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1.

भारत में किशोर अपराध की समस्या पर एक लेख लिखिए।

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भारत में किशोर अपराध (Juvenile Delinquency in India) – भारत में बालअपराध की समस्या गम्भीर है। बढ़ती हुई जनसंख्या, नगरीकरण तथा औद्योगीकरण के कारण बाल-अपराध निरन्तर बढ़ रहे हैं। वर्ष 1988 के सर्वेक्षण के अनुसार भारत में 24,827 स्थानीय व 25,468 विशेष नियमों के उल्लंघन के दोषी बाल-अपराधी थे। भारत में बाल-अपराध कुल अपराधों को 2% है। भारत में बाल-अपराध की समस्या गाँवों की अपेक्षा नगरों में अधिक है। युवतियों की अपेक्षा युवक बाल-अपराधी अधिक हैं। निम्न जातियों के बच्चों में बाल-अपराध की दर अधिक पायी जाती है।
भारत के महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, बिहार, आन्ध्र प्रदेश आदि राज्यों में बाल-अपराध की समस्या विकट बनी हुई है। इन राज्यों में भारत के कुल 68% बाल-अपराधी पाये जाते हैं। भारत में बाल-अपराधी व्यक्तिगत स्तर पर कानूनों का उल्लंघन कम करते हैं, इस कार्य में उन्हें पूरे समूह अथवा परिवार का सहयोग मिलता है। भारत में बाल-अपराधी सम्पत्ति के विरुद्ध अपराधों में संलिप्त पाये गये हैं। भारत में 50% बाल-अपराधी अनुसूचित जातियों या जनजातियों के होते हैं, क्योंकि इन जातियों में 1951 ई० में बाल अधिनियम पारित किया गया, जिसे 1956 ई० में लागू किया गया। बाद में देश के अन्य राज्यों में भी इसे लागू किया गया। भारत में बाल-अपराध की रोकथाम के लिए किशोर जेल, सुधारवादी सेवाएँ, अवलोकन-गृह, परिवीक्षा-गृह तथा एप्रूव्ड स्कूल आदि व्यवस्थाएँ लागू की गयी हैं।

2.

बाल-अपराध के जैविकीय तथा शारीरिक कारकों का उल्लेख कीजिए।

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अनेक मनोवैज्ञानिकों तथा अपराधशास्त्रियों ने अपने अध्ययन और खोजों के आधार पर बाल-अपराधियों के जैविकीय तथा शारीरिक कारणों की पुष्टि की है। हूटन ने 668 अपराधियों तथा अपराधी की परस्पर तुलना करके बताया कि अपराध को मुख्य कारण ‘जैविकीय हीनता’ है। बर्ट, हीली व ब्रोनर, ग्ल्यूक तथा हिर्श व थर्स्टन ने संकेत दिया है कि अपराधियों में शारीरिक कारक (Physical Factors) अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। इसी प्रकार गिलिन एवं गिलिन के अध्ययनों से पता चला है कि शारीरिक दोषों के कारण बहुत-से बालक अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में असमर्थ हो जाते हैं जिसके परिणामस्वरूप वे बहुत से समाज-विरोधी कार्यों में लग जाते हैं। अन्धापन, बहरापन, लँगड़ाना, हकलाना, तुतलाना, बहुत ज्यादा मोटे-पतले या नाटे तथा इसी तरह से विकृतियों के कारण बालक सामान्य बालकों से अलग हो जाते हैं जिससे उसके आचरण में भिन्नता आ जाती है। कुरूप, काने और लँगड़े बालकों को अक्सर लोग चिढ़ाते हैं जिसकी प्रतिक्रिया में वे असामाजिक कार्य कर डालते हैं निष्कर्षत: शारीरिक हीनता व विकृति के कारण बालक को समाज में असफलता मिलती है जो उसके अपराध का कारण बनती है।

बाल-अपराध से सम्बन्धित प्रारम्भिक अध्ययनों से ज्ञान होता है कि अपराधी बालकों में वंशानुक्रम या पैतृकता (Heredity) का भी महत्त्वपूर्ण प्रभाव होता है। वंशानुक्रम तथा पर्यावरण दोनों ही अपराध के लिए उत्तरदायी हैं। एक जन्मजात कारक है और दूसरा अर्जित कारक। बालक में कुछ जन्मजात गुण निहित होते हैं और ये गुण किन्हीं निश्चित परिस्थितियों से एक विशेष प्रकार का परिणाम देते हैं। अच्छी परिस्थतियों में अच्छा परिणाम तथा बुरी परिस्थितियों में बुरा परिणाम निकलता है। गाल्टन, गोडार्ड तथा डगडेल के निष्कर्षों से पुष्ट होता है कि वंशानुक्रम ही अपराध का प्रमुख कारण है, क्योंकि ‘ज्यूक्स’ तथा कालीकाक’ आदि अपराधी वंशों में उत्पन्न अधिकांश सन्तानें बड़ी होकर अपराधी बनीं। सीजर, लाम्ब्रोसो तथा फैरी का कथन है कि बाल-अपराधों का सम्बन्ध शारीरिक विशेषताओं से है। विभिन्न शारीरिक गुण; यथा स्नायविक संस्थान, रक्त की संरचना, ग्रन्थीय बनावट आदि वंशानुक्रम द्वारा ही संक्रमित होते हैं जिनकी विशिष्ट अवस्थाएँ बालक को अपराध करने के लिए प्रेरित करती हैं।

3.

बाल-अपराध के मुख्य संवेगात्मक कारणों का उल्लेख कीजिए।

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बाल-अपराध के मुख्य संवेगात्मक कारण हैं –

(क) अति संवेगात्मकता
(ख) स्वभावगत अस्थिरता
(ग) समायोजन दोष
(घ) भावना ग्रन्थियाँ एवं मनोविक्षेप
(ङ) किशोरावस्था के परिवर्तन तथा
(च) मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की पूर्ति न होना।

4.

बाल-अपराध-निरोध के सन्दर्भ में सर्टीफाइड स्कूल का सामान्य परिचय प्रस्तुत कीजिए।

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बाल-अपराध-निरोध का एक उपाय ‘सर्टीफाइड स्कूल’ है। सर्टीफाइड स्कूल ‘बाल अधिनियम’ (Children Act) के अन्तर्गत भारत के लगभग सभी राज्यों में स्थापित किये जा चुके हैं। बाल अधिनियम; बाल-अपराध-निरोध में पर्याप्त रूप से लाभदायक सिद्ध हुआ। समाज में रहने वाले बालकों की प्रवृत्ति अपराधों की ओर न जाए, इस उद्देश्य से बाल अधिनियम लागू किया गया था। सर्टीफाइड स्कूलों में छोटे-छोटे अपराध करने वाले बालकों को रखा जाता है। 14 वर्ष तक के बालक जूनियर स्टफाइड स्कूलों में तथा 14-16 वर्ष तके के बालक सर्टीफाइड स्कूलों में रखे जाते हैं। इन। स्कूलों में 5वीं से 8वीं कक्षा तक शिक्षा प्रदान की जाती है। कुछ राज्यों में बालक और बालिकाओं के अलग-अलग स्कूल हैं किन्तु कुछ राज्यों में ये स्कूल सम्मिलित प्रकार के हैं। सर्टीफाइड स्कूल महाराष्ट्र, बंगाल; आन्ध्र प्रदेश, केरल तथा तमिलनाडु में पर्याप्त संख्या में खुल चुके हैं। कुछ राज्यों में ‘स्वयं सेवी संस्थाएँ भी इस प्रकार के स्कूल चलाती हैं; यथा – महाराष्ट्र में ‘उपयुक्त व्यक्ति संस्थाएँ, कोलकाता में ‘आवारा बच्चों का शरणालय’ तथा ‘कोलकाता विजिलेन्स समिति शरणालय’, आन्ध्र प्रदेश में ‘कुटी नेल्लोडी बाल शरणालय’ तथा ‘गिन्दी बाल शरणालय’ एवं मैसूर में ‘बेलारी का सर्टीफाइड स्कूल’ आदि बाल सुधार की दिशा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

5.

