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This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.

9701.

Which right is attributed to consumers to use before choosing the commodities?

Answer»

Right to information

9702.

Fill in the blanks1. ……… is called Father of consumer protection movement.2. 15th March is celebrated …………. .3. The National Consumer Rights Day is celebrated on ………… December.4. ………. is marked on agro-products.5. ………… certifies quality at international level.

Answer»

1. Ralph Nadal

2. World Consumer Right Day

3. 24th

4. AGMARK

5. ISO

9703.

UNESCO के कार्य की जानकारी दीजिए ।

Answer»

यह संस्था निरक्षरता निवारण, शिक्षा द्वारा मानव का जीवन स्तर ऊँचा उठाने, न्याय देने, शिक्षा, विज्ञान और सांस्कृतिक साधनों द्वारा राष्ट्र-राष्ट्र के बीच सहयोग बढ़ाने का कार्य करती है ।

9704.

Increase by Government in supply of what leads to price rise?(A) Commodities(B) Grains(C) Raw materials(D) Money

Answer»

Correct option is (D) Money

9705.

Which Act was passed to control price?

Answer»

Essential commodity Act, 1955.

9706.

Under which Act are the black marketers, hoarders arrested?(a) Price Control Act(b) PASA (Prevention of Anti-Social Activities Act)(c) Consumer Protectidn Act(d) Anti-Corruption Act

Answer»

(d) Anti-Corruption Act

9707.

Military organisation formed under dominance of USA ......(a) North Atlantic Treaty Organisation(b) Warsaw Pact (c) New International Economic Order(d) Non-Aligned Movement

Answer»

(a) North Atlantic Treaty Organisation

9708.

The first Chairman of the Indian Atomic Energy Commission was ...... (a) Dr. Vikram Sarabhai (b) Dr. A.P.J.Abdul Kalam (c) Dr. Homi Bhabha.(d) Dr. Manmohan Singh

Answer»

(c) Dr. Homi Bhabha.

9709.

दक्षिण एशिया क्षेत्र की विशेषताओं का विवरण दीजिए।

Answer»

दक्षिण एशिया क्षेत्र की विशेषताएँ-

⦁    दक्षिण एशिया एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ सद्भाव और शत्रुता, आशा और निराशा एवं पारस्परिक शंका व विश्वास साथ-साथ बसते हैं।
⦁    सामान्यतया भारत, पाकिस्तान, बंगलादेश, नेपाल, भूटान, मालदीव एवं श्रीलंका को इंगित करने के लिए ‘दक्षिण एशिया’ पद का व्यवहार किया जाता है। इस क्षेत्र में कभी-कभी अफगानिस्तान एवं म्यानमार को भी शामिल किया जाता है।
⦁    उत्तर में विशाल हिमालय पर्वत श्रृंखला, दक्षिण में हिन्द-महासागर, पश्चिम में अरब सागर एवं पूर्व में बंगाल की खाड़ी से दक्षिण एशिया एक विशिष्ट प्राकृतिक क्षेत्र के रूप में नजर आता है।
⦁    दक्षिण एशिया विविधताओं से भरा-पूरा क्षेत्र है फिर भी भू-राजनीतिक धरातल पर यह एक क्षेत्र है।
⦁    दक्षिण एशिया क्षेत्र की भौगोलिक विशिष्टता ही इस उपमहाद्वीप क्षेत्र के भाषायी, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अनूठेपन के लिए जिम्मेदार है।

9710.

Which right empowers the consumers to organize non-political organizations?(a) Right to Information(b) Right to Choice(c) Right to Presentation(d) Right to Complaint

Answer»

(c) Right to Presentation

9711.

दक्षिण एशिया के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन गलत है-(क) दक्षिण एशिया में सिर्फ एक तरह की राजनीतिक प्रणाली चलती है।(ख) बंगलादेश और भारत ने नदी-जल की हिस्सेदारी के बारे में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।(ग) ‘साफ्टा’ पर हस्ताक्षर इस्लामाबाद के 12वें सार्क सम्मेलन में हुए।(घ) दक्षिण एशिया की राजनीति में चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

Answer»

(क) दक्षिण एशिया में सिर्फ एक तरह की राजनीतिक प्रणाली चलती है।

9712.

Which right protects the consumer from injurious commodities and services?(a) Right to information(b) Right to choose(c) Safety(d) Right to protection

Answer»

Correct option is (c) Safety

9713.

Which Act is initiated by Government to stabilize the price?(a) Essential Commodity Act, 1955(b) Essential Service Act(c) Consumer Protection Act(d) Price Regulation Act

Answer»

(a) Essential Commodity Act, 1955

9714.

Explain the concept:Military Organisation

Answer»

(i) During the Cold War, power struggle between USSR and USA created need for nations who will support their ideologies.

(ii) Thus, organisations were created for helping nations militarily and thus dragging them into either of the super power blocs for their hegemony.

(iii) The respective super powers took up the responsibility of the security of the countries joining the military organisations led by them. 

(iv) NATO (North Atlantic Treaty Organisation) was a military organisation under the dominance of America, while the Warsaw Pact was a military organisation, under the command of the Soviet Union.

9715.

Non-aligned movement demanded establishment of .........(a) Association of South East Asian Nations (b) League of Nations (c) New International Economic Order (NIEO) (d) European Union (EU)

Answer»

(c) New International Economic Order (NIEO)

9716.

This was the main objective behind establishing the Indian Atomic Energy Commission .......(a) Enhance military capacity(b) Conduct nuclear tests(c) To stop the proliferation of nuclear weapons(d) Production of atomic energy

Answer»

(a) Enhance military capacity

9717.

विश्व के मानव के स्वास्थ्य सुधार का कार्य कौन करता है ?(A) WHO(B) IMF(C) FAO(D) ILO

Answer»

सही विकल्प है (A) WHO

9718.

जर्मनी में नाजीवाद का स्थापक कौन था ?(A) हिटलर(B) मुसोलिनी(C) लेनिन(D) कोई भी नहीं

Answer»

सही विकल्प है (A) हिटलर

9719.

