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2751.

मुँह एवं जीभ पर छाले होने पर आप क्या उपचार करेंगी?

Answer»

प्रभावित भाग पर ग्लिसरीन अथवा कत्थे का चूरा लगाने से पर्याप्त लाभ होता है।

2752.

भाँग पिए व्यक्ति का आप क्या उपचार करेंगी?

Answer»

ऐसे व्यक्ति को खटाई (जैसे कि इमली का पानी) पिलाने से भाँग के विषैले प्रभाव को कम किया जा सकता है।

2753.

विष कितने प्रकार के होते हैं? विषपान किए व्यक्ति का सामान्य उपचार आप किस प्रकार करेंगी?यायदि किसी बच्चे ने कोई विषैला पदार्थ खा लिया है, तो उसे किस प्रकार का प्रतिकारक पदार्थ दिया जाएगा? उदाहरण दीजिए। क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिए?याटिप्पणी लिखिए-विष कितने प्रकार के होते हैं?

Answer»

 विष के प्रकार

सामान्यतः शरीर को हानि पहुँचाने वाले पदार्थ विष कहलाते हैं। ये पदार्थ प्रायः मुँह के द्वारा अथवा विषैले जीव-जन्तुओं के काटने पर शरीर में अन्दर प्रवेश करते हैं। विषपान करने पर शरीर में प्रवेश करने वाले विषैले पदार्थों को निम्नलिखित चार वर्गों में विभाजित किया जा सकता है

(1) जलन उत्पन्न करने वाले विष:
ये विष शरीर के जिस भाग में प्रवेश करते हैं उसे या तो जला देते हैं अथवा उसमें जलन उत्पन्न करते हैं। कास्टिक सोडा, अमोनिया, कार्बोलिक एसिड तथा खनिज अम्ल आदि इस वर्ग के प्रमुख विष हैं। इस प्रकार के विष से प्रायः जीभ, गले तथा मुखगुहा में भयंकर जलन होती है तथा श्वास लेने में कठिनाई का अनुभव होता है।

(2) उदर अथवा आहारनाल को हानि पहुँचाने वाले विष:
इस प्रकार के विष उदर में पहुंचकर भयंकर उथल-पुथल पैदा करते हैं। ये कण्ठ, ग्रासनली, आमाशय एवं आँतों में जलन एवं दर्द उत्पन्न करते हैं। इनके शिकार व्यक्ति उदरशूल अनुभव करते हैं तथा उन्हें मतली आने लगती है। इस वर्ग के अन्तर्गत आने वाले प्रमुख विष हैं संखिया, पारा, पिसा हुआ शीशा तथा विषैले एवं सड़े-गले खाद्य पदार्थ।

(3) निद्रा उत्पन्न करने वाले विष:
इस प्रकार के विष को खाने पर नींद आने लगती है जो कि विष की अधिकता होने पर प्रगाढ़ निद्रा अथवा संज्ञा-शून्यता में परिवर्तित हो जाती है। इस प्रकार के विष का अत्यधिक सेवन करने से कई बार रोगियों की मृत्यु भी हो जाती है। अफीम, मॉर्फिन तथा डाइजीपाम (कम्पोज, वैलियम आदि) इत्यादि इस वर्ग के प्रमुख विष हैं।

(4) तन्त्रिका-तन्त्र को हानि पहुँचाने वाले विष:
इनका प्रभाव प्रायः स्नायुमण्डल अथवा विभिन्न नाड़ियों पर होता है; जिसके फलस्वरूप नेत्रों की पुतलियाँ फैल जाती हैं, मस्तिष्क चेतना शून्य हो सकता है अथवा शरीर के विभिन्न अंगों में पक्षाघात हो सकता है। भाँग, धतूरा, क्लोरोफॉर्म तथा मदिरा इसी प्रकार के प्रमुख विष हैं।

विषपान करने पर उपचार

विषपाने एक गम्भीर दुर्घटना है, जिसके परिणामस्वरूप प्रतिदिन अनेक व्यक्ति अनेक प्रकार के कष्ट भोगते हुए अकाल ही मृत्यु की गोद में चले जाते हैं। इस समस्या का समाधान करना सम्भव है, यदि पीड़ित व्यक्ति को तत्काल चिकित्सा सहायता उपलब्ध हो जाए तथा कुछ सुरक्षात्मक उपायों का कठोरतापूर्वक पालन किया जाए। चिकित्सा सहायता सदैव समय पर उपलब्ध होनी सम्भव नहीं है; अतः विषपान करने वाले व्यक्तियों के सामान्य उपचार के उपायों की जानकारी प्राप्त करना अति आवश्यक

() सुरक्षात्मक उपाय:
कई बार अनेक व्यक्ति (विशेष रूप से बच्चे) अज्ञानतावश अथवा नादानी में विषपान का शिकार हो जाते हैं। इस प्रकार की दुर्घटनाओं को निम्नलिखित उपायों का कठोरतापूर्वक पालन कर सहज ही टाला जा सकता है

  1. घर में प्रयुक्त होने वाले सभी क्षारों एवं अम्लों को नामांकित कर यथास्थान रखें। ध्यान रहे कि ये स्थान बच्चों की पहुँच से सदैव दूर हों।
  2. पुरानी तथा प्रयोग में न आने वाली औषधियों को घर में न रखें।
  3. सभी औषधियों को उनकी मूल शीशी अथवा डिब्बी में रखें।
  4. कभी भी अन्धकार में कोई औषधि प्रयोग न करें।
  5. चिकित्सक के पूर्व परामर्श के बिना कोई जटिल औषधि न प्रयोग करे।
  6. पेण्ट वाले पदार्थ प्रायः विषैले होते हैं; अत: इनका प्रयोग सावधानीपूर्वक करें।
  7. कीटाणुनाशक (स्प्रिट व डिटॉल, फिनाइल) आदि तथा कीटनाशक (फ्लिट व बेगौन स्प्रे आदि) पदार्थ विषैले होते हैं। इन्हें सावधानीपूर्वक प्रयोग करें तथा प्रयोग करते समय कम-से-कम श्वालें।
  8. खाना पकाने से पूर्व दाल, शाक-सब्जियों एवं फलों को अच्छी प्रकार से धोएँ ताकि ये पूर्णरूपसे कीटनाशक रासायनिक पदार्थों के प्रभाव से मुक्त हो जायें।
  9. बच्चों को समय-समय पर प्रेमपूर्वक उपर्युक्त बातों की जानकारी दें। 

