InterviewSolution
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मध्यकालीन शिक्षा से आप क्या समझते हैं? इस काल की शिक्षा की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।यामध्यकालीन मुस्लिम शिक्षा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। |
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Answer» मध्यकालीन शिक्षा का अर्थ भारतीय इतिहास में शैक्षिक दृष्टिकोण से मध्यकाल नितान्त भिन्न काल था। इस काल में भारत में मुख्य रूप से विदेशी मुस्लिम शासकों का शासन था। इस शासन के ही कारण भारत में एक भिन्न शिक्षा प्रणाली को लागू किया गया जो पारम्परिक भारतीय शिक्षा-प्रणाली से नितान्त भिन्न प्रकार की थी। इस शिक्षा-प्रणाली को मुस्लिम शिक्षा-प्रणाली के नाम से भी जाना जाता है। वास्तव में इस शिक्षा का मुख्य उद्देश्य इस्लाम धर्म का प्रसार एवं प्रचार करना भी था। मध्यकालीन अथवा मुस्लिम शिक्षा का सामान्य परिचय डॉ० केई ने इन शब्दों में प्रस्तुत किया है, “मुस्लिम शिक्षा एक विदेशी प्रणाली थी जिसका भारत में प्रतिरोपण किया गया और जो ब्राह्मणीय शिक्षा से अति अल्प सम्बन्ध रखकर, अपनी नवीन भूमि में विकसित हुई।” मध्यकालीन शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ मध्यकालीन भारतीय शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं– 1. शिक्षा का संरक्षण-मध्यकाल में शिक्षा-व्यवस्था राज्य के संरक्षण या नियन्त्रण में थी। मुस्लिम शासकों ने भी शिक्षा के क्षेत्र में विशेष रुचि ली थी। उनके राज्य के विभिन्न भागों में मकतबों, मदरसों एवं पुस्तकालयों की स्थापना की गई। राज्य की ओर से छात्रों को छात्रवृत्तियाँ और शिष्यवृत्तियाँ भी दी गयी। इन सब सुविधाओं के कारण इस युग में शिक्षा का पर्याप्त प्रसार हुआ। 2. शिक्षा में व्यापकता का अभाव-यद्यपि मध्यकाल में शिक्षा का प्रसार बहुत तेजी से हुआ, लेकिन उसमें व्यापकता का सर्वथा अभाव था। शिक्षा पर धार्मिक कट्टरता की छाप लगी हुई थी और शिक्षा की जो भी व्यवस्था थी, वह केवले नगरों में उच्च तथा मध्यम वर्गों के बालकों के लिए ही थी। फलतः जनसाधारण के बालकों के ज्ञानार्जन का कोई सुलभ साधन नहीं था। 3. शिक्षा के लौकिक पक्ष पर बल-मुस्लिम शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य लौकिक यश, सुख तथा ऐश्वर्य की प्राप्ति माना गया था। मुसलमानों को ध्यान लौकिक जीवन की ओर अधिक आकृष्ट था। अतः मुस्लिम शिक्षा में लौकिक पक्ष पर बहुत अधिक बल दिया गया और इसमें भारतीय आध्यात्मिकता का अभाव रखा गया। 4. प्रान्तीय भाषाओं की उपेक्षा–मध्यकाल में अरबी और फारसी भाषा के माध्यम से शिक्षा दी। जाती थी। इस कारण प्रान्तीय भाषाओं की पूर्णत: उपेक्षा हो गई। उच्च पद के इच्छुक व्यक्तियों ने भी मातृभाषा की उपेक्षा करके अरबी और फारसी भाषा का अध्ययन किया। 6. परीक्षाएँ-मुस्लिम काल में आजकल के समान सार्वजनिक परीक्षाओं का प्रचार नहीं था। शिक्षक वाद-विवाद और शास्त्रार्थ के द्वारा विद्यार्थियों को एक कक्षा से दूसरी कक्षा में भेजता था। 8. गुरु-शिष्य सम्बन्ध–इस काल में भी गुरु को सम्मानपूर्ण स्थान प्राप्त होता था। शिष्य अपने गुरु का बहुत आदर करते थे, और गुरु अपने शिष्य को पुत्रवत् मानते थे। छात्रावासों में गुरु और शिष्य एक साथ रहते थे, जिसके फलस्वरूप दोनों में निकट सम्पर्क स्थापित रहता था। 