द्वितीय विश्वयुद्ध का तात्कालिक कारण बताइए ।

Answer»

द्वितीय विश्वयुद्ध का तात्कालिक कारण 1 सितंबर, 1939 को जर्मनी का पोलैंड पर आक्रमण था ।

9720.

दक्षिण एशिया के देश एक-दूसरे पर अविश्वास करते हैं। इससे अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर यह क्षेत्र एकजुट होकर अपना प्रभाव नहीं जमा पाता। इस कथन की पुष्टि के कोई दो उदाहरण दें और दक्षिण एशिया को मजबूत बनाने के लिए उपाय सुझाएँ।

Answer»

वास्तव में दक्षिण एशिया के देशों को एक-दूसरे पर विश्वास नहीं है, पाकिस्तान और भारत सदैव एक-दूसरे पर अविश्वास करते हैं। भारत में हुए हर आतंकवादी क्रियाकलाप में विशेष रूप से पाकिस्तान का नाम आता है। इसी तरह पाकिस्तान, भारत पर सिन्ध और बलूचिस्तान में समस्या भड़काने का आरोप लगाता है।

छोटे देशों का भारत के इरादों को लेकर शक करना लाजिमी है। इन देशों को लगता है कि भारत दक्षिण एशिया में अपना दबदबा कायम करना चाहता है।

दक्षिण एशिया को मजबूत बनाने के उपाय-
⦁    उचित वातावरण का निर्माण किया जाए।
⦁    सन्देह को समाप्त किया जाए।
⦁    मिलकर अपनी समस्याओं का हल खोजा जाए।
⦁    एक-दूसरे देश में प्रमुख नेताओं की यात्रा हो ताकि कटुता कम हो सके।
⦁    आतंकवाद के विरुद्ध सहयोग की भावना का विकास हो।
⦁    बाहरी शक्तियों के हस्तक्षेप पर प्रभावी रोक लगाई जाए।

9721.

शीत युद्ध से क्या आशय है ?

Answer»

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व दो गुटों में बँट गया था । दोनों गुट एकदूसरे के मत का खंडन और अपने मत के समर्थन के लिए जिन वाकयुद्धों और विचार युद्धों को अपनाया उसे शीत युद्ध कहा गया ।

9722.

संयुक्त राष्ट्रसंघ (UNO) का मुख्य कार्यलय कहाँ हैं ?

Answer»

संयुक्त राष्ट्रसंघ का मुख्य कार्यालय न्यूयॉर्क में है ।

9723.

हिटलर ने लिथुआनिया के किस बंदरगाह पर अधिकार किया था ?

Answer»

हिटलर ने मार्च, 1939 में लिथुआनिया के मेमैल बंदरगाह पर अधिकार किया था ।

9724.

हिटलर ने कुछ राष्ट्रों को क्या कहकर हड़प लिया था ?

Answer»

जर्मन जहाँ निवास करतें हो वह प्रदेश जर्मनी को मिलने चाहिए यह कहकर ऑस्ट्रिया और जेकोस्लोवेकिया के कई प्रदेश हिटलर ने हड़प लिये थे ।

9725.

1932 में जापान ने अपनी मंचूको सरकार की स्थापना कहाँ की थी ?(A) मंचूरिया(B) चीन(C) सान्टुग(D) कोरिया

Answer»

सही विकल्प है (A) मंचूरिया

9726.

हिटलर का मुख्य उद्देश्य क्या था ?

Answer»

हिटलर का मुख्य उद्देश्य जर्मनी को एक महत्त्वपूर्ण सत्ता के रूप में उदित करना, तथा उसकी नीतियों का लक्ष्य जर्मन जाति के शुद्धीकरण के नाम पर यहुदियों, जिप्सियों और पागल व्यक्तियों का नाश करना था ।

9727.

What is meant by Non-Aligned Movement and who were its founding fathers?

Answer»

(i) The Asian and African countries, which became independent after the Second World War supported the idea of non-alignment.

(ii) This movement started from 1961 under the leadership of India’s Prime Minister Pandit Jawaharlal Nehru, President of Yugoslavia Marshall Tito, President of Egypt Gamal Abdal Nasser, President of Indonesia Dr. Sukarno and Prime Minister of Ghana Dr. Kwame Nkrumah.

9728.

Evaluate the Non-Aligned Movement.

Answer»

(i) The Non-Aligned Movement has opposed colonialism, imperialism and racism.

(ii) It has encouraged the resolution of international disputes by peaceful means.

(iii) The Non-Aligned movement is based on eternal principles of humanism, global peace and equality.

(iv) It has inspired the less developed countries to come together.

(v) While taking a firm stand on disarmament, fostering human rights, the Non-Aligned movement put forth the problems of poor, undeveloped countries firmly.

(vi) This movement made a demand of a New International Economic Order (NIEO).

9729.

दक्षिण एशिया के देशों के बीच आर्थिक सहयोग की राह तैयार करने में दक्षेस (सार्क) की भूमिका और सीमाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। दक्षिण एशिया की बेहतरी में दक्षेस (सार्क) ज्यादा बड़ी भूमिका निभा सके, इसके लिए आप क्या सुझाव देंगे?

Answer»

दक्षिण एशिया के क्षेत्र यदि अपने आर्थिक मसलों में सहायता का रुख अपनाएँ तो सभी देश अपने देश के संसाधनों का उचित विकास कर सकते हैं। अनेक संघर्षों के बावजूद दक्षिण एशिया (सार्क) के देश परस्पर मित्रवत् सम्बन्ध तथा सहयोग के महत्त्व को पहचानते हैं। दक्षेस दक्षिण एशियाई देशों द्वारा बहुस्तरीय साधनों में सहयोग करने की दिशा में उठाया गया बड़ा कदम है।

क्षेत्र के सदस्य देशों ने सन् 2002 में ‘दक्षिण एशियाई’ मुक्त व्यापार क्षेत्र समझौते (SAFTA) पर हस्ताक्षर किए। इसमें पूरे दक्षिण एशिया के लिए मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने का वायदा किया। 11वें शिखर सम्मेलन में दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार क्षेत्र के लिए प्रारूप तैयार करने का निर्णय लिया गया। अन्तत: 2004 में दक्षेस के देशों में ‘साफ्टा’ (साउथ एशियन फ्री ट्रेड एशिया एग्रीमेण्ट) दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार क्षेत्र समझौते पर हस्ताक्षर किए। दक्षेस का उद्देश्य आर्थिक सहयोग उपलब्ध करना भी है। 1 जनवरी, 2006 से यह समझौता प्रभावी हो गया।
सीमाएँ-दक्षेस की कुछ सीमाएँ भी हैं जिन्हें निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं-

