InterviewSolution
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श्रीराम शर्मा का जीवन-परिचय देते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए।अथवाश्रीराम शर्मा की साहित्यिक विशेषताओं को बताते हुए उनकी भाषा-शैली भी स्पष्ट कीजिए।अथवाश्रीराम शर्मा के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए।अथवा श्रीराम शर्मा को साहित्यिक परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए। |
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Answer» श्रीराम शर्मा जन्म-सन् 1892 ई० (1949 वि०)। मृत्यु-सन् 1967 ई० । जन्म-स्थान-किरथरा (मैनपुरी) उ० प्र० । शिक्षा-बी० ए० । जीवन-परिचय- हिन्दी में शिकार साहित्य के प्रणेता पं० श्रीराम शर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले में 23 मार्च, सन् 1892 ई० को हुआ था। प्रयाग विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात् ये पत्रकारिता के क्षेत्र में उतर आये। आपने ‘विशाल भारत’ नामक पत्र का सम्पादन बहुत दिनों तक किया। इनका जीवन के प्रति दृष्टिकोण मुख्यतः राष्ट्रीयता से ओत-प्रोत है। आपने राष्ट्रीय आन्दोलनों में बराबर भाग लिया है जिसकी सजीव झाँकियाँ आपकी रचनाओं में परिलक्षित होती हैं। आपकी मृत्यु एक लम्बी बीमारी के पश्चात् सन् 1967 ई० में हो गयी। कृतियाँ –
इनकी शैली स्पष्ट एवं वर्णनात्मक है जिसमें स्थान-स्थान पर स्थितियों का विवेचन मार्मिक और संवेदनशील होता है। शर्मा जी की शिकार सम्बन्धी, संस्मरणात्मक कहानियों और निबन्धों में शैलीगत विशेषता है जो रोमांच और कौतूहल आद्योपान्त बनाये रखती है। |
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‘वह कुएँ वाली घटना किसी से न कहे।’ लेखक ने अपने साथी लड़के से क्यों कहा? |
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Answer» ‘वह कुएँ वाली घटना किसी से न कहे।’ ऐसा लेखक ने अपने साथी लड़के से घरवालों के भय से कहा था। |
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‘स्मृति’ पाठ से दस सुन्दर वाक्य लिखिए। |
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Answer» सन् 1908 ई० की बात है। जाड़े के दिन थे। हवा के प्रकोप से कँपकँपी लग रही थी। हवा मज्जा तक ठिठुरा रही थी। हम दोनों उछलते-कूदते एक ही साँस में गाँव से चार फर्लाग दूर उस कुएँ के पास आ गये । कुआँ कच्चा था और चौबीस हाथ गहरा था। कुएँ की पाट पर बैठे हम रो रहे थे। दृढ़ संकल्प से दुविधा की बेड़ियाँ कट जाती हैं। छोटा भाई रोता था और उसके रोने का तात्पर्य था कि मेरी मौत मुझे नीचे बुला रही है। छोटे भाई की आशंका बेजा थी, पर उस फैं और धमाके से मेरा साहस कुछ और बढ़ गया। |
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‘स्मृति ‘ पाठ से आपने क्या समझा? अपने शब्दों में लिखिए। |
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Answer» ‘स्मृति’ पाठ से यह बात उभरकर सामने आती है कि बच्चे अत्यन्त साहसी होते हैं। उन्हें मृत्यु का भय नहीं होता है। इस उम्र में वे बड़े-बड़े साहसिक कार्य कर बैठते हैं। |
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चिट्ठी किसने लिखी थी? |
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Answer» चिट्ठी श्रीराम शर्मा के बड़े भाई ने लिखी थी। |
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‘स्मृति’ निबन्ध के आधार पर बाल-सुलभ वृत्तियों को संक्षेप में लिखिए। |
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Answer» बालमन अत्यन्त चंचल होता है। बाल्यावस्था में अच्छे-बुरे का ज्ञान नहीं होता है। बाल्यावस्था में कभी-कभी बड़े साहसिक कार्य सम्पन्न हो जाते हैं। |
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लेखक के कुएँ में साँप से संघर्ष के समय उसके छोटे भाई की मनोदशा कैसी थी? |