9. अनुशासन और दण्ड–इस काल में गुरु-शिष्य सम्बन्ध । शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ मधुर होने के कारण शिक्षकों के सामने अनुशासनहीनता की समस्या न थी, लेकिन अनुशासनहीन छात्रों को बेंत, कोड़े और चूंसे मारकर शारीरिक दण्ड दिया जाता था। इनका प्रयोग करने के लिए शिक्षकों को स्वतन्त्र छोड़ दिया गया था। कठोर दण्ड का प्रावधान होने के शिक्षा के लौकिक पक्ष पर बल कारण सामान्य रूप से अनुशासनहीनता की समस्या प्रबल नहीं थी। 10. छात्रावास- मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों के लिए। छात्रावासों की व्यवस्था थी, जिनका व्यय भार धनी व्यक्ति उठाते इन छात्रावासों में शिक्षकों और विद्यार्थियों के सुख तथा आनन्द उपाधियाँ की अनेक सुविधाएँ प्रदान की जाती थीं। 11. स्त्री-शिक्षा-परदा-प्रथा के कारण इस काल में स्त्री-शिक्षा की प्रगति प्राचीनकाल की अपेक्षा कम थी। निम्न वर्ग की बालिकाओं को शिक्षा का अवसर प्राप्त नहीं होता था, जब कि धनी तथा उच्च घराने में उत्पन्न हुई बालिकाओं की शिक्षा के लिए अनेक साधन थे। छोटी आंयु में मोहल्ले की बालिकाएँ एकत्र होकर मकतब जाती थीं और लिखना-पढ़ना सीख लेती थीं। सम्पन्न परिवार की बालिकाओं को घर पर व्यक्तिगत शिक्षकों द्वारा शिक्षा दी जाती थी। कुछ स्त्रियाँ साहित्य, धर्मशास्त्र, गृहशास्त्र, संगीत इत्यादि में निपुण थीं, जिनमें नूरजहाँ, रजिया बेगम, जहाँआरा, गुलबदन बेगम आदि प्रमुख हैं। 12. व्यावसायिक शिक्षा–मध्यकाल में व्यावसायिक शिक्षा की ओर पर्याप्त ध्यान दिया गया था। जीविका उपार्जन सम्बन्धी शिक्षा के लिए मुहम्मद तुगलक ने अनेक कारखानों की स्थापना की थी, जो अकबर के समय दीवाने वयूतात के अधीन थे। इन कारखानों में चित्रकला, सुनारगिरी, वस्त्र बनाना, दरी और परदे बनाना, अस्त्र-शस्त्र बनाना, दर्जी का काम, जूते बनाना, मलमल तैयार करना आदि काम सिखाए जाते थे। 13. सैन्य शिक्षा-राज्य के सैनिकों द्वारा बालकों को सैन्य शिक्षा दी जाती थी। इसके द्वारा वे देश में अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहते थे। इस युग में सैनिक विद्यालयों की स्थापना नहीं हो पाई थी। बालकों को गोली चलाने और हाथियों पर बैठकर युद्ध करने की शिक्षा दी जाती थी। | 14. ओषधिशास्त्र की शिक्षा–मध्यकाल में ओषधिशास्त्र की शिक्षा को विशेष प्रोत्साहन दिया गया था। ओषधिशास्त्र की संस्कृत की पुस्तकों का फारसी भाषा में अनुवाद किया गया। अनेक मुस्लिम संस्थाओं में इस प्रकार की शिक्षा दी जाती थी। 15. ललित कलाओं की शिक्षा-मध्यकाल में भवन-निर्माण कला, चित्रकला, नृत्यकला और संगीत के प्रशिक्षण के लिए अनेक सुविधाएँ प्राप्त थीं। इन सभी कलाओं को राजाओं एवं अमीरों का संरक्षण प्राप्त था। शाहजहाँ भवन-निर्माण कला में विख्यात था। जहाँगीर चित्रों का पारखी था और अकबर कुशल संगीतज्ञ था। |
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मुस्लिम काल में शिक्षा का प्रारम्भ किस संस्कार से होता था? |
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Answer» मुस्लिम काल में शिक्षा का प्रारम्भ बिस्मिल्लाह संस्कार से होता था। |
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मध्यकालीन भारतीय शिक्षा-प्रणाली को अन्य किस नाम से जाना जाता है ? |
