InterviewSolution
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चंदन के वृक्ष और सर्यों को कवि रहीम ने किस संदर्भ में उल्लेख किया है। संकलित दोहों के आधार पर लिखिए। |
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Answer» चंदन लगाने से शीतलता का अनुभव होता है। चंदन की इसी विशेषता के आधार पर लोग मानते आ रहे हैं कि चंदन के वृक्षों पर विषैले सर्प अपने विष के ताप से बचने के लिए चंदन की डालियों पर लिपटे रहते हैं। कवि रहीम ने इस तथ्य का उपयोग उत्तम स्वभाव वाले पुरुषों की विशेषता बताने के लिए किया है। जैसे सर्यों के लिपटे रहने से चंदन पर उनके विष का कोई प्रभाव नहीं होता, उसी प्रकार उत्तम स्वभाव वाले लोगों पर कुसंग का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। |
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स्वाति एक गुन तीन’ का भावार्थ क्या है? |
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Answer» भाव यह है कि संगति के प्रभाव से स्वाति की एक ही बूंद तीन रूप धारण कर लेती है। अत: संगति का अच्छा या बुरा प्रभाव अवश्य पड़ता है। |
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'स्वाति एक गुन तीन’ इस कथन का तात्पर्य क्या है? लिखिए। |
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Answer» ज्योतिष्य के अनुसार सत्ताइस नक्षत्रों में एक का नाम ‘स्वाति’ है। ऐसा विश्वास चला आ रहा है कि स्वाति नक्षत्र के समय जो वर्षा की बूंदें गिरती हैं, उनके विविधि वस्तुओं के सम्पर्क में आने पर, अनेक रूप हो जाते हैं। केले में गिरने पर वह बूंद कपूर बन जाती है। सीप में गिरने पर मोती बन जाती है और सर्प के मुख में गिरने पर वही स्वाति की बूंद विष बन जाया करती है। कवि ने इस कथन के माध्यम से संकेत किया है कि व्यक्ति जैसे लोगों की संगति में रहता है, वैसा ही बन जाता है। अतः सदा सत्संगति करनी चाहिए। |
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‘अच्युत चरन तरंगिनी’ में अच्युत किसे कहा है? |
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Answer» ‘अच्युत’ भगवान विष्णु को कहा गया है। |
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रहीम ने किस धागे को चटकाकर न तोड़ने की बात कही है?(क) प्रेम का धागा(ख) सूत का धागा(ग) रेशम की धागा(घ) रिश्तों का धागा |
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Answer» (क) प्रेम का धागा |
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‘कदली, सीप, भुजंग मुख, स्वाति एक गुन तीन’ को विस्तारपूर्वक समझाइए। |
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Answer» ‘कदली, सीप, भुजंग मुख, स्वाति एक गुन तीन’- पंक्ति में कवि रहीम ने स्वाति नक्षत्र में बादलों से गिरने वाली पानी की बूंद के माध्यम से संगति के मनुष्य के ऊपर पड़ने वाले प्रभाव का वर्णन किया है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि जैसी संगति बैठिए तैसोई गुन दीन” अर्थात् मनुष्य जैसे लोगों की संगति में रहता है, उसमें वैसे ही गुण (दुर्गुण भी) उत्पन्न हो जाते हैं। स्वाति नक्षत्र में जब बादलों से वर्षा की बूंद गिरती है तो वह केले में गिरने पर कपूर बन जाती है, सीप में गिरने पर मोती बन जाती है तथा सर्प के मुख में गिरने पर विष बन जाती है। इस प्रकार जल की बूंद संगति के प्रभाव से तीन रूपों में बदल जाती है। केले का साथ मिलने पर कपूर बनती है तो सीप को साथ होने पर मोती बन जाती है। वही बूंद सर्प के मुख में गिरती है तो विष बन जाती है। इस उदाहरण द्वारा कवि संगति के प्रभाव का वर्णन करना चाहता है। मनुष्य जैसे लोगों के साथ रहता है, वैसा ही उसका चरित्र बन जाता है। |