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Answer» लेखक ने कहा है कि ”जब मैं कुएँ के नीचे जा रहा था तो छोटा भाई रो रहा था। मैंने उसे ढाँढस दिलाया कि मैं कुएँ में पहुँचते ही साँप को मार दूंगा।” |
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निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ बताते हुए वाक्य-प्रयोग कीजिए –बेड़ियाँ कट जाना, बेहाल होना, आँखें चार होना, तोप के मुहरे पर खड़ा होना, टूट पड़ना, मोरचे पड़ना। |
Answer»
दासता की बेड़ियाँ कट जाने से देश आजाद हो गया।
राम के वन चले जाने पर दशरथ जी बेहाल हो गये।
आँखें चार होने पर प्रेम होता है।
हमारे देश के नौजवान तोप के मुहरे पर खड़े होने के लिए तैयार रहते हैं।
हमारे देश के नौजवान जब पाकिस्तानी सेना पर टूट पड़े तो उसके छक्के छूट गये।
कारगिल युद्ध में भारतीय सेना को पाकिस्तानी सेना से मोरचे पड़ गये। |
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निम्नांकित गद्यांशों में रेखांकित अंशों की सन्दर्भ सहित व्याख्या और तथ्यपरक प्रश्नों के उत्तर दीजिये –जाड़े के दिन थे ही, तिस पर हवा के प्रकोप से कँपकँपी लग रही थी। हवा मज्जा तक ठिठुरा रही थी, इसलिए हमने कानों को धोती से बाँधा। माँ ने भेंजाने के लिए थोड़े-से चने एक धोती में बाँध दिये। हम दोनों भाई अपना-अपना डण्डा लेकर घर से निकल पड़े। उस समय उस बबूल के डण्डे से जितना मोह था, उतना इस उम्र में रायफल से नहीं। मेरा डण्डा अनेक साँपों के लिए नारायण-वाहन हो चुका था। मक्खनपुर के स्कूल और गाँव के बीच पड़नेवाले आम के पेड़ों से प्रतिवर्ष उससे आम झूरे जाते थे। इस कारण वह मूक डण्डा सजीव-सा प्रतीत होता था। प्रसन्नवदन हम दोनों मक्खनपुर की ओर तेजी से बढ़ने लगे। चिट्ठियों को मैंने टोपी में रख लिया, क्योंकि कुर्ते में जेबें न थीं।(1) प्रस्तुत गद्यांश का संदर्भ लिखिए।(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।(3) लेखक ने चिट्ठियों को कहाँ रख लिया था?(4) लेखक ने चिट्ठियों को टोपी में क्यों रख लिया?(5) लेखक ने डण्डे की तुलना किससे की है? |
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Answer» 1.सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं श्रीराम शर्मा द्वारा लिखित ‘स्मृति’ नामक निबन्ध से उधृत है। प्रस्तुत अवतरण में लेखक ने अपनी बाल्यावस्था का सजीव चित्रण करते हुए बचपन की छोटी-छोटी बारीकियों को स्पष्ट किया है। 2.रेखांकित अंशों की व्याख्या- लेखक शीतऋतु का वर्णन करते हुए कहता है कि “जाड़े का दिन था। हाड़ कॅपा देने वाली ठण्ड थी। इसलिए हमने कानों को धोती से बाँध लिया। माँ ने चना भैजाने के लिए उसे एक धोती में बाँध कर मुझे दिया। मैं और छोटा भाई डण्डा लेकर घर से चल पड़े। उस समय उस बबूल के डण्डे से जितना लगाव था उतना आज एक रायफल से नहीं है। मैं उस डण्डे से अनेक साँपों को मार चुका था। प्रतिवर्ष इसी डण्डे से आम के टिकोरे तोड़े जाते थे। इसीलिए वह डण्डी मुझे अत्यन्त प्रिय था। हम दोनों भाई मक्खनपुरे की ओर आगे बढ़े। कुर्ते में जेब न होने के कारण चिट्ठियों को मैंने टोपी में रख लिया था।” 3.लेखक ने चिट्ठियों को अपनी टोपी में रख लिया था। “ 4.लेखक के कुर्ते में जेबें न थीं, इसलिए उसने चिट्ठियों को टोपी में रख लिया। 5.लेखक ने डण्डे की तुलना गरुण से की है। |
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चिट्ठियों को कुएँ में गिरता देख लेखक की क्या मनोदशा हुई? |
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Answer» चिट्ठियों को कुएँ में गिरता देख लेखक की मनोदशा उसी प्रकार हुई जैसे घास चरते हुए हिरन की आत्मा गोली से हत होने पर निकल जाती है और वह तड़पता रह जाता है। |
