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This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.

1.

संसद में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण की माँग क्यों की जा रही है? ज्ञात कीजिए। 

Answer»

सामाजिक संरचना में लिंग असमता के परिणामस्वरूप विकसित विसंगतियों को दूर करने हेतु यह आवश्यक है कि महिलाओं हेतु संसद जैसी सर्वोच्च संस्था में भी उचित प्रतिनिधित्व हेतु आवश्यक कदम उठाए जाएँ। भारत में स्थानीय निकाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान पहले से ही किया जा चुका है। लिंग समता एवं महिला सशक्तिकरण हेतु संसद में भी महिलाओं के लिए यदि आधे स्थान सुरक्षित रखना संभव नहीं तो कम-से-कम 33 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान होना आवश्यक है। सरकार के बार-बार प्रयास करने के बाद भी अभी तक महिलाओं का आरक्षण संबंधी बिल पारित नहीं हो पाया है। सरकार सहमति के आधार पर यथाशीघ्र इसे पारित करने हेतु प्रयासरत है। इस आरक्षण से महिलाओं में न केवल राजनीतिक सहभागिता में वृद्धि होगी, अपितु उनके सशक्तिकरण का मार्ग भी प्रशस्त हो जाएगा।

2.

शादी से संबंधित विभिन्न गीतों को इकट्ठा कीजिए। चर्चा कीजिए कि ये किस तरह शादियों में सामाजिक परिवर्तनों और लिंग संबंधों को प्रतिबिंबित करते हैं? 

Answer»

शादियों से संबंधित अधिकांश लोकगीत लड़की को पराया धन, उसकी विदाई के दु:ख अथवा उसके होने वाले संबंधियों को चित्रित करने वाले होते हैं। इसमें कुछ उदाहरण अग्रलिखित हैं-

1. पिताजी हम चिड़ियों के झुंड की तरह हैं।
हम दूर उड़ जाएँगी : और हमारी उड़ान बहुत लंबी होगी,
हमें नहीं मालूम कि हम कहाँ जाएँगी,
पिताजी, मेरी पालकी आपके घर से नहीं जा सकती,
(क्योंकि द्वार बहुत छोटा है)
बेटी, मैं एक ईंट निकाल दूंगा
(तुम्हारी पालकी के लिए द्वार बड़ा करने के लिए)
तुम्हें अपने घर अवश्य जाना होगा।
2. मैं अपनी बच्ची को पालने में झुलाता हूँ, और
उसके सुंदर बालों में अँगुलियों फिरा रहा हूँ,
एक दिन दूल्हा आएगा और तुम्हें दूर ले जाएगा।
जोर से ढोल-नगाड़े बजते हैं।
और मधुर शहनाई बज रही है।
एक अजनबी का बेटा मुझे लेने आ गया है।
मेरी सहेलियों, अपने खिलौने लेकर आओ।
चलो हम खेलेंगी, क्योंकि अब मैं कभी नहीं खेल पाऊँगी
जब मैं एक अजनबी के घर चली जाऊँगी।।
3. जमुन जल बरसे, हाय धीरे-धीरे
जमुन जल बरसे-2, गागर मोरी टपके हाय धीरे-2
गागर मोरी टपके-2, पैर मोरा फिसले हाय धीरे-2
पैर मोरा फिसले-2, सास मोरी मारे हाथ धीरे-2
सास मोरी मारे-2, ननद पिटवावे हाय धीरे-2
ननद पिटवावे-2, छज्जे पे ठाड़ों देखे हाय धीरे-2
छज्जे पे ठाड़ो देखे-2, तरस नहीं आवे धीरे-2
तरस नहीं आवे-2, मैं पीहर चली जाऊँगी हाय धीरे-2
मैं पीहर चली जाऊँगी-2, भइया पे बुलवाय लऊँ हाय धीरे-2
भइया पे बुलवाय लऊँ-2, बाबुल पे पिटवाऊँ हाय ‘धीरे-2
बाबुल पे पिटवाऊ लऊँ-2, तरस मोहे आवे हाय धीरे-2
तरस मोहे आवे-2, मैं फौरन छुड़वाऊँ हाय धीरे-2
मैं फौरन छुड़वा-2, मैं संग चली जाऊँ हाय धीरे-2
जमुन जल बरसे, हाय धीरे-धीरे।

3.

ज्ञात करें कि व्यापक सन्दर्भ में आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवर्तन होने से परिवार में सदस्यता, आवासीय प्रतिमान और यहाँ तक कि पारस्परिक संपर्क का तरीका कैसे परिवर्तित होता है?

Answer»

भारत में परिवार के स्वरूपों में होने वाले परिवर्तन के संदर्भ में अधिकतर यह मान लिया जाता है कि संयुक्त परिवारों के विघटन के परिणामस्वरूप एकाकी परिवारों में वृद्धि हो रही है। एकांकी परिवार भारतीय समाज के लिए नए नहीं हैं। भारत में अभावग्रस्त जातियों एवं वर्गों में इस प्रकार के परिवारों का अतीत में भी प्रचलन रहा है। परिवार में होने वाले परिवर्तन व्यापक संदर्भ में आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों से जुड़े हुए होते हैं। इसे प्रवसने के उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है। जो व्यक्ति प्रवास कर अन्य स्थानों पर चले जाते हैं उनका परिवार, ग्रह, उसकी संरचना और मानक उसके परंपरागत समाज से भिन्न हो सकते हैं। औद्योगीकरण एवं नगरीकरण जैसी प्रक्रियाओं ने परिवार एवं नातेदारी के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किए हैं। आज नातेदारी से संबंधित विभिन्न परिवारों में पारस्परिक सम्पर्क कम होता जा रहा है। यह केवल सुख-दु:ख के समय तक ही सिमटने लगा है। परिवार के सदस्यों के संबंधों में भी औपचारिकता का अंश आने लगा है। 1990 के दशक में जर्मनी का एकीकरण यद्यपि एक राजनीतिक घटना है, तथापि इसका प्रभाव परिवार पर स्पष्ट देखा जा सकता है। नए जर्मन राज्य ने एकीकरण से पूर्व परिवारों को प्राप्त संरक्षण और कल्याण की सभी योजनाएँ रद्द कर दी थीं। आर्थिक असुरक्षा की बढ़ती भावना के कारण लोग विवाह से इन्कार करने लगे।

4.

ज्ञात करें कि आपके समाज में विवाह के कौन-से नियमों का पालन किया जाता है?

