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This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.

2801.

डिटॉल का मुख्य कार्य है(क) जलन को दूर करना(ख) घाव को कीटाणु रहित करना(ग) मूच्र्छा दूर करना(घ) रक्त-स्राव बन्द करना

Answer»

सही विकल्प है (ख) घाव को कीटाणु रहित करना

2802.

सर्प के काटने पर काटे हुए स्थान पर लगाते हैं(क) बरनॉल(ख) लाल मिर्च(ग) पोटैशियम परमैंगनेट(घ) नौसादर

Answer»

सही विकल्प है (ग) पोटैशियम परमैंगनेट

2803.

रोगाणुओं के शरीर में प्रवेश करने के कारण उत्पन्न होने वाले रोगों को कहते हैं(क) साधारण रोग(ख) घातक रोग(ग) संक्रामक रोग(घ) गम्भीर रोग

Answer»

सही विकल्प है (ग) संक्रामक रोग

2804.

रोग के उद्भवन काल से आपका क्या तात्पर्य है?

Answer»

किसी भी संक्रामक रोग के रोगाणुओं के शरीर में प्रवेश करने तथा रोग के लक्षण प्रकट होने के मध्य काल को रोग का उद्भवन काल कहते हैं।

2805.

उत्तम स्वास्थ्य का प्रतीक है(क) सुन्दर बाल(ख) चमकती आँखें(ग) मजबूत मांसपेशियाँ(घ) ये सभी

Answer»

सही विकल्प है (घ) ये सभी

2806.

तपेदिक के रोगाणु को कहते हैं(क) वरियोला वायरस(ख) विब्रियो कोलेरी(ग) ट्यूबरकिल बैसिलस(घ) बैसिलस टाइफोसिस

Answer»

सही विकल्प है (ग) ट्यूबरकिल बैसिलस

2807.

रेबीपुर की सूई………. काटने पर लगाई जाती है।(क) मच्छर के(ख) खटमल के(ग) कुत्ते के(घ) साँप के

Answer»

सही विकल्प है (ग) कुत्ते के

2808.

बच्चों को क्षय रोग से बचाने के लिए टीका लगाया जाता है(क) ट्रिपल एण्टीजन का(ख) बी० सी० जी० का(ग) टिटेनस का(घ) इन सभी का।

Answer»

सही विकल्प है (ख) बी० सी० जी० का

2809.

बच्चों को बी० सी० जी० का टीका क्यों लगाया जाता है?

Answer»

यह टीका बच्चों में क्षय रोग (टी० बी०) से बचाव के लिए लगाया जाता है।

2810.

काली खाँसी रोग के कारण, लक्षण एवं उपचार बताइए।

Answer»

कारण-काली खाँसी अथवा कुकुर खाँसी बच्चों में होने वाला एक भयंकर रोग है, जो कि होमोकीस परदुसिस बैसिलस नामक जीवाणु के द्वारा होता है। रोगी के खाँसने, छींकने या बोलने से जीवाणु वायु में आ जाते हैं तथा इस प्रकार की दूषित वायु स्वस्थ बच्चों में रोग का प्रसार करती है। रोगी द्वारा प्रयुक्त वस्त्र एवं बर्तन भी रोग के प्रसार का माध्यम होते हैं।

लक्षण:

  1. भयंकर खाँसी उठती है तथा रोगी खाँसते-खाँसते वमन कर देता है।
  2. खाँसने से आँखों में पानी आ जाता है।
  3. गले में दर्द रहता है।
  4. ज्वर तथा व्याकुलता रहती है।
  5. यह रोग लगभग 1-2 सप्ताह तक रहता है।

बचने के उपाय तथा उपचार:

  1. बच्चों को रोग-निरोधक टीका लगवाना चाहिए।
  2. वायु संवाहित रोग होने के कारण रोगी से स्वस्थ बच्चों को पृथक् रखना चाहिए।
  3. रोगी द्वारा प्रयुक्त वस्तुओं को नि:संक्रमित करते रहना चाहिए।
  4. रोगी को किसी योग्य चिकित्सक को दिखाना चाहिए तथा चिकित्सक द्वारा सुझाई गई औषधियाँ नियमित रूप से लेनी चाहिए।
2811.

पागल कुत्ते के काटने से होने वाला रोग है(क) हिस्टीरिया(ख) मिरगी(ग) रक्तस्राव(घ) हाइड्रोफोबिया

Answer»

सही विकल्प है (घ) हाइड्रोफोबिया

2812.

सूर्य के प्रकाश का रोगाणुओं पर क्या प्रभाव पड़ता है?

Answer»

शुष्क वातावरण एवं सूर्य के प्रकाश में रोगाणु प्रायः नष्ट हो जाते हैं।

2813.

चेचक नामक रोग की उत्पत्ति के कारणों, लक्षणों तथा बचने एवं उपचार के उपायों का विवरण प्रस्तुत कीजिए।

Answer»

वायु द्वारा संक्रमित होने वाले रोगों में से एक मुख्य रोग चेचक (Smallpox) है। यह एक अत्यधिक भयंकर एवं घातक रोग है। अब से कुछ वर्ष पूर्व तक भारतवर्ष में इस संक्रामक रोग का काफी अधिक प्रकोप रहता था। प्रतिवर्ष लाखों व्यक्ति इस रोग से पीड़ित हुआ करते थे तथा हजारों की मृत्यु हो जाती थी, परन्तु सरकार के व्यवस्थित प्रयास से अब इस रोग को प्रायः पूरी तरह से नियन्त्रित कर लिया। गया है। चेचक को स्थानीय बोलचाल की भाषा में बड़ी माता भी कहा जाता है। इस रोग के कारणों, लक्षणों एवं बचाव के उपायों का विवरण निम्नवर्णित है

चेचक की उत्पत्ति के कारण:
चेचक वायु के माध्यम से फैलने वाला संक्रामक रोग है। यह रोग एक विषाणु (Virus) द्वारा फैलता है, जिसे वरियोला वायरस कहते हैं। रोगी व्यक्ति के साँस, खाँसी, बलगम के अतिरिक्त उसके दानों के मवाद, छिलके, कै, मल एवं मूत्र में भी यह वायरस विद्यमान होता है। इन सब स्रोतों से चेचक के वायरस निकलकर वायु में व्याप्त हो जाते हैं तथा सब ओर फैल जाते हैं। ये वायरस सम्पर्क में आने वाले स्वस्थ व्यक्तियों को संक्रमित कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त रोगी व्यक्ति के सीधे सम्पर्क द्वारा भी यह रोग संक्रमित हो सकता है। चेचक के फैलने का काल मुख्य रूप से नवम्बर से मई माह तक का होता है।