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Answer» मध्यकालीन भारतीय शिक्षा-प्रणाली को ‘मुस्लिम शिक्षा के नाम से भी जाना जाता है। |
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मध्यकाल में भारत में किनका शासन था ? |
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Answer» मध्यकाल में भारत में मुख्य रूप से मुस्लिम शासकों का शासन था। |
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मध्यकालीन शिक्षा के मुख्य उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए। |
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Answer» भारतीय शिक्षा के मध्यकाल को मुस्लिम अथवा इस्लामी शिक्षा का काल कहते हैं। 712 ई० से भारत पर मुसलमानों के आक्रमण आरम्भ हुए और प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली को नष्ट करने का प्रयत्न आरम्भ हो गया। 1206 ई० में भारत में मुस्लिम सत्ता की स्थापना हो गई। इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी, फिरोज तुगलक व औरंगजेब जैसे शासकों ने भारतीय शिक्षा-प्रणाली को समूल नष्ट करने का भरसक प्रयास किया। परिणामस्वरूप शिक्षा-प्रणाली का स्वरूप बिल्कुल बदल गया और भारत में एक नई शिक्षा-प्रणाली का विकास हुआ। इसे मध्यकालीन शिक्षा के नाम से जाना जाता है। मध्यकालीन शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित थे ⦁ इस्लाम धर्म का प्रचार करना। |
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प्राचीन व मध्यकालीन शैक्षिक विशेषताओं की तुलना निम्न बिन्दुओं के आधार पर कीजिए-(i) शिक्षा का उद्देश्य,(i) पाठ्यक्रम,(ii) शिक्षा के केन्द्र। |
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Answer» (i) शिक्षा का उद्देश्य 1. प्राचीन काल में भारतीय समाज आदर्शवादी था जिसका मुख्य उद्देश्य ज्ञान तथा अनुभव को अर्जित करना था, जबकि इसके विपरीत मध्यकाल में भारतीय शिक्षा के उद्देश्यों की निर्धारण इस्लाम धर्म की मान्यताओं के अनुसार होने के कारण ज्ञान का अधिक-से-अधिक प्रसार करना था। (ii)पाठ्यक्रम प्राचीन तथा मध्यकाल में पाठ्यक्रम को तीन वर्गों में विभाजित किया गया था— 1. प्राथमिक स्तर का पाठ्यक्रम प्राचीन काल में प्राथमिक शिक्षा की समयावधि 6 वर्ष की होती थी तथा 6 से 11 वर्ष के आयु वर्ग के बालकों को प्राथमिक स्तर की शिक्षा हेतु सुयोग्य माना जाता था। प्राथमिक शिक्षा मौखिक होती थी जिसमें बालकों को वैदिक मन्त्रों के उच्चारण का अभ्यास कराया जाता था। इसके उपरान्त छात्र पढ़ना-लिखना व व्याकरण सीखते थे। प्राथमिक स्तर की शिक्षा में सामान्य या प्रारम्भिक भाषा विज्ञान, प्रारम्भिक व्याकरण, प्रारम्भिक छन्द शास्त्र तथा प्रारम्भिक गणित आदि विषय सम्मिलित थे। मध्ये काल में प्राश्चमिक शिक्षा की आयु 4 वर्ष,4 माह तथा 4 दिन निर्धारित की गई थी। बालकों को इस आयु सीमा को प्राप्त करने के अवसर पर एक संस्कार या धार्मिक रस्म पूर्ण करनी होती थी; जिसे ‘बिस्मिल्लाह-खानी’ केहा जाता था। इस काल में प्राथमिक स्तर की शिक्षा मौखिक विधि द्वारा ही प्रदान की जाती थी। मौलवियों द्वारा सम्बन्धित विषय को निरन्तर अभ्यास द्वारा कंठस्थ करवा दिया जाता था। इसके साथ ही लकड़ी की तख्तीपर लेखन का अभ्यास भी करवाया जाता था। साधारण वर्ग के