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द्वार बलि का खोल चल, भूडोल कर देंएक हिम-गिरि एक सिर का मोल कर दें,मसल कर, अपने इरादों-सी, उठा कर,दो हथेली हैं कि पृथ्वी गोल कर दें?रक्त है ? या है नसों में क्षुद्र पानी !जाँच कर, तू सीस दे-देकर जवानी ?

Answer»

[ भूडोल = पृथ्वी को कॅपाना। इरादों = संकल्पों, इच्छाओं, विचारों। क्षुद्र = तुच्छ।]

प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से चतुर्वेदी जी  देश के युवा वर्ग को उत्साहित कर रहे हैं कि वह देश की वर्तमान परिस्थिति को बदल दें।।

व्याख्या-चतुर्वेदी जी युवकों का आह्वान करते हुए कहते हैं कि हे युवको! तुम अपनी मातृभूमि के लिए बलिदान देने की परम्परा का द्वार खोलकर इस धरती को कम्पायमान कर दो और हिमालय के एक-एक कण के लिए एक-एक सिर समर्पित कर दो।।
हे नौजवानो! तुम्हारे संकल्प बहुत ऊँचे हैं जिन्हें पूर्ण करने के लिए तुम्हारे पास दो हथेलियाँ हैं। अपनी उन हथेलियों को अपने ऊँचे संकल्पों के समान उठाकर तुम पृथ्वी को गोल कर सकते हो; अर्थात् बड़ी-सेबड़ी बाधा को हटा सकते हो।
हे वीरो! तुम अपनी युवावस्था की परख अपने शीश देकर कर सकते हो। इस बलिदानी परीक्षण से तुम्हें यह भी ज्ञात हो जाएगा कि तुम्हारी धमनियों में शक्तिशाली रक्त दौड़ रहा है अथवा उनमें केवल शक्तिहीन पानी ही भरा हुआ है।

काव्यगत सौन्दर्य-
⦁    कवि के अनुसार युवक अपनी संकल्प-शक्ति से सब कुछ बदल सकते हैं।
⦁    कवि द्वारा नवयुवकों में उत्साह का संचार किया गया है।
⦁    भाषा-विषय के अनुकूल शुद्ध परिमार्जित खड़ी बोली।
⦁    शैली–उद्बोधन।
⦁    रस-वीर।
⦁    गुण-ओज।
⦁    शब्दशक्तिव्यंजना।
⦁    अलंकार-‘अपने इरादों-सी, उठाकर’ में उपमा तथा सम्पूर्ण पद में अनुप्रास। “
⦁    छन्द-तुकान्त-मुक्त।



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