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1.

सम्बद्ध प्रत्यावर्तन द्वारा सीखने का प्रयोग सहित वर्णन कीजिए और इसकी शैक्षिक उपयोगिता बताइए। याआई० पी०पावलोव द्वारा किये गये प्रयोग को लिखिए और इसकी सहायता से ‘अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धान्त का विवेचन कीजिए। इसकी शैक्षिक उपयोगिता भी लिखिए। याकोहलर द्वारा किये गये किसी एक प्रयोग को लिखिए और इसकी सहायता से अन्तर्दृष्टि से सीखने के सिद्धान्त का विवेचन कीजिए।याअन्तर्दृष्टि अधिगम सिद्धान्त के प्रयोग द्वारा स्पष्ट कीजिए और इसके शैक्षिक निहितार्थ की भी चर्चा कीजिए। यासूझ द्वारा सीखने की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए और शिक्षा में इसकी उपयोगिता बताइए।यासूझ द्वारा सीखने का अर्थ किसी प्रयोग की सहायता से स्पष्ट कीजिए और उसके शैक्षिक निहितार्थ बताइए।याअधिगम के सम्बन्ध में प्रत्यावर्तन सिद्धान्त की विवेचना कीजिए तथा इसके शैक्षिक निहितार्थों पर प्रकाश डालिए। याशिक्षा में अनुबन्धित प्रतिक्रिया की क्या उपयोगिता है? यासीखने के सूझ सिद्धान्त को समझाइए। यासूझ द्वारा सीखने के सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए और प्रयास तथा त्रटि के सिद्धान्त से इसका अन्तर बताइए। 

Answer»

(अ)
सूझ या अन्तर्दृष्टि का सिद्धान्त

सूझ के सिद्धान्त के प्रमुख समर्थक गेस्टाल्टवादी (Gestaltist) हैं। उनके अनुसार पशु और मनुष्य ‘सम्बन्ध प्रतिक्रिया’ तथा ‘प्रयास एवं त्रुटि’ से न सीखकर सूझ या अन्तर्दृष्टि (Insight) द्वारा सीखते हैं। उनके मतानुसार सर्वप्रथम प्राणी अपने आस-पास की परिस्थिति के विभिन्न क्षेत्रों में पारस्परिक सम्बन्धों की स्थापना करता है और सम्पूर्ण परिस्थिति को समझने का प्रयास करता है। तत्पश्चात् उसके अनुसार अपनी प्रतिक्रिया करता है। दूसरे शब्दों में, ‘सुझ’ द्वारा सीखने का तात्पर्य परिस्थिति को पूर्णतया समझकर सीखना है। गुड (Good) के अनुसार, “समझ, यथार्थ स्थिति का आकस्मिक, निश्चित और तत्कालीन ज्ञान है।”

कोहलर का प्रयोग :
सूझ द्वारा सीखने के सिद्धान्त का प्रतिपादन करने के लिए कोहलर (Kohler) ने छह वनमानुषों को एक कमरे में बन्द कर दिया। कमरे की छत पर केलों का एक गुच्छा लटका दिया गया तथा कमरे के एक कोने में एक बॉक्स भी रख दिया गया। समस्त वनमानुष केलों को प्राप्त करने के प्रयास करने लगे, परन्तु उन्हें सफलता नहीं मिली। उनमें से एक वनमानुष इधर-उधर घूमकर बॉक्स के पास पहुँच गया। तत्पश्चात् उसने बॉक्स को पकड़कर खींचा और उसे केलों के नीचे ले जाकर रख दिया तथा बॉक्स के ऊपर खड़े होकर उसने केलों के गुच्छे को उतार कर खा लिया।
इस प्रकार वनमानुष अपनी सूझ के आधार पर सीखते हैं। प्रत्येक कार्य या क्रिया के सीखने में हमें सूझ का प्रयोग करना पड़ता है। विभिन्न समस्याओं का हल भी सूझ के माध्यम से होता है। प्रायः देखा गया है कि किसी ऊँचे स्थान पर रखी मिठाई को बालक वनमानुष की विधि द्वारा ही प्राप्त करते हैं। कोफ्का के अनुसार, “सूझ में व्यक्ति चिन्तन, तर्क तथा कल्पना शक्ति से विशेष काम लेता है, जिस व्यक्ति में जितनी कल्पना-शक्ति होगी, उतनी ही उसमें सूझ होगी।” अल्प स्थान में ही एक इंजीनियर अपनी सूझ से विशाल भवन निर्मित कर देता है।
(ब)
सम्बन्ध प्रतिक्रिया का सिद्धान्त

जब स्वाभाविक उत्तेजक या उद्दीपक (Stimulus) को देखकर प्रतिक्रिया होती है, तब वह सहज क्रिया (Reflex Action) कहलाती है, परन्तु जब अस्वाभाविक उत्तेजक के कारण प्रतिक्रिया होती है तो उसे सम्बन्ध सहज क्रिया या सम्बन्ध प्रतिक्रिया कहा जाता है। उदाहरण के लिए, थाली में रखे भोजन को देखकर कुत्ते के मुख से लार टपकना एक प्रकार की सहज क्रिया है, परन्तु जब किसी अन्य अस्वाभाविक उत्तेजक के कारण लार टपकने लगे तो यह सम्बन्ध प्रतिक्रिया है। लैडेल (Ledell) के अनुसार, “सम्बन्ध सहज क्रिया में कार्य के प्रति स्वाभाविक उत्तेजक के स्थान पर एक प्रभावहीन उत्तेजक होता है, जो कि स्वाभाविक उत्तेजक से सम्बन्धित किये जाने के कारण प्रभावपूर्ण हो जाता है।
इस प्रकार सम्बन्ध प्रतिक्रिया के सिद्धान्त में अस्वाभाविक उत्तेजक के प्रति स्वाभाविक प्रतिक्रिया होती है।

