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This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.
| 1. | सूचना पढ़िए। उसके अनुसार कीजिए।i) प्रभु, पानी, चंद्र (एक – एक शब्द का वाक्य प्रयोग कीजिए और उसके पर्याय शब्द लिखिए)।ii) स्वामी, गुरु, दिन (एक – एक शब्द का विलोम शब्द लिखिए और उससे वाक्य प्रयोग कीजिए)।iii) चदंन, सबी, भस्ति (वर्तनी सही कीजिए)। | 
| Answer» i). वाक्य प्रयोग 1. प्रभु – प्रभु श्रीकृष्ण तेरी रक्षा करें। 2. पानी – प्यास लगने पर हम पानी पीते हैं। 3. चंद्र – चंद्र चाँदनी फैला रहा है। पयार्य शब्द 1. प्रभु – भगवान, ईश्वर, स्वामी 2. पानी – जल, नीर 3. चंद्र – चंद्रमा, चाँद, शशि ii). विलोम शब्द 1. स्वामी × दास 2. गुरु × शिष्य 3. दिन × रात वाक्य प्रयोग 1. स्वामी : भगवान को अपना स्वामी और हमें उनका दास मानकर पूजा करना चाहिए। 2. गुरु : गुरु पढ़ाता है और शिष्य पढ़ता है। 3. दिन : दिन मैं चाँद को और रात में सूरज को कौन देख सकते हैं? iii). चंदन, सभी, भक्ति | |
| 2. | रैदास और मीराबाई के ‘भक्ति पद’ इस पाठ के आधार पर बताइए कि दोनों की भक्ति में मुख्य अंतर क्या हैं? | 
| Answer» रैदास ज्ञानमार्गी शाखा के प्रमुख कवि हैं। रैदास जी भगवान को ही उनके हर एक काम का भागीदार बनाकर उनको हमेशा ऊँचे स्थान पर रखना चाहते हैं। रैदास भगवान को स्वामी बनाकर वह सेवक के रूप में रहना चाहते हैं। रैदास के प्रभु निराकार हैं। मीराबाई कृष्णोपासक कवयित्रियों में श्रेष्ठ हैं और माधुर्य भाव प्रयोग में पटु हैं। उनके पद सरस और मधुर हैं। मीरा श्रीकृष्ण की उपासना करती हैं। बचपन में ही मीरा के मन में कृष्ण के प्रति प्रेम भाव . अंकुरित हुआ। वह प्रेम भाव, उम्र के साथ -साथ बढ़ता आया। उनकी भक्ति माधुर्य भक्ति की है। मीराबाई . बताती हैं भगवान के नाम रूपी नाव से ही संसार रूपी सागर को पार सकते हैं। इसका सही राह का मार्ग दर्शन गुरु द्वारा होता है। मीरा श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए प्राणों तक न्योछावर करती हैं। | |
| 3. | मीराबाई के अनुसार जनम-जनम की पूँजी क्या है? समझाइए । | 
| Answer» मीराबाई के अनुसार जनम-जनम की पूँजी गुरु द्वारा दिया गया ज्ञान है। उन्होंने गुरु की महिमा का गुणगान किया है। मीरा कहती हैं कि मेरे गुरु ने मुझे भक्ति रूपी धन दिया है। यह धन रामरूपी रत्न के समान है। गुरु की विशेष कृपा के कारण मुझे यह धन मिला है। मेरा सौभाग्य है कि उन्होंने मुझे अपनी शिष्या के रूप में स्वीकार किया। मैंने संसार में सबकुछ खोकर जन्म-जन्म की पूँजी प्राप्त कर ली है। वह पूँजी है- ज्ञान| यह ज्ञानधन अमूल्य है। इसकी विशेषता है कि यह कभी खत्म नहीं होता। खर्च करने पर यह बढ़ता है। इसे कोई चोर भी नहीं लूट सकता। यह धन दिन-प्रतिदिन बढ़ता जाता है। मीरा कहती हैं कि जीवन सत्य की नाव है। इसके केवट मेरे सतगुरु हैं। उन्होंने मुझे ज्ञान देकर भवसागर से पार उतार दिया। मेरे प्रभु गिरधर नागर हैं। मैं उनके समक्ष अपने गुरु का यश गा रही हूँ। | |
