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| 1. | ‘कर्मवीर भरत’ के द्वितीय सर्ग अथवा राजभवन सर्ग की कथा संक्षेप में लिखिए।या‘कर्मवीर भरत’ खण्डकाव्य के दूसरे सर्ग में कैकेयी द्वारा राम को वन भेजने के कौन-से कारण प्रस्तुत किये गये हैं ? उन्हें स्पष्ट कीजिए।या‘कर्मवीर भरत खण्डकाव्य के द्वितीय सर्ग ‘राजभवन में वर्णित घटनाओं पर प्रकाश डालिए। | 
| Answer» कर्मवीर भरत के राजभवन’ नामक द्वितीय सर्ग में कैकेयी द्वारा राम को वन भेजने का कारण एवं भरत की आत्मग्लानि व्यक्त हुई है। कैकेयी ने भरत को देखकर प्रेम से गले लगाया और अपने मातापिता का कुशलक्षेम पूछा। भरत उनके पितृ-गृह का कुशलक्षेम बताकर उनसे अयोध्यापुरी की विकलती को कारण पूछते हैं। | दशरथ की मृत्यु का कारण-कैकेयी ने भरत को बताया कि राम अयोध्या में रहकर युगों से अभिशप्त व अभावों से पूर्ण वनवासियों की रक्षा न कर सकेंगे; अत: तुम्हारे पिता से तुम्हारे लिए अयोध्या को राज्य माँगकर और राम को वन में भेजकर मैंने अपनी राजनीतिक सूझ-बूझ का परिचय दिया था, लेकिन तुम्हारे पिता ने तुमको अयोध्या का राज्य देने की मेरी पहली बात तो मान ली, परन्तु राम-वन-गमन की दूसरी माँग सुनकर प्राण-त्याग दिये। राम को वन भेजने के कारण-कैकेयी कहती है कि यद्यपि लोग मुझे नीच, झूमर और स्वार्थी कहकर कलंकित करेंगे, परन्तु मैंने जन-जीवन को सुखमय बनाने के लिए ही राम को धम भेजने का वर माँगा था। राम में पौरुष और प्रतिभा है तथा मानवमात्र का कल्याण करने की उदात्त भावना है। उन्हें सिंहासन का मोह नहीं है, यही सोचकर मैंने असभ्य, अशिक्षित एवं अभावग्रस्त वनवासियों के कल्याण हेतु राम को चौदह वर्ष के लिए वन भेजने का वर माँगा था। यह सुनकर तुम्हारे सत्यनिष्ठ पिता ने अपने प्राण त्याग दिये। जब मैंने पाषाण-हृदय बनकर, ममता को त्यागकर राम को उनके वनवास की बात बतायी तो वे प्रसन्न होकर, वल्कल पहनकर सीता और लक्ष्मण के साथ तत्काल वन को चल दिये। भरत को शोक-अपनी माता के मुख से यह करुण कहानी सुनकर भरत स्तब्ध रह गये और उनके नेत्रों से अश्रुधारा प्रवाहित होने लगी। वे ‘हाय पिता! हाय राम!’ कहकर भूमि पर गिर पड़े तथा खिन्न होकर अपने आभूषण उतार फेंके। अपने हाथों से घर में आग लगाने वाली अपनी माता की नीति उन्हें अच्छी न लगी। तीनों लोकों में उन्हें ऐसी रानी नहीं दिखाई पड़ी, जिसने एक साथ अपने पति को मृत्युलोक और पुत्र को वन भेज दिया हो। भरत ने कैकेयी से कहा-“तुम्हारे द्वारा मेरे लिए राज्य माँगने के पीछे सभी लोग उसे मेरी ही इच्छा बताएँगे। हमारे वंश में बड़े पुत्र का राजतिलक होने की परम्परा है। यदि तुम चारों पुत्रों को वन में भेज देतीं तो तुम्हारा त्याग अमर हो जाता। तुम भरत को राज्य दिलाकर और राम को वन में भिजवाकर अपने कार्य-कौशल व बुद्धिमत्ता की दुहाई दे रही हो।” राम में अलौकिक शक्ति-अन्त में कैकेयी ने समझाया कि तुम राम की असीम शक्ति पर विचार न करके मात्र वन की भयंकरता से डर रहे हो। उन्होंने वीर क्षत्राणी का पय-पान किया है; विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा के लिए सुबाहु और ताड़का जैसे राक्षसों का वध किया है तथा जनकपुर में रावण के गर्व को चूर कर और सीता का वरण करके अपनी शक्ति की महिमा स्थापित की है। अत: तुम शोक न करके जनहित के कार्य में लग जाओ। अपनी नीति-कुशल माता की बुद्धि भ्रष्ट हुई जान मन में शोक का भार लिये भरत शत्रुघ्न के साथ कौशल्या माता से मिलने के लिए चले जाते हैं। | |