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This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.

1.

स्वर्णिम क्रान्ति की व्याख्या करें।

Answer»

हम 1991-2003 ई० की अवधि को ‘स्वर्णिम क्रांति के प्रारम्भ का काल मानते हैं। इसी दौरान बागवानी में सुनियोजित निवेश बहुत ही उत्पादक सिद्ध हुआ और इस क्षेत्र में एक धारणीय वैकल्पिक रोजगार का रूप धारण किया। प्रमुख बागवानी फसलें हैं-फल-सब्जियाँ, रेशेदार फसलें, औषधीय तथा सुगन्धित पौधे, मसाले, चाय, कॉफी इत्यादि।

2.

स्वर्णिम क्रान्ति से क्या आशय है?

Answer»

बागवानी में सुनियोजित निवेश के फलस्वरूप तीव्र उत्पादकता एवं वैकल्पिक रोजगार की उपलब्धि को ‘स्वर्णिम क्रान्ति’ कहते हैं।

3.

पशुपालन से ग्रामीण परिवारों को क्या लाभ हैं?

Answer»

पशुपालन से ग्रामीण परिवारों की आय में अधिक स्थिरता आती है। इसके अतिरिक्त खाद्य सुरक्षा, परिवहन, ईंधन, पोषण आदि की व्यवस्था भी हो जाती है।

4.

गैर-कृषि उत्पादक क्रियाकलापों के कुछ उदाहरण दीजिए।

Answer»

गैर-कृषि उत्पादक क्रियाकलापों के कुछ उदाहरण हैं—खाद्य प्रसंस्करण, स्वास्थ्य सुविधाओं की अधिक उपलब्धता, घर और कार्यस्थल पर स्वच्छता संबंधी सुविधाएँ, सभी के लिए शिक्षा आदि।

5.

जैविक कृषि क्या है?

Answer»

जैविक कृषि खेती करने की वह विधि है जो पर्यावरणीय सन्तुलन को पुनः स्थापित करके उसका संवर्द्धन और संरक्षण करती है।

6.

किस अवधि को ‘स्वर्णिम क्रान्ति के प्रारम्भ का काल माना जाता है?(क) 1990-2002(ख) 1991-2003(ग) 1992-2004(घ) 1993-2005

Answer»

सही विकल्प है  (ख) 1991-2003

7.

ग्रामीण विकास से क्या आशय है?

Answer»

ग्रामीण विकास से आशय है—ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले अनेकानेक न्यून आय वर्ग के लोगों के जीवन-स्तर में सुधार लाना और उनके विकास-क्रम को आत्मपोषित बनाना।

8.

कृषि उपज को उपभोक्ताओं तक पहुँचाने का माध्यम क्या है?

Answer»

कृषि उपज को उपभोक्ताओं तक पहुँचाने का माध्यम ‘बाजार व्यवस्था है।

9.

विविधीकरण के स्रोत के रूप में पशुपालन, मत्स्यपालन और बागवानी के महत्त्व पर टिप्पणी करें।

Answer»

पशुपालन का महत्त्व
1. मवेशियों के पालन से परिवार की आय में स्थिरता आती है।
2. इससे खाद्य सुरक्षा, परिवहन, ईंधन, पोषण पूरे परिवार के लिए हासिल हो जाते हैं और खाद्य उत्पादन की अन्य क्रियाओं पर भी प्रभाव नहीं पड़ता है।
3. यह भूमिहीन कृषकों तथा छोटे व सीमान्त किसानों को आजीविका कमाने का वैकल्पिक साधन है।
4. इस क्षेत्र में महिलाएँ भी बहुत बड़ी संख्या में रोजगार पा रही हैं।
5. यह क्षेत्र अधिशेष कार्यबल को समायोजित कर रहा है।