| 4. | रैदास के पदों के आधार पर उनकी भक्ति की विशेषताओं का वर्णन कीजिए। | 
| Answer» रैदास को रविदास भी कहते हैं। ये निर्गुण भक्ति शाखा के ज्ञानमार्गी शाखा के कवियों में प्रमुख हैं। रैदास की भक्ति भावना दास्य भाव की है। रैदास ने ईश्वर की तुलना चंदन से की है। और स्वयं की पानी से। क्योंकि चंदन में पानी को मिलाने से ही पानी का प्रत्येक कण सुगंधित हो उठता है। उन्होंने ईश्वर को बादल और स्वयं को मोर माना है। जिस प्रकार बादलों को देखकर मोर खुशी से झूम उठता है और नाचने लगता है । उसी प्रकार भगवान के स्मरण मात्र से रैदास का मन झूम उठता है। चंद्र को देखकर चकोर संतृप्त होता है । उसी प्रकार भगवान के स्मरण से रैदास भी तृप्त हो जाते हैं। उन्होंने ईश्वर को मोती और स्वयं को धागा माना है। धागे में मोतियों को पिरोने से एक सुंदर माला बनती है और धागे का महत्व बढ़ जता है। जिस प्रकार मोती के बिना या धागे के बिना माला नहीं बनती। दोनों एक – दूसरे के पूरक हैं। उसी प्रकार सोने में सुहागे से ही चमक आती है और सुंदरता बढ़ जाती है। रैदास ईश्वर को स्वामी और स्वयं को दास मानते हैं। भगवान के प्रति उनकी भक्ति दास्य भाव की है। | |
| 5. | सामाजिक मूल्यों के विकास में ‘भक्ति’ किस प्रकार सहायक हो सकती है? भक्ति पदों के आधार पर उत्तर लिखिए। | 
| Answer» हमारे मानव जीवन में भक्ति का बड़ा महत्व है। प्रेम से श्रद्धा और श्रद्धा से भक्ति उत्पन्न होती है। सामाजिक प्राणी मानव को आदर्शमय जीवन बिताते निष्काम भावना से रहना है। भक्ति भावना इसका मूलमंत्र है। भक्ति में शक्ति होती है। भक्ति में ममत्व होता है। मानव समाज में रहते हुए संतों की संगति, भगवान के गुणगान में अनुराग, गुरुसेवा, भगवान का गुणगान, निष्काम कर्म, विश्व को ईश्वरमय समझना, दूसरों के अपकार गुणों पर ध्यान न देना, निष्कपट रहना आदि भक्ति के महान गुण हैं। भक्ति ये सब सद्गुण देती है। वह संकल्प की दृढता देती है। वह शांति और आनंद देती है। भक्ति पदों में हमें यही भावना स्पष्ट होती है। सामाजिक मूल्यों के विकास में भक्ति ही बडा असरदार है। इस कथन के द्वारा हम स्पष्ट कर सकते हैं। | |
| 6. | मीराबाई ने अपने पदों में गुरु की महिमा का वर्णन कैसे किया ? | 
| Answer» कविता : भक्ति पद 
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| 7. | मीरा की भक्ति भावना पर अपने विचार स्पष्ट कीजिए। | 
