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‘कर्मवीर भरत’ खण्डकाव्य के ‘वन-गमन’ शीर्षक पंचम सर्ग का सारांश लिखिए।

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निषादराज की शंका-श्रृंगवेरपुर में गंगा के तट पर भरत के पहुँचने का समाचार पाकर और रथ पर इक्ष्वाकु वंश की पताका लहराती देखकर निषादराज के मन में शंका उत्पन्न हो गयी कि कहीं राम को वन में अकेले जानकर राजमद में चूर भरत सेना सहित वन में विघ्न डालने के लिए तो नहीं आ रहे हैं। उसने सभी निषादों के साथ मिलकर निश्चय किया कि हम किसी को भी गंगा पार न जाने देंगे। उसी समय एक वृद्ध निषाद ने कहा कि पहले उनके आने का रहस्य जान लेना चाहिए, क्योंकि गुरु वशिष्ठ और माता कौशल्या भी उनके साथ हैं।

भरत का सम्मान–वृद्ध की बात सुनकर बिना विचारे अपने वीरभाव दर्शाने पर लज्जित निषादराज ” ने भरत के सत्कार हेतु कन्द-मूल-फल मँगाये। गुरु वशिष्ठ की बातों से तो निषादराज गद्गद हो गये तथा भरत के समीप पहुँचने व उनके अपार स्नेह से अत्यधिक पुलकित हो गये।  उनका यथोचित सत्कार करके नावों द्वारा सबको पार ले गये। यहाँ भरत भरद्वाज ऋषि के आश्रम में प्रयाग पहुँचे। वहाँ से चित्रकूट में राम के निवास का समाचार प्राप्त कर तथा चित्रकूट को समीप जानकर भरत और शत्रुघ्न दोनों भाई पैदल ही आगे की ओर चल दिये।



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