InterviewSolution
This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.
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‘कल्चरल डिस ऑर्गेनाइजेशन’ पुस्तक के लेखक कौन हैं?(क) के० डेविस(ख) इलियट एण्ड मैरिल(ग) कूले(घ) स्पेन्सरं |
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Answer» (ख) इलियट एण्ड मैरिल |
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आर्थिक कारक सामाजिक संस्थाओं में क्या परिवर्तन लाते हैं ? |
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Answer» आर्थिक कारक सामाजिक संस्थाओं में भी परिवर्तन लाते हैं। भारत में औद्योगीकरण व नगरीकरण के परिणामस्वरूप संयुक्त परिवार व्यवस्था का विघटन हुआ, जाति-पाँति के भेदभाव, छुआछूत आदि समाप्त हुए, शिक्षा का प्रसार हुआ, स्त्रियों को रोजगार के अवसर प्राप्त हुए, अन्तर्जातीय विवाह, प्रेम-विवाह, विधवा-पुनर्विवाह आदि आरम्भ हुए, जाति सम्बन्धी प्रतिबन्ध शिथिल हुए, व्यवसाय में परिवर्तन आया, ग्रामीणों में शिक्षा का प्रसार हुआ, जनसंख्या की गतिशीलता बढ़ी तथा बैंकों की स्थापना हुई। |
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“सामाजिक परिवर्तन एक सार्वभौमिक घटना है।” (सत्य/असत्य) |
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Answer» सत्य “सामाजिक परिवर्तन एक सार्वभौमिक घटना है। |
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‘ए हैण्ड बुक ऑफ सोशियोलॉजी’ के लेखक हैं (क) किंग्सले डेविस(ख) चार्ल्स होर्टन कूले(ग) ऑगबर्न एवं निमकॉफ(घ) गुन्नार मिर्डल। |
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Answer» (ग) ऑगबर्न एवं निमकॉफ |
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प्रौद्योगिकी के दो प्रत्यक्ष प्रभावों का उल्लेख कीजिए। |
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Answer» प्रौद्योगिकी के दो प्रत्यक्ष प्रभाव निम्नवत् हैं ⦁ नगरीकरण – जब उत्पादन फैक्ट्री प्रणाली द्वारा होने लगा तो ग्रामों से बहुत-से लोग काम की तलाश में नगरों में आने लगे। परिणामस्वरूप नगरों की जनसंख्या तेजी के साथ बढ़ती गयी। जनसंख्या के तीव्र गति से बढ़ने के कारण अनेक नगरीय समस्याएँ उत्पन्न हुईं। ⦁ गतिशीलता का बढ़ना – प्रौद्योगिकीय परिवर्तन ने स्थानीय और सामाजिक दोनों ही प्रकार की गतिशीलता को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है। स्थानीय गतिशीलता का अर्थ एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने की प्रवृत्ति का बढ़ना है। सामाजिक गतिशीलता का अर्थ एक सामाजिक स्थिति से दूसरी सामाजिक स्थिति प्राप्त कर लेना है, एक समूह या वर्ग से दूसरे समूह या वर्ग में पहुँच जाना है। |
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सामाजिक परिवर्तन के दो कारणों को बताइए। |
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Answer» (1) प्राकृतिक या भौगोलिक कारक तथा |
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संस्कृतिकरण की अवधारणा किसने दी है? |
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Answer» एम० एन० श्रीनिवास |
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ऐतिहासिक भौतिकवाद की अवधारणा किसने दी है? |
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Answer» कार्ल मार्क्स ने |
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निम्नलिखित पुस्तकों के लेखकों के नाम लिखिए(क) आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन।(ख) इण्डियाज चेन्जिग विलेजेज।(ग) डिस्कवरी ऑफ इण्डिया। |
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Answer» (क) डॉ० एम०एन० श्रीनिवास, |
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संस्कृति की दो प्रमुख विशेषताएँ लिखिए। |
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Answer» संस्कृति की दो प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं ⦁ सीखा हुआ व्यवहार – व्यक्ति समाज की प्रक्रिया में कुछ-न-कुछ सीखता ही रहता है। ये सीखे हुए अनुभव, विचार-प्रतिमान आदि की संस्कृति के तत्त्व होते हैं। इसलिए संस्कृति को सीखा हुआ व्यवहार कहा जाता है। ⦁ हस्तान्तरण की विशेषता – संस्कृति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित हो जाती है। संस्कृति का अस्तित्व हस्तान्तरण के कारण ही स्थायी बना रहता है। हस्तान्तरण की यह प्रक्रिया निरन्तर होती रहती है। समाजीकरण की प्रक्रिया संस्कृति के हस्तान्तरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। |
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क्षेत्रीयतावाद किस तरह राष्ट्रहित में बाधक है ? |
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Answer» क्षेत्रवाद के कारण देश का प्रत्येक क्षेत्र स्वयं को एक पृथक् इकाई मान लेता है। प्रत्येक क्षेत्र के निवासी अधिकाधिक अधिकारों तथा सुविधाओं की माँग को लेकर एक-दूसरे के विरोधी बन जाते हैं। धीरे-धीरे क्षेत्रवाद की भावना के कारण केन्द्र सरकार में लोगों की निष्ठा कम होने लगती है। इससे केन्द्र व राज्य सरकारों के सम्बन्ध बिगड़ने लगते हैं। व्यवस्था और प्रशासन तब एक समस्या का रूप ले लेती है। ये सभी वे परिस्थितियाँ हैं जो राष्ट्रीय एकता को चुनौती देकर देश की सम्पूर्ण प्रगति को अवरुद्ध कर देती हैं। |
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किसने सामाजिक परिवर्तन को सामाजिक सम्बन्धों में परिवर्तन के रूप में परिभाषित किया? |
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Answer» मैकाइवर एवं पेज ने |
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निम्नलिखित में से कौन-सा सामाजिक परिवर्तन नहीं है ?(क) विवाह के उत्सव को साधारण बनाना(ख) संयुक्त परिवार का विघटन(ग) धार्मिक विश्वासों का प्रभाव कम होना(घ) मोटर-कार के मॉडल में परिवर्तन हो जाना |
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Answer» (घ) मोटर-कार के मॉडल में परिवर्तन हो जाना |
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“जनसंख्या ज्यामितिक क्रम में बढ़ती है। यह किसने कहा ? |