रोग के लक्षण:

  1. रोगी को तीव्र ज्वर रहता है।
  2. पीठ एवं सिर में भयानक पीड़ा होती है।
  3. रोग के तीसरे दिन पहले चेहरे पर तथा फिर टाँगों व बाँहों पर लाल रंग के दाने निकल आते हैं। अब रोगी का ज्वर कम होने लगता है।
  4. रोग के 5-6 दिन पश्चात् दाने आकार में वृद्धि कर बड़े-बड़े छालों का रूप ले लेते हैं।
  5. छालों में प्रारम्भ में तरल पदार्थ भरा रहता है जो कि रोग के 8-10 दिन बाद पस में बदल जाता है। छालों में प्रायः जलन व खाज होती है।
  6. रोग के 15-20 दिन पश्चात् छाले अथवा फफोले सूखने लगते हैं तथा इन पर खुरण्ड जमने लगता है।
  7. खुरण्ड उतर जाने पर त्वचा पर स्थायी चिह्न बने रह जाते हैं।
  8. उतरा हुआ खुरण्ड भारी मात्रा में विषाणुओं का संक्रमण करता है।

रोग से बचने के उपाय:
चेचक एक भयानक संक्रामक रोग है। सभी व्यक्तियों, विशेष रूप से रोगी की परिचर्या करने वाले व्यक्ति को इस रोग से बचने के उपाय अवश्य ही अपनाने चाहिए। एडवर्ड जेनर ने चेचक के टीके का आविष्कार किया, जिसके सफल प्रयोगों के फलस्वरूप आज चेचक को सम्पूर्ण विश्व में नियन्त्रित कर लिया गया है। चेचक से बचाव के कुछ सामान्य एवं सरल उपाय अग्रवर्णित हैं

  1. रोगी को पृथक्, स्वच्छ एवं हवादार कमरे में रखना चाहिए।
  2. रोगी के पासे नीम की ताजी पत्तियों वाली टहनी रखनी चाहिए।
  3. रोगी की परिचर्या करने वाले व आस-पास कै व्यक्तियों को चेचक का टीका अवश्य ही लगवा देना चाहिए।
  4. रोगी को उबालकर ठण्डा किया हुआ जल पीने के लिए देना चाहिए।
  5. तीव्र ज्वर व अन्य प्रकार की परिस्थितियों में किसी कुशल चिकित्सक की देख-रेख में ही रोगी को औषधियाँ देनी चाहिए।
  6. रोगी द्वारा प्रयुक्त वस्त्र, बर्तन इत्यादि को तीव्र नि:संक्रामक प्रयोग कर उबलते पानी से धोना चाहिए।
  7. रोगी के फफोलों पर से उतरने वाले खुरण्डों को जला देना चाहिए।
  8. नि:संक्रमण के लिए डिटॉल, फिनाइल, सैवलॉन, स्प्रिट व कार्बोलिक साबुन इत्यादि का प्रयोग किया जा सकता है।
  9. पूर्ण स्वस्थ होने तक रोगी को कमरे से बाहर नहीं जाने देना चाहिए।

चेचक का उपचार:
सामान्य रूप से चेचक के विशेष उपचार की कोई आवश्यकता नहीं होती क्योंकि यह रोग निश्चित अवधि के उपरान्त अपने आप ही समाप्त हो जाता है, परन्तु समुचित उपचार के माध्यम से रोग की भयंकरता से बचा जा सकता है तथा रोग से होने वाले अन्य कष्टों को कम किया जा सकता है। चेचक के रोगी को हर प्रकार से अलग रखना अनिवार्य है। उसे हर प्रकार की सुविधा दी जानी चाहिए। रोगी के कमरे में अधिक प्रकाश नहीं होना चाहिए, क्योंकि रोशनी से उसकी आँखों में चौंध लगती है, जिसका रोगी की नजर पर बुरा प्रभाव पड़ता है। चेचक के रोगी को पीने के लिए उबला हुआ पानी तथा हल्का आहार ही देना चाहिए। रोगी से सहानुभूतिमय व्यवहार करना चाहिए। किसी चिकित्सक की राय से कोई अच्छी मरहम भी दानों पर लगाई जा सकती है। रोगी को सुझाव देना चाहिए कि वह दानों को खुजलाए नहीं।

2814.

अतिसार के रोगी को कैसा भोजन देना चाहिए ?(क) तला भोजन(ख) तरल भोजन(ग) गरिष्ठ भोजन(घ) कुछ नहीं

Answer»

सही विकल्प है (ख) तरल भोजन

2815.

चेचक के विषाणु का क्या नाम है?(क) एण्टअमीबा हिस्टोलिटिका(ख) वेरियोला वाइरस(ग) विब्रियो कोलेरा(घ) साल्मोनेला टाइफॉइडिस

Answer»

सही विकल्प है (ख) वेरियोला वाइरस

2816.

रोग के रोगाणु शरीर में प्रवेश करने से रोग उत्पन्न होने तक के काल को कहते हैं(क) संक्रमण काल(ख) सम्प्राप्ति काल(ग) रोग का प्रकोप(घ) रोग सुधार की अवधि

Answer»

सही विकल्प है (ख) सम्प्राप्ति काल

2817.

टिटनेस रोग के जीवाणु पाये जाते हैं।(क) मिट्टी में(ख) गोबर में(ग) जंग लगे लोहे में(घ) इन सभी में

Answer»

सही विकल्प है (घ) इन सभी में

2818.

क्षय रोग उत्पन्न करने वाले जीवाणु का नाम है(क) कोरीनीबैक्टीरियम(ख) माइक्रो बैसिलस ट्यूबरकुलोसिस(ग) बोइँटेला(घ) स्ट्रेप्टोकोकस

Answer»

सही विकल्प है (ख) माइक्रो बैसिलस ट्यूबरकुलोसिस

2819.

बी० सी० जी० का टीका लगाया जाता है(क) क्षय रोग से बचने के लिए(ख) काली खाँसी से बचने के लिए(ग) कर्णफेर से बचने के लिए(घ) रोहिणी से बचने के लिए

Answer»

सही विकल्प है (क) क्षय रोग से बचने के लिए

2820.