| Answer» कविता : भक्ति पद मीराबाई कहती हैं कि मुझे मिली है, मुझे भगवान का नाम रूपी रतन संपत्ति मिली है। मेरे सतगुरु ने मुझे यह अमूल्य वस्तु दी हैं। उनकी कृपा से मैंने उसे स्वीकार किया है। जन्मजन्म की भक्ति रूपी मूलधन को मैंने पाया है। लेकिन इसके बदले में संसार के सभी चीजों को खोयी हूँ। फिर भी मैं बहुत खुश हूँ। क्योंकि इसे कोई भी नहीं खर्च कर सकता, कोई भी नहीं लूट सकता है। दिन – ब-दिन उसमें वृद्धि हो रही है। सच रूपी नाव के, नाविक मेरे सत्गुरु है। उन्ही के सहारे मैं भवसागर को पार चुका हूँ। मीरा के प्रभु गिरिधर चतुर है, उन्हीं मीराबाई खुशी – खुशी से गाती है । इस प्रकार मीरा इन पदों में श्रीकृष्ण को सत्गुरु की कीर्ति बनाकर उनका दर्शन करने का उद्देश्य प्रकट करती हैं। विशेषता : | |
| 8. | रैदास की दास्य भक्ति भावना को भक्ति पद पाठ के आधार पर वर्णन कीजिए।(या)कवि रैदास की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिये। | 
| Answer» शीर्षक का नाम : “भक्ति पद है। 
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| 9. | रैदास ने किन उदाहरणों के द्वारा भक्त और भगवान के बीच संबंध स्थापित किया? | 
| Answer» रैदास जी ने भगवान की तुलना चंदन, मेघ, मोती और स्वामी से की है। उनका कहना है कि ईश्वर चंदन है और हम पानी हैं। वह मेघ है और हम मोर हैं। हम धागा हैं और वह मोती है। वह मालिक है और हम उसके दास हैं। | |
| 10. | रैदास भगवान की उपासना कैसे करते हैं? | 
| Answer» शीर्षक का नाम : “भक्ति पद’ है। 
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| 11. | मीरा ने कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति की किस प्रकार के धन से तुलना की है? | 
| Answer» कवइत्री कहती है कि मुझे राम नाम रूपी रत्न की पूँजी मिली। मुझे यह पूँजी सद्गुरु के द्वारा तथा उनकी कृपा से मिली। यह पूँजी मेरे कई जन्मों के लिए भी पर्याप्त है। इसे प्राप्त करने के लिए मैंने जगं के सांसारिक वैभवों को खो दिया। मेरी पूँजी ऐसी है कि इसे खर्च करने पर भी खर्च नहीं होती, कोई चोर भी इसे नहीं चुरा सकता। यह हर दिन 1¼ (सवाये) मूल्य की होती है। कवइत्री और कहती है कि मेरी नाव जो है वह सत्य की है। इसे खेने वाला सद्गुरु है। मैं उसकी कृपा से भव सागर को पार करती हूँ। मेरा भगवान तो श्रीकृष्ण (गिरिधर नागर) है। मैं हर्ष के साथ उसके यश गाती हूँ। | |
| 12. | मीरा की भक्ति भावना पर अपने विचार लिखिये। | 
| Answer» मीरा कृष्ण भक्ति कवयत्री हैं | उनकी भक्ति माधुर्य भक्ति की है। श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति भावना ही मीरा के पदों का मूल भाव है। उनके पदों में प्रेम, त्याग, भक्ति और आराधना के भाव हैं। मीराबाई हिन्दी की श्रेष्ठ कवयित्री हैं। मीरा के पदों में उनकी अन्तरात्मा की पुकार है | उनमें हृदय की कसक है। वियोगिनी का आर्त – क्रंदन है। आत्म निवेदन है और मार्मिकता तथा कोमलता का अद्भुत मिश्रण है। इन पदों में मीरा श्रीकृष्ण के दर्शन पाने का उद्देश्य प्रकट करती हैं। मीरा की भक्ति महान है। | |