Answer»

विवाह एक सार्वभौमिक संस्था है। यह यौन संतुष्टि एवं प्रजनन का समाज द्वारा मान्य तरीका है। विवाह द्वारा ही परिवार का निर्माण होता है। भारतीय समाज में विवाह में अनेक नियमों का पालन किया जाता है। इन नियमों का संबंध विवाह करने वाले साथियों की संख्या और कौन किससे विवाह कर सकता है, को नियंत्रित करने से है। वैधानिक रूप से भारत में एकविवाह के नियम का प्रचलन है। इस प्रकार के विवाह में एक व्यक्ति को एक समय में एक ही जीवनसाथी तक सीमित रहना पड़ता है। अर्थात् पुरुष केवल एक पत्नी और स्त्री केवल एक पति रख सकती है। जहाँ बहुविवाह की अनुमति है। (जैसे मुसलमानों में) वहाँ भी एकविवाह ही ज्यादा प्रचलित है। पुनः विवाह की अनुमति पहले साथी की मृत्यु या तलाक के बाद दी जाती है। पहले भारत में उच्च जातियों की हिंदू महिलाओं/विधवाओं के लिए पुनर्विवाह की स्वीकृति नहीं थी। इसका प्रचलन 19वीं शताब्दी के सुधार आंदोलनों के बाद ही हुआ।

परंपरागत रूप से भारत में जीवनसाथी के चयन का निर्णय अभिभावकों/संबंधियों द्वारा किया जाता रहा है। अब जीवनसाथी के चयन करने में व्यक्तियों को अपेक्षाकृत कुछ स्वतंत्रता प्रदान की जाने लगी है। अंतर्विवाह का नियम व्यक्ति को अपनी सांस्कृतिक समूह (जैसे जाति) में ही विवाह की अनुमति देता है, जबकि बहिर्विवाह का नियम अपने समूह से बाहर (जैसे गोत्र से बाहर) विवाह करने पर बल देता है। उत्तरी भारत में गाँव-बहिर्विवाह का नियम भी प्रचलित है अर्थात् एक ही गाँव के लड़के एवं लड़की में विवाह नहीं हो सकता। पितृवंशीय व्यवस्था के नियम यह भी सुनिश्चित करते हैं कि विवाहित लड़कियाँ अपने अभिभावकों के पास बार-बार न जाएँ। विवाह के नियमों में भिन्नता का पता आप अपनी कक्षा में अन्य विद्यार्थियों द्वारा किए गए प्रेक्षणों से अपने प्रेक्षणों की तुलना करके भी लगा सकते हैं।

5.

समाजशास्त्र धर्म का अध्ययन कैसे करता है?

Answer»

धर्म का संबंध अलौकिक शक्तियों पर विश्वास से है। यद्यपि धर्म सभी ज्ञात समाजों में विद्यमान है, तथापि धार्मिक विश्वास और व्यवहार एक संस्कृति से दूसरी संस्कृति में बदलते रहते हैं। धर्म के साथ अनेक अनुष्ठान जुड़े हुए होते हैं। प्रार्थना करना, गुणगान करने, भजन गाना, विशेष प्रकार का भोजन करना या न करना, उपवास रखना आदि आनुष्ठानिक कार्य ही है। समाजशास्त्र में धर्म का अध्ययन धार्मिक या ईश्वरमीमांसीय अध्ययन से भिन्न है। समाजशास्त्र की मुख्य रुचि यह ज्ञात करने में है कि धर्म समाज में कैसे कार्य करता है तथा अन्य संस्थाओं से इसका क्या संबंध है। विभिन्न समाजों के तुलनात्मक अध्ययनों द्वारा धर्म की भूमिका की समीक्षा करने का प्रयास किया जाता है। धर्म, धार्मिक विश्वास, व्यवहार एवं संस्थाएँ संस्कृति के अन्य पक्षों को जिस रूप में प्रभावित करती हैं इसे ज्ञात करने में भी समाजशास्त्रियों की विशेष रुचि होती है। धर्म एक पवित्र क्षेत्र है। संक्षेप में, यह कहा जा सकता है कि समाजशास्त्र की रुचि धर्म का अलग क्षेत्र के रूप में अध्ययन करने में नहीं है, अपितु इसे समाज की अन्य संस्थाओं के साथ संबंधों के संदर्भ में ही देखा जाता है।

6.

चर्चा कीजिए कि सामाजिक संस्थाएँ परस्पर कैसे संपर्क करती हैं।

Answer»

सामाजिक संस्थाओं में परस्पर संपर्क एवं अंतक्रिया पाई जाती है। कोई भी संस्था शुन्य में कार्य नुहीं करती है। उदाहरणार्थ–धर्म की संस्था समाज में एकीकरण का महत्त्वपूर्ण सामाजिक कार्य करती है तो शिक्षा रोजगार के अवसर उपलब्ध कराकर समाज की अर्थव्यवस्था को ठोस आधार प्रदान करती है। मैक्स वेबर ने धर्म के अध्ययन में इसके पूँजीवाद नामक आर्थिक संस्था पर पड़ने वाले प्रभाव का विवेचन किया है। उन्होंने यह दर्शाने का प्रयास किया है कि ईसाई धर्म की कैल्विनवादी शाखा ने आर्थिक संगठन के साधन के रूप में पूँजीवाद के उद्भव एवं विकास को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया है। इसी भाँति, धर्म का शक्ति और राजनीति के साथ घनिष्ठ संबंध रहा है। उदाहरणार्थ-इतिहास इस बात का साक्षी है कि समय-समय पर सामाजिक परिवर्तन हेतु धार्मिक आंदोलन हुए हैं। जाति विरोधी आंदोलन या लिंग आधारित भेदभाव के विरुद्ध आंदोलन इसी श्रेणी के उदाहरण हैं। धर्म किसी व्यक्ति किसी निजी आस्था का मामला ही नहीं होता, अपितु इसका सार्वजनिक स्वरूप भी होता है। धर्म का यही सार्वजनिक स्वरूप समाज की अन्य संस्थाओं के संबंध में महत्त्वपूर्ण होता है।

7.

कार्य पर एक निबंध लिखिए। कार्यों की विद्यमान श्रेणी तथा ये किस तरह बदलती हैं, दोनों पर ध्यान केंद्रित करें।

Answer»

कार्य का संबंध भूमिका निष्पादन से हैं। प्रत्येक परिवार एवं गृह में कार्यों का स्पष्ट विभाजन विद्यमान होता है। कार्य स्पष्ट रूप से सवेतन रोजगार का द्योतक है। कार्य की यह आधुनिक संकल्पना अत्यधिक सरलीकृत है क्योंकि बहुत-से कार्य सवेतन नहीं होते। उदाहरणार्थ-अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में किए जाने वाले अधिकांश कार्य प्रत्यक्षतः किसी औपचारिक रोजगार आँकड़ों में नहीं गिने जाते। नकद भुगतान के अतिरिक्त कार्य या सेवा के बदले वस्तुओं या सेवाओं का प्रत्यक्ष आदान-प्रदान भी किया जाता है। भारत में जजमानी व्यवस्था का प्रचलन इसी का द्योतक है। पूर्व आधुनिक समाजों में अधिकतर लोग खेती में कार्य करते या पशुओं की देखभाल करते थे। औद्योगिक समाजों में छोटा भाग कृषि कार्यों में संलग्न होता है तथा स्वयं कृषि का औद्योगीकरण हो जाता है। इसका अर्थ यह है कि कृषि में भी मानव द्वारा किए जाने वाले कार्य को मशीनों द्वारा किया जाने लगता है। सेवा क्षेत्र का विस्तार कार्यों में विविधता लाता है। इसीलिए अत्यधिक जटिल श्रम-विभाजन को आधुनिक समाजों का लक्षण माना जाता है। आधुनिक समाज में कार्य की स्थिति में परिवर्तन देखा जा सकता है। पहले कभी पूरा परिवार कार्य की इकाई माना जाता था, जबकि अब घर और कार्य एक-दूसरे से अलग हो गए हैं। उद्योगों में कार्य करने के लिए विशेष प्रशिक्षण की भी आवश्यकता होती है। पिछले कुछ दशकों से भूमंडलीकरण के कारण ‘उदार उत्पादन’ और ‘कार्य के विकेंद्रीकरण’ की तरफ झुकाव देखा जा सकता है।