टिटनेस नामक रोग किस जीवाणु से फैलता है?याटिटनेस फैलाने वाले सूक्ष्म जीवाणु का नाम क्या है? इस रोग की रोकथाम के दो उपाय लिखिए।

Answer»

टिटनेस नामक रोग क्लॉस्ट्रीडियम टिटेनाइ नामक जीवाणु द्वारा फैलता है।

रोकथाम के उपाय

1. प्रसव के समय माँ को तथा 3 से 5 माह के बच्चे को टिटनेस का टीका लगवा देना चाहिए।
2. त्वचा फटने, छिलने व घाव होने पर, तुरन्त टैटवैक का इन्जेक्शन लगवाना चाहिए।

2821.

डिफ्थीरिया नामक रोग में होने वाला विकार है(क) लार ग्रन्थियों में सूजन(ख) चेहरे पर लाल दाने निकल आना(ग) गले में झिल्ली का बन जाना(घ) टॉन्सिल्स में वृद्धि हो जाना

Answer»

सही विकल्प है (ग) गले में झिल्ली का बन जाना

2822.

कौन-कौन से हेपेटाइटिस रोग से बचाव के टीके उपलब्ध हैं?

Answer»

हेपेटाइटिस ‘A’ तथा ‘B’ से बचाव के लिए टीके उपलब्ध हैं।

2823.

डिफ्थीरिया नामक रोग किस आयु-वर्ग के बच्चे को होता है?

Answer»

डिफ्थीरिया रोग सामान्यतया 2 से 5 वर्ष की आयु के बच्चों को अधिक होता है।

2824.

टेटवैक (ए०टी०एस०) का इन्जेक्शन किस रोग से बचाव के लिए लगाया जाता है?(क) टिटनेस(ख) डिफ्थीरिया(ग) हैजा(घ) तपेदिक

Answer»

सही विकल्प है (क) टिटनेस

2825.

फाइलेरिया रोग कैसे फैलता है?

Answer»

फाइलेरिया एक कृमिजनित रोग है। इस कृमि को फाइलेरिया क्रॉफ्टी कहते हैं। इसे कृमि को फैलाने का कार्य क्यूलेक्स मच्छर द्वारा किया जाता है।

2826.

हाथीपाँव नामक रोग को अन्य किस नाम से जाना जाता है?

Answer»

हाथीपाँव नामक रोग को फाइलेरिया नाम से भी जाना जाता है।

2827.

हेपेटाइटिस रोग का मुख्य लक्षण है(क) पीलिया के लक्षण प्रकट होना(ख) अधिक भूख लगना(ग) वजन बढ़ना(घ) कोई भी लक्षण

Answer»

सही विकल्प है (क) पीलिया के लक्षण प्रकट होना

2828.

इन्सेफेलाइटिस रोग का लक्षण है(क) रोगी अतिसंवेदनशील हो जाता है।(ख) रोगी को दुर्बलता महसूस होती हैं तथा उल्टियाँ भी होती हैं।(ग) रोगी की गर्दन अकड़ जाती है।(घ) उपर्युक्त सभी लक्षण

Answer»

सही विकल्प है (घ) उपर्युक्त सभी लक्षण

2829.

चिकनगुनिया के मुख्य लक्षण बतायें।

Answer»

चिकनगुनिया रोग में जोड़ों में दर्द होता है तथा साथ ही ज्वर होता है। त्चचा शुष्क हो जाती है तथा प्रायः त्वचा पर लाल चकत्ते पड़ जाते हैं। बच्चों में रोग के संक्रमण से उल्टियाँ भी होने लगती हैं।

2830.

Answer the following questions, note down the important points and then develop the points into one – paragraph answers:The story ends with the new fellow- traveler telling the narrator that the girl was completely blind. What do you think, would be the feelings and thoughts of the narrator after knowing the truth?

Answer»

1. Narrator is still thinking about the girl who was left. 

2. when the new traveler comes into the compartment, the narrator is getting ready for another round of his favorite game. 

3. the surprising remark by the traveler would surely shock the narrator, and ultimately make him feel ashamed about himself. 

Paragraph: 

Both the readers and the narrator ultimately learn a very valuable lesson about the influence of initial assumptions on the ways we perceive (or fail to perceive) the world and other persons.

2831.

What are the symptoms of swine flu?

Answer»

Symptoms of swine flu : Palpitations, difficulty in breathing, sore throat, body pain along with high fever.

2832.

Everyone brought .......... lunch to the picnic. (a) their( b) there (c) theirs (d) his/her

Answer»

(d)  his/her

2833.

The story ends with a revelation. What is the revelation?

Answer»

The narrator had thought he was playing a game and trying to fool a normal-sighted person. He came to know that he was actually trying to fool a person blind like him. He also realized that even she had played a similar game with him, hiding her blindness.

2834.

What are the reasons for spread of swine flu?

Answer»

Swine flu is caused by the virus influenza A (H1N1). Its carrier is pig. The contact with such pigs or infected persons can cause infection of swine flu. The infection spreads through sweat and through secretions of nose, throat and saliva of the diseased person.

2835.

One word in the following sentences is wrong. Change it to make the sentences correct:Transmission of swine flu is done by dogs and human beings.

Answer»

Transmission of swine flu is done by pigs and human beings.

2836.

Rewrite the sentence after filling the blank:For treating diarrhoea/dysentery…………. is given to the patient.

Answer»

For treating diarrhoea/dysentery O.R.S. is given to the patient.

2837.

Rewrite the sentence after filling the blank:…………. mosquito spreads dengue.

Answer»

Aedes aegypti mosquito spreads dengue.

2838.

किस रोग में रोगी के गले की मांसपेशियाँ निष्क्रिय हो जाती है तथा वह कुछ भी निगल नहीं पाता?(क) मलेरिया(ख) फाइलेरिया(ग) हाइड्रोफोबिया(घ) इन्सेफेलाइटिस

Answer»

सही विकल्प है (ग) हाइड्रोफोबिया

2839.

पीत ज्वर का संक्रमण कैसे होता है?

Answer»

पीत ज्वर एक वायरसजनित रोग है। इस रोग के विषाणु का संक्रमण एडीस ईजिप्टिआई जाति के मच्छरों के माध्यम से होता है।

2840.