⦁    दक्षिण एशिया के देशों के बीच आपसी विवाद तथा समस्याओं ने विशेष स्थान लिया हुआ है। कुछ देशों का मानना है कि ‘साफ्टा’ का सहारा लेकर भारत उनके बाजार में सेंध मारना चाहता है और उनके समाज और राजनीति को प्रभावित करना चाहता है।
⦁    दक्षेस में शामिल देशों की समस्याओं के कारण चीन तथा अमेरिका दक्षिण एशियाई राजनीति में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
दक्षेस की भूमिका के लिए सुझाव-
⦁     भारत और पाकिस्तान को आपस के विवादों को सुलझाना चाहिए ताकि सभी दक्षिण एशियाई देशों का ध्यान विवादों से हटकर विकास की ओर जा सके। सभी देशों के लिए भारत का विशाल बाजार सहायक हो सकता है।
⦁    वित्तीय क्षेत्र में सुधार करना आवश्यक है।
⦁    श्रम सम्बन्ध, वाणिज्यिक क्षेत्र एवं वित्तीय समस्याओं के लिए कानूनों में परिवर्तन आवश्यक है।
⦁    पड़ोसी देशों के साथ संचार तथा यातायात व्यवस्था में सुधार करना आवश्यक है।

9730.

वर्सेल्स की संधि को ‘कागज का टुकड़ा’ किसने कहा था ?(A) हिटलर(B) मुसोलिनी(C) कार्ल मार्क्स(D) स्टालिन

Answer»

सही विकल्प है (A) हिटलर

9731.

द्वितीय विश्वयुद्ध का आरंभ किस दिन हुआ ?(A) 1 अक्टूबर, 1938(B) 12 मार्च, 1938(C) 1 सितंबर, 1939(D) 11 अगस्त, 1945

Answer»

(C) 1 सितंबर, 1939

9732.

मास्को घोषणा किस वर्ष आयोजित हुई ?(A) 1945(B) 1943(C) 1950(D) 1919

Answer»

सही विकल्प है (B) 1943

9733.

‘एटलांटिक दस्तावेज’ किसने तैयार किया था ?(A) रूजवेल्ट(B) चर्चिल(C) नेहरु(D) A और B

Answer»

सही विकल्प है (C) नेहरु

9734.

संयुक्त राष्ट्रसंघ की स्थापना कब हुई थी ?(A) 24 सितंबर, 1944(B) 11 अगस्त, 1945(C) 24 अक्टूबर, 1945(D) 26 जनवरी, 1950

Answer»

(C) 24 अक्टूबर, 1945

9735.

अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय का मुख्यालय ……………………………… शहर में है ।।(A) न्यूयॉर्क(B) मास्को(C) हेग(D) नई दिल्ली

Answer»

सही विकल्प है (C) हेग

9736.

UNO की महासभा में प्रत्येक देश के कितने सदस्य होते है ?(A) 1(B) 3(C) 5(D) 10

Answer»

सही विकल्प है (C) 5

9737.

गुट निरपेक्ष आन्दोलन नरम पड़ता जा रहा है क्योंकि (क) इसके नेतृत्व में दूरदर्शिता का अभाव है।(ख) इसके सदस्य राष्ट्रों की सभी समस्याओं का समाधान हो गया है।(ग) विश्व में अब एक ही गुट प्रभावशाली रह गया है।(घ) गुट-निरपेक्षता का विचार वैश्वीकरण के कारण अप्रासंगिक हो गया है।

Answer»

(घ) गुटनिरपेक्षता का विचार वैश्वीकरण के कारण अप्रासंगिक हो गया है

9738.

दक्षेस की सार्थकता पर टिप्पणी लिखिए।

Answer»

यद्यपि दक्षेस के गठन को दिसम्बर, 2013 ई० में 28 वर्ष पूर्ण हो जाएँगे, तथापि वर्तमान समय में 8 देशों का यह क्षेत्रीय संगठन अपनी ‘सार्थकता’ सिद्ध करने में प्रायः असफल ही रहा है। . दिसम्बर, 1985 ई० में गठित इस क्षेत्रीय संगठन के प्रत्येक वर्ष शिखर सम्मेलन तथा अन्य स्तर पर बैठकें तो प्रायः होती रही हैं, किन्तु उनकी कार्यवाहियाँ मात्र औपचारिकताएँ बनकर रह जाती हैं। यही एक प्रमुख कारण है कि आठवें दक्षेस शिखर सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में ही बांग्लादेश, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान तथा मालदीव के नेताओं ने अपनी-अपनी दुश्चिन्ताएँ व्यक्त करते हुए कहा कि दक्षेस इस लम्बी अवधि में भी यह कोई विशेष उन्नति नहीं कर पाया है और इसके लिए हमारे आपसी मतभेद ही जिम्मेदार रहे हैं।

दक्षेस के सदस्य देश इस वास्तविकता से भली प्रकार से परिचित हैं कि संगठन के दो बड़े सदस्य देश–भारत एवं पाकिस्तान में जो भारी मतभेद तथा वैमनस्यता है, वही सदस्य देशों की चिन्ता का मुख्य कारण है। इस सन्दर्भ में भारत की भूमिका को सार्क देश अच्छी तरह से जानते हैं, किन्तु वे मात्र संगठन की अखण्डता की सुरक्षार्थ पाकिस्तान के विरुद्ध खुलकर बोलना नहीं चाहते।

सदस्य देश इस कटु सत्य से भली प्रकार परिचित हैं कि पाकिस्तान के सर्वाधिक गहरे मतभेद भारत के साथ ही हैं और उसका सबसे बड़ा कारण ‘कश्मीर’ ही है। इस वास्तविकता को अप्रत्यक्षत: मालदीव के राष्ट्रपति मैमुन अब्दुल गयूम, भूटान नरेश जिग्मे सिंगे वांगचुक और बांग्लादेश की प्रधानमन्त्री बेगम खालिदा जिया ने भी अपने भाषणों में स्पष्ट किया था। इतना ही नहीं, बांग्लादेश की प्रधानमन्त्री बेगम खालिदा जिया ने श्रीलंका की राष्ट्रपति चंद्रिका कुमारतुंगा के सहयोग से न केवल दक्षेस की भूमिका में बल्कि ‘साप्टा’ के गठन में पाकिस्तानी अडूंगेबाजी को चुनौतीपूर्ण ढंग से नकारने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी और इससे दक्षेस तथा साप्टा’ की सार्थकता पर जो प्रश्न-चिह्न लगे हुए थे, वे सब स्वत: ही समाप्त हो गये।

9739.

