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‘कर्मवीर भरत’ के आधार पर कैकेयी का चरित्र-चित्रण कीजिए।या” ‘कर्मवीर भरत’ खण्डकाव्य में कैकेयी के चरित्र को उज्ज्वल बनाकर भारतीय नारी को गौरव प्रदान किया गया है।” खण्डकाव्य के आधार पर कैकेयी के चरित्र की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए इस कथन की सत्यता सिद्ध कीजिए।या‘कर्मवीर भरत’ खण्डकाव्य के आधार पर कैकेयी के चरित्र की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।या‘कर्मवीर भरत’ खण्डकाव्य के आधार पर किसी प्रमुख नारी-पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए।

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‘कर्मवीर भरत’ के स्त्री पात्रों में कैकेयी का चरित्र सर्वोपरि है। उसमें साहस, दृढ़ता, राजनीतिक कुशलता, विवेकशीलता, जनहित भावना, पुत्र-प्रेम आदि आदर्श भारतीय नारी के गुण विद्यमान हैं। इस खण्डकाव्य में उसके चरित्र को उज्ज्वल दर्शाकर भारतीय नारी को गौरव प्रदान किया गया है।

उसके चरित्र की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(1) युद्ध-निपुण वीरांगना–कैकेयी का चरित्र एक वीरांगना का चरित्र है। वह अपने हृदय पर पत्थर रखकर जनहित के लिए अपने पुत्र को चौदह वर्ष के लिए वन में भेज देती है। उसने नारी होकर भी अबला बनना नहीं सीखा है। युद्ध-भूमि में भी वह अपने पति के साथ गयी थी और संकट में उनके प्राणों की रक्षा की थी। उसे जो कार्य उचित जान पड़ता है, लोकमत के विरुद्ध होने पर भी वह उसे करके ही छोड़ती है। निम्नलिखित पंक्तियों से उसका वीरत्व प्रकट होता है—

असि अर्पण कर मैंने रण कंकण बाँधा है,
रणचण्डी का व्रत मैंने रण में साधा है ।
मेरे बेटों ने पय पिया सिंहनी का है,
उनका पौरुष देख इन्द्र मन में डरता है ।।

(2) आदर्श माता–कैकेयी स्वाभिमानी होने के साथ-साथ आदर्श माता भी है। वह अपने पुत्रों को केवल सुखी ही नहीं देखना चाहती, अपितु उनके गौरव को भी बढ़ाना चाहती है। वह प्रत्येक पुत्र के जीवन का विकास उसकी सामर्थ्य के अनुसार करना चाहती है, जिससे वे समाज, राष्ट्र और मानवता की अधिकाधिक सेवा कर सकें। वह राम और भरत में भेद नहीं मानती-

राम-भरत में भेद ? हाय कैसी दुर्बलता,
आगे चलते राम, भरत तो पीछे चलता।

वह राम को इसलिए वन में भेजती है, जिससे वह वन में जाकर दुष्टों और आततायियों का विनाश कर मानवता का कल्याण कर सके। उसने राम को वन में भेजकर मानवीय और राष्ट्रीय कर्तव्य का पालन करते हुए अपने मातृत्व धर्म की दृढ़ता से रक्षा की है।

(3) राष्ट्रीय और समाजवादी दृष्टिकोण अपनाने वाली आदर्श नारी-कैकेयी के  चरित्र की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विशेषता उसका राष्ट्रीय और समाजवादी दृष्टिकोण है। उसकी विचारधारा केवल अपने पुत्रों और परिवार तक ही सीमित नहीं है, अपितु वह सम्पूर्ण राष्ट्र और मानवता का भी कल्याण सोचती है। उसे केवल अयोध्यावासियों के ही कल्याण का ध्यान नहीं है, अपितु पिछड़े हुए अशिक्षित वनवासियों के उत्थान का भी वह ध्यान रखती है। उसका मानवीय दृष्टिकोण अत्यधिक उदार है-

जिन्हें नीच पामर कहकर हम दूर भगाते ।
वे भी तो अपने हैं मानवता के नाते ॥
उन्हें उठाना क्या राजा का धर्म नहीं है।
गले लगाना क्या मानव का कर्म नहीं है।

(4) राजनीति में कुशल-कैकेयी नारी होकर भी राजनीति में पूर्ण कुशल है। वह राजनीति के दाँव-पेच समझती है और समय के अनुसार उनका प्रयोग करना भी जानती है। राम को वन भेजने में भी उसकी राजनीतिक सूझ-बूझ का प्रमाण मिलता है। वनवासियों को अनुशासन सिखाना भी एक राजनीतिक दायित्व है।

(5) अपराध स्वीकार करने वाली-खण्डकाव्य के कथानक के अनुसार कैकेयी ने जो कुछ भी किया उसके पीछे उसका कोई भी स्वार्थ नहीं था और न कोई बुरा भाव ही था। परन्तु जब परिस्थितियाँ बदल जाती हैं तथा परिणाम बुरे निकलने लगते हैं तो कैकेयी अपने आपको अपराधिनी स्वीकार कर लेती है तथा । स्वयं ही अपने विषय में कह उठती है

इस दुःखान्त नाटक की मैं हूँ सूत्रधारिणी।
हरे-भरे रघुकुल में प्रलय-विनाशकारिणी ॥

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि प्रस्तुत खण्डकाव्य में कैकेयी आदर्श माता, वीर  स्त्री तथा समाजवादी दृष्टिकोण को अपनाने वाली आदर्श नारी है। उसमें साहस, दृढ़ता, सूझ-बूझ और उदारता है। निशंक जी ने कैकेयी के युग-युग से अभिशप्त चरित्र को आधुनिक परिवेश में सँवारने का सफल प्रयत्न किया है।



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