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Answer» माल्थस ने कहा । |
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आर्थिक निर्णायक की अवधारणा किसने दी ? याआर्थिक निर्धारणवाद सिद्धान्त के प्रवर्तक कौन हैं ? यासामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारक का समर्थक कौन है ? |
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Answer» आर्थिक निर्णायक की अवधारणा कार्ल मार्क्स ने दी। |
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सामाजिक परिवर्तन के दो कारक लिखिए। |
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Answer» सामाजिक परिवर्तन के दो कारक निम्नलिखित हैं ⦁ सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न कारकों में भौतिक यो भौगोलिक तत्त्वों या परिस्थितियों का विशेष योगदान रहा है। हंटिंग्टन के मतानुसार, जलवायु का परिवर्तन ही सभ्यताओं और संस्कृति के उत्थान एवं पतन का एकमात्र कारण है। ⦁ सामाजिक परिवर्तनों में मनोवैज्ञानिक कारकों को विशेष हाथ रहता है। मनुष्य का स्वभाव परिवर्तनशील है। वह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सदा नवीन खोजें किया करता है और नवीन अनुभवों के प्रति इच्छित रहता है। मनुष्य की इस प्रवृत्ति के परिणामस्वरूप ही मानव समाज की रुढ़ियों, परम्पराओं तथा रीति-रिवाजों में परिवर्तन होते रहते हैं। |
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सामाजिक परिवर्तन के दो परिणाम लिखिए। |
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Answer» सामाजिक परिवर्तन के दो स्वाभाविक परिणाम निम्नलिखित हैं ⦁ सामाजिक परिवर्तन के परिणामस्वरूप किसी समुदाय के अधिकांश व्यक्तियों के पारस्परिक । सम्बन्धों, सामाजिक नियमों तथा विचार करने के तरीकों में परिवर्तन हो जाता है। |
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क्या सामाजिक परिवर्तन की भविष्यवाणी की जा सकती है ? |
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Answer» सामाजिक परिवर्तन के बारे में निश्चित रूप से पूर्वानुमान लगाना कठिन है; अत: उसके बारे में भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। इसका यह तात्पर्य नहीं है कि हम सामाजिक परिवर्तन के बारे में बिल्कुल ही अनुमान नहीं लगा सकते अथवा सामाजिक परिवर्तन का कोई नियम ही नहीं है। इसका केवल यह अर्थ है कि कई बार आकस्मिक कारणों से भी परिवर्तन होते हैं, जिनके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता। |
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सांस्कृतिक परिवर्तन के दो उदाहरण दीजिए। |
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Answer» सांस्कृतिक परिवर्तन के उदाहरण निम्न हैं ⦁ सांस्कृतिक परिवर्तन संस्कृति के विभिन्न पक्षों के परिवर्तन से सम्बन्धित है। |
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सामाजिक परिवर्तन के चक्रीय सिद्धान्त के प्रमुख समर्थक कौन हैं ? |
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Answer» ओस्वाल्ड स्पेंग्लर। |
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सामाजिक परिवर्तन के द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद सिद्धान्त का वर्णन कीजिए। |
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Answer» कार्ल मार्क्स का सामाजिक परिवर्तन का सिद्धान्त मार्क्स ने उत्पादन की नयी प्रविधियों के आधार पर सामाजिक परिवर्तन के रेखीय-प्रक्रम की व्याख्या की है, जिसके कारण उनके सिद्धान्त को रेखीय होने के साथ-साथ ‘प्राविधिक सिद्धान्त (Technological Theory) भी कहा जाता है। माक्र्स के अनुसार प्रकृति की प्रत्येक वस्तु द्वन्द्व है। उत्पादन की नवीन शक्तियों के उत्पन्न होते ही पुरानी शक्तियाँ क्षीण हो जाती हैं। अतः स्पष्ट है कि सम्पूर्ण प्रकृति में द्वन्द्वरत की अनवरत प्रक्रिया जारी रहती है, जिसे मार्क्स ने ‘द्वन्द्ववाद’ क़ी संज्ञा दी है। द्वन्द्ववाद के माध्यम से उसने यह निष्कर्ष प्राप्त किया है कि प्रकृति में कोई भी वस्तु/पदार्थ/विचार स्थिर नहीं है, सभी गतिशील हैं, सभी वस्तुएँ परिवर्तनशील हैं। मार्क्स ने द्वन्द्वात्मक पद्धति का प्रयोग विचारों के क्षेत्र के साथ-साथ समाज के भौतिक विकास पर भी किया है। हीगल (Hegel) की मान्यता है कि इतिहास मन का अनवरत आत्मानुभव है तथा घटनाएँ उसकी बाह्य अभिव्यक्ति। वहीं मार्क्स की मान्यता है कि घटनाएँ ही प्रधान हैं, उनके बारे में हमारे विचार गौण ही हैं। द्वन्द्वात्मक प्रणाली के माध्यम से मार्क्स ने जिस रूप में भौतिक जगत का विश्लेषण किया, उसे ही द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद’ (Dialectic Materialism) कहा जाता है। मार्क्स के सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त की विवेचना निम्नवत् की जा सकती है कार्ल मार्क्स ने भी सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या रेखीय आधार पर की है। उसने समस्त सामाजिक परिवर्तन को आर्थिक या प्रौद्योगिक आधार पर स्पष्ट किया है। अतः उसके सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त को निर्णयवादी (Deterministic Theory) भी कहा जाता है। उसके विचार से धर्म, राजनीति, भौगोलिक दशाएँ अथवा अन्य कारण सामाजिक परिवर्तन को जन्म नहीं देते हैं, केवल आर्थिक कारक ही सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था को बदलता है। मार्क्स ने आर्थिक कारक को उत्पादन की प्रणाली अथवा प्रौद्योगिकी (Technology) के रूप में स्पष्ट किया है। किसी समाज में प्रचलित प्रौद्योगिकी या उत्पादन प्रणाली ही उस समाज की पारिवारिक, धार्मिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक व्यवस्थाओं के स्वरूप को निश्चित करती है। जब किसी समाज में प्रचलित उत्पादन की प्रणाली में परिवर्तन हो जाता है तो उसकी सामाजिक व्यवस्था के समस्त अंगों में भी परिवर्तन हो जाता है। माक्र्स ने आर्थिक व्यवस्था या प्रौद्योगिकी को अर्थात् उत्पादन की प्रणाली को समाज की रचना ‘अधिसंरचना’ (Substructure) तथा सामाजिक व्यवस्था को ‘अतिसंरचना (Superstructure) कहा है। प्रत्येक समाज की अतिसंरचना उसकी अधिसंरचना अर्थात् उत्पादन प्रणाली के अनुसार ही परिवर्तित होती रहती है। |
