Explore topic-wise InterviewSolutions in .

This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.

1.

‘तुमुल’ के आधार पर ‘मकराक्ष-वध’ नामक चतुर्थ सर्ग के कथानक का सारांश लिखिए।

Answer»

चतुर्थ सर्ग (मकराक्ष-वध) इस सर्ग में ‘मकराक्ष के वध’ की कथा और रावण द्वारा मेघनाद की शौर्य-गाथा वर्णित है। राम से युद्ध करते हुए संग्राम में मकराक्ष मारा गया था। उसके मारे जाने के बाद अन्य राक्षस युद्ध-स्थल छोड़कर भाग खड़े हुए। इससे रावण  बहुत भयभीत और चिन्तित हुआ। उसी समय उसे महाबली मेघनाद का स्मरण आता है; क्योंकि मेघनाद भी उसके समान ही पराक्रमी और वीर था तथा युद्ध में राम और लक्ष्मण से निपटने में समर्थ था।

2.

‘तुमुल’ खण्डकाव्य के तृतीय सर्ग को कथानक लिखिए।

Answer»

तृतीय सर्ग (मेघनाद)

इस सर्ग में रावण के पराक्रमी पुत्र मेघनाद के व्यक्तित्व का वर्णन किया गया है। वह अत्यन्त संयमी, धीर, पराक्रमी, उदार और शीलवान था। उसने इन्द्र के पुत्र जयन्त को पराजित कर दिया था। युद्ध में उसके सामने टिकने का किसी में साहस न था।

3.

‘तुमुलखण्डकाव्य के द्वितीय सर्ग की कथावस्तु अपने शब्दों में लिखिए।

Answer»

द्वितीय सर्ग (दशरथ-पुत्रों का जन्म एवं बाल्यकाल)

इस सर्ग में कवि ने राजा दशरथ के चार पुत्रों के जन्म एवं बाल्यकाल का वर्णन किया है। राजा दशरथ के राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न चार पुत्र उत्पन्न हुए। इन भाइयों में परस्पर प्रगाढ़ प्रेम था। इनके बचपन की लीलाएँ राजमहल की शोभा को द्विगुणित कर देती हैं। राम एवं लक्ष्मण का जन्म राक्षसों के विनाश एवं साधु-सन्तों को अभयदान देने के लिए ही हुआ था। राम के छोटे भाई लक्ष्मण, नीतिज्ञ, ज्ञानी, गुणवान्, सच्चरित्र और उदार थे। वे शेषनाग के  अवतार एवं पृथ्वी के आधार थे। इक्ष्वाकु वंश के महाराज दशरथ का यश संसार के कोने-कोने में फैला है। वे कर्तव्यपरायण, दानवीर तथा युद्ध विद्या में पारंगत हैं। युद्ध विद्या में उनकी समानता करने वाला कोई नहीं था। राजा दशरथ नीतिज्ञ, सुख-शान्ति में विश्वास रखने वाले तथा सच्चरित्र थे।

4.

‘तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर ‘मेघनाद-प्रतिज्ञा’ नामक षष्ठ सर्ग का सारांश लिखिए।या‘तुमुल’ खण्डकाव्य के ‘मेघनाद-प्रतिज्ञा’ सर्ग की कथा अपने शब्दों में लिखिए।

Answer»

षष्ठ सर्ग (मेघनाद-प्रतिज्ञा) इस सर्ग में मेघनाद सिंहनाद करता हुआ युद्ध में विजयी होने की प्रतिज्ञा करता है। मेघनाद के गर्जन से पूरा स्वर्ण-महल हिल उठता है। वह अपने पिता को आश्वस्त करता हुआ कहता है कि हे पिता! मेरे होते हुए आप किसी भी प्रकार का शोक न करें। मैं अधिक न कहकर केवल इतना कहता हूँ कि यदि मैं आपके कष्ट को दूर न कर सकें तो मैं कभी धनुष को हाथ भी नहीं लगाऊँगा। मैं राम के सम्मुख होकर  युद्ध करूंगा और लक्ष्मण की शक्ति को भी देख लूंगा। यदि शत्रु आकाश में भी वास करने लगे अथवा पाताल में भी जाकर छिप जाये. तो भी उसके प्राणों की रक्षा न हो सकेगी। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैं अवश्य ही विजयश्री को प्राप्त करूंगा। यदि मैं युद्ध में विजयी न हुआ तो कभी जीवन में युद्ध का नाम न लूंगा।

5.

तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर मेघनाद-लक्ष्मण युद्ध का वर्णन कीजिए।या‘तुमुल’ खण्डकाव्य के ‘लक्ष्मण-मेघनाद युद्ध’ तथा ‘लक्ष्मण की मूच्र्छा’ नामक नवम सर्ग की कथा संक्षेप में लिखिए।या‘तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर मेघनाद की वीरता का वर्णन कीजिए।या‘तुमुल’ खण्डकाव्य के किसी एक सर्ग की कथावस्तु अपने शब्दों में लिखिए।या‘तुमुल’ खण्डकाव्य के नवम् सर्ग का सारांश लिखिए।

Answer»

नवम सर्ग (लक्ष्मण-मेघनाद युद्ध तथा लक्ष्मण की मूच्र्छा) | इस सर्ग में लक्ष्मण-मेघनाद युद्ध और लक्ष्मण के मूर्च्छित होने का वर्णन है। मेघनाद ने नम्र भाव से लक्ष्मण से कहा कि जो कुछ भी तुमने कहा है, मैं उसे सत्य ही मानता हूँ; क्योंकि तुम नीतिज्ञ हो तथा सर्वज्ञ भी हो। तुम्हारी अवस्था देखकर मैं भी तुमसे युद्ध करना नहीं चाहता, फिर भी आज मैं विवश हूँ; क्योंकि मैं अपने पिता से यह प्रतिज्ञा करके आया हूँ कि युद्ध में समस्त शत्रुओं का संहार करूंगा। तुम्हारी इच्छा लड़ने । की हो या न हो, तुम मेरी प्रतिज्ञा को सफल करने में मेरी सहायता करो। मैं बिना लड़े यहाँ से नहीं जाऊँगा, अतः युद्ध के लिए तैयार हो जाओ। यह सुनकर लक्ष्मण क्रुद्ध हो गये। उनके क्रोध को देखकर सम्पूर्ण संसार थर्राने लगी। उन्होंने मेघनाद से कहा-अरे अधम! मैंने तुमसे अपने मन का भाव न जाने क्यों कह दिया।  जिस प्रकार दूध पीने पर भी सर्प अपना विष नहीं त्यागते, उसी प्रकार यह सत्य ही है कि मधुर वाणी से दुष्टजन कभी नहीं सुधरते। उनके क्रोधयुक्त वचनों को सुनकर मेघनाद हँस पड़ा। मेघनाद के हँसने पर मानो लक्ष्मण के क्रोध की अग्नि में घी पड़ गया। दोनों ओर से भयंकर युद्ध होने लगा। लक्ष्मण के भीषण प्रहारों से मेघनाद की सेना के छक्के छूट गये। भागते हुए सैनिकों को रोककर उनका उत्साह बढ़ाते हुए मेघनाद ने कहा कि मेरे युद्ध-कौशल को भी देखो। मैं शीघ्र ही इनको परास्त कर दूंगा। मैंने पिता के सम्मुख जो प्रतिज्ञा की है, उसे पूरा करूंगा।’ इसके बाद मेघनाद ने भीषण युद्ध किया और लक्ष्मण के द्वारा छोड़े गये सभी बाणों को नष्ट कर दिया। दोनों वीर सिंह के समान लड़ रहे थे। दोनों के शरीर रक्त से लथपथ थे। लक्ष्मण को कुछ शिथिल देखकर मेघनाद ने उन पर ‘शक्ति-बाण’ का प्रयोग कर दिया, जिससे लक्ष्मण मूर्च्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। पृथ्वी पर मूर्च्छित पड़े लक्ष्मण को देखकर मेघनाद सिंह-गर्जना करता हुआ और भागती हुई कपि सेना को मारता हुआ लंका की ओर चल पड़ा।

6.