| 13. | जीवन में गुरु का क्या महत्व है? अपने शब्दों में लिखिए | | 
| Answer» जीवन में गुरु का विशेष महत्व है। गुरु हमें ज्ञान देता है। ज्ञान हमें अच्छे-बुरे में भेद करना सिखलाता है। गुरु का सच्चा ज्ञान हमें सत्य के मार्ग पर ले जाता है। गुरु द्वारा दिये ज्ञान को हमसे कोई छीन नहीं सकता। गुरु ज्ञान हमारे लिए एक अनमोल रल के समान है। इसके सहारे हम जीवन को सफल बना सकते हैं। संसार रूपी भवसागर को सफलतापूर्वक पार कर सकते हैं। | |
| 14. | भक्ति मार्ग के द्वारा नैतिक मूल्यों का विकास कैसे हो सकता है? | 
| Answer» भक्ति मार्ग के द्वारा नैतिक मूल्यों का विकास होता है। भक्ति और नैतिक मूल्य परस्पर मिले-जुले हैं। एक भक्त किसी को नुकसान नहीं पहुँचा सकता। वह ईश्वर की बनाई हर वस्तु का सम्मान करता है। वह प्रकृति के कण-कण की रक्षा करता है। भक्ति का अर्थ है भगवान के प्रति विशेष प्रेम। भगवान के प्रति भक्ति रखने के लिए सहृदयता, सादगीपन,सत्यविचार, स्वच्छ मन, गुरु की महत्त्व, लोकमर्यादा और आदर्श मानवतावाद जैसे नैतिक मूल्यों की ज़रूरत होती है। | |
| 15. | मीराबाई के बारे में आप क्या जानते हैं? | 
| Answer» 
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| 16. | ‘भवसागर’ पार करने के लिए हमें किनकी ज़रूरत है? | 
| Answer» भवसागर पार करने के लिए हमें गुरु की ज़रूरत है। गुरु हमें ज्ञान देता है। इस ज्ञान को हमसे कोई छीन नहीं सकता। इसे जितना खर्च करो उतना बढ़ता है। गुरु ज्ञान के सहारे हम अपने जीवन को सफल बनाते हैं। इसके सहारे ही हम संसाररूपी भवसागर को सफलतापूर्वक पार कर लेते हैं। हमारा नाम संसार में हमेशा के लिए अमर हो जाता है। | |
| 17. | अपने मनपसंद तीन संत कवियों के नाम और उनकी रचनाएँ बताइए। | 
| Answer» मेरे मनपसंद तीन संत कवि कबीर, रैदास और रहीम हैं। कबीर ने बीजक नामक ग्रंथ लिखा है। इसके तीन भाग हैं- साखी, सबद और रमैनी। रैदास ने छिटपुट पद और भजन लिखे हैं। इनके पद गुरु ग्रंथ साहब में संकलित हैं। इनका असली नाम रविदास था। रहीम ने अनेक नीति दोहे लिखे हैं। रहीम दोहावली, रहीम सतसई, बरवै नायिका भेद, शृंगार सोरठा आदि उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। | |
| 18. | रैदास का संक्षिप्त परिचय लिखिए। | 
| Answer» भक्तिकाल के ज्ञानमार्गी शाखा के प्रमुख कवियों में एक थे कविवर रैदास जी। इनका जन्म सन् 1482 में हुआ और मृत्यु सन् 1527 में हुई। इन्होंने भक्ति संबंधी अनेक चौपाइयों की रचना की। इनकी चौपाइयाँ (पद) “गुरुग्रंथ साहिब” में संकलित हैं। इन्होंने स्पष्ट किया कि भगवान के नाम रूपी नाव से ही संसार रूपी सागर से तर सकते हैं और भगवान को प्राप्त करने का सही मार्गदर्शन गुरु के द्वारा ही होता है। | |
| 19. | मीरा की भक्ति भावना के बारे में आप क्या जानते हैं? | 
