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51.

“वन हमारी राष्ट्रीय निधि हैं।” स्पष्ट कीजिए।याभारतीय अर्थव्यवस्था में वनों के महत्त्व की विवेचना कीजिए। यावनों से होने वाले प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष लाभ लिखिए।

Answer»

वन राष्ट्रीय निधि हैं या वनों का महत्त्व
किसी देश के आर्थिक विकास व समृद्धि में वनों का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। वनों से राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है, व्यक्तियों को रोजगार मिलता है, उद्योगों का विकास होता है, बाढ़ पर नियन्त्रण होता है तथा मिट्टी के कटाव को रोकने के साथ-साथ जलवायु को नियन्त्रित करके वन नागरिकों के शारीरिक व मानसिक विकास में अपना योगदान देते हैं। इसी कारण वनों को राष्ट्र की निधि’ माना जाता है। वनों से प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से लाभ प्राप्त होते हैं।

प्रत्यक्ष लाभ
वनों से प्राप्त होने वाले प्रत्यक्ष लाभ निम्नलिखित हैं
⦁    वन बहुमूल्य एवं उपयोगी लकड़ी के एकमात्र स्रोत हैं। वनों से प्राप्त होने वाली आय का 75% भाग लकड़ियों के रूप में ही प्राप्त होता है। इन लकड़ियों का उपयोग फर्नीचर बनाने तथा ईंधन के लिए किया जाता है।
⦁    पशुओं का प्रिय चारों वनों में उगने वाली घास तथा पेड़ों की हरी-भरी पत्तियाँ हैं; अतः वन पशुओं को चराने के लिए उत्तम एवं विस्तृत चरागाह की सुविधा भी प्रदान करते हैं।
⦁    वनों में अनेक प्रकार के पशु-पक्षी निवास करते है; अतः शिकारियों के लिए वन प्रमुख आखेट-स्थल होते हैं। इन वन्य पशुओं से मांस, खाल, हड्डी, सींग एवं हाथीदाँत जैसी उपयोगी वस्तुएँ प्राप्त होती हैं। सरकार ने पशुओं के शिकार पर अब रोक लगा दी है।
⦁    वृक्षों की पत्तियाँ भूमि पर गिरकर सड़-गल जाती हैं, जो भूमि को प्राकृतिक खाद प्रदान करती हैं। इस प्रकार वनों से भूमि की उर्वरा-शक्ति में पर्याप्त वृद्धि हो जाती है।
⦁    वनों से प्राप्त अनेक वस्तुओं का निर्यात विदेशों को किया जाता है, जिससे सरकार को करोड़ों रुपये की विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है। लाख, प्लाइवुड, खेल का सामान तथा चन्दन की लकड़ी एवं विशिष्ट जीवों की खालों का विदेशों को निर्यात किया जाता है। इन वस्तुओं के निर्यात से प्रतिवर्ष भारत सरकार को लगभग ₹ 50 करोड़ की विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।
⦁    वनों से प्राप्त कच्चे माल पर अनेक उद्योग-धन्धे निर्भर हैं। वन हमें गोंद, रबर, लाख, बाँस, कत्था, तारपीन का तेल तथा चन्दन जैसे उपयोगी पदार्थ प्रदान करते हैं। इन पदार्थों का उपयोग अनेक उपयोगी तथा महत्त्वपूर्ण वस्तुओं के निर्माण में किया जाता है।
⦁    वृक्ष फल-फूलों के विशाल भण्डार हैं; अत: वनों से हमें अनेक प्रकार के फल-फूल प्राप्त होते हैं। इनका उपयोग विभिन्न प्रकार से किया जाता है।
⦁    वनों से हमें अनेक प्रकार की जड़ी-बूटियाँ तथा ओषधियाँ प्राप्त होती हैं। हरड़-बहेड़ा, आँवला इसी प्रकार की बहु-उपयोगी ओषधियाँ हैं। वनों से हमें अमृत-तुल्य शहद भी प्राप्त होता है।
⦁    वन राष्ट्रीय आय का एक प्रमुख स्रोत हैं। वनों से प्राप्त प्राकृतिक सम्पत्ति देश के लिए आय का एक मुख्य स्रोत है।

अप्रत्यक्ष लाभ
वनों से प्राप्त होने वाले अप्रत्यक्ष लाभ निम्नलिखित हैं
⦁    वन वायुमण्डल में नमी उत्पन्न कर देते हैं। यह नमी वर्षा करने में सहायक होती है।
⦁    वन मरुस्थल के प्रसार को भी रोकते हैं। वृक्ष वायु के कटाव-कार्य एवं गति में बाधक बनते हैं। बालू का प्रसार वृक्षों के होते हुए नहीं हो पाता।।
⦁    वृक्षों की जड़े जल-शोषण का कार्य करती हैं। वर्षा होते ही वृक्षों की जड़े पानी को चूसकर नीचे पहुँचा देती हैं जिससे भूमिगत जल का स्तर ऊँचा हो जाता है, जिसका उपयोग हम करते हैं।
⦁    वन देश की प्राकृतिक सुन्दरता में वृद्धि करते हैं। वनाच्छादित हरी-भरी भूमि नयनों को बड़ी सुहावनी प्रतीत होती है। भारतीय चिन्तन और दर्शन वनों की ही देन हैं। वन सैर-सपाटे और मनोरंजन के केन्द्र होते हैं।
⦁    वन जल के वेग को नियन्त्रित करके बाढ़ों की रोकथाम करते हैं। जिन क्षेत्रों में वन हैं वहाँ बाढ़ों का प्रकोप बहुत कम होता है।
⦁    वन मिट्टी के कटाव को रोकते हैं, क्योंकि वृक्षों के कारण पवन एवं जल अपना कटाव-कार्य नहीं कर पाते; क्योंकि वृक्षों की जड़े भूमि को जकड़ लेती हैं तथा अपरदन के कारकों की गति पर नियन्त्रण करती हैं।
⦁    वन वायुमण्डल प्रदूषण को रोकते हैं। वृक्ष कार्बन डाइऑक्साइड को ऑक्सीजन में बदलकर वायुमण्डल की गैसों का सन्तुलन ठीक रखते हैं, तापमान को सन्तुलित बनाये रखते हैं तथा वायुमण्डल की शुष्कता को कम करते हैं।
⦁    वन कृषि के क्षेत्र में अनेक प्रकार से सहायता करते हैं। ये कृषि के लिए उपजाऊ क्षेत्र, खाद, कृषि-यन्त्र बनाने के लिए काष्ठ, पशुओं के लिए चारा तथा भूमि-संरक्षण जैसी सुविधाएँ प्रदान करते हैं।
वनों के उपर्युक्त महत्त्व को देखते हुए वनों को राष्ट्रीय निधि अथवा हरा सोना भी कहते हैं।
पं० जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में, “उगता हुआ वृक्ष प्रगतिशील राष्ट्र का प्रतीक है।” वन राष्ट्र की अमूल्य निधि हैं। वन मनुष्य को उसकी प्राथमिक आवश्यकता की पूर्ति कराते हैं। वन राष्ट्र की समृद्धि की नींव तथा राष्ट्रीय आय के प्रमुख स्रोत हैं। वनों से ढकी हरी-भरी भूमि तथा पर्वतीय ढाल रमणीक और सुरम्य प्रतीत होते हैं। प्रकृति द्वारा मानव को प्रदत्त निःशुल्क उपहारों में से वन सबसे महत्त्वपूर्ण हैं।

52.

भारतीय ग्रामीण जलापूर्ति पर एक टिप्पणी लिखिए। जलापूर्ति पर सरकार क्या कदम उठा रही है, उसका वर्णन कीजिए।

Answer»

