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This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.

1.

बालगोबिन भगत की पुत्रवधू की क्या विशेषता थी?

Answer»

बालगोबिन भगत की पुत्रवधू बहुत अच्छी और सुशील थी । घर का पूरा प्रबंध उसने अपने हाथों में ले लिया था और भगत को बहुत कुछ दुनियादारी से मुक्त कर दिया था। अपने पति की मृत्यु के पश्चात् भी वह अपने श्वसुर की सेवा करना चाहती थी।

2.

बालगोबिन की पुत्रवधू अपने भाई के साथ क्यों नहीं जाना चाहती थी?

Answer»

बालगोबिन की पुत्रवधू को उनकी चिंता थी कि उसके जाने के बाद उनके लिए भोजन कौन बनाएगा, बीमार पड़े तो एक चुल्लू पानी कौन देगा इसी कारण वह अपने भाई के साथ नहीं जाना चाहती थी। किन्तु बालगोबिन के दलील के सामने उसकी एक न चली।

3.

माघ की दांत किटकिटानेवाली भोर में लेखक कहाँ गये और उन्होंने वहां क्या देखा?अथवामाघ की दात किटकिटानेवाली भोर का वर्णन अपने शब्दों में लिखिए।

Answer»

माघ की दाँत किटकिटानेवाली भोर में लेखक पोखरे पर गए । बालगोबिन भगत का संगीत उन्हें वहाँ खींच कर ले गया। वहां उन्होंने देखा कि आसमान में अभी तारों के दीपक बुझे नहीं थे। पूरब में लालिमा छा गई थी। उस लालिमा को शुक्रतारा और गहरा रहा था। खेत, बगीचा, घर सब पर कुहासा छाया हुआ था।

सारा वातावरण अजीब रहस्य से आवृत्त मालूम पड़ता था। उस रहस्यमय वातावरण में एक कुश की चटाई पर पूरब मुंह काली कमली ओढ़े बालगोबिन भगत अपनी खजड़ी लिए बैठे थे। उनके मुंह से शब्दों का ताता लगा था। उनकी अगुलिया खजड़ी पर लगातार चल रही थी। गाते-गाते वे इतने मस्त हो जाते, उत्तेजित हो उठते । मालूम होता अभी खड़े हो जाएगे । कमली बार बार नीचे सरक जाती थी। जाड़े की ठंड में लेखक कांप रहे थे और उस तारों की छाँव में बालगोबिन के मस्तक पर श्रमबिंदु चमक उठते थे।

4.

भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएं किस तरह व्यक्त की?

Answer»

भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाओं को नियंत्रण में रखा । वे रोने धोने या शोक मनाने में विश्वास नहीं करते थे। अपने नित्य क्रम के अनुसार ही वे कबीर के पदों को गाते रहे। अपने बेटे के शव को सफेद कपड़े से ढंक दिया। उस पर कुछ फूल और तुलसीदल बिखेर दिया। सिरहाने एक दीपक जला दिया और उसके सामने जमीन पर आसन जमाए गीत गाए चले जा रहे है।

वही पुराना स्वर, वही पुरानी तल्लीनता। वे गाते – गाते अपनी पुत्रवधू को समझाते कि रोने के बदले उत्सव मनाओ। आत्मा परमात्मा के पास चली गई, विरहिणी अपने प्रेमी से जा मिली भला इससे अधिक आनंद की बात क्या हो सकती है।

इस प्रकार बालगोबिन भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएं व्यक्त की । इस प्रकार का आचरण कोई सिद्धहस्त साधु ही कर सकता है। आम आदमी के बस की बात नहीं है यह।

5.