मत्स्य पालन का महत्त्व
⦁    प्रत्येक जलागार; सागर, झीलें, प्राकृतिक तालाब; मत्स्य उद्योग से जुड़े समुदाय के लिए निश्चित जीवन उद्दीपक स्रोत है।
⦁    मत्स्य उत्पादन सकल घरेलू उत्पाद का 1.4% है।
⦁    समुद्र, झीलों, नदियों, तालाबों के आस-पास रहने वाले लोगों के लिए गैर-कृषि क्रियाकलाप आय का अच्छा स्रोत है।

बागवानी का महत्त्व
⦁    बागवानी फसलों से रोज़गार मिलता है।
⦁    बागवानी फसलों से भोजन एवं पोषण प्राप्त होता है।

⦁    यह क्षेत्र में अधिशेष कार्यबल समायोजित कर रहा है।

⦁     पुष्पारोपण, पौधशाला की देखभाल, फल-फूलों का संवर्द्धन और खाद्य प्रसंस्करण ग्रामीण महिलाओं के लिए अधिक आय वाले रोजगार बन गए हैं।
⦁    देश की 19% श्रम शक्ति को इस समय इन्हीं कार्यों से रोजगार मिला हुआ है।

10.

गैर-कृषि अर्थतंत्र में कुछ गतिशील उपघटकों के नाम बताइए।

Answer»

ऐसे कुछ उदाहरण हैं—कृषि प्रसंस्करण उद्योग, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग, चर्म उद्योग, पर्यटन आदि।

11.

सूचना प्रौद्योगिकी धारणीय विकास तथा खाद्य सुरक्षा की प्राप्ति में बड़ा महत्त्वपूर्ण योगदान करती है।टिप्पणी करें।

Answer»

आज सूचना प्रौद्योगिकी ने भारतीय अर्थव्यवस्था के अनेक क्षेत्रों में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया है। धारणीय विकास एवं खाद्य सुरक्षा को हासिल करने में सूचना प्रौद्योगिकी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। सूचना प्रौद्योगिकी का योगदान निम्नलिखित है

⦁    सूचनाओं और उपयुक्त सॉफ्टवेयर का प्रयोग कर सरकार सहज ही खाद्य असुरक्षा की आशंका | वाले क्षेत्रों का समय रहते पूर्वानुमान लगा सकती है।

⦁    इस प्रौद्योगिकी द्वारा उदीयमान तकनीकों, कीमतों, मौसम तथा विभिन्न फसलों के लिए मृदा की दशाओं की उपयुक्तता की जानकारी का प्रसारण हो सकता है।
⦁    ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार सृजन की इसमें क्षमता है।
⦁    यह लोगों के लिए ज्ञान एवं क्षमता का सृजन करती है।

12.

जैविक कृषि के लाभ और सीमाएँ स्पष्ट करें।

Answer»

जैविक कृषि के लाभ
1. जैविक कृषि महँगे आगतों के स्थान पर स्थानीय रूप से बने जैविक आगतों के प्रयोग पर निर्भर होती है।
2. परम्परागत फसलों की तुलना में जैविक फसलों में अधिक मात्रा में गौण मेटाबोलाइट्स पाए जाते
3. जैविक खेतों की मिट्टी में अधिक पौष्टिक तत्त्व पाए जाते हैं।
4. निवेश पर अच्छा प्रतिफल प्राप्त होता है।
5. जैविक कृषि में अधिक जैव सक्रियता तथा अधिक जैव विविधता पाई जाती है।
6. यह पद्धति हानिरहित एवं पर्यावरण के लिए मित्र हैं।

जैविक कृषि की सीमाएँ
1. जैविक कृषि अत्यधिक श्रमगहन होती है।
2. जैविक उत्पादन गैर-जैविक से अधिक महँगा होता है।
3. भारतीय किसान जैविक कृषि से अनभिज्ञ हैं तथा उसके प्रति उत्सुक भी नहीं है।
4. इसके लिए आधार संरचना अपर्याप्त है।
5. जैविक उत्पादों के लिए बाजार की कमी है।
6. परम्परागत कृषि की तुलना में जैविक कृषि का उत्पादन औसतन 20% कम होता है।
7. बिना मौसम के फसल उगाने के कम विकल्प हैं।

13.

