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1.

बहुदलीय प्रणाली की प्रमुख (चार) विशेषताएँ बताइए।

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बहुदलीय प्रणाली की प्रमुख (चार) विशेषताएँ निम्नवत् हैं-

⦁    मतदाताओं को अधिक स्वतन्त्रता – जहाँ दलों की संख्या अधिक होती है, वहाँ मतदाताओं को स्वाभाविक रूप से चयन की अधिक स्वतन्त्रता प्राप्त रहती है, क्योंकि वे कई दलों में से अपने ही समान विचार रखने वाले किसी दल का समर्थन कर सकते हैं।
⦁    मन्त्रिमण्डल की तानाशाही सम्भव नहीं – बहुदलीय पद्धति में सामान्यतया व्यवस्थापिका में किसी एक राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं हो पाता, अतः मिले-जुले मन्त्रिमण्डल का निर्माण किया जाता है। यह मिले-जुले मन्त्रिमण्डल कभी भी स्वेच्छाचारी नहीं हो सकते, क्योंकि सरकार में साझीदार विभिन्न दलों में किसी एक दल की असन्तुष्टि सरकार के अस्तित्व को खतरे में डाल देती है।
⦁    सभी विचारधाराओं का व्यवस्थापिका में प्रतिनिधित्व – जहाँ बहुदलीय पद्धति होती है, वहाँ व्यवस्थापिका में सभी विचारधाराओं के लोगों को प्रतिनिधित्व मिल जाता है और राष्ट्र के सभी वर्गों के विचार सुने जा सकते हैं।
⦁    राष्ट्र दो विरोधी गुटों में नहीं बँटता – जहाँ बहुदलीय पद्धति होती है वहाँ दलीय भावना प्रबल नहीं हो पाती और विभिन्न दलों के द्वारा कुछ सीमा तक पारस्परिक सहयोग का मार्ग अपनाया जा सकता है। अत: राष्ट्र दो विरोधी वर्गों में बँट जाने से बच जाता है।
⦁    व्यक्तित्व बनाये रखने का अवसर – यह व्यक्ति को कुछ सीमा तक अपना व्यक्तित्व बनाये रखने का अवसर देता है। यदि एक दल उनके विचारों के अनुकूल नहीं रहता, तो विशेष कठिनाई के बिना वह दूसरे दल को अपना सकता है।

2.

राजनीतिक दलों से आप क्या समझते हैं? लोकतन्त्र में इनका क्या महत्त्व है? यालोकतन्त्र में राजनीतिक दलों की क्या उपयोगिता है? क्या अधिक राजनीतिक दल होने से लोकतन्त्र अधिक सुदृढ़ हो सकता है। दो तर्क देकर समझाइए।याराजनीतिक दल से आप क्या समझते हैं? प्रजातन्त्रात्मक प्रणाली में राजनीतिक दलों के महत्त्व का मूल्यांकन कीजिए। यालोकतन्त्र (प्रजातन्त्र) में राजनीतिक दलों का महत्त्व संक्षेप में बताइए।

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राजनीतिक दल का अर्थ
मानव एक विवेकशील प्राणी है और एक विवेकशीलता के कारण भिन्न-भिन्न व्यक्तियों द्वारा विभिन्न प्रकार से विचार किया जाता है। विचारों की इसे विभिन्नता के साथ-ही-साथ अनेक व्यक्तियों में विचारों की समानता भी पायी जाती है। राजनीतिक और आर्थिक प्रश्नों पर समान विचारधारा रखने वाले ये व्यक्ति शासन-शक्ति प्राप्त करने के उद्देश्य से जिन संगठनों का निर्माण करते हैं, उन्हें राजनीतिक दल कहा जाता है।
एडमण्ड बर्क के अनुसार, “राजनीतिक दल ऐसे लोगों का एक समूह होता है जो किसी ऐसे सिद्धान्त के आधार पर जिस पर वे एकमत हों, अपने सामूहिक प्रयत्न द्वारा जनता के हित में काम करने के लिए एकता में बँधे होते हैं।” प्रजातन्त्र में राजनीतिक दलों के महत्त्व को निम्नलिखित रूपों में स्पष्ट किया जा सकता है-