| Answer» मीरा कृष्ण भक्ति कवयत्री हैं | उनकी भक्ति माधुर्य भक्ति की है। श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति भावना ही मीरा के पदों का मूल भाव है। उनके पदों में प्रेम, त्याग, भक्ति और आराधना के भाव हैं। मीराबाई हिन्दी की श्रेष्ठ कवयित्री हैं। मीरा के पदों में उनकी आत्मा की पुकार है । उनमें हृदय की कसक है। वियोगिनी का क्रंदन है। आत्म निवेदन है और मार्मिकता तथा कोमलता का अद्भुत मिश्रण है। इन पदों में मीरा श्रीकृष्ण के दर्शन पाने का उद्देश्य प्रकट करती हैं। मीरा की भक्ति माधुर्य भाव की है। आत्म समर्पण की है। | |
| 20. | कवि ने अपने आपको मोर क्यों माना होगा? | 
| Answer» घने बादलों को देख कर मोर खूब नाचता है आनंद विभोर हो जाता है। उसी प्रकार रैदास भगवान रूपी बादल को देखकर खूब आनदं विभोर हो जाता है। इसलिए कवि ने अपने को मोर माना होगा। | |
| 21. | प्रभु के प्रति रैदास की भक्ति कैसी है? | 
| Answer» प्रभु के प्रति रैदास की भक्ति “दास्य भक्ति” है। | |
| 22. | संत किसे कहते हैं? | 
| Answer» जिनमें अच्छे गुण हैं (सत्गुरु) जो राम रतन धन की प्राप्ति में सहायता देता है वही संत कहा जाता है|संत दूसरों की हित में रहते हैं। अच्छे मार्ग पर चलने का संदेश देते हैं। | |
| 23. | “निराडंबर भक्ति भावना’ का क्या महत्व है? | 
| Answer» निराडंबर भक्ति भावना का महत्व बहुत अधिक है। सच्चा भक्त तो निराडंबर ही होता है। भगवान की उपासना सच्चे हृदय से की जाती है। न कि ठाट – बाट और आडंबरों से। | |
| 24. | गुरु को किससे श्रेष्ठ बताया गया है? क्यों? | 
| Answer» गुरु को गोविंद (भगवान) से श्रेष्ठ बताया गया है क्योंकि भगवत और भगवान भक्ति का ज्ञान हमें उन्होंने (गुरु) ही दिया है। | |
| 25. | रैदास ने अपनी तुलना किन चीज़ों से की हैं? | 
| Answer» रैदास कहते हैं कि हे प्रभुजी! आप चंदन हो तो मैं पानी हूँ। तुम बादल हो तो मैं मोर हूँ। तुम मोती हो मैं धागा हूँ। मैं आपकी भक्ति में खो जाना चाहता हूँ! मैं तुम्हारा दास हूँ। उनकी भक्ति में समर्पण की भावना है। | |
| 26. | माधुर्य भक्ति के बारे में आप क्या जानते हैं? | 
| Answer» ईश्वर को पति या सखा मानकर उनकी भक्ति करना माधुर्य भक्ति कहलाती है। मीराबाई का नाम माधुर्य भाव की भक्ति के लिए जाना जाता है। ईश्वर को पति या सखा मानकर उसके प्रति प्रेम रखना भक्ति की एक परंपरा है। इसमें हम स्वयं को ईश्वर के प्रति अर्पित कर देते हैं। | |
| 27. | भगवत भक्ति का ज्ञान कौन देता है? | 
| Answer» भगवत भक्ति का ज्ञान गुरु देता है। | |
| 28. | मीराबाई ने गुरु की महिमा के बारे में क्या बताया? | 
| Answer» मीरा का कहना है कि गुरु हमें अमूल्य ज्ञान देता है। ज्ञान ऐसा धन है जो खर्च करने से बढ़ता है। ज्ञान कोई चोरी भी नहीं कर सकता। दिन-ब-दिन यह सवा गुना बढ़ता है। गुरु द्वारा प्राप्त ज्ञान ही हमें भवसागर से पार लगाता है। | |