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सामाजिक विघटन एवं सामाजिक परिवर्तन के बीच सम्बन्धों की विवेचना कीजिए। |
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Answer» सामाजिक परिवर्तन एवं सामाजिक विघटन के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध पाया जाता है। सामाजिक परिवर्तन एक सार्वभौम क्रिया है जो प्रत्येक समाज में लगातार चलती रहती है। इतना अवश्य है कि किसी समाज में इसकी गति तीव्र होती है और किसी में धीमी गतिशील समाजों में सामाजिक परिवर्तन की तीव्रता सामाजिक विघटन को प्रोत्साहित करती है।। ⦁ धार्मिकता से धर्म-निरपेक्षता की ओर परिवर्तन; उपर्युक्त परिवर्तनों की तीव्र गति के कारण समाज में अनेक सामाजिक समस्याएँ तथा विघटनकारी प्रवृत्तियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। विभिन्न प्रामाणिक तत्त्वों में परिवर्तन की असमान दर के कारण समाज विघटन की ओर अग्रसर होता है। वे संस्थाएँ जो समाज को स्थिरता प्रदान करती हैं अक्सर परिवर्तन विरोधी प्रवृत्ति के कारण सामाजिक विघटन में सहायक होती हैं। होता यह है कि उन भौतिक दशाओं जिनमें एक विशिष्ट संस्था का विकास हुआ, के बदल जाने पर स्वयं संस्था में आवश्यक परिवर्तन नहीं आता। जो संस्था मनुष्य की विविध आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विकसित हुई, वही अपनी अपरिवर्तनीय प्रवृत्ति के कारण मनुष्य के सामने बदली हुई परिस्थितियों में समायोजन की कठिन समस्या उत्पन्न कर देती है। ऐसी स्थिति में सामाजिक विघटन विभिन्न रूपों में दिखाई देने लगता है। सामाजिक विघटन का एक कारण संस्कृति के भौतिक एवं अभौतिक पक्षों में परिवर्तन की असमान दर है। आविष्कार एवं प्रसार के कारण भौतिक संस्कृति में तेजी से परिवर्तन आता है। इसके विपरीत, अभौतिक संस्कृति में बहुत धीमी गति से परिवर्तन होते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि भौतिक संस्कृति आगे बढ़ जाती है और अभौतिक संस्कृति पीछे छूट जाती है। ऐसा होने पर सामाजिक अव्यवस्था या असन्तुलन की स्थिति पैदा हो जाती है। इसी को ऑगबर्न ने सांस्कृतिक विलम्बना नाम दिया है जो सामाजिक विघटन के लिए उत्तरदायी है। |
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सामाजिक परिवर्तन के प्रतिमानों की संख्या लिखिए। |
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Answer» सामाजिक परिवर्तन के प्रतिमानों की संख्या 2 है। |
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“सामाजिक परिवर्तन का एक प्रकार लहर की तरह वक्र रेखा प्रस्तुत करता है।” इसका समर्थक कौन है ? |
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Answer» इस अवधारणा के समर्थक हैं-ओस्वाल्ड स्पेंग्लर। |
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सामाजिक परिवर्तन के रेखीय और चक्रीय सिद्धान्तों में अन्तर स्पष्ट कीजिए। |
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Answer» सामाजिक परिवर्तन से सम्बन्धित रेखीय तथा चक्रीय सिद्धान्तों में निम्नलिखित अन्तर ⦁ चक्रीय सिद्धान्त के अनुसार परिवर्तन का एक चक्र चलता है। हम जहाँ से प्रारम्भ होते हैं, घूम-फिरकर पुनः उसी स्थिति में आ जाते हैं, जब कि रेखीय सिद्धान्त यह विश्वास करता है। कि परिवर्तन एक सीधी रेखा में होता है। हम क्रमशः आगे बढ़ते जाते हैं और जिस चरण को हम त्याग चुके होते हैं, पुनः वहाँ कभी नहीं लौटते हैं। ⦁ चक्रीय सिद्धान्त में परिवर्तन उच्चता से निम्नता और निम्नता से उच्चता की ओर होता है, जब कि रेखीय सिद्धान्त विश्वास करता है कि परिवर्तन सदैव निम्नता से उच्चता की ओर तथा ⦁ चक्रीय सिद्धान्त के अनुसार परिवर्तन का चक्र तेज व मन्द दोनों हो सकता है, जब कि रेखीय सिद्धान्त परिवर्तन की मन्द गति में विश्वास करता है। ⦁ रेखीय सिद्धान्त चक्रीय सिद्धान्त की अपेक्षा उविकासवादियों से अधिक प्रभावित होता है। ⦁ चक्रीय सिद्धान्तकारों ने परिवर्तन के चक्र को ऐतिहासिक एवं अनुभवसिद्ध प्रभावों के आधार पर प्रकट करने का प्रयास किया है, जब कि रेखीय सिद्धान्तकारों ने रेखीय परिवर्तन को एक सैद्धान्तिक रूप दिया है। ⦁ रेखीय सिद्धान्तकारों की मान्यता है कि सामाजिक परिवर्तन मानवीय प्रयत्न व इच्छा से स्वतन्त्र हैं तथा ऐसे परिवर्तन स्वत: उत्पन्न होते हैं, जब कि चक्रीय सिद्धान्तकार मानते हैं कि परिवर्तन का चक्र मानवीय प्रयत्नों एवं प्राकृतिक प्रभावों का परिणाम है। ⦁ रेखीय सिद्धान्तकार परिवर्तन के किसी एक प्रमुख कारण पर अधिक बल देते हैं तथा वे निर्धारणवादियों के निकट हैं, जब कि चक्रीय सिद्धान्तकार परिवर्तन को अनेक कारकों का प्रतिफल मानते हैं तथा कहते हैं कि परिवर्तन प्रकृति का नियम है। अत: यह स्वयं घटित होता है। 8. रेखीय सिद्धान्तकार मानते हैं कि परिवर्तन के चरण एवं क्रम विश्व के सभी समाजों में एकसमान रहते हैं, जब कि चक्रीय सिद्धान्तकारों की मान्यता है कि विभिन्न सामाजिक संगठनों व संरचनाओं की सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया एवं प्रकृति में अन्तर पाया जाता है। |
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कार्ल मार्क्स के द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद सिद्धान्त का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।यामार्क्स के सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए। |