दक्षिणी एशिया के देशों में आपसी सहयोग के मार्ग में जो कठिनाइयाँ हैं, उनका वर्णन कीजिए।यादक्षेस के मार्ग में आने वाली जटिलताओं पर प्रकाश डालिए।

Answer»

आशावादी दृष्टिकोण के साथ-साथ दक्षेस के मार्ग में बहुत-सी ऐसी जटिलताएँ भी हैं जो इस संगठन के महत्त्व पर प्रश्न-चिह्न लगाती हैं, इन्हें अग्रलिखित बिन्दुओं द्वारा दर्शाया जा सकता है।

1. शासन-पद्धति तथा नीतियों में अन्तर – दक्षेस के सदस्य राष्ट्रों में से चार देश इस्लामिक, दो बौद्ध, एक हिन्दू तथा एक धर्मनिरपेक्ष है तथा इनकी शासन पद्धतियों तथा धार्मिक नीतियों में भिन्नता है और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों पर भी समस्त देशों के दृष्टिकोण भिन्न हैं। दूसरे, इन सम्पन्न सदस्य देशों में आपसी सामंजस्य का अभाव है।
2. पारस्परिक अविश्वास की भावना – दक्षेस के समस्त देश पारस्परिक अविश्वास की भावना से ग्रस्त हैं तथा अपनी समस्याओं के लिए वह निकटतम पड़ोसी देश को दोषी मानते हैं। श्रीलंका, तमिल समस्या को भारत की देन मानता है तो भारत, पंजाब तथा कश्मीर में। उपजे उग्रवाद को पाकिस्तान की देन कहता है।
3. विवादास्पद द्विपक्षीय मुद्दों की छाया – दक्षेस की स्थापना के समय द्विपक्षीय मुद्दों को विचार-विमर्श से बाहर रखा गया था, परन्तु वर्तमान में द्विपक्षीय मुद्दे ही दक्षेस की सार्थकता पर प्रश्न-चिह्न लगा रहे हैं। जब तक भारत और पाकिस्तान के द्विपक्षीय मुद्दों का समाधान नहीं होगा तब तक दक्षेस सदस्यों में सहयोग, सद्भावना और विश्वास का वातावरण नहीं पनप सकता।
4. सन्दिग्ध भारतीय सद्भावना – इसमें कोई सन्देह नहीं कि दक्षेस के सदस्य देशों; जैसे भारत, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, पाकिस्तान, मालदीव, भूटान तथा अफगानिस्तान में भारत की स्थिति सर्वोच्च है। भारत अन्य सदस्य देशों के साथ पूर्ण सद्भावना रखता है, लेकिन दक्षेस के सदस्य देश भारतीय सद्भावना के प्रति सन्देह प्रकट करते हैं। भारत ने सद्भावना के वशीभूत होकर ही श्रीलंका में 1987 ई० में शान्ति सेना भेजी थी तथा 1988 ई० में मालदीव सरकार के वैधानिक आग्रह पर सेना भेजनी पड़ी थी, लेकिन अमेरिका जैसे शक्ति सम्पन्न देश ने उन्हें ऐसा सोचने को विवश कर दिया कि भारत ‘क्षेत्रीय महाशक्ति’ बनकर उन पर अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहता है।

9740.

दक्षेस (सार्क) की स्थापना और विधान पर प्रकाश डालिए। दक्षिण एशिया के देशों में आपसी सहयोग के प्रेरक तत्त्वों का उल्लेख कीजिए।यादक्षेस (सार्क) से आप क्या समझते हैं? इसकी आवश्यकता और उपयोगिता पर प्रकाश डालिए।यासार्क से क्या अभिप्राय है ? इसके संगठन और उद्देश्य का उल्लेख कीजिए। यादक्षेस (सार्क) से आप क्या समझते हैं? इसकी आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।यादक्षेस से आप क्या समझते हैं? इसके महत्त्व की विवेचना कीजिए। 

Answer»

सार्क (SAARC-South Asian Association for Regional Co-operation) विश्व का नवीनतम अन्तर्राष्ट्रीय संगठन है। हिन्दी में यह ‘दक्षेस’ (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन) कहलाता है। इस संगठन की स्थापना 8 दिसम्बर, 1985 को बाँग्लादेश की राजधानी ढाका में दो-दिवसीय अधिवेशन में हुई। यह दक्षिण एशिया के 8 देशों का एक क्षेत्रीय संगठन है। इस संगठन के देश भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, भूटान, मालदीव और अफगानिस्तान हैं। सार्क ने इस क्षेत्र में आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक विकास में तेजी लाने और अखण्डता का सम्मान करते हुए परस्पर सहयोग से सामूहिक आत्मनिर्भरता में वृद्धि करने का लक्ष्य निर्धारित किया।
सार्क के उद्देश्य – दक्षेस के चार्टर में 10 धाराएँ हैं। इसमें संघ के उद्देश्यों, सिद्धान्तों और संस्थाओं को परिभाषित किया गया है। अनुच्छेद के अनुसार दक्षेस के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं

