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1.

दिए गए पद्यांशों को फ्ढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिएकह न ठंडी साँस में अब भूल वह जलती कहानी,आग हो उर में तभी दृग में सजेगा आज पानी;हार भी तेरी बनेगी मानिनी जय की पताका,राख क्षणिक पतंग की है अमर दीपक की निशानी !है तुझे अंगार-शय्या पर मृदुल कलियाँ बिछाना !जाग तुझको दूर जाना !(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।(iii) इस पद्यांश से कवयित्री का आशय स्पष्ट कीजिए।(iv) किसकी राख अमर दीपक की भाग बनकर अमर हो जाती है?(v) ‘क्षणिक’ शब्द से मूल शब्द और प्रत्यय अलग करके लिखिए।

Answer»

(i) प्रस्तुत पद्यांश श्रीमती महादेवी वर्मा द्वारा रचित सान्ध्यगीत नामक कविता-संग्रह से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘गीत 1′ शीर्षक कविता से उद्धृत है।
अथवा
शीर्षक का नाम-
 गीत 1
कवयित्री का नाम-महादेवी वर्मा।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-कवयित्री का कहना है कि यदि किसी के हृदय में अज्ञात प्रियतम के प्रति सच्चा प्रेम है तथा उसके हृदय में अपने प्रियतम से मिलने की एकनिष्ठ छटपटाहट विद्यमान है तो इस स्थिति में उसको मिलने वाली हार भी जीत ही मानी जाएगी। भाव यह है कि प्रेम की सफलता इसी में है कि हम एकनिष्ठ भाव से अपने प्रेम को प्रदर्शित करते रहें, चाहे हमारा अपने प्रियतम से मिलन हो या न हो। आशय यह है कि जीवात्मा अविनाशी परमात्मा पर अपने को मिटाकर भी अक्षय पुण्य एवं गौरव की अधिकारिणी बनती है।
(iii) इस पद्यांश से कवयित्री का आशय है कि साधना के कष्टों से घबराकर साधक को हार नहीं माननी चाहिए। साधना-पथ पर मिली असफलता भी गौरव का ही कारण बनती है।।
(iv) पतंगा दीपक पर जलकर राख बन जाता है। उसकी राख अमर दीपक का भाग बनकर अमर हो जाती
(v) क्षणिक = क्षण + इक।

2.

दिए गए पद्यांशों को फ्ढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिएचिर सजग आँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना !जाग तुझको दूर जाना !अचल हिमगिरि के हृदय में आज चाहे कम्प हो ले,या प्रलय के आँसुओं में मौन अलसित व्योम रो ले;आज पी आलोक को डोले तिमिर की घोर छाया,जाग या विद्युत-शिखाओं में निठुर तूफान बोले ! पर तुझे है नाश-पथ पर, चिह्न अपने छोड़ आना !जाग तुझको दूर जाना !(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।(iii) प्रस्तुत पद्यांश के माध्यम से कवयित्री ने पथिक को क्या प्रेरणा दी है?(iv) मार्ग में आने वाली अनेकानेक कठिनाइयों के बावजूद भी पथिक को विनाश और विध्वंश के बीच क्या छोड़ जाना है?(v) ‘हिमगिरि’ शब्द के दो पर्यायवाची शब्द लिखिए।

Answer»

