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पहले पहाड़ काटकर उसे खोखला कर दिया गया, फिर उसमें सुन्दर भवन बना लिए गए, जहाँ खंभों पर उमादी मूरतें विहँस उठीं। भीतर की समूची दीवारें और छतें रगड़कर चिकनी कर ली गयीं और तब उनकी जमीन पर चित्रों की एक दुनिया ही बसा दी गयी। पहले पलस्तर लगाकर आचार्यों ने उन पर लहराती रेखाओं में चित्रों की काया सिरज दी, फिर उनके चेले कलावन्तों ने उनमें रंग भरकर प्राण फेंक दिए। फिर तो दीवारें उमग उठीं, पहाड़ पुलकित हो उठे।(अ) प्रस्तुत गद्यांश का सन्दर्भ (पाठ और लेखक का नाम) लिखिए।(ब) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।(स) पहाड़ों को किस प्रकार जीवन्त बनाया गया?[ मूरतें = मूर्तियाँ। विहँस = मुसकराना, खिलना। सिरजना = बनाना। कलावन्तों = कलाकारों। प्राण फेंक देना = जीवन्त बना देना।]

Answer»

(अ) प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘गद्य-खण्ड’ में संकलित तथा भारतीय पुरातत्त्व के महान् विद्वान् श्री भगवतशरण उपाध्याय द्वारा लिखित ‘अजन्ता’ शीर्षक निबन्ध से उद्धृत है। अथवा निम्नवत् लिखेंपाठ का नाम-अजन्ता। लेखक का नाम—भगवतशरण उपाध्याय।

(ब) प्रथम रेखांकित अंश की व्याख्या-प्रस्तुत गद्यांश में लेखक कहते हैं कि सर्वप्रथम गुफाओं के अन्दर की दीवारों और छतों को रगड़-रगड़कर अत्यधिक चिकना बना लिया गया। तत्पश्चात् उस चिकनी पृष्ठभूमि पर चित्रकारों के द्वारा अनेकानेक चित्र  बना दिये गये, जिनको देखकर ऐसा लगता है। कि चित्रों की एक नयी दुनिया ही निर्मित कर दी गयी हो।।
द्वितीय रेखांकित अंश की व्याख्या–प्रस्तुत गद्यांश में लेखक का कहना है कि गुफा की भीतरी दीवारों पर चित्रकारों के द्वारा विभिन्न चित्रों को बाहरी रेखाओं के द्वारा प्रदर्शित किया गया और उसके बाद उनके शिष्यों ने उन चित्रों को रँगकर ऐसा बना दिया कि वे सजीव लगने लगे।

(स) पहाड़ों को काटकर भवन का रूप दिया गया। दीवारों, छतों और खम्भों को चिकना कर उन पर सजीव चित्र निर्मित किये गये। चित्रों में रंग भी भरा गया। इस प्रकार पहाड़ों को जीवन्त बना दिया गया।



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