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51.

‘माता ! मुझे आश्रय चाहिए’-यह कथन किसका है?

Answer»

यह कथन मुगल बादशाह हुमायूँ का है।

52.

चौसा के मुगल-पठान युद्ध को बहुत दिन बीत गये। ममता अब सत्तर वर्ष की वृद्धा है। वह अपनी झोपड़ी में एक दिन पड़ी थी। शीतकाल का प्रभात था। उसका जीर्ण कंकाल खाँसी से गूंज रहा था। ममता की सेवा के लिए गाँव की दो-तीन स्त्रियाँ उसे घेरकर बैठी थीं; क्योंकि वह आजीवन सबके सुख-दु:ख की सहभागिनी रही।(अ) प्रस्तुत अवतरण के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।(स) 1. ‘मुगल-पठान युद्ध’ से क्या आशय है ? यह किनके बीच हुआ था ?2. जीर्ण-कंकाल खाँसी से गूंज रहा था।’ से क्या आशय है ?[ वृद्धा = बुढ़िया। शीत = सर्दी। प्रभात = प्रात:काल।]

Answer»

(अ) प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक  ‘हिन्दी’ के ‘गद्य-खण्ड’ में संकलित ‘ममता’ नामक कहानी से उधृत है। इसके लेखक छायावादी युग के प्रवर्तक श्री जयशंकर प्रसाद हैं।
अथवा निम्नवत् लिखिए
पाठ का नाम-ममता। लेखक का नाम-श्री जयशंकर प्रसाद।

(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या – लेखक कहता है कि शीतकाल को प्रात:काल था। ममता को खाँसी थी। खाँसी के कारण उसे श्वास लेने में भी कठिनाई महसूस हो रही थी। उसका गला सँध रहा था। श्वास के साथ बलगम की आवाज स्पष्ट सुनायी दे रही थी। ममता अकेली थी। उसका किसी से इस संसार में खून का रिश्ता नहीं था और न तो उसका कोई रिश्तेदार ही था। जीवन के दुःखपूर्ण इन अन्तिम क्षणों में यदि कोई उसकी मदद करने वाला था तो केवल उस गाँव की दो या तीन औरतें जो उसके पास उसकी सेवा करने में संलग्न थीं, उसे घेरकर बैठी हुई थीं क्योंकि ममता भी मानवता की साक्षात् प्रतिमूर्ति थी। उसने भी निराश्रयों को आश्रय दिया था। सभी के सुख-दु:ख में सहभागिनी रही थी।

(स) 1. मुगल-पठान युद्ध से आशय हुमायूँ (मुगल) और शेरशाह (पठान) के मध्य हुए चौसा के युद्ध से है। यह युद्ध सन् 1536 ई० के आसपास हुआ था।

2. जीर्ण कंकाल से आशय कंकालवत् रह गये शरीर से है। ममता को खाँसी  इतनी तेजी से आ रही थी कि वह कंकाल मात्र रह गये शरीर में से गूंजती हुई बाहर आती प्रतीत हो रही थी।

53.

निम्नलिखित अवतरणों को पढ़कर नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर दीजिएअब तुम इसका मकान बनाओ या महल, मैं अपने चिर विश्राम-गृह में जाती हूँ।”(1) वक्ता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।(2) किसके लिए क्या बनाने की चर्चा हो रही थी?(3) बनवाने वाले कौन थे? उन्हें किसने भेजा था?(4) स्मारक के रूप में क्या बनाया गया और उस पर क्या लिखा गया?

Answer»

(1) वक्ता का नाम ममता था। वह रोहतास दुर्ग के मंत्री चूड़ामणि की पुत्री थी जो पिता की मृत्यु के बाद काशी में आकर एक कुटिया में अपना जीवन-यापन कर रही थी।

(2) वृद्धा ममता की झोंपड़ी को हटाकर उसके स्थान पर महल बनाने की बात हो रही थी।

(3) बनवाने वाले मुग़ल सैनिक थे। उन्हें बादशाह अकबर ने भेजा था।

(4) स्मारक के रूप में अष्टकोण मंदिर बनवाया गया। उस पर लगाये शिलालेख पर लिखा था-‘सात देशों के नरेश हुमायूँ ने एक दिन यहाँ विश्राम किया था। उनके पुत्र अकबर ने यह गगनचुंबी मंदिर बनवाया।’

54.