प्रजातन्त्र में राजनीतिक दलों का महत्त्व
1. स्वस्थ लोकमत के निर्माण के लिए आवश्यक – प्रजातन्त्र शासन लोकमत पर आधारित होता है और स्वस्थ लोकमत के अभाव में सच्चे प्रजातन्त्र की कल्पना असम्भव है। इस लोकमत के निर्माण तथा उसकी अभिव्यक्ति राजनीतिक दलों के आधार पर ही सम्भव है। इस सम्बन्ध में राजनीतिक दल जलसे एवं अधिवेशन आयोजित करते हैं तथा एजेण्ट, व्याख्यानदाताओं और प्रचारकों के माध्यम से जनता को शिक्षित करने का प्रयास करते हैं। राजनीतिक दल स्थानीय एवं राष्ट्रीय समाचार-पत्रों एवं प्रचार के आधार पर अपनी नीति जनता के सम्मुख रखते हैं।
2. चुनावों के संचालन के लिए आवश्यक – जब मताधिकार बहुत अधिक सीमित था और निर्वाचकों की संख्या कम थी, तब स्वतन्त्र रूप से चुनाव लड़े जा सकते थे, लेकिन अब सभी देशों में वयस्क मताधिकार को अपना लिये जाने के कारण स्वतन्त्र रूप से चुनाव लड़ना असम्भव हो गया है। ऐसी स्थिति में राजनीतिक दल अपने दल की ओर से उम्मीदवारों को खड़ा करते और उनके पक्ष में प्रचार करते हैं। यदि राजनीतिक दल न हों तो आज के विशाल लोकतन्त्रात्मक राज्यों में चुनावों का संचालन लगभग असम्भव ही हो जाये।
3. सभी वर्गों के प्रतिनिधित्व के लिए आवश्यक – प्रजातन्त्र के लिए यह आवश्यक है। कि देश के शासन में जनता के सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व प्राप्त होना चाहिए और इस बात को राजनीतिक दलों के द्वारा ही सम्भव बनाया जाता है। देश के विभिन्न वर्ग अलग-अलग राजनीतिक दलों के रूप में संगठित होकर अपनी विचारधारा का प्रचार और प्रसार करते हैं। तथा उनके द्वारा व्यवस्थापिका में प्रतिनिधित्व प्राप्त किया जाता है।
4. सरकार के निर्माण तथा संचालन के लिए आवश्यक – निर्वाचन के बाद राजनीतिक दलों के आधार पर ही सरकार का निर्माण कर सकना सम्भव होता है और यह बात संसदात्मक एवं अध्यक्षात्मक दोनों ही प्रकार की शासन-व्यवस्थाओं के सम्बन्ध में नितान्त सत्य है। राजनीतिक दलों के अभाव में व्यवस्थापिका के सदस्य ‘अपनी-अपनी ढपली अपना-अपना राग’ की प्रवृत्ति को अपना लेंगे और सरकार का निर्माण असम्भव हो जायेगा। न केवल सरकार को निर्माण, वरन् व्यवस्थापिका और कार्यपालिका में सम्बन्ध स्थापित कर राजनीतिक दल सरकार के संचालन को भी सम्भव बनाते हैं।
5. शासन सत्ता को मर्यादित रखना – प्रजातन्त्र आवश्यक रूप से सीमित शासन होता है, लेकिन यदि प्रभावशाली विरोधी दल का अस्तित्व न हो तो प्रजातन्त्र असीमित शासन में बदल जाता है। यदि बहुसंख्यक राजनीतिक दल शासन सत्ता के संचालन का कार्य करता है तो अल्पसंख्यक दल विरोधी दल के रूप में कार्य करते हुए शासन शक्ति को सीमित रखने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं। इस दृष्टि से प्रजातन्त्र में न केवल बहुसंख्यक दल, वरन् अल्पसंख्यक दल का भी अपना और बहुसंख्यक दल के समान ही महत्त्व होता है।