पावलोव का प्रयोग :
पावलोव (Pavlov) रूस का प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक था। उसी ने सम्बन्ध प्रतिक्रिया के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया था। इस विषय में उसके द्वारा कुत्ते पर किया गया परीक्षण विशेष रूप से उल्लेखनीय है। यह हम सब जानते हैं कि भोजन को देखकर कुत्ते की लार टपकने लगती है। पॉवलोव ने भोजन देते समय घण्टी बजवाई। भोजन और घण्टी की प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप कुत्ते के मुख से लार टपकने लगी। इसी प्रकार घण्टी के प्रति कुत्ते की प्रतिक्रिया सम्बन्ध सहज क्रिया कहलाई। इसे निम्नलिखित ढंग से समझाया जा सकता है

भोजन (स्वाभाविक उत्तेजक) – प्रतिक्रिया → “लार टपकना”
भोजन (स्वाभाविक उत्तेजक), घण्टी बजाना (अस्वाभाविक उत्तेजक) – प्रतिक्रिया → “लार टपकना”।

कुत्ते के समान ही मनुष्य भी ‘सम्बन्ध प्रतिक्रिया द्वारा सीखता है। उदाहरण के लिए-हम वुडवर्ड (woodword) द्वारा किया गया परीक्षण प्रस्तुत करते हैं। एक वर्ष के बालक को खरगोश दिखाया गया। बालक खरगोश को देखकर प्रसन्न होकर उसे पकड़ने के लिए लपका। जैसे ही वह खरगोश के निकट आया, एक जोरदार धमाका किया गया। परिणामस्वरूप बालक भयभीत होकर पीछे हट गया। इस प्रयोग को अनेक बार दोहराया गया। बाद में बिना धमाके की आवाज के केवल खरगोश को देखकर ही बालक डरने लगा।

सिद्धान्त का महत्त्व शिक्षा के क्षेत्र में इस सिद्धान्त के महत्त्व से सम्बन्धित निम्नलिखित तथ्य प्रस्तुत किये जा सकते हैं

⦁    पावलोव के अनुसार, “विभिन्न प्रकार की आदतें, जो कि प्रशिक्षण, शिक्षा और अनुशासन पर निर्भर प्रतिक्रिया की श्रृंखला मात्र हैं।”
⦁    व्यक्ति का प्रत्येक व्यवहार सम्बन्ध प्रतिक्रिया के सिद्धान्त पर आधारित है। हमारी दैनिक आदतें भी इसी सिद्धान्त पर निर्भर करती हैं।
⦁    इस सिद्धान्त के आधार पर बालकों में अच्छी आदतों का विकास किया जा सकता है।
⦁    यह सिद्धान्त सीखने की स्वाभाविक विधि पर प्रकाश डालता है।
⦁    इस सिद्धान्त के द्वारा बालकों को वातावरण के अनुकूल सामंजस्य स्थापित करने की शिक्षा दी जा सकती है।
⦁    इस सिद्धान्त की सहायता से बालकों के भय सम्बन्धी रोगों का निदान किया जा सकता है।
⦁    इस सिद्धान्त के द्वारा बालकों की संवेगात्मक अस्थिरता दूर की जा सकती है।
⦁    यह सिद्धान्त उन बालकों के लिए उपचार प्रस्तुत करता है, जो मानसिक रूप से अस्वस्थ होते हैं।
⦁    जिन विषयों में चिन्तन की आवश्यकता नहीं पड़ती है, उनके लिए यह सिद्धान्त बहुत उपयोगी है; जैसे—अक्षर विन्यास, सुलेख आदि।

आलोचना :
अनेक मनोवैज्ञानिकों ने निम्नलिखित तर्कों के आधार पर इस सिद्धान्त की आलोचना की है
⦁    सम्बन्ध प्रतिक्रिया में अस्थायित्व होता है।
⦁    इस सिद्धान्त को प्रतिष्ठदन मुख्यतया बालकों और पशुओं पर किये गये प्रयोगों के आधार पर किया गया है। वयस्क व्यक्तियों के सम्बन्ध में यह मौन है।
⦁    यह सिद्धान्त यान्त्रिकता पर अधिक बल देता है और व्यक्ति को केवल एक यन्त्र मानकर चलता है।

2.

“प्रगतिशील व्यवहार व्यवस्थापन की प्रक्रिया को अधिगम कहते हैं।” यह कथन किसका है?(क) थॉर्नडाइक(ख) स्किनर(ग) क्रो एवं क्रो(घ) पारीक

Answer»

सही विकल्प है  (ख) स्किनर

3.

सीखने के नियम आधारित हैं(क) उद्दीपक प्रतिक्रिया सिद्धान्त पर(ख) सम्बद्ध प्रतिक्रिया सिद्धान्त पर(ग) सूझ के सिद्धान्त पर(घ) प्रयास और त्रुटि की विधि पर

Answer»

(क) उद्दीपक प्रतिक्रिया सिद्धान्त पर

4.

सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले चार मुख्य कारकों का उल्लेख कीजिए।

Answer»

सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक हैं
⦁    वातावरण
⦁    शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य
⦁    सीखने की इच्छा तथा
⦁    प्रबल प्रेरणा।

5.

सीखने में प्रेरणा का क्या योगदान है?

Answer»

सीखने में प्रेरणा का महत्त्वपूर्ण स्थान है। सीखने में उन्नति लाने की दृष्टि से उसे प्रेरणायुक्त एवं प्रयोजनशील बना देना चाहिए। प्रेरणायुक्त व्यवहार उत्साह के कारण सीखने की प्रक्रिया को तीव्र कर देता है। अतः शीघ्र प्रेरणा से सीखने की गति में तीव्रता आती है। प्रेरणा का सम्बन्ध लक्ष्य या प्रयोजन । से है। यदि सीखने का लक्ष्य अच्छा है तो व्यक्ति उसे शीघ्र सीखने के लिए प्रेरित होता है। अतएव सीखने की प्रक्रिया को त्वरित करने के लिए उसे उद्देश्यपूर्ण एवं प्रेरणायुक्त कर देना उचित है।

6.

सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले चार प्रमुख शारीरिक कारकों का उल्लेख कीजिए।

Answer»

⦁    आयु एवं परिपक्वता
⦁    लिंग-भेद
⦁    स्वास्थ्य तथा
⦁    संवेगात्मक स्थिति।

7.

सीखने की प्रक्रिया पर परिपक्वता का क्या प्रभाव पड़ता है?

Answer»

सीखने की प्रक्रिया के लिए शरीर का परिपक्व होना अति आवश्यक है।

8.

सीखना किसे कहते हैं?

Answer»

व्यक्ति के व्यवहार में होने वाले ऐच्छिक परिवर्तन को सीखना कह सकते हैं। सीखने की प्रक्रिया को सम्बन्ध नयी क्रियाओं से होता है तथा इस क्रिया द्वारा सीखी गयी बातों का अन्य बातों पर भी प्रभाव पड़ता है। सीखने की प्रक्रिया के परिणामस्वरूप व्यक्ति के व्यवहार में एक प्रकार की परिपक्वता भी आती है। इन्हीं तथ्यों को गिलफोर्ड ने इन शब्दों में स्पष्ट किया है, “हम इस शब्द की परिभाषा विस्तृत रूप में यह कहकर कर सकते हैं कि सीखना व्यवहार के परिणामस्वरूप, व्यवहार में कोई भी परिवर्तन है।”

9.

सीखने के अनुकरण के सिद्धान्त का सामान्य परिचय दीजिए।

Answer»

1. अनुकरण के सिद्धान्त का तात्पर्य है :
‘अन्य व्यक्तियों के कार्यों को देखकर वैसा ही करके, सीखना।’ दूसरे शब्दों में, हम अनेक बातें अनुकरण के द्वारा सीखते हैं। जब व्यक्ति एक-दूसरे का अनुकरण करके सीखता है तो उसे अनुकरण का सिद्धान्त कहते हैं। बालक अनेक बातें अनुकरण के द्वारा ही सीखता है। बोलना, चलना तथा अनेक बातें अनुकरण के द्वारा ही सीखी जाती हैं।

2. हेगार्टी :
(Hagarty) ने बन्दरों पर प्रयोग करके यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि अनुकरण द्वारी सीखना, प्रयास एवं त्रुटि द्वारा सीखने की अपेक्षा उच्चकोटि का है, परन्तु थॉर्नडाइक के इस सिद्धान्त की कटु आलोचना की है। उनके अनुसार इसका प्रयोग सभी प्रकार के पशुओं पर नहीं किया जा सकता है।

3. सिद्धान्त का महत्त्व :
शिक्षा के क्षेत्र में इस सिद्धान्त का महत्त्व इस प्रकार है।
⦁    रचनात्मक कार्यों को सीखने के लिए यह सिद्धान्त बहुत उपयोगी है।
⦁    बालकों में अनुकरण की प्रवृत्ति तीव्र होती है। अत: अनुकरण द्वारा उन्हें अच्छी-अच्छी बातें सिखायी जा सकती हैं।
⦁    चेतन-मन से किया गया अनुकरण अच्छी आदतों के निर्माण में सहायक होता है।
⦁    यह सिद्धान्त बालकों के बौद्धिक विकास में सहायक है।
⦁    शिक्षकों तथा अभिभावकों के आदर्श चरित्र का अनुकरण करके बालक अपने चरित्र का निर्माण करते हैं।
⦁    मन्दबुद्धि बालकों की शिक्षा में यह सिद्धान्त बहुत उपयोगी है।

10.

सीखने के ‘अन्तसँझ सिद्धान्त को परिभाषित कीजिए! 