कई बार कार्यों की विद्यमान श्रेणी में भी परिवर्तन स्पष्ट देखे जा सकते हैं। उदाहरणार्थ-जब पुरुष शहरी क्षेत्रों में चले जाते हैं तो महिलाओं को हल चलाना पड़ता है और खेतों के कार्य का प्रबंध करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में वे अपने परिवार की एकमात्र भरण-पोषण करने वाली बन जाती हैं। दक्षिण-पूर्व महाराष्ट्र तथा उत्तरी आंध्र प्रदेश में कोलम जनजाति समुदाय में इस प्रकार के परिवर्तनों से ही महिला-प्रधान घरों की संकल्पना का विकास हुआ है।

8.

सामाजिक संस्था के रूप में विद्यालय पर एक निबंध लिखिए। अपनी पढ़ाई और वैयक्तिक प्रेक्षणों, दोनों का इसमें प्रयोग कीजिए।

Answer»

शिक्षा सामाजिक नियंत्रण का औपचारिक साधन है। औपचारिक शिक्षा विद्यालयों, महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में दी जाती है। सीख के रूप में परिवार में दी जाने वाली शिक्षा को अनौपचारिक शिक्षा कहते हैं। शिक्षा जीवन-पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है। विद्यालयों में प्रवेश लेना महत्त्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इसी से प्रारंभ होने वाली औपचारिक शिक्षा रोजगार प्राप्त करने की ओर एक महत्त्वपूर्ण कदम है। शिक्षा द्वारा कुछ आवश्यक सामाजिक दक्षताएँ भी प्राप्त होती हैं। शिक्षा का पाठ्यक्रम शिक्षार्थियों को जीवन के विभिन्न पक्षों की जानकारी तो उपलब्ध कराता ही है, साथ ही यह समूह की विरासत के प्रेषण/संप्रेषण की आवश्यकता की भी पूर्ति करता है। साधारण समाजों में औपचारिक विद्यालयों में जाने की आवश्यकता नहीं होती थी। आधुनिक समाजों मे श्रम के आर्थिक विभाजन के कारण औपचारिक शिक्षा का महत्त्व बढ़ गया है। आज यह माना जाने लगा है कि विद्यालय में दी जाने वाली शिक्षा बच्चे को विशिष्ट व्यवसाय के लिए तैयार करने वाली होनी चाहिए और साथ ही वह उसे समाज के मुख्य मूल्यों को समाहित करने में सक्षम बनाने वाली भी होनी चाहिए।

9.

अपने खाने वाले भोजन, रहने वाले मकान में प्रयुक्त सामग्री और पहनने वाले वस्त्रों की सूची बनाइए। ज्ञात कीजिए कि इन्हें किसने और कैसे बनाया। 

Answer»

खाने वाले भोजन में गेहूं, चावल, दालों, सब्जियों इत्यादि का उत्पादन कृषकों द्वारा किया जाता है। गाँव में भैंस एवं गाय पालन करने वाले अथवा डेरियाँ दुग्ध को उपलब्ध कराने के प्रमुख साधन हैं। मकान में प्रयुक्त होने वाली सामग्री में ईंट, सीमेंट, बालू, रोड़ी, बदरपुर, लकड़ी, लोहे, पत्थर/टाइल्स, सेनेटरी का सामान, शीशे इत्यादि सामग्री का प्रयोग किया जाता है। इन सबकी उपलब्धता विभिन्न स्रोतों द्वारा होती है। उदाहरणार्थ-ईंटें भट्टों द्वारा उपलब्ध कराई जाती हैं, सीमेंट एवं सेनेटरी का सामान व शीशे इत्यादि फैक्टरियों द्वारा उपलब्ध कराए जाते हैं, जबकि बालू, रोड़ी, बदरपुर आदि इनसे संबंधित ठेकेदारों या दुकानदारों द्वारा उपलब्ध होते हैं। लकड़ी टिंबर व्यवसायियों के यहाँ से खरीदी जाती है। वस्त्रों में प्रयुक्त होने वाला कपड़ा कपास, रेशम, ऊन इत्यादि से हैंडलूम पर या कारखानों में बनता है, फिर बाजार के माध्यम से ग्राहकों तक पहुँचता है तथा ग्राहक अपनी पसंद का कपड़ा खरीदकर दर्जी से अपना पहनावा तैयार कराते हैं।

10.

क्या आपने मुख्य बुनकर को कार्य करते देखा है? उसे एक शाल बनाने में कितना समय लगता है? ज्ञात करें। 

Answer»

भारत में शाल बनाने का एक लंबा इतिहास रहा है। बुनकर बिना किसी अन्य परिजन की सहायता से दो दिन में एक शाल बना सकता है। यदि बुनकर लंबी अवधि तक कार्य करता है तथा परिवार के अन्य सदस्य भी उसकी सहायता करते हैं तो वह एक दिन में एक शाल बना सकता है। बुनकर हैंडलूम द्वारा एक दिन में एक से अधिक शाल तथा पावरलूम द्वारा एक दिन में अनेक शाल बना सकता है। पावरलूम हेतु उसे बिजली की उपलब्धता पर भी आश्रित होना पड़ता है।

11.

ग्राम आधारित व्यवसायों में लगे भारतीयों की संख्या की गणना कीजिए और उन व्यवसायों की एक सूची बनाइए।

Answer»