व्यक्ति के जीवन के लिए सुरक्षित पेयजल एक अनिवार्य आवश्यकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छ पेयजल आपूर्ति की जिम्मेदारी राज्यों की है और इस प्रयोजन के लिए पहली पंचवर्षीय योजना से ही राज्यों के बजट में निधियों का प्रावधान किया जाता रहा है। पेयजल आपूर्ति की गति में तेजी लाने, राज्यों तथा संघ शासित प्रदेशों को मदद पहुँचाने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 1972-73 में त्वरित ग्रामीण जल-आपूर्ति योजना शुरू की थी। कार्य-निष्पादन में सुधार करने, चालू कार्यक्रमों की लागत में मितव्ययिता लाने तथा स्वच्छ पेयजल की पर्याप्त आपूर्ति को सुनिश्चित करने के लिए ग्रामीण जल-आपूर्ति क्षेत्र में वैज्ञानिक तथा तकनीकी जानकारी पहुँचाने के उद्देश्य से पूरे कार्यक्रम को एक मिशन का रूप दिया गया। पेयजल तथा इससे सम्बन्धित जल व्यवस्था पर प्रौद्योगिकी मिशन 1986 ई० में शुरू किया गया। इसे राष्ट्रीय पेयजल मिशन भी कहा गया और यह भारत सरकार द्वारा चलाये जा रहे पाँच सामाजिक मिशन में से एक था। राष्ट्रीय पेयजल मिशन का नाम बदलकर 1991 ई० में इसे राजीव गांधी राष्ट्रीय पेयजल मिशन कर दिया गया।
यह महसूस किया गया था कि स्वच्छ पेयजल आपूर्ति के लक्ष्यों को तब तक प्राप्त नहीं किया जा सकता, जब तक जल की स्वच्छता सम्बन्धी पहलुओं तथा स्वच्छता से जुड़े मुद्दों पर एक साथ ध्यान न दिया जाए। ग्रामीण लोगों के जीवन-स्तर को सुधारने के समग्र लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए 1986 ई० में केन्द्र प्रायोजित ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम शुरू किया गया था।
ऐसी परिकल्पना की गयी कि त्वरित ग्रामीण जल-आपूर्ति कार्यक्रम तथा केन्द्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रमों को साथ-साथ चलाए जाने पर पानी से पैदा होने वाली बीमारियों तथा अस्वच्छता की स्थितियों के कारण रोग, रुग्णता तथा गिरते स्वास्थ्य के कुचक्र को तोड़ने में मदद मिलेगी।
त्वरित ग्रामीण जल-आपूर्ति कार्यक्रम का उद्देश्य राज्य-क्षेत्र के न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के अधीनं राज्य सरकारों/संघ शासित प्रदेशों के प्रयासों में सहायता देकर ग्रामीण लोगों को स्वच्छ तथा पर्याप्त पेयजल सुविधाएँ प्रदान करना है। ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजले प्रदान करते समय सामान्यतया होने वाली विभिन्न समस्याओं को ध्यान में रखते हुए सभी राज्यों/संघ शासित प्रदेशों के लिए 56 मिनी-मिशनों (प्रायोगिक परियोजनाओं) की पहचान की गयी थी। इन प्रायोगिक परियोजनाओं से उन मॉडलों, जो दुबारा काम में लाए जा सकते थे तथा चालू कार्यक्रमों में सम्मिलित करने योग्य थे, को विकसित करने में सहायता मिली।

ग्रामीण जल-आपूर्ति कार्यक्रम – प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना का एक महत्त्वपूर्ण घटक है। भारत सरकार ने ग्रामीण लोगों के वास्तविक रहन-सहन में सुधार लाने के लिए उनकी बुनियादी आवश्यकताएँ पूरी करने को उच्च प्राथमिकता प्रदान की है। इस लक्ष्य को ध्यान में रखकर प्रधानमन्त्री द्वारा वर्ष 2000-01 में प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना शुरू की गयी। प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना में विशेष प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को चुनिन्दा बुनियादी न्यूनतम सेवाओं के लिए अतिरिक्त केन्द्रीय सहायता देने की परिकल्पना है। प्रारम्भ में इसमें पाँच घटक थे, किन्तु वर्ष 2001-02 में इसमें एक नया घटक और जोड़ दिया गया।
इस प्रकार प्राथमिक शिक्षा, प्राथमिक स्वास्थ्य, ग्रामीण आश्रय, ग्रामीण पेयजल, पोषाहार तथा ग्रामीण विद्युतीकरण प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना के छः घटक हैं। प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना निधियों को 10% ग्रामीण जल-आपूर्ति के लिए निर्धारित किया गया है। राज्य उनके विशेषाधिकार के अन्तर्गत रखी गयी प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना-निधियों के 30% में से अपनी प्राथमिकता के अनुसार और अधिक निधियाँ आवंटित करते हैं।
प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना (ग्रामीण पेयजल) के अन्तर्गत कुल निधियों का कम-से-कम 25% जल-संरक्षण, जल-संग्रहण, जलपुनर्भरण तथा पेयजल स्रोतों के स्थायित्व सम्बन्धी परियोजनाओं और योजनाओं के लिए प्रयोग किया जाता है। सूखा प्रवण क्षेत्र कार्यक्रमों और मरुभूमि विकास कार्यक्रमों के अन्तर्गत आने वाले क्षेत्रों पर जोर दिया जाता है। निधियों का शेष 75% राज्यों द्वारा जल-गुणवत्ता की समस्याओं का निदान करने तथा कवर न की गयी और अंशत: कवर की गयी आबादियों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने के लिए प्रयोग किया जा सकता है।
प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना की कुल निधियों का लगभग 35% ग्रामीण पेयजल हेतु इस प्रावधान के साथ निर्धारित किया गया है कि राज्य अपने पास प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना के अन्तर्गत उपलब्ध गैर-आवंटित निधियों के शेष 25% में से अपनी प्राथमिकता के अनुसार और ज्यादा निधियाँ आवंटित कर सकते हैं।
ग्रामीण पेयजल आपूर्ति में प्राप्त उपलब्धियाँ निम्नलिखित हैं
⦁     सरकार के राष्ट्रीय एजेण्डा में 2004 ई० तक सभी आबादियों में स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने की प्रतिबद्धता व्यक्त की गयी है तथा इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए एक वृहत् कार्य-योजना तैयार की गयी है, जिसका कार्यान्वयन शुरू किया जा चुका है।
⦁    त्वरित ग्रामीण जल-आपूर्ति कार्यक्रम के अन्तर्गत बजट प्रावधान को बढ़ाकर चालू वर्ष में 2,010 करोड़ रुपये कर दिया गया है।
⦁     देश में कुल ग्रामों में से 90% ग्रामों को पेयजल सुविधाएँ पूर्ण रूप से मुहैया करवा दी गयी हैं। तथा शेष 10% ग्रामों को पेयजल सुविधाएँ आंशिक रूप से उपलब्ध करवाई गयी हैं।
⦁    ग्राम-स्तर पर सतत मानव विकास पर और अधिक बल देने के लिए वर्ष 2000-01 में प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना शुरू की गयी थी, जिसके अन्तर्गत अन्य पाँच घटकों के साथ-साथ ग्रामीण पेयजल को प्राथमिकता दी जाती है। वर्ष 2001-02 में निर्धारित आवंटन राशि की तुलना में अधिक राशि जारी की गयी।
⦁     जल-गुणवत्ता की समस्याओं के बारे में एक दो-चरणीय राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण शुरू किया गया है।
⦁     ग्रामीण पेयजल क्षेत्र में माँग आधारित और सहभागिता-नीति के आधार पर एक नयी पहल शुरू की गयी है। 26 राज्यों के 63 जिलों में क्षेत्र सुधार प्रायोगिक परियोजनाएँ मंजूर की गयी हैं तथा उसके लिए राज्यों को राशि का आंशिक आवंटन भी किया जा चुका है।

53.

प्राथमिकता शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र में सरकार द्वारा चलायी जा रही निम्नलिखित योजनाओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए(1) अध्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम,(2) राष्ट्रीय पोषणिक सहायता कार्यक्रम,(3) महिला समानता के लिए शिक्षा,(4) माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा।

Answer»

