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1.

ऊधौ जाहु तुमहिं हम जाने।स्याम तुमहिं स्याँ कौं नहिं पठयौ, तुम हौ बीच भुलाने ॥ब्रज नारिनि सौं जोग कहत हौ, बात कहत न लजाने ।बड़े लोग न बिबेक तुम्हारे, ऐसे भए अयाने ॥हमसौं कही लई हम सहि कै, जिय गुनि लेह सयाने ।कहँ अबला कहँ दसा दिगंबर, मष्ट करौ पहिचाने ॥साँच कहाँ तुमक अपनी सौं, बूझति बात निदाने ।सूर स्याम जब तुमहिं पठायौ, तब नैकहुँ मुसकाने ।

Answer»

[ पठयौ = भेजा है। अयाने = अज्ञानी। दिगंबर = दिशाएँ ही जिसके वस्त्र हैं; अर्थात् नग्न। मष्ट करौ = चुप हो जाओ। सौं = सौगन्ध। निदाने = आखिर में नैकहूँ = कुछ।]

प्रसंग-इस पद में गोपियाँ उद्धव के साथ परिहास करती हैं  और कहती हैं कि श्रीकृष्ण ने तुम्हें यहाँ नहीं भेजा है, वरन् तुम अपना मार्ग भूलकर यहाँ आ गये हो या श्रीकृष्ण ने तुम्हें यहाँ भेजकर तुम्हारे साथ मजाक किया है।

व्याख्या-गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि तुम यहाँ से वापस चले जाओ। हम तुम्हें समझ गयी हैं। श्याम ने तुम्हें यहाँ नहीं भेजा है। तुम स्वयं बीच से रास्ता भूलकर यहाँ आ गये हो। ब्रज की नारियों से योग की बात करते हुए तुम्हें लज्जा नहीं आ रही है। तुम बुद्धिमान् और ज्ञानी होगे, परन्तु हमें ऐसा लगता है कि तुममें विवेक नहीं है, नहीं तो तुम ऐसी अज्ञानतापूर्ण बातें हमसे क्यों करते? तुम अच्छी प्रकार मन में विचार लो कि हमसे ऐसा कह दिया तो कह दिया, अब ब्रज में किसी अन्य से ऐसी बात न कहना। हमने तो सहन भी कर लिया, कोई दूसरी गोपी इसे सहन नहीं करेगी। कहाँ तो हम अबला नारियाँ और कहाँ योग की नग्न अवस्था, अब तुम चुप हो जाओ और सोच-समझकर बात कहो। हम तुमसे एक अन्तिम सवाल पूछती हैं, सच-सच बताना, तुम्हें अपनी कसम है, जो तुम सच न बोले। सूरदास जी कहते हैं कि गोपियाँ उद्धव से पूछ रही हैं कि जब श्रीकृष्ण ने उनको यहाँ भेजा था, उस समय वे थोड़ा-सा मुस्कराये थे या नहीं ? वे अवश्य मुस्कराये होंगे, तभी तो उन्होंने तुम्हारे साथ उपहास करने के लिए तुम्हें यहाँ भेजा है।

काव्यगत सौन्दर्य-
⦁    यहाँ गोपियों की तर्कशीलता और आक्रोश का स्वाभाविक चित्रण हुआ है। गोपियाँ अपनी तर्कशक्ति से उद्धव को परास्त कर देती हैं और गोकुल आने के उनके उद्देश्य को ही समाप्त कर देती हैं।
⦁    यहाँ नारी-जाति के सौगन्ध खाने और खिलाने के स्वभाव का यथार्थ अंकन हुआ है।
⦁    भाषा-सरल-सरस ब्रज।
⦁    शैली-मुक्तक।
⦁    छन्द-गेय पद।
⦁    रस-श्रृंगार।
⦁    अलंकार-‘दसा दिगंबर’ में अनुप्रास।
⦁    गुण-माधुर्य।
⦁    शब्दशक्ति–व्यंजना की प्रधानता।
⦁    भावसाम्य–प्रेम के समक्ष ज्ञान-ध्यान व्यर्थ है। कवि कोलरिज ने भी लिखा है-“समस्त भाव, विचार व सुख प्रेम के सेवक हैं।”

2.