राजनीतिक दलों के महत्त्व के सम्बन्ध में मैकाइवर ने ठीक ही कहा है, “बिना दलीय संगठन के किसी सिद्धान्त का एक होकर प्रकाशन नहीं हो सकता, किसी भी नीति का क्रमबद्ध विकास नहीं हो सकता, संसदीय चुनावों की वैधानिक व्यवस्था नहीं हो सकती और न ऐसी मान्य संस्थाओं की ही व्यवस्था हो सकती है, जिनके द्वारा कोई भी दल शक्ति प्राप्त करता है।” साधारणतया एक देश के विधान या कानून में राजनीतिक दलों का उल्लेख नहीं होता है, किन्तु व्यवहार में इन राजनीतिक दलों का अस्तित्व भी उतना ही आवश्यक और उपयोगी होता है जितना कि विधान या कानून। अमेरिकी संविधान-निर्माता किसी भी रूप में अपने देश में राजनीतिक दलों को पनपने नहीं देना चाहते थे, लेकिन संविधान को कार्यरूप प्राप्त होते ही दलीय संगठन अमेरिकी राजनीतिक जीवन की एक प्रमुख विशेषता बन गये और वर्तमान समय में राजनीतिक दलों की कार्य-व्यवस्था का अध्ययन किये बिना अमेरिकी शासन-व्यवस्था के यथार्थ रूप का ज्ञान प्राप्त करना नितान्त असम्भव ही है।

इस प्रकार यह कहा जा सकता है। कि आधुनिक राजनीतिक जीवन के लिए दलीय संगठनों का बड़ा महत्त्व है और इनके बिना लोकतन्त्र की सफलता सम्भव ही नहीं है। बर्क के शब्दों में, “दल प्रणाली, चाहे वह पूर्णरूप से भले के लिए या बुरे के लिए, प्रजातन्त्रात्मक शासन-व्यवस्था के लिए अनिवार्य है। इसी प्रकार लॉर्ड ब्राइस लिखते हैं कि, “राजनीतिक दल अनिवार्य है। कोई स्वतन्त्र देश उसके बिना नहीं रह सका है। कोई भी यह नहीं बता सका है कि प्रतिनिधि सरकार किस प्रकार उसके बिना चलायी जा सकती है।”

3.

एकदलीय प्रणाली पर टिप्पणी लिखिए।

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एकदलीय प्रणाली
जिस देश में केवल एक दल हो और शासन शक्ति का प्रयोग करने वाले सभी सदस्य इस एक ही राजनीतिक दल के सदस्य हों, तो वहाँ की दल प्रणाली को एकदलीय कहा जाता है। साम्यवादी व्यवस्था वाले राज्यों और अन्य भी अनेक राज्यों में एकदलीय व्यवस्था को अस्तित्व रहा है, लेकिन पूर्व सोवियत संघ और पूर्वी यूरोप के अन्य साम्यवादी राज्यों ने अब एकदलीय व्यवस्था का त्याग कर बहुदलीय व्यवस्था को अपना लिया है।

इस एकदलीय प्रणाली को कभी तो संविधान से ही मान्यता प्राप्त होती है, जैसे कि पूर्व सोवियत संघ और अन्य साम्यवादी राज्यों के संविधानों में साम्यवादी दल का उल्लेख करते हुए अन्य दलों के संगठन का निषेध कर दिया गया था। अनेक बार ऐसा होता है कि संविधान के द्वारा तो अन्य राजनीतिक दलों का निषेध नहीं किया जाता, लेकिन शासक दल संविधानेतर (Extraconstitutional) उपायों से अन्य राजनीतिक दलों का दमन कर शासन शक्ति पर एकाधिकार स्थापित कर लेता है। इसके अतिरिक्त, यदि किसी राज्य में एक से अधिक राजनीतिक दल हों, लेकिन राजनीतिक प्रभाव की दृष्टि से अन्य राजनीतिक दलों की स्थिति नगण्य हो अर्थात् वैसी ही हो जैसी स्थिति द्विदलीय प्रणाली वाले राज्यों में दो के अतिरिक्त अन्य राजनीतिक दलों की होती है, तो इसे एकदलीय प्रणाली वाला राज्य ही कहा जाएगी।