(i) प्रस्तुत पद्यांश श्रीमती महादेवी वर्मा द्वारा रचित सान्ध्यगीत नामक कविता-संग्रह से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘गीत 1′ शीर्षक कविता से उद्धृत है।
अथवा
शीर्षक का नाम–
 गीत 1
कवयित्री का नाम-महादेवी वर्मा।।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-कवयित्री महादेवी वर्मा कहती हैं कि हे पथिक! तुम्हारी सदा सचेत रहने वाली आँखों में यह खुमारी कैसी है और तुम्हारी वेशभूषा इतनी अस्त-व्यस्त क्यों हो रही है? ऐसा प्रतीत हो रहा है कि तुम अपने घर पर ही विश्राम कर रहे हो। सम्भवतः तुम यह भूल गये हो कि तुम्हें लम्बी यात्रा पर जाना है। इसीलिए तुम जाग जाओ, क्योंकि तुम्हारा प्राप्य या लक्ष्य बहुत दूर है। इसीलिए तुम्हें आलस्य में पड़े न रहकर तुरन्त निकल जाना चाहिए। आशय यह है कि साधक को साधना-मार्ग में अनेक कठिनाइयों-बाधाओं का सामना करना पड़ता है। जो साधक इनसे घबराकर या हताश होकर बैठ जाता है, वह अपने लक्ष्य तक कभी नहीं पहुँच पाता। इसलिए साधक को आगे बढ़ते रहने के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए।
(iii) प्रस्तुत पद्यांश के माध्यम से कवयित्री ने पथिक को निरन्तर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते जाने की प्रेरणा दी है।
(iv) मार्ग में आने वाली अनेकानेक कठिनाइयों के बावजूद भी पथिक को विनाश और विध्वंस के बीच नव-निर्माण के चित्र छोड़ जाना है।
(v) ‘हिमगिरि’ शब्द के दो पर्यायवाची हैं–हिमालय, गिरिराज।

3.

महादेवी वर्मा के जीवन-परिचय एवं कृतियों (साहित्यिक योगदान) पर प्रकाश डालिए। यामहादेवी वर्मा का साहित्यिक परिचय दीजिए एवं उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए।

Answer»

जीवन-परिचय–महादेवी वर्मा का जन्म फखाबाद के एक शिक्षित कायस्थ परिवार में सन् 1907 ई०( संवत् 1963 वि०) में होलिका दहन के दिन हुआ था। इनके पिता श्री गोविन्दप्रसाद वर्मा, भागलपुर के एक कॉलेज में प्रधानाचार्य थे। इनकी माता हेमरानी परम विदुषी धार्मिक महिला थीं एवं नाना ब्रजभाषा के एक अच्छे कवि थे। महादेवी जी पर इन सभी का प्रभाव पड़ा और अन्ततः वे एक प्रसिद्ध कवयित्री, प्रकृति एवं परमात्मा की निष्ठावान् उपासिका और सफल प्रधानाचार्या के रूप में प्रतिष्ठित हुईं। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा इन्दौर में और उच्च शिक्षा प्रयाग में हुई। संस्कृत से एम० ए० उत्तीर्ण करने के बाद ये प्रयाग महिला विद्यापीठ में प्रधानाचार्या हो गयीं। इनका विवाह 9 वर्ष की अल्पायु में ही हो गया था। इनके पति श्री रूपनारायण सिंह एक डॉक्टर थे, परन्तु इनका दाम्पत्य जीवन सफल नहीं था। विवाहोपरान्त ही इन्होंने एफ०ए०, बी०ए० और एम०ए० परीक्षाएँ सम्मानसहित उत्तीर्ण कीं। महादेवी जी ने घर पर ही चित्रकला तथा संगीत की शिक्षा भी प्राप्त की।
इन्होंने नारी-स्वातन्त्र्य के लिए संघर्ष किया, परन्तु अपने अधिकारों की रक्षा के लिए नारियों का शिक्षित होना भी आवश्यक बताया। कुछ वर्षों तक ये उत्तर प्रदेश विधान-परिषद् की मनोनीत सदस्या भी रहीं। भारत के राष्ट्रपति से इन्होंने ‘पद्मभूषण’ की उपाधि प्राप्त की। हिन्दी साहित्य सम्मेलन की ओर से इन्हें ‘सेकसरिया पुरस्कार’ तथा ‘मंगलाप्रसाद पारितोषिक’ मिला। मई 1983 ई० में ‘भारत-भारती’ तथा नवम्बर 1983 ई० में यामा पर ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से इन्हें सम्मानित किया गया। 11 सितम्बर, 1987 ई० (संवत् 2044 वि०) को इस महान् लेखिका का स्वर्गवास हो गया।
साहित्यिक सेवाएँ–श्रीमती महादेवी वर्मा का मुख्य रचना क्षेत्र काव्य है। इनकी गणना छायावादी कवियों की वृहत् चतुष्टयी (प्रसाद, पन्त, निराला और महादेवी) में होती है। इनके काव्य में वेदना की प्रधानता है। काव्य के अतिरिक्त इनकी बहुत-सी श्रेष्ठ गद्य-रचनाएँ भी हैं। इन्होंने प्रयाग में ‘साहित्यकार संसद’ की स्थापना करके साहित्यकारों का मार्गदर्शन भी किया। ‘चाँद’ पत्रिका का सम्पादन करके इन्होंने नारी को अपनी स्वतन्त्रता और अधिकारों के प्रति सजग किया है।
महादेवी वर्मा जी के जीवन पर महात्मा गाँधी का तथा कला-साहित्य साधना पर कवीन्द्र रवीन्द्र का प्रभाव पड़ा। इनका हृदय अत्यन्त करुणापूर्ण, संवेदनायुक्त एवं भावुक था। इसलिए इनके साहित्य में भी वेदना की गहरी टीस है।

