? |
|
Answer» आर्थिक नियोजन से आशय पूर्व-निर्धारित और निश्चित सामाजिक एवं आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु अर्थव्यवस्था के सभी अंगों को एकीकृत और समन्वित करते हुए राष्ट्र के संसाधनों के सम्बन्ध में सोच-विचारकर रूपरेखा तैयार करने और केन्द्रीय नियन्त्रण से है। |
|
| 40. |
प्रेसीडेंसी बैंक कौन-कौन से थे? । |
|
Answer» 1. बैंक ऑफ बंगाल, |
|
| 41. |
व्यावसायिक संरचना से क्या आशय है? |
|
Answer» व्यावसायिक संरचना का अर्थ है-कार्यशील जनसंख्या का विभिन्न व्यवसायों में वितरण। |
|
| 42. |
रैयतवाड़ी प्रथा के दो दोष बताइए। |
|
Answer» 1. लगाने का निर्धारण मनमाने एवं पक्षपातपूर्ण ढंग से किया गया। |
|
| 43. |
हिल्टन यंग कमीशन की मुख्य सिफारिशें क्या थीं? |
|
Answer» हिल्टन यंग कमीशन की मुख्य सिफारिशें थीं |
|
| 44. |
ढाका की मलमल को अरब देशों में क्या कहा जाता था? |
|
Answer» ढाका की मलमल को अरब देशों में ‘आबेहयात’ कहा जाता था। |
|
| 45. |
स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की व्यावसायिक संरचना क्या थी? |
|
Answer» स्वतंत्रता के समय 72.7 प्रतिशत जनसंख्या प्राथमिक क्षेत्र में, 10.1 प्रतिशत द्वितीयक क्षेत्र में तथा 17.2 प्रतिशत जनसंख्या तृतीयक क्षेत्र में कार्यरत थी। |
|
| 46. |
स्वतंत्रता के समय व्यापार संतुलन की क्या स्थिति थी? |
|
Answer» व्यापार संतुलन भारत के पक्ष में था। |
|
| 47. |
क्या अंग्रेजों ने भारत में कुछ सकारात्मक योगदान भी दिया था? विवेचना करें। |
|
Answer» भारत के आर्थिक विकास में अंग्रेजों का नकारात्मक पक्ष सकारात्मक पक्ष की तुलना में अधिक प्रबल है। यद्यपि अंग्रेजी इतिहासकार भारत के अल्पविकास के लिए अंग्रेजी शासन को उत्तरदायी नहीं मानते। इस बारे में एल०सी०ए० नोल्स (L.C.A. Knowles) का कहना है-“ब्रिटिश शासकों ने तो आर्थिक विकास को प्रोत्साहन दिया, न कि उसमें बाधा डाली। वेरा एन्स्टे (Vera Anstey) का कहना है कि नसंख्या में अत्यधिक वृद्धि और लोगों के दृष्टिकोण के कारण यह देश आर्थिक दृष्टि से अल्पविकसित रह गया। इसके लिए आर्थिक नीतियाँ अधिक जिम्मेदार नहीं हैं। भारतीय अर्थशास्त्री-दादाभाई नौरोजी, रमेशचन्द्र दत्त, रजनी पाम दत्त, वी०वी० भट्ट आदि इन विचारों का खण्डन करते हैं। यद्यपि, भारत के अल्पविकास के लिए ब्रिटिश शासन ही उत्तरदायी है तथापि ब्रिटिश साम्राज्य का भारत के विकास में सकारात्मक योगदान भी रहा है जो निम्नलिखित है। ⦁ शांति एवं व्यवस्था की दृष्टि से स्थिति में सुधार हुआ। ⦁ परिवहन और संचार सुविधाओं में वृद्धि हुई। ⦁ नगरीय क्षेत्रों में पाश्चात्य उत्तरदायी विचारों का प्रभाव पड़ा। |
|
| 48. |
स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था कैसी अर्थव्यवस्था थी? |
|
Answer» स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था ⦁ एक गतिहीन अर्थव्यवस्था थी; ⦁ एक कृषिप्रधान अर्थव्यवस्था थी। |
|
| 49. |
स्वतंत्रता के समय राष्ट्रीय आय में विभिन्न क्षेत्रों का क्या योगदान था? |
|
Answer» वर्ष 1947 में राष्ट्रीय आय में विभिन्न क्षेत्रों का प्रतिशत योगदान इस प्रकार था |
|
| 50. |
प्राथमिक क्षेत्र में कौन-कौन-सी आर्थिक क्रियाएँ शामिल की जाती है। |
|
Answer» 1. कृषि, |
|