टिप्पणी लिखिए-इन्फ्लुएन्जा।

Answer»

इन्फ्लुएन्जा या फ्लू आमतौर पर एक फैलने वाला संक्रामक रोग है। सामान्य रूप से मौसम के बदलते समय यह रोग अधिक होता है। इस रोग का प्रसार बड़ी तेजी से होता है; अतः इससे बचाव के लिए विशेष सावधानी रखनी पड़ती है।

कारण तथा प्रसार:
फ्लू नामक रोग एक अति सूक्ष्म जीवाणु द्वारा फैलता है। यह रोगाणु इन्फ्लुएन्जा वायरस कहलाता है। जुकाम के बिगड़ जाने पर फ्लू बन जाता है। फ्लू का रोग बहुत ही शीघ्र फैलता है। यह कुछ ही घण्टों में फैल जाता है।
फ्लू नामक रोग रोगी के सम्पर्क द्वारा भी फैल जाता है। फ्लू के रोगी की छींक, खाँसी तथा थूक आदि द्वारा भी फ्लू फैलता है। रोगी द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले रूमाल, बर्तन तथा अन्य वस्तुओं के सम्पर्क द्वारा भी यह रोग लग सकता है।

लक्षण: फ्लू प्रारम्भ में जुकाम के रूप में प्रकट होता है। नाक से पानी बहने लगता है। इस रोग के शुरू होते ही शरीर में दर्द होने लगता है। सारे शरीर में बेचैनी होती है तथा कमजोरी महसूस होती है। इसके साथ-ही-साथ तेज ज्वर 102° से 104° फारेनहाइट तक हो जाता है।
उपचार: फ्लू के रोगी को आराम से लिटा देना चाहिए। रोगी को चिकित्सक को दिखाकर दवा देनी चाहिए। फ्लू के रोगी को विटामिन ‘सी’ युक्त भोजन देना चाहिए।

बचाव के उपाय: फ्लू के रोगी को अन्य व्यक्तियों से दूर ही रहना चाहिए। उसे भीड़ भरे स्थानों पर नहीं जाना चाहिए। रोगी को साफ कमरे में रखना चाहिए। पौष्टिक आहार, उचित विश्राम एवं निद्रा का ध्यान रखना चाहिए।

2841.

Why did the old man Twinkle need a boy?

Answer»

Old man Twinkle wanted a boy to help him in his shop. He needed a boy who could drive Jenny, the pony, for all Twinkle’s merchandise was taken round in the cart.

2842.

Rewrite the sentence after filling the blank:…………. virus is responsible for the infection of swine flu.

Answer»

Influenza A (H1N1) virus is responsible for the infection of swine flu.

2843.

डेंगू (Dengue) नामक रोग का सामान्य परिचय दें। इस रोग के कारण, लक्षणों, गम्भीरता तथा बचने के उपाय भी लिखिए।

Answer»

डेंगू एक संक्रामक रोग है जो मादा एडीज (Female Aedes) मच्छर के काटने से होता है। यह मच्छर प्रायः दिन में ही सक्रिय होता है तथा मनुष्यों को काटता है। डेंगू का अधिक प्रकोप कुछ वर्षों से अधिक हुआ है। हर वर्ष अनेक व्यक्ति इसके शिकार होते हैं। समुचित उपचार न होने की दशा में यह रोग घातक भी सिद्ध होता है। यह रोग उस समय अधिक गम्भीर हो जाता है, जब रोगी के रक्त के प्लेटलेट्स तेजी से घटने लगते हैं।

डेंगू के लक्षण-डेंगू के लक्षण निम्नलिखित हैं
⦁    इस रोग में तेज बुखार होता है।
⦁    रोगी को सिरदर्द, कमरदर्द तथा जोड़ों में दर्द होता है।
⦁    हल्की खाँसी तथा गले में खरास की भी शिकायत होती है।
⦁    रोगी को काफी थकावट तथा कमजोरी महसूस होती है।
⦁    रोग के बढ़ने के साथ-साथ उल्टियाँ होती हैं तथा शरीर पर लाल-लाल दाने निकल आते हैं।
⦁    इस रोग में रोगी की नाड़ी कभी तेज तथा कभी धीमी चलने लगती है तथा प्रायः रक्तचाप भी बहुत घट जाता है।
⦁    डेंगू शॉक सिंड्रोम (D.S.S.) के रोगियों में साधारण डेंगू बुखार तथा डेंगू हेमोरेजिक बुखार के लक्षणों के साथ-साथ बेचैनी महसूस होती है।
⦁    डेंगू हेमोरेजिक बुखार में अन्य लक्षणों के साथ-ही-साथ रक्त में प्लेटलेट्स की अत्यधिक कमी होने लगती है। इस स्थिति में शरीर में कहीं से भी रक्तस्राव होने लगता है। यह रक्तस्राव दाँतों, मसूड़ों से भी हो सकता है तथा नाक, मुँह या मल से भी हो सकता है।

डेंगू की गम्भीरता:
डेंगू रोग उस समय गम्भीर रूप ग्रहण कर लेता है जब व्यक्ति के प्लेटलेट्स तेजी से घटने लगते हैं। सामान्य रूप से एक स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में डेढ़ से दो लाख प्लेटलेट्स होते हैं। यदि ये एक लाख से कम हो जाये तो रोगी को हॉस्पिटल में भर्ती करवाना आवश्यक हो जाता है, क्योंकि इस स्थिति में प्लेटलेट्स चढ़ाने की आवश्यकता होती है। यदि प्लेटलेट्स और घट जाते हैं तो रोगी के शरीर से रक्तस्राव होने लगता है। ऐसे में शरीर के विभिन्न मुख्य अंगों के फेल (Multi-organ Failure) होने की भी आशंका रहती है।

डेंगू से बचने के उपाय:
डेंगू से बचने के लिए आवश्यक है कि मच्छरों से बचाव किया जाये। इसके लिए एक उपाय है कि मच्छरों को पनपने न दिया जाये। डेंगू फैलाने वाले मच्छर साफ पानी में पनपते हैं अतः घरों के अन्दर तथा आस-पास कहीं भी साफ पानी एकत्र न होने दें। पानी के बर्तनों को ढककर रखना चाहिए। फूलदानों आदि का पानी प्रतिदिन बदलते रहें। कूलर, पानी की हौदियों, टायर-ट्यूब, टूटे बर्तन, मटके, डिब्बे आदि में पानी एकत्र न होने दें। पक्षियों के खाने-पीने के बर्तनों को भी साफ करते रहें। मच्छरों की रोकथाम के साथ-ही-साथ स्वयं को मच्छरों से बचायें। इसके लिए मच्छरदानी का प्रयोग करें तथा मच्छरों को दूर रखने के लिए क्रीम या तेल का इस्तेमाल करें।

2844.