Answer»

गैस्टाल्टवादी मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, प्राणी अपनी सूझ या अन्तर्दृष्टि (Insight) के द्वारा ही सीख पाता है और सूझ के अभाव में वह सीखने में असफल रहता है। उविकास की प्रक्रिया के अन्तर्गत सूझ निम्न स्तर के प्राणियों से उच्च स्तर के प्राणियों की ओर वृद्धि करती है। चूहे, बिल्ली, कुत्ते की अपेक्षा वनमानुष में तथा इने सबसे ज्यादा मनुष्य में सूझ पायी जाती है। सूझ के कारण ही उच्च स्तर के प्राणी जटिल कार्य करने में समर्थ होते हैं।

गैस्टाल्टवादियों का कहना है कि सीखने की प्रक्रिया प्रयत्न एवं भूल अथवा सम्बद्ध प्रत्यावर्तन के अनुसार न होकर सूझ द्वारा होती है। इस विचारधारा के प्रवर्तके कोहलर (Kohler) तथा कोफ्का (Koffika) थे। सूझ या अन्तर्दृष्टि मनुष्य जैसे विकसित प्राणी का प्रमुख लक्षण है। मानव के निकटवर्ती विकसित प्राणियों तथा वनमानुष और चिम्पैन्जी में भी सूझ की क्षमता निहित होती है। कोहलर तथा कोफ्का के अनुसार हमारा सीखना सूझ के द्वारा होता है और सीखने की लगभग सभी प्रतिक्रियाओं में सूझ की आवश्यकता पड़ती है।

इस सिद्धान्त की प्रमुख विशेषता यह है कि सीखने की प्रत्येक क्रिया का कुछ-न-कुछ उद्देश्य अवश्य होता है तथा सीखने के समस्त प्रयास लक्ष्य द्वारा निर्देशित होते हैं। लक्ष्य में विविध बाधाएँ उत्पन्न होने पर सूझ की आवश्यकता होती है।प्रत्येक बाधा व्यक्ति को नवीन परिस्थिति से अवगत कराती है और वह उस परिस्थिति के विभिन्न अंगों में परस्पर सम्बन्ध स्थापित करता है उन्हें समझने की कोशिश करता है।

तत्पश्चात् व्यक्ति समूची परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए उसके अनुसार प्रतिक्रिया व्यक्त करता है। किसी परिस्थिति विशेष को समझकर उसके अनुसार प्रतिक्रिया करना ही व्यक्ति की सूझ का द्योतक है। इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप व्यक्ति जो व्यवहार सीखता है, उसे सूझ या अन्तर्दृष्टि द्वारा सीखना (Learning by Insight) कहते हैं।
 

11.

सीखने का प्रमुख कारक क्या है?

Answer»

सीखने का प्रमुख कारक “अनुकरण” है।

12.

सीखने के पठार के निराकरण का सर्वाधिक प्रभावकारी उपाय क्या है?

Answer»

सीखने के पठार के निराकरण का सर्वाधिक प्रभावकारी उपाय है-किसी प्रबल प्रेरणा को उत्पन्न करना।

13.

सीखने के पठार से क्या आशय है।

Answer»

व्यक्ति के सीखने की दर का स्थिर हो जाना अर्थात् सीखने के दर में वृद्धि न होना ही सीखने का पठार कहलाता है।

14.

सीखने के पठार के निराकरण के उपायों का उल्लेख कीजिए।

Answer»

पठार सीखने वाले व्यक्ति की प्रगति में बाधा डालकर उसके समय को नष्ट करते हैं। ऐसी दशा में उनके निराकरण पर विचार करना अत्यन्त आवश्यक है।

पठारों के निराकरण के लिए। निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक है

⦁    शिक्षक का कर्तव्य है कि जब बालक सीखने में उत्साह को प्रदर्शन न कर रहे हों, तो उन्हें उचित तरीके से सीखने के लिए प्रेरित किया जाए।
⦁    पठार का कारण विषय को कठिन व गहन होना भी है। अत: विषय को यथासम्भव सरल बनाकर प्रस्तुत किया जाए।
⦁    कार्य को सीखने की उचित विधि अपनायी जाए।
⦁    सीखने की क्रिया के बीच में विषयान्तर न किया जाए।
⦁    सीखने के लिए उचित वातावरण सृजन किया जाए।
⦁    सीखने वाले बालकों के वैयक्तिक भेद या क्षमताओं पर ध्यान दिया जाए तथा उसी के अनुसार उन्हें प्रेरणा तथा विश्राम दिया जाए।
⦁    जब एक विधि से बालकों की सीखने की प्रगति रुक जाए तो शिक्षक को उसी के अनुकूल नवीन विधि का प्रयोग करना चाहिए।
⦁    किसी प्रबल प्रेरक को अपनाकर भी सीखने के पठार का निराकरण किया जा सकता है। प्रेरण एक ऐसा कारक है जो सीखने को गति प्रदान कर सकता है।

15.

सीखने के पठार के उत्पन्न होने के कारणों को स्पष्ट कीजिए।

Answer»