जैविक कृषि का प्रयोग करने वाले किसानों को प्रारम्भिक वर्षों में किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है?

Answer»

जैविक कृषि में संलग्न कृषकों की समस्याएँ जैविक कृषि का प्रयोग करने वाले किसानों को प्रारम्भिक वर्षों में निम्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है

⦁    प्रारम्भिक वर्षों में जैविक कृषि की उत्पादकता रासायनिक कृषि की तुलना में कम रहती है।

⦁    छोटे और सीमांत किसानों के लिए बड़े स्तर पर इसे अपनाना कठिन होता है।

⦁    जैविक उत्पाद रासायनिक उत्पादों की अपेक्षा शीघ्र खराब हो जाते हैं।

⦁    गैर-मौसमी फसलों का जैविक कृषि में उत्पादन बहुत सीमित होता है।

14.

ग्रामीण विकास को इतना अधिक महत्त्व क्यों दिया जा रहा है?

Answer»

आज भारत की लगभग 64% जनसंख्या कृषि पर आधारित है और कृषि की उत्पादकता का स्तर अत्यधिक निम्न हैं यही कारण है कि वह अत्यधिक निर्धन है। अतः भारत की वास्तविक उन्नति के लिए ग्रामीण क्षेत्र की उन्नति आवश्यक है।

15.

ग्रामीण विकास में मुख्य बाधाएँ क्या हैं?

Answer»

ग्रामीण विकास में मुख्य बाधाएँ हैं-कृषि की संवृद्धि दर में ह्रास, अपर्याप्त आधारिक संरचना, वैकल्पिक रोजगार के अवसरों का अभाव, अनियत रोजगार में वृद्धि।

16.

अतिलघु साख कार्यक्रम क्या है?

Answer»

इसमें प्रत्येक सदस्य न्यूनतम अंशदान करता है। इस राशि में से जरूरतमंद सदस्यों को उचित ब्याज दर पर ऋण दिया जाता है।

17.

किसानों को किन उद्देश्यों के लिए ऋण लेने पड़ते हैं?

Answer»

किसानों को उत्पादक (बीज, उर्वरक, यंत्र आदि खरीदने) तथा अनुत्पादक (पारिवारिक, निर्वाह व्यय, शादी, मृत्यु तथा धार्मिक अनुष्ठानों) कार्यों के लिए ऋण लेने पड़ते हैं।

18.

नाबार्ड क्या है?

Answer»

सन् 1982 में स्थापित नाबार्ड सम्पूर्ण ग्रामीण वित्त व्यवस्था के समन्वय के लिए एक शीर्ष संस्थान हैं।

19.

उत्पादक गतिविधियों के विविधीकरण के दो पक्ष कौन-कौन से हैं?

Answer»

उत्पादक-गतिविधियों के ऐसे दो पक्ष हैं-

1. फसलों के उत्पादन की विविधीकरण।
2. श्रमशक्ति को कृषि से हटाकर गैर कृषि क्षेत्रकों में लगाना।

20.

जैविक कृषि क्या है? यह धारणीय विकास को किस प्रकार बढ़ावा देती है?

Answer»

जैविक कृषि एक धारणीय कृषि प्रणाली है जो भूमि की दीर्घकालीन उपजाऊ शक्ति को बनाए रखती है तथा उच्चकोटि के पौष्टिक खाद्य का उत्पादन करने के लिए भूमि के सीमित संसाधनों का कम उपयोग करती है। भारत में परम्परागत कृषि पूरी तरह से रासायनिक उर्वरकों और विषजन्य कीटनाशकों पर आधारित है। ये विषाक्त तत्त्व हमारी खाद्य पूर्ति व जल स्रोतों में नि:सरित हो जाते हैं और हमारे पशुधन को हानि पहुँचाते हैं। साथ ही इसके कारण मृदा की उर्वरता भी क्षीण हो जाती है और हमारे प्राकृतिक पर्यावरण का विनाश हो जाता है। दूसरी ओर जैविक कृषि में रसायनों का प्रयोग प्रतिबंधित होता है। इसमें कृषि में महँगे बीजों, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशक दवाइयों की जगह स्थानीय आगतों का प्रयोग किया जाता है। अतः इससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुँचता है और नवीन तकनीक के प्रयोग को प्रोत्साहन मिलता है।

21.