Answer the following questions, note down the important points and then develop the points into one – paragraph answers:Everyone thinks, he could out-wit anyone but sometimes, he himself is out-witted by others. Substantiate this with reference to the story.

Answer»

1. The narrator plays this game of pretense with strangers. 

2. He never talks about his blindness and takes it for granted that the others are normal-sighted. 

3. Throughout the encounter, he is bothered about what he should say and hence doesn’t pay much attention to what the other person says. 

Paragraph: 

After listening to the parent’s conversation with the daughter, the narrator could not distinguish any unusual advice or information that led him to believe the girl had any handicap herself. The narrator fooled himself. Apparently, he also misled the girl because she did not realize that her fellow traveler was blind either.

2845.

With the help of a dictionary, find out the difference between the following pairs of words and make sentences to bring out the difference. 1. anxious × curious 2. praise × flattery3. lonely × alone4. change × alter5. vendor × hawker6. probable × possible7. look × see8. hear × listen 9. loud × aloud 10. hanged × hung 11. break × brake 12. desert (n) × desert (v) ×deserts (n) × dessert (n)

Answer»

1. anxious × curious :

Anxious – experiencing worry or unease. 

Curious – eager to know or learn something. 

  • I was anxious to know about my mother’s health.
  • My friend was curious to know my marks.

2. praise × flattery :

Praise – sincere appreciative words about someone;

Flattery – excessive or false praise;

  • My mother praised me for studying by myself and securing good marks in the examination. 
  • The Principal, worried about the accounts of the college, tried to please the Inspector vb flattering him repeatedly.

3. lonely × alone:

Lonely – the feeling of being isolated; the feeling can arise even when surrounded by many people;

Alone – the state of being physically all by oneself;

  • Even when I am alone. I do not feel lonely if I have a good book to read

4. change × alter :

Change – move from one system or situation to another; 

Altar – make or become different;

  • My opinions about wealth will not alter no matter how my situation changes in life.

5. vendor × hawker :

Vendor – sells one or two goods, most often in an establishment;

Hawker – sells different types of goods and has no establishment;

  • The vendors are not troubled much by policemen, whereas the hawkers are harassed daily by the policemen since they occupy and block the footpaths.

6. probable × possible :

Probable – likely to happen or be the ease; 

Possible – capable of existing, happening or being done;

  • They may probably come tomorrow. However, it will not be possible because they have not reserved their train tickets at all.

7. look × see :

Look – direct one’s gaze in a particular direction;

usage is – look at (someone/something);

See – become aware of with the eyes;

  • usage is – see (someone/something);
  • On hearing a melodious sound, I looked up and saw a beautiful bird singing on the tree.

8. hear × listen : 

Hear – become aware of (something) with the ear;

Listen – given one’s attention to a sound; 

  • Hearing is done with the ear, whereas listening is done with the mind.

9. loud × aloud :

Loud – producing much noise, is used as an adjective;

Aloud – audibly, so as to be heard, is used as an adverb.

  • Read this aloud, but not in a loud voice.
  • Papa is sleeping. 

10. hanged × hung :

Hanged – used in the case of a living being; Hung – used in the case of non-living beings. 

  • Nowadays, many criminals are being hanged. 
  • The picture was hung on the wall.

11. break × brake :

Break – to cut into pieces;

Brake – a device for slowing or stopping a moving vehicle;

  • Don’t worry if the child breaks that toy. Anyway, it is old.
  • She had to brake hard to avoid a milk float.

12. desert (n) × desert (v) × deserts (n) ×dessert (n):

Desert (n) – a place where there is little or no vegetation but only sand;

  • The Sahara desert is the largest in the world.
  • Desert (v) – to leave someone without any help;
  • Poor women are often deserted by their husbands.
  • Deserts (n) – the reward or punishments that a person deserves;
  • When the police arrested the thief, he met his just deserts.
  • Dessert (n) – the sweet course eaten at the end of a meal. 
  • Jamoon is usually served as the dessert these days.
2846.

मलेरिया रोग फैलने के कारण, लक्षण और बचाव के उपाय लिखिए। मलेरिया के रोगी को क्या भोजन देना चाहिए?यामलेरिया रोग कैसे फैलता है? इस रोग के लक्षण तथा बचाव के उपाय बताइए।यामलेरिया बुखार से बचने के उपाय लिखिए।

Answer»

मलेरिया (Malaria) एक व्यापक रूप से फैलने वाला संक्रामक रोग है। चिकित्सा सम्बन्धी ज्ञान के भरपूर विकास के उपरान्त भी प्रतिवर्ष हमारे देश में लाखों व्यक्ति इस रोग के शिकार होते हैं। जिनमें से अनेक की इस रोग के कारण मृत्यु तक हो जाती है। मलेरिया फैलाने का कार्य मच्छर करते हैं। ऐनोफेलीज जाति के मादा मच्छर मलेरिया के वाहक होते हैं। इस रोग की उत्पत्ति एक परजीवी या पराश्रयी कीटाणु प्लाज्मोडियम (Plasmodium) से होती है। मलेरिया की उद्भवन अवधि 9 से 12 दिन है। व्यक्ति के रक्त में कीटाणु सक्रिय होकर रोग के लक्षण उत्पन्न करते हैं।

लक्षण:
(1) रोग का संक्रमण होने के साथ-ही-साथ व्यक्ति को कंपकपी के साथ जाड़ा लगता है जिससे शरीर का तापमान बढ़ने लगता है। इस स्थिति में व्यक्ति को 103° से 105° फारेनहाईट तक ज्वर हो सकता है।
(2) संक्रमण के साथ-ही-साथ सिर तथा शरीर के अन्य भागों में तेज दर्द होने लगता है।
(3) कभी-कभी तीव्र संक्रमण की दशा में जी मिचलाने लगता है तथा पित्त के बढ़ जाने से उबकाई या उल्टियाँ भी होने लगती हैं।
(4) जब मलेरिया का ज्वर उतरता है उस समय रोगी को पसीना भी आता है।
(5) छोटे बच्चों में मलेरिया के कारण प्लीहा या तिल्ली भी बढ़ जाती है।

बचाव के उपाय:
मलेरिया से बचाव का प्रमुख उपाय शरीर को मच्छरों से बचाना है। मच्छरों से बचाव के लिए दो प्रकार के उपाय किए जा सकते हैं। प्रथम प्रकार के उपायों के अन्तर्गत मच्छरों को समाप्त करने या भगाने के उपाय किए जाते हैं तथा दूसरे प्रकार के उपायों के अन्तर्गत व्यक्ति स्वयं को मच्छरों से सुरक्षित करने के प्रयास करता है।