‘तुमुल’ के ‘युद्धासन्न सौमित्र’ नामक अष्टम सर्ग का सारांश लिखिए।

Answer»

अष्टम सर्ग (युद्धासन्न सौमित्र)

इस सर्ग में युद्ध के लिए प्रस्तुते लक्ष्मण का चित्रण है। मेघनाद की रण-गर्जना सुनकर शत्रु सेना भी भयंकर नाद करने लगी। राम की आज्ञा लेकर लक्ष्मण भी युद्ध के लिए तैयार होने लगे। युद्धातुर लक्ष्मण को देखकर हनुमान आदि वीर भी युद्ध हेतु तत्पर हो गये। लक्ष्मण ने क्षण भर में ही मेघनाद के सम्मुख मोर्चा ले लिया। दोनों वीरों में से कौन विजयी होगा, इसका अनुमान नहीं किया जा सकता था। मेघनाद के उन्नत ललाट, लम्बी भुजाओं और वीरवेश को देखकर स्वयं लक्ष्मण उसकी प्रशंसा करने लगे। लक्ष्मण ने कहा कि तुम्हें अपने सामने देखकर भी युद्ध करने की इच्छा नहीं होती। मुझे चिन्ता है कि मैं अपने बाणों से तेरी छाती को कैसे छलनी करूंगा? मेघनाद लक्ष्मण के मुख से अपनी प्रशंसा सुनकर उंनकी उदारता के विषय में विचार करने लगा। यद्यपि वह लक्ष्मण के ज्ञान की गरिमा को समझता है, फिर भी शत्रु समझकर उनकी मधुर  वाणी के जाल में उलझना नहीं चाहता और युद्ध करने की ठानता है।

7.

‘तुमुल’ खण्डकाव्य के ‘मेघनाद-अभियान’ सर्ग का सारांश लिखिए।

Answer»

सप्तम सर्ग (मेघनाद का अभियान)

इस सर्ग में मेघनाद के युद्ध के लिए प्रस्थान करने का वर्णन है। रावण के सम्मुख प्रतिज्ञा करके मेघनाद जब युद्धक्षेत्र की ओर चलने लगा तो देवलोक के सभी देवता भय से काँपने लगे। उस समय मेघनाद का मुख क्रोध से लाल हो गया था। उसकी हुंकार से बड़े-बड़े धैर्यशाली वीरों का साहस छूटने लगा। सेनापति मेघनाद के क्रोध का कारण पूछने लगे। मेघनाद ने युद्ध का रथ सजवाया तथा युद्ध के वाद्य बजाने का आदेश दिया तो पवन भयभीत हो गया, पर्वत काँपने लगा, पृथ्वी शोकाकुल हो गयी और सूर्य त्रस्त हो गया। युद्ध हेतु प्रस्थान करने से पूर्व मेघनाद ने यज्ञ किया और उसके बाद रथ पर बैठकर शत्रुओं से लोहा लेने  चल पड़ा। उसकी शक्ति का अनुमान करके देवता आपस में विचार करने लगे कि अब मेघनाद के सम्मुख राम-लक्ष्मण के प्राण कैसे बच सकेंगे? देवता चिन्तित होकर बातचीत कर ही रहे थे कि मेघनाद ने रणभूमि में पहुँचकर सिंह की तरह गर्जना की।

8.

‘तुमुल’ के आधार पर रावण का आदेश’ नामक पञ्चम सर्ग का सारांश लिखिए।

Answer»

पञ्चम सर्ग (रावण का आदेश)। इस सर्ग में रावण मेघनाद को बुलाकर मकराक्ष की मृत्यु का बदला लेने का आदेश देता है। इसी सर्ग में रावण मेघनाद के अतुल शौर्य का वर्णन करता है तथा उसकी अजेय शक्ति के सम्मुख वह मकराक्ष की मृत्यु की भी भूल जाता है। रावण को अत्यधिक चिन्तित जानकर मेघनाद उसके पास आता है और उसके चरण-स्पर्श कर विनम्रभाव से बैठ जाता है। उसके तेज से सारा सदन प्रकाशित हो रहा है। रावण बड़ी कठिनता से मेघनाद के सम्मुख अपनी व्यथा प्रकट करता हुआ कहता है कि हे पुत्र! सम्पूर्ण राज्य में युद्ध के भय से हलचल मची हुई है। हमें युद्ध से किसी प्रकार भी भयभीत नहीं होना है। राम से बदला न लेने में हमारी कायरता है। इसलिए मेरा आदेश है कि तुम युद्ध में लक्ष्मण को मृत्यु की गोद में सुला दो और राम को अपना बल दिखा दो। इसके पश्चात् रावण मेघनाद के शौर्य की प्रशंसा करते हुए उसे युद्ध के लिए भेज देता है और कहता है कि मकराक्ष का बदला युद्ध में जीत के साथ लेना चाहिए और वानर-सेना को बाणों से बांध देना चाहिए।

9.