रचनाएँ-महादेवी जी का प्रमुख कृतित्व इस प्रकार है-
⦁    नीहार-यह इनका प्रथम प्रकाशित काव्य-संग्रह है।
⦁    रश्मि-इसमें आत्मा-परमात्मा विषयक आध्यात्मिक गीत हैं।
⦁    नीरजा-इस संग्रह के गीतों में इनकी जीवन-दृष्टि का विकसित रूप दृष्टिगोचर होता है।
⦁    सान्ध्यगीत-इसमें इनके श्रृंगारपरक गीतों को संकलित किया गया है।
⦁    दीपशिखा-इसमें इनके रहस्य-भावना-प्रधान गीतों का संग्रह है।
⦁    यामा-यह महादेवी जी के भाव-प्रधान गीतों का संग्रह है।
इसके अतिरिक्त ‘सन्धिनी’, ‘आधुनिक कवि’ तथा ‘सप्तपर्णा’ इनके अन्य काव्य-संग्रह हैं। ‘अतीत के चलचित्र’, ‘स्मृति की रेखाएँ’, ‘श्रृंखला की कड़ियाँ इनकी महत्त्वपूर्ण गद्य रचनाएँ हैं।
साहित्य में स्थान–निष्कर्ष रूप में महादेवी जी वर्तमान हिन्दी-कविता की सर्वश्रेष्ठ गीतकार हैं। इनके भावपक्ष और कलापक्ष दोनों ही अतीव पुष्ट हैं। अपने साहित्यिक व्यक्तित्व एवं अद्वितीय कृतित्व के आधार पर, हिन्दी साहित्याकाश में महादेवी जी का गरिमामय पद ध्रुव तारे की भाँति अटल है।

4.

हे चिर महान् !यह स्वर्णरश्मि छु श्वेत भाल,बरसा जाती रंगीन हास; ।सेली बनता है इन्द्रधनुष,परिमल-मल-मल जाता बतास !परे रागहीन तू हिमनिधान !

Answer»

[स्वर्ण-रश्मि = सुनहली किरण। सेली = पगड़ी। परिमल = सुगन्ध। बतास = वायु। रागहीन = आसक्तिरहित]

संन्दर्भ-प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ हिन्दी की महान् कंवयित्री  श्रीमती महादेवी वर्मा द्वारा रचित ‘सान्ध्यगीत’ नामक ग्रन्थ से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘काव्य-खण्ड में संकलित ‘हिमालय से शीर्षक कविता से अवतरित हैं।