| 29. | रैदास ने ईश्वर की तुलना किनसे की है? | 
| Answer» यह प्रश्न भक्ति पद’ नामक पद्य पाठ से दिया गया। रैदास ने अपनी रचनाओं में समर्पण की भावना, दास्य भक्ति को अधिक महत्व दिया। उन्होंने ईश्वर की तुलना चंदन, बादल, मोती और स्वामी से की है। | |
| 30. | वचन बदलकर वाक्य फिर से लिखिए।i) मोती सागर में मिलता है।ii) धागे से माला बनती है।ii) मोर सुदंर पक्षी है। | 
| Answer» i) मोती सागर में मिलते हैं। ii) धागे से मालाएँ बनती हैं। iii) मोर सुंदर पक्षी हैं। | |
| 31. | “मीरा के पद” का भाव अपने शब्दों में लिखिए।(या)मीराबाई के भक्ति पदों का भाव अपने शब्दों में लिखिए। | 
| Answer» पाठ का नाम : भक्ति के पद इस प्रस्तुत पद में मीराबाई जी ने सतगुरु की महिमा तथा कृपा के बारे में वर्णन किया है। मीराबाई कहती है कि “मैं राम रतन धन पायी हूँ। यह अमूल्यवान वस्तु है। मेरे सद्गुरु जी ने बहुत कृपा के साथ मुझे दी है। यह जन्म – जन्म की पूँजी है। इसे प्राप्त करने के लिए मैंने जग में सभी खोया। जो पूँजी मैंने पायी वह खर्च नहीं होगी। इसे कोई चोर भी लूट नहीं सकेगा। यह दिन – दिन सवाये मूल्य की बढ़ती जाती है। मेरी नाव जो है वह सत्य की है। इसे खेनेवाला मेरे गुरु जो हैं वे सद्गुरु हैं। मैं सद्गुरु की कृपा से ही भव सागर को तर सकती हूँ। मेरे स्वामी (भगवान) तो गिरिधर नागर श्रीकृष्ण हैं। मैं खूब प्रसन्नता के साथ उनके यशो गीत गाऊँगी। विशेषता : इसमें गुरु की महिमा का वर्णन है। | |
| 32. | रैदास जी ने ईश्वर की तुलना चंदन, बादल और मोती से की है। आप ईश्वर की तुलना किससे करना चाहेंगे? और क्यों ? | 
| Answer» मैं तो ईश्वर की तुलना दयालु, दानी, पाप जि को हारी अनाथ – नाथ, ब्रह्म, स्वामी, माँ – बाप, गुरु और मित्र के समान करता हूँ। क्योंकि ईश्वर दीनों पर दया करनेवाला है तो मैं दीन हूँ। ईश्वर दानी है तो मैं भिखमंगा हूँ। ईश्वर पाप कुंजी हारी है तो मैं उजागर पापी हूँ। ईश्वर अनाथों का नाथ है तो मैं अनाथ हूँ। ईश्वर ब्रह्म है तो मैं जीव हूँ। ईश्वर स्वामी है तो मैं सेवक हूँ। इतना ही क्यों भगवान (ईश्वर) माँ – बाप, गुरु और मित्र सब प्रकार से मेरा हित करने वाला है। | |
| 33. | मीरा भवसागर को कैसे पार करना चाहती हैं? | 
| Answer» मीरा भवसागर को सत्य के सहारे पार करना चाहती हैं। उनके गुरु ने उन्हें राम रत्न रूपी अनमोल ज्ञान दिया है। वे इस ज्ञान के सहारे कृष्ण भक्ति में लीन हैं। वे इस ज्ञान का प्रसार करते हुए, ईश्वर के गुण गाते हुए इस संसार रूपी भवसागर को पार करना चाहती हैं। | |