भारत को गाँवों का देश कहा जाता है। 2011 ई० की जनगणना के अनुसार आज भी लगभग 62 प्रतिशत जनसंख्या गाँवों में निवास करती है। ऐसा माना जाता है कि भारत की एक-तिहाई जनसंख्या प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से कृषि से जुड़ी हुई है तथा रोजगार एवं आय के लिए अभी भी कृषि क्षेत्र पर आश्रित है। कृषि क्षेत्र कुल राष्ट्रीय उत्पाद का 22 प्रतिशत है। ग्रामीण परिवारों द्वारा जो कार्य किए जाते हैं वे या तो कृषि से संबंधित होते हैं या कृषि से जुड़े हुए अन्य व्यवसाय होते हैं। कृषि से संबंधित कार्यों में खेती करना तथा पशुओं की देखभाल करना प्रमुख हैं, जबकि कृषि से जुड़े कार्यों में परंपरागत जातिगत कार्य; जैसे लकड़ी का काम करने वाले बढ़ई, लोहे का काम करने वाले लोहार, मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हार आदि को सम्मिलित किया जाता है। खेतिहर मजदूर भी कृषि में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। कुक्कुट एवं डेरी उद्योग में भी अनेक ग्रामवासी कार्यरत होते हैं। पारंपरिक समाजों में गैर-कृषि कार्य को हस्तकौशल की दक्षता के साथ जोड़ा जाता था। पहले कभी ग्रामीण उद्योगों में भी काफी ग्रामवासी लगे हुए थे। अब लघु एवं कुटीर उद्योगों के हृास के कारण इनमें लगे लोगों की संख्या कम हुई है। वाइजर नामक समाजशास्त्री ने करीमपुर गाँव में जजमानी व्यवस्था पर किए गए, अध्ययन में वहाँ रहने वाली चौबीस जातियों के कार्यों का उल्लेख किया है। इनमें से अधिकांश जातियाँ अन्य जातियों को अपनी परंपरागत सेवाएँ प्रदान करती है। इनमें उन्होंने पुरोहित अथवा अध्यापक (ब्राह्मण); वंश परम्परा का वर्णन करने वाले (भाट); खजांची (कायस्थ); सोने का काम करने वाले (सुनार); फूल-पत्ती का प्रबंध करने वाले (माली); सब्जियाँ उगाने वाले (काछी); चावल उगाने वाले (लोधा); बढ़ईगिरी का काम करने वाले (बढ़ई); हजामत बनाने वाले (नाई); पानी लाने वाले (कहार); भेड़-बकरियाँ पालने वाले (गड़रिया); भाड़ में अनाज भूनने वाले (भड़पूँजा); कपड़े सिलने वाले (दर्जी); मिट्टी के बर्तन बनाने वाले (कुम्हार); व्यापार करने वाले (साहूकार या महाजन); तेल निकालने वाले (तेली); कपड़े धाने वाले (धोबी); मेट बनाने वाले (धानुक); चमड़े का काम करने वाले (चर्मकार); सफाईकर्मी; पैतृक मुसलमान भिखारी (फकीर); शीशे की चूड़ियाँ बेचने वाले (मनिहार); कपास धुनाई करने वाले (धुनक) तथा नाचने वाली लड़की (तवायफ) को सम्मिलित किया है।

12.

निम्नलिखित में से धर्म की विशेषता नहीं है(क) पवित्रता(ख) आदर(ग) विश्वास(घ) सदाचार

Answer»

सही विकल्प है (घ) सदाचार

13.

धर्म की विशेषता क्या है ?(क) पारस्परिक सहयोग(ख) समानता(ग) अलौकिक शक्ति पर विश्वास(घ) गुरु पर विश्वास

Answer»

सही विकल्प है (ग) अलौकिक शक्ति पर विश्वास

14.

निम्नलिखित में धर्म की विशेषता नहीं है-(क) कर्मकाण्डों का समावेश(ख) अलौकिक शक्ति के प्रति विश्वास(ग) तर्क का समावेश(घ) अपरिवर्तनशील व्यवहार

Answer»

सही विकल्प है (ग) तर्क का समावेश

15.

बहिर्विवाह का तात्पर्य है-(क) गोत्र के बाहर विवाह(ख) प्रवर के बाहर विवाह(ग) पिण्ड के बाहर विवाह(घ) ये सभी

Answer»

सही विकल्प है (घ) ये सभी

16.

वह प्रथा, जिसके अनुसार कोई भी पुरुष एक समय में एकाधिक स्त्रियों से विवाह कर सकता है, कहलाता है-(क) समूह विवाह(ख) एक विवाह(ग) बहुपति विवाह(घ) बहुपत्नी विवाह

Answer»

सही विकल्प है (घ) बहुपत्नी विवाह

17.

हिंदू विवाह के निम्नलिखित प्रकारों में कौन-सा अप्रशस्त है?(क) दैव(ख) प्राजापत्य(ग) राक्षस(घ) ब्राह्म

Answer»

सही विकल्प है (ग) राक्षस

18.

अंतर्विवाह क्या है?

Answer»

विशिष्ट जाति, वर्ग या जनजातीय समूह के अंतर्गत किए जाने वाले विवाह को अंतर्विवाह कहते हैं।

19.

पति-पत्नी, पिता-पुत्र, माता-पुत्री, भाई-बहन इत्यादि किस प्रकार के नातेदार हैं?

Answer»

पति-पत्नी, पिता-पुत्र, माता-पुत्री, भाई-बहन इत्यादि प्राथमिक नातेदार हैं।

20.

बहिर्विवाह क्या है?

Answer»

संबंधी के कुछ समूहों के बाहर किए जाने वाले विवाह को बहिर्विवाह कहते हैं।

21.

पारिवारिक विघटन को परिभाषित कीजिए।

Answer»

मार्टिन न्यूमेयर के शब्दों में, “पारिवारिक विघटन का अर्थ एकता तथा निष्ठा को भंग होना, पहले से स्थापित संबंधों की समाप्ति, पारिवारिक चेतना का नाश अथवा अलगाव का विकास है।”

22.

स्कूलों में दी जाने वाली शिक्षा को क्यों कहा जाता है?

Answer»

स्कूलों में दी जाने वाली शिक्षा को औपचारिक शिक्षा’ कहा जाता है।

23.

परिवार को नागरिकता का प्रशिक्षण स्थल क्यों कहा जाता है।

Answer»

मैजिनी के अनुसार, “बालक नागरिकता का प्रथम पाठ माता के चुंबन तथा पिता के संरक्षण के मध्य सीखता है। परिवार बालक में अनेक नागरिकता के गुणों का विकास करता है। इस संबंध में परिवार के प्रमुख कार्य निम्नांकित हैं-

⦁    स्नेह की शिक्षा-स्नेह की शिक्षा बालक सर्वप्रथम माता के चुंबन और माता के दुलार से सीखता है। टी० रेमण्ट का यह कथन पूर्णतया सत्य है कि “घर में ही घनिष्ठ प्रेम की भावनाओं का विकास होता है। माता-पिता का स्नेह बालक में भी प्रेम के बीज डाल देता है। बालक भी अपने माता-पिता से प्रेम करना सीख जाता है। भविष्य में यही पारिवारिक प्रेम व्यापक होकर सामाजिक प्रेम में परिणत हो जाता है।
⦁    सहयोग की शिक्षा-सामाजिक जीवन में सहयोग का विशेष महत्त्व है। सामाजिक जीवन का आधार सहयोग ही है। बालक सहयोग का प्रथम पाठ परिवार में ही पढ़ता है; क्योंकि वह देखता है कि परिवार के समस्त सदस्य मिल-जुलकर घर का कार्य करते हैं। विद्वान् बोसो के अनुसार, “परिवार वह स्थान है, जहाँ प्रत्येक नई पीढ़ी नागरिकता का यह नया पाठ सीखती है। कि कोई भी मनुष्य बिना सहयोग के जीवित नहीं रह सकता।”
⦁    सहानुभूति की शिक्षा-परिवार में माता-पिता बालक के दुःख को देखकर तुरंत चितिंत हो उठते हैं और दौड़-भाग कर उसके दुःख को दूर करने का प्रयास करते हैं। इसी सच्ची सहानुभूति का प्रदर्शन बालक पर गहरा प्रभाव डालता है और वह भी समय पड़ने पर परिवार के सदस्यों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करता है।
⦁    कर्त्तव्यपालन और आज्ञापालन की शिक्षा–आज्ञपालन और कर्तव्यपालन की शिक्षा भी बालक परिवार में ही सीखता है। प्रत्येक बालक अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन करना अपना कर्तव्य समझता है। इस प्रकार वह अनुशासन का पाठ सीखता है।
⦁    नि:स्वार्थता की शिक्षा–माता-पिता अपने बालक से नि:स्वार्थ प्रेम करते हैं और उनका लालन-पालन किसी स्वार्थ की भावना से नहीं करते। इससे परिवार के सदस्यों में नि:स्वार्थता के गुण का विकास होता है।

24.

