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‘कर्मवीर भरत’ खण्डकाव्य के नायक (प्रमुख पात्र) के अतिरिक्त किस पात्र के चारित्रिक गुणों से आप प्रभावित हैं ? उन गुणों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।या‘कर्मवीर भरत’ खण्डकाव्य के आधार पर राम के चरित्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।या‘कर्मवीर भरत’ खण्डकाव्य के किसी प्रमुख पात्र का चरित्रांकन कीजिए।

Answer»

कर्मवीर भरत’ खण्डकाव्य के राम, मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। उनका चरित्र-चित्रण अन्तिम सर्ग में  हुआ है, किन्तु उससे पूर्व कैकेयी, सुमित्रों आदि के कथन भी उनके चरित्र पर प्रकाश डालते हैं।
 
(1) संकल्पवान् राम सिद्धान्तप्रिय हैं। वे एक बार जो संकल्प कर लेते हैं, उसे पूरा करके ही मानते हैं। इसीलिए वे भरत और परिजनों के अत्यधिक आग्रह करने पर भी अपने संकल्प से पीछे नहीं हटते और अयोध्या वापस नहीं लौटते। वे स्पष्ट रूप से कह देते हैं

क्षमा करें सब लोग, विवशता मेरे मन की,
अपनायी है कठिन राह मैंने जीवन की ।
इतना होने पर भी अब मैं पुर को जाऊँ ?
राज्य करू या पुत्रधर्म आदर्श मिटाऊँ ?

(2) संवेदनशील सिद्धान्तों के प्रति दृढ़ होते हुए भी वे भरत के शील और भक्ति के सम्मुख भाव-विह्वल हो जाते हैं। उनके मन में भरत के प्रति अपार प्रेम उमड़ रहा है। वे भरत के आग्रह से प्रसन्न होकर कह उठते हैं-

भाई जो भी कहो वही मैं आज करूंगा।
तुम कह दो तो अयश सिन्धु में कूद पड़ेंगा ॥

(3) मर्यादा पुरुषोत्तम-राम ने भरत की बात मानकर उन्हें अपनी खड़ाऊँ दे दी और सबको  ससम्मान विदा किया। उन्होंने कहीं भी मर्यादा की सीमा-रेखा नहीं लाँघी। वे रघुकुल की मान-मर्यादा की पूर्णत: रक्षा करते हैं तथा अपने माता-पिता व गुरुजनों की हर आज्ञा को शिरोधार्य करते हैं। उनके इन्हीं गुणों के कारण ननिहाल में भरत दूत से पूछते हैं-

रघुकुल के आदर्श जिन्हें लगते हैं प्यारे ।
कहो कुशल से तो हैं भ्राता राम हमारे।

(4) द्वेषभाव से रहित–यद्यपि राम को वन भेजने में कैकेयी का ही प्रमुख हाथ रहा है, फिर भी राम को कैकेयी के प्रति कहीं तनिक भी रोष नहीं है, अपितु वे कैकेयी की प्रशंसा करते हुए कहते हैं

माँ ने नारी को अमरत्व प्रदान किया है।
मोड़ा है इतिहास, नया आदर्श दिया है ।

(5) शक्ति-शील-सौन्दर्य समन्वित-राम शक्तिशाली होने के साथ-साथ शील और सौन्दर्य  से युक्त एक ऐसे महामानव हैं, जिन्होंने अपनी सारी शक्ति जन-सेवा के लिए ही समर्पित कर दी है, तभी तो . कैकेयी उनके सम्बन्ध में कहती है

राम हमारा शक्ति, शील, सौन्दर्य समन्वित
उसका जीवन ही जन-सेवा हेतु समर्पित।

(6) दीन-रक्षक और दुष्ट संहारक—राम दीन-हीन व्यक्तियों की सदैव सहायता करते हैं, उनकी रक्षा करते हैं। जहाँ वे असहायों की सहायता हेतु सदैव तत्पर रहते हैं वहीं दुष्टों के लिए वे काल के समान हैं। उनके इस रूप को कैकेयी निम्नलिखित शब्दों में व्यक्त करती है-

दुःखी जनों को देख नयन उनके भर आते,
देख दुष्ट को लाल वही लोचन हो जाते ॥

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि ‘कर्मवीर भरत’ खण्डकाव्य के राम एक आदर्श और  मर्यादापुरुषोत्तम चरित्र के धारक हैं।



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