| 34. | पद्यांश पढ़कर प्रश्नों के उत्तर दीजिए।मैया मोरि में नाहि माखन खायो,भोर भयो गैयन के पाछे मधुबन मोहि पठायो। ।चार पाठर बंसीवट भटक्यो साँझ परे घर मायो,मैं बालक माहिंचन को छोटो छौंको केहि विधि पायो।व्वाल बाल सब बैर परे हैं बरबस मुख लपटायो,यह ले अपनी लकुटी कमरिया बहुतहि नाच नचायो।तब बिहंसी जसोदा. ले उर कंठ लगायो। – महाकवि सूरवाल ।1. कृष्ण किनसे बातें कर रहे हैं?अ) यशोदाआ) देवकीइ) सीताई) पार्वती2. कृष्ण गायों को चराने कहाँ जाते हैं?अ) मधुबनआ) शांतिवनइ) राजवनई) सुंदरवन3. कृष्ण घर कब लौटते हैं?अ) सुबहआ) दोपहरइ) शामई) रात4. कृष्ण की बाहें कैसी हैं?अ) छोटीआ) मोटीइ) चौड़ीई) लंबी5. “बैर’ शब्द का अर्थ क्या है?अ) मित्रआ) मित्रताइ) शत्रुई) शत्रुता | 
| Answer» 1. अ) यशोदा 2. अ) मधुबन 3. इ) शाम 4. अ) छोटी 5. इ) शत्रु | |
| 35. | भक्ति भावना से संबंधित छोटी-सी कविता का सृजन कीजिए। | 
| Answer» हे कृष्ण हम पर रखो सदा कृपा | |
| 36. | मीरा की भक्ति भावना कैसी है? अपने शब्दों में लिखिए।(या)मीरा की भक्ति माधुर्य भाव की थी। उनके पदों का वर्णन कीजिए। | 
| Answer» मीरा भक्ति काल की कवइत्री है। वह कृष्णोपासिका है। वह भगवान श्रीकृष्ण को अपना पति मानकर पूजा करती है। उनकी भक्ति माधुर्य भक्ति है। – मीराबाई जी ने सद्गुरु की महिमा तथा कृपा के बारे में वर्णन किया है। मीराबाई कहती है कि “मैं राम रतन धन पायी हूँ। यह अमूल्यवान वस्तु है। मेरे सद्गुरु जी ने बहुत कृपा के साथ मुझे दी है। यह जन्म – जन्म की पूँजी है।” | |
| 37. | नीचे दी गई पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए।i) सत की नाँव खेवटिया सतगुरु, भवसागर तर आयो।ii) प्रभुजी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अँग – अंग बास समानी। । | 
| Answer» i). इस वाक्य में मीराबाई सत्य तथा सद्गुरु की महिमा बताती हैं। मीरा कहती हैं कि मेरी नाव सत्य की है। मेरी नाव खेनेवाला सद्गुरु है। सतगुरु की कृपा से ही भवसागर रूपी संसार को पार कर सकती हूँ। ii). इस वाक्य में कविवर श्री रैदास जी भगवान को चंदन के रूप में और अपने आपको पानी के रूप में वर्णन करते हैं। रैदास कहते हैं कि हे भगवान तुम चंदन हो और मैं पानी हूँ। चंदन और पानी के मिलने से पानी के अंग – अंग में सुवास निकलता है। जिसे हम अपने शरीर को लगाने से सुगंध निकलता है। | |
| 38. | हमारे जीवन में भक्ति भावना का क्या महत्व है? चर्चा कीजिए। | 
| Answer» हमारे जीवन में भक्ति का बड़ा महत्व है। भक्ति भावना के बिना रहना मुश्किल है। भक्ति मनुष्य के सारे विकारों को नाश करती हैं। निर्मल और पवित्र बनाती है। अहंकार, मोह, लोभ आदि भाव को नष्टकर देती है। सब कार्यों को संभव करने की शक्ति देती है। जीवन को सफल बनाती है। | |
| 39. | पंक्तियाँ उचित क्रम में लिखिए।i) प्रभुजी, तुम पानी हम चंदना ||ii) मीरा के प्रभु नागर गिरिधर, हरख – हरख गायो जस || | 
| Answer» i) प्रभुजी, तुम चंदन हम पानी। ii) मीरा के प्रभु गिरिधर नागर, हरख – हरख जस गायो। | |