परिवारों के बच्चों को प्राथमिक स्तर पर मुख्य रूप से पढ़ने-लिखने तथा प्रारम्भिक अंकगणित की ही शिक्षा दी जाती थी। मौखिक रूप से कुरान शरीफ की आयतों को सही उच्चारण में कंठस्थ करवाया जाता था। इसके उपरान्त लेखन, व्याकरण तथा फारसी भाषा का ज्ञान प्रदान किया जाता था। बच्चों के चरित्र-निर्माण तथा साहित्यिक बोध के विकास का भी समुचित ध्यान रखा जाता था। प्राथमिक शिक्षा के अन्तर्गत इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए महापुरुषों की कथाएँ तथा शेख सादी की ‘बोस्ताँ एवं गुलिस्ताँ’ जैसी पुस्तकों को पढ़ाया जाता था। इनके साथ-ही-साथ कुछ प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय प्रेमकाव्यों को भी रुचिपूर्वक पढ़ाया जाता था। इसे वर्ग के मुख्य काव्य-संग्रह थे-लैला-मजनू, युसूफ-जुलेखा तथा सिकन्दरनामा आदि। जहाँ तक शाही-परिवारों तथा कुछ सम्पन्न परिवारों के बच्चों की शिक्षा का प्रश्न है, उसकी अलग से व्यवस्था होती थी तथा उन्हें व्यक्तिगत रूप से महत्त्वपूर्ण विषयों का ज्ञान प्रदान किया जाता था। 2. उच्च स्तर का पाठ्यक्रम प्राचीनकालीन उच्चस्तरीय शिक्षा-प्राचीनकालीन भारतीय शैक्षिक-व्यवस्था में उच्चस्तरीय शिक्षा की अलग से व्यवस्था थी। इस शिक्षा को विशिष्ट शिक्षा के रूप में जाना जाता था। वर्ण-व्यवस्था की मान्यताओं के अनुसार केवल ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैश्य वर्ग के बालकों को ही उच्च शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार प्राप्त था। उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रम में विविधता तथा विकल्प उपलब्ध थे। आध्यात्मिक ज्ञान अर्जित करने के लिए छात्रों द्वारा वेद, वेदांग, पुराण, दर्शन, उपनिषद् आदि का अध्ययन किया जाता था। लेकिन ज्ञान अर्जित करने के लिए छात्रों द्वारा मुख्य रूप से भौतिकशास्त्र, भूगर्भशास्त्र, तर्कशास्त्र, इतिहास आदि विषयों का व्यवस्थित अध्ययन किया जाता था। उच्चस्तरीय शिक्षा का स्वरूप भी मौखिक ही था। गुरु द्वारा दिए गए व्याख्यान के साथ ही चिन्तन, मनन, स्वाध्याय तथा पुनरावृत्ति के माध्यम से अर्जित ज्ञान को आत्मसात् किया जाता था। मध्यकालीन शैक्षिक व्यवस्था के अन्तर्गत उच्च-स्तरीय शिक्षा की अवधि सामान्य रूप से 10-12 वर्ष हुआ करती थी। इस काल में भी उच्च-स्तरीय शिक्षा के दो प्रकार के पाठ्यक्रमों की व्यवस्था थी। एक वर्ग के पाठ्यक्रम में धार्मिक विषयों की शिक्षा प्रदान की जाती थी तथा दूसरे वर्ग के पाठ्यक्रम में लौकिक विषयों की शिक्षा का प्रावधान था। इसके साथ-ही-साथ इस्लाम धर्म के इतिहास, इस्लामी-कानून तथा इस्लामी सामाजिक मूल्यों एवं परम्पराओं का भी व्यवस्थित अध्ययन किया । जाता था। धार्मिक पाठ्यक्रम के अतिरिक्त लौकिक पाठ्यक्रम में सर्वप्रथम अरबी-फारसी भाषा साहित्य तथा व्याकरण का व्यापक अध्ययन किया जाता था। मध्यकाल के उच्च स्तर के मुख्य विषय थे-भूगोल, गणित, कृषि, अर्थशास्त्र, ज्योतिष, दर्शन घेवं नीतिशास्त्र, कानून तथा यूनानी-चिकित्सा पद्धति कहा जा सकता है। कि मध्यकालीन उच्च शिक्षा भी मौख़िक ही थी। सभी शिक्षक अपने विषय को व्याख्यान के रूप में प्रस्तुत करते थे तथा छात्र उसे सुनकर संमझ लेते थे। इसके अतिरिक्त संगीत, चित्रकला तथा चिकित्सा शास्त्र आदि विषयों की शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रयोगात्मक विधि को भी अपनाया जाता था। 