ऊधौ मन न भये दस बीस।।एक हुतौ सो गयौ स्याम सँग, कौ अवराधै ईस ॥इंद्री सिंथिल भई केसव बिनु, ज्यौं देही बिनु सीस।आसा लागि रहति तन स्वासा, जीवहिं कोटि बरीस ॥तुम तौ सखा स्याम सुन्दर के, सकल जोग के इंस।सूर हमारें नंद-नंदन बिनु, और नहीं जगदीस ॥

Answer»

[ हुतौ = हुआ करता था। अवराधै = आराधना करे। ईस = निर्गुण ब्रह्म। देही = शरीरधारी। बरीस = वर्ष। सखा = मित्र। जोग के ईस = योग के ज्ञाता, मिलन कराने में निपुण।]

प्रसंग–प्रस्तुत पद भ्रमर-गीत प्रसंग का एक सरस अंश है। श्रीकृष्ण के मथुरा चले जाने पर गोपियाँ अत्यधिक व्याकुल हैं। उद्धव जी गोपियों को योग का सन्देश देने मथुरा से गोकुल आये हैं। गोपियाँ योग की शिक्षा ग्रहण करने में अपने को असमर्थ बताती हैं और अपनी मनोव्यथा को उद्धव के समक्ष व्यक्त करती हैं।

व्याख्या-गोपियाँ उद्धव जी से कहती हैं कि हे उद्धव! हमारे मन दस-बीस नहीं हैं। सभी की तरह हमारे पास भी एक मन था और वह श्रीकृष्ण के साथ चला गया है; अत: हम मन के बिना तुम्हारे बताये गये निर्गुण ब्रह्म की आराधना कैसे करें? अर्थात् बिना मन के ब्रह्म की आराधना सम्भव नहीं है। श्रीकृष्ण के बिना हमारी सारी इन्द्रियाँ निष्क्रिय हो गयी हैं और हमारी दशा बिना सिर के प्राणी जैसी हो गयी है। हम कृष्ण के बिना मृतवत् हो  गयी हैं, जीवन के लक्षण के रूप में हमारी श्वास केवल इस आशा में चल रही है कि श्रीकृष्ण मथुरा से अवश्य लौटेंगे और हमें उनके दर्शन प्राप्त हो जाएँगे। श्रीकृष्ण के लौटने की आशा के सहारे तो हम करोड़ों वर्षों तक जीवित रह लेंगी। गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि हे उद्धव! तुम तो कृष्ण के अभिन्न मित्र हो और सम्पूर्ण योग-विद्या तथा मिलन के उपायों के ज्ञाता हो। यदि तुम चाहो तो हमारा योग (मिलन) अवश्य करा सकते हो। सूरदास जी कहते हैं कि गोपियाँ उद्धव से कह रही हैं कि हम तुम्हें यह स्पष्ट बता देना चाहती हैं कि नन्द जी के पुत्र श्रीकृष्ण को छोड़कर हमारा कोई आराध्य नहीं है। हम तो उन्हीं की परम उपासिका हैं।

काव्यगत सौन्दर्य-

(1) प्रस्तुत पद में गोपियों की विरह दशा और श्रीकृष्ण के प्रति उनके एकनिष्ठ प्रेम का मार्मिक वर्णन है।
(2) भाषा-सरल, सरस और मधुर ब्रज।
(3) शैली–उक्ति वैचित्र्यपूर्ण मुक्तक।
(4) छन्द-गेय पद।
(5) रस-श्रृंगार रस (वियोग)।
(6) अलंकार-‘सखा स्याम सुन्दर के’ में अनुप्रास ‘जोग’ में श्लेष तथा ‘ज्यौं देही बिनु सीस’ में उपमा
(7) गुण-माधुर्य।
(8) शब्दशक्ति–व्यंजना।
(9) इन्द्रियाँ दस होती हैं—

⦁    पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ–
⦁    नासिका
⦁    रसना
⦁    नेत्र
⦁    त्वचा
⦁    श्रवण

⦁    पाँच कर्मेन्द्रियाँ–
⦁    हाथ
⦁    पैर
⦁    वाणी
⦁    गुदा
⦁    लिंग

(10) एकनिष्ठ प्रेम का ऐसा ही भाव तुलसीदास ने भी व्यक्त किया है
एक भरोसो एक बल, एक आस बिस्वास।
एक राम घनस्याम हित, चातक तुलसीदास ॥

3.

