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| 1. | अजन्ता गाँव से थोड़ी दूर पर पहाड़ों के पैरों में साँप-सी लोटती बाधुर नदी कमान-सी मुड़ गयी है। वहीं पर्वत का सिलसिला एकाएक अर्द्धचन्द्राकार हो गया है, कोई दो-सौ पचास फुट ऊँचा हरे वनों के बीच मंच पर मंच की तरह उठते पहाड़ों का यह सिलसिला हमारे पुरखों को भा गया और उन्होंने उसे खोदकर भवनों-महलों से भर दिया। सोचिए, जरा ठोस पहाड़ की चट्टानी छाती और कमजोर इंसान का उन्होंने मेल जो किया, तो पर्वत का हिया दरकता चला गया और वहाँ एक-से-एक बरामदे, हॉल और मन्दिर बनते चले गये।(अ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।(ब) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।(स)⦁ प्रस्तुत गद्यांश में लेखक क्या कहना चाहता है ?⦁ अजन्ता की भौगोलिक स्थिति का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।[ अर्द्धचन्द्राकार = आधे चन्द्रमा के आकार का। पुरखे = पूर्वज। भा गया = अच्छा लगा।] | 
| Answer» (अ) प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘गद्य-खण्ड’ में संकलित तथा भारतीय पुरातत्त्व के महान् विद्वान् श्री भगवतशरण उपाध्याय द्वारा लिखित ‘अजन्ता’ शीर्षक निबन्ध से उद्धृत है। अथवा निम्नवत् लिखेंपाठ का नाम-अजन्ता। लेखक का नाम—भगवतशरण उपाध्याय। (ब) रेखांकित अंश की व्याख्या-लेखक श्री भगवतशरण उपाध्याय जी का कहना है कि दो-सौ पचास फुट ऊँचे पर्वतों की अर्द्धचन्द्राकार पंक्ति हमारे पूर्वजों को बहुत अच्छी लगी और उन्होंने वहाँ पर्वतों को काट-छाँटकर भवन और महल बना दिये। विचार करके देखिए कि दुर्बल मनुष्य और कठोर चट्टानों का जो मेल हुआ उससे पर्वतों का हृदय कटता चला गया और वहाँ एक-से-एक सुन्दर बरामदे, हॉल और मन्दिरों का निर्माण होता चला गया। मनुष्य के दुर्बल हाथों ने पर्वतों की कठोर चट्टानों को काटकर सुन्दर भवन, उनके विभिन्न भाग और मन्दिरों का निर्माण कर डाला। (स) | |