3. व्यावसायिक स्तर का पाठ्यक्रम शिक्षा का एक पक्ष व्यावसायिक शिक्षा भी होता था। व्यावसायिक शिक्षा के आधार पर ही प्राचीन भारत अपने आर्थिक जीवन और वैभव का निर्माण करने में सफल हुआ था। अतः प्राचीनकालीन व्यावसायिक शिक्षा को मुख्य रूप से चार भागों में बाँटा था-सैन्य शिक्षा, वाणिज्य सम्बन्धी शिक्षा, चिकित्साशास्त्र सम्बन्धी शिक्षा, कला-कौशल सम्बन्धी शिक्षा तथा पुरोहित शिक्षा। मध्यकालीन भारतीय शिक्षा का एक मुख्य उद्देश्य लौकिक उन्नति एवं प्रगति को निर्धारित करना था। अतः इस काल की शिक्षा-व्यवस्था में व्यावसायिक शिक्षा को भी समुचित महत्त्व दिया गया था। मध्यकालीन भारतीय शिक्षा-व्यवस्था में व्यावसायिक शिक्षा के रूप में मुख्य रूप से हस्तकलाओं की शिक्षा, चिकित्सा सम्बन्धी शिक्षा, सैन्य शिक्षा तथा ललित-कलाओं की शिक्षा की व्यवस्था की गयी थी। (iii) शिक्षा केन्द्र प्राचीन काल में शिक्षा के केन्द्र–टोल, चारण, घटिका, परिषद्, गुरुकुल, विद्यापीठ, विशिष्ट विद्यालय, मन्दिर, महाविद्यालय, ब्राह्मणीय महाविद्यालय तथा विश्वविद्यालय आदि थे। इसके विपरीत मध्य काल में शिक्षा के केन्द्र-मकतब, मदरसा, दरगाहें, खानकाहें, कुरान स्कूल, फारसी स्कूल, फारसी व कुरान स्कूल तथा अरबी भाषा के स्कूल आदि थे। |
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मध्यकालीन भारतीय समाज एवं शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षक का क्या स्थान था ? |
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Answer» मध्यकालीन भारतीय समाज एवं शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षक की स्थिति को स्पष्ट करते हुए जाफर ने लिखा है, “शिक्षकों को समाज में उच्च स्थान था, यद्यपि उनका वेतन अल्प था, तथापि उनको सार्वजनिक सम्मान और विश्वास प्राप्त था।” भारतीय समाज में सदैव ही शिक्षक को समुचित सम्मान दिया जाता रहा है। मध्यकाल भी इसका अपवाद नहीं था। वास्तव में शिक्षा प्रदान करना एक महान् कार्य माना जाता था तथा यह सार्वजनिक धारणा थी कि शिक्षक चरित्रवान व्यक्ति होते हैं। डॉ० केई ने भी मध्यकालीन समाज में शिक्षक की स्थिति स्पष्ट करते हुए लिखा है, “शिक्षकों की सामाजिक स्थिति उच्च थी और वे साधारण तथा चरित्रवान मनुष्य थे, जिनको व्यक्तियों का विश्वास और सम्मान प्राप्त था।” |
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मध्यकालीन शिक्षा व्यवस्था में अनुशासन एवं दण्ड की क्या स्थिति थी ? |
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Answer» शैक्षिक व्यवस्था के अन्तर्गत अनुशासन का विशेष महत्त्व है। अनुशासन बनाए रखने का एक प्रचलित उपायु दण्ड का प्रावधान भी है। मध्यकालीन शैक्षिक व्यवस्था के अन्तर्गत अनुशासन बनाए रखने के लिए कठोर शारीरिक दण्ड का प्रावधान था। इस काल की दण्ड-व्यवस्था को स्पष्ट करते हुए एडम ने लिखा है,“छात्र को मुर्गा बनाना, उसकी पीठ या गर्दन पर निश्चित समय के लिए ईंट या लकड़ी को भारी टुकड़ा रखना, उसे पैरों के बल वृक्ष की शाखा से लटकाना, उसे बन्द करना, उसे भूमि पर पेट के बल लिटाकर शरीर को निश्चित दूरी तक घसीटना शारीरिक दण्ड के कुछ उदाहरण थे। इस प्रकार के कठोर दण्डों के प्रावधान के कारण मध्यकाल में शैक्षिक अनुशासनहीनता की समस्या प्रायः गम्भीर नहीं थी। |