बच्चे अथवा किशोरों के द्वारा किये अपराध के लिए न्यायिक कार्यवाही किस न्यायालय द्वारा की जाती है ?(क) जिला न्यायालय द्वारा(ख) किशोर सदन द्वारा(ग) सुधार-गृह द्वारा(घ) किशोर न्यायालय द्वारा

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(घ) किशोर न्यायालय द्वारा

6.

बाल-अपराध रोकने के लिए मनोवैज्ञानिक क्लीनिक खोलने का सुझाव किसने दिया?

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बाल-अपराध रोकने के लिए मनोवैज्ञानिक क्लीनिक खोलने का सुझाव सिरिल बर्ट ने दिया।

7.

किस महान बाल-सुधारक ने प्रवीक्षण या प्रोबेशन की धारणा को प्रस्तुत किया था?(क) फ्रॉयड ने।(ख) जॉन ऑगस्टस ने(ग) डॉ० सेठना ने(घ) मुरेनो ने

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सही विकल्प है (ख) जॉन ऑगस्टस ने

8.

बाल-अपराध के परिवार सम्बन्धी मुख्य कारणों का उल्लेख कीजिए।

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बाल-अपराध के परिवार सम्बन्धी मुख्य कारण हैं-परिवार का विघटित होना, परिवार में अन-अपेक्षित एवं अधिक बच्चे होना, माता-पिता का असमान या उपेक्षापूर्ण व्यवहार, विमाता या विपिता का दुर्व्यवहार तथा परिवार के अन्य सदस्यों का अपराधों में लिप्त होना।

9.

बाल-अपराध की रोकथाम में विद्यालय की दो महत्त्वपूर्ण भूमिकाएँ लिखिए।

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बाल-अपराध की रोकथाम में विद्यालय द्वारा महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी जा सकती है। सर्वप्रथम विद्यालय के शिक्षकों को उन सभी बालकों के प्रति विशेष ध्यान रखना चाहिए जिनकी गतिविधियाँ कुछ असामान्य हों, जैसे कि स्कूल से प्रायः अनुपस्थित रहना, भाग जाना या देर से आना। ऐसे बालकों के अभिभावकों से निरन्तर सम्पर्क बनाये रखना चाहिए। इसके अतिरिक्त विद्यालय के वातावरण को उत्तम, रोचक एवं आकर्षक बनाकर भी बाल-अपराध की प्रवृत्ति को नियन्त्रित किया जा सकता है। विद्यालय की उत्तम अनुशासन व्यवस्था भी बाल-अपराध की प्रवृत्ति को नियन्त्रित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकती है।

10.

निम्नलिखित में कौन बाल-अपराध से सम्बन्धित नहीं है।(क) बाल न्यायालय(ख) निर्देशन उपचार शालाएँ(ग) सुधार स्कूल(घ) जिला कारागार

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सही विकल्प है (घ) जिला कारागार

11.

बाल-अपराध के मनोवैज्ञानिक कारणों पर प्रकाश डालिए। घर और विद्यालय में क्या उपाय अपेक्षित हैं जिससे बाल-अपराध के मनोवैज्ञानिक कारणों से छुटकारा पाया जा सके? आपका उत्तर व्यावहारिक हो और प्रतिदिन के जीवन पर आधारित हो।याबाल-अपराध के मनोवैज्ञानिक कारणों को बताइए। इन कारणों को दूर करने के लिए घर और विद्यालय क्या उपाय कर सकते हैं?

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बाल-अपराध के मनोवैज्ञानिक कारण (Psychological Causes of Juvenile Delinquency)
बाल-अपराध के सामाजिक एवं आर्थिक कारणों के समान ही मनोवैज्ञानिक कारण भी अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं। मन; व्यक्ति के समस्त आचरण और व्यवहार का मूल कारण है। स्वाभाविक रूप से मन का विकार अपराध का कारण बन सकता है।

बाल-अपराध के मनोवैज्ञानिक कारणों की खोज की जीवन-वृत्त विधि एवं मनोविश्लेषण विधि के आधार पर अध्ययन के उपरान्त ज्ञात होता है कि बाल-अपराध के मनोवैज्ञानिक कारणों का (क) मानसिक या बौद्धिक कारण, (ख) संवेगात्मक कारण, (ग) व्यक्तित्व की विशिष्टताएँ तथा (घ) विशेष प्रकार के मानसिक रोग शीर्षकों के अन्तर्गत उल्लेख किया जा सकता है। बाल-अपराध के प्रमुख मनोवैज्ञानिक कारण निम्नलिखित हैं

(क) मानसिक या बौद्धिक कारण मानसिक या बौद्धिक कारणों में अनेक कारण सम्मिलित हैं, जिनमें प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं –

(1) मानसिक हीनता – अपराधियों में मानसिक हीनता बहुत अधिक होती है। गिलिन एवं गिलिन ने इसके समर्थन में कहा है कि “मानसिक दुर्बलता अपराधी बनाने में एक शक्तिशाली कारक है। सामान्य बुद्धि की कमी से युक्त बालक किसी भी कार्य की अच्छाई-बुराई या उसके परिणामों के विषय में भली प्रकार नहीं सोच सकते, उनकी चिन्तन शक्ति ठीक से काम नहीं करती। मानसिक दृष्टि से दुर्बल बालक समाज से अपना उचित समायोजन करने तथा अच्छे ढंग से आजीविका कमाने में असमर्थ रहते हैं और अपनी आवश्यकताओं की समुचित पूर्ति नहीं कर पाते। ऐसे बालक अपने स्वार्थ की सिद्धि गलत उपायों से करने लगते हैं और अपराध की ओर उन्मुख हो जाते हैं।’
(2) अति तीव्र बुद्धि – आधुनिक मनोवैज्ञानिकों के मतानुसार केवल बुद्धि की दुर्बलता को अपराध का कारण स्वीकार नहीं किया जा सकता। टरमेन ने तीव्र बुद्धि वाले बालकों से सम्बन्धित अध्ययन के आधार पर कहा है कि ऊँचे प्रकार के अपराधी तथा गिरोहों के सरदार सामान्य से काफी ऊँचे बुद्धि स्तर वाले होते हैं। अति तीव्र बुद्धि वाले बालक अपराध के नये तरीके खोजने तथा पुलिस को धोखा देने में भी माहिर होते हैं और इसीलिए ये गिरोह के सरगना बन जाते हैं। इस भाँति तीव्र बुद्धि का बाल-अपराध से सीधा सम्बन्ध है।
(3) मानसिक योग्यताओं का निम्न स्तर – व्यक्ति में निहित मानसिक योग्यताएँ जीवन के विविध कार्यों में व्यक्ति की सहायता करती हैं तथा उसके समायोजन में सहायक होती हैं। किसी बालक में कार्य-विशेष की पूर्ति हेतु वांछित योग्यताओं में कमी उसे गलत मार्ग अपनाने तथा अपराध करने की प्रेरणा देती है।