छोटे खेतों के विविधीकरण के पक्ष में उपयुक्त तर्क दीजिए।

Answer»

छोटे खेतों के विविधीकरण के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं

⦁    निर्वाह खेती व्यापारिक खेती में बदलेगी। इससे उनकी आय में वृद्धि होगी।

⦁    वे खाली समय में पशुपालन, मत्स्य पालन, कृषि वानिकी व बागवानी आदि गैर-कृषि उत्पादक | कार्यों में लग जाएँगे।

⦁    उत्पादन की अनिश्चितता तथा कीमत उच्चावचनों की जोखिम कम हो जाएगी।

⦁    फसल-पशुधन, विविधीकृत खेत, चारे, फसल अवशेष तथा अन्य फसल चक्रानुक्रम के निम्न| मूल्य वाले घटकों को अधिक कुशलतापूर्वक उपयोग कर सकेंगे और खाद का लाभ उठा सकेंगे।

22.

विविधीकरण से क्या लाभ होगा?

Answer»

विविधीकरण द्वारा हम न केवल खेती से जोखिम को कम करने में सफल होंगे बल्कि ग्रामीण जनसमुदाय को उत्पादक और वैकल्पिक धारणीय आजीविका के अवसर भी उपलब्ध हो पाएँगे।

23.

ग्रामीण क्षेत्रों के छोटे किसानों, सामान्य कारीगरों तथा श्रमिकों की साख सम्बन्धी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए किन बैंकों की स्थापना की गई है?(क) स्टेट बैंकों की ।(ख) पंजाब नेशनल बैंकों की(ग) क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की ।(घ) इनमें से कोई नहीं

Answer»

सही विकल्प है  (ग) क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की 

24.

सन् 1969 में ग्रामीण साख आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किस प्रकार की व्यवस्था अपनाई गई?

Answer»

ग्रामीण साख आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सन् 1969 में बहुसंस्था व्यवस्था अपनाई गई थी।

25.

ग्रामीण विकास में साख के महत्त्व पर चर्चा करें।

Answer»

कृषि साख से अभिप्राय कृषि उत्पादन के लिए आवश्यक भौतिक आगतों को खरीदने की क्षमता से है। ग्रामीण विकास में साख का महत्त्व निम्नलिखित है

⦁    किसान को अपनी दैनिक कृषि संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए साख की आवश्यकता होती है।

⦁    भारतीय किसानों को अपने पारिवारिक निर्वाह, खर्च, शादी, मृत्यु तथा धार्मिक अनुष्ठानों के लिए भी साख की आवश्यकता पड़ती है।

⦁    किसानों को मशीनरी खरीदने, बाड़ लगवाने, कुआँ खुदवाने जैसे कार्यों के लिए भी साख की आवश्यकता होती है।

⦁    साख की मदद से किसान एवं गैर-किसान मजदूर ऋणजाल से मुक्त हो जाते हैं।

⦁    साख की सहायता से कृषि फसलों एवं गैर-कृषि क्षेत्र में रोजगार के अवसरों में विविधता उत्पन्न हो जाती है।

26.