कुछ मार्मिक प्रसंगों के आधार पर यह दिखाई देता है कि बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे । पाठ के आधार पर उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए।

Answer»

यह सच है कि बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे। पाठ में कई जगह इसका उल्लेख मिलता है। जो निम्नानुसार है

  1. बेटे का अग्निदाह अपनी पुत्रवधु से करवाया। सदियों से चली आ रही परंपरा का उन्होंने यहाँ खंडन किया। इस सामाजिक परंपरा को उन्होंने नकार दिया, जो स्त्रियों को श्मशान जाने से रोकती है।
  2. अपनी पुत्रवधु के लिए आदेश दिया कि उसकी दूसरी शादी करवा दी जाय । यहाँ पुनर्विवाह धार्मिक परम्परा के विरुद्ध है, इसे उन्होंने दृढ़ता के साथ नकार दिया।
  3. आम तौर पर साधु लोग भिक्षा मांगकर अपना गुजरान चलाते है। वे साधुओं द्वारा भिक्षा मांगकर भोजन करने की परंपरा के विरोधी थे। गंगा नदी स्नान करने जाते समय वे चार पाँच दिन तक कुछ नहीं खाते थे, केवल पानी पीकर रह जाते थे।
6.

खेतीबाड़ी से जुड़े बालगोबिन भगत अपनी किन विशेषताओं के कारण साधु कहलाते थे ?

Answer»

बालगोबिन भगत वास्तव में गृहस्थ थे किन्तु अपनी कुछ विशेषताओं के कारण लोग उन्हें साधु मानते थे। वे कबीर को अपना साहब (ईश्वर) मानते थे। वे कबीर के पदों को गाते थे और उनके आदेशों का पालन करते थे। वे कभी झूठ नहीं बोलते थे, खरा व्यवहार रखते थे। किसी से दो टूक बात करने में संकोच नहीं करते, न किसी से खामखाह झगड़ा मोल लेते थे।

किसी की चीज नहीं छूते थे, न बिना पूछे व्यवहार में लाते थे। उनकी हर चीज साहब की थी। जो कुछ खेत में पैदा होता पहले उसे साहब के दरबार में ले जाते, उन्हें भेंट में रखते । जो कुछ प्रसाद के रूप में मिलता उसी में गुजारा करते । उनका बाह्य दिखावा भी साधुओं के जैसा ही था । अतः अपने त्याग की प्रवृत्ति और साधुतापूर्वक व्यवहार के कारण ही वे साधु कहलाते थे।

7.

भगत के व्यक्तित्व और उनकी वेशभूषा का अपने शब्दों में चित्र प्रस्तुत कीजिए।

Answer»

बालगोबिन भगत का व्यक्तित्व सबसे अनोखा था। वे साठ वर्ष के गोरे-चिट्टे व मॅझोले कद के थे। उनके बाल पके हुए थे। उनका चेहरा हमेशा सफेद बालों से जगमगाता रहता था। वे सन्यासियों की भांति जटाजूट नहीं रखते थे। प्राय: वे कम कपड़े पहनते थे। कपड़े के नाम पर कमर में एक लँगोटी और सिर पर कबीरपंथियों की तरह कनफटी टोपी पहनते थे।

सर्दियों में काला कम्बल ओढ़ते थे। माथे पर रामानंदी चंदन लगाते थे जो नाक से शुरू होकर ऊपर की ओर जाती थी। वे गले में तुलसी के जड़ों की बनी बेडौल माला पहनते थे। वे साधु के वेश में रहते थे। आचरण से भी पूर्णत: साधु थे। अपने जीवन में उन्होंने कबीर ‘साहब’ के आदर्शों का अनुकरण करते थे। कभी किसी से झगड़ा नहीं करते थे। जो बात है उसे खरा-खरा बोलने में विश्वास करते थे। कबीर के पदों को गाना उनके जीवन का सच्चा आनंद था। इस प्रकार बालगोबिन भगत का पहनावा यानी वेशभूषा और व्यक्तित्व सबसे अलग था।

8.