परिवार सामाजिक नियंत्रण का किस प्रकार का साधन है?

Answer»

परिवार सामाजिक नियंत्रण का अनौपचारिक साधन है।

25.

अपने समाज में विद्यमान विभिन्न प्रकार के अधिकारों पर चर्चा करें। वे आपके जीवन को किस तरह प्रभावित करते हैं?

Answer»

प्रारंभ में प्रभुसत्तात्मक राज्यों में नागरिकता के साथ राजनीतिक भागदारी के अधिकारों का पालन नहीं किया जाता था। इन अधिकारों को अधिकतर संघर्ष द्वारा प्राप्त किया जाता था। राजतंत्र की शक्तियों को सीमित करना अथवा उन्हें सक्रिय रूप से पदच्युत करना इसी संघर्ष का परिणाम है। फ्रांस की क्रांति तथा भारत का स्वतंत्रता संग्राम इस प्रकार के आंदोलनों के उदाहरण हैं। नागरिकता के अधिकारों में नागरिक, राजनीतिक और सामाजिक अधिकार सम्मिलित होते हैं। भारत में सभी व्यक्तियों को बिना किसी भेदभाव के नागरिक, राजनीतिक और सामाजिक अधिकार प्राप्त है। नागरिक अधिकारों में व्यक्तियों को अपनी इच्छानुसार रहने की जगह चुनने की, भाषण और धर्म की स्वतंत्रता, संपत्ति रखने का अधिकार तथा कानून के समक्ष समान न्याय का अधिकार सम्मिलित है। राजनीतिक अधिकारों में प्रत्येक वयस्क व्यक्ति चुनाव में भाग ले सकता है तथा सार्वजनिक पद के लिए खड़ा हो सकता है। सामाजिक अधिकार प्रत्येक व्यक्ति को कुछ न्यूनतम स्तर तक आर्थिक कल्याण और सुरक्षा प्रदान करते हैं। अनुसूचित जातियों को दिए गए विशेष अधिकार इसी श्रेणी के उदाहरण हैं। स्वास्थ्य लाभ, बेरोजगारी भत्ता और न्यूनतम मजदूरी निर्धारित करना भी व्यक्तियों को सामाजिक अधिकार देना ही है।

अधिकार व्यक्तियों के जीवन को प्रभावित करते हैं। समाज के बहुत-से वर्ग अन्य वर्गों को उनके अधिकारों से वंचित करने का प्रयास करते हैं। इस प्रकार वे उन लोगों को आगे बढ़ने से रोकते हैं। समाज में व्याप्त आर्थिक असमानता भी इसी का ही परिणाम है। बहुत-से विकासशील देशों में सामाजिक अधिकारों को आर्थिक विकास से रुकावट मानकर इन पर आक्रमण किए जाने लगे हैं तथा इन्हें प्रतिबंधित करने का भी प्रयास किया जाने लगा है।

26.

पवित्र और अपवित्र की अवधारणा से संबंधित समाजशास्त्री का नाम लिखिए।

Answer»

पवित्र और अपवित्र की अवधारणा से संबंधित समाजशास्त्री का नाम दुखम है।

27.

परिवार किसे कहते हैं।

Answer»

परिवार समाज की वह केंद्रीय इकाई है जिसमें माता-पिता, भाई-बहन, चाचा-चाची, भतीजे-भतीजी, पुत्र-पुत्री आदि सदस्य सम्मिलित होते हैं और जो पारस्परिक स्नेह तथा उत्तरदायित्व की भावना से परिपूर्ण होते हैं परंतु परिवार का यह रूप भारतवर्ष में ही पाया जाता है। पाश्चात्य देशों में परिवार का तात्पर्य समाज की उस इकाई से लगाया जाता है जिसमें माता-पिता और उनके अविवाहित बच्चे ही सम्मिलित होते हैं। इलियट तथा मैरिल (Elliott and Merrill) के अनुसार, “परिवार को पति-पत्नी तथा क्च्चों की एक जैविक-सामाजिक इकाई के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।” इनके अनुसार यह एक सामाजिक संस्था और एक सामाजिक संगठन भी है जिसके द्वारा कुछ मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति की जाती है।

28.

शिक्षा के क्या उद्देश्य हैं?

Answer»

शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य शिक्षार्थी का सर्वांगीण विकास करना है।

29.

विभिन्न समाजों द्वारा विवाह के लिए साथियों की तलाश किए जाने वाले विभिन्न तरीकों का पता लगाइए।

Answer»

विभिन्न समाजों में विवाह के लिए जीवनसाथी की तलाश के अनेक तरीके अपनाए जाते हैं। पहले कभी हिन्दुओं में विवाह कराने में बिचौलियों का महत्त्वपूर्ण स्थान था। कुछ लोग लड़के या लड़की वालों को उपयुक्त जीवनसाथी के बारे में बताते थे। अब अनेक जातियाँ अपनी पत्रिकाएँ निकालने लगी हैं जिनमें वैवाहिक विज्ञापन दिए जाते हैं। प्रमुख समाचार-पत्रों में ऐसे वैवाहिक विज्ञापन आने लगे हैं। मुसलमानों में चूंकि नातेदारों में विवाह हो सकता है, इसलिए जीवनसाथी के चयन में नातेदारों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। जनजातियों में जीवनसाथी के चयन के अनेक तरीके अपनाए जाते हैं। कठिन जीवन होने के कारण लड़कियाँ लड़कों की परीक्षा ले सकती हैं (परीक्षा विवाह); लड़के-लड़की को विवाह से पूर्व कुछ समय के लिए एक-दूसरे को समझने के लिए साथ रहने की अनुमति दी जा सक़ती थी (परिवीक्षा विवाह); लड़की के पिता को वधु-मूल्य देकर विवाह किया जा सकता (क्रय विवाह); लड़की को जबरदस्ती उठाकर विवाह किया जा सकता है (अपहरण विवाह); लड़की होने वाले पति के माता-पिता की सेवा द्वारा उन्हें विवाह के लिए राजी कर सकती है (सेवा विवाह); एक परिवार के लड़के-लड़की का विवाह दूसरे परिवार की लड़की-लड़के से विनिमय द्वारा हो सकता है (विनिमय विवाह); लड़का और लड़की परस्पर सहमति से विवाह कर सकते हैं। (सहपलायन विवाह) आदि।

30.

प्रसिद्ध कहावतों में समाज की सामाजिक व्यवस्था की झलक कैसे मिलती है? 