एकदलीय प्रणाली को सामान्यतया सर्वाधिकारवादी और जनहित-विरोधी समझा जाता है, किन्तु सदैव ही ऐसा होना आवश्यक नहीं है और उद्देश्य की दृष्टि से भी एकदलीय प्रणाली के विभिन्न रूप हो सकते हैं। हिटलर और मुसोलिनी की एकदलीय प्रणाली का उद्देश्य सत्ता हस्तगत , करना और उस पर अपना अधिकार बनाये रखना ही था, लेकिन टर्की में मुस्तफा कमालपाशा की एकदलीय पद्धति निश्चय ही जन हितैषी थी। वर्तमान समय में मेक्सिको, मैडागास्कर आदि राज्यों की एकदलीय व्यवस्था को इसी श्रेणी में रखा जा सकता है। कमालपाशा का टर्की, मेक्सिको या मैडागास्कर अपवाद हो सकते हैं, लेकिन सामान्यतया एकदलीय व्यवस्था को लोकतन्त्र के अनुकूल नहीं समझा जा सकता है।

4.

लोकतन्त्र में राजनीतिक दल क्यों आवश्यक हैं? दो कारण दीजिए। या राजनीतिक दल की दो विशेषताएँ बताइए। यालोकतन्त्र की सफलता एवं शासन की स्वेच्छाचारिता पर अंकुश के लिए राजनीतिक दल आवश्यक हैं।” इस कथन की पुष्टि कीजिए। यालोकतन्त्र में राजनीतिक दलों की दो भूमिकाओं का उल्लेख कीजिए।

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राजनीतिक दल-प्रणाली के समर्थकों ने राजनीतिक दलों के निम्नलिखित दो प्रमुख गुण बताये हैं-

1. लोकतन्त्र हेतु अनिवार्य – आधुनिक समय में अधिकांश देशों में प्रतिनिध्यात्मक प्रजातन्त्रीय शासन-व्यवस्था प्रचलित है, जिसमें जनता अपने प्रतिनिधियों का निर्वाचन करती है। निर्वाचन राजनीतिक दलों के आधार पर होते हैं। निर्वाचन में जो दल बहुमत में आता है वह सरकार का निर्माण और संचालन करता है तथा अन्य दल विरोधी दल के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं। इस प्रकार राजनीतिक दलों का अस्तित्व लोकतन्त्रीय शासन-प्रणाली के लिए अनिवार्य है। लीकॉक ने कहा है, “दलबन्दी ही एकमात्र ऐसी चीज है जो लोकतन्त्र को सम्भव बनाती है।”
2. शासन की स्वेच्छाचारिता पर अंकुश – राजनीतिक दलों के अस्तित्व के कारण प्रतिनिध्यात्मक शासन-प्रणाली में बहुमत प्राप्त दल शासन-कार्य संचालित करता है और अन्य दल विरोधी दल के रूप में कार्य करते हुए शासन की स्वेच्छाचारिता एवं निरंकुशता पर बन्धन लगाते हैं। लॉस्की ने ठीक ही कहा है कि राजनीतिक दल तानाशाही से हमारी रक्षा का सबसे अच्छा साधन है।”

5.

लोकतन्त्र में राजनीतिक दलों के दो कार्य लिखिए।

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⦁    जनता में राजनीतिक चेतना उत्पन्न करना तथा
⦁    सरकार का निर्माण करना।

6.