(1) अध्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम
शिक्षा सम्बन्धी राष्ट्रीय नीति और कार्रवाई कार्यक्रम, 1986 ई० के अनुसार देश में एक सक्षम संस्थागत आधारभूत ढाँचा खड़ा करने हेतु शैक्षणिक और तकनीकी संसाधन आधार अभिमुखीकरण, प्रशिक्षण और ज्ञान के सतत उन्नयन, देश में प्राथमिक विद्यालय शिक्षक की सामर्थ्य और शैक्षणिक कौशल बढ़ाने के लिए 1987 ई० में अध्यापक शिक्षा की पुनर्संरचना और पुनर्गठन के लिए केन्द्र द्वारा प्रायोजित योजना शुरू की गयी थी। इस स्कीम के निम्नलिखित पाँच घटक थे
⦁    सभी जिलों में जिला शिक्षा और प्रशिक्षण संस्थानों की स्थापना करना।
⦁    अध्यापक शिक्षा महाविद्यालयों का सुदृढ़ीकरण और उनमें से कुछ का शिक्षा के उच्च अध्ययन संस्थानों के रूप में विकास करना।
⦁    राज्यों के शैक्षणिक अनुसन्धान और प्रशिक्षण परिषदों का सुदृढीकरण।
⦁    विद्यालय अध्यापकों के लिए विशेष अभिमुखी कार्यक्रम और अध्यापक प्रशिक्षण से दूरस्थ शिक्षा पद्धति शुरू करना।
⦁    विश्वविद्यालयों में शिक्षा संकायों की स्थापना और सुदृढ़ीकरण।
(2) राष्ट्रीय पोषणिक सहायता कार्यक्रम
देश में पहली बार प्राथमिक शिक्षा के लिए पोषणिक सहायता का एक राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम 15 अगस्त, 1995 ई० को आरम्भ किया गया था। इसका उद्देश्य प्राथमिकता शिक्षा के सार्वभौमीकरण को बढ़ावा देना और प्राथमिक कक्षाओं में छात्रों के पोषण में अभिवृद्धि करना था। कार्यक्रम का अन्तिम लक्ष्य पौष्टिक पके हुए वे सन्तुलित भोजन की व्यवस्था करना था, जिसमें 100 ग्राम गेहूँ या चावल के बराबर कैलोरी हो। इसका वितरण पंचायतों और नगरपालिकाओं के माध्यम से किया जाना है जिनको इस प्रयोजन हेतु संस्थागत प्रबन्ध विकसित करना है।
(3) महिला समानता के लिए शिक्षा
भारत सरकार द्वारा स्वतन्त्रता-प्राप्ति के समय से ही विभिन्न कार्यक्रमों और योजनाओं के माध्यम से शिक्षा के क्षेत्र में लिंग सम्बन्धी असमानताओं को दूर करने के प्रयास किये जा रहे हैं। 1986 ई० की राष्ट्रीय शिक्षा नीति तथा 1992 ई० की संशोधित नयी शिक्षा-नीति स्वीकार करने के बाद से इन प्रयासों को विशेष बल मिला है। नयी शिक्षा नीति में महिलाओं के हित संरक्षण का संकल्प व्यक्त किया गया है कि विकास की प्रक्रिया में लड़कियों व महिलाओं की भागीदारी के लिए उनकी शिक्षा सबसे महत्त्वपूर्ण लक्ष्य है। सरकारी और गैर-सरकारी प्रयत्नों के परिणामस्वरूप स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पश्चात् महिलाओं की साक्षरता दर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। 1951 ई० में महिला साक्षरता मात्र 7.3 प्रतिशत थी, जबकि 2011 ई० में यह बढ़कर 65.46 प्रतिशत हो गयी।
(4) माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा
वर्ष 1950-51 से 2010-11 ई० तक माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में निम्नलिखित उल्लेखनीय प्रगति हुई
⦁    माध्यमिक स्तर के शिक्षा संस्थान 7,416 से बढ़कर 2.15 लाख हो गये।
⦁    माध्यमिक स्तर पर लड़कियों की संख्या 13.3 प्रतिशत से बढ़कर 72.10 प्रतिशत पर पहुँच गयी।
⦁    लड़कियों के दाखिले 2 लाख से बढ़कर 1 करोड़ हो गये।
उच्च शिक्षा की दृष्टि से भी देश प्रगति की ओर अग्रसर है। वर्तमान में देश में 376 विश्वविद्यालय, 131 सम-विश्वविद्यालय और 113 निजी विश्वविद्यालय हैं, जो उच्च शिक्षा उपलब्ध करा रहे हैं। देश में कॉलेजों की कुल संख्या 16,615 है। देश के सभी विश्वविद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या 1 करोड़ से ऊपर है, जबकि अध्यापकों की संख्या 4.16 लाख है।

54.

ग्रामीण विकास के मार्ग में क्या-क्या बाधाएँ हैं?

Answer»

ग्रामीण विकास के मार्ग में आने वाली बाधाओं का विवरण निम्नलिखित है
⦁    सरकार द्वारा चलाये जा रहे कार्यक्रमों में कमियाँ,
⦁    ग्रामीण जनता को शहरों की ओर पलायन,
⦁    निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा उपेक्षा,
⦁    अशिक्षा,
⦁    जाति-प्रथा,
⦁    मध्यस्थों व जन-सेवकों द्वारा योजना के अन्तर्गत प्रदत्त धन का दुरुपयोग।

55.

सामाजिक वानिकी का ग्रामीण विकास में क्या महत्त्व है?

Answer»

सामाजिक वानिकी ग्रामीण अंचलों के बेरोजगार व्यक्तियों को रोजगार एवं अतिरिक्त आय के साधन उपलब्ध कराने में सहायक है; क्योंकि
⦁    सीमान्त एवं लघु कृषक अपने खेतों के चारों ओर तथा खाली पड़ी बंजर भूमि पर बहुउद्देशीय वृक्ष (जैसे-यूकेलिप्ट्स आदि) उगाकर उनसे चारा, जलाने की लकड़ी आदि प्राप्त कर सकते हैं।
⦁    इस पद्धति द्वारा पेड़ों से सम्पूर्ण फसल प्रणाली के सूक्ष्म वातावरण में सुधार होता है।
⦁    लगाये गये पेड़ों के रख-रखाव में छोटे किसान अतिरिक्त रोजगार प्राप्त कर सकते हैं।
⦁    इस पद्धति से किसान अपनी भूमि से दोहरा लाभ प्राप्त करने में सफल होता है, क्योंकि पेड़ों के साथ ही खाद्यान्न फसलों का भी उत्पादन सम्भव हो पाता है, जिससे किसानों की आय में वृद्धि होती है।
⦁    भूमि-सुधार और पर्यावरण सन्तुलन करने में सहायता मिलती है।
⦁    इस प्रक्रिया में विकसित किये गये पेड़ों से कुटीर उद्योग-धन्धे आरम्भ किये जा सकते हैं। सामाजिक वानिकी द्वारा ऐसे अनेक वन-उत्पादों की पूर्ति की जा सकती है जिनसे लघु एवं कुटीर उद्योग-धन्धे विकसित किये जा सकें।
⦁    सामाजिक वानिकी द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों की परती एवं बेकार पड़ी भूमि का व्यावसायिक उपयोग किया जाना सम्भव होता है।
⦁    सामाजिक वानिकी द्वारा मृदा में नमी का संरक्षण बनाये रखना सम्भव हो पाता है, जिससे बाढ़ और सूखे का प्रकोप कम हो जाता है।
उपर्युक्त लाभ ग्रामीण अंचलों में सामाजिक वानिकी की उपादेयता को प्रदर्शित करते हैं। यही कारण है कि विगत वर्षों में सामाजिक वानिकी कार्यक्रम भारत में लोकप्रिय हो रहा है और ग्रामीण अंचलों में इसे अपनाने के लिए जागरूकता पैदा हो रही है।

56.

सामाजिक वानिकी में निहित उद्देश्यों को संक्षेप में लिखिए। यासामाजिक वानिकी के कोई दो उद्देश्य लिखिए। 

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सामाजिक वानिकी के उद्देश्यों में प्रमुख निम्नलिखित हैं

⦁    वनों के क्षेत्रफल में वृद्धि करना जिससे ईंधन, फल, चारा आदि की पूर्ति करके स्थानीय लोगों को लाभ पहुँचाया जा सके।
⦁    भूमि के कटाव को रोकना।
⦁    भूमि की नमी का संरक्षण करना।
⦁    पर्यावरण को स्वच्छ एवं सन्तुलित रखना।
⦁    भूमि की उर्वरा-शक्ति में वृद्धि करना।
⦁    किसानों के लिए अतिरिक्त आय के स्रोतों का सृजन करना।
⦁    ग्रामीणों को अतिरिक्त रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना।
⦁    अनुपयोगी भूमि का समुचित उपयोग करना।
⦁    वायु के प्रवाह से कृषि-भूमि का बचाव करना।
उपर्युक्त उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सामाजिक वानिकी के अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्रों की बेकार पड़ी भूमि, बंजर भूमि, ऊसर भूमि, सड़कों के किनारे खाली पड़ी भूमि आदि पर वृक्षारोपण किया जाता है। इसके अलावा एक ही भूमि पर फसलों के साथ वृक्षों को उगाने की प्रक्रिया भी सामाजिक वानिकी की परिधि में आती है।

57.

वनों के संरक्षण हेतु कुछ सुझाव प्रस्तुत कीजिए।यावन संरक्षण के लिए कोई दो सुझाव दीजिए।

Answer»

भारत में वनों को संरक्षण देने एवं उन्हें विकसित करने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकते हैं