गरीबों की ऋण आवश्यकताएँ पूरी करने में अतिलघु साख व्यवस्था की भूमिका की व्याख्या करें।

Answer»

औपचारिक साख व्यवस्था में रह गई कमियों को दूर करने के लिए स्वयं सहायता समूहों (एच०एच०जी०) का भी ग्रामीण साख में प्रादुर्भाव हुआ है। स्वयं-सहायता समूहों ने सदस्यों की ओर से न्यूनतम योगदान की सहायता से लघु बचतों को प्रोत्साहित किया है। इन लघु बचतों से एकत्र राशि में से जरूरतमंद सदस्यों को ऋण दिया जाता है। उस ऋण की राशि छोटी-छोटी किस्तों में आसानी से लौटायी जाती है। ब्याज की दर भी उचित व तर्कसंगत रखी जाती है। इस प्रकार की साख उपलब्धता को अतिलघु साख कार्यक्रम भी कहा जाता है। इस प्रकार से स्वयं सहायता समूहों ने महिलाओं के सशक्तीकरण में सहायता की है। किंतु अभी तक इन ऋण सुविधाओं का प्रयोग किसी-न-किसी प्रकार के उपयोग के लिए। ही हो रहा है व कृषि कार्यों के लिए बहुत कम राशि ली जा रही है।

27.

ग्रामीण विकास का क्या अर्थ है? ग्रामीण विकास से जुड़े मुख्य प्रश्नों का स्पष्ट करें।

Answer»

ग्रामीण विकास से आशय ग्रामीण विकास एक व्यापक शब्द है। यह मूलतः ग्रामीण अर्थव्यवस्था के उन घटकों के विकास पर बल देता है जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था के सर्वांगीण विकास में पिछड़ गए हैं। ग्रामीण विकास से जुड़े मुख्य बिन्दु इस प्रकार हैं
⦁    साक्षरता, विशेषतः नारी शिक्षा,

⦁    स्वास्थ्य एवं स्वच्छता,

⦁    भूमि सुधार,

⦁    समाज के हर वर्ग के लिए उत्पादक संसाधनों का विकास,

⦁    आधारिक संरचना का विकास जैसे—बिजली, सड़कें, अस्पताल, सिंचाई, साख, विपणन आदि तथा
⦁    निर्धनता उन्मूलन, सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के जीवन-स्तर में सुधार।

28.

कृषि विपणन से क्या अभिप्राय है?

Answer»

कृषि विपणन वह प्रक्रिया है जिससे देश भर में उत्पादित कृषि पदार्थों का संग्रह, भण्डारुण, प्रसंस्करण, परिवहन, पैकिंग, वर्गीकरण और वितरण आदि किया जाता है।

29.

सरकार द्वारा ग्रामीण बाजारों के विकास के लिए किए गए प्रयासों की व्याख्या करें।

Answer»

ग्रामीण बाजारों के विकास हेतु सरकारी प्रयास सरकार द्वारा ग्रामीण बाजारों के विकास के लिए किए गए प्रयास इस प्रकार हैं

1. व्यवस्थित एवं पारदर्शी विपणन की दशाओं का निर्माण करने के लिए बाजार का नियमन करना-इस नीति से कृषक और उपभोक्ता दोनों ही लाभान्वित हुए हैं, परंतु अभी भी लगभग 27,000 ग्रामीण क्षेत्रों में अनियत मंडियों को विकसित किए जाने की आवश्यकता है।
2. सड़कों, रेलमार्गों, भण्डारगृहों, गोदामों, शीतगृहों और प्रसंस्करण इकाइयों के रूप में भौतिक आधारिक संरचनाओं का प्रावधान–वर्तमान आधारिक सुविधाएँ बढ़ती हुई माँग को देखते हुए अपर्याप्त हैं और उनमें पर्याप्त सुधार की आवश्यकता है।
3. सरकारी विपणन द्वारा किसानों को अपने उत्पादों का उचित मूल्य सुलभ करना।
4. नीतिगत साधन को अपनाना, जैसे

(क) 24 कृषि उत्पादों के लिए न्यूनतम मूल्य सुनिश्चित करना।
(ख) भारतीय खाद्य निगम द्वारा गेहूँ और चावल के सुरक्षित भंडारों का रख-रखाव।
(ग) सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से खाद्यान्नों और चीनी का वितरण। इन नीतिगत साधनों का उद्देश्य क्रमशः किसानों को उनकी उपज के उचित दाम दिलाना तथा गरीबों को सहायिकी युक्त कीमत पर वस्तुएँ उपलब्ध कराना रहा है।

30.