प्रसंग-इन पंक्तियों में कवयित्री ने हिमालय की चिर महानता और निर्लिप्तता का वर्णन किया है।
व्याख्या–हिमालय की महानता का वर्णन करती हुई कवयित्री ने कहा है कि हे हिमालय! तुम चिरकाल से अपने गौरव एवं महानता को बनाये हुए हो। तुम्हारे श्वेत बर्फ से ढके हुए शिखरों पर जब सूर्य की सुनहली किरणें पड़ती हैं, तब लगता है कि जैसे चारों ओर तुम्हारी रंगीन हँसी बिखर गयी हो। बर्फ पर सुनहली किरणों के पड़ने से ऐसा मालूम पड़ता है, जैसे हिमालय ने अपने सिर पर इन्द्रधनुषी रंगों की पगड़ी बाँध रखी हो। फूलों के सम्पर्क से सुगन्धित वायु उसके शरीर पर मानो चन्दन का लेप कर जाती है, परन्तु हिमालय इन सभी चीजों से निर्लिप्त है। इन सभी वस्तुओं से उसे किसी प्रकार का अनुराग नहीं है;  इसलिए वह महान् है।

काव्यगत सौन्दर्य-

⦁    कवयित्री ने इन पंक्तियों में हिमालय की महानता तथा वैराग्य का वर्णन किया है।
⦁    भाषा-सरल, सुबोध खड़ी बोली।
⦁     शैली—चित्रात्मक और भावात्मक।
⦁    रसशान्त।
⦁    छन्द-अतुकान्त-मुक्त।
⦁    गुण-माधुर्य।
⦁    शब्दशक्ति-‘यह स्वर्णरश्मि छू-श्वेत भाल, बरसा जाती रंगीन हास’ में लक्षणो।
⦁    अलंकार-यह स्वर्णरश्मि छु श्वेत भाल’ में रूपक, परिमल-मल-मल जाता बतास’ में पुनरुक्तिप्रकाश तथा हिमालय के मानव सदृश चित्रण में मानवीकरण का माधुर्य मन को आकर्षित करता है।

5.

इन स्निग्ध लटों से छा दे तनपुलकित अंकों में भर विशाल;झुक सस्मित शीतल चुम्बन से ।अंकित कर इसका मृदल भाल;दुलरा दे ना, बहला दे ना |यह तेरा शिशु जग है उदास !रूपसि तेरा घन-केश-पाश !

Answer»

[ स्निग्ध = चिकनी। पुलकित = रोमांचित। सस्मित = मुस्कराते हुए। अंकित = चिह्नित। मृदल = सुन्दर। दुलराना = प्यार करना। शिशु जग = संसाररूपी बालक।]

प्रसंग-इन पंक्तियों में महादेवी वर्मा ने वर्षारूपी सुन्दरी को एक माता के रूप में चित्रित किया है।

व्याख्या-कवयित्री वर्षारूपी सुन्दरी से आग्रह करती है कि हे वर्षा सुन्दरी! तुम अपने कोमल बालों की छाया में इस संसाररूपी अपने शिशु को समेट लो। उसे अपनी रोमांचित एवं विशाल गोद में रखकर उसका सुन्दर मस्तक अपने बादलरूपी बालों  से ढककर अपने हँसीयुक्त शीतल चुम्बन से चूम लो। हे सुन्दरी! तुम्हारे बादलरूपी बालों की छाया से, मधुर चुम्बन और दुलार से इस संसाररूपी; शिशु का मन बहल जाएगा और उसकी उदासी दूर हो जाएगी। हे वर्षारूपी सुन्दरी! तुम्हारी बादल रूपी काली केश-राशि बड़ी मोहक लग रही है।

काव्यगत सौन्दर्य-
⦁    वर्षा में मातृत्व का सजीव चित्रण हुआ है तथा बच्चे के प्रति माता के कर्तव्य को समझाया गया हैं।
⦁    प्रकृति का ऐसा सुन्दर चित्रण कम ही देखने को मिलता है।
⦁    भाषासाहित्यिक खड़ी बोली।
⦁    शैली—चित्रात्मक और भावात्मक।
⦁    रस-शृंगार एवं वात्सल्य।
⦁    गुण-माधुर्य।
⦁    छन्द-अतुकान्त-मुक्त।
⦁    अलंकाररूपक और मानवीकरण।

6.