Answer»

ऐसा माना जाता है कि कहावतों में समाज की सामाजिक व्यवस्था की झलक ही मिलती है। उदाहरणार्थ-लड़कियों को ‘पराया धन’ माना जाता है। इस विश्वास के कारण कि लड़का वृद्धावस्था में अपने माता-पिता की सहायता करेगा और लड़की विवाह के बाद दूसरे घर चली जाएगी, परिवारों में लड़कों पर अधिक धन खर्च किया जाने लगा। परिवार में होने वाला यह लिंग-भेदभाव भारत सहित अनेक समाजों में संस्थागत रूप में विद्यमान रहा है। इससे संबंधित अनेक कहावतें भी विकसित हुई हैं। उदाहरणार्थ-एक तेलुगु कहावत है कि “एक लड़की का पालन करना दूसरे के आँगन में पौधे को पानी देने के बराबर है।” यह कहावत लड़कियों को पराया धन माने जाने को चरितार्थ करती है।

31.

विवाह की पसंद को समझने में विज्ञापन आपकी कैसे सहायता करते हैं? 

Answer»

प्रत्येक माता-पिता में अपने लड़के एवं लड़की अथवा स्वयं वर एवं वधू में जीवनसाथी में पाए। जाने वाले गुणों के बारे में कुछ प्राथमिकताएँ होती हैं। वैवाहिक विज्ञापनों में आज इस कार्य को सरल बना दिया है। अधिकांश वैवाहिक विज्ञापनों में वर एवं वधू के शारीरिक, पारिवारिक, व्यावसायिक, जातीय एवं धार्मिक लक्षणों का वर्णन मिलता है। इनसे परिवार वाले या स्वयं लड़का या लड़की अपनी पसंद के जीवनसाथी का चयन कर उससे पत्र व्यवहार कर सकते हैं। विज्ञापनों द्वारा होने वाले अनेक विवाह काफी सफल रहे हैं क्योंकि इनसे जीवनसाथी के चयन का दायरा बढ़ जाता है।

32.

धर्म किसे कहते हैं?याधर्म से आप क्या समझते हैं?

Answer»

‘धर्म’ को अंग्रेजी में रिलीजन’ (Religion) कहते हैं, जो लैटिन भाषा के ‘rel (I) igio’ शब्द से बना है, जिसका अर्थ है ‘बाँधना’। इस प्रकार शाब्दिक अर्थों में ‘धर्म’ का अभिप्राय उन संस्कारों के प्रतिपादन से है जो मनुष्य और ईश्वर या अलौकिक शक्ति को एक-दूसरे से बाँधते या जोड़ते हैं। अन्य शब्दों में, धर्म मनुष्य की युगों से विद्यमान उस श्रद्धा का नाम है जो सर्वशक्तिमान के प्रति होती है। टायलर के अनुसार, “आध्यात्मिक सत्ताओं में विश्वास ही धर्म है। ये सत्ताएँ दैवी तथा राक्षसी दोनों ही प्रकार की हो सकती हैं।”

33.

ऐजूकेशन शब्द लैटिन भाषा के किस शब्द से बना है?

Answer»

‘ऐजूकेशन’ शब्द लैटिन भाषा के ‘ऐजूकेयर’ शब्द से बना है।

34.

जन्मजात शक्तियों को अभिव्यक्त करने की प्रक्रिया के रूप में शिक्षा की परिभाषा दीजिए।

Answer»

कुछ विद्वानों का विचार है कि प्रत्येक व्यक्ति में कुछ शक्तियाँ जन्मजात रूप से ही विद्यमान होती हैं परंतु इन शक्तियों की अभिव्यक्ति के लिए कुछ प्रयास करने पड़ते हैं, ये प्रयास ही शिक्षा हैं। इस मत के मुख्य समर्थक सुकरात, फ्रोबेल तथा विवेकानंद आदि हैं। सुकरात के अनुसार, “शिक्षा का आशय सार्वजनिक प्रामाणिकता के विचारों को प्रकाश में लाना है जो कि प्रत्येक व्यक्ति के मन में प्रच्छन्न रूप में निहित हैं। इसी प्रकार फ्रोबेल के अनुसार, “शिक्षा वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा बालक की जन्मजात शक्तियाँ बाहर प्रकट होती है।”

35.

सहकारी समाजवाद से क्या अभिप्राय है?

Answer»

सहकारी समाजवाद में उत्पादन के साधनों पर किसी एक व्यक्ति का स्वामित्व न होकर सामूहिक स्वामित्व होता है। इसमें कुछ लोग सहयोग द्वारा कोई कार्य करते हैं। ये लोग श्रमिक भी होते हैं और लाभ पाने वाले सदस्य भी। उदाहरण के लिए–100 व्यक्तियों ने पूँजी लगाकर एक कारखाना खोला, ये व्यक्ति वहाँ के कार्यकर्ता भी होंगे तथा जो लाभ होगा वह इन व्यक्तियों में समान रूप से बाँट लिया जाएगा। सहकारी समाजवाद में घनिष्ठ आर्थिक संबंध, सहकारिता, सामूहिक संपत्ति आदि प्रमुख आर्थिक संस्थाएँ हैं। सहकारी समाजवाद का विकसित रूप इंग्लैंड तथा स्केण्डिनेवियन देशों में पाया जाता है।

36.

क्या आप सोचते हैं कि अंतर्विवाह आज भी प्रचलित मानक है?

Answer»

अंतर्विवाह का अर्थ है अपने ही समूह में विवाह करना। भारतीय समाज में अंतर्विवाह के नियम स्पष्ट देखे जा सकते हैं। जाति एक अंतर्विवाही समूह है अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति को अपनी ही जाति में विवाह करना पड़ता है। फोलसम (Folsom) के अनुसार अंतर्विवाह वह नियम है जिसके अनुसार एक व्यक्ति को अपनी जाति या समूह में विवाह करना पड़ता है यद्यपि निकट के रक्त संबंधियों में विवाह की अनुमति नहीं होती है। भारत में सभी जातियाँ तथा उपजातियाँ अंतर्विवाह हैं। अंतर्विवाह संबंधी निषेध हिंदुओं, मुसलमानों तथा जनजातियों में भी पाए जाते हैं। इस सब में यह पहले से ही निश्चित है। कि विवाह किनसे किया जा सकता है अर्थात् विवाह का क्षेत्र सीमित है। प्रजातीय भिन्नता तथा अपनी प्रजाति की शुद्धता बनाए रखना इस निषेध का प्रमुख कारण माना जाता है। यद्यपि अंतर्जातीय विवाहों के परिणामस्वरूप आज भारत में अंतर्विवाह का नियम थोड़ा-बहुत शिथिल होने लगा है, तथापि आज भी अधिकांशतया अंतर्विवाह ही एक प्रचलित मानक है। यदि हम वैवाहिक विज्ञापनों को देखें तो उनमें से अधिकांश में जाति का प्रतिबंध लिखा हुआ नहीं होता। इससे यह पता चलता है कि बहुत-से-लोग अब इस अंतर्विवाह के नियम को नहीं मानते हैं।

37.