आजीविका को धारणीय बनाने के लिए कृषि का विविधीकरण क्यों आवश्यक है?

Answer»

कृषि विविधीकरण के दो पहलू हैं1. प्रथम पहलू फसलों के उत्पादन के विविधीकरण से संबंधित है। 2. दूसरा पहलू श्रमशक्ति को खेती से हटाकर अन्य संबंधित कार्यों जैसे–पशुपालन, मुर्गी और मत्स्य पालन आदि; तथा गैर-कृषि क्षेत्र में लगाना है। इस विविधीकरण की इसलिए आवश्यकता है क्योंकि सिर्फ खेती के आधार पर आजीविका कमाने में जोखिम बहुत अधिक होती है। विविधीकरण द्वारा हम न केवल खेती से जोखिम को कम करने में सफल हो सकते हैं बलिक ग्रामीण जन-समुदाय के लिए उत्पादक और वैकल्पिक धारणीय आजीविका के अवसर भी उपलब्ध हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त अन्य प्रकार की उत्पादक और लाभप्रद गतिविधियों में प्रसार के माध्यम से ही हम ग्रामीण जनसमुदाय को अधिक आय कमाकर गरीबी तथा अन्य विषम परिस्थितियों का सामना करने में समर्थ बना सकते हैं।

31.

बहुसंस्था व्यवस्था की रचना का उद्देश्य क्या है?

Answer»

बहुसंस्था व्यवस्था की रचना का उद्देश्य सस्ती ब्याज दरों पर पर्याप्त ऋण की पूर्ति करना है।

32.

भारत के ग्रामीण विकास में ग्रामीण बैंकिंग व्यवस्था की भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।

Answer»

भारत में ग्रामीण साख आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बहुसंस्था व्यवस्था अपनाई गई है। इसके बाद 1982 ई० में राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की स्थापना की गई। यह बैंक सम्पूर्ण ग्रामीण वित्त व्यवस्था के समन्वय के लिए एक शीर्ष संस्थान है। ग्रामीण बैंक की संस्थागत संरचना में आप निम्नलिखित संस्थाएँ शामिल हैं
⦁    व्यावसायिक बैंक,

⦁    क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक,

⦁    सहकारी बैंक और

⦁    भूमि विकास बैंक।
इसे बहु-संस्था व्यवस्था की रचना का उद्देश्य सस्ती ब्याज दरों पर पर्याप्त ऋण की पूर्ति करना है। परंतु यह औपचारिक साख व्यवस्था अपने उद्देश्यों को पूरा कर पाने में विफल रही है। इससे समन्वित ग्रामीण विकास नहीं हो पाया है। चूंकि इसके लिए ऋणाधार की आवश्यकता थी, अत: बहुसंख्य ग्रामीण परिवारों का एक बड़ा अनुपात इससे अपने आप वंचित रह गया। अतः अर्तिलघु साख प्रणाली को लागू करने के लिए स्वयं सहायता समूहों का गठन किया गया। किंतु अभी भी हमारी बैंकिंग व्यवस्था उचित नहीं बन पायी है। इसका प्रमुख कारण औपचारिक साख संस्थाओं का चिरकालिक निम्न निष्पादन और किसानों द्वारा बड़े पैमाने पर किस्तों को न चुका पाना है।

33.

