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लाल चेहरा है नहीं–पर लाल किसके?लाल खून नहीं ? अरे, कंकाल किसके ?प्रेरणा सोयी कि आटा-दाल किसके?सिर न चढ़ पाया कि छापा-माल किसके ?वेद की वाणी कि हो आकाश-वाणी,धूल है जो जम नहीं पायी जवानी।

Answer»

[ लाल = लाल रंग, पुत्र, एक बहुमूल्य मणि। कंकाल = हड्डी का ढाँचा। छापा-माल = तिलक एवं माला। ]

प्रसंग–प्रस्तुत पद में कवि ने युवकों को प्रेरणा देते हुए उन्हें वीर पुरुष के लक्षण समझाये हैं।

व्याख्या-हे युवको! यदि तुम्हारे खून में लाली नहीं है अथवा तुम्हारा चेहरा ओज गुण से लाल नहीं है अर्थात् देश के गौरव की रक्षा के लिए यदि तुममें बलिदान होने का उत्साह नहीं है तो तुम्हें भारतमाता का लाल नहीं कहा जा सकता।  तुम्हारे रक्त में यदि लालिमा नहीं है अर्थात् उष्णतारूपी जोश नहीं है तो तुम्हारा अस्थि-पंजर देश के किस काम आएगा ? यदि देश पर बलिदान होने की तुम्हारी प्रेरणा सो गयी है तो तुम्हारे ये शरीर शत्रु के लिए आटा-दाल के रूप में भोज्य-पदार्थमात्र बनकर रह जाएँगे। तुम्हारे सिर की शोभा धार्मिक क्रिया-काण्डों के छापा-तिलक लगाने से या माला धारण करने से नहीं बढ़ेगी, वरन् देश पर बलिदान होने से बढ़ेगी। तात्पर्य यह है कि इन धार्मिक प्रतीकों का तब तक कोई मूल्य नहीं है जब तक मातृ-भूमि पर शीश चढ़ाने का भाव हृदय में न पैदा हो। कवि पुनः कहता है कि जिस कविता से युवकों में उत्साह न जगाया जा सके, वह कविता भी निरर्थक है। भले ही वह पवित्र वेदों से उधृत हो अथवा स्वयं देवताओं के मुख से निकली आकाशवाणी हो। –

काव्यगत सौन्दर्य-
⦁    यहाँ स्वाभिमान तथा बलिदान का महत्त्व समझाया गया है।
⦁    त्याग की भावना को ही प्रेम की शोभा बताया गया है।
⦁    भाषा-साहित्यिक खड़ी बोली।
⦁    शैली–प्रवाहमयी तथा ओजपूर्ण।
⦁    रस-वीर।
⦁    गुण-ओज।
⦁    छन्द-मुक्त-तुकान्त।
⦁    अलंकार-‘लाल चेहरा है नहीं, फिर लाल किसके’ में अनुप्रास तथा यमक एवं ‘टूटता-जुड़ता ………….. हे जवानी’ में सर्वत्र उपमा । और रूपक की छटा।
⦁    भावसाम्य-बलिदान को महिमामण्डित करते हुए अन्यत्र भी कहा गया है

त्याग बिना निष्प्राण प्रेम है,
करो प्रेम पर प्राण निछावर।



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