(ख) संवेगात्मक कारण
विभिन्न संवेगात्मक कारणों में से प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं –

(1) अति संवेगात्मकता – कुछ बालक भावना-प्रधान होते हैं। संवेगात्मक स्थिति में विवेक उनका साथ नहीं देता और वे उचित-अनुचित का निर्णय लिये बिना बड़े-से-बड़ा अपराध कर बैठते हैं। बर्ट ने अपने अध्ययन में 9% बाल-अपराधियों में तीव्र संवेगात्मकता प्राप्त की है। सर्वशक्तिमान संवेग दो हैं-क्रोध और कामुकता। क्रोध के आधिक्य में बालक का व्यवहार आक्रामक होता है तथा कामुकता की अधिकता में वे काम-सम्बन्धी अपराध कर बैठते हैं।
(2) स्वभावगत अस्थिरता – इस विशेषता के कारण व्यक्ति किसी एक सिद्धान्त या बात पर टिक नहीं पाता और उसके व्यवहार का मानदण्ड परिवर्तित होता रहता है। बर्ट द्वारा 34% अपराधी बालकों में स्वभावगत अस्थिरता बतायी गयी। यह अस्थिरता बालक में उसके शैशव की प्रतिकूल परिस्थितियों; जैसे-असुरक्षा भावना, स्नेह व सहानुभूति का अभाव, कठोर अनुशासन व दण्ड विधान, प्रारम्भ से अपर्याप्तता/हीनता की भावना, नकारात्मक प्रतिक्रियाएँ तथा असन्तोष व विद्रोहात्मक प्रवृत्ति आदि; के कारण उत्पन्न होती है जिसके परिणामतः वह नैतिक मूल्यों का परित्याग और असामाजिक कार्य करने लगता है।
(3) समायोजन दोष – बालक अपने अहम्, नैतिक मन तथा इदम् के मध्य साम्य स्थापित करने की कोशिश करता है। यदि बालक का अहम् (Ego) तथा नैतिक मन (Super Ego) कमजोर पड़ जाते हैं तो साम्य स्थापित नहीं हो पाता और समायोजन सम्बन्धी दोष उत्पन्न होने लगते हैं। समायोजन के दोष बालक को गलत राह के लिए अभिप्रेरित करते हैं।
(4) भावना ग्रन्थियाँ एवं मनोविक्षेप – पारिवारिक एवं सामाजिक निषेधों के कारण बालकों और किशोरों को अपनी इच्छाओं, प्रवृत्तियों तथा भावनाओं आदि का दमन करना पड़ता है। दबी हुई इच्छाएँ और प्रवृत्तियाँ भावना ग्रन्थियों (Complexes) को जन्म देती हैं जो उनके अचेतन मन में जाकर बस जाती हैं। शनैः-शनैः मानसिक संघर्ष और भावना ग्रन्थियाँ उनमें मनोविक्षेप (Psychoneuroses) को जन्म देती हैं। बालकों में समाज के प्रति विद्रोह के भाव जगने लगते हैं। ये उन्हें बदले की भावना से भर देते हैं। इसका परिणाम बाल-अपराधों के रूप में सामने आता है। बर्ट ने अपने अध्ययन में 75% अपराधी बालकों को भावना ग्रन्थियों तथा मानसिक संघर्षों से ग्रसित पाया।
(5) किशोरावस्था के परिवर्तन – किशोरावस्था में व्यक्ति में उत्पन्न होने वाले शारीरिक, मानसिक और संवेगात्मक परिवर्तन परिस्थितियों से उनका सन्तुलन बिगाड़ देते हैं। स्टैनली हाल ने उचित ही कहा है, ‘किशोरावस्था बल एवं तनाव, तूफान एवं विरोध की अवस्था है।’ उन्होंने इसे ‘अपराध की अवस्था (Criminal Age) का नाम दिया है, क्योंकि मानसिक-सांवेगिक तनाव एवं असन्तुलन की स्थिति में वे बिना सोचे-समझे समाज-विरोधी कार्य कर बैठते हैं। इस प्रकार किशोरावस्था के क्रान्तिकारी परिवर्तन बाल-अपराधों को जन्म दे सकते हैं।
(6) मनोवैज्ञानिकं आवश्यकताओं की पूर्ति न होना – प्रत्येक बालक और किशोर की कुछ जन्मजात एवं अर्जित मनोवैज्ञानिक आवश्यकताएँ हैं; जैसे-आत्मप्रदर्शन, प्रेम, सुरक्षा, काम आदि। इनकी सामान्य ढंग से पूर्ति या तृप्ति न होने पर बालक में कुण्ठा का जन्म होता है जिसके फलस्वरूप उसमें हीनता, क्रोध तथा आक्रमण की भावना जन्म लेती है। इसके अतिरिक्त दूसरी अनेक असामाजिक प्रवृत्तियाँ भी उत्पन्न होती हैं और बालकअपराध की ओर प्रवृत्त होता है।

(ग) व्यक्तित्व की विशिष्टताएँ
प्रमुख मनोवैज्ञानिकों एवं अनुसन्धानकर्ताओं ने बाल-अपराधियों से सम्बन्धित अपने अध्ययनों के अन्तर्गत उनके व्यक्तित्व में कुछ विशिष्टताओं को पाया है। बाल-अपराधियों में सामान्य बालकों से भिन्नता रखते हुए ये गुण मुख्य रूप में मिलते हैं –

⦁    अत्यधिक हिंसात्मक प्रवृत्ति
⦁    अनियन्त्रण एवं असंयम
⦁    स्वच्छन्द स्वभाव
⦁    अनुशासन का अभाव
⦁    अस्थिरता, निर्णय न ले सकना तथा मानसिक अशान्ति
⦁    विद्रोही नकारात्मक व्यवहार
⦁    शंकालु स्वभाव
⦁    दूसरों को पीड़ित करके सुख पाना
⦁    सांवेगिक अपरिपक्वता
⦁    बहिर्मुखी स्वभाव तथा
⦁    समाज से कुसमायोजन।
अपराध करने वाले बालक के व्यक्तित्व की ये विशेषताएँ उसे सामाजिक परिस्थितियों व स्वीकृत मानदण्डों से समायोजित नहीं होने देतीं और वह कुसमायोजन का शिकार हो जाता है। कुसमायोजित बालक में धीरे-धीरे अन्य मानसिक विकार उत्पन्न हो जाते हैं जो उसे अपराध की ओर उन्मुख करते हैं।

(घ) विशेष प्रकार के मानसिक रोग
टप्पन, ग्लूक एवं ग्लूक सहित अनेक मनोवैज्ञानिकों ने स्पष्ट किया है कि कुछ विशेष प्रकार के . मानसिक रोगों से ग्रस्त रोगी भी अपराध किया करते हैं। इन मानसिक रोगों का वर्णन अग्र प्रकार है –