() प्राथमिक चिकित्सा सहायता:
योग्य चिकित्सक अथवा अस्पताल से चिकित्सा सहायता प्रायः विलम्ब से प्राप्त होती है, जबकि विषपान किए व्यक्ति का उपचार तत्काल होना आवश्यक है। अतः विषपान सम्बन्धी प्राथमिक चिकित्सा का ज्ञान होना अति आवश्यक है। इसके लिए कुछ महत्त्वपूर्ण बातों को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए

  1. रोगी के आस-पास विष की शीशी अथवा पुड़िया की खोज करें जिससे कि विष का प्रकार ज्ञात हो सके तथा उसके अनुसार उपयुक्त उपचार प्रारम्भ किया जा सके।
  2. विष का प्रभाव कम करने के लिए रोगी को वमन कराकर उसके उदर से विष दूर करने का प्रयास करें।
  3. यदि रोगी क्षारक अथवा अम्लीय विष से पीड़ित है, तो वमन न कराएँ। इस प्रकार के रोगियों को विष-प्रतिरोधक देना ही उचित रहता है।
  4. क्षारीय विष से पीड़ित व्यक्ति को नींबू का रस अथवा सिरका पिलाना लाभप्रद रहता है। अम्लीय विष से पीड़ित व्यक्तियों को चूने का पानी, खड़िया, मिट्टी अथवा मैग्नीशियम का घोल देना उत्तम रहता है।
  5. आस्फोटक विष के उपचार के लिए रोगी को गरम पानी में नमक मिलाकर वमन कराना चाहिए। कई बार वमन कराने के बाद उसे अरण्डी का तेल पिलाना चाहिए।
  6. निद्रा उत्पन्न करने वाले विष के उपचार में रोगी को जगाए रखने का प्रयास करें। वमन कराने के उपरान्त उसे तेज चाय अथवा कॉफी पीने के लिए देना लाभप्रद रहता है।
  7. रोगी के हाथ व पैर सेंकते रहना चाहिए। रोगी को गुदा द्वारा नमक का पानी चढ़ाना लाभप्रद रहता है।
  8. आवश्यकता पड़ने पर रोगी को कृत्रिम उपायों से श्वास दिलाने का प्रयास करना चाहिए।
  9. रोगी को अस्पताल भिजवाने का तुरन्त प्रबन्ध करें। रोगी के साथ उसके वमन अथवा लिए गए विष का नमूना अवश्य ले जाएँ। इससे विष के सम्बन्ध में शीघ्र जानकारी प्राप्त होने से उपयुक्त चिकित्सा तत्काल आरम्भ हो सकती है।

() सामान्य विषों के प्रतिकारक पदार्थों का उपयोग:
विषपान किए व्यक्ति द्वारा प्रयुक्त विष एवं उसके प्रतिरोधक पदार्थ की जानकारी होने से विषपान के रोगी का उपचार सहज ही सम्भव है। सामान्य विषों के प्रतिकारक पदार्थ प्रायः निम्नलिखित प्रकार के होते हैं

(1) जलन पैदा करने वाले विषों के प्रतिकारक पदार्थ

() क्षारीय विष:
क्षारीय विषों के प्रभाव को समाप्त करने के लिए अम्लों का प्रयोग करना चाहिए। उदाहरण-नींबू का रस एवं सिरका।
() अम्लीय विष:
इनके प्रतिकारक पदार्थ क्षारीय होते हैं। गन्धक, शोरे व नमक के अम्लों को प्रभावहीन करने के लिए

  1. चूना या खड़िया मिट्टी पानी में मिलाकर दें।
  2. जैतून का तेल पानी में मिलाकर दें।
  3. पर्याप्त मात्रा में दूध दें।

(2) आहार नाल को हानि पहुँचाने वाले विषों के प्रतिकारक पदार्थ

1.संखियायह एक भयानक विष है। टैनिक अम्ल के प्रयोग द्वारा इस विष के प्रभाव को कम किया जा सकता है।

2.गन्धककार्बोनेट एवं मैग्नीशिया गन्धक के विष को प्रभावहीन करने के लिए उत्तम रासायनिक पदार्थ हैं।

(3) निद्रा उत्पन्न करने वाले विषों के प्रतिकारक पदार्थ

  1. अफीम: इस विष से पीड़ित व्यक्ति को गरम पानी में नमक मिलाकर वमन कराना चाहिए।
  2. निद्रा की गोलियाँ: इनसे प्रभावित व्यक्ति का उपचार अफीम के समान ही किया जाता है। रोगी को नमक के गरम पानी द्वारा वमन कराया जाता है तथा उसके उदर की सफाई की जाती है।

(4) तन्त्रिका-तन्त्र को हानि पहुँचाने वाले विषों के प्रतिकारक पदार्थ

  1. तम्बाकू: इसमें निकोटीन नामक विष होता है। गरम पानी में नमक डालकर रोगी को वमन करायें तथा तेज चाय व कॉफी पीने के लिए दें।
  2. मदिरा: मदिरा के प्रभाव को नष्ट करने के लिए रोगी को वमन कराएँ तथा उसके उदर की पानी द्वारा सफाई करें। नींबू व नमक मिला गरम पानी पिलाने से लाभ होता है।
  3. भाँग एवं गाँजा: पीड़ित व्यक्ति को वमन कराकर खट्टी वस्तुएँ खिलानी चाहिए। यदि रोगी होश में है, तो उसे गरम दूध पिलाया जा सकता है।
  4. क्लोरोफॉर्म: इस विष का प्रतिकारक है एमाइल नाइट्राइट जो कि इसके प्रभाव को कम करता है।
  5. धतूरा: धतूरे के बीजों में घातक विष होता है। इस विष से पीड़ित व्यक्ति को होश में लाकर वमने कराना चाहिए। इसके बाद उसे गर्म दूध में एक चम्मच ब्राण्डी मिलाकर दी जा सकती है।
2754.

