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1.

दिए गए पद्यांशों को फ्ढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिएमुझको यह प्यारा और इसे तुम प्यारे,मेरे दुगुने प्रिय, रहो न मुझसे न्यारे ।मैं इसे न जानें, किन्तु जानते हो तुम,अपने से पहले इसे मानते हो तुम ।।तुम भ्राताओं का प्रेम परस्पर जैसा,यदि वह सब पर यों प्रकट हुआ है वैसा ।तो पाप-दोष भी पुण्य-तोष है मेरा,मैं रहूँ पंकिला, पद्म-कोष है मेरा ।(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।(iii) श्रीराम का कौन प्यारा है?(iv) कैकेयी को कौन दोगुने प्रिय हैं? क्य?(v) “मैं रहूँ पंकिला, पद्म-कोष है मेरा।” पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?

Answer»

(i) प्रस्तुत पद्यांश श्री मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘साकेत’ महाकाव्य से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘कैकेयी का अनुताप’ शीर्षक काव्यांश से उद्धृत है।
अथवा
शीर्षक का नाम-
 कैकेयी का अनुताप।
कवि का नाम–मैथिलीशरण गुप्त।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-कैकेयी श्रीराम से कहती हैं कि हे राम! मुझे यह भरत प्रिय है और भरत को तुम प्रिय हो। इस प्रकार तो तुम मुझे दोगुने प्रिय हो। तुम दोनों भाइयों के बीच जिस प्रकार का प्रेम सब लोगों के सामने प्रकट हुआ है, उससे तो मेरे पाप का दोष भी पुण्य के सन्तोष में बदल गया है। मुझे तो यह सन्तोष है कि मैं स्वयं कीचड़ के समान निन्दनीय हूँ, किन्तु मेरी कोख से कमल के समान निर्मल भरत को जन्म हुआ।
(iii) श्रीराम को भरत प्यारे हैं।
(iv) कैकेयी को भरत प्रिय हैं और भरत को राम प्रिय हैं इसलिए कैकेयी को राम और भरत दोगुने प्रिय हैं।
(v) रूपक अलंकार।

2.

‘साकेत’ की विषय-वस्तु क्या है?

Answer»

‘साकेत’ में लक्ष्मण और उर्मिला के त्याग को दर्शाया गया है।

3.

निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए(अ) चारु चन्द्र की चंचल किरणें खेल रही हैं जल-थल में।(ब) जाग रहा ये कौन धनुर्धर जबकि भुवन-भर सोता है?(स) मर्त्यलोक मालिन्य मेटने स्वामि संग जो आयी है।

Answer»

() काव्यगत विशेषताएँ

  1. पंचवटी का सौन्दर्य वर्णित है।
  2. भाषासाहित्यिक खड़ीबोली।
  3. शैलीवर्णनात्मक।
  4. गुणओज।
  5. अलंकारअनुप्रास, पुनरुक्ति।

() काव्यगत विशेषताएँ-

  1. कवि ने लक्ष्मण की कर्तव्यनिष्ठा का वर्णन किया है।
  2. भाषा में तत्सम तथा तद्भव शब्दों का सुन्दर समन्वय हुआ है।

() काव्यगत विशेषताएँ

  1. यहाँ भारतीय नारी के महान् आदर्शों का चित्रण किया गया है कि वह सुख-दुःख में अपने पति को ही साथ देती है। सीताजी को तीन लोकों की ‘श्री’ कहा गया है।
  2. भाषासाहित्यिक खड़ीबोली।
  3. शैलीगीतात्मक एवं चित्रात्मक।
  4. अलंकारअनुप्रास, रूपक।
  5. गुणमाधुर्य ।
  6. रसशान्त।
  7. छन्द- मात्रिक।
4.