(1) मनोविकृति – बालपन में स्नेह, सहानुभूति, प्रेम तथा नियन्त्रण के अभाव, अन्यों के दुर्व्यवहार से मिली पीड़ा व यन्त्रणा तथा वंचना के कारण उत्पन्न मनोविकृति का मानसिक रोग बालक और किशोर को शुरू से ही समाज-विरोधी, निर्दयी, ईष्र्यालु, झगड़ालू, शंकालु, द्वेष तथा प्रतिशोध की भावना से युक्त बना देता है। ऐसे बालक सामान्य से उच्च बौद्धिक स्तर वाले तथा आत्मकेन्द्रित प्रकृति के होते हैं तथा बिना किसी प्रायश्चित्त के हिंसा या हत्या कर सकते हैं।
(2) मेनिया – ‘मेनिया’ एक प्रकार का पागलपन है जिसका उपचार सम्भव होता है। यह अनेक प्रकार का है; जैसे—आग लगाने, चोरी करने तथा तोड़-फोड़ का मेनिया। मेनिया से ग्रस्त बालक अपराध करने लगते हैं और धीरे-धीरे अपराध के आदी हो जाते हैं।
(3) बाध्यता – इस मानसिक रोग से पीड़ित बालक ऐसे कार्य करने के लिए बाध्य होता है जो उसके अवचेतन में निर्मित ग्रन्थि से सम्बन्धित हैं, लेकिन बालक को इस बात का पता नहीं होता, वह तो बस बाध्य या विवश होकर उस हानिकारक कार्य को करता जाता है। इन कार्यों में आग लगाना, तोड़-फोड़ करना तथा सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाना आदि सम्मिलित हैं। स्पष्टत: बाध्यता का मनोरोग भी बाल-अपराध का एक मुख्य कारण है।

मनोवैज्ञानिक कारणों से मुक्ति हेतु घरं एवं विद्यालय द्वारा किये जाने वाले उपाय
बालक अपने आरम्भिक जीवन को दो ही स्थानों पर अधिकांशतः व्यतीत करता है—इनमें पहला स्थान घर का है और दूसरा विद्यालय का। अपराध की दुनिया में कदम रखने वाले बालक विभिन्न मनोवैज्ञानिक कारणों एवं मानसिक दशाओं से उत्प्रेरित हो सकते हैं। इन कारकों एवं दशाओं का सीधा सम्बन्ध घर-परिवार और विद्यालय के वातावरण से होता है; अतः घर एवं विद्यालय, बाल-अपराध से सम्बद्ध मनोवैज्ञानिक कारणों से मुक्ति हेतु अनेक उपाय कर अपनी भूमिका निभा सकते हैं।

परिवार के प्रौढ़ एवं उत्तरदायी सदस्यों को चाहिए कि वे घर के बालक को एक खुली किताब समझें और उसकी योग्यताओं, क्षमताओं, आदतों, रुचियों, अभिरुचियों तथा उसके व्यक्तित्व के प्रत्येक पक्ष का आकलन करें। बालक के साथ भावात्मक एवं संवेगात्मक तादात्म्य स्थापित करें और उसकी भावनाओं, इच्छाओं वे आदतों को समझकर व्यवहार करें। बालक के स्वस्थ मानसिक विकास के लिए प्रेम, सुरक्षा, अभिव्यक्ति, स्वतन्त्रता, स्वीकृति, मान्यता आदि मनोवैज्ञानिक आवश्यकताएँ परमावश्यक हैं। इन आवश्यकताओं से वंचित रहकर बालक हीन-भावना से ग्रस्त हो जाता है और उसमें चिड़चिड़ापन, संकोच, लज्जा, भय, क्रूरता एवं क्रोध जैसी भावना पैदा हो जाती है। अन्ततोगत्वा ईष्र्या, द्वेष तथा आत्म-प्रदर्शन से अभिप्रेरित बालक में अपराधी वृत्तियाँ पनपने लगती हैं और वह अपराध करने लगता है। इसी प्रकार से घर-परिवार से अमान्य या तिरस्कृत बालक विद्रोही और आक्रामक बन जाता है। स्पष्टत: घर का दायित्व है कि वह बालक में मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं के कारण कुण्ठाओं को जन्म न लेने दें।

इसी प्रकार से विद्यालय भी कुछ ऐसे उपाय अपना सकता है जिनसे किशोर बालकों को अपराध के लिए प्रेरित करने वाले मनोवैज्ञानिक कारणों से मुक्ति मिल सके। विद्यालय के बालकों की बुद्धि-लब्धि का आकलन कर उनका बौद्धिक स्तर ज्ञात किया जाना आवश्यक है। अनेकानेक मनोवैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन के आधार पर निष्कर्ष निकाला है कि बालक में बुद्धि की कमी अपराध का मूल कारण है। कक्षा में दुर्बल बुद्धि, सामान्य बुद्धि तथा तीव्र बुद्धि के बालकों का वर्गीकरण कर दुर्बल बुद्धि के बालकों के साथ विशिष्ट उपचारात्मक तरीके अपनाये जाने चाहिए। इसी प्रकार तीव्र बुद्धि के बालकों के साथ भी तदनुसार व्यवहार के प्रतिमान निर्धारित किये जाएँ। कक्षा में शिक्षक का अपने छात्रों के प्रति व्यवहार आदर्श होना चाहिए। शिक्षक को न तो आवश्यकता से अधिक ढीला नियन्त्रण करना चाहिए और न ही अत्यधिक कठोर, क्योंकि दोनों ही परिस्थितियों में बालक कक्षा से बचते हैं और विद्यालय से पलायन कर जाते हैं। यह कक्षा-पलायन ही उनकी आपराधिक वृत्तियों के लिए पृष्ठभूमि तैयार कर देता है। छात्रों की अध्ययन सम्बन्धी तथा अन्य परिस्थितियों को समझा जाना चाहिए तथा उनके प्रति स्नेहपूर्ण व्यवहार प्रदर्शित किया जाना चाहिए। शिक्षक का व्यवहार अपने छात्र के प्रति ऐसा हो कि वह अपनी व्यक्तिगत समस्याएँ भी शिक्षक से अभिव्यक्त कर सके। कुल मिलाकर शिक्षक की भूमिका एक मित्र और निर्देशक की होनी चाहिए।

इस भाँति घर और विद्यालय उपर्युक्त सुझावों के आधार पर ऐसा वातावरण तैयार कर सकते हैं। ताकि बाल-अपराध के मनोवैज्ञानिक कारणों से छुटकारा मिल सके।

12.

बाल-अपराध रोकने के लिए उचित व स्वस्थ पारिवारिक वातावरण की भूमिका बताइए।

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परिवार ही शिशु की प्रथम पाठशाला और लालन-पालन करने वाली नर्सरी होता है और वही उसके समाजीकरण का केन्द्र भी; अत: यह आवश्यक है कि परिवार व्यवस्थित एवं संगठित हो, उनका वातावरण स्वस्थ हो, माता-पिता एवं परिवारजनों को बच्चे के प्रति स्नेहपूर्ण व्यवहार हो, ये बच्चे पर उचित नियन्त्रण रखें और उनका समुचित निर्देशन करें। ऐसी स्थिति में ही बच्चे का चरित्र-निर्माण होगा और वह अपराधी कार्यों से दूर रहेगा।

13.