पाठ के आधार पर बालगोबिन भगत के मधुर गायन की विशेषताएं लिखिए।

Answer»

बालगोबिन भगत के संगीत में एक अद्भुत जादू था। वे सदैव कबीर ‘साहब’ के सीधे-सादे पद गाया करते थे। वे पद उनके कंठ से निकल कर सजीव हो उठते थे। स्वयं लेखक भी उनके संगीत पर मुग्ध थे। उनके गीतों को सुनकर बच्चे झूम उठते थे, औरतों के होंठ काँप उठते थे और वे भी गीत गुनगुनाने लगती थौं । हल चलाते हलवाहों के पैर विशेष क्रम ताल से उठने लगते थे, उनके संगीत की ध्वनि तरंगें लोगों को झंकृत कर देती थी।

उनके संगीत से ऐसा लगता था कि स्वर की एक तरंग स्वर्ग की ओर जा रही है, तो दूसरी तरंग लोगों के कानों की ओर । भयंकर सर्दी या उमसभरी गर्मी उनके स्वर को डिगा नहीं सकती। वे पूर्ण तल्लीनता के साथ गाते थे। झिाली की झंकार या दादुरों की टर्र-टर उनके संगीत को अपने कोलाहल में डुबो नहीं सकती।

उनकी खंजड़ी डिमग-डिमग बजती रहती और वे गा रहे होते – गोदी में पियवा, चमक उठे सखिया । भादों की आधी रात को भी वे गाने लगते तेरी गठरी में लागा चोर, मुसाफिर जाग जरा तो उस समय अंधेरे में अकस्मात कौंध उठनेवाली बिजली की तरह सभी को चौंका देती थी। यों बालगोबिन भगत का संगीत अद्भुत था।

9.

मोह और प्रेम में अंतर होता है । भगत के जीवन की किस घटना के आधार पर इस कथन का सच सिद्ध करेंगे?

Answer»

मोह और प्रेम दोनों में अंतर है। मोह में व्यक्ति की स्वार्थभावना छिपी होती है, जिसमें व्यक्ति अपना हित-अहित नहीं देख पाता। प्रेम शुद्ध सात्विक भावना है, जिसमें स्वार्थ की भावना नहीं होती। भगत कबीर पंथी थे। वे प्रेम और मोह के भाव को भलिभाँति जानते थे। जब उनके बेटे की मृत्यु हुई तो बेटा खोने के कारण रोये बिलखे नहीं बल्कि उसी तल्लीनता से गाते रहे।

उनके अनुसार आत्मा परमात्मा से मिल गई तो दुःख नहीं बल्कि उत्सव मनाने को कहते हैं। दूसरा प्रसंग वहाँ है जहां वे मोह नहीं प्रेम दर्शाते हैं । अपनी पुत्रवधू को उसके भाई के हवाले कर उसे पुर्नविवाह की सलाह देते हैं। यदि उनके भीतर मोह की भावना होती तो वे अपना स्वार्थ साधने के लिए अपनी पूत्रवधू को अपने साथ रखते । जिससे वह उन्हें, भोजन आदि बनाकर देती, उनका ख्याल रखती।

किन्तु यहाँ पर भी पुत्रवधू से मोह नहीं निःस्वार्थ प्रेमभावना के कारण अपने सुखों का त्याग कर उसे पुनर्विवाह करने को कहते हैं। वे अपनी पुत्रवधू के भविष्य को अपने से अधिक महत्त्व देते हैं। अत: इन दो प्रसंगों के आधार पर कह सकते हैं कि मोह और प्रेम में अंतर होता है।

10.

भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले क्यों नहीं छोड़ना चाहती थीं?

Answer»

लेखक के अनुसार बालगोबिन भगत की गृहिणी को उन्होंने देखा नहीं था। उनके घर पर उनका बेटा और पतोहू थे। बेटे की मृत्यु के बाद बालगोबिन का ध्यान रखनेवाला कोई नहीं था। पूत्रवधू यदि अपने भाई के साथ मायके चली जाती तो बुढ़ापे में उनके लिए भोजन कौन बनाता? वे बीमार पड़ते तो उनको एक चुल्लू पानी कौन देगा? इसी चिंता के कारण भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले नहीं छोड़ना चाहती थी।

11.

“ऊपर की तस्वीर से यह नहीं माना जाए कि बालगोबिन भगत साधु थे।” क्या साधु की पहचान पहनावे के आधार पर की जानी चाहिए? आप किन आधारों पर यह सुनिश्चित करेंगे कि अमुक व्यक्ति साधु’ है?