महादेवी वर्मा की जीवनी पर प्रकाश डालते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए।याकवयित्री महादेवी वर्मा का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी किसी एक रचना का नाम लिखिए।

Answer»

श्रीमती महादेवी वर्मा का नाम लेते ही भारतीय नारी की शालीनता, गम्भीरता, आस्था, साधना और कलाप्रियता साकार हो उठती है। महादेवी जी का मुख्य क्षेत्र काव्य है। छायावादी कवियों (पन्त, निराला, प्रसाद, महादेवी) की वृहत् कवि-चतुष्टयी में इनकी गणना होती है। इनकी कविताओं में वेदना की प्रधानता है। इन्हें आधुनिक युग की मीरा कहा जाता है।

जीवन-परिचय–श्रीमती महादेवी वर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जनपद में सन् 1907 ई० में होलिकोत्सव के दिन हुआ था। इनके पिता गोविन्दप्रसाद वर्मा भागलपुर के एक कॉलेज में प्रधानाचार्य और माता हेमरानी विदुषी और धार्मिक स्वभाव की महिला थीं। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा इन्दौर में और उच्च शिक्षा प्रयाग में हुई थी। संस्कृत में एम० ए० उत्तीर्ण करने के बाद ये प्रयाग महिला विद्यापीठ में प्राचार्या हो गयीं। इनका विवाह छोटी आयु में ही हो गया था। इनके पति डॉक्टर थे। वैचारिक साम्य न होने के कारण ये अपने पति से अलग रहती थीं। कुछ समय तक इन्होंने ‘चाँद’ पत्रिका  का सम्पादन किया। इनके जीवन पर महात्मा गाँधी का तथा साहित्य-साधना पर रवीन्द्रनाथ टैगोर का विशेष प्रभाव पड़ा। इन्होंने नारी-स्वातन्त्र्य के लिए सदैव संघर्ष किया और अधिकारों की रक्षा के लिए नारी.का शिक्षित होना आवश्यक बताया। कुछ वर्षों तक ये उत्तर प्रदेश विधान परिषद् की मनोनीत सदस्या भी रहीं। इनकी साहित्य-सेवाओं के लिए राष्ट्रपति ने इन्हें ‘पद्मभूषण’ की उपाधि से अलंकृत किया। ‘सेकसरिया’ एवं ‘मंगलाप्रसाद’ पारितोषिक से भी इन्हें सम्मानित किया गया। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा 18 मई, 1983 ई० को इन्हें हिन्दी की सर्वश्रेष्ठ कवयित्री के रूप में भारत-भारती’ पुरस्कार प्रदान करके सम्मानित किया गया। 28 नवम्बर, 1983 ई० को इन्हें इनकी अप्रतिम गीतात्मक काव्यकृति ‘यामा’ पर ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान कर सम्मानित किया गया। ये प्रयाग में ही रहकर जीवनपर्यन्त साहित्य-साधना करती रहीं। 11 सितम्बर, 1987 ई० को ये इस असार-संसार से विदा हो गयीं। यद्यपि आज ये हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन इनके गीत काव्य-प्रेमियों के मानस-पटल पर सदैव विराजमान रहेंगे।

रचनाएँ-महादेवी वर्मा की प्रमुख काव्य-कृतियाँ निम्नलिखित हैं

(1) नीहार—यह महादेवी वर्मा का प्रथम काव्य-संग्रह है। इसमें 47 गीत संकलित हैं। इसमें वेदना तथा करुणा का प्राधान्य है। यह भावमय गीतों का संग्रह है।

(2) रश्मि—इसमें दार्शनिक, आध्यात्मिक और रहस्यवादी 35 कविताएँ संकलित हैं।

(3) नीरजा-यह 58 गीतों का संग्रह है। इसमें संगृहीत अधिकांश गीतों में विरह से उत्पन्न प्रेम का सुन्दर चित्रण हुआ है। कुछ गीतों में प्रकृति के मनोरम चित्रों के अंकन भी हैं।