निम्नलिखित पदों में समास विग्रह करके समास का नाम लिखिए-पंचवटी, वीरवंश, सभय, कुसुमायुध, ध्वनि संकेत, नरलोक।

Answer»

पंचवटी = पाँच वटों का समाहार = बहुब्रीहि समास
वीरवंश = वीरों का वंश = सम्बन्ध तत्पुरुष
सभय = भय से युक्त  = अव्ययी भाव
कुसुमायुध = कुसुम है आयुध जिसके =  बहुब्रीहि समास
वह (कामदेव)
ध्वनि संकेत = ध्वनि का संकेत = षष्ठी तत्पुरुष समास
नरलोक  = नरों का लोक =तत्पुरुष समास

5.

मैथिलीशरण गुप्त का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए। यामैथिलीशरण गुप्त का साहित्यिक परिचय दीजिए और उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए। 

Answer»

जीवन-परिचय-राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म संवत् 1943 वि० (सन् 1886 ई०) में, चिरगाँव (जिला झाँसी) में हुआ था। इनके पिता का नाम सेठ रामचरण गुप्त था। सेठ रामचरण गुप्त स्वयं एक अच्छे कवि थे। गुप्त जी पर अपने पिता का पूर्ण प्रभाव पड़ा। आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी से भी इन्हें बहुत प्रेरणा मिली। ये द्विवेदी जी को अपना गुरु मानते थे। गुप्त जी को प्रारम्भ में अंग्रेजी पढ़ने के लिए झाँसी भेजा गया, किन्तु वहाँ इनका मन न लगा; अत: घर पर ही इनकी शिक्षा का प्रबन्ध किया गया, जहाँ इन्होंने अंग्रेजी, संस्कृत और हिन्दी का अध्ययन किया। गुप्त जी बड़े ही विनम्र, हँसमुख और सरल स्वभाव के व्यक्ति थे। इनके काव्य में भारतीय संस्कृति को प्रेरणाप्रद चित्रण हुआ है। इन्होंने अपनी कविताओं द्वारा राष्ट्र में जागृति तो उत्पन्न की ही, साथ ही सक्रिय रूप से असहयोग आन्दोलनों में भी भाग लेते रहे, जिसके फलस्वरूप इन्हें जेल भी जाना पड़ा। ‘साकेत’ महाकाव्य पर इन्हें हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन, प्रयाग से मंगलाप्रसाद पारितोषिक भी मिला। भारत सरकार ने गुप्त जी को इनकी साहित्य-सेवा के लिए पद्मभूषण से सम्मानित किया और राज्यसभा का सदस्य भी मनोनीत किया। जीवन के अन्तिम क्षणों तक ये निरन्तर साहित्य-सृजन करते रहे। 12 दिसम्बर, 1964ई०(संवत् 2021 वि०) को माँ-भारती का यह महान् साधक पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया।