1. वन-क्षेत्रों का विकास – वन व्यवसाय की उन्नति के लिए अधिक आवश्यक कार्य वन-क्षेत्र का विस्तार करना है। राष्ट्रीय वन-नीति के अनुसार देश के एक-तिहाई भाग तक वन विस्तार की परियोजना अपनायी जानी चाहिए। किन्तु इस दशा में सफलता नहीं मिली है। वृक्षारोपण कार्य को गति दी जानी चाहिए जिससे इस उद्देश्य की पूर्ति हो सके।
2. वनों का उचित दोहन – पिछले तीन दशकों में 43 लाख हेक्टेयर भूमि से वनों का सफाया किया जा चुका है। वनों के अनुचित दोहन को रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय किये जाने चाहिए
⦁    सरकार को वनों के संरक्षण पर ध्यान देना चाहिए।
⦁    वनों पर सरकारी नियन्त्रण कठोर होना चाहिए।
⦁    वन अधिकारियों को भली प्रकार प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
⦁    वनों के अन्धाधुन्ध कटने पर पूर्णत: रोक लगा देनी चाहिए एवं उस पर सख्ती से अमल करना चाहिए।
3. वन-क्षेत्रों में परिवहन की सुविधाएँ जुटाना – भारतीय वन ऊँचे एवं दुर्गम क्षेत्रों में हैं, परन्तु यातायात की सुविधा न होने के कारण उनका दोहन सम्भव नहीं है। वन-क्षेत्रों तक सस्ते और द्रुत साधनों की व्यवस्था की जानी चाहिए।
4. उद्योगों का विकास-वन – उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए वनों से प्राप्त पदार्थों के उपयोग की समुचित व्यवस्था तथा उन वस्तुओं से सम्बन्धित उद्योगों का विकास किया जाना चाहिए। वन्य-पदार्थों का निर्यात विदेशों को किया जाए तथा पूँजीपतियों को इस उद्योग में अधिक-से-अधिक पूँजी लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
5. वनों को काटने पर रोक – गाँवों एवं वन-क्षेत्रों के निकटवर्ती भागों में लकड़ी को ईंधन के रूप में जलाकर नष्ट कर दिया जाता है। लकड़ी के इस अनुचित उपयोग को रोका जाना चाहिए, जिससे इसका उपयोग अधिक महत्त्वपूर्ण कार्यों में किया जा सके।
6. वन-सम्बन्धी शिक्षा तथा अनुसन्धान को प्रोत्साहन – वन व्यवसाय की उन्नति के लिए वन सम्बन्धी शिक्षा का प्रसार किया जाना चाहिए। व्यक्तियों को प्रशिक्षित करने के लिए वन विद्यालय खोले जाने चाहिए। वन सम्बन्धी शिक्षा देकर ही वनों को समाज के बीच लगाया या समृद्ध किया जा सकता है। सामाजिक वानिकी’ इसकी एक उदाहरण है।
7. वन महोत्सव – वनों को विनाश से बचाने के लिए भारत में 1952 ई० से वन महोत्सव कार्यक्रम का प्रारम्भ किया गया। इसके जन्मदाता भूतपूर्व केन्द्रीय कृषि मन्त्री श्री कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी थे। उनके शब्दों में, “वृक्षों का अर्थ है जल, जल का अर्थ है रोटी और रोटी ही जीवन है। सरकार द्वारा अपनी वन-नीति के आधार पर जुलाई, 1952 ई० से लगातार वन महोत्सव मनाना प्रारम्भ किया गया। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत खेतों की मेंड़ों, नदियों एवं नहरों के किनारे, सड़क एवं रेलमार्गों के किनारे एवं सार्वजनिक स्थानों पर वृक्ष लगाए जाते हैं। आशा की जाती है कि इस कार्यक्रम से भारत के 33.33% क्षेत्रफल पर वनों का विस्तार होगा।
8. नवीन 20-सूत्री कार्यक्रम – नवीन 20-सूत्री कार्यक्रम के अन्तर्गत वृक्षारोपण एवं पेड़-पौधों की रक्षा का विशेष प्रावधान है। 1980-85 ई० में छठी पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत एक अरब रुपये के खर्चे से केन्द्रीय सरकार द्वारा एक नयी योजना का शुभारम्भ किया गया था ‘ग्रामीण ईंधन वृक्षारोपण सहित सामाजिक वृक्षारोपण।’ इस योजना में 100 जिलों में पेड़ लगाये गये तथा निम्नलिखित कार्यक्रमों को प्रधानता दी गयी
⦁    गाँव के आस-पास बेकार पड़ी भूमि पर वृक्षों को लगाना।
⦁     किसानों को खेतों की मेड़ पर पेड़ लगाने के लिए मुफ्त में पेड़ देना आदि।
इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए सुनियोजित नीति को अपनाये जाने के साथ-साथ जन-सहयोग भी आवश्यक है।

58.

भारत में ग्रामीण विकास की किन्हीं तीन योजनाओं को स्पष्ट कीजिए।

Answer»

स्वतन्त्रता के पश्चात् देश को तीव्र गति से आर्थिक विकास करने के लिए नियोजन का मार्ग अपनाया गया। भारत एक ग्राम-प्रधान देश है। यदि हम भारत का आर्थिक विकास करना चाहते हैं तो ग्राम्य विकास के बिना आर्थिक विकास की कल्पना करना निरर्थक होगा; अतः भारत के आर्थिक विकास के लिए 1950 ई० में योजना आयोग की स्थापना की गयी। देश की प्रथम पंचवर्षीय योजना 1 अप्रैल, 1951 ई० से प्रारम्भ की गयी तथा अब तक 11 पंचवर्षीय योजनाएँ अपना कार्यकाल पूरा कर चुकी हैं। विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में ग्राम्य विकास की ओर सर्वाधिक ध्यान केन्द्रित किया गया है, जिसका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है

1. प्रथम पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 1951 ई० से 31 मार्च, 1956 ई० तक) – प्रथम पंचवर्षीय योजना की रूपरेखा में कहा गया था कि नियोजन का केन्द्रीय उद्देश्ये जनता के जीवन-स्तर को ऊँचा उठाना है और उसके लिए एक अधिक सुख-सुविधापूर्ण जीवन प्रदान करना है। प्रथम पंचवर्षीय योजना मुख्य रूप से कृषिप्रधान योजना थी। इस योजना में सम्पूर्ण योजना की लगभग तीन-चौथाई धनराशि कृषि, सिंचाई, शक्ति तथा यातायात पर व्यय की गयी।
2. द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 1956 ई० से 31 मार्च, 1961 ई० तक) – द्वितीय पंचवर्षीय योजना में भी कृषि को महत्त्व प्रदान किया गया था, परन्तु औद्योगिक विकास को अधिक प्राथमिकता दी गयी थी। ग्राम्य विकास की ओर द्वितीय योजना में भी पूर्ण ध्यान दिया गया था।
3. तीसरी पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 1961 ई० से 31 मार्च, 1966 ई० तक) – तीसरी योजना में ग्राम्य विकास हेतु कृषि विकास को पर्याप्त महत्त्व दिया गया था। योजना आयोग ने कृषि को प्राथमिकता देते हुए लिखा था – “तृतीय योजना की विकास युक्तेि में कृषि को ही अनिवार्यतः सर्वाधिक प्राथमिकता मिलनी चाहिए। पहली दोनों योजनाओं का अनुभव यह प्रदर्शित करता है कि कृषि-क्षेत्र की विकास-दर भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास को प्रतिबन्धात्मक कारण है, इसलिए कृषि-उत्पादन को बढ़ाने के यथा-सम्भव अधिक प्रयास करने होंगे।”

59.

सम्पूर्ण ग्रामीण योजना कब प्रारम्भ की गयी?

Answer»

15 अगस्त, 2001 ई० से सम्पूर्ण ग्रामीण योजना प्रारम्भ की गयी।

60.

वनों से होने वाले किन्हीं दो लाभों का उल्लेख कीजिए।

Answer»

(1) वन पर्यावरण को स्वच्छ रखते हैं तथा वर्षा के होने में सहायता करते हैं।
(2) वन मृदा-अपरदन को रोकते हैं।

61.

ग्राम्य विकास में पंचवर्षीय योजनाओं की विभिन्न उपलब्धियों को समझाइए।

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स्वतन्त्रता के पश्चात् देश को तीव्र गति से आर्थिक विकास करने के लिए नियोजन का मार्ग अपनाया गया। भारत एक ग्राम-प्रधान देश है। यदि हम भारत का आर्थिक विकास करना चाहते हैं तो ग्राम्य विकास के बिना आर्थिक विकास की कल्पना करना निरर्थक होगा; अतः भारत के आर्थिक विकास के लिए 1950 ई० में योजना आयोग की स्थापना की गयी। देश की प्रथम पंचवर्षीय योजना 1 अप्रैल, 1951 ई० से प्रारम्भ की गयी तथा अब तक 11 पंचवर्षीय योजनाएँ अपना कार्यकाल पूरा कर चुकी हैं। विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में ग्राम्य विकास की ओर सर्वाधिक ध्यान केन्द्रित किया गया है, जिसका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है