घरेलू देशज औषधियों के प्रयोग को उपयोगी माना जाता है(क) आकस्मिक रोगों या दुर्घटनाओं के तुरन्त उपचार के लिए(ख) इनके प्रयोग से धन एवं समय की बचत होती है(ग) दुर्घटना घटित होने पर गृहिणी का मनोबल बना रहता है(घ) उपर्युक्त सभी उपयोग एवं लाभ।

Answer»

सही विकल्प है (ख) इनके प्रयोग से धन एवं समय की बचत होती है

2755.

घरेलू देशज औषधियों से क्या आशय है?

Answer»

जब किसी रोग या कष्ट के निवारण के लिए घर पर सामान्य इस्तेमाल की वस्तुओं को उपयोग में लाया जाता है तो उन सामान्य वस्तुओं को घरेलू देशज औषधि कहा जाता है। जैसे कि पेट-दर्द के निवारण के लिए अजवाइन एक घरेलू औषधि है।

2756.

जुकाम अथवा नजले का घरेलू उपचार बताइए।

Answer»

जुकाम एवं नजला सामान्य रोग हैं जो कि प्रायः ऋतु परिवर्तन के समय अथवा शीत ऋतु में अधिक होते हैं। छींक आना, आँखों एवं नाक से पानी जाना, कान बन्द हो जाना तथा खाँसी व कफ निकलना आदि रोग के सामान्य लक्षण हैं।

शीत ऋतु में हुई खाँसी एवं श्वास रोग में सहजन की जड़ की छाल को घी या तेल में मिलाकर धूम्रपान करने से लाभ होता है। जुकाम के प्रारम्भ में दूध में हल्दी डालकर उबालकर पीने से लाभ होता हैं। अधिक सिर दर्द व नाक से पानी बहने पर लौंग का दो बूंद तेल शक्कर अथवा बताशे के साथ खाने से अत्यधिक लाभ होता है। नए जुकाम में पीपल का चूर्ण शहद में अथवा चाय में मिलाकर सेवन करने से शीघ्र आराम होता है। चाय में काली मिर्च का चूर्ण डालकर पीने से भी जुकाम में पर्याप्त लाभ होता है।

2757.

जी मिचलाने अथवा उल्टी आने पर प्रयुक्त होने वाली किन्हीं दो घरेलू औषधियों का उल्लेख कीजिए।

Answer»

जी मिचलाने अथवा वमन रोकने के लिए

  1. अमृतधारा की 5-6 बूंदें पानी में डालकर पिलायें तथा
  2. पोदीना व प्याज पीसकर तथा उसमें नीबू का रस डालकर रोगी को पिलायें।
2758.

मलेरिया ज्वर में रोगी को कौन-सी घरेलू औषधि देनी चाहिए?

Answer»

तुलसी के पत्ते में काली मिर्च को सम मात्रा में पीसकर दिन में तीन या चार बार देने से मलेरिया के रोगी को लाभ होगा।

2759.

तीन घरेलू दवाइयों के नाम एवं उपयोग बताइए।यादो घरेलू दवाइयों के नाम एवं उपयोग बताइए।

Answer»

कुछ महत्त्वपूर्ण घरेलू दवाइयों के नाम एवं उपयोग अग्रलिखित हैं

(1) हींग:
यह पेट के रोगों में बहुत लाभ पहुँचाती है। गैस व अफारा आदि में पानी में घोलकर पेट | पर लगाने से रोगी को पर्याप्त लाभ होता है। अजवाइन, सौंठ वे नमक के साथ मिलाकर देने से यह
अधिक प्रभावी हो जाती है।

(2) नमक:
सामान्य नमक (सोडियम क्लोराइड) घावों को साफ करने के लिए एक अच्छी औषधि का कार्य करता है। गरम पानी में मिलाकर सिकाई करने पर यह पर्याप्त आराम पहुँचाता है। जल-अल्पता या निर्जलीकरण होने पर इसे उबाल कर ठण्डा किए हुए पानी में चीनी के साथ मिलाकर बार-बार पिलाने पर रोगी को अत्यधिक लाभ होता है। गरम पानी में नमक डालकर गरारे करने से गले के रोगों में विशेष लाभ होता है।

(3) सौंफ:
खुनी पेचिश के लिए सौंफ एक उत्तम औषधि है। इस रोग में सौंफ को पानी में उबालकर उसका अर्क दिया जाता है। यह प्यास को कम करती है तथा गर्मी के कारण होने वाले सिर दर्द में आराम पहुँचाती है।

2760.

किन्हीं दो घरेलू औषधियों के नाम लिखिए।

Answer»

अजवाइन, हींग, काला नमक आदि।

2761.

औषधियों का सेवन सदैव पर्याप्त प्रकाश में करना चाहिए। क्यों?

Answer»

क्योंकि अन्धकार में गलत औषधियाँ खा लेने की सम्भावना रहती है।

2762.

बिच्छू के काटने पर तुरन्त दिया जाता है(क) गर्म चाय(ख) गर्म दूध(ग) कहवा(घ) ब्राण्डी

Answer»

सही विकल्प है (क) गर्म चाय

2763.

बिच्छू एवं शहद की मक्खी के काटने पर आप क्या उपचार करेंगी?

Answer»

बिच्छू के काटने पर उपचार-बिच्छू द्वारा काटने पर निम्नलिखित उपचार करने चाहिए

  1. काटने के स्थान के थोड़ा ऊपर टूर्नीकेट बाँधना चाहिए।
  2. काटे हुए स्थान पर बर्फ रखने पर तथा नोवोकेन का इन्जेक्शन लगाने पर पीड़ा में कमी आती है।
  3. रोग नियन्त्रित न होने पर योग्य चिकित्सक से परामर्श लें।

शहद की मक्खी के काटने पर उपचार:
पीड़ित व्यक्ति को काटने के स्थान पर सूजन आ जाती है। तथा भयंकर जलन होती है। इसके लिए निम्नलिखित उपचार करने चाहिए

  1. काटे स्थान को दबाकर डंक निकालना चाहिए।
  2. घाव पर अमोनिया अथवा नौसादर एवं चूने की सम मात्रा मिलाकर लगानी चाहिए।
  3. काटे हुए स्थान पर स्प्रिट लगानी चाहिए।
  4. एण्टी-एलर्जी की गोलियाँ (एविल आदि) लेने से लाभ होता है।
2764.