Answer»

नहीं, साधु की पहचान पहनावे के आधार पर कदाप नहीं होनी चाहिए। व्यक्ति अपने कर्म व स्वभाव के आधार पर जाना जाता है। पहनावे से साधु हो और मन में छल-कपट और हीन कृत्य करें तो उसे साधु नहीं कहा जा सकता। हमारे अनुसार व्यक्ति बिना साधु की वेशभूषा धारण किए केवल अपने आचरण में शुद्धता लाए, नि:स्वार्थ भावना से समाज सेवा करे, किसी को अपनी वाणी द्वारा आहत न करे व अपने कर्म करके जीवन-यापन करे वही व्यक्ति साधु कहलाएगा। अतः सांसारिक जीवन जीते हुए व्यक्ति अपने आचरण व कर्म से साधु हो सकता है। साधु होने के लिए किसी निश्चित वेशभूषा की जरूरत नहीं।

12.

आपकी दृष्टि में भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा के क्या कारण रहे होंगे?

Answer»

कबीर और बालगोबिन भगत के विचारों में काफी समानता है। कबीर का फकीरी स्वभाव, सरल-सादा जीवनशैली, कुरीतियों व बाह्याडंबरों का खुलकर विरोध करना, समाज सुधार की लगन, व्यवहार में खरापन जैसी विशेषताओं से बालगोबिन भगत बहुत आकर्षित हुए होंगे। इन्हीं गुणों को उन्होंने अपने जीवन में अपना लिया होगा और धीरे-धीरे उनकी कबीर में आस्था बढ़ती गई होगी। और कबीर ही उनके साहब बन गए थे।

13.

गांव का सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश आषाढ़ चढ़ते ही उल्लास से क्यों भर जाता है?

Answer»

ज्येष्ठ की भयंकर गर्मी से त्रस्त गांवों के लोग आषाढ़ मास का बेसब्री से इंतजार करते हैं। किसानों को खेतों में बुआई करने के लिए वर्षा के आगमन की प्रतीक्षा रहती है। आषाढ़ लगते ही बादल छा जाते हैं, रिमझिम-रिमझिम बारीस से पूरा वातावरण शीतलता से भर उठता है। वातावरण में ठंडक आने से उदासीन मन प्रफुल्लित हो उठता है।

बारीस होने पर किसान, बच्चे, महिलाएं सभी खुश हो उठते हैं। खेतों में धान की रोपाई करने के लिए सारा गाँव खेतों में उमड़ पड़ता है। बच्चे धान की रोपाई करते समय कीचड़ में खेलते हैं, हलवाहे हल चलाते हैं, महिलाएं कलेवा लेकर मेड़ों पर इंतजार करती हैं। इस तरह आषाढ़ लगते ही गाँव का सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश उल्लास से भर उठता है।

14.

धान की रोपाई के समय समूचे माहौल को भगत की स्वर-लहरिया किस तरह चमत्कृत कर देती थीं ? इस माहौल का शब्द-चित्र प्रस्तुत कीजिए।

Answer»

बालगोबिन भगत के संगीत में जादु था । इसे आषाढ़ में जब धान की रोपाई होती थी तब उनके संगीत से पूरा माहौल चमत्कृत हो उठता था। आषाढ़ की रिमझिम बारीस में पूरा गाँव खेतों में होता था। आसमान बादलों से घिरा, घूम का कोई नामोनिशान न रहता था। ठंडी हवा चलने लगती थी। उस समय अपने खेतों में धान की रोपाई करते बालगोबिन कीचड़ से सने होते।

जब वे गीत गाने लगते तो लगता उनके कंठ से निकला एक स्वर स्वर्ग की ओर जा रहा है और दूसरा पृथ्वी की मिट्टी पर खड़े लोगों के कानों की ओर । बच्चे खेलते हुए झूम उठते । मेड़ पर खड़ी औरतों के ओठ कांप उठते थे, वे भी गुनगुनाने लगती थीं। हलवाहों के पैर संगीत की ताल पर उठने लगते, रोपाई करनेवालों की अंगुलियां एक अजीब क्रम में चलने लगती थौं । चारों तरफ का वातावरण अद्भुत हो जाता था।

15.

पाठ के आधार पर बताएं कि बालगोबिन भगत की कबीर पर श्रद्धा किन-किन रूपों में प्रकट हई है?