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Answer» मार्क्स का समाजवाद वैज्ञानिक समाजवाद’ (Scientific Socialism) कहलाता है। उनकी विचारधारा को वैज्ञानिक कहे जाने के वैसे तो कई कारण हैं, पर उनमें सबसे बड़ा कारण : उनकी द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद’ (Dialectical Materialism) की धारणा है। यद्यपि मार्क्स आदर्शवादी विचारक हीगल (Hegel) की द्वन्द्वात्मक प्रणाली में विश्वास रखते थे और उन्होंने अपनी द्वन्द्वात्मक धारणा को हीगल से ही ग्रहण किया है। परन्तु हीगल के द्वन्द्ववाद का आधार ‘विचार’ था, जब कि मार्क्स ने उसमें संशोधन करके उसे ‘भौतिकवाद’ पर आधारित कर दिया। हीगल का कहना था कि “विचारों के संघर्ष के परिणामस्वरूप ही नयी विचारधाराएँ जन्म लेती हैं। परन्तु मार्क्स ने वर्तमान सामाजिक तथा आर्थिक परिस्थितियों के लिए भौतिक (आर्थिक) परिस्थितियों को सर्वोच्च माना है। मार्क्स के अनुसार, “बाह्य जगत का प्रभाव आन्तरिक विचारों का निर्माण करता है।” जो नये विचार उत्पन्न होते हैं, वे किसी विचार से सम्बन्धित विरोधी तत्त्वों के पारस्परिक टकराव से उत्पन्न होते हैं। 1. भौतिकता पर अत्यधिक बल – मार्क्स ने अपने द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के सिद्धान्त में केवल भौतिकता को ही महत्त्व प्रदान किया है तथा आध्यात्मिकता की पूर्णतः उपेक्षा की है। मानव 2. संघर्ष की अनिवार्यता पर बल – मार्क्स के द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद में विकास की प्रक्रिया में संघर्ष की अनिवार्यता पर बल दिया गया है। उनका कहना है कि प्रत्येक उच्चतर अवस्था क्रान्ति के पश्चात् ही प्राप्त होती है। उनके इसी विचार के कारण आज के युवक साम्यवादी क्रान्ति की आराधना करते हैं। 3. पदार्थ को चेतनाहीन मानना उचित नहीं – मार्क्स का यह मत भी उचित नहीं जान पड़ता कि पदार्थ चेतनाहीन होता है और अपने निहित विरोधी तत्त्वों में संघर्ष के फलस्वरूप उसका विकास होता है। सत्य तो यह है कि किन्हीं बाह्य शक्तियों के कारण उसका विकास होता है। 4. स्पष्टता का अभाव – कुछ विद्वानों का कहना है कि द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की व्याख्या स्पष्ट रूप से नहीं की गयी है। वेबर महोदय का कहना है कि मार्क्स अपने द्वन्द्ववादी भौतिकवाद की व्याख्या अधिक स्पष्ट रूप में नहीं कर पाये; अतः इनकी धारणा अत्यन्त गूढ़ एवं अस्पष्ट है। प्रसिद्ध साम्यवादी अधिनायक लेनिन का भी यही कहना है कि हीगल के द्वन्द्ववाद को समझे बिना मार्क्स के द्वन्द्ववाद को नहीं समझा जा सकता। 5. विकास से सम्बन्धित अनुचित धारणा – द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के सम्बन्ध में मार्क्स का कहना है कि पूँजीवाद (Capitalism) द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के नियम के अनुसार इतिहास की उपज है। वे कहते हैं कि जिस देश में पूंजीवाद अपने सर्वोच्च शिखर पर पहुँच जाएगा, उस देश में उसका विरोधी तत्त्व ‘समाजवाद’ भी उसी के पेट से उत्पन्न होगा। परन्तु यदि इस बात को स्वीकार कर लिया जाये, तो इंग्लैण्ड में (जहाँ सबसे पहले पूँजीवाद अपने सर्वोच्च शिखर पर पहुँचा) सबसे पहले समाजवाद का उदय होना चाहिए था, जो कि नहीं हुआ। इसके विपरीत रूस और चीन में (जहाँ पूँजीवाद अपनी निम्नतर स्थिति में था) समाजवाद का सबसे अधिक विकास हुआ। उपर्युक्त आलोचनाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि मार्क्स का द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद सत्य की खोज करने की एकमात्र विधि नहीं है, सत्य की खोज तो अन्य विधियों से भी की जा सकती है। |
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सामाजिक परिवर्तन के सन्दर्भ में संचार के उन्नत साधन एवं सामाजिक परिवर्तन पर एक टिप्पणी लिखिए। |
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Answer» संचार के नवीन उन्नत साधनों, जो कि एक प्रभावशाली प्रौद्योगिकीय कारक है, ने विकास के अनेक जटिल सामाजिक परिवर्तनों को जन्म दिया। संचार की अनेक प्रविधियाँ हैं जिनमें तार; टेलीफोन, रेडियो, टेलीविजन आदि प्रमुख हैं। संचार ही तो सामाजिक सम्बन्धों का आधार है। सिनेमा यो चलचित्रों ने लोगों के विचारों, विश्वासों एवं मनोवृत्तियों को बदलने में पर्याप्त योग दिया। है। साथ ही इसने पारिवारिक, सामाजिक एवं जातिगत सम्बन्धों को भी प्रभावित किया है। अब रेडियो की सहायता से कोई भी बात, सूचना एवं विचार कुछ ही क्षणों में लाखों-करोड़ों व्यक्तियों तक पहुँचाए जा सकते हैं। रेडियो मनोरंजन का स्वस्थ साधन भी है। रेडियो और टेलीविजन ने परिवार के सदस्यों को एक-साथ बैठकर अवकाश का समय बिताने को प्रेरित किया है। इससे सदस्यों को अपने मनोरंजन के लिए इधर-उधर भटकना नहीं पड़ता और साथ ही उनके पारिवारिक सम्बन्धों में भी दृढ़ता आयी है। संचार के विभिन्न साधनों के माध्यम से भिन्न-भिन्न सांस्कृतिक समूह के लोगों को एक-दूसरे को समझने का मौका मिला है, जिसके परिणामस्वरूप उनमें सांस्कृतिक दूरी कुछ कम हुई है और सात्मीकरण हुआ है। |
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सामाजिक अनुकूलन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। |
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Answer» सामाजिक अनुकूलन सामाजिक परिवर्तन की विभिन्न प्रक्रियाओं में से एक है। अनुकूलन में एक व्यक्ति दूसरे से समायोजन करने का प्रयत्न करता है। अनुकूलन किस सीमा तक होता है, इस बात को प्रकट करने के लिए कुछ शब्दों; जैसे-अभियोजन, समायोजन, सात्मीकरण तथा एकीकरण आदि; का प्रयोग किया जाता है। अनुकूलन की क्रिया दो बातों की ओर संकेत करती है ⦁ व्यक्ति अपने को परिस्थिति के अनुसार ढाल ले तथा |
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‘प्रौद्योगिक विलम्बना’ की धारणा किसने दी ? |
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Answer» मैकाइवर तथा पेज ने। |
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सामाजिक परिवर्तन के रेखीय सिद्धान्त के दो सिद्धान्तकारों का नामोल्लेख कीजिए। |
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Answer» मॉर्गन तथा हेनरीमैन। |
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सामाजिक परिवर्तन का क्या अर्थ है। सामाजिक परिवर्तन के सांस्कृतिक कारकों की भूमिका स्पष्ट कीजिए। |