बाल-अपराध की डॉ० सेठना द्वारा प्रतिपादित परिभाषा लिखिए।

Answer»

डॉ० सेठना के अनुसार, “बाल-अपराध से अभिप्राय किसी स्थान-विशेष के नियमों के अनुसार एक निश्चित आयु से कम के बालक या युवक व्यक्ति द्वारा किया जाने वाला अनुचित कार्य है।”

14.

बाल-अपराध के निदान के उपाय बताइए।

Answer»

मनोविज्ञान की संकल्पना के अनुसार बाल-अपराध एक मानसिक रोग है। बाल-अपराधी को सुधारने के लिए सर्वप्रथम उन कारणों का पता लगाया जाती है जिनके कारण से कोई बालक अपराधी बना होता है। यह अपराध की नैदानिक प्रक्रिया के अन्तर्गत आता है। बाल-अपराधों के कारणों का निदान करते समय निम्नलिखित बातों की ठीक-ठीक जानकारी प्राप्त की जाती है –

⦁    बाल-अपराधी की शारीरिक विशेषताओं की जानकारी
⦁    बालक के बौद्धिक स्तर, मानसिक योग्यताओं, रुचियों, अभिरुचियों तथा अन्य विशेषताओं को परीक्षण एवं मूल्यांकन
⦁    उनकी संवेगात्मक संरचना का अध्ययन
⦁    अपराधी बालक के परिवार के लोगों के विषय में जानकारी
⦁    आस-पड़ोस, साथियों, सम्पर्क सूत्रों तथा सामाजिक व्यवहार का अध्ययन
⦁    परिवार की आर्थिक स्थिति तथा आय के साधन
⦁    अपराधी बालक के व्यवसाय (अगर वह कोई धन्धा करता हो) की दशाओं का ज्ञान तथा
⦁    उसके विद्यालयी व्यवहार का लेखा-जोखा तथा उसकी सम्प्राप्तियों का विवरण।

साक्षात्कार – उपर्युक्त विभिन्न पक्षों के सम्बन्ध में आवश्यक सूचना एकत्रित करने के उपरान्त अपराधी बालक से साक्षात्कार करके उसकी उन सभी समस्याओं तथा कारणों का समुचित ज्ञान किया। जाता है जिन्होंने उसे अपराध के लिए प्रेरित किया था।

15.

दस वर्ष की आयु वाले बालक के द्वारा गम्भीर अपराध करने को कहते हैं –(क) बाल-अपराधी(ख) अपराधी(ग) असामाजिक बालक(घ) मानसिक विक्षिप्त

Answer»

सही विकल्प है (क) बाल-अपराधी

16.

सिरिल बर्ट के अनुसार किस बालक को बाल-अपराधी कहा जा सकता है?

Answer»

सिरिल बर्ट के अनुसर, किसी बालक को बाल-अपराधी वास्तव में तभी मानना चाहिए जब उसकी समाज-विरोधी प्रवृत्तियाँ इतना गम्भीर रूप ले लें कि उस पर सरकारी कार्यवाही आवश्यक हो जाए।

17.

टिप्पणी लिखिए-बाल-अपराधी का मनोवैज्ञानिक उपचार।याबाल अपराध के उपचार में मनोचिकित्सा की क्या भूमिका है?

Answer»

बाल-अपराध की उत्पत्ति से सम्बन्धित दो प्रमुख कारक हैं – सामाजिक या परिवेशगत कारक तथा मनोवैज्ञानिक कारक। सामाजिक या परिवेशगत कारकों की वजह से उत्पन्न अवयस्क या बाल-अपराध को सुधार-गृहों तथा प्रवीक्षण कानून द्वारा दूर किया जा सकता है, किन्तु इनके माध्यम से व्यक्गित दोषों का निवारण नहीं हो सकता। यदि कोई बालक बौद्धिक कारणों से, संवेगात्मक अस्थिरता, व्यक्तित्व सम्बन्धी असन्तुलन तथा मानसिक विकारों की वजह से अपराध के लिए प्रवृत्त हुआ है तो उसका उपचार सुधार संस्थाओं या प्रवीक्षण द्वारा करना सम्भव नहीं है। अनेकानेक मनोवैज्ञानिकों के अनवरत अध्ययन तथा अनुसन्धान कार्य से निष्कर्ष प्राप्त हुए हैं कि अधिकांश अपराधी बालक मानसिक अस्वस्थता के शिकार होकर अपराध करते हैं, इनके व्यक्तित्व का समुचित विकास नहीं हो पाता तथा ये विभिन्न मनोवैज्ञानिक दोषों से प्रेरित होते हैं; अतः इन्हें सुधारने के लिए मनोवैज्ञानिक उपायों की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। आजकल सुधार संस्थाओं में मनोवैज्ञानिक उपचार के समुचित साधन उपलब्ध हैं। मनोवैज्ञानिक उपचार का प्रथम सोपान निदान (Diagnosis) अर्थात् अपराध के कारण की खोज है, जिसके लिए मनोवैज्ञानिक विधियो; जैसे—निरीक्षण, परीक्षण, जीवन-वृत्त तथा साक्षात्कार का सहारा लिया जाता है, तत्पश्चात् उपचार की कार्य योजना तैयार की जाती है। बाल-अपराधियों के उपचार के लिए अपनायी जाने वाली मुख्य मनोवैज्ञानिक विधियाँ हैं-क्रीड़ा-चिकित्सा, अंगुलि-चित्रण तथा मनोअभिनय।

18.

टूटे परिवार बाल-अपराध के लिए कैसे उत्तरदायी होते हैं ?

Answer»

परिवार दो प्रकार से टूट सकते हैं

(1) भौतिक रूप से तथा

(2) मानसिक रूप से। भौतिक रूप से परिवार के टूटने का अर्थ है – परिवार के सदस्य की मृत्यु हो जाना, लम्बे समय तक अस्पताल, जेल, सेना आदि में रहने अथवा तलाक और पृथक्करण के कारण सदस्यों का परिवार के साथ न रहना। मानसिक रूप से परिवार के टूटने का अर्थ है – सदस्य एक साथ तो रहते हैं, किन्तु उनमें मनमुटाव, मानसिक संघर्ष एवं तनाव पाया जाता है। इन दोनों ही स्थितियों में बच्चों पर परिवार का नियन्त्रण शिथिल हो जाने एवं बच्चों को माता-पिता का प्यार व स्नेह न मिलने के कारण वे अपराध करने लगते हैं।

19.

बाल-अपराधी की ‘मानसिक अयोग्यता उसके अपराधीकरण के लिए कैसे उत्तरदायी हैं ?

Answer»

ऐसा माना जाता है कि बाल-अपराधी मानसिक रूप से पिछड़े होते हैं। डॉ० गोडार्ड ने बताया है कि कमजोर मस्तिष्क अपराध के लिए उत्तरदायी है। हीली और बूनर ने शिकागो के अध्ययन में 63% बाल-अपराधियों को ही स्वस्थ मस्तिष्क का पाया, शेष 37% मानसिक कमजोरी एवं बीमारी आदि से ग्रसित थे। कुमारी इलियट के अध्ययन में 41.5% लड़कियाँ मानसिक रूप से पिछड़ी हुई थीं। कमजोर बुद्धि के बालक अच्छे-बुरे में भेद नहीं कर पाते और वे कुसंगति के कारण अपराध कर बैठते हैं।

20.