Answer»

बालगोबिन भगत कबीर को अपना साहब मानते थे। वे कबीरपंथी के नियमों व आदर्शों का अनुकरण करते थे। कबीर के प्रति उनकी श्रद्धा बहुत थी। वे कबीर के सीधे-साधे पदों को गाते थे। कबीर की तरह ही उनका व्यवहार था। वे सभी को खरी बात कहते थे, झूठ नहीं बोलते थे। वे कबीरपंथियों की तरह कनफटी टॉपी पहनते थे।

खेतों में जो फसल पैदा होती उसे पहले अपने ‘साहब’ को भेंट के रूप में चढ़ाते थे, जो प्रसाद के रूप में मिलता उसे घर लातें और उसी में से गुजारा करते थे। अपने बेटे की मृत्यु पर शोक न मनाकर वे गीत गाने में ही मग्न थे। उनके अनुसार आत्मा का परमात्मा से मिलन हो गया तो शोक की बजाय वे अपनी पुत्रवधू को उत्सव मनाने के लिए कहते हैं। उपरोक्त सभी घटनाएं बताती हैं कि बालगोबिन भगत कबीर पर बहुत श्रद्धा रखते थे।

16.

लेखक बालगोबिन पर क्यों मुग्ध थे ?

Answer»

बालगोबिन भगत कबीर के सीधे-सादे पदों को बहुत मधुर कंठ से गाते थे। उनके कंठ से निकलकर वे पद सजीव हो उठते थे। उनके इन्हीं मधुर गान पर लेखक बालगोबिन पर मुग्ध थे।

17.

बालगोबिन की किस बात से लोगों को कौतुहल होता था ?

Answer»

बालगोबिन आचरण से शुद्ध थे, वे किसी को भी अपने व्यवहार द्वारा ठेस नहीं पहुंचाना चाहते थे, इसलिए वे शौचक्रिया भी दूसरे के खेत में नहीं करते थे। अपने ही खेत में शौचक्रिया करते थे। बालगोबिन की इस बात से सभी को कुतूहल होता था।

18.

बालगोबिन का दूसरों के प्रति व्यवहार कैसा था ?

Answer»

बालगोबिन कबीर के आदर्शों पर चलनेवाले खरे व्यक्ति थे। वे कभी झूठ नहीं बोलते थे, सबसे खरा व्यवहार रखते थे। किसी से भी दो टूक बात करने में संकोच नहीं करते थे, न किसी से खामखाह झगड़ा करते थे।

19.

बालगोबिन भगत के परिवार में कौन-कौन था ?

Answer»

बालगोबिन भगत की पत्नी नहीं थी। उनका एक बेटा था जो सुस्त और बोदा-सा था। उनकी पुत्रवधू थी जिसने पूरे घर का प्रबंध संभाल रखा था।

20.

इस पाठ में जो ग्राम्य संस्कृति की झलक मिलती है, वह आपके आस-पास के वातावरण से कैसे भिन्न हैं ?

Answer»

हम जहाँ रहते हैं, वह शहरी वातावरण है। ग्रामीण संस्कृति और शहरी संस्कृति दोनों में जमीन-आसमान का अन्तर होता है। पाठ में हमने जिस ग्रामीण संस्कृति को पढ़ा शहर में उसका नामोनिशान नहीं होता। यहाँ न खेत है न खलिहान । न खेत की रोपाई न आषाढ़ की रिमझिम । रिमझिम बारीस में खेतों में उल्लासपूर्वक खेलतें बच्चे ।

न हल जोतते किसान, न कलेवा लेकर मेड़ पर इंतजार करती औरतें, न बालगोबिन जैसा कोई चरित्र जो भोर से भी पहले उठकर अपने गीतों से समग्र वातावरण को गुंजायमान करे । यहाँ तो शहर की भीड़भाड़ में अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए भागनेवाला जनसमुदाय है जिसे केवल अपनी ही चिंता है, औरों की नहीं। चारों ओर यातायात के साधनों का कोलाहलपूर्ण वातावरण । न यहाँ स्वच्छ हवा है, न अच्छा खान-पान । दूषित जल-प्रदूषणयुक्त वातावरण में रोगग्रस्त लोग है । शहरीजीवन शैली गाँवों की जीवनशैली से एकदम भिन्न है।

21.