‘तुमुल’ खण्डकाव्य के प्रथम सर्ग की कथावस्तु अपने शब्दों में लिखिए।

Answer»

प्रथम सर्ग (ईश-स्तवन) इस सर्ग में कवि ने मंगलाचरण के रूप में ईश्वर की स्तुति की है, जिसमें निराकार, निर्गुण और सर्वशक्तिमान ईश्वर की सर्वव्यापकता पर प्रकाश डाला गया है।

10.

तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर हनुमान द्वारा दिये गयें उपदेश का वर्णन कीजिए।

Answer»

दशम सर्ग (हनुमान द्वारा उपदेश) इस सर्ग में हनुमान द्वारा दु:खी वानरों को समझाने का वर्णन है। लक्ष्मण के शक्ति-बाण लगने और उनके मूर्च्छित होने से देवताओं में खलबली मच गयी। वानर सेना अत्यधिक व्याकुल हो विलाप करने लगी। हनुमान ने वानरों को समझाया कि लक्ष्मण अचेत हुए हैं। वीरों को विलाप करना उचित नहीं होता। शोक को त्यागकर बदला लेने के लिए तैयार हो जाओ। जिसके रक्षक राम हैं उसका संसार में कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। तुम्हारी व्याकुल दशा को देखकर शत्रु तुम्हारा उपहास करेंगे। हनुमान के उपदेश का सभी पर प्रभाव पड़ा और वे शोकरहित हो गये। दूसरी ओर कुटी में बैठे हुए श्रीराम  का मन कुछ उदास था। उसी समय कुछ अपशकुन होने लगे, जिससे राम चिन्तित हो गये।

11.

‘तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर नायक अथवा प्रधान पात्र लक्ष्मण का चरित्र-चित्रण कीजिए।या‘तुमुल’ खण्डकाव्य का नायक कौन है ? उसकी चारित्रिक विशेषताएँ बताइए।या‘तुमुल’ खण्डकाव्य के आधार पर लक्ष्मण के चरित्र की किन्हीं तीन विशेषताओं; सौन्दर्य शील और शक्ति का वर्णन कीजिए।या“तुमूल’ खण्डकाव्य के नायक और प्रतिनायक के नाम बताइए तथा उनके चरित्र की दोदो विशेषताएँ भी लिखिए। ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के नायक की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।या‘तुमुल खण्डकाव्य के आधार पर नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए।

Answer»

वीर रस के प्रसिद्ध कवि श्री श्यामनारायण पाण्डेय द्वारा रचित ‘तुमुल’ खण्डकाव्य का नायक लक्ष्मण को माना जा सकता है। प्रस्तुत काव्य में लक्ष्मण और मेघनाद के युद्ध का वर्णन है। कवि ने लक्ष्मण के तेजस्वी चरित्र-व्यक्तित्व को अपने काव्य का केन्द्रबिन्दु बनाया है।

इस खण्डकाव्य से लक्ष्मण के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ स्पष्ट होती हैं|

(1) नायक-लक्ष्मण ‘तुमुल’ खण्डकाव्य के नायक हैं। वे राम के छोटे भाई एवं रघुकुल के प्रदीप हैं। उनमें नायकोचित वीरता, धीरता और उदारता है। वे मेघनाद के ललकारने पर युद्ध करते हैं। यद्यपि पहले वे मेघनाद के शक्ति-प्रहार से मूर्च्छित हो जाते हैं, परन्तु अन्त में विजय उन्हीं की होती है।

(2) अद्वितीय सौन्दर्यशाली-लक्ष्मण दशरथ के पुत्र और राम के छोटे भाई हैं।  उनके व्यक्तित्व में तेजस्विता, सहज कोमलता एवं स्वभाव में नम्रता है। उनके अधरों पर सहज मुस्कान खेलती है। मेघनाद भी उन्हें ‘लावण्ययुक्त ब्रह्मचारी’ कहकर सम्बोधित करता है

लावण्यधारी ब्रह्मचारी, आप बुद्धि निधान हैं।
संसार में अत्यन्त वीर, पराक्रमी महान् हैं।