बेल का शर्बत क्यों उपयोगी माना जाता है ?

Answer»

बेल का शर्बत पेट सम्बन्धी विकार दूर करता है तथा पेचिश में विशेष लाभदायक होता है।

2765.

जल जाने पर कोई दो घरेलु औषधियों के नाम बताए।

Answer»

गोले का तेल या बरनॉल।

2766.

तुलसी के पत्ते का औषधि उपयोग बताइए।

Answer»

तुलसी के पत्ते ज्वर तथा जुकाम को शान्त करते हैं। शहद के साथ खाँसी में लाभदायक हैं।

2767.

साँप के काटने पर अंग में बन्ध क्यों लगाया जाता है?

Answer»

अंग में बन्ध लगाने से उस स्थान से रुधिर का तेजी से इधर-उधर बहना बन्द हो जाता है। और विष पूरे शरीर में नहीं फैलता।

2768.

‘सामुदायिक विकास खण्ड के विषय में आप क्या जानती हैं?

Answer»

‘सामुदायिक विकास खण्ड’ योजना का प्रारम्भ केन्द्रीय सरकार ने ग्रामीण जनता के कल्याण को दृष्टिगत रखते हुए किया है। इस योजना में ग्रामीण क्षेत्रों को विभिन्न खण्डों में विभाजित किया गया है। इन खण्डों के कार्य-क्षेत्र में कृषि एवं अर्थव्यवस्था में सुधार लाने के साथ-साथ निम्नलिखित कार्य भी सम्मिलित किए गए हैं

  1. जन-स्वास्थ्य की देख-रेख व स्वास्थ्य सम्बन्धी आवश्यक शिक्षण।
  2. मातृ एवं शिशु कल्याण।
  3. चेचक, मलेरिया आदि के उन्मूलन की योजनाओं को गति प्रदान करना।
  4. संक्रामक रोगों से ग्रामीण जनता को सुरक्षित रखने के यथासम्भव प्रयास करना।
  5. परिवार नियोजन के कार्यक्रम को गति प्रदान करना।

केन्द्रीय सरकार ने ग्रामीण अंचल में एक लाख की जनसंख्या वाले क्षेत्र के सभी खण्डों को मिलाकर एक बड़े खण्ड का रूप देने का प्रस्ताव किया तथा इसका नाम ‘सामुदायिक विकास खण्ड रखा गया। इस प्रकार यह केन्द्रीय सरकार के अनुदान पर चलने वाली ग्रामीण अंचल के लिए एक उपयोगी योजना है।

2769.

जन-स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के मार्ग में कौन-कौन सी कठिनाइयाँ आती हैं?

Answer»

हमारे ग्रामीण अंचल में एक सीमा तक शिक्षा का अभाव है, जिसके फलस्वरूप ग्रामीणों में अन्धविश्वास का बोलबाला है तथा टोने-टोटके आज भी प्रचलित हैं। इस वातावरण में जन-स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का मार्ग अनेक कठिनाइयों से भरा होता है। अपने कल्याण से सम्बन्धित होने पर भी ग्रामीण इन कार्यकर्ताओं को पूर्ण सहयोग देने में हिचकिचाते हैं। अतः कार्यकर्ताओं को अनेक परेशानियाँ उठानी पड़ती हैं। कुछ सामान्य कठिनाइयाँ निम्नलिखित हैं

(1) शिक्षा का अभाव:
भली प्रकार शिक्षित न होने के कारण अधिकांश ग्रामीण स्वास्थ्य सम्बन्धी नियम, रोगों से बचाव तथा भोजन एवं पोषण जैसी महत्त्वपूर्ण बातों से अनजान होते हैं। अतः इन्हें
जन-स्वास्थ्य सेवाओं का पूर्ण लाभ नहीं मिल पाता।

(2) रूढ़िवादिता:
अधिकांश ग्रामीण जनता अयोग्य हकीम, वैद्य तथा चिकित्सकों की दवाइयों पर ही निर्भर करती है। कुछ लोग तो रोगों में टोने-टोटके का प्रयोग करना लाभकारी मानते हैं। इन्हें सही मार्ग पर लाना सरल कार्य नहीं है।

(3) सार्वजनिक स्वच्छता का अभाव:
अधिकांश ग्रामीण तथा आदिवासी जनता सार्वजनिक स्वच्छता के महत्त्व को नहीं समझती है। कहीं भी कूड़ा-करकट फेंक देना, मल-मूत्र का अनुचित निकास तथा नालियों में ठहरा हुआ गन्दा पानी ग्रामीण क्षेत्रों में सामान्य बातें हैं, जिनके फलस्वरूप विभिन्न रोगों के फैलने की सम्भावनाएँ सदैव ही बनी रहती हैं। इन्हें स्वच्छता का महत्त्व समझाना तथा इस पर चलने के लिए विवश करना एक कठिन कार्य है।

(4) स्वास्थ्य संगठनों की अकर्मण्यता:
केन्द्रीय एवं राज्य सरकार जनहित में सदैव नई-नई योजनाएँ प्रारम्भ करती हैं, परन्तु अत्यन्त दु:ख की बात है कि न तो इनके प्रति जनता ही पूर्णरूप से जागरूक रहती है और न ही इनके अन्तर्गत नियुक्त किए गए कर्मचारी अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं। अतः परिणाम यह निकलता है कि योजनाएँ केवल आंशिक रूप से ही सफल हो पाती हैं। सरकार द्वारा गठित विभिन्न स्वास्थ्य संगठन भी इसके अपवाद नहीं हैं।

2770.