सखी री, मुरली लीजै चोरि ।जिनि गुपाल कीन्हें अपनें बस, प्रीति सबनि की तोरि ॥छिन इक घर-भीतर, निसि-बासर, धरतन कबहूँ छोरि।कबहूँ कर, कबहूँ अधरनि, कटि कबहूँ खोंसत जोरि ॥ना जानौं कछु मेलि मोहिनी, राखे अँग-अँग भोरि ।सूरदास प्रभु को मन सजनी, बँध्यौ राग की डोरि ॥

Answer»

[ छिन इक = एक क्षण । निसि-बासर = रात-दिन। कर = हाथ। कटि = कमर। खोंसत = लगी लेते हैं। मोहिनी = जादू डालकर। भोरि = भुलावा। राग = प्रेम।]

प्रसंग-इस पद में सूरदास जी ने वंशी के प्रति गोपियों के ईष्य-भाव को व्यक्त किया है।

व्याख्या-गोपियाँ श्रीकृष्ण की वंशी को अपनी वैरी सौतन समझती हैं। एक गोपी दूसरी गोपी से कहती है कि हे सखी! अब हमें श्रीकृष्ण की यह मुरली चुरा लेनी चाहिए; क्योंकि इस मुरली ने गोपाल को अपनी ओर आकर्षित कर अपने वश में कर लिया है और श्रीकृष्ण ने भी मुरली के वशीभूत होकर हम सभी को भुला दिया है। कृष्ण घर के भीतर हों या बाहर, कभी क्षणभर को भी मुरली नहीं छोड़ते। कभी हाथ में । रखते हैं तो कभी होंठों  पर और कभी कमर में खोंस लेते हैं। इस तरह से श्रीकृष्ण उसे कभी भी अपने से दूर नहीं होने देते। यह हमारी समझ में नहीं आ रहा है कि वंशी ने कौन-सा मोहिनी मन्त्र श्रीकृष्ण पर चला दिया है, जिससे श्रीकृष्ण पूर्ण रूप से उसके वश में हो गये हैं। सूरदास जी कहते हैं कि गोपी कह रही है कि हे सजनी ! इस वंशी ने श्रीकृष्ण का मन प्रेम की डोरी से बाँध कर कैद कर लिया है।

काव्यगत सौन्दर्य-
⦁    प्रेम में प्रिय पात्र के दूसरे प्रिय के प्रति ईष्र्या का भाव होना एक स्वाभाविक और मनोवैज्ञानिक तथ्य है। इसी तथ्य का बड़ा ही सुन्दर चित्रण किया गया है।
⦁    भाषा–सहज-सरल ब्रजी
⦁    शैली-मुक्तक और गीतात्मक।
⦁     छन्द-गेय पद।
⦁    रस-श्रृंगार।
⦁    शब्दशक्ति– ‘बँध्यौ राग की डोरि’ में लक्षणा।
⦁    गुण-माधुर्य।
⦁    अलंकार—राग की डोरि’ में रूपक तथा सम्पूर्ण पद में अनुप्रास।

4.

गोपियों ने दोनों प्रकार से फल कैसे पाया है?

Answer»

गोपियों का मानना है कि यदि श्रीकृष्ण से पुनर्मिलन हो जाय तो उनकी प्रेम तपस्या सफल होगी ही, यदि वह न मिले तो संसार में उनका यशगान होगा।

5.

गोपियों के अनुसार यमुना के साँवली हो जाने का क्या कारण है?

Answer»

गोपियों का मानना है कि काले तन-मन वाले मथुरावासियों के यमुना में स्नान करते ही वह स्याम वर्ण वाली हो गई है।

6.

गोपियाँ किसकी माता को धिक्कार योग्य कहती हैं?(क) जो कायर है(ख) जो योग साधना करता है।(ग) जो कृष्ण से विमुख है।(घ) जो निर्गुण का उपासक है।

Answer»

(ग) जो कृष्ण से विमुख है।

7.

सूरदास की भक्ति मानी जाती है(अ) सखा भाव की(ब) दास्य भाव की(स) माधुर्य भाव की(द) कान्ता भाव की

Answer»

(अ) सखा भाव की

8.

गोपियों ने ‘रूखी बतियाँ’ किसे कहा है?

Answer»

गोपियों ने उद्धव के ज्ञान और योग के नीरस उपदेशों को रूखी बातें बताया है।

9.

गोपियाँ योग की शिक्षा देने को कहती हैं(क) पुरुषों को(ख) अस्थिर मने वालों को(ग) साधु-सन्तों को(घ) मथुरा की नारियों को।

Answer»

(ख) अस्थिर मने वालों को

10.