“राजनीतिक दल लोकतन्त्र के प्राण हैं।” इस कथन के प्रकाश में राजनीतिक दलों के दो कार्यों का उल्लेख कीजिए।

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“राजनीतिक दल लोकतन्त्र के प्राण हैं।” इस कथन के प्रकाश में राजनीतिक दलों के दो कार्य निम्नवत् हैं-

1. सरकार का निर्माण – निर्वाचन के बाद राजनीतिक दलों के द्वारा ही सरकार का निर्माण किया जाता है। अध्यक्षात्मक शासन-व्यवस्था में राष्ट्रपति अपने विचारों से सहमत व्यक्तियों की मन्त्रिपरिषद् का निर्माण कर शासन का संचालन करता है। संसदात्मक शासन में जिस राजनीतिक दल को व्यवस्थापिका में बहुमत प्राप्त हो, उसके नेता द्वारा मन्त्रिपरिषद् का निर्माण करते हुए शासन का संचालन किया जाता है। राजनीतिक दलों के अभाव में तो व्यवस्थापिका के सदस्यों द्वारा अपनी-अपनी ढपली, अपना-अपना राग” का स्वरूप अपनाया जा सकता है, जिसके कारण सरकार का निर्माण और संचालन सम्भव ही नहीं होगा।
2. जनता और शासन के बीच सम्बन्ध – लोकतन्त्र का आधारभूत सिद्धान्त जनता और शासन के बीच सम्पर्क बनाये रखना है और इस प्रकार का सम्पर्क स्थापित करने का सबसे बड़ा साधन राजनीतिक दल ही है। प्रजातन्त्र में जिस दल के हाथ में शासन शक्ति होती है, उसके सदस्य जनता के मध्य सरकारी नीति का प्रचार कर जनमत को पक्ष में रखने का प्रयत्न करते हैं। विरोधी दल शासन के दोषों की ओर जनता को ध्यान आकर्षित करते हैं। इसके अलावा ये सभी दल जनता की कठिनाइयों एवं शिकायतों को शासन के विविध अधिकारियों तक पहुँचाकर उन्हें दूर करने का प्रयत्न करते हैं। लावेल ने ठीक ही कहा है, “राजनीतिक दल ‘विचारों के दलाल’ (Broker of Ideas) के रूप में कार्य करते हैं।”

7.

दलीय पद्धति के कोई दो गुण लिखिए।

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⦁    जनमत का निर्माण तथा
⦁    शासन की निरंकुशता पर नियन्त्रण।

8.

भारत के चार प्रमुख राजनीतिक दलों के नाम लिखिए।याअपने देश के दो राष्ट्रीय दलों के नाम लिखिए।

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⦁    भारतीय जनता पार्टी,
⦁    कांग्रेस (इ),
⦁    बहुजन समाज पार्टी तथा
⦁    भारतीय साम्यवादी दल।

9.

राजनीतिक दलों के दो उद्देश्य लिखिए।

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⦁    शासन पर वैधानिक रूप से अपना प्रभुत्व स्थापित करना।
⦁    सरकार और जनता के मध्य कड़ी का कार्य करना।

10.

एकदलीय पद्धति के दो अवगुण लिखिए।

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⦁    वैयक्तिक स्वतन्त्रता का अभाव।
⦁    लोकतन्त्र के सिद्धान्तों की उपेक्षा।

11.

राजनीतिक दलों को ‘लोकतन्त्र का प्राण’ तथा ‘शासन का चतुर्थ अंग’ क्यों कहा गया है?

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लोकतन्त्र, चाहे उसका स्वरूप कोई भी क्यों न हो, राजनीतिक दलों की अनुपस्थिति में अकल्पनीय है। इसलिए उसे लोकतन्त्र का प्राण तथा शासन का चतुर्थ अंग कहा गया है।

12.

बहुदलीय व्यवस्था के दो दोष लिखिए।

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⦁    राष्ट्रीय हितों की उपेक्षा तथा
⦁    मतभेद और गुटबन्दी को बढ़ावा।

13.

अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र के लिए आवश्यक है-(क) शिक्षित जनता(ख) राजनीतिक दल(ग) स्वस्थ नागरिक(घ) जनसाधारण का सहयोग

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सही विकल्प है (ख) राजनीतिक दल

14.

राजनीतिक दल की कोई एक संक्षिप्त परिभाषा दीजिए।

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एडमण्ड बर्क के अनुसार, “राजनीतिक दल ऐसे लोगों का समूह होता है, जो किन्हीं ऐसे सिद्धान्तों के आधार पर, जिन पर वे एकमत हों, अपने सामूहिक प्रयत्नों द्वारा जनता के हित में, काम करने के लिए एकता में बँधे होते हैं।”

15.

