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ये न मग हैं, तव चरण की रेखियाँ हैं,बलि दिशा की अमर देखा-देखियाँ हैं।विश्व पर, पद से लिखे कृति लेख हैं ये,धरा तीर्थों की दिशा की मेख हैं ये !प्राण-रेखा खींच दे उठ बोल रानी,री मरण के मोल की चढ़ती जवानी।

Answer»

[ मग = मार्ग। तव = तुम्हारे। रेखियाँ = रेखाएँ। बलि-दिशा = बलिदान की दिशा। कृति-लेख = कर्मों के लेख] |

प्रसंग-इन पंक्तियों में कवि नवयुवकों को अपने महान् और बलिदानी पूर्वजों के बनाये और दिखाये गये मार्ग पर चलने की प्रेरणा प्रदान करता है। |

व्याख्या—मेरे देश के नवयुवको! जिस मार्ग पर तुम चलते हो, वह कोई साधारण मार्ग नहीं है, अपितु तुम्हारे पूर्वजों द्वारा चरणों की रेखाओं से निर्मित आदर्श मार्ग है। जिन आदर्शों के आधार पर हम अपने जीवन का निर्माण करते हैं, वे सभी आदर्श तुम्हारे सदृश  युवा-पुरुषों के द्वारा निर्मित हैं। यह मार्ग बलिदान का आदर्श मार्ग है, जिसको देखकर युगों-युगों तक लोग स्वयं ही बलिदान के लिए प्रेरित होते रहेंगे।

कवि कहता है कि इन बलिदान-पथों का निर्माण उत्साही नवयुवकों ने किया है। कर्मशील युवकों ने अपने सत्कार्यरूपी पदों से इन विश्व-मोर्गों का निर्माण किया है; अत: ये कर्मशील युवकों के कर्म के लेख हैं, जो बलिदान के मार्ग पर चलने वाले युवकों का मार्गदर्शन करते हैं। ये बलिदान के मार्ग संसार के तीर्थों की दिशा बताने वाली कील (दिशासूचक) हैं। युवक जिन स्थानों पर अपना बलिदान करते हैं, वे स्थान पृथ्वी पर बलिदान के तीर्थ (पवित्र स्थान) समझे जाते हैं।

कवि अन्त में कहता है कि हे उत्साहपूर्ण जवानीरूपी रानी! आज तू अपने प्राणों का बलिदान देकर विश्व के युवकों के लिए बलिदान की नयी रेखा खींच दे अर्थात् एक नया प्रतिमान बना दे। हे युवको ! तुम । उठो और संसार को बता दो कि जवानी की महत्ता देश के लिए मर-मिटने में ही है।

काव्यगत सौन्दर्य–
⦁    युवा-शक्ति के बलिदान से ही नये आदर्शों का निर्माण हुआ करता है।
⦁    युवकों की जवानी का महत्त्व त्याग-बलिदान से ही जाना जाता है।
⦁    यहाँ राष्ट्र-कल्याण के लिए बलिदान का पथ-प्रशस्त करने की बात कहकर कवि ने अपनी देशभक्ति का पावन भाव व्यक्त किया है।
⦁    भाषा-सरल खड़ी. बोली।
⦁    शैली–प्रतीकात्मक और  उद्बोधनात्मक।
⦁    रस-वीर।
⦁    गुण-ओज।
⦁    अलंकार-पद्य में सर्वत्र रूपक और अनुप्रास।
⦁    छन्द-तुकान्त-मुक्त।
⦁    भावसाम्य-महाकवि ‘निराला’ भी मातृभूमि पर अपने सर्वस्व को अर्पित करते हुए कहते हैं

नर-जीवन के स्वार्थ सकल
बलि हों तेरे चरणों पर, माँ,
मेरे श्रम-संचित सब फल।



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