1. प्रथम पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 1951 ई० से 31 मार्च, 1956 ई० तक) – प्रथम पंचवर्षीय योजना की रूपरेखा में कहा गया था कि नियोजन का केन्द्रीय उद्देश्ये जनता के जीवन-स्तर को ऊँचा उठाना है और उसके लिए एक अधिक सुख-सुविधापूर्ण जीवन प्रदान करना है। प्रथम पंचवर्षीय योजना मुख्य रूप से कृषिप्रधान योजना थी। इस योजना में सम्पूर्ण योजना की लगभग तीन-चौथाई धनराशि कृषि, सिंचाई, शक्ति तथा यातायात पर व्यय की गयी।
2. द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 1956 ई० से 31 मार्च, 1961 ई० तक) – द्वितीय पंचवर्षीय योजना में भी कृषि को महत्त्व प्रदान किया गया था, परन्तु औद्योगिक विकास को अधिक प्राथमिकता दी गयी थी। ग्राम्य विकास की ओर द्वितीय योजना में भी पूर्ण ध्यान दिया गया था।
3. तीसरी पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 1961 ई० से 31 मार्च, 1966 ई० तक) – तीसरी योजना में ग्राम्य विकास हेतु कृषि विकास को पर्याप्त महत्त्व दिया गया था। योजना आयोग ने कृषि को प्राथमिकता देते हुए लिखा था–“तृतीय योजना की विकास युक्तेि में कृषि को ही अनिवार्यतः सर्वाधिक प्राथमिकता मिलनी चाहिए। पहली दोनों योजनाओं का अनुभव यह प्रदर्शित करता है कि कृषि-क्षेत्र की विकास-दर भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास को प्रतिबन्धात्मक कारण है, इसलिए कृषि-उत्पादन को बढ़ाने के यथा-सम्भव अधिक प्रयास करने होंगे।”
4. तीन वार्षिक योजनाएँ (1966-67, 1967-68, 1968-69) – तृतीय पंचवर्षीय योजना 31 मार्च, 1966 ई० को समाप्त हो गयी थी। चतुर्थ योजनों को 1 अप्रैल, 1966 ई० से प्रारम्भ होना चाहिए था, किन्तु तृतीय योजना की असफलता के परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादन लगभग स्थिर हो गया था; अतः चौथी योजना को कुछ समय के लिए स्थगित कर दिया गया तथा उसके स्थान पर तीन वार्षिक योजनाएं लागू की गयीं। कुछ अर्थशास्त्रियों ने तो 1966 ई० से 1969 ई० तक की अवधि को ‘योजना अवकाश’ का नाम दिया। चौथी पंचवर्षीय योजना 1 अप्रैल, 1969 ई० से ही आरम्भ हो सकी।
5. चौथी पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 1969 ई० से 31 मार्च, 1974 ई० तक) – तीन वर्ष के योजना अवकाश के बाद देश में कृषि क्षेत्र में हरित क्रान्ति की सफलता के वातावरण में चौथी योजना प्रारम्भ हुई। इस योजना के दो मुख्य उद्देश्य थे – स्थिरता के साथ विकास तथा देश को आत्मनिर्भर बनाना। इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए इस योजना में ग्राम्य विकास हेतु निम्नलिखित कदम उठाये गये
⦁    आर्थिक विकास लगभग 5.5% वार्षिक दर से करना,
⦁     कृषि के उत्पादन में वृद्धि करना,
⦁     सामाजिक सेवामा को बढ़ाना तथा
⦁     पिछड़े क्षेत्रों के विकास पर विशेष बल देना।
इस प्रकार चौथी पंचवर्षीय योजना में ग्राम्य विकास की ओर विशेष महत्त्व दिया गया। चतुर्थ पंचवर्षीय योजना के छ रूप से ग्राम्य विकास हेतु बनाये गये कार्यक्रम थे
⦁    लघु कृषक विकास एजेन्सी (S.ED.A.),
⦁    सीमान्त किसान एवं कृषि-श्रमिक एजेन्सी (M.FA.L.A.),
⦁    सूखा प्रवृत क्षेत्र कार्यक्रम (D.PA.P),
⦁    ग्रामीण रोजगार के लिए पुरजोर स्कीम (Crash Scheme for Rural Employment) आदि।
6. पाँचवीं पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 1974 से 31 मार्च, 1978 ई० तक) – पाँचवीं पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल चार वर्ष ही रहा, क्योंकि इस योजना को एक वर्ष पहले ही 1978 ई० में स्थगित कर दिया गया था। इस योजना में ऐसी व्यवस्था की गयी थी कि व्यय की जाने वाली राशि से सभी क्षेत्रों का विशेषत: पिछड़े वर्गों व क्षेत्रों का अधिकतम सन्तुलित विकास हो सके; अत: इस योजना में कृषि, सिंचाई, शक्ति एवं सम्बन्धित क्षेत्रों पर और पिछड़े वर्गों व पिछड़े क्षेत्रों की उन्नति करने पर अधिक बल दिया गया था।
पाँचवीं पंचवर्षीय योजना में न्यूनतम आवश्यकताओं को राष्ट्रीय कार्यक्रम; जिसमें प्राथमिक शिक्षा, पीने का पानी, ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा, पौष्टिक भोजन, भूमिहीन श्रमिकों को मकानों के लिए जमीन, ग्रामीण सड़कें, ग्रामों का विद्युतीकरण एवं गन्दी बस्तियों की उन्नति एवं सफाई पर अधिक बल दिया गया।
पाँचवीं योजना में, काम के बदले अनाज कार्यक्रम व न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम चलाये गये। ये समस्त योजनाएँ ग्रामीण क्षेत्रों के अति निर्धन लोगों के लिए थीं। इन परियोजनाओं के द्वारा दो प्रकार से सहायता दी जाती थी-एक तो वित्तीय तथा दूसरे, सरकारी लोक कार्य परियोजनाओं से अति निर्धन किसानों व मजदूरों के लिए प्रत्यक्ष रोजगार की व्यवस्था। जनता पार्टी के शासनकाल में समाज के सर्वाधिक निर्धन व्यक्तियों को उत्पादक रोजगार अवसर उपलब्ध कराकर उन्हें निर्धनता के कुचक्र से बाहर निकालने के लिए ‘अन्त्योदय कार्यक्रम’ वर्ष 1977-78 में प्रारम्भ किया गया।
7. छठी पंचवर्षीय योजना ( 1 अप्रैल, 1980 ई० से 31 मार्च, 1985 ई० तक) – जनता पार्टी की सरकार द्वारा 1 अप्रैल, 1978 ई० से ही छठी पंचवर्षीय योजना एक अनवरत योजना के रूप में लागू की गयी थी। लेकिन कांग्रेस सरकार द्वारा इस योजना को दो वर्ष बाद ही 1980 ई० में समाप्त घोषित कर दिया गया और 1 अप्रैल, 1980 ई० से छठी संशोधित पंचवर्षीय योजना लागू की गयी। छठी योजना में ग्रामीण क्षेत्रों में समन्वित विकास का कार्यक्रम चलाया गया। रोजगार के अवसर बढ़ाकर बेरोजगारी दूर करने के लिए श्रमप्रधान क्षेत्रों; जैसे–कृषि, लघु और ग्रामीण उद्योगों तथा इनसे जुड़े हुए कार्यक्रमों को बढ़ाया गया। रोजगार के अवसर बढ़ने से गरीबों की आय बढ़ी और जीवन-स्तर में सुधारे हुआ।
छठी योजना के दौरान 1980 ई० में सरकार ने ग्रामीण श्रम-शक्ति कार्यक्रम, पुरजोर योजना तथा काम के बदले अनाज योजना के स्थान पर राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया। इस कार्यक्रम का प्रमुख उद्देश्य लाभकारी रोजगार के अवसरों में वृद्धि, स्थायी सामुदायिक सम्पत्तियों का निर्माण तथा ग्रामीण निर्धनों के आहार स्तर में वृद्धि करना था। ग्रामीण युवा वर्ग की बेरोजगारी को दूर करने के लिए अगस्त, 1979 ई० में ‘ट्राइसेम’ योजना प्रारम्भ की गयी। 1983 ई० में ‘ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारण्टी कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया। S.ED.A., M.E.A.L.A आदि योजनाओं के दोहरेपन को दूर करने के लिए 1978-79 ई० में एकीकृत ग्राम्य विकास कार्यक्रम (I.R.D.P) प्रारम्भ किया गया तथा 2 अक्टूबर, 1980 ई० से उसे पूरे देश में लागू कर दिया गया।
8. सातवीं पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 1985 ई० से 31 मार्च, 1990 ई० तक) – ग्रामीण विकास हेतु सातवीं पंचवर्षीय योजना में अनेक कार्यक्रम चलाये गये। ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए सातवीं योजना में अप्रैल, 1989 ई० से एक व्यापक योजना ‘जवाहर रोजगार योजना प्रारम्भ की गयी थी। पूर्व में चल रहे दो प्रमुख ग्रामीण रोजगार कार्यक्रमों-राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम’ तथा ‘ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारण्टी कार्यक्रम का विलय अप्रैल, 1989 ई० में जवाहर रोजगार योजना में ही कर दिया गया।
9. आठवीं पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 1992 ई०से 31 मार्च, 1997 तक) – तत्कालीन प्रधानमन्त्री एवं योजना आयोग के अध्यक्ष पी०वी० नरसिंह राव के अनुसार, आठवीं योजना के मूलभूत उद्देश्य निम्नलिखित थे
⦁     सभी गाँवों एवं समस्त जनसंख्या हेतु पेयजल तथा टीकाकरण सहित प्राथमिक चिकित्सा सुविधाओं का प्रावधान करना तथा मैला ढोने की प्रथा को पूर्णतः समाप्त करना।
⦁    खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता एवं निर्यात योग्य बचत प्राप्त करने हेतु कृषि का विकास एवं विस्तार करना।
⦁    प्रारम्भिक शिक्षा को सर्वव्यापक बनाना तथा 15 से 35 वर्ष की आयु के मध्य के लोगों में निरक्षरता को पूर्णतः समाप्त करना।
⦁    शताब्दी के अन्त तक लगभग पूर्ण रोजगार के स्तर को प्राप्त करने की दृष्टि से पर्याप्त रोजगार का सृजन करना।
⦁     2 अक्टूबर, 1993 ई० से सरकार ने रोजगार आश्वासन योजना लागू की।