सभी लक्ष्मण के सौन्दर्य को देखते ही रह जाते हैं। वे जब बोलते हैं तो अत्यन्त मधुर तथा कर्णप्रिय संगीत कानों में घोल देते हैं। कवि उनके सौन्दर्य की प्रशंसा इस प्रकार करते हैं-

थी बोल में सुन्दर सुधा, उर में दया का वास था।
था तेज में सूरज, हँसी में चाँद का उपहास था।

(3) अतुलनीय शक्तिसम्पन्न-लक्ष्मण अत्यन्त विनयशील वीर हैं। वे शत्रु के ललकारने पर युद्ध करने से पीछे नहीं हटते। वे केवल शक्तिसम्पन्न ही नहीं हैं, वरन् वीरों के प्रशंसक भी हैं। उन्होंने मेघनाद के सौन्दर्य, शौर्य एवं तेज की प्रशंसा भी की है। उन्होंने संकल्प करके जिससे भी युद्ध किया, उसे युद्ध में परास्त ही किया-

रण ठानकर जिससे भिड़े, उससे विजय पायी सदा।
संग्राम में अपनी ध्वजा, सानन्द फहरायी सदा ॥

जब मेघनाद उनकी बातें सुनकर हँस पड़ता है, तब उनकी क्रोधाग्नि में मानो घी पड़ जाता है। युद्ध में उनके प्रलयंकारी रूप को देखिए-

आकाश को अपने निशित नाराच से भरने लगे।
उस काल देवों के सहित देवेन्द्र भी डरने लगे।

शत्रु के मनोभावों को भली-भाँति पहचानने में लक्ष्मण अत्यन्त कुशल हैं। युद्ध में मेघनाद की गर्वोक्ति को सुनकर वे कहते हैं-

सच है सुधामय भारती से, खल सुधरते हैं नहीं।
क्या क्षीर पीने पर फणी, विष त्याग देते हैं कहीं।

(4) विनम्र और शीलवान्–बाल्यकाल से ही लक्ष्मण दयालु एवं उदार हैं। उनका अन्त:करण भी सरल, शुद्ध तथा कोमल है। वे अपने भाई राम के प्रति अटूट श्रद्धा रखते हैं। उनके चरित्र में कृत्रिमता नहीं है। वे युद्धभूमि में अपने शत्रु मेघनाद के सौन्दर्य और ओज को  देखकर मुग्ध होकर दयार्द्र हो जाते हैं-

आके, आँखों से तुझे देख के तो, इच्छा होती युद्ध की ही नहीं है।
कैसे तेरे साथ में मैं लडूंगा, कैसे बाणों से तुझे मैं हतूंगा ॥

लक्ष्मण के हृदय में कोमलता है। नि:शस्त्र मेघनाद को यज्ञ करते देखकर उनका हृदय द्रवित हो जाता है।।

(5) शत्रुओं को परास्त करने वाले–लक्ष्मण अपने पराक्रम से, अपने बाहुबल से और अपने युद्धकौशल से शत्रु पर विजय प्राप्त करते हैं। यद्यपि वे यज्ञ-भूमि में नि:शस्त्र मेघनाद का वध करते हैं, परन्तु मेघनाद को मारने की शक्ति भी केवल उन्हीं में थी। राम उनकी पीठ ठोंकते हुए कहते हैं-
मैं जानता था तुम्हीं मार सकते हो मेघनाद को।

(6) मानवीय गुणों के भण्डार-लक्ष्मण के व्यक्तित्व में मानवीय गुण विशेष रूप से भरे पड़े हैं। कवि के शब्दों में-

निशि दिन क्षमा में क्षिति बसी, गम्भीरता में सिन्धु था।
था धीरता में अद्रि, यश में खेलता शरदिन्दु था॥
थी बोल में सुन्दर सुधा, उर में दया का वास था।
था तेज में सूरज, हँसी में चाँद का उपहास था।

इस प्रकार कहा जा सकता है कि लक्ष्मण परम शीलवान, विनम्र, पराक्रमी, अतुल शक्तिसम्पन्न  एवं अजेय योद्धा थे। वस्तुतः नायक होने के लिए जितने भी गुण किसी व्यक्ति में होने चाहिए, वे सभी गुण लक्ष्मण में मौजूद हैं। वे ‘तुमुल खण्डकाव्य के नायक एवं मानवमात्र के लिए आदर्श हैं।