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Answer» सामाजिक परिवर्तन के अनेक कारक हैं। इनमें से एक सांस्कृतिक कारक अथवा सांस्कृतिक दशाएँ हैं। अनेक विद्वानों ने एक तर्क दिया है कि सांस्कृतिक कारक सामाजिक परिवर्तन लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इन विद्वानों में मैक्स वेबर, स्पेंग्लर तथा सोरोकिन प्रमुख हैं। (क) मैक्स वैबर मैंक्स वैबर ने संस्कृति एवं धर्म के सम्बन्ध को व्यक्त करने के लिए संसार के सभी प्रमुख धर्मों का अध्ययन किया। इन धर्मों में ईसाई धर्म की एक प्रमुख शाखा प्रोटेस्टैण्ट धर्म को उसने विशेष रूप से अध्ययन किया और उसी के आधार पर मैक्स वेबर ने यह निष्कर्ष निकाला कि धर्म का सामाजिक व्यवस्था; विशेष रूप से आर्थिक संरचना पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इन सम्बन्ध में मैक्स वेबर ने पूँजीवाद का प्रोटेस्टैण्ट धर्म से सम्बन्ध स्थापित किया। मैक्स वैबर ने अपने सिद्धान्त में यह दिखाया है कि प्रोटेस्टेण्ट धर्म में पूँजीवाद को प्रोत्साहित करने वाले तत्त्व निहित हैं। इस प्रकार के तत्त्व अन्य धर्मों में नहीं पाए जाते। इसलिए पूँजीवाद की भावना का विकास केवल पश्चिमी यूरोप के देशों में ही हुआ यहाँ पर प्रोटैस्टैण्ट लोगों की संख्या अधिक है। मैक्स वैबर के अनुसार धर्म व संस्कृति ही यह निश्चय करते हैं कि देश में किस प्रकार की प्रौद्योगिकी को प्रोत्साहन मिलता है। (ख) स्पेंग्लर स्पेंग्लर ने अपनी पुस्तक ‘दि डिक्लाइन ऑफ दि वेस्ट’ (The decline of the waste) में लिखा है कि ऋतुओं की भाँति ही विश्व की संस्कृति समय-समय पर परिवर्तित होती रहती है। यह परिवर्तन कुछ निश्चित नियमों के अनुसार ऋतुओं की भाँति चक्रवत् होता रहता है। इसी परिवर्तन के कारण सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया चलती रहती है। एक संस्कृति के बाद दूसरी संस्कृति आती है और उससे पूर्व संस्कृति के नियमों में प्ररवर्तन हो जाता है। इस परिवर्तन का क्रम चक्रवत् चलता रहता है और सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया भी सदैव चलती रहती है। (ग) सोरोकिन सोरोकिन ने संस्कृति को ही सामाजिक परिवर्तन का मुख्य कारण माना है। उनका कहना है कि जो लोग सैदव ऊर्ध्वगामी विकास देखते हैं, वे सहीं नहीं हैं; औन न ही वे व्यक्ति सही हैं जो सामाजिक परिवर्तन को चक्रीय गति से देखते हैं। सामाजिक परिवर्तन की गति चक्रीय तो है परन्तु वास्तव में यह सांस्कृतिक तत्त्वों के उतार-चढ़ाव के कारण होता है। उसका विचार है कि संस्कृति दो प्रकार की होती है – प्रथम चेतनात्मक संस्कृति है, जिसमें भौतिक सुख को प्रदान करने वाले आविष्कार व उपकरणों को महत्त्व दिया जाता है। ये संस्कृति के भौतिक तथा मूर्त पक्ष हैं जिनको हम चेतनात्मक संस्कृति के नाम से पुकारते हैं। संस्कृति के दूसरे स्वरूप को सोरोकिन विचारात्मक संस्कृति के नाम से पुकारता है। इसमें भौतिक समृद्धि की अपेक्षा आध्यात्मिक विकास पर अधिक बल दिया जाता है। संस्कृति का यह अभौतिक तथा अमूर्त पक्ष होता है जिसका सम्बन्ध हमारे विचारों, हमारी भावनाओं से होता है। सोरोकिन का मत है कि इन दोनों प्रकार की संस्कृतियों में उतार-चढ़ाव होता रहता है। कभी चेतनात्मक संस्कृति ऊपर उन्नति की ओर पहुँचती है और फिर विचारात्मक संस्कृति की ओर झुक जाती है। इन दोनों संस्कृतियों के बीच उतार-चढ़ाव की प्रक्रिया से सामाजिक परिवर्तन का जन्म होता है। |
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सामाजिक परिवर्तन के सन्दर्भ में महान लोगों की भूमिका पर एक टिप्पणी लिखिए। |
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Answer» इतिहास में सामाजिक परिवर्तन की राजनीतिक व्याख्या महान लोगों के सन्दर्भ में की गयी है। ऐसा कहा जाता है कि इतिहास कभी भी महान लोगों के प्रभाव से विमुक्त नहीं रहा। हिटलर, मुसोलिनी, चांग- काई-शेक, चर्चिल, रूजवेल्ट, गांधी आदि महापुरुषों ने समाज को परिवर्तित करने में अपनी-अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है। अछूतोद्धार तथा आजादी के संघर्ष के लिए महात्मा गांधी की भूमिका अविस्मरणीय है। भारत की विदेश नीति में पं० नेहरू की महत्त्वपूर्ण देन है। राजा राममोहन राय, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर, केशवचन्द्र सेन, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानन्द, स्वामी दयानन्द सरस्वती आदि महापुरुषों ने भारतीय समाज में सुधार के अनेक प्रयत्न किये। श्रीमती गांधी का नेतृत्व भी चमत्कारिक रहा, उन्होंने भी अपने बीस सूत्रीय एवं गरीबी हटाओ’ कार्यक्रमों के द्वारा भारतीय समाज में परिवर्तन एवं सुधार के प्रयास किये। |
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सामाजिक परिवर्तन में मनोवैज्ञानिक कारकों की भूमिका स्पष्ट कीजिए। |
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Answer» चूँकि समस्त मानव-सम्बन्ध मानव-मस्तिष्क की उपज हैं अतः सामाजिक सम्बन्धों में परिवर्तन मानव-मस्तिष्क में परिवर्तन के कारण होते हैं। मानव में जिज्ञासा की प्रवृत्ति पायी जाती है। इस प्रवृत्ति ने ही मानव को आविष्कार करने एवं अज्ञात को खोजने की प्रेरणा दी। मानव ने अनेक ऐसे आविष्कार किये जिन्होंने उसके जीवन को ही बदल दिया। जिज्ञासा के कारण ही वह चन्द्रमा पर पहुँचा, समुद्र की गहराई तक गया और दूर देशों की यात्रा की। मानव-मस्तिष्क नवीनता चाहता है, वह एक ही स्थिति से ऊब जाता है। इस ऊब से मुक्ति पाने के लिए ही मानव ने नये फैशने को जन्म दिया। मानसिक असन्तोष एवं संघर्ष सामाजिक सम्बन्धों को प्रभावित करते हैं। पारिवारिक विघटने एवं विवाह-विच्छेद का कारण परिवार के सदस्यों तथा पति-पत्नी का मानसिक अनुकूलन न हो पाना भी है। मानसिक तनाव सामाजिक सम्बन्धों को तोड़ देते हैं तथा लोगों में निराशा पैदा करते हैं। यह हत्या, आत्महत्या तथा अपराध के लिए भी उत्तरदायी है। |
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“भौतिक संस्कृति में अभौतिक संस्कृति की अपेक्षा तीव्र गति से परिवर्तन होता है।” यह कथन किसका है ? |
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Answer» यह कथन ऑगबर्न का है। |
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ऑगबर्न के सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।यासांस्कृतिक विलम्बना की अवधारणा की विस्तृत व्याख्या कीजिए। |