10. नौवीं पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 1997 ई० से 31 मार्च, 2002 ई० तक) – नौवीं पंचवर्षीय योजना में निम्नलिखित उद्देश्य स्वीकार किये गये
⦁     पर्याप्त उत्पादक रोजगार पैदा करना तथा निर्धनता उन्मूलन की दृष्टि से कृषि एवं ग्रामीण विकास को प्राथमिकता देना।
⦁     सभी के लिए, विशेष रूप से समाज के कमजोर वर्गों के लिए, भोजन एवं पोषण की सुरक्षा सुनिश्चित करना।
⦁    स्वच्छ पेयजल, प्राथमिक स्वास्थ्य देख-रेख सुविधा, सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा एवं आवास जैसी मूलभूत न्यूनतम सेवाएँ प्रदान करना तथा समयबद्ध तरीके से आपूर्ति सुनिश्चित करना।
⦁    गाँवों में रहने वाले गरीबों के लिए स्वरोजगार की ‘स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना’ 1 अप्रैल, 1999 ई० से प्रारम्भ की गयी। इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में भारी संख्या में कुटीर उद्योगों की स्थापना करना था। इस योजना में सहायता प्राप्त व्यक्ति स्वरोजगारी कहलाएँगे, लाभार्थी नहीं। इस योजना का उद्देश्य सहायता प्राप्त प्रत्येक परिवार को 3 वर्ष की अवधि में गरीबी रेखा से ऊपर उठाना था। कम-से-कम 50% अनु० जाति/जनजाति, 40% महिलाओं तथा 30% विकलांगों को योजना को लक्ष्य बनाया गया। आगामी 5 वर्षों में प्रत्येक विकास-खण्ड में रहने वाले ग्रामीण गरीबों में से 30% को इस योजना के अन्तर्गत लाने का प्रस्ताव है।
नौवीं पंचवर्षीय योजना में ग्राम्य विकास हेतु विभिन्न मदों पर निम्नलिखित व्यय किये गये
1. कृषि और सम्बद्ध कार्यकलाप                                          ₹ 42,462.00 करोड़
2. ग्रामीण विकास                                                               ₹74,686.00 करोड़
3. सिंचाई और बाढ़ नियन्त्रण                                               ₹55,420.00 करोड़
4. शिक्षा, चिकित्सा व जन-स्वास्थ्य परिवार – कल्याण            ₹1,83,273.00 करोड़
आवास व अन्य सामाजिक सेवाएँ।
11. दसवीं पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 2002 से 31 मार्च, 2007 तक) – 10वीं पंचवर्षीय योजना के दृष्टिकोण पत्र में विकास हेतु जो लक्ष्य निर्धारित किये गये थे, उनमें निर्धनता अनुपात को 2007 ई० तक 20 प्रतिशत तथा 2012 ई० तक 10 प्रतिशत तक लाना, 2007 तक सभी के लिए प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराना, 2001-2011 के दशक में जनसंख्या वृद्धि को 16.2 प्रतिशत तक
सीमित रखना, साक्षरता-दर को 2007 ई० तक 72 प्रतिशत तथा 2012 ई० तक 80 प्रतिशत करना, वनाच्छादित क्षेत्र को 2007 ई० तक 25 प्रतिशत तथा 2012 ई० तक 33 प्रतिशत करना, 2012 ई० तक सभी गाँवों में स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था कराना तथा सभी प्रमुख प्रदूषित नदियों की 2007 ई० तक व अन्य अधिसूचित प्रखण्डों की 2012 ई० तक सफाई कराना आदि सम्मिलित थे।
12. बारहवीं पंचवर्षीय योजना (2012-2017) – भारत की 12वीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) के निर्माण की दिशा का मार्ग अक्टूबर, 2011 में उस समय प्रशस्त हो गया जब इस योजना के दृष्टि पत्र (दृष्टिकोण पत्र/दिशा पत्र/Approach Paper ) को राष्ट्रीय विकास परिषद् (NDC) ने स्वीकृति प्रदान कर दी। 1 अप्रैल, 2012 से प्रारम्भ हो चुकी इस पंचवर्षीय योजना के दृष्टि पत्र को योजना आयोग की 20 अगस्त, 2011 की बैठक में स्वीकार कर लिया था तथा केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद् ने इसका अनुमोदन 15 सितम्बर, 2011 की अपनी बैठक में किया था। प्रधानमन्त्री डॉ० मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में राष्ट्रीय विकास परिषद् की नई दिल्ली में 22 अक्टूबर, 2011 को सम्पन्न हुई इस 56वीं बैठक में दिशा पत्र को कुछेक शर्तों के साथ स्वीकार किया गया। राज्यों द्वारा सुझाए गए कुछ संशोधनों का समायोजन योजना दस्तावेज तैयार करते समय योजना आयोग द्वारा किया जायेगा।
12वीं पंचवर्षीय योजना में वार्षिक विकास दर का लक्ष्य 9 प्रतिशत है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने में राज्यों के सहयोग की अपेक्षा प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह ने की है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कृषि, उद्योग व सेवाओं के क्षेत्र में क्रमश: 4.0 प्रतिशत, 9.6 प्रतिशत व 10.0 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि प्राप्त करने के लक्ष्य तय किये गये हैं। इनके लिए निवेश दर सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की 38.7 प्रतिशत प्राप्त करनी होगी।
बचत की दर जीडीपी के 36.2 प्रतिशत प्राप्त करने का लक्ष्य दृष्टि पत्र में निर्धारित किया गया है। समाप्त हुई 11वीं पंचवर्षीय योजना में निवेश की दर 36.4 प्रतिशत तथा बचत की दर 34.0 प्रतिशत रहने का अनुमान था। 11वीं पंचवर्षीय योजना में वार्षिक विकास दर 8.2 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था। 11वीं पंचवर्षीय योजना में थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index) में औसत वार्षिक वृद्धि लगभग 6.0 प्रतिशत अनुमानित था, जो 12वीं पंचवर्षीय योजना में 4.5-5.0 प्रतिशत तक सीमित रखने का लक्ष्य है। योजनावधि में केन्द्र सरकार का औसत वार्षिक राजकोषीय घाटा जीडीपी के 3.25 प्रतिशत तक सीमित रखने का लक्ष्य इस योजना के दृष्टि पत्र में निर्धारित किया गया है।
12वीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) :
दृष्टि पत्र में निर्धारित महत्त्वपूर्ण वार्षिक लक्ष्य एक दृष्टि में
सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि                                            9.0 प्रतिशत
कृषि क्षेत्र में वृद्धि                                                            4.0 प्रतिशत
उद्योग क्षेत्र में वृद्धि                                                         9.6 प्रतिशत
सेवा क्षेत्र में वृद्धि                                                          10.0 प्रतिशत
निवेश दर                                                                    38.7 प्रतिशत  (जीडीपी के प्रतिशत के रूप में)
बचत दर                                                                      36.2 प्रतिशत (जीडीपी के प्रतिशत के रूप में)
औसत वार्षिक राजकोषीय घाटा                                    3.25 प्रतिशत (जीडीपी के प्रतिशत के रूप में)
थोक मूल्य सूचकांक में औसत वार्षिक वृद्धि                   4.5-5.0 प्रतिशत

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ग्राम्य विकास हेतु भारत सरकार द्वारा किये गये विभिन्न प्रयासों की व्याख्या कीजिए।

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ग्राम्य विकास हेतु भारत सरकार द्वारा किये गये प्रयास
भारत की 75 प्रतिशत जनसंख्या गाँवों में निवास करती है। स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पश्चात् गाँवों का सर्वांगीण विकास करने के उद्देश्य से अनेकों कार्यक्रम एवं योजनाएँ संचालित की गयीं जिनका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है