(4) सान्ध्यगीत-इसमें 54 गीत हैं। इस संकलन के गीतों में परमात्मा से मिलन का आनन्दमय चित्रण है।

(5) दीपशिखा—यह रहस्य-भावना और आध्यात्मिकता से पूर्ण 51 भावात्मक  गीतों का संकलन है। इस संग्रह के अधिकांश गीत दीपक पर लिखे गये हैं, जो आत्मा का प्रतीक है।
इनके अतिरिक्त सप्तपर्णा, यामा, सन्धिनी एवं आधुनिक कवि नामक इनके गीतों के संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। ‘प्रथम आयाम’, ‘अग्निरेखा’, ‘परिक्रमा’ आदि इनकी प्रमुख काव्य-रचनाएँ हैं। ‘अतीत के चलचित्र’, ‘स्मृति की रेखाएँ’, ‘श्रृंखला की कड़ियाँ’, ‘पथ के साथी’, ‘क्षणदा’, ‘साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबन्ध’, ‘संकल्पिता’, ‘मेरा परिवार’, ‘चिन्तन के क्षण’ आदि आपकी प्रसिद्ध मद्य रचनाएँ हैं।

साहित्य में स्थान-हिन्दी-साहित्य में महादेवी जी का विशिष्ट स्थान है। इन्होंने गद्य और पद्य दोनों में सृजन कर हिन्दी की अपूर्व सेवा की है। मीरा के बाद आप अकेली ऐसी महिला रचनाकार हैं, जिन्होंने ख्याति के शिखर को छुआ है। इनके गीत अपनी अनुपम अनुभूतियों और चित्रमयी व्यंजना के कारण हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि हैं। कविवर सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला’ के शब्दों में–

हिन्दी के विशाल मन्दिर की वीणापाणि,
स्फूर्ति चेतना रचना की प्रतिभा कल्याणी ।

7.

निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है?(क) तने सह लेता है कुलिश भार !कितने मृदु कितने कठिन प्राण !(ख) रूपसि तेरा घन-केश-पाश !श्यामल-श्यामल कोमल-कोमललहराता सुरभित केश-पाश !

Answer»

(क) विरोधाभास अलंकार तथा

(ख) रूपक और पुनरुक्तिप्रकाश।

8.

उच्छ्वसित वक्ष पर चंचल है।बक-पाँतों का अरविन्द हार;तेरी निश्वासे छू भू कोबन-बन जातीं मलयज बयार;केकी-रव की नृपुर-ध्वनि सुनजगती जगती की मूक प्यास !रूपसि तेरा घन-केश-पाश !

Answer»

[उच्छ्वसित = श्वास-प्रश्वास (साँस) के कारण ऊपर-नीचे उठता हुआ। वक्ष पर = छाती पर। चंचल = चलायमान है, हिल-डुल रहा है। बक-पाँत = बगुलों की पंक्ति। अरविन्द = कमल। निश्वास = बाहर निकलने वाली श्वास। मलयज = मलय (चन्दन) के पर्वत से आने वाली। बयार = वायु। केकी-रव = मयूर की ध्वनि। नूपुर = पायल। जगती = जाग्रत होती है, संसार।].

प्रसंग-इन पंक्तियों में वर्षारूपी सुन्दर रमणी के सौन्दर्य का आलंकारिक वर्णन हुआ है।