ममता महत्वपूर्ण गद्यांशों की सन्दर्भ-प्रसंग सहित व्याख्याएँ।“परन्तु तुम भी वैसे ही क्रूर हो, वही भीषण रक्त की प्यास, वही निष्ठुर प्रतिबिम्ब, तुम्हारे मुख पर भी है! सैनिक! मेरी कुटी में स्थान नहीं। जाओ, कहीं दूसरा आश्रय खोज लो।”“गला सूख रहा है, साथी छूट गये हैं, अश्व गिर पड़ा है-इतना थका हुआ हूँ-इतना!” कहते-कहते वह व्यक्ति धम से बैठ गया और उसके सामने ब्रह्माण्ड घूमने लगा। स्त्री ने सोचा, यह विपत्ति कहाँ से आई। उसने जल दिया, मुगल के प्राणों की रक्षा हुई। वह सोचने लगी- “ये सब विधर्मी दया के पात्र नहीं-मेरे पिता का वध करने वाले आततायी!” घृणा से उसका मन विरक्त हो गया। ..स्वस्थ होकर मुगल ने कहा- “माता! तो फिर मैं चला जाऊँ?”स्त्री विचार कर रही थी-“मैं ब्राह्मणी हूँ, मुझे तो अपने धर्म-अतिथिदेव की उपासना का पालन करना चाहिए। परन्तु यहाँ…..नहीं नहीं ये सब विधर्मी दया के पात्र नहीं। परन्तु यह दया तो नहीं……कर्तव्य करना है। तब?”

Answer»

कठिन-शब्दार्थ- क्रूर = निर्दयी। निष्ठुर = कठोर, निर्दयतापूर्ण। प्रतिबिम्ब = छाया। आश्रय = शरणस्थल। ब्रह्माण्ड = पूरा संसार। विधर्मी = अपने धर्म के अलावा किसी अन्य धर्म के अनुयायी। आततायी = दुष्ट, अशांति फैलाने वाला। विरक्त = स्नेहहीन। अतिथि देव की उपासना = अतिथि को देवता मानकर उसका सत्कार करना।

सन्दर्भ एवं प्रसंगः-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘सृजन’ में संकलित ममता शीर्षक कहानी से उदधृत है। इसके रचयिता जयशंकर प्रसाद हैं।

मुगल ने ममता से शरण माँगी और उसके झोपड़ी में रात्रि विश्राम करने की अनुमति चाही। उसने बताया कि वह चौसा युद्ध में शेरशाह से परास्त होकर भटक रहा है। वह थका हुआ है तथा किसी सुरक्षित स्थान पर रात बिताना चाहता है।

व्याख्या–ममता ने मुगल की बात सुनकर कहा-किन्तु तुम भी शेरशाह के समान ही निर्दयी लगते हो। तुम्हारे मुख पर वैसी ही निर्दयता की झलक है। तुम भी उसी प्रकार खून के प्यासे हो। यह कहते हुए ममता ने उसको अपनी झोपड़ी में शरण देने से मना कर दिया। उसने कह दिया कि वह कोई दूसरा स्थान तलाश करे। उस मुगल ने बताया कि उसे जोर की प्यास लगी है। उसका गला सूख रहा है। उसके साथी पीछे छूट गए हैं। उसका घोड़ा गिर पड़ा है। वह बहुत ज्यादा थका हुआ है। यह बताते-बताते वह धम्म की आवाज के साथ जमीन पर बैठ गया। समस्त सृष्टि उसको चक्कर काटती हुई प्रतीत हुई। उसको इस दयनीय दशा में देखकर ममता ने सोचा कि उसके सामने यह आपत्ति कहाँ से आ गई। उसने मुगल को पानी पिलवाया तो उसकी जान में जान आई। वह कुछ स्वस्थ हुआ। उसके प्राण बचे।