1. सामुदायिक विकास योजना – गाँवों के सर्वांगीण विकास के उद्देश्य से देश में 1952 ई० से सामुदायिक विकास योजना आरम्भ की गयी। सामुदायिक विकास आत्म-सहायता का कार्यक्रम है। अर्थात् ग्रामीण जनता स्वयं ही योजनाएँ बनाये और उन्हें कार्यान्वित करे तथा सरकार की ओर से केवल तकनीकी मार्गदर्शन एवं वित्तीय सहायता ही मिले। अन्य शब्दों में, “सामुदायिक विकास का अर्थ ग्रामीण जनता के सर्वांगीण विकास से है।” सामुदायिक विकास में कृषि, पशुपालन, सिंचाई, सहकारिता, स्वास्थ्य, शिक्षा, ग्राम पंचायत तथा ग्रामीण जीवन के सभी पक्ष सम्मिलित होते हैं।
सामुदायिक विकास योजना के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं
⦁    जनता के परम्परावादी दृष्टिकोण को धीरे-धीरे बदलकर उन्हें स्वस्थ व वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्रदान करना।
⦁    जनता में सहकारिता की भावना जागृत करना।
⦁    कृषि-उत्पादन में वृद्धि करना तथा किसानों को वैज्ञानिक विधि से खेती करने, बागवानी करने, पशुपालन वे मछली-पालन के तरीकों का ज्ञान कराना।
⦁    ग्रामीण कुटीर एवं लघु उद्योगों का विस्तार एवं विकास करके रोजगार सुविधाओं में वृद्धि करना।
⦁    गाँवों को अपनी आधारभूत आवश्यकताओं भोजन, वस्त्र और आवास के मामलों में आत्मनिर्भर बनाना।
⦁    गाँवों में सड़कों, पाठशालाओं, स्वास्थ्य केन्द्रों आदि का निर्माण कराना तथा इस प्रकार ग्राम्य विकास करना।
⦁    ग्रामीण अशिक्षा को दूर करने का प्रयास करना।
⦁    गाँवों में स्वच्छता लाना, शुद्ध पीने के पानी की व्यवस्था करना तथा बीमारियों से बचने के विषय में जानकारी देना।
⦁    ग्रामीण क्षेत्रों में कच्ची तथा पक्की सड़कों का निर्माण कराना, पशु परिवहन का नवीनीकरण करना तथा मोटर परिवहन का विकास करना।
⦁    विभिन्न उपायों द्वारा ग्रामीण परिवारों की आय में वृद्धि करना।
उपर्युक्त उद्देश्यों को प्राप्त करने की दृष्टि से सम्पूर्ण देश को 5,011 सामुदायिक विकास-खण्डों में बाँटा गया है। वर्तमान समय में एक खण्ड में 100 गाँव हैं जिनकी जनसंख्या 1 लाख तथा क्षेत्रफल 620 वर्ग किमी है।
इस योजना का ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर अच्छा प्रभाव पड़ा है, जिसका संक्षिप्त विवरण अग्रलिखित है
⦁    सामुदायिक विकास योजना कृषि विकास के उद्देश्य में पर्याप्त रूप से सफल रही है। उत्तम बीजों, उर्वरकों, कृषि-यन्त्रों, सिंचाई सुविधाओं आदि के कारण कृषि-उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
⦁    इस योजना के फलस्वरूप गाँवों में कच्ची तथा पक्की सड़कों का निर्माण हुआ है।
⦁    विकास-खण्डों ने अपने क्षेत्र की हजारों हेक्टेयर बंजर भूमियों को कृषि योग्य बनाया है। भूमि कटाव को रोकने के लिए नयी मेड़े भी बनायी गयी हैं।
⦁    विकास-खण्डों ने पशुओं की नस्लों में सुधार करने के लिए हजारों कृत्रिम गर्भाधान केन्द्र खोले हैं।
⦁    सामुदायिक विकासखण्डों ने गाँवों में पक्की नालियाँ, पक्की गलियाँ, शौचालय, कुओं आदि का निर्माण कराया है।
⦁    ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा-प्रचार एवं प्रसार हेतु प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र तथा सिलाई केन्द्र खोले गये हैं।
⦁    ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर तथा लघु उद्योग खोलने के लिए किसानों को वित्तीय सहायता दी जाती है तथा ग्रामीण कारीगरों को करोड़ों रुपये के ऋण दिये जाते हैं।
⦁    गाँवों में आय की असमानताओं को दूर करने के लिए तथा रोजगार के अवसरों में वृद्धि करने के लिए सम्पूर्ण ग्राम विकास कार्यक्रम’ को आरम्भ किया गया है।
उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट होता है कि सामुदायिक विकास कार्यक्रम से ग्रामीण जनता की स्थिति में उल्लेखनीय सुधार हुआ है।
2. जवाहर ग्राम समृद्धि योजना – जवाहर ग्राम समृद्धि योजना पहले की जवाहर रोजगार योजना का पुनर्गठित, सुव्यवस्थित और व्यापक स्वरूप है। यह योजना अप्रैल, 1999 ई० को प्रारम्भ की गयी।
उद्देश्य – जवाहर ग्राम समृद्धि योजना का उद्देश्य गाँव में रहने वाले गरीबों को जीवनस्तर सुधारना और उन्हें लाभप्रद रोजगार के अवसर प्रदान कराना है। जवाहर ग्राम समृद्धि योजना दिल्ली और चण्डीगढ़ को छोड़कर समग्र देश में सभी ग्राम पंचायतों में लागू की गयी है। योजना में खर्च की जाने वाली राशि 75: 25 के अनुपात में केन्द्र व राज्य सरकार वहन करेगी। केन्द्रशासित प्रदेशों के मामले में सम्पूर्ण व्यय केन्द्र वहन करेगा। योजना को पूर्णत: ग्राम पंचायत स्तर पर ही लागू किया गया है।
योजना के अन्तर्गत मजदूरी राज्य सरकार निर्धारित करेगी तथा ग्राम पंचायतों को जनसंख्या के आधार पर धनराशि का आवंटन बिना किसी सीमा के किया जाएगा। योजना की 22.5 प्रतिशत धनराशि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की अलग लाभार्थी योजनाओं के लिए निर्धारित की गयी है।
3. कुटीर ज्योति कार्यक्रम – भारत में गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले ग्रामीण परिवारों के जीवन-स्तर में सुधार करने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 1988-89 में ‘कुटीर ज्योति कार्यक्रम प्रारम्भ किया। इसके अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता की रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले परिवारों को एक बत्ती विद्युत कनेक्शन उपलब्ध कराने के लिए ₹400 की सरकारी सहायता उपलब्ध कराई जाती है।
4. अन्नपूर्णा योजना – यह योजना निर्धन एवं असहाय वरिष्ठ नागरिकों को नि:शुल्क खाद्यान्न उपलब्ध कराने के लिए, केन्द्र सरकार के ग्रामीण विकास मन्त्रालय द्वारा मार्च, 1999 ई० में प्रारम्भ की गयी, जो निर्धनता रेखा से नीचे के 14 लाख नागरिकों के लिए लक्षित थी। अन्नपूर्णा योजना के अन्तर्गत पात्र नागरिकों को प्रति माह 10 किग्रा अनाज नि:शुल्क उपलब्ध कराने का प्रावधान है।
5. स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना (A.S.G.S.Y.) – स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना को 1 अप्रैल, 1999 ई० से प्रारम्भ किया गया था। इस योजना का उद्देश्य लघु उद्यमों को बढ़ावा देना तथा ग्रामीण निर्धनों को अपने स्व-सहायता समूहों (एस०एस०जी०) में संगठित करने में सहायता प्रदान करना है। यह योजना ग्रामीण निर्धनों को अपने स्व-सहायता समूहों के संगठन और उनकी क्षमता निर्माण, प्रशिक्षण, सामूहिक गतिविधियों का नियोजन, ढाँचागत विकास, बैंक ऋण और विपणन सम्बन्धी सहायता आदि जैसे स्वरोजगार के सभी पक्षों को कवच प्रदान करती है। इस योजना को केन्द्र और राज्यों के बीच 75 : 25 के लागत बँटवारे के अनुपात के आधार पर केन्द्रीय प्रायोजित योजना के रूप में कार्यान्वित किया जा रहा है।
स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना में इससे पहले के स्वरोजगार से सम्बद्ध कार्यक्रमों तथा समन्वित ग्राम विकास कार्यक्रम (IRDP), स्वरोजगार के लिए ग्रामीण युवाओं का प्रशिक्षण कार्यक्रम (TRYSEM), ग्रामीण क्षेत्र में महिला एवं बाल विकास कार्यक्रम (DwCRA), ग्रामीण दस्तकारों को उन्नत औजारों के किट की आपूर्ति का कार्यक्रम (SITRA), गंगा कल्याण योजना तथा दस लाख कुआँ योजना को भी समेकित कर दिया गया है। अब ये कार्यक्रम अलग से नहीं चल रहे हैं।
6. रोजगार आश्वासन योजना (EAS) – रोजगार आश्वासन योजना 2 अक्टूबर, 1993 ई० से ग्रामीण क्षेत्रों के 257 जिलों के 1,770 विकास-खण्डों में प्रारम्भ की गयी थी। बाद में यह योजना वर्ष 1997-98 तक देश के सभी 5,448 ग्रामीण पंचायत समितियों में विस्तारित कर दी गयी। इस योजना को एकल-मजदूरी रोजगार कार्यक्रम बनाने के लिए वर्ष 1999-2000 में इसकी पुनः संरचना की गयी और 75: 25 के लागत : अनुपात के आधार पर इसे केन्द्रीय प्रायोजित योजना के रूप में कार्यान्वित किया गया।
इस योजना का मुख्य उद्देश्य प्रत्येक परिवार से अधिकतम दो युवाओं को 100 दिन तक का लाभप्रद रोजगार उपलब्ध कराना है। योजना का दूसरा गौण उद्देश्य पर्याप्त रोजगार तथा विकास के लिए आर्थिक अधोरचना तथा सामुदायिक परिसम्पत्तियों का सृजन करना है। रोजगार आश्वासन एक माँग चालित कार्यक्रम है; अत: इसके अन्तर्गत भौतिक लक्ष्य निर्धारित नहीं किये गये हैं।
7. सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना (SGRY) – ग्रामीण क्षेत्रों में खाद्य सुरक्षा के लिए प्रस्तावित नयी सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना का शुभारम्भ प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 25 सितम्बर, 2001 ई० को किया। ग्रामीण विकास मन्त्रालय द्वारा संचालित की जाने वाली इस योजना के लिए के ₹10 हजार करोड़ वित्तीय वर्ष 2001-02 के लिए मन्त्रिमण्डल द्वारा स्वीकृत किये गये। ₹10 हजार करोड़ की इस राशि में से है ₹5,000 करोड़ का भुगतान भारतीय खाद्य निगम को उसके द्वारा उपलब्ध कराये जाने वाले अनाज के मूल्य के रूप में किया जाएगा, जबकि शेष ₹ 5,000 करोड़ की अदायगी लाभान्वित होने वाले श्रमिकों को मजदूरी के रूप में दी जाएगी।
पंचायती संस्थाओं के माध्यम से लागू की जाने वाली इस योजना के द्वारा प्रतिवर्ष 100 करोड़ मानव दिवस रोजगार सृजित होने की सम्भावना है। योजना को दो चरणों में लागू किया जाएगा। पहले चरण में इसमें जिला व ब्लॉक पंचायत को सम्मिलित किया जाएगा। योजना के अन्तर्गत आवंटित 50 प्रतिशत राशि इस चरण में व्यय होगी, जिसमें जिला परिषद् को 20 प्रतिशत व पंचायत समितियों को 30 प्रतिशत हिस्सा मिलेगा। दूसरे चरण में ग्राम पंचायतों को सम्मिलित किया जाएगा। योजना के अन्तर्गत 50 प्रतिशत राशि इस चरण में व्यय होगी। इस योजना के अन्तर्गत कार्य करने वाले बेरोजगारों को प्रतिदिन 5 किलो खाद्यान्न दिया जाएगा तथा शेष भुगतान मुद्रा में किया जाएगा। योजना के जरिये ग्रामीण क्षेत्रों में सूखे से निपटने के उपाय व भूसंरक्षण के साथ पारम्परिक जल स्रोतों के निर्माण, सड़क, विद्यालय सहित अन्य भवनों के निर्माण कार्य भी किये जाएँगे।
8. प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना (PMGY) – ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के जीवन-स्तर में सुधार लाने के समग्र उद्देश्य से स्वास्थ्य, प्राथमिक शिक्षा, पेयजल, आवास तथा ग्रामीण सड़कों जैसे पाँच महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में ग्रामीण स्तर पर विकास करने पर ध्यान देने के लिए यह योजना वर्ष 2000-01 में प्रारम्भ की गयी।
9. ग्रामीण आवास के लिए कार्य-योजना – 1991 ई० की जनगणना के अनुसार, लगभग 3.1 मिलियन परिवार बेघर हैं और अन्य 10.31 मिलियन परिवार कच्चे घरों में रहते हैं। इस समस्या की व्यापकता को देखते हुए वर्ष 1998 में राष्ट्रीय गृह आवासन नीति की घोषणा की गयी थी, जिसका उद्देश्य ‘सबके लिए आवास उपलब्ध कराना है और जो निर्धन एवं साधनहीन लोगों को लाभ देने पर जोर देते हुए प्रति वर्ष 20 लाख अतिरिक्त आवास यूनिटों (13 लाख ग्रामीण क्षेत्रों में और 7 लाख शहरी क्षेत्रों में) के निर्माण को सुसाध्य बनाती है। सरकार दसवीं योजनावधि के अन्त तक सभी के लिए आश्रय-स्थल सुनिश्चित करने के लक्ष्य के प्रति प्रतिबद्ध है। इन उद्देश्यों को पूरा करने के लिए ग्रामीण आवास हेतु एक व्यापक कार्य-योजना बनायी गयी है, जिनमें मुख्य रूप से अग्रलिखित योजनाएँ भी सम्मिलित हैं
⦁    इन्दिरा आवास योजना (IAY) – इन्दिरा गांधी आवास योजना का उद्देश्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और मुक्त किये गये बँधुआ मजदूरों की श्रेणियों से सम्बन्धित गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले परिवारों को सहायता प्रदान करना है।
⦁    प्रधानमन्त्री ग्रामोदय ग्रामीण आवास योजना – ग्राम स्तर पर स्थायी मानव-विकास का उद्देश्य पूरा करने के लिए प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना वर्ष 2000-01 के मध्य प्रारम्भ की गयी व्यापक प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना का एक भाग है। वर्ष 2001-02 के दौरान प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना के घटक ग्रामीण आश्रय-स्थल’ को कार्यान्वित करने के लिए 280 करोड़ उपलब्ध कराये गये हैं।
⦁    आवास हेतु हुडको को सहायता –  ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों और कम आय के वर्गों की आवश्यकता को पूरी करने और ग्रामीण क्षेत्रों में आवास वित्त पहुँचाने की स्थिति में सुधार करने के लिए, नौवीं पंचवर्षीय योजना की अवधि में हुडको को दी जाने वाली इक्विटी सहायता ₹ 5 करोड़ से बढ़ाकर ₹ 355 करोड़ कर दी गयी है।
उम्मीद की जा सकती है कि यदि इन योजनाओं को ईमानदारी और सत्यनिष्ठा से संचालित किया गया तो ग्रामीण विकास में हमें अनेक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन एवं सुधार देखने को मिलेंगे।