सीखने में पठारों के आने के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं

⦁    जब शारीरिक क्षमता कम हो जाती है, तब सीखने में पठार बन जाता है।
⦁    जब उत्साह कम हो जाता है, तब उसके सीखने की प्रगति में अवरोध हो जाता है।
⦁    जब बालकों का ध्यान इधर-उधर भटकने लगता है, तब पठार बनने लगते हैं।
⦁    लगातार कार्य करते रहने से थकान उत्पन्न हो जाती है और पठार बन्ने लगते हैं।
⦁    सीखने की विधि में निरन्तर परिवर्तन करते रहने से भी पठार बन जाते हैं।
⦁    दूषित वातावरण भी पठारों के बनने का एक प्रमुख कारण है।
⦁    जब बालक सम्पूर्ण कार्य पर ध्यान न देकर उसके एक भाग पर ही ध्यान देने लगता है, तब उसके सीखने में पठार आ जाता है।
⦁    जब कोई क्रिया आरम्भ में सरल होती है, परन्तु बाद में कठिन तथा जटिल हो जाती है, तब सीखने में पठार आ जाता है।
⦁    सीखने की अनुचित विधि भी पठारों का कारण होती है। जब प्रभावहीन विधियों का प्रयोग किया जाता है, तब सीखने में पठार पैदा होने लगते हैं।
⦁    जब पुरानी आदतों को नयी आदतों में संघर्ष प्रारम्भ हो जाता है, तब भी सीखने में पठार बन जाते हैं।
⦁    रायबर्न (Ryburm) के अनुसार, “प्रत्येक व्यक्ति में अधिकतम कुशलता होती है, जिससे आगे वह अग्रसर नहीं हो सकता। यही शारीरिक सीमा कहलाती है। जब व्यक्ति इस सीमा पर पहुँच जाता है, तब उसके सीखने के पठार बन जाते हैं।”

16.

अधिगम, जो बिना किसी पूर्व-नियोजन के तर्कहीन, यान्त्रिकीय और बिना किसी क्रम के जहाँ हल आकस्मिक होता है, को जाना जाता है (क) प्रयास और त्रुटि द्वारा अधिगम(ख) सूझ द्वारा अधिगम(ग) सम्बद्ध प्रत्यावर्तन द्वारा अधिगम(घ) अनुकरण द्वारा अधिगम

Answer»

सही विकल्प है  (ख) सूझ द्वारा अधिगम

17.

कोहलर ने अपना मुख्य प्रयोग किस पर किया था?(क) कुत्ते पर(ख) बन्दर पर(ग) चिम्पैंजी पर(घ) बिल्ली पर

Answer»

सही विकल्प है  (ग) चिम्पैंजी पर

18.

“अधिगम जिसमें व्यक्ति किसी समाधान या हल की जाँच करता है कि कहाँ गलतियाँ हैं, उनकी पुनः जाँच कर ठीक करता है और तब तक ठीक करता है जब तक सफल नहीं हो जाता।” यह कथन किसकी विशेषता है?(क) प्रयास और त्रुटि द्वारा सीखना(ख) सूझ द्वारा सीखना(ग) सम्बन्ध प्रतिक्रिया द्वारा सीखना(घ) अनुकरण द्वारा सीखना

Answer»

(क) प्रयास और त्रुटि द्वारा सीखना

19.

‘करके सीखने की क्रिया से सीखने का कौन-सा नियम सर्वाधिक प्रभावी है ? (क) तत्परता का नियम(ख) अभ्यास का नियम(ग) प्रभाव का नियम(घ) मनोवृत्त का नियम

Answer»

सही विकल्प है  (क) तत्परता का नियम

20.

थॉर्नडाइक के सीखने के नियम हैं(क) एक(ख) तीन(ग) दो(घ) चार

Answer»

सही विकल्प है  (ख) तीन

21.

शारीरिक परिपक्वता का क्या अर्थ है?

Answer»

शरीर के अंगों को विकसित तथा सुदृढ़ या पुष्ट होना ही शारीरिक परिपक्वता है।

22.

अन्तर्दृष्टि या सूझ द्वारा सीखने के सिद्धान्त के जनक हैं (क) मैक्डूगल(ख) कोहलर(ग) थॉर्नडाइक(घ)पावलोव

Answer»

सही विकल्प है  (ख) कोहलर

23.

प्रयास एवं त्रुटि का सिद्धान्त किसने प्रतिपादित किया ? (क) कोहलर ने(ख) थॉर्नडाइक ने(ग) टरमन ने(घ) स्किनर ने

Answer»

सही विकल्प है  (ख) थॉर्नडाइक ने

24.

“हम झरके सीखते हैं।” यह किसने कहा है?

Answer»

थॉर्नडाइक ने।

25.

थॉर्नडाइक द्वारा प्रतिपादित सीखने के मुख्य नियम कौन-कौन-से है।

Answer»

थॉर्नडाइक द्वारा प्रतिपादित सीखने के मुख्य नियम हैं

⦁    तत्परता का नियम
⦁    अभ्यास का नियम तथा
⦁    प्रभाव का नियम

26.

सीखने के मुख्य नियम किसने प्रतिपादित किये हैं।

Answer»

सीखने के मुख्य नियम थॉर्नडाइक ने प्रतिपादित किये हैं।

27.

अनुकरण का सिद्धान्त किसने प्रतिपादित किया ?(क) बुडवर्थ ने(ख) हिलगार्ड ने(ग) स्किनर ने(घ) कोहलर ने

Answer»

सही विकल्प है  (ख) हिलगार्ड ने

28.

सीखने का मुख्य कारण क्या है?

Answer»

सीखने का मुख्य कारण प्रेरणा है।

29.