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मध्यकालीन शिक्षा के सन्दर्भ में प्राथमिक शिक्षा तथा मकतब का सामान्य परिचय प्रस्तुत कीजिए। |
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Answer» मध्य युग की प्राथमिक शिक्षा सम्बन्धी प्रमुख बातें निम्नलिखित हैं 1. मकतब का अर्थ-इस युग में प्राथमिक शिक्षा मकतबों में दी जाती थी, जो अधिकतर मस्जिदों के साथ जुड़े होते थे। मकतब शब्द की व्युत्पत्ति अरबी भाषा के कुतुब’ शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है, ‘उसने लिखा। अतः मकतब लिखना-पढ़ना सीखने वाले स्थान को कहा जाता है। धनी लोग अपने बालकों की प्राथमिक शिक्षा का प्रबन्ध मौलवियों द्वारा घर पर ही करते थे। |
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मकतब क्या है? |
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Answer» मकतब प्राथमिक स्तर की शिक्षा प्रदान करने वाली शिक्षण संस्थाएँ हैं। |
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बौद्धकालीन शिक्षा (बौद्ध शिक्षा) तथा मुस्लिम शिक्षा (मध्यकालीन शिक्षा) में अन्तर बताइए। |
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Answer» बौद्ध-शिक्षा तथा मुस्लिम अर्थात् मध्यकालीन भारतीय शिक्षा में मुख्य अन्तर इस प्रकार थे| ⦁ बौद्ध-शिक्षा बौद्ध धर्म एवं दर्शन पर आधारित थी, जबकि मध्यकालीन शिक्षा इस्लाम धर्म की पोषक थी। |
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मुस्लिम शिक्षा कितने स्तरों में विभाजित थी ? |
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Answer» मध्यकालीन भारतीय शिक्षा के मुख्य रूप से दो स्तर थे— ⦁ प्राथमिक शिक्षा तथा |
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मध्य युग में साहित्य में निष्णात छात्र को कहा जाता था(क) आलिम(ख) फाजिल(ग) कामिल(घ) स्नातक |
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Answer» सही विकल्प है (ग) कामिल |
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तर्क और दर्शनशास्त्र में प्रबुद्ध छात्रों को क्या उपाधि दी जाती थी ?(क) फाजिले(ख) आलिम(ग) मनसबदार(घ) कामिल |
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Answer» सही विकल्प है (क) फाजिल |
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मध्यकाल में प्राथमिक शिक्षा के केन्द्र थे ?(क) मदरसा(ख) मकतब(ग) खानकाह(घ) दरगाह |
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Answer» सही विकल्प है (ख) मकतब |
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मध्यकालीन भारत में उच्च मुस्लिम शिक्षा के केन्द्रों को कहा जाता था?(क) मकतब(ख) मदरसा(ग) खानकाह(घ) दरगाह |
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Answer» सही विकल्प है (ख) मदरसा |
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मध्यकाल में शिक्षा की प्रगति किस बादशाह के काल में सर्वाधिक हुई?(क) फिरोज तुगलक(ख) हुमायूं(ग) शेरशाह(घ) अकबर |
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Answer» सही विकल्प है (घ) अकबर |
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मध्यकाल में शिक्षा का प्रबन्ध व संरक्षण का दायित्व किस पर था?(क) राज्य पर ,(ख) मन्त्रिपरिषद् पुर(ग) सुल्तान पर,(घ) स्थानीय लोगों पर |