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Answer» उक्ट ऑगबर्न का सांस्कृतिक विलम्बना का सिद्धान्त विलियम एफ० ऑगबर्न (w. F. Ogburn) ने संस्कृति और सामाजिक परिवर्तन के सम्बन्ध को स्पष्ट करने के लिए सर्वप्रथम 1922 ई० में अपनी पुस्तक ‘Social Change’ में सांस्कृतिक पिछड़’ अथवा ‘सांस्कृतिक विलम्बना’ के सिद्धान्त को प्रस्तुत किया। आपके अनुसार, संस्कृति का तात्पर्य मनुष्य द्वारा निर्मित सभी प्रकार के भौतिक और अभौतिक (Material and non-material) तत्त्वों से है। ‘lag’ का तात्पर्य ‘लँगड़ाना’ अथवा ‘पीछे रह जाना होता है। इस प्रकार संस्कृति के भौतिक पक्ष की तुलना में जब अभौतिक पक्ष पीछे रह जाता है, तब सम्पूर्ण संस्कृति में असन्तुलन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इसी स्थिति को हम ‘सांस्कृतिक विलम्बना’ अथवा ‘सांस्कृतिक पिछड़’ कहते हैं। यही स्थिति सामाजिक परिवर्तन का आधारभूत कारण है। ऑगबर्न ने स्वयं इस स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहा है कि “…………………. आधुनिक संस्कृति के विभिन्न भाग समान गति से नहीं बदल रहे हैं, कुछ भागों में दूसरी की अपेक्षा अधिक तेजी से परिवर्तन हो रहा है और क्योंकि संस्कृति के सभी भाग एक-दूसरे पर निर्भर और एक-दूसरे से सम्बन्धित होते हैं, इसलिए संस्कृति के एक भाग में होने वाले तीव्र परिवर्तन से दूसरे भागों में भी अभियोजन की आवश्यकता हो जाती है।” ऑगबर्न का तर्क है कि संस्कृति के विभिन्न भागों में होने वाले परिवर्तनों की असमान दर ही सांस्कृतिक पिछड़ का कारण है। हम किसी भी प्रगतिशील अथवा आदिम समाज का उदाहरण क्यों न ले लें, अधिकांश आधुनिक समाजों में हमें यह स्थिति देखने को मिलती है। एक ओर, हमारी भौतिक संस्कृति में क्रान्तिकारी परिवर्तन हो गये हैं। हम आधुनिक ढंगों से खेती करते हैं, मशीनों के द्वारा उत्पादन कार्य करते हैं, चिकित्सा विज्ञान की प्रगति से मृत्यु को भी कुछ समय तक रोकने में समर्थ हो गये हैं, परिवहन के साधनों से हजारों मील की दूरी कुछ घण्टों में ही तय करने लगे हैं और संचार के साधनों से हजारों मील दूर की आवाज को कुछ सेकण्डों में ही सुन सकते हैं; लेकिन दूसरी ओर, हमारे विश्वास और लोकाचार आज भी हजारों वर्ष पुराने हैं। व्यक्ति कितना ही प्रगतिशील और शिक्षित क्यों न हो गया हो, वह काली बिल्ली द्वारा रास्ता काटे जाने अथवा टूटे हुए शीशे को देखना अशुभ समझता है और पितृ-आत्माओं की तृप्ति के लिए कुछ व्यक्तियों को भोजन कराने में विश्वास करता है। इसी प्रकार हजारों विश्वास हमारे जीवन को आज भी अपनी सम्पूर्ण शक्ति से प्रभावित कर रहे हैं। तात्पर्य यह है कि संस्कृति का भौतिक पक्ष कहीं आगे बढ़ चुका है, जब कि अभौतिक पक्ष बहुत पीछे है। इसी स्थिति को हम ‘सांस्कृतिक पिछड़’ कहते हैं। ⦁ रूढ़िवादी मनोवृत्तियाँ संस्कृति के अभौतिक पक्ष में परिवर्तन लाने में बाधक होती हैं। अधिकांश व्यक्ति नयी प्रौद्योगिकी को आसानी से ग्रहण कर लेते हैं, लेकिन वे अपने विचारों, विश्वासों तथा सामाजिक मूल्यों को बदलना नहीं चाहते। ⦁ अधिकांश लोगों में नये विचारों यो नयी वस्तु के प्रति भय की भावना होती है। ⦁ अतीत के प्रति निष्ठा होने के कारण हम प्रत्येक उसे व्यवहार अथवा विचार को अधिक अच्छा समझते हैं जिनको परम्पराओं के रूप में हमारे पूर्वजों द्वारा स्थापित किया जाता है। ⦁ समाज के कुछ विशेष वर्गों के निहित स्वार्थ (Vested interests) भी संस्कृति के भौतिक तथा अभौतिक पक्ष के बीच पैदा होने वाले सन्तुलन का एक प्रमुख कारण हैं। समाज का पूँजीपति वर्ग, बुद्धिजीवी वर्ग तथा अधिकारी वर्ग अपने-अपने स्वार्थों के कारण अक्सर नयी प्रौद्योगिकी, नवाचारों, व्यवहार के नये तरीकों अथवा नये विचारों का इसलिए विरोध करता है जिससे उसका पारम्परिक महत्त्व कम न हो जाए। ⦁ नये विचारों की परीक्षा में कठिनता होने के कारण उनकी उपयोगिता की जाँच करना भी अक्सर सम्भव नहीं हो पाता। यही दशाएँ संस्कृति के विभिन्न पक्षों में असन्तुलन पैदा करती हैं। ⦁ व्यक्तियों के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वे अपनी दशाओं से नये सिरे से अनुकूलन करें। ⦁ इसके फलस्वरूप परम्परागत संस्थाओं के कार्य दूसरी संस्थाओं को हस्तान्तरित होने लगते हैं ⦁ यही दशा सांस्कृतिक मूल्यों के प्रभाव में कमी पैदा करती है। ⦁ यदि सांस्कृतिक विलम्बना की दशा लम्बे समय तक बनी रहती है तो सामाजिक सन्तुलन बिगड़ जाने के कारण सामाजिक समस्याओं में वृद्धि होने लगती है। ये सभी दशाएँ सामाजिक परिवर्तन में वृद्धि करती हैं। ⦁ यह विश्वास नहीं किया जा सकता कि अभौतिक संस्कृति की तुलना में भौतिक संस्कृति सदैव ही आगे बढ़ जाती है। मैक्स मूलर जैसे प्रसिद्ध विद्वान् ने भारत का उदाहरण देते हुए बताया है कि भारत ज्ञान और त्याग में अत्यधिक प्रगतिशील है, जब कि भौतिक संस्कृति का यहाँ न तो अधिक महत्त्व है और न ही इस क्षेत्र में प्रगति करने का प्रयत्न किया जा सकता है। ⦁ ऑगबर्न ने सांस्कृतिक पिछड़’ को ही सामाजिक परिवर्तन का एकमात्र कारण मान लिया है, लेकिन यह सदैव सत्य नहीं है। मैकाइवर का कथन है कि संस्कृति का असन्तुलन सदैव भौतिक और अभौतिक पक्षों के बीच में नहीं होता, बल्कि संस्कृति के एक पक्ष में ही सन्तुलन की स्थिति हो सकती है। ⦁ कभी-कभी अभौतिक और भौतिक संस्कृति के विकास की दर में ही भिन्नता होने से सांस्कृतिक पिछड़ की स्थिति उत्पन्न नहीं होती, बल्कि अभौतिक संस्कृति के विभिन्न अंगों का असन्तुलन भी पिछड़ की स्थिति उत्पन्न करता है। उदाहरण के लिए, हम एक समय पर यह विश्वास दिलाते हैं कि दहेज-प्रथा असंगत और असामयिक है और दूसरे समय पर हम स्वयं दहेज लेते और देते हैं। हम अन्धविश्वासों की आलोचना करते हैं और स्वयं ही अन्धविश्वासों के अंनुसार व्यवहार करते हैं। इस स्थिति में हम अभौतिक संस्कृति में होने वाले परिवर्तन की वास्तविक सीमा को नहीं समझ पाते। ⦁ हमारे सामने मुख्य कठिनाई यह आती है कि संस्कृति के अभौतिक पक्ष में होने वाले परिवर्तनों को किस प्रकार मापा जाए ? भौतिक वस्तुओं के परिवर्तनों को हम माप सकते हैं लेकिन अभौतिक पक्ष से सम्बन्धित परिवर्तन का केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है। इस प्रकार भौतिक संस्कृति के तनिक-से परिवर्तन को प्रगति कह देना और अभौतिक संस्कृति में अनेक परिवर्तनों के बाद भी उसे ‘स्थायी’ मान लेना हमारी सबसे बड़ी भूल है। ⦁ ऑगबर्न के इस सिद्धान्त का एक बड़ा दोष यह है कि आपने इस सिद्धान्त को केवल पश्चिमी समाज की परिस्थितियों में ही प्रस्तुत किया है। इस प्रकार यदि हम कहें कि आपने केवल औद्योगीकरण को ही अप्रत्यक्ष रूप से सामाजिक परिवर्तन का एकमात्र कारक मान लिया है तो यह गलत नहीं होगा। |