सूझ द्वारा सीखने के सिद्धान्त के शैक्षिक महत्त्व का उल्लेख कीजिए।

Answer»

शिक्षा में ‘सूझ द्वारा सीखने के सिद्धान्त का निम्नलिखित कारणों से विशेष महत्त्व है।

⦁    यह सिद्धान्त बालकों की कल्पना-शक्ति और तर्क-शक्ति का विकास करता है।
⦁    विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिए इस सिद्धान्तं का प्रयोग प्रभावशाली तरीके से किया जा सकता है।
⦁     यह सिद्धान्त बालकों को स्वयं ज्ञान को खोजने के लिए प्रेरित करता है।
⦁    गणित के शिक्षण में भी इस सिद्धान्त का प्रयोग विशेष उपयोगी सिद्ध हो सकता है।
⦁    ड्रेवर (Drever) के अनुसार, यह सिद्धान्त बालकों को निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति में उचित व्यवहार की चेतना प्रदान करता है।

30.

सीखने के पठार से आप क्या समझते हैं।

Answer»

जब बालक किसी क्रिया को सीखता है तो उसके सीखने की गति सदा एक-सी नहीं रहती, उसमें उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। सीखते समय कुछ काल तक तो ऐसा लगता है कि उस क्रिया को सीखने में पर्याप्त प्रगति हो रही है, परन्तु कुछ काल के पश्चात् ऐसा ज्ञान होने लगता है कि मानो सीखने की प्रगति में बाधा आ गयी है। सीखने में इस प्रकार की अवस्था को ही पठार कहते हैं।
दूसरे शब्दों में, सीखने की प्रक्रिया के बीच में प्रगति का रुक जाना पठार कहलाता है। इस प्रकार का अवरोध प्रायः संगीत, चित्रकला, टंकण आदि सीखने में आता है। रॉस (Ross) के अनुसार, “सीखने की प्रक्रिया की एक प्रमुख विशेषता पठार है। पठार उस अवधि की ओर संकेत करते हैं, जब सीखने की प्रक्रिया में कोई प्रगति नहीं होती है।”

31.

सीखने के तत्परता के नियम से क्या अभिप्राय है?

Answer»

सीखने के तत्परता के नियम के अनुसार कुछ भी सीखने के लिए व्यक्ति को सर्वप्रथम मानसिक रूप से तैयार होना अनिवार्य है। इस नियम के अनुसार तैयारी या तत्परता सदैव सीखने में सहायक होते हैं।

32.

सीखने की कौन-सी विधि ऐसी है जिसे मनुष्य तथा पशु समान रूप से अपनाते हैं?

Answer»

प्रयास एवं त्रुटि द्वारा सीखना

33.

सीखने के लिए मनुष्यों द्वारा सर्वाधिक किस विधि को अपनाया जाता है?

Answer»

अनुकरण विधि।

34.

अभिप्रेरणा का सीखने पर क्या प्रभाव पड़ता है?

Answer»

अभिप्रेरणा से सीखने की प्रक्रिया सुचारु एवं सरल हो जाती है।

35.

सीखने से क्या आशय है?

Answer»

व्यक्ति के व्यवहार में होने वाले प्रत्येक परिवर्तन को सीखना माना जाता है।

36.

कोहलर ने अपना प्रयोग किस पर किया?

Answer»

कोहलर ने अपना प्रयोग चिम्पैंजी (वनमानुष) पर किया था।

37.

पावलोव ने अफ्ना महत्त्वपूर्ण प्रयोग किस पशु पर किया था?

Answer»

पावलोव ने अफ्ना महत्त्वपूर्ण प्रयोग कुत्ते पर किया था।

38.

थॉर्नडाइक ने सीखने की किस विधि का समर्थन किया है?

Answer»

थॉर्नडाइक ने सीखने का प्रयास एवं त्रुटि विधि’ का समर्थन किया है।

39.

सूझ द्वारा सीखने की विधि को दर्शाने के लिए किस मनोवैज्ञानिक ने महत्त्वपूर्ण प्रयोग किया था तथा उसने यह प्रयोग किस पशु पर किया था?

Answer»

सूझ द्वारा सीखने की विधि को दर्शाने के लिए कोहलर नामक मनोवैज्ञानिक ने वनमानुष पर महत्त्वपूर्ण प्रयोग किया था।

40.

थॉर्नडाइक ने पिंजरे में अपना प्रयोग किस पर किया ?

Answer»

थॉर्नडाइक ने पिंजरे में अपना प्रयोग बिल्ली पर किया। 

41.

सीखने तथा परिपक्वता में क्या सम्बन्ध है?

Answer»

परिपक्वता सीखने के लिए अनिवार्य शर्त है।

42.

सीखने की स्किनर द्वारा प्रतिपादित परिभाषा लिखिए।

Answer»

“सीखना व्यवहार में प्रगतिशील सामंजस्य की प्रक्रिया है।” – [ स्किनर ]

43.

परिपक्वता तथा सीखने में क्या सम्बन्ध है ?