जन-स्वास्थ्य के सामान्य नियमों का उल्लेख कीजिए।

Answer»

व्यक्तिगत स्वास्थ्य तथा जन-स्वास्थ्य में घनिष्ठ सम्बन्ध है। जन-स्वास्थ्य के नियमों की अवहेलना करके कोई व्यक्ति अपने व्यक्तिगत स्वास्थ्य को भी ठीक नहीं रख सकता। सामान्य रूप से स्वस्थ वातावरण बनाए रखने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को जन-स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहना चाहिए।

जन-स्वास्थ्य के मुख्य नियम हैं

  1. व्यक्ति को खाँसने एवं छींकने में सावधानी बरतनी चाहिए,
  2. व्यक्ति को जहाँ-तहाँ थूकना नहीं चाहिए,
  3. मल-मूत्र त्यागने में सावधानी रखनी चाहिए,
  4. जहाँ-तहाँ कूड़ा-करकट नहीं फेंकना चाहिए तथा
  5. कहीं भी संक्रामक रोग के फैलने की आशंका होते ही स्वास्थ्य-विभाग को सूचित करना चाहिए।
2771.

सामान्य रूप से घटित होने वाली दुर्घटनाओं के मुख्य कारण क्या होते हैं?

Answer»

सामान्य रूप से घटित होने वाली दुर्घटनाओं के मुख्य कारण लापरवाही या असावधानी तथा अज्ञानता होते हैं।

2772.

सामान्य रूप से घटित होने वाली मुख्य घरेलू दुर्घटनाएँ कौन-कौन सी होती हैं?

Answer»

सामान्य रूप से घटित होने वाली मुख्य घरेलू दुर्घटनाएँ हैं – जलना या झुलसना, चोट लगना तथा रक्तस्राव होना, लू या गर्मी लग जाना, पानी में डूब ज रा, साँप, बिच्छू या बरों द्वारा डंक मार देना, कुत्ते/बन्दर आदि पशुओं द्वारा काटा जाना, बच्चों द्वारा आँख, नाक या कान में कोई वस्तु हँसा लेना, दम घुटना, बेहोशी या दौरा पड़ना या आकस्मिक हृदय का दौरा पड़ना आदि।

2773.

पागल कुत्ते की क्या पहचान है?

Answer»

पागल कुत्ते के लक्षण निम्नलिखित हैं

  1. यह अकारण भौंकती रहता है।
  2. उसके मुंह से झाग निकलते रहते हैं।
  3. उसकी पूँछ दोनों टाँगों के बीच झुकी होती है।
2774.

विष खा लेने पर क्या उपचार करेंगी?

Answer»

विष खाए व्यक्ति की प्राथमिक चिकित्सा-विष का सेवन किए व्यक्ति को तत्काल निम्नलिखित प्राथमिक चिकित्सा मिलनी चाहिए.

  1. रोगी के आस-पास विष की शीशी अथवा पुड़िया की खोज करें जिससे कि विष के प्रकार का पता चल सके तथा उसके अनुसार उपचार प्रारम्भ किया जा सके।
  2. रोगी को वमन कराना चाहिए, परन्तु क्षारक विष के रोगी को वमन कराना हानिकारक होता है, उसे क्षार प्रतिरोधक का सेवन कराना चाहिए।
  3. यदि विष अम्लीय है तो रोगी को चूने का पानी, खड़िया मिट्टी अथवा मैग्नीशियम का घोल देना चाहिए।
  4. निद्राकारी विष के उपचार में रोगी को सोने नहीं देना चाहिए। इसके लिए उसे तेज चाय अथवा कॉफी पिलानी चाहिए।
  5. रोगी को गुदा द्वारा नमक का पानी चढ़ाना चाहिए।
  6. रोगी को तत्काल चिकित्सालय पहुँचाना चाहिए। चिकित्सालय ले जाते समय विष की खाली शीशी अथवा रोगी के वमन को शीशी में रखकर अवश्य ले जाना चाहिए ताकि विष की शीघ्र पहचान हो । सके तथा उपयुक्त विष प्रतिरोधक रोगी को दिया जा सके।
  7. विष से बचने के लिए घर में कभी भी अनावश्यक औषधियाँ एवं रासायनिक पदार्थ नहीं रखने चाहिए तथा सभी औषधियों एवं रासायनिक पदार्थों को सावधानीपूर्वक नामांकित करके रखना चाहिए।
  8.  सभी औषधियाँ एवं रासायनिक पदार्थ बच्चों की पहुँच से सदैव दूर रहने चाहिए।
2775.

साँप के काटने पर बन्ध क्यों लगाया जाता है?

Answer»

साँप के काटने के स्थान से थोड़ा ऊपर कसकर बन्ध लगाया जाता है ताकि रक्त-प्रवाह रुक जाए तथा विष शरीर के अन्य अंगों तक न पहुंचे।

2776.

लू लगने के लक्षण एवं उपचार बताइए।

Answer»

लक्षण-ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की तेज किरणों से गरम होकर बहने वाली वायु लू कहलाती है। इसके अधिक समय तक निरन्तर सम्पर्क में आने पर प्रायः व्यक्ति रोगी हो जाते हैं। इस स्थिति को ‘लू लगना’ कहा जाता है। लू से पीड़ित व्यक्तियों में सामान्यत: रोग के निम्नलिखित लक्षण दिखाई देते हैं

  1. सिर में दर्द होता है तथा चक्कर आते हैं।
  2. प्यास बहुत लगती है तथा सारे शरीर में खुश्की आ जाती है।
  3. चेहरा लाल हो जाता है तथा नाड़ी की गति तीव्र हो जाती है।
  4. श्वास गति बढ़ जाती है।
  5. रक्तचाप कम हो जाता है।
  6. तेज ज्वर हो जाता है तथा रोगी को मूच्र्छा आने लगती है।

उपचार:
यदि रोगी को समय पर निम्नलिखित उपचार उपलब्ध हो जाएँ तो उसे रोग के घातक परिणामों से बचाया जा सकता है

  1. रोगी को तत्काल छायादार ठण्डे स्थान पर ले जाना चाहिए।
  2. रोगी को बार-बार ठण्डे पानी से नहलाना चाहिए।
  3. रोगी के सिर पर बर्फ की टोपी रखनी चाहिए।
  4. यदि ज्वर पुनः चढ़ता है, तो ठण्डे पानी से स्पन्ज करना चाहिए।
  5. रोगी के हाथ-पैर पर मेंहदी अथवा प्याज पीसकर लगाने से लाभ होता है।
  6. रोगी को बार-बार कच्चे आम का पन्ना पिलाने से अत्यधिक लाभ होता है।
  7. गम्भीर अवस्था में रोगी को तत्काल किसी योग्य चिकित्सक को दिखाना चाहिए।
2777.