उपचार:
मलेरिया का सन्देह होने पर रक्त की जाँच करवानी चाहिए। मलेरिया का संक्रमण निश्चित हो जाने पर चिकित्सक से उपचार करवाना चाहिए। मलेरिया के उपचार की अनेक औषधियाँ उपलब्ध हैं। रोगी को पूरी तरह से आराम करना चाहिए। रोग पर शीघ्र नियन्त्रण पाया जा सकता है। रोगी को हल्का तथा सुपाच्य आहार दिया जाना चाहिए।

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संक्रामक रोग किसे कहते हैं? मुख्य संक्रामक रोगों के नाम लिखिए।

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वे रोग जो जीवाणुओं के माध्यम से एक व्यक्ति अथवा प्राणी से दूसरे व्यक्ति अथवा प्राणी को लग जाते हैं, उन्हें संक्रामक रोग कहा जाता है। मुख्य संक्रामक रोग हैं-चेचक, तपेदिक, हैजा, मियादी बुखार, डेंगू, चिकनगुनिया, इन्सेफेलाइटिस आदि।

2848.

काली खाँसी के लक्षण, कारण व बचाव के उपाय लिखिए।याकुकुर खाँसी के लक्षण लिखिए।

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यह रोग साधारणतः 5 वर्ष से कम आयु के शिशुओं को होता है। प्रायः खसरा होने के बाद असावधानी से यह रोग उत्पन्न हो जाता है। इस रोग में बच्चे को रुक-रुककर खाँसी के दौरे पड़ते हैं। जो दिन में पाँच से लेकर बीस बार तक पड़ते हैं। प्रायः खाँसते-खाँसते उल्टी भी हो जाती है। इस रोग का उद्भवन काल 7 से 14 दिन तक होता है।

रोग फैलने के कारण:
काली खाँसी नामक रोग वायु एवं निकट सम्पर्क द्वारा फैलने वाला एक जीवाणु जनित रोग है। इस रोग की उत्पत्ति का कारण होमोकिट्स परटुसिस बेसिनस नामक रोगाणु होता है। रोगी की साँस में इस रोग के जीवाणु रहते हैं जो उसके सम्पर्क में आने से अथवा वायु द्वारा स्वस्थ शिशु को लग जाते हैं तथा उसे भी रोगी बना देते हैं। रोगी बच्चे के खिलौनों तथा वस्त्रों से भी यह छूत फैल जाती है। कुत्तों को यह रोग प्रायः होता रहता है; इसलिए इसे कुकुर खाँसी भी कहते हैं।

उपचार: (1) स्वस्थ बच्चों को रोगी बच्चे के सम्पर्क से बचाकर रखना चाहिए,
(2) रोगी के थूक आदि को जला देना चाहिए तथा नि:संक्रामकों से उसके वस्त्रों, खिलौनों व स्थान को साफ कर देना चाहिए,
(3) रोगी को हवादार कक्ष में रखना चाहिए,
(4) किसी अच्छे चिकित्सक के निर्देशानुसार औषधि लेनी चाहिए।

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तपेदिक (Tuberculosis) नामक रोग के फैलने के कारणों, लक्षणों तथा उपचार के उपायों का वर्णन कीजिए।याक्षय रोग के सामान्य लक्षण एवं रोकथाम के उपाय लिखिए।याक्षय रोग के कारण, लक्षण और बचाव के उपाय लिखिए। क्षय रोग के रोगी को क्या विशेष भोजन देना चाहिए?याकिसी एक संक्रामक रोग के कारण, लक्षण एवं बचने के उपाय लिखिए।

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तपेदिक (क्षय रोग)

यह अत्यन्त दुष्कर विश्वव्यापी संक्रामक रोग है जो आधुनिक वैज्ञानिक अनुसन्धानों के बावजूद भी नियन्त्रण में नहीं आ रहा है तथा उत्तरोत्तर वृद्धि कर रहा है। एक सर्वेक्षण के अनुसार, तपेदिक के विश्व के सम्पूर्ण रोगियों के एक-तिहाई भारत में हैं। इस रोग को ‘Captain of Death’ कहते हैं। इस रोग में मनुष्य के शरीर का शनैः-शनैः क्षय होता रहता है तथा इसमें घुल-घुलकर मनुष्य अन्ततोगत्वा मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। इसी कारण से इसे क्षय रोग भी कहते हैं। वैसे अब यह रोग असाध्य नहीं रहा। इसका पूर्ण उपचार सम्भव है। नियमित रूप से निर्धारित अवधि तक उचित औषधियाँ लेने तथा आहार-विहार को नियमित करके रोग से छुटकारा पाया जा सकता है। |

इस रोग के कई रूप हैं: फेफड़ों की तपेदिक, आँतों की तपेदिक, अस्थियों की तपेदिक तथा ग्रन्थियों की तपेदिक। इनमें सर्वाधिक प्रचलित फेफड़ों की तपेदिक है, जिसे पल्मोनरी टी० बी० (Pulmonary TB.) भी कहते हैं।
 
फैलने के कारण: इस रोग का जीवाणु ट्युबरकल बैसिलस (Tubercle bacillus) कहलाता है। इसका आकार मुड़े हुए दण्ड के समान होता है। सन् 1882 में सर्वप्रथम रॉबर्ट कॉक ने रोगियों के बलगम में इसे देखा तथा इसी जीवाणु को रोग का कारण बताया। ये जीवाणु सीलन वाले तथा अँधेरे स्थानों में बहुत दिन तक जीवित रह सकते हैं, किन्तु धूप लगने से ये शीघ्रता से नष्ट हो जाते हैं। साधारणत:यह रोग वायु या श्वास द्वारा ही फैलता है। रोगी के जूठे भोजन, जूठे सिगरेट-हुक्के, उसके वस्त्रों तथा बर्तनों में भी रोग के कीटाणु आकर रोग को फैला देते हैं। मक्खियाँ भी इस रोग के जीवाणुओं को अपने साथ उड़ाकर ले जाती हैं और साफ भोजन को दूषित कर इस रोग को फैला देती हैं।