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निम्नलिखित पुस्तकें एवं अवधारणाएँ किन समाजशास्त्रियों से सम्बन्धित हैं।(1) सांस्कृतिक विलम्बना,(2) वर्ग-चेतना,(3) चेतनात्मक संस्कृति,(4) वर्ग-संघर्ष,(5) आर्थिक निर्धारणवाद,(6) अतिरिक्त मूल्य,(7) प्रौद्योगिक विलम्बना,(8) आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन तथा(9) अभिजात वर्ग का परिभ्रमण। |
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Answer» (1) ऑगबर्न, |
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सामाजिक परिवर्तन में प्रौद्योगिकी की भूमिका का विवेचन कीजिए।यासामाजिक परिवर्तन में प्राविधिक कारक के चार प्रभावों को लिखिए। |
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Answer» आज के युग में प्रौद्योगिकी सामाजिक परिवर्तन का एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कारक है। यदि यह कहा जाए कि पिछले करीब पाँच सौ वर्षों में जितने भी परिवर्तन हुए हैं, उनके पीछे सबसे प्रमुख कारक प्रौद्योगिक है, तो इसमें किसी प्रकार की कोई अतिशयोक्ति नहीं हैं। यह वास्तविकता है कि विज्ञान के क्षेत्र में होने वाली प्रगति ने अनेक आविष्कारों को जन्म दिया है। आविष्कारों से यन्त्रीकरणं बढ़ा है और यन्त्रीकरण के फलस्वरूप उत्पादन की प्रणाली में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए हैं। थर्स्टन वेबलन सामाजिक परिवर्तन के लिए प्रौद्योगिक दशाओं को उत्तरदायी मानते हैं। यहाँ हम प्रौद्योगिकीय कारकों और सामाजिक परिवर्तन के सम्बन्ध पर विचार करेंगे और यह जानने का प्रयत्न करेंगे कि प्रौद्योगिक कारक किस प्रकार जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में परिवर्तन लाने में योग देते है। 1. यन्त्रीकरण एवं सामाजिक परिवर्तन – विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के इस युग में आज आविष्कारों वे खोजों का विशेष महत्त्व है। वर्तमान में प्रेस, पहिया, भाप-इंजन, जहाज, मोटर-कार, वायुयान, ट्रैक्टर, टेलीफोन, रेडियो, टेलीविजन, बिजली, टाइपराइटर, कम्प्यूटर, गनपाउडर, अणुबम आदि के आविष्कार ने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में आमूल-चूल परिवर्तन ला दिये हैं। मैकाइवर का कहना है कि भाप के इंजन के आविष्कार ने मानव के सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन को इतना प्रभावित किया है जितना स्वयं उसके आविष्कारक ने भी कल्पना नहीं की होगी। ऑगबर्न ने रेडियो के आविष्कार के कारण उत्पन्न 150 परिवर्तनों को उल्लेख किया। स्पाइसर ने अनेक ऐसे अध्ययनों का उल्लेख किया है जिनसे यह पता चलता है कि छोटे यन्त्रों के प्रयोग से ही मानवीय सम्बन्धों में विस्तृत एवं अनपेक्षित परिवर्तन हुए हैं। कार में स्वचालित यन्त्र (Self-starter) के लग जाने से ही कई सामाजिक परिवर्तन हुए। हैं। इससे स्त्रियों की स्वतन्त्रता बढ़ी, अब उनके लिए कार चलाना आसान हो गया, वे क्लब जाने लगीं, उनकी गतिशीलता में वृद्धि हुई और इसका प्रभाव उनके पारिवारिक जीवन पर भी पड़ा। भारत में नये कारखानों के खुलने और मशीनों की सहायता से उत्पादन होने से लोगों को विभिन्न स्थानों पर काम करने हेतु जाना पड़ा, विभिन्न जातियों के लोगों को साथ-साथ काम करना पड़ा। इससे जाति-प्रथा एवं संयुक्त परिवार प्रणाली का विघटन हुआ, छुआछूत कम हुई, वर्ग-व्यवस्था पनपी तथा स्त्रियों की स्वतन्त्रता में वृद्धि हुई।। 2. यन्त्रीकरण तथा सामाजिक मूल्यों में परिवर्तन – यन्त्रीकरण ने सामाजिक मूल्यों को परिवर्तित करने में योग दिया है। सामाजिक मूल्यों का हमारे जीवन में विशेष महत्व होता है और हम अपने व्यवहार को उन्हीं के अनुरूप ढालने का प्रयत्न करते हैं। वर्तमान में व्यक्तिगत सम्पत्ति एवं शक्ति का महत्त्व बढ़ा है एवं सामूहिकता के मूल्य कमजोर पड़े हैं। अब धन और राजनीतिक शक्ति के बढ़ते हुए प्रभाव एवं महत्त्व के कारण उन लोगों को समाज में ज्यादा सम्मान या प्रतिष्ठा दी जाती है जो धनी हैं, बड़े व्यापारी या उद्योगपति हैं, राजनेता या प्रशासक हैं। यन्त्रीकरण ने प्रदत्त के बजाय अर्जित गुणों के महत्त्व को बढ़ाने में योगदान दिया है। 3. संचार के उन्नत साधन एवं सामाजिक परिवर्तन – संचार के नवीन उन्नत साधनों जो कि एक प्रभावशाली प्रौद्योगिकीय कारक हैं, ने विकास के अनेक जटिल सामाजिक फेरवर्तनों को जन्म दिया। संचार की अनेक प्रविधियाँ हैं, जिनमें तार, टेलीफोन, रेडियो, टेलीविजन आदि प्रमुख हैं। संचार ही तो सामाजिक सम्बन्धों का आधार है। सिनेमा यो चलचित्रों ने लोगों के विचारों, विश्वासों एवं मनोवृत्तियों को बदलने में काफी योग दिया है। साथ ही इसने पारिवारिक, सामाजिक एवं जातिगत सम्बन्धों को भी प्रभावित किया है। अब रेडियो की सहायता से कोई भी बात, सूचना एवं विचार कुछ ही क्षणों में लाखों-करोड़ों व्यक्तियों तक पहुँचाए जा सकते हैं। रेडियो मनोरंजन का स्वस्थ साधन भी है। रेडियो और टेलीविजन ने परिवार के सदस्यों को एक-साथ बैठकर अवकाश का समय बिताने को प्रेरित किया है। इससे सदस्यों को अपने मनोरंजन के लिए इधर-उधर भटकना नहीं पड़ता और साथ ही उनके पारिवारिक सम्बन्धों में दृढ़ता आयी है। संचार के विभिन्न साधनों के माध्यम से भिन्न-भिन्न सांस्कृतिक समूह के लोगों को एक-दूसरे को समझने का मौका मिला है, जिसके परिणामस्वरूप उनमें सांस्कृतिक दूरी कुछ कम हुई है तथा सात्मीकरण हुआ है 4. कृषि क्षेत्र में नवीन प्रविधियाँ एवं सामाजिक परिवर्तन – कृषि क्षेत्र में नवीन प्रविधियों का प्रयोग एक ऐसा प्रौद्योगिक कारक है जिसने जीवन में अनेक परिवर्तन लाने में योग दिया है। पशुओं की नस्ल, उर्वरकों के प्रयोग, बीजों की किस्मे तथा श्रम बचाने वाली मशीनों सम्बन्धी मामलों में सुधार हो जाने से कृषि