क्या ‘बुरे संगी-साथी बाल-अपराध का एक कारण हैं ?

Answer»

एक बच्चे को अपराधी बनाने में उसके साथियों का भी पर्याप्त हाथ होता है। एक बच्चा अपराध करने के बाद अपनी साहस भरी कहानी दूसरे बच्चों को सुनाता है तो उनके लिए भी यह प्रेरणा एवं उत्तेजना की बात होती है। अपराधी साथियों के सम्पर्क से ही एक बच्चा धूम्रपान, शराबवृत्ति, चोरी, जुआ आदि सीखता है।

21.

बाल-अपराध को बढ़ाने में गरीबी की क्या भूमिका है ?

Answer»

कई अध्ययन इस बात को प्रकट करते हैं कि गरीबी ने बच्चों को अपराधी बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। जोन्स के शब्दों में, यह कहा जा सकता है कि ज्यों-ज्यों आर्थिक स्तर निम्न होगा, त्यों-त्यों बाल-अपराध की दर ऊँची होगी।” गरीबी में परिवार अपनी मूलभूत आवश्यकताएँ, चिकित्सा एवं मनोरंजन की सुविधाएँ नहीं जुटा पाता। ऐसी स्थिति में माता एवं पिता दोनों ही नौकरी करने लगते हैं। माता-पिता के घर से बाहर रहने की अवधि में बच्चे आवारागर्दी करते हैं। न्यूमेयर लिखते हैं, “जब पिता रात में काम करता है और माता दिन में अथवा दोनों रात या दिन में काम करते हैं तो बच्चे प्रायः गलियों में ही आवारागर्दी करते हुए मिलते हैं। बच्चों की आवश्यकताएँ जब परिवार में पूरी नहीं होती हैं तो वे बाहर चोरी करते हैं।

22.

रिमाण्ड होम पर लघु टिप्पणी लिखिए।

Answer»

अपराध करने के पश्चात् जब पुलिस बच्चे को पकड़ लेती है, तो सर्वप्रथम उसे रिमाण्ड होम में रखा जाता है। जेल में रखने से उसका सम्पर्क युवा-अपराधियों से होने पर उसके गम्भीर अपराधी बन जाने की सम्भावना रहती है। जब तक बच्चे की अदालती कार्यवाही चलती है, उसे रिमाण्ड होम में ही रखा जाता है। अनाथ और निराश्रित बच्चे एवं बन्दीगृहों से पृथक् किये गये। अपराधियों को भी ऐसे गृहों में रखा जाता है। यहाँ बच्चों को मनोरंजन, शिक्षा एवं प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। इस समय देश में 160 रिमाण्ड होम कार्य कर रहे हैं।

23.

बाल-अपराध के चार उदाहरण दीजिए।

Answer»

एक निश्चित आयु से कम के बच्चों द्वारा किये जाने वाले कोई भी वे कार्य बालअपराध के अन्तर्गत आते हैं, जो समाज विरोधी होते हैं अथवा जिनसे समूह-कल्याण को हानि पहुँचती है। बाल-अपराध के चार उदाहरण हैं

⦁    जेब काटना
⦁     किसी पर साधारण आघात करना,
⦁    जुआ खेलना तथा
⦁     चोरी करना।

24.

पोषण-गृह तथा सहायक-गृह में किन बच्चों को रखा जाता है ?

Answer»

पोषण-गृह तथा सहायक-गृह में 10 वर्ष से कम आयु के बच्चों को रखा जाता है, जिनके माता-पिता में विवाह-विच्छेद हो गया हो या जिनकी मृत्यु हो गयी हो।

25.

अपराध करने के पश्चात् पुलिस बच्चे को पकड़कर सर्वप्रथम कहाँ रखती है ?

Answer»

अपराध करने के पश्चात् पुलिस बच्चे को पकड़कर सर्वप्रथम रिमाण्ड होम में रखती है।

26.

भारत में किस आयु-सीमा में बालकों को बाल-अपराधियों की श्रेणी में रखा जाता है?

Answer»

भारत में 7 से अधिक एवं 16 वर्ष से कम आयु के लड़कों तथा 7 से अधिक एवं 18 वर्ष से कम आयु की लड़कियों को बाल-अपराधियों की श्रेणी में रखा जाता है।

27.

भारत में बाल-अपराध के निर्धारण से सम्बन्धित कोई दो मौलिक आधार बताइए।

Answer»

भारत में बाल-अपराध के निर्धारण से सम्बन्धित दो मौलिक आधार निम्नवत् हैं

⦁    भारत में 7 से 16 वर्ष की आयु तक के अपराधियों को बाल-अपराधी कहा जाता है। इन अपराधियों के लिए एक पृथक् न्याय प्रक्रिया अपनायी जाती है।
⦁    बाल-अपराध का तात्पर्य केवल साधारण अपराधी से होता है। यदि 7 वर्ष से 16 वर्ष की आयु तक का कोई बच्चा हत्या, राजद्रोह अथवा अत्यधिक जघन्य अपराध का दोषी हो, तो इस अपराध को बाल-अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जाता।

28.

रिफॉर्मेट्री स्कूल में किन बच्चों को रखा जाता है ?

Answer»

इन स्कूलों में 16 वर्ष से कम आयु के ऐसे बच्चों को रखा जाता है, जो पहले सजा काट चुके हैं या जिन्होंने गम्भीर अपराध नहीं किये हैं।

29.

बोस्टेल स्कूल में किस आयु-सीमा के किशोर अपराधी को रखा जाता है ?

Answer»

बोल स्कूल में 16 से 21 वर्ष की आयु सीमा के किशोर अपराधियों को रखा जाता है।

30.

‘रिफॉर्मेट्री स्कूल पर टिप्पणी लिखिए।

Answer»

रिफॉर्मेट्री स्कूलों में 16 वर्ष से कम आयु के ऐसे बच्चों को रखा जाता है, जो पहले सजा काट चुके हैं या जिन्होंने गम्भीर अपराध नहीं किये हैं। इस प्रकार के विद्यालयों का उद्देश्य अपराधी बालक का सुधार और पुनर्वास करना है। इन स्कूलों में अपराधियों को शिक्षा एवं साथ ही विभिन्न व्यवसायों का प्रशिक्षण दिया जाता है। उनके द्वारा निर्मित वस्तुओं को बाजार में बेचकर लाभ को उनके कोष में जमा किया जाता है। इन विद्यालयों में रेडक्रॉस, स्काउटिंग, कृषि, चमड़े का काम, खिलौना, दरी, निवाड़, रस्सी बनाने, बढ़ईगीरी, सिलाई आदि का काम सिखाया जाता है। जिनका काम अच्छा होता है उन्हें वर्ष में 15 दिन तक घर जाने की छुट्टी भी दी जाती है। जबलपुर, हजारीबाग, लखनऊ, बरेली आदि में इस प्रकार के विद्यालय हैं। उत्तर प्रदेश बाल-अधिनियम, 1951 ई० के अधीन उत्तर प्रदेश में कुछ जिलों में एक-एक सुधार अधिकारी को नियुक्त किया गया है, जो बाल-अपराधियों की गोपनीय रिपोर्ट तैयार कर उन्हें सुधारने का प्रयत्न करते हैं।

31.