भारत के दो क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का उल्लेख कीजिए।

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⦁    अकाली दल पंजाब का क्षेत्रीय दल है तथा
⦁    समता पार्टी बिहार को क्षेत्रीय दल है।

16.

दलीय-प्रणाली के कितने रूप प्रचलित हैं?

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दलीय प्रणाली के प्रमुखतया तीन रूप प्रचलित हैं-

⦁    एक-दलीय प्रणाली,
⦁    द्विदलीय प्रणाली तथा
⦁    बहुदलीय प्रणाली।

17.

एकदलीय व्यवस्था वाले किन्हीं दो देशों के नाम लिखिए।

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⦁    चीन तथा
⦁    रूस

18.

डी० एम० के० किस राज्य का महत्त्वपूर्ण दल है?(क) कर्नाटक(ख) केरल(ग) तमिलनाडु(घ) गुजरात

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सही विकल्प है (ग) तमिलनाडु

19.

शासन-सत्ता पर अंकुश के लिए आवश्यक है-(क) विरोधी दल(ख) सक्षम व्यवस्थापिका(ग) शिक्षित जनता(घ) अधिक संख्या में राजनीतिक दल

Answer»

सही विकल्प है (क) विरोधी दल

20.

राजनीतिक दलों के दो दोष बताइए।

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⦁    भ्रष्टाचार को बढ़ावा देना तथा
⦁    जनशक्ति का विभाजन करना।

21.

द्विदलीय व्यवस्था के गुण तथा दोषों पर टिप्पणी लिखिए।याद्विदलीय प्रणाली से क्या आशय है? इस प्रणाली के गुण-दोष बताइए।

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द्विदलीय प्रणाली
जब एक देश की राजनीति में केवल दो ही प्रमुख राजनीतिक दल होते हैं, तो उसे द्विदलीय प्रणाली कहते हैं। द्विदलीय प्रणाली वाले राज्यों में दो से अधिक राजनीतिक दलों के गठन पर कोई वैधानिक प्रतिबन्ध नहीं होता, दो से अधिक राजनीतिक दल हो सकते हैं, लेकिन वे इतने छोटे होते हैं कि राजनीति पर उनका विशेष प्रभाव नहीं होता और उन्हें शासन में भागीदारी प्राप्त नहीं होती। उदाहरणार्थ, इंग्लैण्ड में अनुदार दल और श्रमिक दल दो प्रमुख राजनीतिक दल हैं, इनके अतिरिक्त लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी और स्कॉटलैण्ड तथा वेल्स के राष्ट्रवादी दल भी हैं, लेकिन उनका राजनीति पर कोई विशेष प्रभाव नहीं है। इस प्रकार अमेरिका में द्विदलीय प्रणाली है और यहाँ के दो प्रमुख राजनीतिक दल (रिपब्लिक दल और डेमोक्रेटिक दल) हैं।