⦁    दक्षिण एशियाई क्षेत्र की जनता के कल्याण एवं उनके जीवन-स्तर में सुधार करना।
⦁    क्षेत्र के आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक विकास में तेजी लाना और सभी व्यक्तियों को सम्मान के साथ जीने और अपनी पूर्ण निहित क्षमता को प्राप्त करने के अवसर देना।
⦁    दक्षिण एशिया के देशों की सामूहिक आत्मनिर्भरता में वृद्धि करना।
⦁    आपसी विश्वास व सूझ-बूझ द्वारा एक-दूसरे की समस्याओं का मूल्यांकन करना।
⦁    आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, तकनीकी और वैज्ञानिक क्षेत्रों में सक्रिय सहयोग एवं पारस्परिक सहायता में वृद्धि करना।
⦁    दूसरे विकासशील देशों के साथ सहयोग को मजबूत करना।
⦁    सामान्य हित के मामलों पर अन्तर्राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय संगठनों के साथ सहयोग करना।
प्रमुख सिद्धान्त – अनुच्छेद 2 के अनुसार दक्षेस के मुख्य सिद्धान्त निम्नलिखित हैं –
⦁    संगठन के ढाँचे के अन्तर्गत सहयोग, प्रभुसत्तासम्पन्न समानता, क्षेत्रीय अखण्डता, राजनीतिक स्वतन्त्रता, दूसरे देशों के आन्तरिक मामले में हस्तक्षेप न करना तथा आपसी हित के सिद्धान्तों का आदर करना।
⦁    यह सहयोग द्वि-पक्षीय या बहु-पक्षीय सहयोग की अन्य किसी स्थिति का स्थान नहीं लेगा।
सामान्य – प्रावधान – अनुच्छेद 10 में निम्नलिखित सामान्य प्रावधान रखे गये हैं –
⦁    सभी स्तरों पर निर्णय सर्वसम्मति से लिए जाएँगे।
⦁    द्वि-पक्षीय विवादास्पद मामलों को विचार-विमर्श से बाहर रखा जाएगा।
दक्षेस के चार्टर की भूमिका में संयुक्त राष्ट्र संघ तथा निर्गुट आन्दोलन में आस्था व्यक्त की गयी है।
संस्थाएँ – चार्टर के अनुसार दक्षेस की निम्नलिखित संस्थाओं की रचना की गयी है –
1. शिखर सम्मेलन – प्रतिवर्ष एक शिखर सम्मेलन का आयोजन होगा जिसमें सदस्य देशों के शासनाध्यक्ष भाग लेंगे। 1985 से 2013 ई० तक इस प्रकार के सत्रह शिखर सम्मेलन क्रमशः ढाका, बंगलुरु, काठमाण्डू, इस्लामाबाद, माले, कोलम्बो, नई दिल्ली, थिम्पू, अदू सिटी और माले में आयोजित हो चुके हैं।
2. मन्त्रिपरिषद – सदस्य देशों के विदेश मन्त्रियों की परिषद् को मन्त्रिपरिषद् कहा गया है। इस परिषद् की बैठक 6 महीने में एक बार होनी अनिवार्य है। इसका कार्य परिषद् के नये क्षेत्रों को निश्चित करना और सामान्य हित के अन्य विषयों पर निर्णय करना है।
3. स्थायी समिति – यह सदस्य देशों के विदेश सचिवों की समिति है। उसका कार्य सहयोग के विभिन्न कार्यक्रमों को मॉनीटर करना तथा उनमें समन्वय पैदा करना है।
4. सचिवालय – इसका मुख्यालय नेपाल की राजधानी काठमाण्डू में है। इसके महासचिव की नियुक्ति मन्त्रिपरिषद् द्वारा दो वर्ष के लिए की जाती है और सदस्य देश बारी-बारी से इसे पद पर किसी व्यक्ति को मनोनीत करते हैं।
5. समितियाँ – उपर्युक्त संस्थाओं के अतिरिक्त कुछ कार्यकारी और तकनीकी समितियों की भी रचना की गयी है।
6. वित्तीय व्यवस्थाएँ – सचिवालय के व्ययों को पूरा करने के लिए सदस्य देशों से अंशदान का निर्धारण इस प्रकार किया गया है-भारत 32%, पाकिस्तान 25%, नेपाल 11%, बांग्लादेश 11%, श्रीलंका 11%, भूटान 5% और मालदीव 5%।