बच्चे की नाक में कोई वस्तु फैंसने पर आप क्या करेंगी?

Answer»

नसवार, मिर्च व तम्बाकू आदि सुंघाने पर छींक के साथ प्रायः नाक में फैंसी वस्तु बाहर निकल जाती है। ऐसा न होने पर चिकित्सक से सहायता प्राप्त करनी चाहिए।

2778.

जलने व झुलसने में क्या अन्तर है?जलने के विभिन्न प्रकार एवं उनके उपचार बताइए।

Answer»

जलना एवं झुलसना-जलना एवं झुलसना प्राय: शरीर पर अधिक ताप का प्रभाव होते हैं। झुलसना; तरल पदार्थों; जैसे-गरम दूध, पानी, घी, तेल व चाय आदि के त्वचा पर गिर जाने से होता है। जलना; भाप, गरम तवा तथा अन्य प्रकार की शुष्क आग के सम्पर्क में त्वचा के आने पर होता है। जलने एवं अधिक झुलस जाने के गम्भीर परिणाम होते हैं। शरीर के 50 प्रतिशत अथवा अधिक जल जाने पर पीड़ित व्यक्ति पर मृत्यु का संकट हो सकता है। गम्भीर रूप से जलने से शरीर में द्रव पदार्थों की कमी उत्पन्न हो जाती है, शरीर के आन्तरिक अवयव बुरी तरह से कुप्रभावित होते हैं तथा पीड़ित व्यक्ति मानसिक आघात का शिकार हो सकता है।

जलने के प्रकार

जलने के विभिन्न प्रकारों को वर्गीकृत करने के दो आधार हैं
(क) शारीरिक लक्षणों को आधार तथा
(ख) जलने के स्रोतों का आधार।।

() शारीरिक लक्षणों के आधार पर जलने के प्रकार:
जलने पर मुख्यत: निम्नलिखित लक्षण दिखाई पड़ते हैं

  1. त्वचा लाल रंग की हो जाती है, परन्तु नष्ट नहीं होती।
  2. लालिमा के साथ-साथ शरीर पर फफोले भी पड़ जाते हैं।
  3. प्रभावित भाग कम हो अथवा अधिक उसके स्नायु तन्तु नष्ट हो जाते हैं।

() विभिन्न स्रोतों से जलना:
यह निम्न प्रकार से हो सकता है

  1. वस्त्रों में आग लग जाने से जलना।
  2. अम्लों से जलना।
  3. क्षार से जलना।
  4. बिजली से जलना।

जल जाने पर उपचार

जल जाने की विभिन्न अवस्थाओं में विभिन्न प्रकार से प्राथमिक उपचार किए जाते हैं। इनका क्रमशः विवरण निम्नलिखित है

(1) वस्त्र में आग लग जाने पर उपचार:
यह एक सामान्य दुर्घटना है जो कि घरों में प्रायः खाना आदि पकाते समय घटित हुआ करती है। साधारणत: इसके उपचार निम्न प्रकार से करने चाहिए|

  1. रोगी को तुरन्त भूमि पर लिटाकर लुढ़काना चाहिए। रोगी का मुंह खुला छोड़कर उसकी शेष शरीर किसी कम्बल जैसे कपड़े से ढक देना चाहिए।
  2. जलते हुए व्यक्ति पर पानी नहीं डालना चाहिए, क्योंकि इससे घावों के और अधिक गम्भीर होने का भय रहता है।
  3. रोगी के कपड़े व जूते किसी प्रकार से उतार देने चाहिए।
  4. रोगी को पीने के लिए गरम पानी, दूध, चाय अथवा कॉफी देनी चाहिए।
  5. रोगी के बिस्तर पर गरम पानी की बोतलें भी रख देनी चाहिए।
  6. यदि त्वचा पर फफोले पड़ गए हों, तो उन्हें फोड़ना नहीं चाहिए।
  7. एक भाग अलसी का तेल व एक भाग चूने का पानी मिलाकर स्वच्छ रूई अथवा कपड़े के फाये द्वारा जले हुए भाग पर लगाना लाभप्रद रहता है।
  8. जले हुए स्थान पर से सावधानीपूर्वक वस्त्र हटाने का प्रयास करना चाहिए। यदि वस्त्र चिपक गए हैं, तो उस स्थान पर जैतून अथवा नारियल का तेल लगाना चाहिए।
  9. जले हुए स्थान पर हल्के-हल्के बरनॉल या इसी प्रकार का कोई अन्य मरहम लगाना चाहिए।
  10. मरहम उपलब्ध न होने पर नारियल का तेल प्रयोग में लाया जा सकता है।
  11. यदि रोगी होश में है तो उसे सांत्वना एवं धैर्य बँधाना चाहिए।
  12. रोगी को शीघ्रातिशीघ्र अस्पताल ले जाना चाहिए।

(2) अम्लों से जल जाने पर उपचार:
गन्धक, नमक व शोरे के सान्द्र अम्ल मानव त्वचा के लिए अत्यन्त घातक होते हैं। ये जिस स्थान पर गिरते हैं, उसे तत्काल अन्दर तक जला देते हैं। अम्लों से जलने पर निम्नलिखित उपाय तुरन्त करने चाहिए

  1. प्रभावित स्थान पर तुरन्त पानी की धार डालें।
  2. रोगी के वस्त्र उतारते समय पानी डालते रहें।
  3. जले स्थान को स्वच्छ कपड़े से ढक दें।
  4. जले स्थान पर खाने का सोड़ा पानी में घोलकर लगाएँ। इससे अम्ल का प्रभाव घटने लगता है।
  5. अधिक जल जाने पर रोगी को इस प्रकार लिटाएँ कि उसका सिर शरीर के अन्य भागों से कुछ ऊँचा रहे।
  6. यदि रोगी होश में है तो उसे ऐल्कोहॉल रहित पेय पदार्थ पीने के लिए दें।
  7. शीघ्रातिशीघ्र चिकित्सक को बुलाएँ।