ममता ने सोचा-वह भी शेरशाह की तरह दूसरे और पराये धर्म को मानने वाला है। इन पर दया नहीं करनी चाहिए। इन दुष्टों ने ही मेरे पिता का वध किया था। उसके मन में घृणा की भावना उत्पन्न हो गई। उस कारण उसके मन से स्नेह का भाव समाप्त हो गया। मुगल कुछ स्वस्थ हुआ तो उसने पूछा-माता! तो मैं चला जाऊँ? ममता ने विचार किया कि वह ब्राह्मण जाति की स्त्री है। उसको अपने अतिथि सत्कार के कर्तव्य से विमुख नहीं होना चाहिए। फिर उसने सोचा कि उसको उन सभी विधर्मियों पर दया नहीं दिखानी चाहिए। वे दया के योग्य नहीं हैं। उसके मन में द्वन्द्व हो रहा था। वह सोच रही थी कि यह दया नहीं है। यह तो अतिथि सत्कार के अपने कर्तव्य का पालन करना है-तब वह क्या करे?

विशेष-

(i) मुगल थका और प्यासा था। उसने ममता से शरण माँगी।
(ii) मुगल विधर्मी था। उसको देखकर ममता को क्रूर शेरशाह का स्मरण हो आया। उसे शरण देना उचित नहीं लगा। परन्तु ममता के मन में शरण देने न देने तथा शरणागत वत्सलता दिखाने या न दिखाने के भावों के बीच संघर्ष होने लगा।
(iii) भाषा संस्कृतनिष्ठ, परिमार्जित तथा प्रवाहपूर्ण है।
(iv) शैली वर्णनात्मक तथा विचारात्मक है।

55.

ममता की आयु कितनी थी?(क) साठ(ख) सत्तर(ग) पचास(घ) अस्सी।

Answer»

सही विकल्प है (ख) सत्तर

56.

प्रसाद जी की कहानी ‘ममता’ में इतिहास और कल्पना का अद्भुत मिश्रण हुआ है-इस कथन की समीक्षा करें।

Answer»

प्रसाद जी ने अपनी अनेक कहानियों में कथानक इतिहास से चुने हैं, जिन्हें कल्पना पर पुट देकर ऐतिहासिक घटनाओं को अत्यंत मार्मिक बना दिया है। ममता’ भी उनकी ऐतिहासिक कहानियों में से एक है। ‘ममता’ शीर्षक कहानी में रोहतास दुर्ग के ब्राह्मण मंत्री चूड़ामणि की इकलौती पुत्री ‘ममता’ के त्याग, कर्तव्य पालन और ममत्व का चित्रण किया गया है। यह विधवा होने पर रिश्वत के रूप में दी जाने वाली राशि को ठुकरा देती है जिसे उसका पिता यवनों से प्राप्त कर अपने दुर्ग को उन्हें सौंपने को तैयार हो जाता है। पिता की हत्या हो जाने पर तथा दुर्ग पर शेरशाह सूरी का अधिकार हो जाने के कारण ममता चुपचाप काशी के उत्तर में स्थित धर्मचक्र विहार के खंडहरों में एक झोंपड़ी बनाकर रहने लगती है। कालांतर में मुग़ल सम्राट् हुमायूँ वहाँ एक रात के लिए शरण के लिए आता है।

57.

‘ममता’ कहानी के अंतिम वाक्य को हटाकर कहानी का अंत अपने अनुसार कीजिए।

Answer»

वहाँ एक अष्टकोण मंदिर बना और उस पर शिलालेख लगाया गया –
“यह वह स्थान है, जहाँ किसी समय ‘ममता’ नामक एक दयालु स्त्री की झोंपड़ी थी। विपत्ति के समय उस महिला ने शहंशाह हुमायूँ को एक रात उस झोंपड़ी में आश्रय दिया था। हुमायूँ के पुत्र अकबर ने अपने पिता को आश्रय देनेवाली दया की उस देवी ममता की स्मृति में यह मंदिर बनवाया।”

58.

‘ममता’ कहानी में लेखक ने मुगलकालीन किन घटनाओं का वर्णन किया है?