“तिनके संग अधिक छबि उपजत गोपियों के इस कथन में क्या व्यंग्य छिपा है? स्पष्ट कीजिए।

Answer»

गोपियों के इस व्यंग्य वचन के लक्ष्य श्रीकृष्ण हैं। वह गोरी, सुन्दर गोपियों को त्याग कर मथुरा के काले-कुबड़े लोगों में जा बसे हैं। गोपियाँ व्यंग्य कर रही हैं कि उन कालों के बीच रहने से, कमल जैसे नेत्र वाले सुन्दर श्रीकृष्ण की शोभा शायद बहुत बढ़ रही है। तभी तो वह गोपियों को भुलाकर मथुरा में बसे हुए हैं।

11.

“हम तो दुहुँ भाँति फल पायो।” गोपियों के इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।

Answer»

गोपियाँ उद्धव के हठ पर खीजती हुईं उन्हें योग कथा बन्द कर देने को कह रही हैं। वे कहती हैं-उद्धव आप हमारे कल्याण के लिए व्यर्थ इतना परिश्रम कर रहे हैं। हमने तो दोनों रूपों में सुफल प्राप्त कर लिया है। यदि श्रीकृष्ण मिल जाते हैं तो बहुत ही अच्छी बात है। यदि नहीं भी मिलते तो भी हमने सारे जगत में यश प्राप्त कर लिया है। कहाँ हम गोकुल की गॅवार, छोटी जाति और वर्ण की स्त्रियाँ और कहाँ वे (कृष्ण) लक्ष्मी के पति नारायण । हमें उनके साथ मिल बैठने का अवसर मिल गया। हमारे लिए यही पर्याप्त है। अतः अब आप अपनी योग-कथा को विराम दीजिए।

12.

सूरदास ने अँखियों को भूखी बताया है(अ) प्राकृतिक सौन्दर्य की(ब) सुरमा लगाने की(स) नींद लेने की(द) हरिदर्शन की

Answer»

(द) हरिदर्शन की

13.

काजल की कोठरी’ लोकोक्ति का अभिप्राय क्या है? गोपियों ने मथुरा को ‘काजर की कोठरी’ क्यों बताया? लिखिए।

Answer»

काजल की कोठरी’ के बारे में कहावत है-‘काजर की कोठरी में कैसौ हू सयानौ जाइ, काजर की एक रेख लागि है पै लागि है।” अर्थात् काजल की कोठरी का अभिप्राय उस स्थान या संगति से होता है जिसके सम्पर्क में आने पर व्यक्ति उसके कुप्रभाव से स्वयं को नहीं बचा सकता । गोपियों ने मथुरा को काजल की कोठरी बताकर कृष्ण, अक्रूर और उद्धव, तीनों के आचरण और स्वभाव पर आक्षेप और व्यंग्य किया है। अपने अनुचित आचरण से व्यक्ति अपनी निवास भूमि को भी बदनाम कर देता है। गोपियों का व्यंग्य है कि मथुरावासियों का शरीर ही नहीं मन भी काला है।

14.

गोपियों ने स्वयं को बताया है(क) श्रेष्ठ जाति की(ख) छोटी जाति की(ग) सच्ची प्रेमिका(घ) श्रीकृष्ण की दास।

Answer»

(ख) छोटी जाति की

15.

गोपियों ने करुई ककरी’ बताया है –(क) उद्धव को(ख) श्रीकृष्ण को(ग) अपने जीवन को(घ) योग को।

Answer»

गोपियों ने करुई ककरी’ बताया है योग को।

16.

उद्धव हठपूर्वक क्या प्रयत्न कर रहे हैं?

Answer»

उद्धव गोपियों के सूखी सरिता के समान हृदयों में योग की नाव चलाना चाह रहे हैं, जो कदापि सम्भव नहीं है।

17.

जिनके मन चकरी’ कथन में गोपियों ने किस पर व्यंग्य किया है?

Answer»

इस कथन द्वारा गोपियों ने कृष्ण पर व्यंग्य किया है कि जो कल तक उनसे प्रेम करते थे वो अब कुब्जा पर मुग्ध हो गए हैं।

18.

गोपियों ने ‘सूखी सरिता’ कहा है(क) उद्धव के योग सन्देश को(ख) अपने हृदयों को(ग) श्रीकृष्ण के व्यवहार को(घ) ब्रज जीवन को।

Answer»

(ग) श्रीकृष्ण के व्यवहार को

19.