(3) क्षार से जलने पर उपचार:
चूना, कास्टिक सोड़ा तथा पोटाश आदि क्षार मानव त्वचा को गम्भीर रूप से जला देते हैं। इस प्रकारे जले रोगियों का उपचार निम्न प्रकार से करना चाहिए

  1. प्रभावित स्थान को पानी के तीव्र प्रवाह से धोना चाहिए।
  2. जले हुए भाग पर नींबू के रस अथवा सिरके में पानी मिलाकर लगाने से क्षार के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
  3. जले हुए स्थान पर ऐल्कोहॉल लगाने से रोगी को आराम होता है।
  4. रोगी को मद्यरहित पेय पदार्थ पर्याप्त मात्रा में पीने के लिए देने चाहिए।
  5. यदि अधिक भाग जला हो, तो तुरन्त चिकित्सक से सम्पर्क स्थापित करना चाहिए।

(4) बिजली से जलने पर उपचार:
बिजली के सम्पर्क में आने पर व्यक्ति को घातक झटका लगता है तथा कभी-कभी वह बिजली से चिपक भी जाता है। इस प्रकार का पीड़ित व्यक्ति सदमे के साथ-साथ जलने का शिकार भी हो जाता है। उपयुक्त उपचार के लिए निम्नलिखित उपाय करने चाहिए

  1. सर्वप्रथम बिजली का मुख्य स्विच बन्द कर देना चाहिए।
  2. एक लम्बी लकड़ी अथवा लकड़ी के तख्ते का उपयोग कर पीड़ित व्यक्ति को विद्युत तारों से मुक्त करना चाहिए।
  3. जिन स्थानों पर तार से चिपकने के कारण घाव हो गए हों, वहाँ पर बरनॉल या कोई अन्य ऐसा ही मरहम लगाना चाहिए।
  4. घावों को स्वच्छ कपड़े से ढक देना चाहिए।
  5. श्वास रुकने की स्थिति में पीड़ित व्यक्ति को कृत्रिम श्वास देना चाहिए।
  6. रोगी को पीने के लिए गरम पानी, दूध, चाय अथवा कॉफी देनी चाहिए।
  7. पीड़ित व्यक्ति के लिए दुर्घटना का सदमा घातक हो सकता है; अतः उसे धैर्य बँधाते रहना चाहिए।
  8. तत्काल चिकित्सक से सम्पर्क करना चाहिए।
2779.

डूबे मनुष्य को क्या प्राथमिक चिकित्सा देनी चाहिए? या किसी व्यक्ति के पानी में डूबने पर आप क्या उपचार करेंगी?

Answer»

प्रायः मनुष्य या तो तैरते समय अथवा आत्महत्या का प्रयास करने की स्थिति में पानी में डूबते हैं। डूबते हुए व्यक्ति को तत्काल पानी से बाहर निकालकर निम्नलिखित प्राथमिक चिकित्सा सहायता देनी चाहिए

  1. पीड़ित व्यक्ति की नाक, कान, गले तथा मुँह इत्यादि से कीचड़ एवं बालू तत्काल साफ करें।
  2. वस्त्र उतार कर रोगी को उल्टा लटकाएँ। ऐसा करने से उसके मुंह से कुछ पानी बाहर निकल जाएगा।
  3. अब रोगी को पेट के बल अपनी जाँघ पर लिटाओ। इस प्रकार पेट पर दबाव पड़ने से रोगी का । अधिकांश पानी बाहर निकल जाएगा।
  4. पानी बाहर निकलने के बाद रोगी को कृत्रिम श्वसन प्रदान करें।
  5. होश में आने पर रोगी को सांत्वना एवं धैर्य बँधाएँ।
  6. यदि रोगी की अवस्था अधिक गम्भीर है तो रोगी को तुरन्त अस्पताल स्थानान्तरित करें।
2780.

नाक से रक्त-स्राव किन परिस्थितियों में हो सकता है? नाक से रक्त-स्राव रोकने के कुछ कारगर उपाय सुझाइए।यानाक के रक्त-स्राव को रोकने के लिए आप क्या उपाय करेंगी?

Answer»

नाक से रक्त-स्राव:
नाक अथवा खोपड़ी पर आघात लगने से अथवा अधिक गर्मी से नसीर फूट जाने पर नाक से रक्तस्राव हुआ करता है। कई बार उपयुक्त उपचार देर से उपलब्ध होने पर नाक से होने वाला रक्तस्रावे घातक सिद्ध होता है।

प्राथमिक उपचार:

  1. रोगी को सीधा बैठाकर मुँह से श्वास दिलाना चाहिए।
  2. रोगी की नाक व गर्दन के पीछे बर्फ की थैली धीरे-धीरे फिराएँ तथा बर्फ चूसने को दें।
  3. रोगी के पैरों को कुछ समय तक गरम पानी में रखने से शरीर के निचले भागों में रक्त प्रवाह अधिक होता है, जिससे नाक से होने वाले रक्तस्राव में कुछ कमी आती है।
  4. रोगी की नाक को अँगूठे एवं उँगली के बीच में दबा लें। इस प्रकार लगभग पाँच मिनट तक दबाए रखने से रक्त-स्राव प्रायः रुक जाता है।
  5. यदि खोपड़ी के पास चोट हो अथवा रक्तस्राव न रुक रहा हो तो रोगी को तत्काल अस्पताल पहुँचाने की व्यवस्था करें।
2781.

डबने वाले व्यक्ति को सर्वप्रथम क्या सहायता देनी चाहिए?

Answer»

सर्वप्रथम डूबने वाले व्यक्ति के पेट में भरी अतिरिक्त पानी बाहर निकालना चाहिए तथा फिर यदि आवश्यक हो, तो उसे कृत्रिम श्वसन दिलाना चाहिए।

2782.