साहित्यिक सेवाएँ—गुप्त जी का झुकाव गीतिकाव्य की ओर था और राष्ट्रप्रेम इनकी कविता का प्रमुख स्वर रहा। इनके काव्य में भारतीय संस्कृति का प्रेरणाप्रद चित्रण हुआ है। इन्होंने अपनी कविताओं द्वारा राष्ट्र में जागृति तो उत्पन्न की ही, साथ ही सक्रिय रूप से असहयोग आन्दोलनों में भी भाग लेते रहे, जिसके फलस्वरूप इन्हें जेल भी जाना पड़ा। ‘साकेत’ महाकाव्य पर इन्हें हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन, प्रयाग से मंगलाप्रसाद पारितोषिक भी मिला। भारत सरकार ने गुप्त जी को इनकी साहित्य-सेवा के लिए पद्मभूषण से सम्मानित किया और राज्यसभा का सदस्य भी मनोनीत किया।
रचनाएँ—गुप्त जी की समस्त रचनाएँ दो प्रकार की हैं—(1) अनूदित तथा (2) मौलिक।
इनकी अनूदित रचनाओं में दो प्रकार का साहित्य है-कुछ काव्य और कुछ नाटक। इन अनूदित ग्रन्थों में संस्कृत के यशस्वी नाटककार भास के ‘स्वप्नवासवदत्ता’ का अनुवाद उल्लेखनीय है। ‘वीरांगना’, मेघनाद-वध’, ‘वृत्र-संहार’ आदि इनकी अन्य अनूदित रचनाएँ हैं। इनकी प्रमुख मौलिक काव्य-रचनाएँ निम्नवत् हैं-
साकेत—यह उत्कृष्ट महाकाव्य है, जो ‘श्रीरामचरितमानस’ के बाद राम-काव्य का प्रमुख स्तम्भ है।
भारत-भारती-इसमें भारत की दिव्य संस्कृति और गौरव का गान किया गया है।
यशोधरा–इसमें बुद्ध की पत्नी यशोधरा के चरित्र को उजागर किया गया है।
द्वापर, जयभारत, विष्णुप्रिया-इनमें हिन्दू संस्कृति के प्रमुख पात्रों के चरित्र का पुनरावलोकन कर कवि ने अपनी पुनर्निर्माण कला उत्कृष्ट रूप में प्रदर्शित की है।
गुप्त जी की अन्य प्रमुख काव्य-रचनाएँ इस प्रकार हैं-रंग में भंग, जयद्रथ-वध, किसान, पंचवटी, हिन्दू, सैरिन्ध्री, सिद्धराज, नहुष, हिडिम्बा, त्रिपथगा, काबा और कर्बला, गुरुकुल, वैतालिक, मंगल घट, अजित आदि। ‘अनघ’, ‘तिलोत्तमा’, ‘चन्द्रहास’ नामक तीन छोटे-छोटे पद्यबद्ध रूपक भी इन्होंने लिखे हैं। साहित्य में स्थान-राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त आधुनिक हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि रहे हैं। खड़ी बोली को काव्य के साँचे में ढालकर परिष्कृत करने का जो असाधारण कौशल इन्होंने दिखाया, वह अविस्मरणीय रहेगा। इन्होंने राष्ट्र को जगाया और उसकी चेतना को वाणी दी है। ये भारतीय संस्कृति के यशस्वी उद्गाता एवं परम वैष्णव होते हुए भी विश्व-बन्धुत्व की भावना से ओत-प्रोत थे। ये सच्चे अर्थों में इस राष्ट्र के महनीय मूल्यों के प्रतीक और आधुनिक भारत के सच्चे राष्ट्रकवि थे।

6.

यशोधरा दुःखी क्यों है?

Answer»

यशोधरा अपने पति सिद्धार्थ के उसको बताए बिना चोरी-चोरी चले जाने के कारण दु:खी है।

7.

‘यशोधरा’ का काव्यरूप क्या है?

Answer»

‘यशोधरा’ गुप्त जी द्वारा रचित खण्डकाव्य है।

8.

यशोधरा की मूल संवेदना अपने शब्दों में लिखिए।

Answer»

यशोधरा अपने पति के प्रति समर्पित है। जो उसके पति को मान्य है, वही यशोधरा को भी स्वीकार है। सिद्धि हेतु उनके जाने में भी वह गौरव अनुभव करती है। किन्तु उनके चुपचाप चोरी-चोरी, उससे कुछ कहे बिना चले जाना उसको बहुत पीड़ा पहुँचाता है। इसमें उसको अपनी उपेक्षा का भाव प्रतीत होता है यह उपेक्षा उसके विरह दु:ख को दूना कर देती है।

9.

भारतवर्ष अन्य देशों को सिरमौर क्यों है?

Answer»

भारतवर्ष संसार का सबसे प्राचीन देश होने के कारण अन्य देशों का सिरमौर है।

10.

भारतवर्ष को प्रकृति का पुण्य तीर्थस्थल क्यों कहा जाता है ?

Answer»

भारतवर्ष में प्रकृति का अपार वैभव बिखरा पड़ा है।

11.

यह गौरव की बात कि स्वामी गये।(क) वैराग्य हेतु(ख) सिद्धि हेतु(ग) राज्य प्राप्ति हेतु(घ) तीर्थ यात्रा हेतु।

Answer»

(क) भारतवर्ष

12.