उत्पादन में मात्रा एवं गुण दोनों ही दृष्टि से वृद्धि हुई है। सिंचाई के उन्नत साधनों ने भी कृषि-उत्पादन बढ़ाने में काफी योग दिया है। इसका प्रभाव न केवल आर्थिक जीवन पर बल्कि सामाजिक जीवन पर भी पड़ा। पहले कृषि-कार्यों के ठीक से संचालन के लिए अन्य व्यक्तियों के सहयोग की आवश्यकता पड़ती थी जिससे ग्रामों में सामूहिकता का महत्त्व बना हुआ था। अब श्रम की बचत करने वाली मशीनों के प्रयोग से व्यक्ति को कृषि-कार्यों में अन्य व्यक्तियों के सहयोग की आवश्यकता बहुत कम पड़ती है। इससे सामूहिकता की बजाय व्यक्तिवादिता का महत्त्व बढ़ा है। साथ ही मशीनों के प्रयोग से कृषि-कार्यों में कम व्यक्तियों की आवश्यकता ने संयुक्त के बजाय नाभिक परिवारों के महत्त्व को बढ़ाया है। कृषि के क्षेत्र में प्रयोग में लायी जाने वाली नवीन प्रविधियों ने सामाजिक सम्बन्धों, लोगों के दृष्टिकोण और मनोवृत्तियों को काफी कुछ बदल दिया है। अब ग्रामीण क्षेत्रों में भी सम्बन्धों में घनिष्ठता और आत्मीयता के बजाय औपचारिकता और कृत्रिमता बढ़ती जा रही है। 5. उत्पादन प्रणाली और सामाजिक परिवर्तन – उत्पादन प्रणाली भी एक प्रमुख प्रौद्योगिक कारक है, जिसने समय-समय पर सामाजिक सम्बन्धों और सामाजिक संरचना को काफी कुछ बदला है। पहले जब मशीनों का आविष्कार नहीं हुआ था तब लोग अपने हाथों से काम करते थे और परिवार ही उत्पादन की इकाई था। ऐसी स्थिति में परिवार के सभी सदस्यों के हित एवं रुचियाँ समान थीं. और सम्बन्धों में घनिष्ठता थी। उस समय छोटे पैमाने पर उत्पादन होने से औद्योगिक समस्याएँ और श्रम-समस्याएँ नहीं थीं। लोग अपने घरों पर उत्पादित वस्तुओं को अन्य व्यक्तियों को उनके द्वारा उत्पादित वस्तुओं के बदले में देकर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते थे। इसी प्रकार वे अपनी सेवाओं का भी आदान-प्रदान करते थे। इससे ग्रामीण समुदायों में एकता और दृढ़ता बनी हुई थी, लेकिन अब उत्पादन प्रणाली बदल गयी है। वर्तमान में नगरीय क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर फैक्ट्रियों में मशीनों की सहायता से उत्पादन होने लगा है। अब हाथ से काम करने वालों का महत्त्व कम हुआ है और मशीनें चलाने वाले प्रशिक्षित व्यक्तियों का महत्त्व बढ़ा है। श्रम-विभाजन और विशेषीकरण अधिक हुआ है। उत्पादन की नवीन प्रणाली ने सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और यहाँ तक कि सांस्कृतिक जीवन तक को भी बहुत कुछ बदल दिया है। इस नयी प्रणाली ने विभिन्न सामाजिक संस्थाओं, विवाह, परिवार, जाति आदि को अनेक रूपों में प्रभावित किया है और सामाजिक परिवर्तन की गति को तेज किया है। 6. अणु-शक्ति पर नियन्त्रण एवं सामाजिक परिवर्तन – अणु-शक्ति का प्रयोग रचनात्मक एवं विनाशक दोनों ही प्रकार के कार्यों के लिए किया जा सकता है। शान्ति के अभिकर्ता के रूप में अणु-शक्ति समृद्धि का अभूतपूर्व युगे ला सकती है। जहाँ इस शक्ति का प्रयोग मानव की सुख-समृद्धि को बढ़ाने और जीवन-स्तर को ऊँचा उठाने में किया जा सकता है, वहीं इसका प्रयोग मानव और उसकी कृतियों को नष्ट करने के लिए भी किया जा सकता है। जैसे-जैसे जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अणु-शक्ति का प्रयोग बढ़ता जाएगा, वैसे-वैसे ही सामाजिक परिवर्तन की गति भी तीव्र होती जाएगी। |
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भौतिक और अभौतिक संस्कृति में असमान गति के परिवर्तन से जो स्थिति उत्पन्न होती है, उसे ऑगबर्न क्या कहते हैं ? |
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Answer» सांस्कृतिक विलम्बना |
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संस्कृति की विशेषताओं में होने वाले परिवर्तनों को सामाजिक परिवर्तन का सर्वप्रमुख कारण कौन मानता है ?(क) सोरोकिन(ख) मैक्स वेबर(ग) सिमैले(घ) मॉण्टेस्क्यू |
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Answer» सही विकल्प है (क) सोरोकिन |
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निम्नलिखित किस सिद्धान्त के अनुसार सामाजिक परिवर्तन जैविकीय आधार पर होता है ?(क) प्राणिशास्त्रीय सिद्धान्त(ख) जनसंख्यात्मक सिद्धान्त(ग) समाजशास्त्रीय सिद्धान्त(घ) विकासवादी सिद्धान्त |
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Answer» (घ) विकासवादी सिद्धान्त |
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मैक्स वेबर ने सामाजिक परिवर्तन के लिए किसे अधिक महत्त्व दिया है ?(क) पूँजी को(ख) शिक्षा को(ग) धर्म को(घ) संस्कृति को |
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Answer» सही विकल्प है (ग) धर्म को |
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ऑगबर्न तथा निमकॉफ ने सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या किस आधार पर की है (क) सामाजिक असन्तुलन(ख) नैतिक पतन।(ग) सांस्कृतिक विलम्बना(घ) प्रौद्योगिकीय कारक |
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Answer» (ग) सांस्कृतिक विलम्बना |
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भारत में सामाजिक परिवर्तन विषय पर किस विद्वान् ने सबसे अधिक अध्ययन किया(क) डॉ० नगेन्द्र ने(ख) सच्चिदानन्द ने(ग) एम० एन० श्रीनिवास ने(घ) डॉ० राधाकृष्णन ने |
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Answer» (ग) एम० एन० श्रीनिवास ने |
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सार्वजनिक वितरण प्रणाली को अधिक सुदृढ़ बनाने में किस नयी बातों को लागु किया है ?(A) बारकोडेड राशनकार्ड(B) एटीएम कार्ड(C) बायोमेट्रिक पहचान(D) चुनाव का पहचान पत्र |
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Answer» (A) बारकोडेड राशनकार्ड |
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सार्वजनिक वितरण प्रणाली को अधिक सुदृढ़ बनाने में किस नयी बातों को लागु किया है ?(A) बारकोडेड राशनकार्ड(B) एटीएम कार्ड(C) बायोमेट्रिक पहचान(D) चुनाव का पहचान पत्र |
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Answer» (A) बारकोडेड राशनकार्ड |
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