सार्क सम्मेलन
प्रथम सम्मेलन –
 सार्क का प्रथम सम्मेलन दिसम्बर, 1985 ई० में बांग्लादेश में हुआ। वहाँ के राष्ट्रपति अताउर रहमान खान को इस संगठन का अध्यक्ष चुना गया। इसमें दक्षिण एशियाई देशों के बीच सहयोग बढ़ाने पर बल दिया गया तथा इस समूचे क्षेत्र में शान्ति बनाये रखने में सहयोग देने के लिए प्रयास करने की इच्छा व्यक्त की गयी।
दूसरा सम्मेलन – सार्क का दूसरा सम्मेलन नवम्बर, 1986 ई० में भारत में हुआ। भारत के तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्री राजीव गाँधी को इस संगठन का अध्यक्ष चुना गया। सदस्य देशों ने प्रौद्योगिकी, सांस्कृतिक और आर्थिक क्षेत्र में परस्पर सहयोग का दृढ़ संकल्प लिया।
तीसरा सम्मेलन – सार्क का तीसरा सम्मेलन नवम्बर, 1987 ई० में नेपाल में हुआ। नेपाल नरेश महाराजाधिराज मारिख मान सिंह श्रेष्ठ को इसका अध्यक्ष नियुक्त किया गया। इस सम्मेलन में अनेक बातों पर बल दिया गया, जिनमें से मुख्य निम्नलिखित हैं –
⦁    विकासशील देशों का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार और आर्थिक व्यवस्था में समान सहयोग।
⦁    विकासशील देशों द्वारा बहुपक्षीय व्यापार को उदार बनाना और संरक्षणवादी अवरोधों को कम करना।
⦁    परमाणु अप्रसार सन्धि पर शीघ्र निश्चय।
⦁    आतंकवाद को समाप्त करने के कार्य में पारस्परिक सहयोग।
चौथा सम्मेलन – सार्क का चौथा सम्मेलन दिसम्बर, 1988 ई० को पाकिस्तान में हुआ। पाक प्रधानमन्त्री श्रीमती बेनजीर भुट्टो को इसका अध्यक्ष चुना गया। इस सम्मेलन में सार्क नेताओं ने निम्नलिखित बातों पर बल दिया –
⦁    क्षेत्र के लोगों के जीवन-स्तर में आमूल सुधार लाने के उद्देश्य से 1989 ई० को मादक पदार्थ निरोधक वर्ष के रूप में मनाने का निश्चय किया गया।
⦁    राष्ट्रीय विकास योजनाओं में बाल-कल्याण योजनाओं को प्रमुखता देने सम्बन्धी संकल्प दोहराया गया।
⦁    महाशक्तियों से नि:शस्त्रीकरण के प्रयास तेज करने तथा बचे धन से विकासशील देशों की सहायता करने की अपील की गयी।
⦁    गुट-निरपेक्ष आन्दोलन को अधिक सुदृढ़ और प्रभावकारी बनाने के लिए इसके काम-काजे में सुधार की माँग की गयी।
पाँचवाँ सम्मेलन – सार्क का पाँचवाँ सम्मेलन 21-23 नवम्बर, 1990 को मालदीव की राजधानी माले में सम्पन्न हुआ। इसमें परस्पर सम्बन्धों को अधिक सुदृढ़ और मैत्रीपूर्ण बनाये जाने पर बल दिया गया।
छठा सम्मेलन – यह कोलम्बो में 21 दिसम्बर, 1991 को आयोजित हुआ। इस सम्मेलन में सर्वप्रमुख रूप से दो प्रस्ताव रखे गये। प्रथम, श्रीलंका के राष्ट्रपति प्रेमदास ने प्रस्ताव रखा कि दक्षिण एशिया को अपनी एक पहचान बनाकर अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर जाना चाहिए। द्वितीय, भारतीय प्रधानमन्त्री ने सामूहिक आर्थिक सुरक्षा का प्रस्ताव रखा। इस प्रस्ताव में कहा गया कि विश्व अब राजनीतिक और सैनिक गठबन्धनों से ऊबकर आर्थिक सहयोग के नये-नये आयाम तलाश कर रहा है। अत: दक्षेस देशों को भी प्रकृति से प्राप्त संसाधनों का स्वाभाविक उपयोग करते हुए आपसी सहयोग के आधार पर आर्थिक और वाणिज्यिक विकास के क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहिए।
सातवाँ सम्मेलन – यह सम्मेलन 10-11 अप्रैल, 1993 को ढाका में सम्पन्न हुआ। ‘दक्षिण एशिया वरीयता व्यापार समझौता’ इस सम्मेलन की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी, जिसके अनुसार सदस्य देशों को व्यापार में वरीयता दी जाएगी। सम्मेलन में सदस्य देशों के बीच व्यापार बाधाएँ दूर करने से सम्बन्धित ’63 सूत्री ढाका घोषणा-पत्र’ सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया। इस समझौते से दक्षिण एशिया में आर्थिक सहयोग के एक नवीन युग का सूत्रपात हुआ।
सात देशों के राष्ट्राध्यक्षों और शासनाध्यक्षों ने दक्षेस देशों के बीच आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक सहयोग को गतिशीलता प्रदान करने का संकल्प लिया गया।
आठवों सम्मेलन – यह सम्मेलन 2 मई से 4 मई, 1995 को भारत की राजधानी दिल्ली में सम्पन्न हुआ। इसके अध्यक्ष भारत के तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्री पी० वी० नरसिम्हाराव थे। इस सम्मेलन में आतंकवाद का सम्मिलित रूप से सामना करने और गरीबी को पूर्णतः समाप्त करने का संकल्प लिया गया।
नवम शिखर सम्मेलन (माले, 12-14 मई, 1997) – सदस्य देशों के बीच आर्थिक सम्पर्क बढ़ाने और संगठन को अधिक असरदार बनाने के संकल्प के साथ दक्षेस का नवम् शिखर सम्मेलन प्रारम्भ हुआ। सर्वसम्मति से नव-निर्वाचित अध्यक्ष मालदीव के राष्ट्रपति मैमून अब्दुल गयूम ने सम्मेलन का उद्घाटन किया।
सम्मेलन के अन्त में जारी किये गये घोषणा-पत्र में क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग की दिशा में तीव्र गति से आगे बढ़ने, गरीबी उन्मूलन, बालिका कल्याण और पर्यावरण संरक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गयी। संगठन के सभी 7 सदस्य देशों ने क्षेत्रीय एकता, एकजुटता और समरसता के संकल्प के साथ तनाव और संघर्ष का मार्ग छोड़कर विश्व में दक्षेस की विशिष्ट पहचान बनाने के लिए सन् 2001 तक आपसी व्यापार को पूर्णतया मुक्त करने का निर्णय लिया गया। इसके साथ ही आतंकवाद व नशीली दवाओं की तस्करी की समाप्ति हेतु संगठित होने की बात कही गयी।

दसवाँ शिखर सम्मेलन (कोलम्बो, 29-31 जुलाई, 1998) – इस सम्मेलन में प्रमुख रूप से तीन बातों पर विचार हुआ। सदस्य देशों के बीच अधिकाधिक सहयोग, 2002 ई० तक सदस्य देशों के बीच स्वतन्त्र व्यापार व्यवस्था और आणविक नि:शस्त्रीकरण। सम्मेलन में दो प्रस्ताव पारित किये गये। पहले प्रस्ताव में विश्वव्यापी आणविक नि:शस्त्रीकरण की आवश्यकता पर बल दिया गया और दूसरे प्रस्ताव में विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों पर लगाये गये आर्थिक प्रतिबन्धों की आलोचना की गयी।
‘दक्षेस’ में भारत को महत्त्वपूर्ण स्थिति प्राप्त है। अपनी सुरक्षात्मक आवश्यकताओं के कारण भारत ने मई, 1998 में जो आणविक परीक्षण किये, पाकिस्तान के अतिरिक्त अन्य सभी दक्षेस देशों ने इन आणविक परीक्षणों का समर्थन किया।
ग्यारहवाँ शिखर सम्मेलन (काठमाण्डू, 4-6 जनवरी, 2002) – सात देशों के शासनाध्यक्षों का यह सम्मेलन मूलतः नवम्बर, 1999 ई० में प्रस्तावित था, किन्तु पाकिस्तान ने सेना द्वारा लोकतान्त्रिक सरकार का तख्ता पलट दिये जाने तथा उसके बाद भारत तथा पाकिस्तान के बीच तनाव की स्थिति बने रहने के कारण यह शिखर सम्मेलन टलता ही रहा। इस सम्मेलन का आयोजन अन्ततः ऐसे समय में हुआ, जब भारत और पाकिस्तान के आपसी सम्बन्धों में गम्भीर तनाव की स्थिति चरम अवस्था में थी।