कवि ने भारतवर्ष को भू-लोक का गौरव क्यों बताया है? अपने शब्दों में लिखिए।

Answer»

भारत का प्राकृतिक सौन्दर्य अनुपम है। यहाँ पर्वतराज हिमालय तथा गंगानदी हैं। संसार के सभी देशों की अपेक्षा भारत महान् तथा समुन्नत है। भारत ऋषि-मुनियों की तपोभूमि है। कवि ने इस कारण भारत को पृथ्वी का गौरव बताया है।

13.

नहीं चाहिए बुद्ध बैर की ।भला प्रेम का उन्माद यहाँसबका शिव कल्याण यहाँ है,पावें । सभी प्रसाद यहाँ।सब तीर्थों का एक तीर्थ यहहृदय पवित्र बना : लें हमआओ यहाँ अजातशत्रु बन,सबको मित्र बना लें हम।।

Answer»

[ उन्माद = अत्यधिक अनुराग। अजातशत्रु = जिसका कोई शत्रु न हो।]

प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि ने लोगों से भारत माता मंदिर के गुणों को अपने जीवन-चरित्र में उतारने की बात कही है।

व्याख्या-उक्त पंक्तियों में कवि कह रहा है कि हमें ऐसी उन्नति कदापि प्रिय नहीं है जो ईष्र्या से युक्त हो। इस भारत माता के मंदिर में सबके कल्याण और प्रेम का अत्यधिक अनुराग भरा पड़ा है। यहाँ पर सभी का मंगल कल्याण है और  यहीं पर सभी को परम सुखरूपी प्रसाद की प्राप्ति होती है।

यह भारत माता का मंदिर सभी तीर्थों में उत्तम तीर्थ है क्योंकि यह किसी एक संप्रदाय या किसी धर्म से जुड़ा तीर्थ नहीं है। यद्यपि इसमें सभी तीर्थों का समावेश है, इसलिए इस तीर्थ का तीर्थाटन करके अपने हृदय को हम पवित्र बना लें। यह ऐसा पवित्र व उत्तम स्थान है जहाँ पर कोई किसी का शत्रु नहीं है इसलिए यहाँ बसकर हम सबको अपना मित्र बना लें। यहाँ पर रेखाओं के रूप में कल्याणकारी व मंगलकारी कामनाओं  (इच्छाओं) के चित्रों को उकेरकर उनको साकार रूप देकर हम अपने मनोभावों को पूर्ण कर लें। अर्थात् यह भारत माता का मंदिर ऐसा पवित्र स्थल है जहाँ ईष्र्या-द्वेष लेश मात्र भी नहीं है। ऐसे पावन मंदिर में बसकर हम अपने जीवन को धन्य बना सकने में और अपनी मानवता को साकार रूप दे पाने में सफल हो पाएँगे।

काव्यगत सौन्दर्य-
⦁    भारत माता के मंदिर के रूप में मानवता की साकार मूर्ति का चित्रांकन।
⦁    कवि की शब्द-शक्ति के द्वारा प्रेम से परिपूर्ण दुनिया का निर्माण करना।
⦁    भाषा-खड़ी बोली।
⦁    गुण–प्रसाद।
⦁    छन्द-गेय।
⦁    शैली मुक्तक
⦁    अलंकार-रूपक।
⦁    भाव-साम्यवियोगी हरि द्वारा रचित ‘विश्व मंदिर।।

14.