पाठ के आधार पर भादों की आधी रात का वर्णन कीजिए।

Answer»

भादों की आधी रात को मूसलाधार वर्षा खत्म हुई। बादलों की गर्जना व बिजली की चमक के बाद झिाली की झंकार और मेढ़क की टर्र-टर्र सुनाई दे रही थी। इसी भादों की आधी रात में खेजड़ी की डिमग-डिमग बजाकर बालगोबिन भगत गीत गाते हैं।

22.

बालगोबिन अपने घर का गुजारा कैसे करते थे?

Answer»

बालगोबिन किसान थे। खेतों में जो पैदावार होती थी उसे पहले अपने कबीर (साहब) को भेंट स्वरूप चढ़ाते थे। वहां से जो पैदावार उन्हें प्रसाद के रूप में प्राप्त होता था उसे घर लाते और उसी से अपने घर का गुजारा करते थे।

23.

धान की रोपाई किस महीने में होती है?(क) आषाढ़(ख) भादो(ग) कार्तिक(घ) फाल्गुन

Answer»

सही विकल्प है (क) आषाढ़

24.

पाठ के आधार पर आषाढ़ माह में गांव के लोगों का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

Answer»

आषाढ़ माह वर्षा के आरंभ का महीना है। आषाढ़ लगते ही रिमझिम-रिमझिम वर्षा शुरू होने लगती है, उस समय सारा गाँव खेतों में उतर पड़ता है। कहीं हल चलता है, कहीं धान की रोपनी होती है। धान के पानी भरे खेतों में बच्चे उछल-उछल कर खेलते हैं। औरतें क्लेवा लेकर मेंड पर बैठी है। आसमान बादलों से घिरा है, धूप का कहीं नामो-निशान नहीं है।

ठंडी पूरवाई चल रही है। बालगोबिन कीचड़ी से लथपथ धान की रोपाई करते समय गीत गाते । उनके गीत ने वातावरण को चमत्कृत कर दिया है। बच्चे खेलते हुए झूम उठते हैं, मेड़ पर खड़ी औरतों के होठ काँप उठते है, वे गुनगुनाने लगती हैं। हलवाहों के पैर ताल से उठने लगते हैं, रोपनी करनेवालों की अंगुलियां एक अजीब क्रम में चलने लगती हैं। यह सब बालगोबिन के संगीत का जादू है।

25.

बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरच का कारण क्यों थी ?

Answer»

बालगोबिन भगत की दिनचर्या सब लोगों से अलग थी। जब सारा गाँव सोता था तब वे जागते थे और कबीर के पद गाते रहते थे। कबीरपंथी होने के कारण उनके नियमों का चुस्तता से पालन करते थे। भोर से पहले न जाने कब उठकर दो मील दूर नदी में स्नान करते । गाँव के पोखर के पास भिडे पर खंजड़ी बजाकर गीत गाते ।

आषाढ़ के दिनों में कीचड़ से लथपथ धान की रोपाई करते समय जब गीत गाते थे बच्चे उछल पड़ते, औरतों के ओंठ कांप उठते। उनके संगीत में एक प्रकार का जादू था। वे उपवास रखकर गंगा स्नान करने जाते तो घर आकर ही कुछ खाते-पीते थे। कभी झूठ नहीं बोलते थे, खरा व्यवहार रखते थे।

किसी की चीज़ छूते नहीं थे, न बिना पूछे व्यवहार में लाते थे। यहाँ तक कि वे कभी दूसरे के खेत में शौच के लिए भी नहीं बैठते थे। मरणासन्न स्थिति में भी वही जवानीवाली आवाज, वही नियम, संगीत के प्रति वही तन्मयता सबको अचरज में डाल देती थी।

26.

बालगोबिन कहाँ पर अपने गाने टेरने लगते थे ?(क) गाँव के बाहर(ख) नदी के किनारे(ग) घर के आंगन में(घ) पोखरे के ऊँचे भिंडे पर

Answer»

(घ) पोखरे के ऊँचे भिंडे पर

27.

