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‘कर्मवीर भरत’ खण्डकाव्य की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए।या‘कर्मवीर भरत’ के कथानक का सारांश अथवा कथासार लिखिए।या‘कर्मवीर भरत’ खण्डकाव्य में वर्णित प्रमुख घटनाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।या‘कर्मवीर भरत’ की किसी प्रमुख घटना का उल्लेख कीजिए।

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कर्मवीर भरत खण्डकाव्य की कथावस्तु अत्यन्त रोचक तथा प्रेरणादायक है। इसका कथानक चिर-परिचित रामकाव्य का एक लघु, किन्तु महत्त्वपूर्ण अंश है। इसमें भरत को मानव-सेवा की साकार मूर्ति के रूप में प्रस्तुत कर कैकेयी के युग-युग से अभिशप्त रूप को उज्ज्वल मानवीय आदर्शों से सँवारा गया है।

इसकी प्रमुख घटनाएँ निम्नलिखित हैं

(1) आगमन-इसमें अयोध्या से दूत के ननिहाल पहुँचने से लेकर भरत के अयोध्या आने तक का वृत्तान्त वर्णित है और अयोध्या में व्याप्त शोकपूर्ण वातावरण के साथ-साथ तत्कालीन संस्कृति पर भी प्रकाश डाला गया है।

(2) राजभवन–इस सर्ग में भरत-कैकेयी मिलन के साथ-साथ  राम-वन-गमन की संक्षिप्त कथा के अतिरिक्त यह अभिव्यक्त किया गया है कि कैकेयी ने राम को जन-सेवा तथा व्यक्तित्व के विकास के लिए वन भेजा था किसी लोभ या कठोरता के कारण नहीं। सर्ग के अन्त में अपनी नीति-कुशल माता की बुद्धि भ्रष्ट हुई जानकर मन में शोक का भार लिए भरत, शत्रुघ्न के साथ कौशल्या माता से मिलने के लिए चले जाते हैं।

(3) कौशल्या-सुमित्रा मिलन-इस सर्ग में भरत माता कौशल्या और सुमित्रा से मिलते हैं और दोनों माताएँ उनकी आत्म-ग्लानि को दूर कर उन्हें सच्चे जीवन-पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं। सर्ग के अन्त में सुमित्रा भरत से कहती है कि “तुम अपने मन के क्षोभ का त्याग कर दो और हम सबके पथ-प्रदर्शक बनकर अपने कर्तव्य का निर्वाह करो।

(4) आदर्श वरण—इस सर्ग में गुरु वशिष्ठ भरत को संसार की नश्वरता के सम्बन्ध में बताते हुए कहते हैं कि इस जीवन के रंगमंच पर हम सभी अभिनय करते हैं। ईश्वर ही सूत्रधार तथा संचालक होता है। बाद में भरत पिता के भौतिक शरीर का दाह-संस्कार करके श्रद्धापूर्वक दान करते हैं। गुरु वशिष्ठ की उपस्थिति में एक सभा में सुमन्त भरत के राजतिलक का प्रस्ताव रखते हैं। अयोध्या के राजसिंहासन पर आरूढ़ होने के स्थान पर भरत राम को वन से वापस ले आने का संकल्प लेकर वन की ओर प्रस्थान करते

(5) वन-गमन–इस सर्ग में भरत के वन-प्रस्थान का वर्णन है। इसमें निषादराज की रामभक्ति एवं सेवा-भावना का भी सुन्दर वर्णन हुआ है। निषादराज द्वारा सबको नदी के पार ले जाने के बाद भरत प्रयाग में भरद्वाज ऋषि के आश्रम में पहुँचते हैं। रार्म’ के चित्रकूट  में निवास का समाचार जानकर भरत और शत्रुघ्न पैदल ही वहाँ के लिए प्रस्थान कर देते हैं।

(6) राम-भरत-मिलन–इस सर्ग में राम से भरत का मिलन होता है। भरत और कैकेयी राम से अयोध्या लौटने का आग्रह करते हैं। राम पिता के वचनों का पालन करने के लिए वन में ही रहना चाहते हैं, तब भरत उनकी चरण पादुका लेकर अयोध्या लौटते हैं, स्वयं नन्दिग्राम में कुटी बनाकर रहते हैं तथा शत्रुघ्न की सहायता से राम के नाम पर अयोध्या का शासन चलाते हैं।



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