Answer»

प्रस्तुत कहानी में मुग़लकालीन घटनाओं को कथावस्तु का आधार बनाया गया है। हुमायूँ, शेरशाह सूरी और चूड़ामणि ऐतिहासिक पात्र हैं। इतिहास के अनुसार शेरशाह सूरी अपने परिवार और खज़ाने को सुरक्षित रखने के लिए रोहतास गढ (बिहार प्रांत) में जाना चाहता था। वहाँ के मंत्री चुडामणि से मित्रता स्थापित कर शेरशाह ने स्त्री वेश में अपने पठान सैनिकों को दुर्ग में भेजकर उस पर अधिकार कर लिया था। यह अप्रैल, सन् 1538 ई० की घटना है। तदुपरांत शेरशाह ने बंगाल से भागे हुमायूँ को कर्मनासा नदी के पास चौसा नामक स्थान पर 26 जून, सन् 1539 में परास्त कर दिया था।

59.

‘ममता’ कहानी से आपको क्या प्रेरणा मिलती है?

Answer»

प्रसाद जी अपने युग की परिस्थितियों, विशेषकर स्वतंत्रता आंदोलन से प्रभावित हुए बिना न रह सके किंतु उन्होंने अंग्रेज़ों से सीधे विवाद को मोल नहीं लिया। हाँ अपने पात्रों एवं कथानकों द्वारा भारत के पूर्व गौरव को भारतीयों के सम्मुख रखकर उनमें राष्ट्रीय चेतना उजागर करने का प्रयास किया। ‘ममता’ कहानी भी इसी दिशा में एक कदम था। प्रसाद जी ने ममता को देशभक्त और राष्ट्रप्रेम से परिपूर्ण पात्र के रूप में चित्रित किया है। इसका प्रभाव हमें उस समय मिलता है जब वह यवनों द्वारा दी जाने वाली रिश्वत को लौटा देने का

आग्रह करती हुई अपने पिता से कहती है-‘हम ब्राह्मण हैं, इतना सोना लेकर क्या करेंगे? ………….विपद के लिए इतना आयोजन ? परमपिता की इच्छा के विरुद्ध इतना साहस? पिता जी क्या भीख भी न मिलेगी? क्या कोई हिंदू भू-पृष्ठ पर बचा न रह सकेगा, जो ब्राह्मण को दो मुट्ठी अन्न दे सके?’ ममता के इन शब्दों के द्वारा प्रसाद जी देश के उन गद्दारों को सचेत करना चाहते हैं जो अपने स्वार्थ के लिए देशहित को भी बेचने से बाज़ नहीं आते। इसके साथ-साथ देशवासियों में देश के प्रति कुछ करने की भावना जगाना चाहते हैं।

60.

‘ममता’ कहानी का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।

Answer»

श्री जयशंकर प्रसाद जी द्वारा लिखित ‘ममता’ शीर्षक कहानी मुग़लकालीन भारतीय पृष्ठभूमि पर आधारित इतिहास और कल्पना के ताने-बाने से बुनी गई है। प्रसाद जी ने प्रस्तुत कहानी में एक विधवा हिंदू युवती की निराशा एवं विवशता तथा संत्रस्त मनःस्थिति का चित्रण करते हुए उसके उदार हृदय में विद्यमान अतिथि सेवा का धर्म एवं असीम करुणा का सजीव एवं मार्मिक रूप प्रस्तुत किया है।

ममता एक अनिंद्य सौंदर्यमयी विधवा युवती है। ब्राह्मण होने के कारण उसमें धन के प्रति मोह लेशमात्र भी नहीं है। वह स्वाभिमानी भी है, त्याग करना और कष्ट सहना भी जानती है। भारतीय नारी के उन्हीं गुणों से पाठकों को परिचित करवाना प्रसाद जी का मुख्य उद्देश्य है।

61.

“अब तुम इसका मकान बनाओ या महल”-कथन किसका है?(क) हुमायूँ का(ख) चूड़ामणि का(ग) ममता का(घ) सलमा का।

Answer»

सही विकल्प है (ग) ममता का

62.

‘ममता’ कहानी के समय देश में किसका शासन था?(क) अकबर(ख) हुमायूँ(ग) मिरज़ा(घ) शेरशाह।

Answer»

सही विकल्प है (घ) शेरशाह

63.

