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क्षितिज अटारी गहराई दामिनि दमकी,‘क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की’,बाँध टूटा झर-झर मिलन के अश्रु ढरके।मेघ आए बड़े बन-उन के सँवर के।भावार्थ : बादलों को घिरते देखकर कवि कहते हैं कि क्षितिजरूपी अटारी बादलों से ढंक चुकी है और बिजली चमकने लगी है। अब तक जो अशंका थी कि बादल नहीं बरसेंगे, वह भ्रम टूट चुका है। अटारी पर खड़ी नायिका के मन का भी भ्रम टूट गया है। मेहमान अटारी पर आ गया है मानो उसके अंदर बिजली दौड़ गई है। वह मन ही मन क्षमा माँगने लगती है। उसके मन के भावों को समझते ही मेहमान की आँखों से खुशी के आँसू बरसने लगते हैं, अर्थात् वर्षा होने लगी। इस तरह बादल सज-धजकर गाँव आए हैं।1. मेघ आने से क्षितिज रूपी अटारी पर क्या परिवर्तन हुआ ?2. बादलों के क्षितिज पर छाने से पहले क्या भम बना हुआ था ?3. ‘मिलन के अश्रु ढरके’ का क्या आशय है ?4. काव्यांश में कौन-कौन से मुहावरे हैं ?

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1. मेघ आने पर क्षितिज रूपी अटारी पर बादल घिर आए और बिजली चमकने लगी।

2. बादलों के क्षितिज पर छाने से पहले यह भ्रम बना हुआ था कि बादल नहीं बरसेंगे।

3. ‘मिलन के अश्रु ढरके’ का यह आशय है कि क्षितिज रूपी अटारी पर जब व्याकुल अपने प्रेमी से मिली तो आँखों से खुशी के आँसू बरसने लगते हैं।

4. गाँठ खुलना (मन का मैल दूर होना), बाँध टूटना (धैर्य समाप्त होना), बन-ठन के आना (सज-सँवरकर आना) आदि मुहावरे हैं।



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