किसान को किस प्रकार की आवश्यकताओं के लिए साख की आवश्यकता होती है? भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में साख व्यवस्था पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।

Answer»

ग्रामीण विकास के लिए वित्त एक अनिवार्य आवश्यकता है। ग्रामीण क्षेत्रों की समस्याएँ इतनी विशाल हैं कि पर्याप्त वित्तीय सुविधाओं के अभाव में यहाँ विकास नहीं हो सकता। भारत में कृषि कार्य में लिप्त किसान प्राय: एक निर्धन व्यक्ति होता है, इसके पास सम्पत्ति के नाम पर भूमि का छोटा-सा टुकड़ा भी नहीं होता। भूमि, हल, बैल, बीज, खाद तथा सिंचाई सुविधाओं की व्यवस्था के लिए उसे समय पर वित्तीय साधनों की आवश्यकता होती है। ग्रामीण समुदाय की निर्धनता, कृषि उत्पादन की लम्बी प्रक्रिया और उसकी अनिश्चितता आदि तत्त्वों ने वित्त की समस्या को और भी जटिल बना दिया है। कृषि की प्रकृति ऐसी विचित्र है कि कृषक को केवल उत्पादक ऋणों की ही नहीं अपितु अनुत्पादक ऋणों की भी आवश्यकता होती है।

भारतीय कृषकों की साख संबंधी आवश्यकताएँ

सामान्य रूप से किसानों की साख संबंधी आवश्यकताएँ तीन प्रकार की होती हैं-
1. अल्पकालीन ऋण- ये ऋण प्रायः 15 माह की अवधि तक के होते हैं। ये ऋण मुख्यतः बीज, | खाद आदि के खरीदने तथा पारिवारिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु लिए जाते हैं।
2. मध्यमकालीन ऋण- ये ऋण प्राय: 15 माह से अधिक परंतु 5 वर्ष से कम की अवधि हेतु लिए जाते हैं। इस प्रकार के ऋणों की आवश्यकता प्रायः पशु व कृषि उपकरणों को खरीदने, कुआँ खुदवाने व भूमि-सुधार के लिए पड़ती है।
3. दीर्घकालीन ऋण- इन ऋणों की अवधि प्रायः 6 वर्ष से 20 वर्ष तक की होती है। ये ऋण सामान्यतः पुराने कर्जा को चुकाने, भूमि खरीदने, ट्रैक्टर खरीदने, भूमि पर स्थायी सुधार करने आदि के लिए किसान प्राप्त करता है। जब से कृषि विकास की नई नीति को अपनाया गया है, देश में अल्पकालीन, मध्यमकालीन और दीर्घकालीन सभी प्रकार की साख में पर्याप्त वृद्धि हुई है।

भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में साख व्यवस्था

ग्रामीण क्षेत्रों में साख के मुख्य स्रोत निम्नलिखित हैं
1. महाजन, साहूकार एवं देशी बैंक– महाजन एवं साहूकार कृषि के साथ-साथ लेन-देन का कार्य भी करते हैं। ये लोग कृषि के अतिरिक्त अन्य कार्यों के लिए भी पैसा उधार देते हैं, किन्तु साख के इस स्रोत के अनेक दोष हैं जैसे—उसकी ब्याज दर ऊँची होती है, वह ब्याज मूलधन देने से पूर्व ही काट लेता है, अनेक प्रकार के खर्चे काट लिए जाते हैं। देशी बैंकर बैंकिंग एवं गैर-बैंकिंग दोनों ही प्रकार के कार्य सम्पन्न करते हैं। ये भी ऋणों पर ऊँची ब्याज दर वसूल करते
2. बहुसंस्था व्यस्था का विकास- ग्रामीण साख आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बहुसंस्था व्यवस्था का सहारा लिया गया है। इसमें निम्नलिखित संस्थाएँ सम्पिलित हैं