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Answer» सही विकल्प है (क) राज्य पर |
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“मुस्लिम शिक्षा एक विदेशी प्रणाली थी, जिसका भारत में प्रतिरोपण किया गया और जो ब्राह्मणीय शिक्षा से अति अल्प सम्बन्ध रखकर, अपनी नवीन भूमि में विकसित हुई।” यह कथन किसका है?(क) डॉ० केई का(ख) डॉ० जाकिर हुसैन का(ग) डॉ० यूसुफ हुसैन का(घ) इनमें से किसी को नहीं |
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Answer» सही विकल्प है (क) डॉ० केई का |
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राष्ट्रीय प्रौढ़ शिक्षा संस्थान के मुख्य लक्ष्य क्या हैं ? |
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Answer» भारत में सन् 1991 में स्थापित ‘राष्ट्रीय प्रौढ़ शिक्षा संस्थान का मुख्य लक्ष्य समस्त प्रौढ़ स्त्री-पुरुषों को साक्षर बनाना तथा पर्याप्त जीवनोपयोगी ज्ञान प्रदान करना तथा जीवन के प्रति जागरूक बनाना है। |
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सामाजिक शिक्षा के क्षे उद्देश्यों पर प्रकाश डालिए। |
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Answer» 1. मानसिक एवं बौद्धिक विकास : |
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स्त्री-शिक्षा प्रसार का समाज में स्त्रियों की स्थिति पर क्या प्रभाव पड़ता है? |
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Answer» स्त्री-शिक्षा प्रसार से समाज में नारी-सशक्तिकरण को बल मिलता है। |
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मध्यकाल में भारतीय समाज में स्त्री-शिक्षा की क्या स्थिति थी ? |
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Answer» मध्यकाल में भारतीय समाज में स्त्री-शिक्षा की स्थिति दयनीय थी। |
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परिवार में माता का योग्य एवं सुशिक्षित होना क्यों आवश्यक है? |
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Answer» माता योग्य एवं सुशिक्षित है तो वह अपने बच्चों को भी योग्य एवं सुशिक्षित बना सकती है। |
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सामाजिक शिक्षा से आप क्या समझते हैं। इसके संसाधनों का वर्णन कीजिए। |
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Answer» प्रौढ़ स्त्री-पुरुष को साक्षरता तथा जीवन-उपयोगी ज्ञान प्रदान करने की व्यवस्था को सामाजिक शिक्षा कहा जाता है। वास्तव में सामाजिक शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा का ही अधिक विकसित तथा विस्तृत रूप है। सामाजिक शिक्षा में जीवन के सामाजिक पक्ष को समुचित महत्त्व दिया जाता है। |
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सामाजिक शिक्षा (प्रौढ शिक्षा) से आप क्या समझते हैं? सामाजिक शिक्षा के मुख्य उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए।यासामाजिक शिक्षा का प्रमुख कार्यक्रम क्या है? |
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Answer» समाज या प्रौढ़ शिक्षा का अर्थ हुमायूँ कबीर ने लिखा है 1. मानसिक एवं बौद्धिक विकास : |