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'हरि न बनाओ’ सुरसरी, कीजौ इंदव भाल।” इस कथन के पीछे निहित कवि रहीम की भावनाओं पर प्रकाश डालिए। |
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Answer» इस पंक्ति से सम्बन्धित दोहे में कवि ने माँ गंगा की स्तुति के साथ ही अपने उक्ति चमत्कार का नमूना भी प्रस्तुत किया है। गंगा का जन्म भगवान विष्णु (श्रीकृष्ण) के चरणों से माना गया है और भगवान शिव ने उन्हें अपने शीश पर धारण किया है। कवि गंगा से प्रार्थना करता है कि वह हरि (विष्णु) के स्वरूप न प्रदान करें। उन्हें भगवान शिव का मस्तक बना दें। हरि बनने पर माता- गंगा को चरणों में रखने का पाप लगेगा और शिव-मस्तक बनने पर गंगा सदा कवि के सिर पर विराजमान रहेगी। |
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पद्यांशों की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्याएँ।कदली सीप भुजंग मुख, स्वाति एक गुन तीन।जैसी संगति बैठिए तैसोई फल दीन।।कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीति।विपति-कसौटी जे कसे, ते ही साँचे मीत।। |
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Answer» कठिन शब्दार्थ – कदली = केले का वृक्ष। सीप = जल के कीट द्वारा निर्मित कठोर खोल, जिसमें मोती बनता है। भुजंग = सर्प। स्वाति = ज्योतिष में मान्य एक नक्षत्र। तैसोई = वैसा ही। सम्पत्ति = सम्पन्नता के समय, धन होने पर। सगे = अति निकट सम्बन्धी, समान रक्त वाले सम्बन्धी। बनत = बन जाते हैं। बहुरीति = अनेक प्रकार से। बिपति = कसौटी, संकटरूपी परीक्षा। कसे = कसकर देखे गए, परखे गए। मीत = मित्र। सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत दोहे हामरी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि रहीम के दोहों से लिए गए हैं। प्रथम दोहे में कवि ने संगति के विविध प्रभावों का वर्णन किया है। दूसरे दोहे में विपत्ति को ही सच्चे मित्रों की कसौटी बताया है। व्याख्या – अच्छी और बुरी संगति का व्यक्ति और वस्तु पर अच्छा और बुरा प्रभाव देखने में आता है। स्वाति नक्षत्र के समय में गिरने वाली बादल के जल की बूंद जब केले पर गिरती है तो कपूर बन जाती है, सीपी में जा गिरती है तो मोती बन जाती है। वही बूंद जब सर्प के मुख में गिरती है तो प्राणघातक विष बन जाती है। स्पष्ट है कि मनुष्य जैसी संगति करेगा उसे वैसा ही (अच्छा या बुरा) फल प्राप्त होगा। कवि रहीम कहते हैं कि जब कोई व्यक्ति धन सम्पन्न होता है तो बहुत से अपरिचित लोग भी अनेक उपायों से उसके सगे सम्बन्धी बन जाया करते हैं। परन्तु सगेपन और मित्रता की सच्ची परीक्षा तो संकट आने पर होती है। संकट के समय जो मनुष्य का सच्चे मन के साथ देता है वही उसका सच्च मित्र होता है। स्वामी मित्र तो सुख के साथी होते हैं, बुरे दिन आते ही किनारा कर जाते हैं। विशेष –
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पद्यांशों की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्याएँ।अच्युत चरन तरंगिनी, सिव सिर मालति माल।हरि न बनाओ सुरसरी, कीजौ इंदव-भाल।।1।।अमी पियावत मान बिनु, रहिमन मोहि न सुहाय।मान सहित मरिबो भलो, जो बिस देय बुलाय।।2।। |
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Answer» कठिन शब्दार्थ – अच्युत = भगवान विष्णु। चरन = चरण, पैर। तरंगिनी = लहराने वाली। मालति = एक फूल। माल = माला। हरि = विष्णु। सुरसरी = गंगा। कीजौ = करना, बनाना। इन्दव भाल = जिनके मस्तक पर चन्द्रमा है, शिव। अमी = अमृत। मान बिनु = बिना सम्मान के। सुहाय = अच्छा लगना। मरिबौ = मरना। बिस = विष, जहर। बुलाय = बुलाकर। सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत दोहे हमारी पाठ्यपुस्तक में ‘दोहे’ शीर्षक के अन्तर्गत संकलित कवि रहीम के दोहों से लिए गए हैं। प्रथम दोहे में कवि गंगा से प्रार्थना कर रहा है कि वह उसका हरि न बनाकर शिव