बाल-अपराध निर्धारण करने में आयु की महत्ता स्पष्ट कीजिए।

Answer»

बाल-अपराध का निर्धारण करने में आयु भी एक महत्त्वपूर्ण तथ्य है। भिन्न-भिन्न देशों में बाल-अपराधियों के लिए अलग-अलग आयु निर्धारित की गयी है। अधिकांश देशों में तथा भारत में भी भारतीय दण्ड संहिता’ (Indian Penal Code) के अनुसार 7 वर्ष से कम की आयु के बालक द्वारा किया गया कानून व समाज-विरोधी कार्य अपराध नहीं माना जाता है, क्योंकि इस समय तक बालक में अच्छे-बुरे के भेद की समझ नहीं होती है। भारत में 1960 व 1986 ई० में बाल-अधिनियम बने। इन अधिनियमों में 16 वर्ष से कम की आयु के लड़के एवं 18 वर्ष से कम की आयु की लड़की को बालक माना गया है। इस आधार पर भारत में 7 वर्ष से अधिक एवं 16 वर्ष से कम उम्र के लड़के एवं 7 वर्ष से अधिक एवं 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की द्वारा किये गये कानून-विरोधी कार्य बाल-अपराध की श्रेणी में आते हैं। इसके बाद 21 वर्ष की आयु तक के अपराधियों को ‘किशोर अपराधी’ एवं इससे अधिक आयु के अपराधियों को अपराधी’ कहा जाता है।

32.

भारत में प्रथम बाल न्यायालय की स्थापना हुई(क) 1952 में(ख) 1922 में(ग) 1953 में(घ) 1931 में

Answer»

(ख) 1922 में   

33.

बोर्टल स्कूल के विषय में आप क्या जानते हैं?

Answer»

सबसे पहले, सर रगल्स ब्राइस (Sir Ruggles Brice) ने 1902 ई० में इंग्लैण्ड के बोल नामक स्थान पर एक गैर-सरकारी जेलखाना खोला था। इसका उद्देश्य किशोर अपराधियों को सुधारना था। उसी स्थान के नाम पर ये बोर्टल स्कूल कहलाने लगे। इन स्कूलों में 16-21 वर्ष तक की आयु के अपराधी रखे जाते हैं तथा अपराधी बालक के व्यक्तित्व को इस तरह निर्मित किया जाता है ताकि वह स्वयं ही अपराधी प्रवृत्ति को त्याग दे। सुधार गृह की भाँति ये मान्यता प्राप्त विद्यालय होते हैं, किन्तु ये एक प्रकार से बन्दीगृह भी हैं। सामान्य रूप से ये जेल विभाग के अन्तर्गत आते हैं। यहाँ सामान्य शिक्षा के साथ-साथ शारीरिक शिक्षा तथा औद्योगिक शिक्षा भी प्रदान की जाती है। इस प्रकार के स्कूल तमिलनाडु, बंगाल, महाराष्ट्र तथा मैसूर आदि राज्यों में स्थापित किये गये हैं जो किशोर अपराधियों को सुधारने में बहुत सफल हुए हैं।

34.

बोस्टेल स्कूल पर टिप्पणी लिखिए।

Answer»

बोर्टल स्कूल एक ऐसी संस्था है जहाँ किशोर अपराधी को, जिसकी आयु 16 से 21 वर्ष हो, रखा जाता है। उन्हें यहाँ प्रशिक्षण एवं निर्देशन दिये जाते हैं तथा अनुशासन में रखकर उनका सुधार किया जाता है। इस संस्था में उन्हीं अपराधियों को प्रवेश दिया जाता है जिनकी सिफारिश अदालत यो जेल महानिरीक्षक करता है। यहाँ अपराधी को मुक्त वातावरण में रखा जाता है। उसमें शारीरिक, मानसिक, नैतिक एवं चारित्रिक क्षमताओं के साथ-साथ उत्तरदायित्व एवं आत्म-नियन्त्रण की भावना का विकास किया जाता है। उसके लिए जिमनास्टिक, उद्योग-धन्धों के प्रशिक्षण एवं शिक्षा का प्रबन्ध किया जाता है। उसे पत्र लिखने, रिश्तेदारों से मिलने, मनपसन्द प्रशिक्षण पाने, बिना निगरानी के बाहर घूमने, वर्कशॉप व मनोरंजन कक्ष तथा भोजनशाला में काम करने, खेल-कूद प्रतियोगिता में भाग लेने आदि की भी छूट होती है।

35.

बाल-अपराधियों तथा वयस्क अपराधियों में मुख्य अन्तर क्या होता है?

Answer»

बाल-अपराधी कच्चे अपराधी होते हैं तथा उनका सुधार सरल होता है, जबकि वयस्क अपराधी पक्के अपराधी होते हैं तथा उनका सुधार काफी कठिन होता है।

36.

बाल-न्यायालय बाल-अपराध को दूर करने में किस प्रकार सहायक है?याबाल-न्यायालयों के कार्यों का वर्णन कीजिए।

Answer»

पुलिस द्वारा पकड़े जाने वाले बाल-अपराधियों की सुनवाई के लिए अलग से न्यायालय स्थापित किये गये हैं, जिन्हें बाल-न्यायालय (Juvenile Courts) कहा जाता है। बाल-न्यायालयों की स्थापना का उद्देश्य बाल-अपराधियों को दण्डितं करना नहीं बल्कि उनको सुधार करना है। बाल-न्यायालय बाल-अपराधी की अपराधी-प्रवृत्ति, पारिवारिक एवं सामाजिक पृष्ठभूमि आदि को ध्यान में रखते हुए उसे बाल-बन्दीगृह, सुधार स्कूल, प्रोबेशन अथवा बोस्ट्रल स्कूल आदि में भेज देता है। आवश्यकता होने पर बाल-अपराधी के मनोवैज्ञानिक उपचार की भी सिफारिश की जाती है। इन समस्त उपायों द्वारा बाल-न्यायालय बाल-अपराध की प्रवृत्ति को समाप्त करने में सहायता देते हैं।

37.

बाल-न्यायालय पर टिप्पणी लिखिए।

Answer»

बाल-न्यायालयों में बाल-अपराधियों की सुनवाई अनौपचारिक विधि से की जाती है। इनमें उनके प्रति बदले की भावना नहीं पायी जाती है। इनके द्वारा बच्चे को संरक्षण एवं पुनर्वास की सुविधा प्रदान की जाती है। बाल-न्यायालय में प्रथम श्रेणी का मजिस्ट्रेट, एक या दो ऑनरेरी लेडी मजिस्ट्रेट, अपराधी बालक, उसके माता-पिता एवं संरक्षक, प्रोबेशन अधिकारी, साधारण पोशाक में पुलिस, कोर्ट का क्लर्क और कभी-कभी वकील उपस्थित रहते हैं। इनकी बैठक रिमाण्ड होम में साधारण तरीके से टेबल-कुर्सी लगाकर की जाती है, जिससे बच्चे को यह महसूस न हो कि वह अपराधी है।

सुनवाई करने वालों और बच्चों के बीच अनौपचारिक बातचीत होती है। बाल-न्यायालय का सारा वातावरण इस प्रकार का होता है कि बच्चे के मस्तिष्क से कोर्ट का आतंक और भय दूर हो जाए। इनन्यायालयों की कार्यवाही को अखबार में नहीं छापा जा सकता तथा साथ ही गोपनीयता भी बरती जाती है। सुनवाई के बाद अपराधी बालकों को चेतावनी देकर, जुर्माना करके या मातापिता से बॉण्ड भरवाकर उन्हें सौंप दिया जाता है, अथवा उन्हें परिवीक्षा पर छोड़ दिया जाता है या किसी सुधार संस्था, मान्यताप्राप्त विद्यालय, परिवीक्षा हॉस्टल आदि में रख दिया जाता है। भारत में महाराष्ट्र, गुजरात, पश्चिमी बंगाल, आन्ध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान तथा दिल्ली :आदि राज्यों में बाल-न्यायालय हैं।

38.