मिला सेव्य का हमें पुजारीसकल काम उस न्यायी कामुक्ति लाभ कर्त्तव्य यहाँ है।एक-एक अनुयायी काकोटि-कोटि कंठों से मिलकरउठे एक जयनाद यहाँसबका शिव कल्याण यहाँ हैपावें सभी प्रसाद यहाँ।

Answer»

[सेव्य = सेवा करने वाला। अनुयायी = किसी मत का अनुसरण करने वाला। जयनाद = जयघोष।]

प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने भारतवासियों को भारतभूमि में जन्म लेने पर धन्य होने की बात । कही है।

व्याख्या—इन पंक्तियों के माध्यम से कवि मैथिलीशरण गुप्त जी कह रहे हैं कि हमारा परम सौभाग्य है जो हमें इस पावन भूमि (भारत) में जन्म मिला और भारत माता की सेवा करने का सुअवसर प्राप्त हुआ। यह ईश्वर की हमारे ऊपर बहुत बड़ी  कृपा है। यहाँ के प्रत्येक अनुयायी का यह कर्तव्य बनता है कि वह इस मौके का सम्पूर्ण लाभ उठाकर मुक्ति प्राप्त करें। भारत माता के इस पावन मंदिर में करोड़ों स्वर एक साथ मिलकर जयघोष करते हैं अर्थात् यहाँ निवास करने वाले सभी लोग एक स्वर में जय-जयकार करते हैं। भारत माता के इस पावन मंदिर में सबके मंगलकारी कल्याण की कामना की जाती है और सभी को यहाँ परमसुख रूपी प्रसाद की प्राप्ति होती है। कहने का तात्पर्य है कि जिसने भारत में जन्म लिया है उसका यह सौभाग्य है कि उसने मोक्ष के मार्ग को खोज लिया है।

काव्यगत सौन्दर्य-
⦁    प्रस्तुत पंक्तियों में देशभक्ति का सच्चा अनुराग दर्शाया गया है।
⦁    भाषा-सरल, सहज एवं प्रवाहयुक्त खड़ी बोली।
⦁    शैली-मुक्तक।
⦁    अलंकार–रूपक।
⦁    भाव-साम्य-ऐसी ही भाव-व्यंजना सुभद्राकुमारी चौहान ने अपनी इन पंक्तियों के द्वारा व्यक्त की है

सुनूंगी माता की आवाज,
रहूंगी मरने को तैयार,
कभी भी उस वेदी पर देव,
न होने देंगी अत्याचार।
न होने देंगी अत्याचार,
चलो मैं हो जाऊं बलिदान,
मातृ-मन्दिर में हुई पुकार,
चढ़ा दो मुझको हे भगवान!

15.

बैठो माता के आँगन मेंनाता भाई-बहन का।समझे उसकी प्रसव वेदनावही लाल है माई काएक साथ मिल बाँट लो।अपनी हर्ष विषाद यह है ।सबका शिव कल्याण यह है,पावें सभी प्रसाद यहाँ।

Answer»

[आँगन = घर। लाल = पुत्र। विषाद = कष्ट।]

प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि ने भारत माता के इस पवित्र सदन में निवास करने वाले सभी लोगों के बीच वास्तविक रिश्ते को उजागर किया है।

व्याख्या-प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि यहाँ (भारत में) निवास करने वाले लोगों से कहता है। कि आइए माँ के इस पवित्र सदन में बैठिए। हम सबका यहाँ पर भाई-बहन का रिश्ता है अर्थात् एक घर (भारत) में निवास करने वाले हम सभी आपस में भाई-बहन के समान हैं और हमारा कर्तव्य है कि हम सब अपनी माँ (भारत माता) के कष्टों को महसूस करें; क्योंकि सच्चा पुत्र वही होता है जो अपनी माता के कष्टों को समझता  है तथा उसके लिए हर क्षण समर्पण की भावना अपने मन में रखता है। हम सभी भाई-बहनों का यह उद्देश्य होना चाहिए कि किसी-को-किसी प्रकार का कष्ट न हो। सभी एक-दूसरे के सहयोग के लिए तैयार रहें। क्योंकि यह भारत माता का मंदिर है इसलिए यहीं पर हम सबका मंगल कल्याण है और यहीं पर सभी को परम सुख रूपी प्रसाद भी प्राप्त है। कहने का तात्पर्य यह है कि हम सब भारतवासी एक माँ (भारत माता) की सन्तानें हैं और आपस में सभी भाई-बहन के समान हैं। हमें आपस में मिल-जुलकर रहना चाहिए। और एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए।