बनाने की कृपा करें ताकि वह उन्हें सिर पर धारण कर सकें। दूसरे दोहे में कवि ने अपमान सहित अमृत पीने की अपेक्षा मान सहितं विष पीना श्रेष्ठ बताया है। व्याख्या – कवि रहीम परम पावन और सर्वसक्षम गंगा माता से प्रार्थना करता है कि आप भगवान विष्णु के चरणों में तथा भगवान शिव के सिर पर विराजती हैं। हे माता ! यदि आप कृपा करके मेरा उद्धार करें तो मुझे विष्णु नहीं शिव स्वरूप प्रदान करना, ताकि मैं आपके चरणों में रखने के पाप का भागी बनें। आपको अपने सिर पर धारण करने का सौभाग्य प्राप्त कर पाऊँ। द्वितीय दोहे में कवि ने आत्मसम्मान के साथ जीने की प्रेरणा दी है। कवि कहता है यदि कोई मुझे बिना उचित सम्मान के अमृत भी पिलाएँ तो मुझे वह स्वीकार नहीं होगा। यदि सम्मान सहित बुलाकर कोई मुझे विष भी पिलाए, तो मैं उस विष को पीकर सम्मान के साथ मरना स्वीकार करूंगा। विशेष –
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संकलित दोहों के आधार पर कवि रहीम के अलंकार विधान का संक्षिप्त परिचय दीजिए। |
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Answer» कवि रहीम का भाव पक्ष ही नहीं कला पक्ष भी काव्य प्रेमियों को आकर्षित करता रहा है। संकलित दोहों में कवि ने अलंकारों के प्रभावशाली प्रयोग में अपनी दक्षता का परिचय दिया है। प्रथम दोहे में ‘सिव सिर मालति माल’ में उपमा है। ‘बनत बहुत बहु रीत’ में अनुप्रास है। ‘विपति कसौटी’ में रूपक है। ‘काज परे ……. सिरावत मौर’ में दृष्टान्त है। खैर, खून, खाँसी, खुसी में अनुप्रास ‘जो रहीम उत्तम…..सकत कुसंग’ में दृष्टान्त है। बारे उजियारो। …….. अँधेरों हाथ में श्लेष अलंकार है। इसी प्रकार ‘ धागा प्रेम का’ में कवि ने रूपक की छटा दिखाई। ‘गाँठि परि जाय’ में श्लेष का चमत्कार उपस्थित है। ‘पानी राखिए’ में श्लेष तथा ‘पानी गए न ऊबरै’ में श्लेष के साथ ‘पानी’ में यमक का सौन्दर्य भी उपस्थित है।’दृष्टान्त’ अलंकार के प्रयोग में तो कवि रहीम सिद्ध हस्त हैं। इस प्रकार कवि रहीम का अलंकार विधान बनावट और दिखावट से दूरी बनाते हुए पाठकों को आनंदित करने में सफल हुआ है। |
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पद्यांशों की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्याएँ।मथत-मथत माखन रहै, दही मही बिलगाय।।रहिमन सोई मीत है, भीर परे ठहराय।। |
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Answer» कठिन शब्दार्थ – मथत-मथत = बार-बार दही बिलौना। माखन = मक्खन। बिलगाय = अलग हो जाता है। सोई = वही। मीत = मित्र। भीर परे = कठिन समय आने पर। ठहराय = साथ रहे। सन्दर्भ एवं प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित कवि रहीम के दोहे’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। कवि ने इस दोहे में सच्चे मित्र की पहचान बताई है। व्याख्या – कविवर रहीम कहते हैं कि सच्चा मित्र सदा संकट में साथ निभाता है। सच्चे मित्र की पहचान यही है कि वह संकट आने पर कभी अपने मित्र का साथ नहीं छोड़ता। जिस प्रकार दही को बार-बार बिलोया जाता है तो दही और मट्ठा तो अलग हो जाते हैं किन्तु मक्खन वहीं स्थिर रहता है। तात्पर्य यह है कि सच्चा मित्र मक्खन की तरह अपने मित्र के सदा साथ रहता है। विशेष –
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पद्यांशों की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्याएँ।यों रहीम जस होत है, उपकारी के संग।बाँटन वारे के लगै, ज्यों मेंहदी को रंग।।बिगरी बात बनै नहीं, लाख करै किन कोय।रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।। |