⦁    व्यापारिको बैंक- व्यापारिक बैंक कृषि विस्तार के लिए अल्पकालीन एवं मध्यमकालीन दोनों प्रकार के ऋण प्रदान करते हैं। अब इनकी अधिकांश शाखाएँ ग्रामीण क्षेत्रों में ही खोली जा रही हैं। राष्ट्रीयकरण के उपरांत कृषि विकास के क्षेत्र में वाणिज्यिक बैंकों की प्रगति संतोषजनक रही है।
⦁    क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक- ग्रामीण क्षेत्रों के छोटे किसानों, सामान्य कारीगरों तथा भूमिहीन श्रमिकों की साख संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की स्थापना की गई है।
⦁    सहकारी साख समितियाँ– सहकारी साख समितियों का प्रमुख उद्देश्य किसानों को साख प्रदान करना है। भारत में सहकारी साख व्यवस्था स्तूपाकार है–ग्रामीण स्तर पर सहकारी साख समितियाँ, जिला स्तर पर केन्द्रीय सहकारी समितियाँ तथा राज्य स्तर पर राज्य सहकारी बैंक। ये कृषि विकास के लिए कम ब्याज दर पर पर्याप्त साख सुविधाएँ प्रदान करती हैं।
⦁    भूमि बन्धक अथवा भूमि विकास बैंक—ये बैंक भूमि की जमानत पर किसानों को दीर्घकालीन ऋण देते हैं। भारत में राज्य स्तर पर केन्द्रीय भूमि बन्धक बैंकों की तथा जिला स्तर पर प्राथमिक भूमि बन्धक बैंकों की स्थापना की गई है।
⦁    नाबार्ड– सन् 1982 में सम्पूर्ण ग्रामीण वित्त के समन्वयन के लिए एक शीर्ष संस्थान-राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की स्थापना की गई। नाबार्ड द्वारा दिए जाने वाले ऋणों के प्रमुख क्षेत्र हैं-लघु सिंचाई, भूमि विकास, कार्य यन्त्रीकरण, बागान, मुर्गीपालन, भेड़-पालन, सूअर पालन, मत्स्य पालन, दुग्धशालाओं का विकास व संग्रहण आदि।

⦁    स्वयं सहायता समूह- होल ही में ग्रामीण साख व्यवस्था में स्वयं सहायता समूहों का प्रादुर्भाव हुआ है। इसके अंतर्गत प्रत्येक सदस्य न्यूनतम अंशदान करता है। एकत्रित राशि में से जरूरतमंद सदस्यों को ऋण दिया जाता है। इस ऋण की राशि छोटी-छोटी किस्तों में लौटायी जाती है। ब्याज की दर भी उचित रखी जाती है। इसे अति लघु साख कार्यक्रम कहते हैं।

34.

भारत में साहूकारों व महाजनों की वित्त व्यवस्था के दोष बताइए।

Answer»

भारत में पारम्परिक वित्त व्यवस्था के दोष साहूकारों व महाजनों की पारम्परिक कृषि वित्त व्यवस्था के निम्नलिखित दोष रहे हैं

⦁    साहूकार की कार्य-पद्धति लोचदार होती है और वह समय, परिस्थिति तथा व्यक्ति के अनुसार उनमें परिवर्तन करता रहता है।

⦁    साहूकार अपने ऋणों पर ब्याज की उच्च दर वसूल करता है।

⦁    साहूकार मूलधन देते समय ही पूरे वर्ष का ब्याज अग्रिम रूप में काट लेते हैं और इसकी कोई | रसीद भी नहीं देते हैं।

⦁    अनेक साहूकार ऋण देते समय कोरे कागजों पर हस्ताक्षर या अँगूठे की निशानी ले लेते हैं और बाद में उनमें अधिक रकम भर लेते हैं।

⦁    बहुत-से स्थानों पर ऋण देते समय ऋण की रकम में से अनेक प्रकार के खर्चे काट लेते हैं। कभी-कभी यह रकम 5% से 10% तक हो जाती है।

⦁    साहूकार कृषकों को अनुत्पादक कार्यों के लिए ऋण देकर उन्हें फिजूलखर्ची बना देते हैं।

⦁    साहूकार समय-समय पर हिसाब-किताब में भी गड़बड़ करती रहती है।

⦁    साहूकार कृषकों को ऋण देने के बाद उन्हें अपनी फसल कम कीमत पर बेचने के लिए विवश करते हैं।