काव्यगत सौन्दर्य-
⦁    समस्त भारतवासियों का भाई-बहन के रूप में वास्तविक चित्रण किया गया है।
⦁    सम्पूर्ण भारत देश का एक सदन के सदृश सुन्दर चित्रण हुआ है।
⦁    भाषा-खड़ी बोली।
⦁    शैली-मुक्तक।
⦁    अलंकार-रूपक
⦁    भावसाम्य-महान संत तिरुवल्लुवर ने भी अपने एक कुरले. (दोहे) के माध्यम से ऐसे ही भाव प्रकट किए हैं—

कपट, क्रोध, छल, लोभ से रहित प्रेम-व्यवहार।
सबसे मिल-जुलकर रहो, सकल विश्व परिवार॥

16.

दिए गए पद्यांशों को फ्ढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिएकहते आते थे यही अभी नरदेही,‘माता न कुमाता, पुत्र कुपुत्र भले ही।’अब कहें सभी यह हाय ! विरुद्ध विधाता-‘है पुत्र पुत्र ही, रहे कुमाता माता।’बस मैंने इसका बाह्य-मात्र ही देखा,दृढ़ हृदय न देखा, मृदुल गात्र ही देखा ।।परमार्थ न देखा, पूर्ण स्वार्थ ही साधा,इस कारण ही तो हाय आज यह बाधा !युग-युग तक चलती रहे कठोर कहानी-‘रघुकुल में भी थी एक अभागिन रानी।(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।(iii) पद्यांश के अनुसार, आज तक लोग क्या कहते आए हैं?(iv) किसने प्रायश्चित्त किया है कि मैंने पुत्र का कोमल शरीर ही देखा, उसका दृढ़ हृदय नहीं देखा?(v) इन पंक्तियों में कैकेयी को किस बात पर पश्चात्ताप हुआ है?

Answer»

(i) प्रस्तुत पद्यांश श्री मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘साकेत’ महाकाव्य से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘कैकेयी का अनुताप’ शीर्षक काव्यांश से उद्धृत है।
अथवा
शीर्षक नाम-
 कैकेयी का अनुताप।
कवि का नाम-मैथिलीशरण गुप्त।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-कैकेयी श्रीराम से कहती है कि आज तक मनुष्य यही कहते आये थे कि पुत्र कितना ही दुष्ट क्यों न हो, परन्तु माता उसके प्रति कभी भी दुर्भाव नहीं रखती है। अब तो मेरे चरित्र के कारण लोगों का इस उक्ति पर से विश्वास हट जाएगा और संसार के लोग यही कहा करेंगे कि माता दुष्टतापूर्ण व्यवहार कर सकती है, परन्तु पुत्र कभी कुपुत्र नहीं हो सकता।
(iii) पद्यांश के अनुसार, आज तक लोग यही कहते आए हैं कि पुत्र कुपुत्र हो सकता है पर माता कुमाता नहीं हो सकती।
(iv) कैकेयी ने प्रायश्चित्त किया है कि मैंने पुत्र का कोमल शरीर हो देखा उसका दृढ़-हृदय नहीं देखा।
(v) इन पंक्तियों में कैकेयी को अपने ऊपर लगने वाले कलंक और पुत्र की प्रवृत्ति को न पहचान पाने का पश्चात्ताप हुआ है।

17.

मैथिलीशरण गुप्त जी को भारतीय सांस्कृतिक नव जागरण काल का राष्ट्रकवि क्यों कहा जाता है?