63.

ग्रामीण विकास हेतु कुछ सुझाव प्रस्तुत कीजिए।

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ग्रामीण विकास के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए निम्नलिखित सुझाव उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं

⦁    शिक्षित ग्रामीणों का गाँवों में ही निवास,
⦁    निर्वाचित जनप्रतिनिधियों से जवाबदेही सुनिश्चित की जाए,
⦁    जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण,
⦁    योजनाओं के स्वरूप का निर्धारण ग्रामीण क्षेत्रों की समस्याओं के आधार पर,
⦁    ग्रामीण क्षेत्रों में प्रौढ़-शिक्षा, बाल-शिक्षा कार्यक्रमों का विस्तार तथा
⦁    ग्रामीण विकास में बाधक कर्मचारियों को दण्डित किया जाए।

64.

प्रधानमन्त्री रोजगार योजना कब प्रारम्भ की गयी?

Answer»

प्रधानमन्त्री रोजगार योजना 2 अक्टूबर, 1993 ई० से प्रारम्भ की गयी।

65.

कृषि-श्रमिक सामाजिक सुरक्षा योजना क्या है?

Answer»

यह योजना जुलाई, 2001 ई० में 18 से 60 वर्ष की आयु-वर्ग के खेतिहर एवं मजदूरी पर काम करने वाले मजदूरों को सामाजिक सुरक्षा-लाभ देने के उद्देश्य से शुरू की गयी है।

66.

भारत में विभिन्न प्रकार की बेरोजगारी के नाम बताइए।

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(1) छिपी बेरोजगारी या अदृश्य बेरोजगारी।
(2) अल्प बेरोजगारी।
(3) पूर्ण बेरोजगारी।
(4) मौसमी बेरोजगारी।
(5) शिक्षित बेरोजगारी।

67.

राष्ट्रीय मानव संसाधन कार्यक्रम कब प्रारम्भ किया गया?

Answer»

वर्ष 1994 में राष्ट्रीय मानव संसाधन कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया।

68.

कुटीर ज्योति कार्यक्रम अब और किस उद्देश्य से प्रारम्भ किया गया?

Answer»

हरिजन और आदिवासी परिवारों सहित गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले ग्रामीण परिवारों के जीवन-स्तर में सुधार के लिए भारत सरकार ने वर्ष 1988-1989 में ‘कुटीर ज्योति कार्यक्रम प्रारम्भ किया। इसके अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले परिवारों को एक बत्ती विद्युत कनेक्शन उपलब्ध कराने के लिए ₹400 की सरकारी सहायता उपलब्ध कराई जाती है।

69.

कुटीर ज्योति कार्यक्रम कब प्रारम्भ किया गया?

Answer»

भारत सरकार ने 1988-89 में कुटीर ज्योति कार्यक्रम प्रारम्भ किया।

70.

राष्ट्रीय मानव संसाधन कार्यक्रम किस उद्देश्य के लिए प्रारम्भ किया गया था?

Answer»

ग्रामीण जलापूर्ति एवं स्वच्छता क्षेत्र की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए दक्ष व्यक्तियों के मानव संसाधन आधार की स्थापना हेतु 1994 ई० के प्रारम्भ में राष्ट्रीय मानव संसाधन कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया था।

71.

राजीव गांधी राष्ट्रीय पेयजल मिशन का उद्देश्य बताइए।

Answer»

राजीव गांधी राष्ट्रीय पेयजल मिशन का उद्देश्य सम्पूर्ण ग्रामीण जनसंख्या को आगामी कुछ वर्षों में ही पर्याप्त मात्रा में सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराना है।

72.

प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना प्रारम्भ हुई(क) 2000-01 ई० में(ख) 1994-95 में(ग) 1993-94 ई० में(घ) इनमें से कोई नहीं

Answer»

सही विकल्प है  (क) 2000-01 ई० में।

73.

सामाजिक वानिकी योजना का शुभारम्भ किस सन में हुआ था?(क) 1979 ई० में(ख) 1969 ई० में(ग) 1974 ई० में।(घ) 1984 ई० में

Answer»

सही विकल्प है  (क) 1979 ई० में।