तंग स्थानों व बस्तियों में जहाँ प्रकाश की उचित मात्रा नहीं पहुँचती, रहने वाले नागरिक शीघ्रता से इस बीमारी के शिकार बन जाते हैं। इसके अतिरिक्त, निर्धनता, परदा-प्रथा, बाल-विवाह, अपौष्टिक भोजन और वंश-परम्परा भी इस रोग को फैलाने में सहायक होते हैं। सड़कों पर पत्थर तोड़ने वाले मजदूरों, चमड़े तथा टिन का कार्य करने वाले श्रमिकों तथा भरपेट भोजन न प्राप्त कर सकने वाले व्यक्तियों को भी यह रोग शीघ्रता से ग्रस्त कर लेता है। बहुत अधिक मानसिक क्लेशों के व्याप्त रहने तथा मादक द्रव्यों का अत्यधिक सेवन करने से भी यह रोग जन्म लेता है। गायों को यह रोग शीघ्रता से लता है तथा इस रोग से ग्रस्त गायों का दूध पीने से भी यह रोग हो सकता है।

उदभवन-काल:

इस रोग के जीवाणु शरीर में पहुँचकर धीरे-धीरे बढ़ते तथा अपना प्रभाव जमाते हैं। रोग के काफी बढ़ जाने पर ही इसका पता लगता है।

रूप और लक्षण:
प्रारम्भ में शरीर में हर समय हल्का ज्वर रहता है। शरीर के अंग शिथिल रहते हैं। हल्की खाँसी रहती है। रोगी का भार धीरे-धीरे कम हो जाता है और उसे भूख भी कम लगती है। किसी शारीरिक अथवा मानसिक कार्य को करने से अत्यधिक थकान हो जाती है। रोगी को हर समय आलस्य का अनुभव होता है। कभी-कभी मुख से बलगम के साथ रक्त आता है। फेफड़ों का एक्स-रे (X-Ray) चित्र स्पष्ट रूप से रोग का प्रभाव बतलाता है।अस्थियों की तपेदिक में रोगी की अस्थियाँ निर्जीव हो जाती हैं तथा उनकी वृद्धि रुक जाती है। आँतों की तपेदिक में आरम्भ में दस्त बहत होते हैं। रोग काफी बढ़ जाने पर ही पहचान में आता है।

उपचार तथा बचाव
⦁    (1) इस रोग वाले व्यक्ति को तुरन्त किसी क्षय-चिकित्सालय (T:B. sanatorium) में भेजना चाहिए, परन्तु यदि रोगी को घर में ही रखना पड़े, तो उसके सम्पर्क से दूर रहना चाहिए।
⦁    (2) रोगी को शुद्ध वायु तथा धूप से युक्त कमरे में रखना चाहिए। उसके खाने-पीने के बर्तन पृथक् होने चाहिए। रोगी के परिचारकों को अपना मुंह तथा नाक ढककर रोगी के पास जाना चाहिए।
⦁    (3) रोगी के आस-पास का वातावरण बिल्कुल स्वच्छ रखना चाहिए। उसका थूक, बलगम आदि ऐसे बर्तन में पड़ना चाहिए जो नि:संक्रामक विलयन से भरा हुआ हो। उसके कपड़ों को भी नि:संक्रामकों से धो देना चाहिए।
⦁    (4) B.C.G. का टीका लगवाना चाहिए। इस टीके को लगवाकर सामान्य रूप से क्षय रोग से बचा जा सकता हैं। स्वच्छ वातावरण, सन्तुलित पौष्टिक आहार तथा साधारण व्यायाम भी इस रोग से बचाव में सहायक होते हैं।
⦁    (5) रोगी को शुद्ध एवं नियमित जीवन व्यतीत करते हुए ताजे फल तथा उत्तम स्वास्थ्यप्रद एवं सुपाच्य भोजन देना चाहिए।

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विषाक्त भोजन (Food poisoning) से क्या तात्पर्य है? भोजन के विषाक्त होने के कारण, लक्षण एवं उपचार की विधियाँ लिखिए।याभोजन विषैला होने के कारण, लक्षण तथा इससे बचाव के उपाय बताइए।याभोजन दूषित होने के विभिन्न कारणों को लिखिए । मनुष्य में भोज्य विषाक्तता के लक्षण भी लिखिए।याविषाक्त भोजन से आप क्या समझती हैं? विषाक्त भोजन से मानव शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है?याभोजन विषाक्तता से आप क्या समझती हैं? भोजन विषाक्तता के लक्षण बताइए। भोजन विषाक्तता से बचने के लिए क्या उपाय करने चाहिए?याविषाक्त भोजन की हानियाँ लिखिए

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विषाक्त भोजन:

अर्थपूर्ण रूप से स्वच्छ, पौष्टिक तथा उपयुक्त दिखायी देने वाले भोज्य पदार्थ भी कभी-कभी व्यक्ति को रोगी बना सकते हैं। सामान्यतः ऐसे भोजन में कोई-न-कोई पदार्थ व्यक्ति को ग्राह्य नहीं होता। इसका मुख्य कारण होता है, भोजन के अन्दर उपस्थित ऐसे पदार्थ जो व्यक्ति के शरीर में जाने के बाद विषैले प्रभाव उत्पन्न करते हैं। यही विषाक्त भोजन है। वास्तव में कुछ जीवाणु आहार में मिलकर उसे विषाक्त बना देते हैं। आहार को विषाक्त बनाने वाले मुख्य जीवाणुओं का सामान्य परिचय निम्नवर्णित है
 
(1) साल्मोनेला समूह:

इस समूह के जीवाणु पशु-पक्षियों के शरीर में पाए जाते हैं। मनुष्य जब इनका मांस खाते हैं अथवा दूध पीते हैं, तो जीवाणु उनके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। संक्रमण के छह घण्टों से दो दिन तक के समय में जीवाणु विषाक्तता के लक्षण प्रकट कर देते हैं। भोजन की यह विषाक्तता प्रायः मांस, अण्डे, क्रीम तथा कस्टर्ड आदि द्वारा उत्पन्न होती है। मक्खियाँ भी इन जीवाणुओं के संवाहन में महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं।

लक्षण :

मितली, वमन, पेट में पीड़ा तथा दस्त होते हैं, जिनके कारण रोगी निर्जलीकरण अथवा डी-हाइड्रेशन का शिकार भी हो सकता है। उचित उपचार न मिलने पर रोगी की मृत्यु भी हो सकती है।