सम्मेलन की समाप्ति पर जारी 11 पृष्ठों के 56 सूत्रीय ‘काठमाण्डू घोषणा-पत्र’ में सभी सात शासनाध्यक्षों ने आतंकवाद के खात्मे के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त की। इस सम्बन्ध में संयुक्त राष्ट्र परिषद् द्वारा पारित प्रस्ताव संख्या 1373 (इसे 11 सितम्बर, 2001 की आतंकी घटना के परिप्रेक्ष्य में पारित किया गया था) के प्रति अपना पूर्ण समर्थन इन शासनाध्यक्षों ने व्यक्त किया। अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए संयुक्त राष्ट्र चार्टर एवं अन्य अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों व सन्धियों के अनुरूप विस्तृत कार्य योजना तैयार करने पर इसमें बल दिया गया।

भारतीय प्रधानमन्त्री ने दक्षेस आन्दोलन को गतिशील बनाने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि आर्थिक एजेण्डे को दक्षेस में सर्वोपरि समझा जाना चाहिए तथा क्षेत्र के देशों के बीच व्यापार संवर्द्धन के लिए प्रयत्न किये जाने चाहिए। इसके लिए ‘दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार क्षेत्र का मसौदा 2002 ई० के अन्त तक तैयार करने के लिए कहा गया।
बारहवाँ शिखर सम्मेलन (इस्लामाबाद, 2-6 फरवरी, 2004) – इस्लामाबाद में सम्पन्न इस शिखर सम्मेलन में क्षेत्र के आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक विकास में तेजी लाने तथा सभी व्यक्तियों को सम्मान के साथ जीने और अपनी पूर्ण निहित क्षमता को प्राप्त करने के अवसर प्रदान करने सम्बन्धी मुद्दों पर चर्चा हुई।
तेरहवाँ शिखर सम्मेलन (ढाका 12-13 नवम्बर, 2005) – ढाका में सम्पन्न इस 13वें शिखर सम्मेलन में दक्षेस नेताओं ने सूचना व संचार प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उपलब्ध अवसरों के दोहन के लिए सहयोग पर सहमति जतायी। इसके अतिरिक्त दक्षेस के देशों ने दोहरे करों की व्यवस्था को समाप्त करने, वीजा प्रावधानों को उदार बनाने और दक्षेस पंचाट के गठन के सम्बन्ध में तीन महत्त्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किये।
इसी सम्मेलन में अफगानिस्तान को दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संघ का आठवाँ सदस्य बनाया गया।
चौदहवाँ शिखर सम्मेलन (नई दिल्ली 3-4 अप्रैल, 2007) – नई दिल्ली में सम्पन्न इस 14वें शिखर सम्मेलन में दक्षेस नेताओं ने वर्ष 2008 को अच्छे शासन (Good Governance) के वर्ष के रूप में मनाने का फैसला किया। सम्मेलन में स्वीकार किये गये 8 पृष्ठों के घोषणा-पत्र में गरीबी, आतंकवाद व संगठित अपराधों को क्षेत्रीय सुरक्षा और शान्ति के लिए खतरा मानते हुए संकल्प लिया गया है कि दक्षेस को घोषणा-पत्र के दौरे से निकालकर क्रियान्वयन के चरण में लाया जाएगा।

‘साप्टा’ पर सकारात्मक रुख अपनाते हुए इसके अमल पर घोषणा-पत्र में बल दिया गया है। वस्तुओं के आयात-निर्यात के साथ-साथ सेवाओं के व्यापार को भी इसमें शामिल किये जाने की आवश्यकता इसमें बतायी गयी है। आर्थिक मामलों एवं व्यापारिक क्षेत्र में और अधिक सहयोग के लिए रोडमैप तैयार कर उसे ‘कस्टम यूनियन’ और ‘साउथ एशियन इकोनॉमिक यूनियन’ तक चरणबद्ध ढंग से ले जाने की बात घोषणा-पत्र में स्वीकार की गई है।
पन्द्रहवाँ शिखर सम्मेलन (1-3 अगस्त, 2008) – दक्षेस का पन्द्रहवाँ शिखर सम्मेलन 1-3 अगस्त 2008 तक श्रीलंका की राजधानी कोलम्बो में हुआ। इसकी अध्यक्षता महिन्द्रा राजापक्षे ने की थीं। इस सम्मेलन में सार्क देशों के विकास तथा आतंकवाद के सुरक्षा के मामले में विचारविमर्श किया गया।
सोलहवाँ शिखर सम्मेलन (28-29 अगस्त, 2010) – दक्षेस का सोहलवाँ शिखर सम्मेलन 28-29 अप्रैल, 2010 को भूटान की राजधानी थिम्पू में हुआ था। इसकी अध्यक्षता जिगमे थिनले ने की थी। इस सम्मेलन में आपसी मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध व औद्योगिक विकास से सम्बन्धित मामलों पर विचार-विमर्श किया गया।
सत्रहवाँ शिखर सम्मेलन (10-11 नवम्बर, 2011) – दक्षेस का सत्रहवाँ शिखर सम्मेलन 10-11 नवम्बर, 2011 को मालदीव के अदू नामक शहर में आयोजित किया गया था। इसकी अध्यक्षता मोहम्मद वाहिद हसन मानिक ने की थी। इस सम्मेलन में कृषि, उद्योग आदि मामलों पर विचार-विमर्श किया गया।
18 वाँ शिखर सम्मेलन 2014 में नेपाल की राजधानी काठमाण्डू में तथा 19वाँ शिखर सम्मेलन का आयोजन सितम्बर, 2016 में पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में किया जाना था, जो नहीं हुआ।
सार्क का महत्त्व – दक्षिण एशियाई क्षेत्र में इस संगठन का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रहा। इसे इस क्षेत्र के इतिहास में नयी सुबह की शुरुआत’ कहा जा सकता है। भूटान नरेश ने तो इसे सामूहिक बुद्धिमत्ता और राजनीतिक इच्छा-शक्ति का परिणाम बताया है, किन्तु व्यवहार में इस संगठन की सार्थकता कम होती जा रही है। सार्क ने पिछले दस वर्षों में एक ही ठोस काम किया है और वह है, खाद्य कोष बनाना। कृषि, शिक्षा, संस्कृति, पर्यावरण आदि 12 क्षेत्रों में सहयोग के लिए सार्क के देश (सिद्धान्ततः सहमत हैं। सार्क देशों में भारत प्रमुख और सर्वाधिक शक्तिशाली देश है, इसलिए कुछ सार्क देश) यह समझने लगे कि इस संगठन में भारत का प्रभुत्व छाया हुआ है। इस स्थिति में तो भारत ने यह स्पष्ट कर दिया था कि हम इस क्षेत्र में अपनी चौधराहट स्थापित करना नहीं चाहते। हमारा उद्देश्य तो मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करना है। इसके बावजूद भारत के बांग्लादेश, नेपाल वे श्रीलंका के साथ सम्बन्धों में दरार आ गयी। पाकिस्तान तो भारत के विरुद्ध विष उगलने लगा है। इसके अतिरिक्त सदस्य देशों की शासन-प्रणालियों और नीतियों में भिन्नता तथा द्वि-पक्षीय व विवादास्पद मामलों की छाया ने भी इस संगठन को निर्बल बनाये रखा है। इन कारणों और परस्पर अविश्वास के आधार पर यह संगठन केवल सैद्धान्तिक ढाँचा मात्र रह गया है, उसका कोई व्यावहारिक महत्त्व बने रहना सम्भव नहीं।