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निम्नांकित गद्यांशों में रेखांकित अंशों की सन्दर्भ सहित व्याख्या और तथ्यपरक प्रश्नों के उत्तर दीजिये –साँप को चक्षुःश्रवा कहते हैं। मैं स्वयं चक्षुःश्रवा हो रहा था। अन्य इन्द्रियों ने मानो सहानुभूति से अपनी शक्ति आँखों को दे दी हो। साँप के फन की ओर मेरी आँखें लगी हुई थीं कि वह कब किस ओर को आक्रमण करता है, साँप ने मोहनीसी डाल दी थी । शायद वह मेरे आक्रमण की प्रतीक्षा में था, पर जिस विचार और आशा को लेकर मैंने कुएँ में घुसने की ठानी थी, वह तो आकाश-कुसुम था । मनुष्य का अनुमान और भावी योजनाएँ कभी-कभी कितनी मिथ्या और उल्टी निकलती हैं। मुझे साँप का साक्षात् होते ही अपनी योजना और आशा की असम्भवता प्रतीत हो गयी। डण्डा चलाने के लिए स्थान ही न था। लाठी या डण्डा चलाने के लिए काफी स्थान चाहिए, जिसमें वे घुमाये जा सकें। साँप को डण्डे से दबाया जा सकता था, पर ऐसा करना मानो तोप के मुहरे पर खड़ा होना था।(1) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए। |(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।(3) चक्षुःश्रवा के नाम से कौन-सा जीव जाना जाता है? |
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Answer» 1.सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यावतरण पं० श्रीराम शर्मा द्वारा लिखित ‘स्मृति’ नामक संस्मरणात्मक निबन्ध से अवतरित है। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक ने कुएँ से पत्र निकालने की योजना का वर्णन किया है। 2.रेखांकित अंशों की व्याख्या- लेखक का कहना है कि “साँप एक ऐसा जीव है जिसे चक्षुःश्रवा के नाम से जाना जाता है। वहाँ मैं स्वयं चक्षुःश्रवा हो रहा था। मुझे कुएँ में ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे अन्य इन्द्रियों ने अपनी सम्पूर्ण शक्ति नेत्रों को दे दी है। मेरी आँखें साँप के फन पर थीं कि साँप किस तरफ से आक्रमण कर सकता है। इसलिए मैं बिल्कुल चौकन्ना था। उधुर साँप भी मेरे आक्रमण की प्रतीक्षा में था। मैंने जिस संकल्प के साथ कुएँ में प्रवेश किया था, लगता था संकल्प अधूरा ही रह जायेगा। साँप से सामना होते ही मेरी योजना एवं आशा असम्भव-सी प्रतीत होने लगी। लाठी-डण्डा चलाने के लिए पर्याप्त स्थान चाहिए। कुएँ में डण्डा चलाने के लिए स्थान बहुत कम था, वहाँ केवल साँप को डण्डे से दबाया जा सकता था, लेकिन ऐसा करना तोप के आगे खड़ा होना था।” 3.चक्षुःश्रवा के नाम से साँप को जाना जाता है। माना जाता है कि सर्प कर्णविहीन होने के कारण आँख से सुनता भी है। |
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निम्नांकित गद्यांशों में रेखांकित अंशों की सन्दर्भ सहित व्याख्या और तथ्यपरक प्रश्नों के उत्तर दीजिये –साँप से फुसकार करवा लेना मैं उस समय बड़ा काम समझता था। इसलिए जैसे ही हम दोनों उस कुएँ की ओर से निकले, कुएँ में ढेला फेंककर फुसकार सुनने की प्रवृत्ति जागृत हो गयी। मैं कुएँ की ओर बढ़ा। छोटा भाई मेरे पीछे हो लिया, जैसे बड़े मृगशावक के पीछे छोटा मृगशावक हो लेता है। कुएँ के किनारे से एक ढेला उठाया और उझककर एक हाथ से टोपी उतारते हुए साँप पर ढेलो गिरा दिया, पर मुझ पर तो बिजली-सी गिर पड़ी।(1) उपर्युक्त गद्यांश का संदर्भ लिखिए।(2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।(3) लेखक को कब लगा कि उस पर बिजली सी गिर पड़ी? |