कातिक मास में बालगोबिन भगत का दिन कैसे प्रारंभ होता है?

Answer»

कातिक मास में बालगोबिन बड़े सवेरे उठते । न जाने किस वक्त जगकर नदी स्नान को जाते, वहाँ से नहा-धोकर लौटते और गांव के बाहर ही पोखरे के ऊंचे भिडे पर खजड़ी लेकर बैठते और अपने गाने टेरने लगते थे।

28.

बालगोबिन भगत का बेटा कैसा था?(क) तेज और सुन्दर(ख) चालाक और होशियार(ग) सुस्त और बोदा-सा(घ) मंदबुद्धि और सुंदर

Answer»

(ग) सुस्त और बोदा-सा

29.

बालगोबिन भगत की मौत उन्हीं के अनुरूप हुई। ऐसा लेखक ने क्यों कहा?

Answer»

बालगोबिन की मृत्यु उन्हीं के अनुरूप हुई। ऐसा लेखक ने इसलिए कहा क्योंकि उनके आदर्शों के अनुरूप बालगोबिन ने किसी से अपनी सेवा नहीं करवाई। एक बार वे गंगा स्नान करने गए । उनका विश्वास स्नान करने पर नहीं संत-समागम और लोक-दर्शन पर अधिक था। किसी से भिक्षा नहीं लेते थे।

घर से खाकर जाते तो फिर घर पर आकर ही खाना खाते । इस बार जब वे लौटे तो उनकी तबियत खराब रहने लगी। दोनों समय स्नान करना, ध्यान गीत, खेतीबाड़ी देखना आदि के कारण उनका शरीर धीरे-धीरे कमजोर होने लगा। लोग उन्हें नहाने धोने से मना करते आराम करने को कहते पैर भगतजी हंसकर टाल देते ।

एक दिन शाम के समय जब वे गा रहे थे तो उनका स्वर बिखरा हुआ था, अगले दिन भोर में लोगों ने उनका गीत नहीं सुना । लोगों ने जाकर देखा, तो उनका पंजर पड़ा था। यों आखिरी साँस तक उन्होंने संगीत साधना की। ऐसा ही वे चाहते थे। उनकी आत्मा परमात्मा में सदा के लिए विलीन हो गई । इस प्रकार बालगोबिन भगत की मौत उन्हीं के अनुरूप हुई थी।

30.

बालगोबिन भगत की उम्र कितने वर्ष की रही होगी?(क) पचास वर्ष से ऊपर(ख) पचास वर्ष से नीचे(ग) साठ वर्ष से ऊपर(घ) साठ वर्ष से नीचे

Answer»

(ग) साठ वर्ष से ऊपर

31.

बालगोबिन भगत अपनी पुत्रवधू को अपने बेटे की मृत्यु पर शोक मनाने की जगह उत्सव मनाने को क्यों कहते थे ?

Answer»

बालगोबिन भगत के अनुसार बेटे की मृत्यु होने पर उसकी आत्मा परमात्मा से जा मिली। आत्मा यानी विरहिणी अपने प्रेमी यानी परमात्मा से जाकर मिल गई तो यह बड़े आनंद की बात है। शोक न मनाकर बालगोबिन अपनी पुत्रवधू से उत्सव मनाने को कहते थे।

32.

बालगोबिन के घर से गंगा कितनी दूरी पर थी?(क) करीब पचीस कोस की दूरी पर(ख) करीब तीस कोस की दूरी पर(ग) कबीर बीस कोस की दूरी पर(घ) करीब चालीस कोस की दूरी पर

Answer»

(ख) करीब तीस कोस की दूरी पर

33.

बालगोबिन भगत की संगीत साधना का चरमोत्कर्ष किस दिन देखा गया?(क) जब बालगोबिन भगत के बेटे की शादी हुई थी।(ख) जब बालगोबिन भगत गीत गाते थे।(ग) जब बालगोबिन भगत गंगा स्नान करने जाते थे।(घ) जब बालगोबिन भगत का बेटा मरा था।

Answer»

(घ) जब बालगोबिन भगत का बेटा मरा था।