9741.

द्वितीय विश्वयुद्ध से अर्थव्यवस्था में युगप्रवर्तक परिवर्तन हुए ।

Answer»

इस युद्ध में अरबों डॉलर खर्च हुए थे ।

  • विश्व के राष्ट्रों ने युद्ध में उपयोगी सशस्त्रसामग्री के उत्पादन को महत्त्व दिया था ।
  • इसलिए जीवन की आवश्यक वस्तुओं का अभाव खड़ा हुआ, उत्पादन घटा, अवमूल्यन बढ़ा, लोगों की रोजी-रोटी की कमी पड़ने लगी ।
  • लोगों का आर्थिक जीवन अस्तव्यस्त हो गया था ।
9742.

What were the effects of World War I?

Answer»

(i) The First World War was fought between 1914 and 1918. The war caused a tremendous loss of life and property. The countries which joined the war suffered tremendous economic losses.

(ii) Even the countries which did not join the war were impacted by the war. The economies of the victorious as well as the losing countries collapsed.

(iii) Earlier empires in Europe collapsed and new nations came into being.

(iv) Independence movements in European colonies changed hegemony of European Nations

(v) League of Nations was established.

(vi) Autocratic regime came up in Germany Spain, Italy and other countries.

9743.

जर्मन प्रजा हिटलर को ‘फ्युहरर’ मानती थी ।

Answer»

वर्सेल्स की संधि के बाद जर्मनी बर्बाद हो गया था ।

  • सन् 1919 में एडोल्फ हिटलर ‘राष्ट्रीय समाजवादी मजदूर दल’ में शामिल हुआ ।
  • यह दल नाजी दल के रूप में प्रसिद्ध हुआ ।
  • नाजी दल की विचारधारा में राष्ट्रवाद और साम्राज्यवाद का समन्वय था ।
  • जर्मनी के राष्ट्रपति हिण्डेनबर्ग का अवसान होने पर, हिटलर ने राष्ट्रपति पद ग्रहण करके जर्मनी में तानाशाही की स्थापना की थी।
  • हिटलर ने उग्र और आक्रामक नीति अपनाकर जर्मन प्रजा को संकुचित राष्ट्रवाद की तरफ ले गया । इसलिए …
9744.

गुट-निरपेक्षता की त्रिमूर्ति से क्या आशय है?यागुट-निरपेक्ष आन्दोलन के दो संस्थापकों के नाम लिखिए।

Answer»

गुट-निरपेक्षता की त्रिमूर्ति से आशय पं० जवाहरलाल (प्रधानमन्त्री भारत), कर्नल नासिर (राष्ट्रपति मिस्र) तथा मार्शल टीटो (राष्ट्रपति यूगोस्लाविया) से है।

9745.

गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के प्रणेता कौन थे?

Answer»

गुट-निरपेक्ष की नीति के प्रणेता पं० जवाहरलाल नेहरू थे।

9746.

किन्हीं चार गुट-निरपेक्ष देशों के नाम अंकित कीजिए।

Answer»

भारत, मिस्र, मलेशिया एवं यूगोस्लाविया

9747.

भारत के उत्तर-पूर्व में स्थित दो पड़ोसी देशों के नाम लिखिए।

Answer»

भूटान तथा बांग्लादेश।

9748.

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व किन दो गुटों में बँट गया ?

Answer»

एक लोकतांत्रिक देश अमेरिका और दूसरा साम्यवादी देश रूस का गुट ।

9749.

State whether the following statements are True or False, with reasons:The Second World War proved to be far more destructive than the First World War.

Answer»

True. 

  • The Second World War was fought between 1939 and 1945. It proved to be far more destructive than the First World War. 
  • Not only was it more widespread compared to the First World War, but far more advanced technology was employed in this war. 
  • Countries which took part in the Second World War once again faced a situation of economic crisis.
9750.

गुट-निरपेक्ष देशों का प्रथम शिखर सम्मेलन कहाँ और कब सम्पन्न हुआ था?

Answer»

गुट-निरपेक्ष देशों का प्रथम शिखर सम्मेलन यूगोस्लाविया की राजधानी बेलग्रेड में 1961 ई० में हुआ था।