Write the summary of 'ममता'.

Answer»

पाठ का सार बेटी के लिए पिता की चिंता : चूड़ामणि रोहतास दुर्ग के मंत्री हैं। दुर्ग पर शेरशाह अधिकार करना चाहता है। चूड़ामणि का मंत्रीपद उनसे छिननेवाला है। उन्हें अपनी बेटी ममता के भविष्य की चिंता है। ममता विधवा है। चूड़ामणि उसके भविष्य को सुरक्षित करना चाहते हैं।

ममता को उत्कोच स्वीकार नहीं : चतुर शेरशाह चूड़ामणि को चाँदी के थालों में सोना भरकर उत्कोच (रिश्वत) देता है। चूड़ामणि चाहते हैं कि ममता इसे अपने पास रख ले, पर ममता इसे स्वीकार नहीं करती। वह इसे अनर्थ मानती है। चूड़ामणि ममता को मूर्ख मानता है।

दुर्ग पर शेरशाह का अधिकार : अगले ही दिन डोलियों में महिलाओं के रूप में बैठकर शेरशाह के सैनिक रोहतास दुर्ग में प्रवेश करते हैं। चूड़ामणि द्वारा विरोध करने पर उनका वध कर दिया जाता है। चूड़ामणि की पुत्री ममता किसी तरह वहाँ से बच निकलती है। वह काशी के उत्तर में स्थित एक स्तूप के खंडहर में आश्रय लेती है।

अनचाहा अतिथि : एक रात दीपक के प्रकाश में ममता गीता का पाठ कर रही थी। उसी समय एक भीषण और हताश व्यक्ति उसकी झोंपड़ी के द्वार पर आकर खड़ा हुआ। वह मुगल बादशाह हुमायूँ था। चौसा के युद्ध में शेरशाह से पराजित होकर वह जान बचाने के लिए भाग निकला था। वह बहुत प्यासा और थका हुआ था। ममता ने पानी पिलाकर उसके प्राण बचाए।

आश्रय की मांग : हुमायूँ ने ममता से रातभर के लिए उसकी कुटी में आश्रय माँगा। ममता ने ‘अतिथिदेवो भव’ के आदर्श का पालन किया। हुमायूँ को अपनी झोंपड़ी में आश्रय देकर वह पास की टूटी हुई दीवारों के पीछे चली गई।

‘मिरज़ा उसका घर बनवा देना’ : अगले दिन सुबह हुमायूँ के साथी उसे खोजते हुए वहाँ आ पहुँचे। हुमायूँ झोंपड़ी से निकलकर बाहर आया। उसने ममता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने की इच्छा की, पर ममता तो दिनभर मृगदाव में छिपकर बैठी रही। हुमायूँ ने चलते समय अपने साथी मिरज़ा से कहा, “मिरज़ा, उस स्त्री को मैं कुछ दे न सका। उसका घर बनवा देना, क्योंकि मैंने विपत्ति में यहाँ विश्राम पाया है।”

चिर-विश्रामगृह में जाना : सैंतालीस साल बीत गए। ममता सत्तर साल की हो चुकी थी। उसके जीवन का अंतभाग आ गया था। उस समय मिरज़ा के बनाए हए चित्र के आधार पर एक घुड़सवार ममता की झोंपड़ी के पास पहँचा। उसे बादशाह अकबर ने उस जगह का पता लगाने के लिए भेजा था, क्योंकि वहाँ एक रात उसके पिता ने विश्राम किया था। ममता ने उस घुड़सवार को अपने पास बुलाया और कहा

“तुम यहाँ मकान बनवाओ या महल, मैं तो अब अपने चिरविश्रामगृह में जा रही हूँ।” .

अष्टकोण मंदिर : बाद में ममता की झोंपड़ी की जगह एक अष्टकोण मंदिर बना। उसमें हुमायूँ का नाम था, जिसकी याद में वह बनवाया गया था और शहंशाह अकबर का नाम था, जिसने उसे बनवाया

64.

ममता कौन थी?

Answer»

ममता रोहतास दुर्ग के मंत्री चूड़ामणि की पुत्री थी।