| 40. | श्रीकृष्ण के प्रति मीरा की भक्ति कैसी है? | 
| Answer» श्रीकृष्ण के प्रति मीरा की भक्ति माधुर्य की है। वह माधुर्य भाव से अपने प्रभु गिरिधर नागर श्रीकृष्ण का यश गान आनंद के साथ गाती है। | |
| 41. | भक्ति और मानवीय मूल्यों के विकास में भक्ति साहित्य किस प्रकार सहायक हो सकता है? | 
| Answer» छात्रों में भक्ति तथा मानवीय मूल्यों के विकास की आवश्यकता है। इसके लिए मीरा, रैदास तथा बिहारी जैसे कवियों की रचनाएँ सहायक हो सकती हैं। भगवान के प्रति प्रेम ही भक्ति है। भगवत भक्ति से जीवन में सत्व्यवहार, सत्य विचार, आदर भाव आदि मूल्य विकसित होते हैं। रैदास ने भगवान को पाने का मार्ग, कर्म बताया । बिहारी के अनुसार मनुष्य के स्वभाव में अंतर नहीं पड़ता। इससे हम भक्ति भावना के साथ रहेंगे। नैतिक जीवन को अपनायेंगे। | |
| 42. | भगवान की तुलना तुम किससे करोगे? क्यों? | 
| Answer» भगवान की तुलना मैं प्रकृति से करूँगा। क्योंकि प्रकृति ही सबका पालन-पोषण करती है। यहीं से हम हवा और पानी पीते हैं। यहीं से हम रोटी, कपड़ा और मकान बनाते हैं। प्रकृति सबका समान भाव से ध्यान रखती है। इसकी गोद में हम खेल-कूदकर बड़े होते हैं। इसलिए मैं भगवान की तुलना प्रकृति से करूँगा। | |
| 43. | सूचना पढ़िए। उसके अनुसार कीजिए।i) बन, रतन, किरपा (तत्सम रूप लिखिए)।ii) जग, नाँव, अमोलक (अर्थ लिखिए)। | 
| Answer» i). वन, रत्न, कृपा ii). जग = दुनिया, संसार | |
| 44. | रैदास व मीरा की भक्ति भावना में क्या अंतर है? स्पष्ट कीजिए। | 
| Answer» रैदास मीराबाई का गुरु हैं। दोनों भक्ति काल के कवि और कवइत्री हैं। रैदास की भक्ति भावना सख्य तथा दास्य भक्ति का सम्मिलित रूप है। रैदास के अंग – अंग में भक्ति भावना ओत प्रोत है। रैदास भगवान को चंदन, घन – बन, मोती और स्वामी के रूप में मानते हैं। __उसी प्रकार कवइत्री मीरा की भक्ति में माधुर्य भाव अधिक है। श्रीकृष्ण के प्रति मीरा की भक्ति माधुर्य की है। वह माधुर्य भाव से अपने प्रभु गिरिधर नागर श्रीकृष्ण का यश गान आनंद के साथ गाती है। कवइत्री मीराबाई भगवान के नाम रूपी नाव से ही संसार रूपी सागर से तर सकने का मार्ग सोचती है। सही मार्ग दर्शन करने वाला गुरु ही समझती है। दोनों के भक्ति पद रागात्मक शैली में गाये जाते हैं। मीराबाई की भक्ति भावना में माधुर्य है। | |
| 45. | रैदास की भक्ति भावना कैसी है? | 
| Answer» रैदास की भक्ति दास भाव की है। वे ईश्वर को अपना स्वामी मानते थे। वे राम रहीम को एक मानते थे। मूर्ति पूजा, तीर्थ यात्रा जैसे दिखावटों पर इन्हें विश्वास नहीं है। इनकी भक्ति में सेवा भाव है।इनकी भक्ति में समर्पण की भावना है। | |
| 46. | रैदास की भक्ति की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। | 
| Answer» 
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