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| 1. | कितना जीवन बरस पड़ा है इन दीवारों पर; जैसे फसाने अजायब का भण्डार खुल पड़ा हो। कहानी से कहानी टकराती चली गयी है। बन्दरों की कहानी, हाथियों की कहानी, हिरनों की कहानी, क्रूरता और भय की, दया और त्याग की। जहाँ बेरहमी है, वहीं दया का भी समुद्र उमड़ पड़ा है। जहाँ पाप है, वहीं क्षमा की सोता फूट पड़ा है। राजा और कैंगले, विलासी और भिक्षु, नर और नारी, मनुष्य और पशु सभी कलाकारों के हाथों सिरजते चले गये हैं। हैवान की हैवानी को इंसान की इंसानियत से कैसे जीता जा सकता है, कोई अजन्ता में जाकर देखे। बुद्ध का जीवन हजार धाराओं में होकर बहता है। जन्म से लेकर निर्वाण तक उनके जीवन की प्रधान घटनाएँ कुछ ऐसे लिख दी गयी हैं कि आँखें अटक जाती हैं, हटने का नाम नहीं लेतीं।(अ) प्रस्तुत गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।(ब) रेखांकित अंशों की व्याख्या कीजिए।(स)⦁ अजन्ता की दीवारों पर किनकी कहानियाँ चित्रित हैं ?⦁ अजन्ता की गुफाओं में किस महापुरुष के जीवन को विस्तार से चित्रित किया गया है?⦁ अजन्ता की गुफाओं में किन-किन विरोधी भावों और व्यक्तियों का चित्रण है ? या दीवारों पर बने चित्र किन-किन से सम्बन्धित हैं ?⦁ कलाकारों के हाथों क्या सिरजते चले गये हैं?[ फसाने = कहानियाँ। बेरहमी = निर्दयता। सिरजना = बनाना। हैवान = क्रूर। हैवानी = क्रूरता। इंसान = मनुष्य। इंसानियत = मानवता।] | 
| Answer» (अ) प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘गद्य-खण्ड’ में संकलित तथा भारतीय पुरातत्त्व के महान् विद्वान् श्री भगवतशरण उपाध्याय द्वारा लिखित ‘अजन्ता’ शीर्षक निबन्ध से उद्धृत है। अथवा निम्नवत् लिखेंपाठ का नाम-अजन्ता। लेखक का नाम—भगवतशरण उपाध्याय। (ब) प्रथम रेखांकित अंश की व्याख्या–प्रस्तुत गद्यांश में लेखक कहते हैं कि अजन्ता की गुफाओं की दीवारों पर बने चित्र इतने सुन्दर हैं कि उन्हें देखकर लगता है कि इन दीवारों पर मानो जीवन स्वयं ही उतर आया है। अजन्ता के इन भित्ति-चित्रों में आश्चर्यजनक कथा-कहानियाँ एक-दूसरे से जुड़ती हुई चली गयी हैं। इन्हें देखकर ऐसा लगता है कि आश्चर्यजनक कथाओं का एक विशाल भण्डार ही यहाँ स्थित है। बन्दरों, हाथियों और हिरणों की चित्र-कथाओं द्वारा क्रूरता, भय, दया और त्याग की भावनाओं का यहाँ सजीव चित्रण हुआ है। किसी चित्र में क्रूरता है तो किसी में असीम दया की कहानी चित्रित है। कहीं पाप का दृश्य अंकित है तो कहीं क्षमा का भी दृश्य है। द्वितीय रेखांकित अंश की व्याख्या-श्री भगवतशरण उपाध्याय जी का कहना है कि अजन्ता की गुफाओं में राजा हो या दरिद्र, विलासी हो या भिखारी, पुरुष हो या स्त्री, मनुष्य हो या पशु कलाकारों ने इन सभी के चित्रों में रंग-रेखाओं के द्वारा जीवन भर दिया है और यह भाव व्यक्त किया है कि ‘असाधु साधुना जयेत्’ अर्थात् दुष्ट को सज्जनता से जीतना चाहिए, क्योंकि मानवता के सामने हैवानियत नतमस्तक हो जाती है। अजन्ता की गुफाओं में बने ऐसे चित्रों को देखकर कोई भी व्यक्ति सत्प्रेरणा ग्रहण कर सकता है। (स) | |