व्याख्या-हे वर्षारूपी सुन्दरी! साँस लेने के कारण ऊपर उठे तथा कम्पित तेरे वक्ष-स्थल पर आकाश में उड़ते हुए बगुलों की पंक्तियोंरूपी श्वेत कमलों का हार हिलता हुआ-सा मालूम पड़ रहा है। जब तुम्हारे मुख से निकली बूंदरूपी साँसें पृथ्वी पर गिरती हैं तो उसके पृथ्वी के स्पर्श से उठने वाली एक प्रकार की महक, मलयगिरि की सुगन्धित वायु के समान प्रतीत होती है। तुम्हारे आगमन पर चारों ओर नृत्य करते हुए मोरों की मधुर  ध्वनि सुनाई पड़ने लगती है, जो कि तुम्हारे पैरों में बँधे हुए धुंघरुओं के समान मालूम पड़ती है, जिसको सुनकर लोगों के मन में मधुर प्रेम की प्यास जाग्रत होने लगती है। तात्पर्य यह है कि मोरों की मधुर आवाज से वातावरण में जो मधुरता छा जाती है, वह लोगों को आनन्द और उल्लास से जीने की प्रेरणा प्रदान करती है। उनके हृदय में मौन रूप में छिपा हुआ प्यार मुखर रूप धारण कर लेता है जो उनकी जीने की इच्छा को बलवती बनाता है। हे वर्षारूपी सुन्दरी! तुम्हारी बादलरूपी बालों की राशि अत्यधिक सुन्दर है।

काव्यगत सौन्दर्य-

⦁    कवयित्री ने वर्षा का मानवीकरण करके उसके मोहक रूप का चित्रण किया है।
⦁    भाषा-साहित्यिक खड़ी बोली।
⦁    शैली-चित्रात्मक।
⦁    रस-शृंगार।
⦁    गुणमाधुर्य।
⦁    छन्द-अतुकान्त-मुक्त।
⦁    अलंकार-उच्छ्वसित वक्ष पर चंचल है’ में रूपक, ‘बन-बन में पुनरुक्तिप्रकाश जगती, जगती’ में यमक और अनुप्रास।

9.

सौरभ भीनी झीना गीलालिपटा मृदु अंजन-सा दुकूल;चल अंचल में झर-झर झरते।पथ में जुगनू के स्वर्ण-फूल;दीपक से देता बार-बार |तेरा उज्ज्वल चितवन-विलास !रूपसि तेरा घन-केश-पाश !

Answer»

[सौरभ = सुगन्ध। भीना = सुरभित हुआ। झीना = पतला। अंजन = काजल। दुकूल = रेशमी वस्त्र, दुपट्टा। चल = हिलते हुए, चलायमान। जुगनू के स्वर्ण-फूल = जुगनूरूपी सुनहरे फूल देता बार-बार = जला देता है। चितवन विलास = दृष्टि की भंगिमा।]

प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में वर्षा सुन्दरी के श्रृंगार का अद्भुत वर्णन किया गया है।

व्याख्या–कवयित्री कहती है कि हे वर्षारूपी नायिका! तुमने बादलों के रूप में एक सुगन्धित, पारदर्शक, कुछ गीला एवं हल्का काले रंग का झीना रेशमी वस्त्र धारण कर लिया है। आकाश में चमकने वाले जुगनू ऐसे लग रहे हैं, मानो तुम्हारे हिलते हुए आँचल  से मार्ग में सोने के फूल झर रहे हों। बादलों में चमकती बिजली ही तुम्हारी उज्ज्वल चितवन है। जब तुम अपनी ऐसी सुन्दर दृष्टि किसी पर डालती हो तो उसके मन में प्रेम के दीपक जगमगाने लगते हैं। हे रूपवती वर्षा सुन्दरी! तुम्हारी बादलरूपी केश-राशि अत्यधिक सुन्दर है।

काव्यगत सौन्दर्य-

⦁    कवयित्री ने प्रकृति के मानवीकरण के सहारे उसकी भाव-भंगिमाओं को सुन्दर वर्णन किया है।
⦁    वर्षाकाल की विभिन्न वस्तुओं का वर्षा-सुन्दरी के श्रृंगार-प्रसाधनों के रूप में प्रयोग किया गया है।
⦁    भाषा-साहित्यिक खड़ी बोली।
⦁    शैली—चित्रात्मक और प्रतीकात्मक।
⦁    रस-शृंगार।
⦁    गुण-माधुर्य।
⦁    छन्द-अतुकान्त-मुक्त।
⦁    अलंकार–तेरा उज्ज्वल चितवन-विलास’ में रूपक, ‘मृदु अंजन-सा दुकूल’ में उपमा, वर्षा के चित्रण में मानवीकरण तथा अनुप्रास।