Answer»

मैथिलीशरण गुप्त को राष्ट्रकवि माना जाता है। उनके काव्य में राष्ट्रीयता की प्रबल भावना है। वह साम्प्रदायिकता, प्रादेशिकता तथा धर्मान्धता के विरुद्ध है। उनको राष्ट्रकवि मानने के कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं राष्ट्रवाद के गायक-गुप्त जी राष्ट्रीय भावनाओं के गायक हैं। उनके द्वारा लिखी ‘भारत-भारती’ नामक काव्य-रचना में स्वदेश प्रेम, भारत के अतीत गौरव, राष्ट्रीय जागरण, सर्वधर्म समभाव आदि का वर्णन मिलता है। गुप्त जी की इस रचना ने उनका राष्ट्रीय भावनाओं के कवि के रूप में प्रतिष्ठित किया है।

मातृभूमि के प्रति श्रद्धा भाव – गुप्त जी में मातृभूमि के प्रति अपूर्व श्रद्धा का भाव है। स्वदेश में उनको सर्वेश की साकार मूर्ति दिखाई देती है।

करते अभिषेक प्रमोद हैं बलिहारी इस देश की।
हे मातृभूमि! तू सत्य ही सगुण मूर्ति सर्वेश की।

संकीर्णता विरोधी – गुप्त जी संकीर्ण विचारों तथा भावनाओं को राष्ट्र के लिए हितकर नहीं मानते। उनके काव्य में संकीर्णता का । विरोध मिलता है। वह धर्म, सम्प्रदाय, प्रदेश आदि का भेद नहीं मानते। उनकी एकता से ही राष्ट्र की एकता को वह सम्भव मानते हैं।

गौरवमय अतीत – भारत के निवासी आर्य हैं, जिन्होंने विश्व को सभ्य और सुसंस्कृत बनाया है। अतीत पर गर्व का भाव भी गुप्त जी की राष्ट्रीय भावना का पोषक है

यह पुण्यभूमि प्रसिद्ध है इसके निवासी आर्य हैं।
विद्या कला कौशल सभी के जो प्रथम आचार्य हैं।

राष्ट्र के प्रति समर्पण – गुप्त जी राष्ट्र के प्रति सम्पूर्ण समर्पण के प्रचारक हैं। राष्ट्र के लिए सर्वस्व त्यागने की भावना उनके काव्य में मिलती है

जिएँ तो सदा इसी के लिए, यही उल्लास रहे यह हर्ष।
निछावर कर दें हम सर्वस्व, हमारा प्यारा भारतवर्ष।।

18.

मैथिलीशरण गुप्त को राष्ट्रकवि क्यों कहा जाता है ?

Answer»

मैथिलीशरण गुप्त के काव्य में स्वदेश प्रेम, राष्ट्रीय भावना, भारतीय संस्कृति, भारत के अतीत तथा इतिहास आदि का चित्रण हुआ है। उनकी प्रसिद्ध काव्य-रचना भारत-भारती में भारतीयों को अपने गौरवशाली अतीत का स्मरण कराया गया है तथा उनमें उत्साह तथा स्वाधीनता के प्रति प्रेम का भाव जगाया गया है। इस सभी के कारण उनको राष्ट्र कवि का गौरव प्राप्त है।

19.

प्राचीन भारत के निवासी थे(क) अनार्य(ख) आर्य(ग) द्रविड़(घ) संथाल

Answer»

प्राचीन भारत के निवासी आर्य थे।

20.

मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित महाकाव्य है|(क) साकेत(ख) यशोधरा(ग) कुरुक्षेत्र(घ) कामायनी।

Answer»

मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित महाकाव्य साकेत है|

21.

यशोधरा’ शीर्षक काव्यांश में व्यक्त भाव है(क) उपालम्भ(ख) पीड़ा(ग) उल्लास(घ) गर्व।

Answer»

यशोधरा’ शीर्षक काव्यांश में पीड़ा भाव व्यक्त है।

22.

गुप्त जी ने काव्य रचना की है(क) ब्रजभाषा में(ख) अवधी में(ग) खड़ी बोली में(घ) भोजपुरी में।

Answer»

(ग) खड़ी बोली में

23.

भारत की श्रेष्ठता’ कविता संकलित है(क) जयद्रथ वध में(ख) साकेत में(ग) द्वापर में(घ) भारत-भारती में।

Answer»

(घ) भारत-भारती में।

24.

भारत की श्रेष्ठता’ कविता की संवेदना क्या है?