सूरदास के पदों में वर्णित प्रेम भक्तिभावना का वर्णन कीजिए।

Answer»

हमारी पाठ्यपुस्तक में कवि सूरदास रचित ‘भ्रमरगीत प्रसंग’ से कुछ पद संकलित हैं। इन पदों में श्रीकृष्ण के मथुरा चले जाने से दुखी गोपियों की भावनाओं का बड़ा मार्मिक चित्रण हुआ है। यह प्रसंग प्रेम और भक्ति भावना से ओत-प्रोत है।

उद्धव श्रीकृष्ण का सन्देश लेकर ब्रज में आए हैं। अपने वियोग में दुखी गोपियों के लिए योग साधना का सन्देश भिजवाया है। गोपियों को लगा था कि उनके प्रिय कृष्ण ने अवश्य ही उनके लिए कोई प्रेम भरा सन्देश भिजवाया होगा। किन्तु जब उन्होंने श्रीकृष्ण को भुलाकर योग और ज्ञान को अपनाने का सन्देश सुना तो उनके हृदय को बड़ा आघात पहुँचा। उन्होंने उद्धव को अपने मन की भावनाएँ और वेदना समझाने का यत्न किया।

वे कहती हैं-“हमारे हरि हारिल की लकरी।” उनके मन से श्रीकृष्ण का ध्यान एक पल को भी नहीं हटता। वे उद्धव से अनुरोध करती हैं कि योग और ज्ञान की शिक्षा उनको दें जिनका किसी से दृढ़ प्रेम-भाव नहीं है। हमारे मन, वचन और कर्म में तो श्रीकृष्ण दृढ़ता से समाए हुए हैं।

गोपियाँ उद्धव की प्रेमपरक भक्ति को नहीं समझ पाने पर, उन पर व्यंग्य करती हैं। उनका उपहास भी करती हैं। ऐसा वह उद्धव का अपमान करने के लिए नहीं करर्ती बल्कि यह उनके अविचल और निश्छल प्रेम को
पहुँची ठेस की प्रतिक्रिया हैं।

‘अँखियाँ हरि दरसन की भूखी’, बारक वह मुख फेरि दिखाओ दुहि पय पिवत पतूखी’ ‘बिन गोपाल बैरिन भई कुनैं’ गोपियों की इन सभी उक्तियों में प्रेममयी भक्ति भावना का प्रकाशन हुआ है। भ्रमरगीत में कविवर सूर की भक्ति भावना को भी दर्शन हो रहा है।

20.

गोपियों द्वारा मथुरा को ‘काजरे की कोठरी’ बताने से आशय क्या है?

Answer»

गोपियों ने मथुरा को काजल की कोठरी बताकर उद्धव, अक्रूर और श्रीकृष्ण के कपटपूर्ण आचरण पर व्यंग्य किया है।

21.

ऊद्धव को गोपियों ने ऐसे कौन से प्रश्न किए कि उद्धव ठगा-सा रह गया?

Answer»

गोपियों ने पूछा कि वह निर्गुण ब्रह्म किस देश का रहने वाला है? उसके माता-पिता का नाम क्या है, पत्नी कौन है, दासी कौन है, कैसा रूप-रंग है, किसकी इच्छा करता है? इन प्रश्नों को सुनकर उद्धव ठगा-सा रह गया।

22.

ऊद्धव के मौन होकर ठगे से रह जाने का कारण क्या था?

Answer»

गोपियों के निर्गुण ब्रह्म को लेकर किए गए प्रश्नों का उत्तर न दे पाने के कारण उद्धव मौन और ठगे से रह गए।

23.

गोपियों ने कृष्ण को अपने लिए हारिले की लकड़ी क्यों बताया है?

Answer»

जैसे हारिल पक्षी वृक्ष की टहनी को कभी अपने से अलग नहीं करता, उसी प्रकार गोपियाँ भी श्रीकृष्ण को एक पल के लिए अपने हृदय से दूर नहीं होने देना चाहतीं।

24.

“यह तौं सूर तिन्हैं लै दीजै” पंक्ति में ‘तिन्हैं’ शब्द का प्रयोग किनके लिए हुआ है?

Answer»

गोपियों ने इस शब्द का प्रयोग उन लोगों के लिए किया है जिनके मन चंचल हैं, जो किसी एक व्यक्ति से दृढ़ प्रेम नहीं करते।

25.