लोगों द्वारा परिवार, धर्म, राज्य के लिए बलिदान देने के उदाहरणों के बारे में चर्चा कीजिए।

Answer»

लोगों में अपने परिवार, धर्म एवं राज्य के लिए निष्ठा कोई नहीं बात नहीं है। वे इनके लिए अपन हितों को अनदेखा करने तथा किसी भी प्रकार का बलिदान देने के लिए तत्पर रहते हैं। सुरक्षा बलों के जवानों का राज्य की रक्षा हेतु दुश्मनों के हाथों मारा जाना उनका राज्य के प्रति बलिदान ही दर्शाता हैं। अनेक धार्मिक संप्रदायों में अनेक धर्म-गुरुओं द्वारा अपने धर्म की रक्षा हेतु अपने अथवा परिजनों के बलिदान के उदाहरण पाए जाते हैं। बहुत-से लोग अपने परिवार के आर्थिक हितों के सामने अपने हितों का बलिदान कर देते हैं। इसके लिए वे परिवार छोड़ दूरदराज के क्षेत्रों में या विदेशों में नौकरी करने में भी संकोच नहीं करते हैं। क्षेत्रवाद की भावना भी अपने क्षेत्र के प्रति निष्ठा का ही परिणाम है। यह भावना विभिन्न क्षेत्रों अथवा राज्य के लोगों को कई बार आपस में लड़ने-मरने पर विवश कर देती है।

38.

साम्यवाद की दो प्रमुख विशेषताएँ बताइए।

Answer»

साम्यवाद की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

⦁    इसमें निजी संपत्ति को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता है अपितु संपत्ति पर राज्य के अधिकार को अर्थात् सार्वजनिक अधिकार को अधिक मान्यता दी जाती है।

⦁    साम्यवाद, श्रम को अत्यधिक महत्त्व देता है और इसमें व्यक्ति को पद उसकी कार्यकुशलता के आधार पर दिया जाता है।

39.

संपत्ति की दो प्रमुख विशेषताएँ बताइए।

Answer»

संपत्ति की प्रमुख विशेषताएँ निम्नांकित हैं-

⦁    संपत्ति एक सार्वभौमिक आर्थिक संस्था है। यह बिल्कुल ही आदिम समाज से लेकर अत्यधिक विकसित समाजों-सभी में पाई जाती है।
⦁    संपत्ति की अवधारणा सीमित और मूल्यवान वस्तुओं पर अधिकार में निहित होती है। यह अधिकार संबंधित वस्तुओं पर नियंत्रण के विभिन्न रूपों को प्रकट करता है; जैसे–कब्जा, उपयोग, भोग, आय, वितरण आदि। सीमित और मूल्यवान वस्तुएँ दो प्रकार की हो सकती ” है—मूर्त तथा अमूर्त।

40.

जिन नातेदारों में प्रत्यक्ष एवं घनिष्ठ संबंध पाए जाते हैं उन्हें क्या कहा जाता है?

Answer»

जिन नातेदारों में प्रत्यक्ष एवं घनिष्ठ संबंध पाए जाते हैं उन्हें प्राथमिक नातेदार कहा जाता है।

41.

पूँजीवाद की दो प्रमुख विशेषताएँ बताइए।

Answer»

पूँजीवाद में निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं-

⦁    पूँजीवाद में निजी संपत्ति को मान्यता दी जाती है। निजी संपत्ति चाहे चल हो या अचल उस पर निजी अधिकार होता है, उसे छीनने का अधिकार राज्य को प्राप्त नहीं होता है।
⦁    पूँजीवाद में प्रतिस्पर्धा प्रमुख संस्था है। श्रमिक, उपभोक्ता और उत्पादक तीनों में प्रतिस्पर्धा पाई जाती है।

42.

अंतर्विवाह के बारे में आप क्या जानते हैं? समझाइए।

Answer»

अंतर्विवाह का अर्थ है किसी व्यक्ति का समूह, वर्ण या जाति के अंदर ही विवाह करना। प्राचीनकाल में वर्ण व्यवस्था का प्रचलन था अतः लोग सामान्यतया अपने वर्ण में ही विवाह करते थे, परंतु धीरे-धीरे अनेक जातियों का विकास हो गया और लोग अपनी जाति के अंतर्गत विवाह करने लगे। उदाहरण के लिए ब्राह्मणों में गौड़ ब्राह्मण केवल गौड़ ब्राह्मणों में ही विवाह करते हैं। इस प्रकार अंतर्विवाह एक ऐसी वैवाहिक मान्यता है जिसमें एक स्त्री अथवा पुरुष को अपनी ही जाति अथवा उपजाति में विवाह करने का नियम होता है। अन्य शब्दों में, हिंदू समाज में एक व्यक्ति को अपनी जाति से बाहर विवाह करने का निषेध हैं। इसी निषेधु के पालन के लिए अंतर्विवाही समूहों का निर्माण किया गया। जाति प्रथा की परिभाषा के अनुसार, जाति एक अंतर्विवाही समूह है। इस प्रकार के निषेधों का प्रमुख प्रजातीय शुद्धता, रक्त की शुद्धता तथा जातीय संगठन को दृढ़ बनाने की इच्छा प्रमुख रहे हैं। यद्यपि आज अधिकांशतया अंतर्विवाही मान्यताओं का पालन तो किया जाता है, तथापि अंतर्जातीय विवाहों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

⦁    शिक्षा के प्रसार ने जनसाधारण को अंधविश्वास और अज्ञानता से मुक्त कर दिया है।
⦁    सह-शिक्षा के प्रसार एवं युवक-युवतियों के पारस्परिक संपर्क ने विवाह के प्रति दृष्टिकोण में परिवर्तन किया है।
⦁    दहेज प्रथा के दोषों के कारण।
⦁    औद्योगीकरण तथा नगरीकरण के कारण दृष्टिकोण के व्यापक होने का परिणाम।
⦁    यातायात के साधनों के विकास के कारण।
⦁    व्यावसायिक कार्यालयों तथा महाविद्यालयों में स्त्री-पुरुषों का साथ-साथ काम करना।
⦁    युवक व युवतियों में स्वयं जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्र प्रवृत्ति।।
⦁    विभिन्न सामाजिक सुधारों के प्रभाव।

43.

दो संबंधियों में प्रत्यक्ष संबंध एवं अंतःक्रिया को सीमित करने वाली नातेदारी रीति कौन-सी है?

Answer»

दो संबंधियों में प्रत्यक्ष संबंध एवं अंत:क्रिया को सीमित करने वाले नातेदारी रीति का नाम परिहार है।

44.

नातेदारी के दो प्रमुख भेद बताइए।

Answer»

नातेदारी के दो प्रमुख भेद इस प्रकार हैं-

⦁    विवाह संबंधी नातेदारी–इसमें हम उन सब नातेदारों को सम्मिलित करते हैं जो विवाह के संबंध के आधार पर एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। उदाहरणार्थ–एक स्त्री अपने पति अथवा एक पति का अपनी पत्नी से संबंध अथवा पति-पत्नी, बहनोई, दामाद, जीजा, फूफा, ननदोई, मौसा, साढ़, पुत्रवधू, भाभी, देवरानी, जेठानी, चाची, मामी आदि रिश्तेदारों को विवाह संबंधी नातेदारों में सम्मिलित किया जा सकता है।

⦁    रक्त संबंधी नातेदारी-इसमें उन नातेदारों को सम्मिलित किया जाता है तो समान रक्त के | संबंध के आधार पर एक-दूसरे के साथ जुड़े होते हैं। उदाहरणार्थ-भाई-बहन, चाचा, ताऊ, मामा, मौसी इत्यादि को इस श्रेणी में रखा जाता है।

45.