Answer»

हमें बात है कि सीखना, व्यवहारे परिवर्तन या व्यवहार अर्जन की एक प्रक्रिया है। किसी व्यक्ति का व्यवहार परिवर्तन या तो परिपक्वता के कारण होता है या किसी नयी बात को ग्रहण करने के कारण। परिवर्तन की प्रक्रिया में नयी-नयी क्रियाएँ और व्यवहार प्रदर्शित तथा विकसित होते रहते हैं। परिपक्वता शारीरिक विकास की प्रक्रिया है, जिसके अन्तर्गत बढ़ती हुई आयु के साथ, शरीर व स्नायुमण्डल का विकास, सीखने की सामर्थ्य को जन्म देता है।
स्पष्टतः सीखने के परिणामस्वरूप व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन आता है। परिपक्वता की प्रक्रिया सीखने से पूर्व की स्थिति है तथा यह सीखने का आधार है। परिपक्वता के अभाव में किसी क्रिया को सीखना न केवल दुष्कर अपितु असम्भव है। वस्तुतः परिपक्वता किसी व्यवहार को अर्जित करने (सीखने) की एक पूर्व आवश्यकता है।
मनोवैज्ञानिक अध्ययनों से ज्ञात होता है कि मानव के विकास की प्रक्रिया में परिपक्वता और सीखना दोनों की सशक्त भूमिका है। यदि परिपक्वता के अभाव में सीखना सम्भव नहीं है तो सीखने के अभाव में व्यक्ति की परिपक्वता भी निरर्थक है। समुचित परिपक्वता ग्रहण कर यदि कोई मनुष्य व्यक्तिगत या सामाजिक जीवन के लिए उपयोगी व्यवहार या क्रियाएँ सीखता है तो इसे अत्यन्त महत्त्वपूर्ण समझा जाएगा। इस भाँति परिपक्वता और सीखने में गहरा सम्बन्ध है।

44.

सामान्य जीवन में व्यक्तियों द्वारा सीखने के लिए किस विधि को सर्वाधिक अपनाया जाता है?

Answer»

सामान्य जीवन में व्यक्तियों द्वारा सीखने के लिए अनुकरण विधि’ को सर्वाधिक अपनाया जाता है।

45.

सीखने के सूझ अथवा अन्तर्दृष्टि के सिद्धान्त के मुख्य प्रतिपादक कौन थे?

Answer»

सीखने के सूझे अथवा अन्तर्दृष्टि के सिद्धान्त के मुख्य प्रतिपादक कोहलर थे।

46.

सीखने के सम्बन्ध प्रतिक्रिया सिद्धान्त के मुख्य प्रतिपादक कौन थे?

Answer»

सीखने के सम्बन्ध प्रतिक्रिया सिद्धान्त के मुख्य प्रतिपादक रूसी विद्वान पावलोव थे।

47.

सीखने की प्रक्रिया की चार मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

Answer»

⦁    सीखना व्यवहार में होने वाला परिवर्तन है
⦁    सीखने की प्रक्रिया जीवनपर्यन्त चलती है
⦁    सीखना सक्रिस होता है तथा
⦁    सीखना अनुभवों का संगठन है।

48.

सीखने की कौन-सी विधि ऐसी है, जिसे प्रमुख रूप से केवल मनुष्यों द्वारा ही अपनाया जाता है?

Answer»

सूझ अथवा अन्तर्दृष्टि द्वारा सीखने की विधि।

49.

सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले मुख्य कारकों का उल्लेख कीजिए।यासीखने को प्रभावित करने वाले कारकों को बताइए।

Answer»

सीखने को प्रभावित करने वाले कारक
सीखने की प्रक्रिया में अनेक बातें सहायक और बाधक होती हैं। यहाँ हम उन कारकों का अध्ययन करेंगे, जिनसे सीखने की क्रिया प्रभावित होती है।