“मानहु नील माट तें काढ़े लै जमुना जाय पखारे।” पंक्ति में कौन-सा अलंकार है? परिभाषा लिखिए।

Answer»

इस पंक्ति में उत्प्रेक्षा अलंकार है। कविता में जहाँ उपमेय में उपमान की सम्भावना व्यक्त की जाती है वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। इस पंक्ति में यमुना के श्याम होने में मथुरावासियों के नील के माट से निकाल कर, यमुना में धोने की सम्भावना व्यक्त की गई है। अत: यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है।

26.

हारिल पक्षी की क्या विशेषता है? बताइए।

Answer»

हारिल पक्षी अपने पंजों में एक हरी लकड़ी दबाए रहता है, उसे छोड़ता नहीं, वह हमेशा हरी लकड़ी पर ही बैठता है।

27.

गोपियों ने किसकी माता को धिक्कारा है?

Answer»

गोपियों ने उस व्यक्ति की माता को धिक्कारा है जो कृष्ण को त्याग कर किसी और से प्रेम करते हैं।

28.

गोपियों के अनुसार श्रीकृष्ण घोष निवासी क्यों हुए?

Answer»

गोपियों का मानना है कि भगवान भक्तों के प्रेम के अधीन होने के कारण ही ग्वालों के बीच आकर बसे हैं। योग, ज्ञान या वेदों के अध्ययन से नहीं।

29.

गोपियों ने निर्गुण (ब्रह्म) के विषय में उद्धव से क्या पूछा?

Answer»

गोपियों ने उद्धव से निर्गुण के निवास स्थान, उसके माता-पिता, पत्नी, दासी और उसके रूप-रंग और रुचियों का परिचय पूछा।

30.

गोपियों ने श्रीकृष्ण को किस प्रकार अपना रखा है?

Answer»

गोपियों ने मन, वचन और कर्म तीनों के द्वारा कृष्ण को अपना रखा है।

31.

गोपियों ने उद्धव से क्या अनुरोध किया?

Answer»

गोपियों ने उद्धव से अनुरोध किया कि वह बार-बार अपना योग सन्देश न सुनाएँ। इससे उनके हृदय को बहुत कष्ट होता है।

32.

गोपियों को उद्धव का योग (जोग) सन्देश किसके समान लग रहा है?

Answer»

गोपियों को उद्धव का योग सन्देश कड़वी ककड़ी के समान लग रहा है। गोपियाँ तो श्रीकृष्ण के साकार स्वरूप से प्रेम करती हैं। उद्धव उनकी भावनाओं को न समझकर उन्हें बार-बार योग साधना करने को प्रेरित कर रहे हैं। श्रीकृष्ण को भूलकर निर्गुणनिराकार ईश्वर की आराधना गोपियों को तनिक भी नहीं सुहा रहा है। अतः उन्हें उद्धव का योग-उपदेश मन को कड़वी कर देने वाला लगता है।

33.

श्रीकृष्ण के वियोग में गोपियों को कौन-सी बातें व्यर्थ लग रही हैं?

Answer»

कृष्ण वियोग में गोपियों को यमुना का बहना, पक्षियों की कलरव, कमलों का खिलना और भौंरों की गुंजार व्यर्थ प्रतीत हो रही है।

34.

गोपियों ने उद्धव से कृष्ण को क्यो सन्देश देने का अनुरोध किया?

Answer»

गोपियों ने उद्धव से अनुरोध किया कि वह कृष्ण को उनकी विरह व्यथा से हुई दयनीय दशा का परिचय कराएँ।

35.

निम्नलिखित पंक्तियों में अलंकार को पहचानकर लक्षणसहित उसका नाम लिखिए(क) चरन-कमल बंद हरि राई ।(ख) करि-करि प्रतिपद प्रतिमनि बसुधा, कमल बैठकी साजति ।(ग) जोइ-जोइ माँगत, सोइ-सोड़ देती, क्रम-क्रम करि के हाते ।

Answer»

(क) रूपक अलंकारे।

(ख) अनुप्रास एवं पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार।

(ग) अनुप्रास एवं पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार।

लक्षण-उपर्युक्त अलंकारों में से रूपक एवं अनुप्रास के लक्षण ‘काव्य-सौन्दर्य के तत्त्वों के अन्तर्गत देखें।
पुनरुक्तिप्रकाश-जब एक ही शब्द की लगातार  पुनरावृत्ति होती है, तब वहाँ पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार होता है; जैसे उपर्युक्त पद ‘ख’ में करि-करि।

36.

