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वह कली के गर्भ से फल रूप में, अरमान आया !देखें तो मीठा इरादा, किस तरह, सिर तान आया ।डालियों ने भूमि रुख लटका दिया फल देख आली !मस्तकों को दे रही संकेत कैसे, वृक्ष-डाली !फल दिये? या सिर दिये तरु की कहानीगॅथकर युग में, बताती चल जवानी !

Answer»

[ कली के गर्भ से = कली के अन्दर से। अरमान = अभिलाषा। आली = सखी।]

प्रसंग-कवि ने अपनी ओजस्वी वाणी में वृक्ष और  उसके फलों के माध्यम से युवकों में देश के लिए बलिदान होने की प्रेरणा प्रदान की है।

व्याख्या-हे युवाओ! फल के भार से लदे हुए वृक्षों की ओर देखो। वे पृथ्वी की ओर अपना मस्तक झुकाये हुए हैं। कली के भीतर से झाँकते फल कली के संकल्पों (अरमानों) को बता रहे हैं। ‘तुम्हारे हृदय से भी इसी प्रकार बलिदान हो जाने का संकल्प प्रकट होना चाहिए। यह तो बहुत ही प्यारा संकल्प है, इसीलिए पुष्प-कली गर्व से सिर उठाये हुए हैं। जब फल पक गये, तब डालियों ने पृथ्वी की ओर सिर झुका दिया है। अब ये फल दूसरों के लिए अपना बलिदान करेंगे। हे मित्र नौजवानो! वृक्षों की ये शाखाएँ तुम्हें संकेत दे रही हैं कि औरों के लिए मर-मिटने को तैयार हो जाओ। वृक्षों ने फल के रूप में अपने सिर बलिदान हेतु दिये हैं। तुम भी अपना सिर देकर वृक्षों की इस बलिदान-परम्परा को अपने जीवन में उतारो, आचरण में ढालो और युग की आवश्यकतानुसार स्वयं को उसकी प्रगतिरूपी माला में गूंथते हुए आगे बढ़ते रहो।

काव्यगत सौन्दर्य-
⦁    प्रस्तुत अंश द्वारा कवि युवाओं को यह सन्देश देते हैं कि जिस प्रकार वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते, उसी प्रकार उन्हें भी अपनी जवानी परहित में लगानी चाहिए।
⦁    भाषा-सरल खड़ी बोली
⦁    शैली–उद्बोधन।
⦁    रस-वीर।
⦁    गुण-ओज।
⦁    शब्दशक्ति-व्यंजना।
⦁    अलंकार-अनुप्रास, उपमा एवं रूपक।
⦁    छन्द-मुक्त-तुकान्तः



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