1. वातावरण :
वातावरण प्रमुख कारक है, जो सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित करता है। यदि कक्षा का वातावरण शोरगुलयुक्त है, तो छात्र अपना ध्यान एकाग्र नहीं कर सकेंगे। परिणामस्वरूप वे ठीक प्रकार से सीख भी नहीं सकेंगे। उसके अतिरिक्त यदि छात्रों के बैठने की व्यवस्था उचित प्रकार से नहीं है, प्रकाश और वायु के आवागमन की भी उचित व्यवस्था नहीं है तो भी छात्र ठीक प्रकार से नहीं सीख सकेंगे। मौसम का प्रभाव भी सीखने पर पड़ता है। अत्यधिक ठण्डक और अत्यधिक गर्मी दोनों ही सीखने में बाधा पहुँचाती हैं।
2. शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य :
यदि बालकों को शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य ठीक होगा तो वह किसी भी बात को शीघ्रता से सीख जाएगा। शारीरिक और मानसिक दृष्टि से पिछड़े बालक प्रायः पढ़ने-लिखने में कमजोर रहते हैं और वे बहुत देर से सीख पाते हैं।
3.सीखने का समय :
बालक अधिक समय तक किसी विषय पर अपना ध्यान केन्द्रित नहीं कर सकती, क्योंकि अधिक समय तक ध्यान केन्द्रित करने में उनमें थकावट आ जाती है और उनका ध्यान इधर-उधर भटकने लगता है। दूसरी ओर प्रात:काल छात्र अधिक स्फूर्ति का अनुभव करते हैं। अत: इस समय उन्हें सीखने में सुगमता होती है। दोपहर अथवा शाम को वह इतना अधिक नहीं सीख पाते। इसी प्रकार विद्यालय के प्रथम घण्टे में जो सीखने की गति होती है, वह अन्त के घण्टों में बहुत कम हो जाती है।
4. विषय-सामग्री :
कठिन, नीरस तथा अर्थहीन विषय-सामग्री की अपेक्षा सरल, रोचक तथा अर्थपूर्ण विषय-सामग्री अधिक सुगमता से सीख ली जाती है।
5. सीखने की अवस्था :
प्रौढ़ व्यक्तियों की अपेक्षा छोटे पाक से बालक किसी बात को शीघ्र समझ जाते हैं। भाषा और कला के विषय में यह बात मुख्य रूप से लागू होती है, परन्तु कुछ बातें बालकों की । अपेक्षा प्रौढ़ जल्दी समझते हैं।
6. सीखने की इच्छा :
सीखना बहुत कुछ व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करता है। जिस बात को सीखने की बालकों की प्रबल इच्छा होती है, उसे वे प्रत्येक परिस्थिति में सीख लेते हैं। उनकी इच्छा के विरुद्ध उन्हें कुछ भी नहीं सिखाया जा सकता है। अतः किसी तथ्य को सीखने के लिए छात्रों की इच्छा को उसके अनुकूल बनाना परम आवश्यक है।
7. सीखने की विधियाँ :
सीखने की विधि जितनी ही अधिक सरल, आकर्षक तथा रुचिपूर्ण होगी, उतनी ही सरलता तथा शीघ्रता से बालक सीखेगा।
8. पूर्व अनुभव :
बालक जो कुछ भी सीखता है, वह प्रायः अपने पूर्व अनुभव के आधार पर ही सीखता है। यदि सीखने का सम्बन्ध बालक के पूर्व अनुभव से कर दिया जाए तो वह नवीन बात शीघ्रता तथा सरलता से समझ जाएगा।
9. प्रेरणा :
सीखने की प्रक्रिया में प्रेरणा की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। यदि बालकों को प्रशंसा तथा प्रतियोगिता के आधार पर सिखाया जाए तो वे सुगमता से सीख जाते हैं। सीखने के लिए बालक को प्रेस्ति करना अति आवश्यक है।
10. संवेगात्मक स्थिति :
यदि बालक अत्यधिक क्रोध या भय से ग्रस्त है तो वह ऐसी दशा में कुछ नहीं सीख सकता। संवेगात्मक अस्थिरता सीखने की प्रक्रिया में बाधा डालती है। अत: बालक को संवेगात्मक असन्तुलन या अस्थिरता की दशा में सीखना पूर्णतया असम्भव है।
11. सफलता का ज्ञान :
जब बालक को इस बात का ज्ञान हो जाता है कि उसे अपने कार्यों में सफलता मिल रही है तो उसका उत्साह बढ़ जाता है और उसे कार्य को शीघ्र समझे जाता है।

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थॉर्नडाइक द्वारा प्रतिपादित सीखने के नियमों की विवेचना कीजिए। उपयुक्त उदाहों सहित अपने उत्तर की पुष्टि कीजिए।याथॉर्नडाईक के सीखने के मुख्य नियमों का वर्णन कीजिए।

Answer»

सीखने के नियमों को सर्वप्रथम व्यवस्थित ढंग से थॉर्नडाइक ने प्रस्तुत किया था, इसीलिए इन्हें थॉर्नडाइक के सीखने के नियमों के रूप में जाना जाता है। थॉर्नडाइक द्वारा प्रतिपादित सीखने के मुख्य नियम तीन हैं
⦁    सीखने का तत्परता का नियम्
⦁    सीखने का अभ्यास का नियम तथा
⦁    सीखने का प्रभाव का नियम।

सीखने का तत्परता को नियम
थॉर्नडाइक द्वारा प्रतिपादित तत्परता का नियम बताता है कि जब कोई भी व्यक्ति सीखने के लिए मानसिक रूप से तत्पर होता है (अर्थात् तैयार रहता है) तो सीखने की क्रिया सरलता और शीघ्रता से सम्पन्न होती है। व्यक्ति जिसे समय किसी कार्य को सीखने की धुन में रहता है तो वह सीखने में आनन्द का अनुभव करता है। बांलक में किसी नवीन ज्ञानं या क्रिया को सीखने की तत्परता तभी आती है जब उसमें रुचि होती है और उसके अन्दर सीखने के लिए प्रेरणा उत्पन्न कर दी जाए।
अतः शिक्षक को पाठ शुरू करने से पूर्व बालक की रुचि और जिज्ञासा पर ध्यान देना चाहिए तथा उन्हें सीखने के लिए प्रेरित करना चाहिए। कुछ विद्यार्थियों की किसी विशेष विषय में रुचि नहीं होती जिसकी वजह से तत्परता के नियम की अवहेलना हो सकती है। तत्परता का नियम कुछ निष्कर्षों को महत्त्व देता हैं। प्रथम, इस नियम के अनुसार सीखने के लिए मानसिक रूप से तैयार रहने की दशा में विद्यार्थी को अधिक प्रयास नहीं करना पड़ता और सीखने की प्रक्रिया सन्तोषजनक रहती है।
द्वितीय, यदि व्यक्ति सीखने के लिए विवश नहीं है और पूर्णरूप से भी तत्पर है तो सीखने में अत्यधिक सन्तुष्टि प्राप्त होगी। तृतीय, सीखने के लिए बलपूर्वक विवश किये जाने पर अरुचि के कारण कार्य असन्तोषजनक होगा। इस भाँति कहा जा सकता है कि “जब कोई बन्धन किसी कार्य को करने के लिए नहीं होता है तो वह प्रक्रिया आनन्द देती है। और जब सीखने की इच्छा नहीं होती तो व्यक्ति सीखने को तैयार नहीं होता तथा उसे बाध्य किया जाता है, तब क्रोध उत्पन्न होता है।”