“हमारे हरि हारिल की लकरी।” इस पद में गोपियों ने उद्धव को क्या समझाने का प्रयास किया है? अपने शब्दों में लिखिए।

Answer»

गोपियाँ प्रेमपंथ की पथिक थीं और उद्धव नीरस योग के साधक और समर्थक। वह गोपियों की विरह वेदना को समझ पाने में असमर्थ थे। अत: गोपियों ने हारिल पक्षी के उदाहरण से अपनी बात आरम्भ की। उन्होंने उद्धव से कहा कि उनके लिए श्रीकृष्ण’ हारिल की लकड़ी’ के समान हैं। जैसे हारिल पक्षी सदा वृक्ष की टहनी पंजे में दबाए रहता है, उसी प्रकार गोपियों के जीवन में कृष्ण समाए हुए हैं। उन्हें त्याग कर योग पथ को अपनाना उनके लिए किसी भी प्रकार सम्भव नहीं है।

37.

चरन-कमल बंद हरि राई ।।जाकी कृपा पंगु गिरि लंधै, अंधे कौ सब कुछ दरसाई॥बहिरौ सुनै, गैंग पुनि बोलै, रंक चलै सिर छत्र धराई ।सूरदास स्वामी करुनामय, बार-बार बंद तिहिं पाई ॥

Answer»

[ हरि राई = श्रीकृष्ण पंगु = लँगड़ा। लंधै = लाँघ लेता है। गैंग = पूँगा। रंक = दरिद्र। पाई = चरण।।
सन्दर्भ-यह पद्य श्री सूरदास द्वारा रचित ‘सूरसागर’ नामक ग्रन्थ से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी के ‘काव्य-खण्ड’ में संकलित ‘पद’ शीर्षक से उद्धृत है।
[ विशेष—इस पाठ के शेष सभी पद्यांशों की व्याख्या में यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।]

प्रसंग-इस पद्य में भक्त कवि सूरदास जी ने श्रीकृष्ण की महिमा का वर्णन करते हुए उनके चरणों की वन्दना की है। |

व्याख्या-भक्त-शिरोमणि सूरदास श्रीकृष्ण के कमलरूपी चरणों की वन्दना करते हुए कहते हैं। कि इन चरणों का प्रभाव बहुत व्यापक है। इनकी कृपा हो जाने पर लँगड़ा व्यक्ति भी पर्वतों को लाँघ लेता है। और अन्धे को सब कुछ दिखाई देने लगता  है। इन चरणों के अनोखे प्रभाव के कारण बहरा व्यक्ति सुनने लगता है और गूंगा पुनः बोलने लगता है। किसी दरिद्र व्यक्ति पर श्रीकृष्ण के चरणों की कृपा हो जाने पर वह राजा बनकर अपने सिर पर राज-छत्र धारण कर लेता है। सूरदास जी कहते हैं कि ऐसे दयालु प्रभु श्रीकृष्ण के चरणों की मैं बार-बार वन्दना करता हूँ।

काव्यगत सौन्दर्य-
⦁    श्रीकृष्ण के चरणों का असीम प्रभाव व्यंजित है। कवि का भक्ति-भाव अनुकरणीय है।
⦁    भाषा-साहित्यिक ब्रज।
⦁    शैली-मुक्तक
⦁    छन्द-गेय पद।
⦁    रस-भक्ति।
⦁    शब्दशक्ति –लक्षणा।
⦁    गुण–प्रसाद।
⦁    अलंकार-चरन-कमल’ में रूपक, पुनरुक्तिप्रकाश तथा अन्यत्र अनुप्रास।

38.

किलकत कान्ह घुटुरुवनि आवत ।।मनिमय कनक नंद कैं आँगन, बिम्ब पकरिबैं धावत ॥कबहुँ निरखि हरि आपु छाँह कौं, कर सौं पकरने चाहत ।किलकि हँसत राजत द्वै दतियाँ, पुनि-पुनि तिहिं अवगाहत ॥कनक-भूमि पर कर-पग छाया, यह उपमा इक राजति ।करि-करि प्रतिपद प्रतिमनि बसुधा, कमल बैठकी साजति ।।बाल-दसा-सुख निरखि जसोदा, पुनि-पुनि नंद बुलावति ।अँचरा तर लै ढाँकि, सूर के प्रभु को दूध पियावति ॥

Answer»