स्थानीय स्वास्थ्य संस्थाओं के किन्हीं दो कार्यों का उल्लेख कीजिए।

Answer»

स्थानीय स्वास्थ्य संस्थाओं के दो मुख्य कार्य हैं

  1. साधारण रोगों का उपचार तथा
  2. विभिन्न संक्रामक रोगों को फैलने से रोकने के सभी सम्भव उपाय करना।
2783.

भारतीय रेडक्रॉस सोसायटी का मुख्यालय कहाँ स्थित है?

Answer»

भारतीय रेडक्रॉस सोसायटी का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।

2784.

बाल रक्षा केन्द्र का संचालन कौन करता है?

Answer»

बाल रक्षा केन्द्र का संचालन नगरपालिका करती है।

2785.

मातृ-कल्याण सेवा केन्द्रों का मुख्य कार्य है(क) केवल प्रसूता की देखभाल करना(ख) केवल नवजात शिशुओं की देखभाल करना(ग) माता तथा शिशुओं की देखभाल करना(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं।

Answer»

सही विकल्प है (ग) माता तथा शिशुओं की देखभाल करना

2786.

विश्व स्वास्थ्य संगठन का भारत में मुख्य कार्यालय कहाँ है?

Answer»

विश्व स्वास्थ्य संगठन का भारत में मुख्य कार्यालय नई दिल्ली में स्थित है।

2787.

परिवार की कुशलता के लिए परिवार नियोजन क्यों आवश्यक है? दो कारण लिखिए।

Answer»

परिवार के सुख, समृद्धि तथा कल्याण के लिए एवं देश की जनसंख्या को नियन्त्रित करने के लिए परिवार नियोजन आवश्यक है।

2788.

खपच्चियों का प्रयोग कब किया जाना चाहिए?

Answer»

दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति के अस्थि-भंग वाले अंग के दोनों ओर खपच्चियाँ बाँधना लाभप्रद रहता है, परन्तु कोमल अंगों (पसलियाँ, गर्दन आदि) की अस्थि भंग होने पर खपच्चियाँ प्रयोग में नहीं लाइ जाती हैं।

2789.

जले हुए स्थान पर लगाने के लिए किन्हीं दो औषधियों के नाम बताओ जो घर पर उपलब्ध हों।

Answer»

ये औषधियाँ हैं-बरनॉल तथा नारियल का तेल।

2790.

एक गृहिणी के पैर में असावधानी के कारण एक सुई घुसकरटूट गइ हो, तो आप क्या व्यवस्था करेंगी?

Answer»

चोट लगे स्थान के ऊपर रुधिर प्रवाह रोकने के लिए पानी या बर्फ का भीगा कपड़ा कसकर बाँध देंगे तथा डॉक्टर को बुलाएँगे।

2791.

बिजली का झटका लगने पर तुरन्त उपचार बताइए।

Answer»

बिजली की लाइन काटकर रोगी को लकड़ी की मेज या तख्ते पर लिटाना चाहिए।

2792.

टूर्नीकेट क्या है? इसका क्या काम है? या टूर्नीकेट से आप क्या समझती हैं?

Answer»

निरन्तर हो रहे रक्त-स्राव को रोकने के लिए कपड़ों की पट्टियों से बने पैड द्वारा सम्बन्धित धमनियों पर दबाव डाला जाता है। मुलायम कपड़े का यह पैड टूर्नीकट कहलाता है तथा इसे बाँधकर रक्त-स्राव को रोका जाता है।

2793.

हाथ या टाँग के घाव से होने वाले रक्त-स्राव को रोकने का सर्वोत्तम उपाय है(क) टूर्नीकेट का प्रयोग(ख) स्प्रिट का प्रयोग(ग) खपच्चियों का प्रयोग(घ) इनमें से कोई नहीं

Answer»

सही विकल्प है (क) टूर्नीकेट का प्रयोग

2794.

जले हुए व्यक्ति को पीने के लिए देना चाहिए(क) मद्य(ख) मद्यरहित पेय(ग) दोनों ही(घ) दोनों ही नहीं

Answer»

सही विकल्प है (ख) मद्यरहित पेय

2795.

किस रक्त-नलिका के कट जाने से लगातार रक्त बहता है?(क) शिरा(ख) नाड़ी(ग) तन्तु(घ) धमनी

Answer»

सही विकल्प है (क) शिरा

2796.

जलने पर रोगी का उपचार है(क) डिटॉल लगाना(ख) पिसी आलू लगाना(ग) पिसा नमक लगाना(घ) गर्म तेल

Answer»

सही विकल्प है (ख) पिसी आलू लगाना

2797.

आन्तरिक रक्तस्राव को कम करने के लिए क्या प्राथमिक उपचार किया जाता है?(क) बर्फ की थैली रखना(ख) गीले कपड़े में लपेटना(ग) टूर्नीकेट का प्रयोग करना(घ) कोई उपचार नहीं

Answer»

सही विकल्प है (क) बर्फ की थैली रखना

2798.

अम्ल से जल जाने पर लगाना चाहिए(क) नींबू का रस(ख) सिरका(ग) खाने का सोडा(घ) कुछ भी नहीं

Answer»

सही विकल्प है (ग) खाने का सोडा

2799.

नाक से रक्त-स्त्राव होने पर(क) जूता सुंघाना चाहिए(ख) पीली मिट्टी सुंघा देनी चाहिए(ग) कुर्सी पर बैठाकर सिर पीछे की ओर झुका देना चाहिए(घ) घायल को उल्टा लिटा देना चाहिए

Answer»

सही विकल्प है (ग) कुर्सी पर बैठाकर सिर पीछे की ओर झुका देना चाहिए

2800.

मिरगी या हिस्टीरिया के कारण मूच्र्छा आने पर प्रथम उपचार है(क) रोगी के मानसिक कष्ट को दूर करना(ख) पुराना जूता सुंघाना(ग) रोगी को शुद्ध वायु में लिटा देना(घ) पीली मिट्टी हुँघाना

Answer»

सही विकल्प है (ग) रोगी को शुद्ध वायु में लिटा देना