द्विदलीय प्रणाली के लाभ/गुण
द्विदलीय प्रणाली के समर्थकों में लॉस्की, हरमन, फाइनर, ब्राइस आदि विद्वान प्रमुख हैं। इन विद्वानों द्वारा द्विदलीय प्रणाली के प्रमुख रूप से निम्नलिखित लाभ बताये जाते हैं-
1. वास्तविक प्रतिनिधि सरकार की स्थापना – प्रजातन्त्र का वास्तविक अभिप्राय यह है कि जनता के द्वारा ही सरकार का निर्माण किया जाये। लेकिन बहुदलीय व्यवस्था के अन्तर्गत सरकार का निर्माण जनता द्वारा नहीं वरन् राजनीतिक दलों के पारस्परिक समझौतों द्वारा होता है। केवल द्विदलीय प्रणाली के अन्तर्गत ही सरकार जनता की इच्छाओं का प्रत्यक्ष परिणाम होती है। इसके अन्तर्गत वही दल शासन का संचालन करता है जिसे मतदाताओं का बहुमत प्राप्त हो। स्वाभाविक रूप से यह व्यवस्था प्रजातान्त्रिक धारणा के अनुकूल होती है।
2. सरकार का निर्माण – संसदीय शासन वाले देश में यदि केवल दो ही राजनीतिक दल हों तो मन्त्रिमण्डल का निर्माण सरलता से किया जा सकता है। बहुमत दल को सरकार के निर्माण का कार्य सौंपा जाता है और जब यह दल अविश्वसनीय हो जाता है या आगामी चुनावों में हार जाता है तो शासन की शक्ति उस दल के हाथ में आ जाती है जो पहले विरोधी दल के रूप में कार्य कर रहा था।
3. शासन में स्थायित्व और निरन्तरत – शासन का सबसे अधिक आवश्यक तत्त्व सुदृढ़ एवं स्थायी शासन होता है और इन गुणों को द्विदलीय प्रणाली के अन्तर्गत ही प्राप्त किया जा सकता है। मन्त्रिमण्डल को व्यवस्थापिका में एक शक्तिशाली दल का समर्थन प्राप्त होता है और इस समर्थन के आधार पर मन्त्रिमण्डल दृढ़तापूर्वक शासन कार्य का संचालन कर सकता है। ऐसी व्यवस्था के अन्तर्गत सामान्यतया सरकारें स्थायी होती हैं और इनके द्वारा अपने कार्यक्रम और नीति को विश्वासपूर्वक कार्यरूप में परिणित किया जा सकता है। अमेरिका में अध्यक्षात्मक शासन की सफलता का रहस्य भी द्विदलीय प्रणाली में ही निहित है।
4. संवैधानिक गतिरोध की आशंका नहीं – बहुदलीय व्यवस्था के अन्तर्गत अनेक बार ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है कि कोई भी राजनीतिक दल अकेले या पारस्परिक समझौते के आधार पर सरकार का निर्माण नहीं कर पाता और संवैधानिक गतिरोध की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। लेकिन द्विदलीय प्रणाली में कभी भी संवैधानिक गतिरोध पैदा नहीं होता, क्योंकि प्रत्येक समय विरोधी दल वर्तमान शासन का अन्त कर शासन-व्यवस्था पर अधिकार प्राप्त करने के लिए तत्पर रहता है।
5. शासन में एकता और उत्तरदायित्व की व्यवस्था – शासन कार्य सफलतापूर्वक करने के लिए ‘सत्ता का एकत्रीकरण’ नितान्त आवश्यक होता है और शासन-व्यवस्था में इस प्रकार की एकता द्विदलीय प्रणाली के अन्तर्गत ही सम्भव है। इसके अतिरिक्त द्विदलीय प्रणाली में शासन की कुशलता-अकुशलता का उत्तरदायित्व आसानी से स्थापित किया जा सकता है।
6. संगठित विरोधी दल – राजनीतिक दल, शासन संचालन का कार्य ही नहीं, वरन् शासन को नियन्त्रित रखने का कार्य करते हैं। शासन को नियन्त्रित रखने का कार्य उसी समय भलीभाँति किया जा सकता है जब विरोधी राजनीतिक दल सुसंगठित और पर्याप्त शक्तिशाली हो। द्विदलीय व्यवस्था के अन्तर्गत विरोधी दल सदैव ही इस स्थिति में होता है। वस्तुत: प्रतिनिधि शासन के संचालन के लिए द्विदलीय प्रणाली ही सर्वाधिक उपयुक्त है।

द्विदलीय प्रणाली के दोष
यद्यपि द्विदलीय प्रणाली शासन व्यवस्था को स्थायित्व और निरन्तरता प्रदान करती है और यही ऐसी व्यवस्था है जिसके अन्तर्गत शासन में एकता होती है तथा उत्तरदायित्व निश्चित होता है, लेकिन इतना होने पर भी द्विदलीय प्रणाली पूर्णतया दोषमुक्त नहीं है। रैम्जे म्योर (Ramsay Muir) ने अपनी पुस्तक “How Britain is Governed” में द्विदलीय प्रणाली की कटु आलोचना की है। द्विदलीय प्रणाली के प्रमुख दोष निम्नलिखित कहे जा सकते हैं-