नातेदारी की प्रमुख श्रेणियाँ कौन-सी हैं?

Answer»

नातेदारी की श्रेणियों से अभिप्राय नातेदारों में परस्पर संबंधों की निकटता से है अर्थात् कोई नातेदार किसी व्यक्ति का कितना नजदीकी अथवा दूर का नातेदार है। नातेदारी को मुख्य रूप से निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित किया जाता है-

⦁    प्राथमिक नातेदार–जिन रिश्तेदारों के साथ हमारा प्रत्यक्ष वैवाहिक या रक्त संबंध होता है, उन्हें हम प्राथमिक नातेदार कहते हैं। प्राथमिक नातेदारों में आठ संबंधियों को सम्मिलित किया जाता है। ये हैं–पति-पत्नी, पिता-पुत्र, माता-पुत्री, पिता-पुत्री, माता-पुत्र, छोटे-बड़े भाई, छोटी-बड़ी बहन तथा भाई-बहन। ये वे प्रत्यक्ष संबंधी हैं जिनके साथ हमारा घनिष्ठ संबंध है।
⦁    द्वितीयक नातेदार—इसमें हम उन रिश्तेदारों को सम्मिलित करते हैं जो हमारे प्राथमिक नातेदारों के प्राथमिक संबंधी होते हैं। ये संबंधी हमसे प्राथकमिक संबंधियों द्वारा संबंधित होते हैं। उदाहरणार्थ-बहनाई-साले में संबंध, दादा-पोते में संबंध, चाचा-भतीजे में संबंध, देवर-भाभी में संबंध इस श्रेणी के संबंधों के उदाहरण हैं। मरडोक (Murdock) ने 33 प्रकार के द्वितीयक नातेदार बताए हैं।
⦁    तृतीयक नातेदार–इस श्रेणी में उन नातेदारों को सम्मिलित किया जाता है जो हमारे द्वितीयक संबंधियों के प्राथमिक संबंधी हैं अर्थात् हमारे प्राथमिक संबंधियों के द्वितीयक संबंधी हैं। उदाहरणार्थ-साले की पत्नी, साले का लड़का, पड़दादा हमारे तृतीयक नातेदार हैं। मरडोक ने 151 ऐसे संबंधियों का उल्लेख किया है।

इसी प्रकार हम चातुथिक, पांचमिक इत्यादि संबंधों की चर्चा करते हैं।

46.

हिंदुओं में बहिर्विवाह के नियम को स्पष्ट कीजिए।

Answer»

बहिर्विवाह का तात्पर्य है अपने रक्त-समूह आदि के अंतर्गत आने वाले सदस्य से विवाह न करना। इस मान्यता के अनुसार विवाह अपने गोत्र, प्रवर और सपिंड वाले परिवारों में नहीं किया जा सकता। हिंदुओं में तीन प्रकार के बहिर्विवाह का प्रचलन है-

⦁    गोत्र बहिर्विवाह-गोत्र बहिर्विवाह को ठीक प्रकार से समझने के लिए आवश्यक है कि ‘गोत्र के अर्थ को समझा जाए। मजूमदार एवं मदन के शब्दों में, ‘एक गोत्र अधिकांश रूप से कुछ वंश-समूहों को योग होता है, जो अपनी उत्पत्ति एक कल्पित पूर्वज से मानते हैं। यह पूर्वज मानव, मानव के समान पश, पेड़, पौधा या निर्जीव वस्तु हो सकता है।’ गोत्र के संबंध में यह प्रथा प्रचलित है कि एक ही गोत्र के व्यक्तियों के बीच में निकट रक्त-संबंध होते हैं। इसलिए एक ही गोत्र के सभी युवक-युवतियाँ एक-दूसरे के भाई-बहन हैं। अतः सगोत्र अथव अंत:गोत्र विवाहों पर प्रतिबंध हैं; क्योंकि हिंदू समाज में भाई-बहन के बीच विवाह संबंध स्थापित नहीं हो सकते।।
⦁    सपिंड बहिर्विवाह–पिंड का अर्थ रक्त-संबंध से है। हिंदू समाज में सपिंड’ में वैवाहिक संबंध का निषेध किया गया है। सपिंड का संबंध माता की ओर से पाँच पीढ़ियों तक और पिता की ओर से सात पीढ़ियों तक माना जाता है। विज्ञानेश्वर ने सपिंड की व्याख्या इस प्रकार की है, एक ही पिंड अर्थात् एक देह से संबंध रखने वालों में शरीर के अवयव समान रहने के कारण सपिंड संबंध होता है। पिता और पुत्र सपिंड है। इसी प्रकार दादा आदि के शरीर के अवयव पिता द्वारा पोते में आने से तथा पुत्री की माता के साथ सपिंडता होती है; अतः जहाँ-जहाँ ‘सपिंड’ शब्द का प्रयोग हुआ है वहाँ एक शरीर के अवयवों का संबंध समझना चाहिए। इस प्रकार, पिता से सात और माता से पाँच पीढ़ी के बीच लड़के और लड़कियों में विवाह नहीं हो सकता।
⦁    प्रवर बहिर्विवाह-प्रवर’ शब्द का अर्थ है ‘आह्वान करना। वैदिक काल में पुरोहित जिस समय अग्नि प्रज्वलित करते थे, उस समय अपने ऋषि-पूर्वजों का नाम लेते थे। आगे चलकर एक ऋषि का आह्वान करके यज्ञ करने वाले व्यक्ति परस्पर एक-दूसरे को संबंधी समझने लगे। यह सत्य है कि ये संबंध धार्मिक भावना पर आधारित थे, परंतु इस पर भी वे अपने को एक वंश का सदस्य समझने लगे। ये सभी सदस्य प्रवर माने जाने लगे और उनमे आपस में विवाह संबंध का निषेध हो गया।

47.

यह कथन किसका है ‘धर्म आध्यात्मिक शक्तियों पर विश्वास है?(क) मैकाइवर(ख) डेविस(ग) पैरेटो(घ) टॉयलर

Answer»

सही विकल्प है (घ) टॉयलर

48.

बहिर्विवाह निषेध के अंतर्गत निषेध लिखिए-(क) जाति(ख) गाँव(ग) गोत्र(घ) प्रजाति

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सही विकल्प है (ग) गोत्र

49.

वर्तमान समय में हिंदू विवाह का सबसे प्रचलित प्रकार लिखिए(क) ब्राह्म विवाह(ख) दैव विवाह(ग) गांधर्व विवाह(घ) राक्षस विवाह

Answer»

सही विकल्प है (क) ब्राह्म विवाह

50.

अंतर्विवाह का नियम है-(क) अपनी जाति के बाहर विवाह(ख) अपनी जाति में विवाह(ग) एक-विवाह(घ) बिना दहेज विवाह

Answer»

सही विकल्प है (ख) अपनी जाति में विवाह