Answer»

‘भारत की श्रेष्ठता’ कविता की संवेदना राष्ट्रीयता की भावना है।

25.

“कुछ अपूर्व अनुपम लावेंगे’, पंक्ति में क्या संकेत है?

Answer»

इस पंक्ति में संकेत है कि गौतम बुद्ध को बुद्धत्व प्राप्त हो जायेगा।

26.

भारत की श्रेष्ठता’ कविता किस पुस्तक में संकलित है?

Answer»

भारत की श्रेष्ठता’ शीर्षक कविता गुप्त जी के ‘भारत-भारती’ नामक काव्य में संकलित है।

27.

गौतम बुद्ध को चुपचाप अपनी पत्नी को छोड़कर जाना क्या आपको उचित लगता है ?

Answer»

गौतम बुद्ध ने विश्व कल्याण हेतु गृह त्याग किया था, अत: यह उचित है।

28.

“कह तो क्या मुझको वे अपनी पथ बाधा ही पाते ?” यशोधरा द्वारा यह पूछने का क्या तात्पर्य है?

Answer»

यशोधरा कह रही है कि उसके पति गौतम बुद्ध उसको बिना बताए चले गए हैं। वह सिद्धि हेतु गए हैं। सम्भवतः उन्होंने सोचा होगा कि यशोधरा उनको जाने से रोकेगी और उनके सिद्धि प्राप्त करने के मार्ग में बाधक बनेगी। लेकिन वह ऐसी नहीं है। उसने अपने पति की इच्छा के प्रतिकूल कभी कोई काम नहीं किया है। वह उनको जाने से नहीं रोकती।

29.

क्षात्र धर्म क्या है ?

Answer»

युद्ध के आह्वान पर घर-परिवार छोड़कर देश की रक्षा के लिए उसमें कूद पड़ना, पत्नी-बच्चों और अपने जीवन की मोह त्याग देना तथा शत्रु का निर्भीक होकर साहस के साथ सामना करना क्षात्र धर्म है। क्षत्रिय स्त्रियों का धर्म यह है कि वे अपने पतियों को युद्ध के लिए सुसज्जित करके स्वयं विदा करें तथा उसके कर्तव्य का पालन से विमुख होने का कारण न बनें । कर्तव्यपालन में पति की सहायता करना ही क्षत्रिय नारी का धर्म है।

30.

फिर भी क्या पूरा पहचाना?’ यशोधरा ने यह क्यों कहा है कि गौतम बुद्ध उसको पूरी तरह पहचान नहीं सके?

Answer»

गौतम बुद्ध के चोरी-चोरी यशोधरा से बिना कहे घर से जाने से यशोधरी को शंका होती है कि गौतम अपनी पत्नी को अच्छी तरह पहचान नहीं सके। उनको आशंका थी कि यदि वह यशोधरा को बताकर जायेंगे तो वह उनको जाने नहीं देगी। यशोधरा ऐसी नहीं है। वह अपने पति की इच्छा के अनुकूल चलने वाली है। वह सिद्धि पाने के लिए जाने वाले अपने स्वामी को कभी नहीं रोकती। किन्तु गौतम की चुपचाप जाना सिद्ध करता है कि वह अपनी पत्नी की भावना को जान नहीं सके।

31.

हुआ ने वह भी भाग्य अभागा’ -पंक्ति में यशोधरा ने स्वयं को अभागा कहा है। इसका क्या कारण है?

Answer»

‘यशोधरा’ बता रही है कि पत्नी का कर्तव्य है कि वह अपने पति के कर्तव्यपालन में सहयोगिनी बने। वह उसको कर्तव्य पालन के लिए प्रेरित और उत्साहित करें। यदि उसके मन में कोई मोह है तो उससे उसको विरत करे। युद्ध भूमि के लिए अपने वीर पति को स्वयं विदा करना क्षत्राणी को धर्म है। यशोधरा के पति चुपचाप चले गए। वह सोती ही रह गई। उसको तो अपने पति को विदा करने का सौभाग्य भी प्राप्त न हो सका।