बाल-अपराधियों तथा वयस्क अपराधियों की मुख्य सुधार संस्थाएँ कौन-कौन-सी हैं?

Answer»

बाल-अपराधियों तथा वयस्क अपराधियों की मुख्य सुधार संस्थाएँ हैं – सुधार स्कूल, सर्टीफाइड स्कूल, बोटंल स्कूल तथा बाल-बन्दीगृह।

39.

टिप्पणी लिखिए-बाल-बन्दीगृह।

Answer»

बाल-बन्दीगृह सामान्य जेलों से भिन्न एक सुधार संस्था है। उत्तर प्रदेश में बरेली में बोर्टल व्यवस्था के अन्तर्गत एक बाल-बन्दीगृह (Juvenile Jail) स्थापित किया गया था जिसमें 18 वर्ष तक की आयु के अपराधी रखे जाते हैं। यहाँ उन्हें सामान्य शिक्षा के साथ-साथ विभिन्न उद्योगों की शिक्षा भी दी जाती है ताकि वे बन्दीगृह से बाहर जाकर एक उपयोगी जीवन व्यतीत कर सकें। जो बालक आगे पढ़ने के इच्छुक होते हैं, उन्हें जेल से बाहर अन्य विद्यालयों में भेजने की भी व्यवस्था है। जेल छोड़ते समय बाल-अपराधियों को उन्हीं के परिश्रम से उपार्जित धन प्रदान किया जाता है ताकि वे उससे अपना कोई स्वतन्त्र व्यवसाय स्थापित कर सकें।

40.

टिप्पणी लिखिए-सहायक गृह।

Answer»

सहायक गृह सर्टीफाइड स्कूलों के लिए अपराधी बालक लेने का कार्य करते हैं। ये सरकारी और गैर-सरकारी दोनों प्रकार के होते हैं। इन स्कूलों में मिडिल स्तर तक सामान्य शिक्षा के साथ कुछ धन्धे भी सिखाये जाते हैं; जैसे-चटाई बनाना, जिल्द बनाना, बढ़ई-राजगिरि-दर्जी तथा कताई-बुनाई का काम। इनके अलावा स्काउटिंग, प्राथमिक चिकित्सा, संगीत तथा कृषि कार्य भी सिखाया जाता है। यह पाया गया है कि सहायक गृहों से निकले बच्चे बहुत कम संख्या में दोबारा अपराध करते हैं।

41.

निम्नलिखित में से कौन-सा उपचार बाल-अपराधियों के लिए है ?(क) तरुण शक्ति सेना(ख) सुधार विद्यालय(ग) हरिजन सेवा संघ(घ) प्राचीरविहीन जेल

Answer»

(ख) सुधार विद्यालय

42.

टिप्पणी लिखिए-अंगुलि-चित्रण (Finger Painting)।

Answer»

अंगुलि-चित्रण की विधि, क्रीड़ा चिकित्सा के समान ही मनोवैज्ञानिक उपचार की एक स्वाभाविक विधि है जो अपराधी बालक के मानसिक तनावों को दूर कर उसे सामान्य बनाने में सहायक होती है। बालक के सामने सादा सफेद कागज तथा लाल, पीला, नीला, हरा आदि अनेक रंग होते हैं। बालक को मनचाहे रंग तथा अपने ही ढंग से कागज पर चित्र बनाने की स्वतन्त्रता प्रदान की जाती है। बिना किसी रोक-टोक के रंग पोतने तथा बिखराने में बालक को अपूर्व आनन्द मिलता है, जिससे उसके संवेगात्मक तनाव बाहर निकल जाते हैं और वह तनावमुक्त, स्वस्थ एवं सामान्य बालक की भाँति व्यवहार करने लगता है। कुछ कुशल एवं प्रवीण मनोवैज्ञानिक उँगली से बनाये गये चित्रों के रूप, आकार तथा प्रयुक्त रंगों को देखकर बालक की मनोस्थिति का अनुमान कर लेते हैं। इससे बाल-अपराधी के उपचार में सहायता मिलती है।

43.

बाल-अपराधियों के उपचार के लिए अपनायी जाने वाली मनोवैज्ञानिक विधि है(क) क्रीड़ा चिकित्सा(ख) अंगुलि-चित्रण(ग) मनो-अभिनय(घ) ये सभी

Answer»

सही विकल्प है  (घ) ये सभी

44.

बाल-अपराध का आर्थिक कारण होता है(क) मन्दबुद्धि(ख) कुण्ठा(ग) निर्धनता(घ) कुसमायोजन

Answer»

सही विकल्प है (ग) निर्धनता

45.

बाल-अपराधियों के विकास के लिए जिम्मेदार मानसिक रोग है –(क) मनोविकृति(ख) मेनिया(ग) बाध्यता(घ) ये सभी

Answer»

सही विकल्प है (घ) ये सभी

46.

बाल-अपराध के लिए जिम्मेदार सामाजिक कारक हैं –(क) सस्ते तथा घटिया मनोरंजन के साधन(ख) बदनाम बस्तियों के निवासियों का प्रभाव(ग) शिक्षण संस्थाओं के वातावरण का दूषित होना(घ) उपर्युक्त सभी कारक

Answer»

सही विकल्प है  (घ) उपर्युक्त सभी कारक

47.

बाल-न्यायालयों की कार्यवाही कैसे गोपनीय रखी जाती है ?

Answer»

बाल-न्यायालयों की कार्यवाही को अखबार में नहीं छापा जा सकता तथा साथ ही गोपनीयता बरती जाती है।

48.

16 वर्ष से अधिक, परन्तु 21 वर्ष से कम आयु के अपराधी को क्या कहते हैं ?याकिशोर अपराधी की अधिकतम आयु क्या है ?

Answer»

16 वर्ष से अधिक, परन्तु 21 वर्ष से कम आयु के अपराधी को किशोर अपराधी कहते है।

49.

बाल-अपराधी को दण्ड देने की बजाय सुधारालय क्यों भेजा जाता है ?

Answer»

बाल-अपराधी का सुधार सरल एवं सम्भव है, क्योंकि बच्चे के अपरिपक्व मस्तिष्क को किसी भी दिशा में मोड़ना आसान है, जब कि अपराधी में सुधार की सम्भावना कम होती है।

50.

परिवीक्षा काल का सम्बन्ध है –(क) अपराध से(ख) परीक्षा से(ग) इतिहास से(घ) बाल-अपराध से

Answer»

सही विकल्प है  (घ) बाल अपराध से