1. मतदान की स्वतन्त्रता सीमित – द्विदलीय प्रणाली के अन्तर्गत नागरिकों की मतदान की स्वतन्त्रता बहुत अधिक सीमित हो जाती है। उन्हें दो में से एक दल को अपना मत देना ही होता है, चाहे वे दोनों दलों के उम्मीदवारों या दलों की नीतियों से असहमत ही क्यों न हों। मैकाइवर के शब्दों में, “इस पद्धति में मतदाता की पसन्दगी अत्यधिक सीमित हो जाती है। और यह स्वतन्त्र जनमत के निर्माण में भी बाधक होती है।
2. राष्ट्र का विभाजन – बहुधा ऐसा देखा गया है कि द्विदलीय व्यवस्था के कारण समस्त राष्ट्र ऐसे दो दलों में विभक्त हो जाता है जिसमें समझौते की कोई सम्भावना नहीं रहती, लेकिन बहुदलीय प्रणाली राष्ट्र को आपस में न मिल सकने वाले समूहों में विभाजित नहीं होने देती। लोग अपने सिद्धान्तों के आधार पर ही बिना किसी प्रकार के गम्भीर समझौते किये परस्पर मिल सकते और सहयोग कर सकते हैं।
3. बहुमत की निरंकुशता – द्विदलीय प्रणाली के अन्तर्गत एक ही राजनीतिक दल के हाथ में व्यवस्थापिका और कार्यपालिका सम्बन्धी शक्ति होती है और, इसके परिणामस्वरूप एक ऐसे निरंकुश बहुमत का जन्म होता है जो सदा ही अल्पमत को कुचलता रहता है और उसकी माँग की अवहेलना करता रहता है।
4. व्यवस्थापिका के महत्त्व और सम्मान में कमी – द्विदलीय व्यवस्था के अन्तर्गत व्यवस्थापिका के महत्त्व में कमी हो जाती है, क्योंकि व्यवस्थापिका का बहुमत दल सदैव ही मन्त्रिमण्डल का समर्थन करता रहता है। अतः समष्टि रूप से व्यवस्थापिका की सत्ता सीमित हो जाती है। द्विदलीय व्यवस्था के अन्तर्गत व्यवस्थापिका ‘मात्र लेखा करने वाली संस्था (Recording Institution) और दल के सदस्य कार्यपालिका की इच्छानुसार मत देने वाले यन्त्र मात्र बनकर रह जाते हैं।
5. मन्त्रिमण्डलीय तानाशाही – कुछ विद्वानों का यह मत है कि द्विदलीय प्रणाली से मन्त्रिमण्डल की तानाशाही को विकास होता है। दलीय अनुशासन के कारण व्यवस्थापिका को सदैव ही मन्त्रिपरिषद् का समर्थन करना होता हैं। इसके अतिरिक्त, प्रधानमन्त्री दल का नेता भी होता है और व्यवस्थापिका के साधारण सदस्य दल के नेता की बात का विरोध नहीं कर पाते। दल के सदस्य अपने दल की मन्त्रिपरिषद् को इस कारण भी विरोध नहीं कर पाते हैं। कि कहीं विरोधी दल की सरकार न बन जाये। इंग्लैण्ड में मन्त्रिमण्डल के प्रभाव और सम्मान में वृद्धि और लोक सदन (House of Commons) के सम्मान में कमी होने का एक प्रमुख, कारण यह द्विदलीय प्रणाली ही है।
6. अनेक हित बिना प्रतिनिधित्व के – देश की राजनीति में जब केवल दो ही राजनीतिक दल होते हैं तो अनेक हितों और वर्गों को व्यवस्थापिका में प्रतिनिधित्व ही प्राप्त नहीं हो पाता। यह स्थिति प्रजातन्त्र के लिए उचित नहीं कही जा सकती।

22.

द्विदलीय शासन-प्रणाली कौन-से देश में पाई जाती है?(क) ब्रिटेन(ख) फ्रांस(ग) पाकिस्तान(घ) इटली

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सही विकल्प है (क) ब्रिटेन