[मनिमय = मणियों से युक्त। कनक = सोना। पकरिबैं = पकड़ने को। धावत = दौड़ते हैं। निरखि = देखकर। राजत = सुशोभित होती हैं। दतियाँ = छोटे-छोटे दाँत। तिहिं = उनको। अवगाहत = पकड़ते हैं। कर-पग = हाथ और पैर। राजति  = शोभित होती है। बसुधा = पृथ्वी। बैठकी = आसन। साजति = सजाती हैं। अँचरा तर = आँचल के नीचे।]

प्रसंग—इस पद में कवि ने मणियों से युक्त आँगन में घुटनों के बल चलते हुए बालक श्रीकृष्ण की शोभा का वर्णन किया है।

व्याख्या-श्रीकृष्ण के सौन्दर्य एवं बाल-लीलाओं का वर्णन करते हुए सूरदास जी कहते हैं कि . बालक कृष्ण अब घुटनों के बल चलने लगे हैं। राजा नन्द का आँगन सोने का बना है और मणियों से जटित है। उस आँगन में श्रीकृष्ण घुटनों के बल चलते हैं तो किलकारी भी मारते हैं और अपना प्रतिबिम्ब पकड़ने के लिए दौड़ते हैं। जब वे किलकारी मारकर हँसते हैं तो उनके मुख में दो दाँत शोभा देते हैं। उन दाँतों के प्रतिबिम्ब को भी वे पकड़ने का प्रयास करते हैं। उनके हाथ-पैरों की छाया उस सोने के फर्श पर ऐसी प्रतीत होती है, मानो प्रत्येक मणि में उनके बैठने के लिए पृथ्वी ने कमल का आसन सजा दिया है  अथवा प्रत्येक मणि पर उनके कमल जैसे हाथ-पैरों का प्रतिबिम्ब पड़ने से ऐसा लगता है कि पृथ्वी पर कमल के फूलों का आसन बिछा हुआ हो। श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं को देखकर माता यशोदा जी बहुत आनन्दित होती हैं और बाबा नन्द को भी बार-बार वहाँ बुलाती हैं। इसके बाद माता यशोदा सूरदास के प्रभु बालक कृष्ण को अपने आँचल से ढककर दूध पिलाने लगती हैं।

काव्यगत सौन्दर्य

⦁    प्रस्तुत पद में श्रीकृष्ण की सहज स्वाभाविक हाव-भावपूर्ण बाल-लीलाओं का सुन्दर और मनोहारी चित्रण हुआ है।
⦁    भाषा-सरस मधुर ब्रज।
⦁    शैली-मुक्तक।
⦁    छन्द– गेय पद।
⦁    रस-वात्सल्य।
⦁    शब्दशक्ति-‘करि करि प्रति-पद प्रति-मनि बसुधा, कमल बैठकी साजति’ में लक्षणा।
⦁    गुण–प्रसाद और माधुर्य
⦁    अलंकार-‘किलकत कान्ह’, ‘दै दतियाँ’, ‘प्रतिपद प्रतिमनि’ में अनुप्रास, ‘कमल-बैठकी’ में रूपक, ‘करि-करि’, ‘पुनि-पुनि’ में पुनरुक्तिप्रकाश।
⦁    भावसाम्य-तुलसीदास ने भी भगवान् श्रीराम के बाल रूप की कुछ ऐसी ही झाँकी प्रस्तुत की है

आँगन फिरत घुटुरुवनि धाये।
नील जलज-तनु-स्याम राम सिसु जननि निरख मुख निकट बोलाये ॥

39.

निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा रस है ?(क) अबिगत गति कछु कहत न आवै।(ख) निरगुन कौन देस को बासी।।

Answer»

(क) भक्ति रस

(ख) वियोग शृंगार

40.

निम्नलिखित शब्दों में से तत्सम, तदभव और देशज शब्द छाँटकर अलग-अलग लिखिए-चरन, पंगु, कान्ह, अँचरा, छोटा, गृह, करि, नैन, पानि, सखा, जोग, साँच, जननी, गाँसी, धाई, टेव, अलक-लईतो, ठाढ़े, ग्वाल, बिम्ब, यति, विधु, इंद्री।

Answer»

तत्सम-पंगु, गृह, करि, जननी, ग्वाल, बिम्ब, यति, विधु।

तद्भव-चरन, अँचरा, नैन, पानि, सखा,  जोग, इंद्री।।

देशज-कान्ह, साँच, छोटा, गाँसी, धाइ, टेव, अलक-लड़तो, ठाढ़े।