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Answer» कठिन शब्दार्थ – यों = इस प्रकार। जस = यश, प्रशंसा। बाँटन वारे = पीसने वाला। मेंहदी = एक पेड़, जिसकी पत्तियाँ पीसकर हाथों पर रचाई जाती हैं। बिगरी = बिगड़ी, खराब हुई। बनै = सुधरना। लाख करै = लाखों प्रयत्न करना। फाटे = फटे हुए। माखन = मक्खन। सन्दर्भ एवं प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘दोहे’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता कविवर रहीम हैं। प्रथम दोहे में कवि ने बताया है कि सज्जनों का साथ अच्छा होता है तथा सज्जनों के साथ रहने वाले को इसका लाभ बिना प्रयास के ही मिल जाता है। द्वितीय दोहे में कवि ने अपनी बात की रक्षा का संदेश दिया है तथा बताया है कि बात बिगड़ने के बाद लाखों प्रयत्न करके भी उसको सुधारा नहीं जा सकता। व्याख्या – कवि कहता है कि परोपकार करने वालों के साथ रहना सदा लाभदायक होता है। साथ रहने वाले को इसका लाभ अनायास प्राप्त होता है। उसको संसार में प्रशंसा का पात्र समझा जाता है। जिस प्रकार पत्थर पर मेंहदी की पत्तियों को पीसने वाले के हाथ मेंहदी के रंग से बिना रचाएं ही लाल हो जाते हैं उसी प्रकार परोपकारी का साथी भी बिना कुछ करे प्रशंसनीय हो जाता है। – कविवर रहीम लोगों को सावधान करना चाहते हैं कि उनको अपने कार्यों के प्रति सजग रहना चाहिए। यदि असावधानीवश एक बार कोई काम बिगड़ जाता है तो लाखों प्रयत्न करने पर भी उसमें सुधार नहीं हो पाता। यदि दूध फट जाता है तो कोई उसको कितनी ही देर तक बिलोए उससे मक्खन नहीं निकलता। विशेष –
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पद्यांशों की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्याएँ।रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।पानी गए ने ऊबरै, मोती मानुष चून।।प्रीतम छवि नैनन बसी, पर छबि कहाँ समाय।भरी सराय रहीम लखि, पथिक आप फिर जाय।। |
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Answer» कठिन शब्दार्थ – पानी = जल, मर्यादा, चमक। सून = शून्य, बेकार। पानी गए = पानी नष्ट होने, मर्यादा भंग होने, चमक मिटने। ऊबरे = उबरना, रक्षा होना। मानुष = मनुष्य। चून = चूना। प्रीतम = प्रियतम, प्रेमी। छवि = शोभा। पर = पराई, दूसरों की। समाय = स्थान प्राप्त होना। सराय = धर्मशाला। पथिक = यात्री। फिर जाय = लौटकर चला जाता है। सन्दर्भ एवं प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘दोहे’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता कविवर रहीम हैं। कवि ने प्रथम दोहे में बताया है कि मनुष्य को अपनी मान-मर्यादा के प्रति सतर्क रहने चाहिए। मर्यादाहीन मनुष्य को संसार में कोई नहीं पूछता।। कवि ने दूसरे दोहे में ईश्वर के सच्चे भक्त का लक्षण यह बताया है कि उसके नेत्रों में सदा ईश्वर की छवि रहती है। उसे छोड़कर वह सांसारिक वस्तुओं में आसक्त नहीं होता। व्याख्या – कविवर रहीम कहते हैं कि संसार में पानी का बड़ा महत्त्व है। पानी को नष्ट नहीं होने देना चाहिए। सदा उसकी रक्षा करनी चाहिए। पानी के बिना सब कुछ अर्थहीन हो जाता है। पानी के अभाव में मोती, मनुष्य तथा चूना का महत्व घट जाता है। मोती का पानी अर्थात् चमक उतरने पर उसका सौंदर्य तथा मूल्य घट जाता है। मनुष्य का पानी अर्थात् मर्यादा नष्ट होने से समाज में वह सम्माननीय नहीं रह जाता। चूने का पानी सूख जाने पर वह प्रयोग के योग्य नहीं रह जाता है। कविवर रहीम कहते हैं कि जिस मनुष्य के नेत्रों में अपने प्रियतम परमात्मा की छवि विराजमान है, वहाँ किसी अन्य सांसारिक वस्तु का आकर्षण टिक नहीं पाता। अथवा जब कोई प्रेयसी अपने प्रेमी से अनन्य प्रेम करती है तो किसी अन्य पुरुष की सुन्दरता उसको आकर्षित नहीं कर पाती। जब किसी धर्मशाला अथवा सराय में कोई स्थान रिक्त नहीं होता तो यह देखकर वहाँ आने वाला यात्री स्वयं ही लौटकर चला जाता है। उसी प्रकार प्रियतम की छवि वाली आँखों में सांसारिक वैभव के प्रति आकर्षण नहीं पाया जाता। विशेष –
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