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Answer» 1.सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी गद्य’ में संकलित एवं श्रीराम शर्मा द्वारा लिखित ‘स्मृति’ नामक निबन्ध से उद्धृत है। इन पंक्तियों में लेखक ने अपने बचपन की एक घटना का वर्णन किया है। स्कूल जाते समय एक कुआँ पड़ता, जो सूख गया है। पता नहीं एक काला साँप उसमें कैसे गिर पड़ा था। स्कूल जाते समय बच्चे उसकी फुसकार सुनने के लिए पत्थर मारते थे। 2.रेखांकित अंशों की व्याख्या- लेखक कहता है कि ”मैं बचपन में साँप से फुसकार करवा लेना महान् कार्य समझता था। मैं और छोटा भाई जब कुएँ की तरफ से गुजरे तो फुसकार सुनने की इच्छा बलवती हुई । मैं कुएँ की तरफ बढ़ा और छोटा भाई मेरे पीछे हो गया। कुएँ के किनारे से मैंने एक ढेला उठाया और एक हाथ से टोपी उतारते हुए साँप पर प्रहार किया, लेकिन मैं एक अजीब संकट में फँस गया। टोपी उतारते हुए मेरी तीनों चिट्ठियाँ कुएँ में गिर पड़ीं। साँप ने फुसकारा था या नहीं मुझे आज भी ठीक से याद नहीं है। मेरी स्थिति उस समय वही हो गयी थी जैसे घास चरते हुए हिरन की आत्मा गोली लगने पर निकल जाती है और वह तड़पता रहता है। चिट्ठियों के कुएँ में गिरने से मेरी भी स्थिति हिरन जैसी हो गयी थी।” 3.लेखक को टोपी उतारते हुए तीन चिट्ठियाँ कुएँ में गिर पड़ीं। उस समय लेखक पर बिजली-सी गिर पड़ी। |
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लेखक ने अपने डण्डे के विषय में क्या कहा है? |
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Answer» लेखक ने अपने डण्डे के विषय में कहा है कि उस उम्र में बबूल के डण्डे से जितना मोह था, उतना इस उम्र में रायफल से नहीं। |
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लेखक की तीन साहित्यिक विशेषताएँ लिखिए। |
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Answer» लेखक की भाषा सहज, प्रवाहपूर्ण एवं प्रभावशाली है। भाषा की दृष्टि से इन्होंने प्रेमचन्द जी के समान ही प्रयोग किये हैं। इन्होंने अपनी भाषा को सरल एवं सुबोध बनाने के लिए संस्कृत, उर्दू तथा अंग्रेजी के शब्दों के साथ-साथ लोकभाषा के शब्दों का प्रयोग किया है। |
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कुएँ में साहसपूर्वक उतरकर चिट्ठियों को निकाल लाने के कार्य का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए। |
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Answer» लेखक पाँच धोतियाँ जोड़कर कुएँ के नीचे उतरा। नीचे कच्चे कुएँ का व्यास बहुत कम था, अत: साँप को डण्डे से मारना आसान नहीं थी। लेखक का कहना है कि डण्डे के मेरी ओर खिंच आने से मेरे और साँप के आसन बदल गये। मैंने तुरन्त ही लिफाफे और पोस्टकार्ड चुन लिये। |
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लेखक और साँप के बीच संघर्ष के विषय में लिखिए। |
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Answer» जब लेखक चिट्ठियाँ लेने कुएँ में उतरा तो साँप ने वार किया और डण्डे से चिपट गया। डण्डा हाथ से छूटा तो नहीं, पर झिझक, सहम अथवा आतंक से अपनी ओर खिंच गया और गुंजल्क मारता हुआ साँप का पिछला भाग मेरे हाथों से छू गया। डण्डे को मैंने एक ओर पटक दिया । यदि कहीं उसका दूसरा वार पहले होता, तो उछलकर मैं साँप पर गिरता और न बचता। डण्डे के मेरी ओर खिंच आने से मेरे और साँप के आसन बदल गये। मैंने तुरन्त ही लिफाफे और पोस्टकार्ड चुन लिये। |
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श्रीराम शर्मा किस युग के लेखक थे? |
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Answer» श्रीराम शर्मा शुक्ल एवं शुक्लोत्तर युग के लेखक थे। |
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‘स्मृति’ लेख किस शैली में लिखा गया है? |
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Answer» ‘स्मृति’ लेख वर्णनात्मक शैली में लिखा गया है। |
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श्रीराम शर्मा ने किस पत्रिका का सम्पादन किया था? |
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Answer» श्रीराम शर्मा ने ‘विशाल भारत’ का सम्पादन किया था। |
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