बचाव एवं उपचार
⦁    भोजन को मक्खियों से सुरक्षित रखना चाहिए।
⦁    भोजन बनाने व करने से पूर्व हाथों को साबुन से भली प्रकार से धो लेना चाहिए।
⦁    भोजन को उच्च ताप पर पकाना चाहिए तथा संरक्षित भोजन को खाने से पूर्व लगभग 72° सेण्टीग्रेड तक गर्म कर लेना चाहिए। इससे भोजन के सभी जीवाणु नष्ट हो जाते हैं।
⦁    डी-हाइड्रेशन होने पर किसी योग्य चिकित्सक द्वारा ग्लूकोज एवं सैलाइन जल चढ़वा देना चाहिए।

(2) स्टैफाइलोकोकाई समूह:

इस समूह के जीवाणु प्राय: वायु में, मनुष्यों की नाक, गले, फोड़े-फुन्सियों व घावों में पाए जाते हैं। ये भोजन बनाते समय खाँसने व छींकने तथा गन्दे हाथों के माध्यम से भोजन में प्रवेश करते हैं। भोजन के विषाक्त होने का मुख्य कारण भोजन के पकाने के पश्चात् इसे अधिक समय तक गर्म रख छोड़ना है। इस प्रकार का विषाक्त भोजन खाने के एक से छह घण्टों के अन्दर विषाक्तता के लक्षण प्रकट होने लगते हैं।

लक्षण:
रोगी शिथिल हो जाता है। यह विषाक्तता अधिक भयानक परिणाम नहीं दिखाती है।

बचाव एवं उपचार:
⦁    भोजन बनाते समय सावधानी से छींकना अथवा खाँसना चाहिए।
⦁    भोजन बनाने से पूर्व हाथों को भली प्रकार साबुन से धोना चाहिए।
⦁    भोजन पकाने के बाद ठण्डा कर उसे रेफ्रिजेरेटर में रखने से जीवाणुओं के पनपने की सम्भावना कम रहती है।
⦁    अत्यधिक ताप पर देर तक भोजन पकाने पर भोजन का विषैलापन नष्ट हो जाता है।
⦁    रोगी को उपवास रखना चाहिए तथा हल्का सुपाच्य भोजन लेना चाहिए।
⦁    अधिक विषाक्तता होने पर योग्य चिकित्सक से परामर्श लेना विवेकपूर्ण रहता है।

(3) क्लॉस्ट्रीडियम समूह-क्लॉस्ट्रीडियम परफ्रिजेन्स :
नामक इस समूह का जीवाणु प्रायः डिब्बा बन्द भोज्य पदार्थों को विषाक्त करता है। यह जीवाणु एक प्रकार का हानिकारक टॉक्सिन अथवा विष उत्पन्न करता है।

लक्षण: मानव शरीर में प्रवेश करने पर पेट में पीड़ा व डायरिया के लक्षण पैदा करता है, परन्तु इस जीवाणु द्वारा उत्पन्न विषाक्तता के कारण मृत्यु की सम्भावना बहुत कम रहती है।

उपचार:
एण्टीटॉक्सिन अथवा विषनाशक तथा पेनीसिलीन का प्रयोग करने से रोगी शीघ्र ही स्वस्थ हो जाता है।

(4) क्लॉस्ट्रीडियम बौटूलिनम:

इस जीवाणु द्वारा उत्पन्न भोजन की विषाक्तता को बौटूलिज्म कहते हैं। यह जीवाणु भयानक टॉक्सिन उत्पन्न करता है। इसकी भयानकता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि एक औंस टॉक्सिन करोड़ों लोगों की मृत्यु के लिए पर्याप्त है। ये जीवाणु अपनी बीजाणु अवस्था में मछलियों, पक्षियों, गाय व घोड़े जैसे पशुओं व मनुष्यों की आँतों में पाए जाते हैं। जीवाणुओं के ये बीजाणु खाद तथा मल-मूत्र जैसी गन्दगियों के माध्यम से भूमि में पहुँचकर कृषि द्वारा प्राप्त खाद्य पदार्थों से चिपक जाते हैं। ऑक्सीजनविहीन परिस्थितियों में तथा असावधानियों से तैयार किए गए डिब्बा-बन्द खाद्य पदार्थों में ये बीजाणु अंकुरित हो असंख्य को जन्म देते हैं। सेम, मक्का, मटर व चना इत्यादि इस प्रकार के डिब्बा-बन्द खाद्य पदार्थों के उदाहरण हैं। इस अवस्था में जीवाणु टॉक्सिन उत्पन्न करते हैं, जिसके मनुष्यों में होने वाले प्रभाव निम्नलिखित हैं–

प्रभाव:
⦁    विषाक्त भोजन के सेवन के केवल कुछ ही घण्टों में रोगी पैरालिसिस अथवा लकवे का अनुभव करने लगता है।
⦁    आँखों में धुंधलापन, भोजन चबाने व सटकने में तथा साँस लेने में कठिनाई विषाक्त भोजन के अन्य प्रभाव हैं।।
⦁    बोलने में अस्पष्टता के साथ ही भुजाएँ लकवे की स्थिति में हो जाती हैं।
⦁    हृदय तथा फेफड़ों तक टॉक्सिन का प्रभाव पहुँचने पर रोगी की मृत्यु निश्चित है।

बचाव एवं उपचार:
⦁    एण्टीबायोटिक औषधियों के उपयोग का इस विषाक्तता में कोई लाभ नहीं है।
⦁    रोगी को तुरन्त अस्पताल ले जाना चाहिए।
⦁    एण्टीटॉक्सिन अथवा विषनाशक की पर्याप्त मात्रा से ही रोग पर नियन्त्रण सम्भव है। यह उपचार भी समय पर उपलब्ध होने पर ही लाभकारी है अन्यथा मृत्यु निश्चित है।
⦁    यह विषाक्तता इतनी भयानक है कि ठीक उपचार होने पर भी पीड़ित मनुष्य 6-7 महीनों में पूर्ण स्वस्थ हो पाता है।
⦁    अप्राकृतिक लगने वाले दुर्गन्धयुक्त भोजन को जलाकर नष्ट कर देना चाहिए, क्योंकि विषाक्त भोजन पशु-पक्षियों में भी विषाक्तता उत्पन्न कर सकता है।
⦁     डिब्बों में भोजन बन्द करते समय भाप के दबावयुक्त ताप से डिब्बों व भोजन को । विसंक्रमित करना चाहिए।
⦁     डिब्बा-बन्द भोजन को खाने से पूर्व उच्च ताप पर लगभग दस मिनट तक पकाना चाहिए।