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‘जवानी’ कविता का सौन्दर्य उसकी फड़कती ओजपूर्ण शब्द-शैली में प्रस्फुटित हुआ है। कविता से उदाहरण देते हुए इस कथन की पुष्टि कीजिए।

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‘जवानी’ कविता का वास्तविक सौन्दर्य उसकी ओजपूर्ण शब्द-शैली में ही प्रस्फुटित हुआ है। शब्दों का आघात इतना तीव्र है कि निष्प्राण-सा व्यक्ति भी उत्साह में आकर कुछ कर गुजरने के लिए तत्पर हो जाये।

निम्नलिखित पंक्तियाँ भला किसकी रगों  में उत्साह का संचार नहीं कर सकतीं-

⦁    दो हथेली हैं कि पृथ्वी गोल कर दें ?
⦁    री मरण के मोल की चढ़ती जवानी !
⦁    धरा ? यह तरबूज है दो फाँक कर दे।
⦁    लाल चेहरा है नहीं–पर लाल किसके ?
⦁    खून हो जाये न तेरा देख, पानी।



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