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‘प्रौढ़ शिक्षा’ को ‘सामाजिक शिक्षा’ का रूप क्यों दिया गया है? स्पष्ट कीजिए। |
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Answer» स्वतन्त्रता प्राप्ति से पहले भारत में प्रौढ़ स्त्री-पुरुषों को साक्षरता प्रदान करने के लिए एक शिक्षा योजना को लागू किया गया था तथा उस योजना को प्रौढ़ शिक्षा कहा जाता था। स्वतन्त्रता प्राप्ति के देश के जनीतिक एवं सामाजिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए यह महसूस किया गया कि प्रौढ़ स्त्री-पुरुषों को शिक्षित बनाने के लिए उन्हें साक्षरता प्रदान करना ही पर्याप्त नहीं बल्कि उन्हें जीवनोपयोगी सम्पूर्ण ज्ञान प्रदान करना आवश्यक है। |
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किस काल में हमारे देश में स्त्री-शिक्षा की दुर्दशा थी? |
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Answer» मध्यकाल में हमारे देश में स्त्री-शिक्षा की दुर्दशा थी। |
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मध्यकाल में भारतीय समाज में स्त्री-शिक्षा की क्या स्थिति थी? |
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Answer» भारत में मुस्लिम सत्ता की स्थापना हो जाने से देशभर में हिन्दू और मुस्लिम दोनों समाजों में परदा-प्रथा का बहुत अधिक प्रचलन हो गया तथा हिन्दुओं में बाल-विवाह की प्रथा भी आरम्भ हो गयी। अतः अल्प आयु की कुछ बालिकाएँ भले ही थोड़ा-बहुत ज्ञान प्राप्त कर लेती हों, लेकिन उच्च शिक्षा से वे वंचित ही रहती थीं। |
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टिप्पणी लिखिए-स्त्री-शिक्षा तथा सहशिक्षा। |
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Answer» स्त्री-शिक्षा तथा सहशिक्षा सहशिक्षा वह शिक्षा-व्यवस्था है, जिसके अन्तर्गत लड़के तथा लड़कियाँ एक स्थान पर एक समय, एक पाठ्यक्रम, एक विधि तथा एक प्रशासन के अन्तर्गत अध्ययन करते हैं। सहशिक्षा की आवश्यकता तथा महत्त्व सहशिक्षा का प्रसार |
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सामाजिक शिक्षा की समस्याओं के निराकरण के उपायों का उल्लेख कीजिए। |
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Answer» सामाजिक शिक्षा की विभिन्न समस्याओं के निराकरण के लिए निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं। |
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स्त्री-शिक्षा अथवा बालिका शिक्षा को आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण क्यों माना जाता है? याटिप्पणी लिखिए-नारी शिक्षा का महत्त्व। |
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Answer» एक विद्वान का कथन है, एक लड़के की शिक्षा एक व्यक्ति की शिक्षा है, परन्तु एक लड़की की शिक्षा पूरे परिवार की शिक्षा है। प्रस्तुत कथन द्वारा स्पष्ट होता है कि बालिका-शिक्षा अधिक आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण है। वास्तव में आज की बालिका सुशिक्षित है तो एक भावी परिवार उससे लाभान्वित होगा। सुशिक्षित गृहिणी अपने घर-परिवार की सुव्यवस्था बनाये रखती है तथा बच्चों को शिक्षित बनाने में भरपूर योगदान प्रदान कर सकती है। बालिकाओं की शिक्षा से समाज की कुरीतियों को समाप्त करने में योगदान प्राप्त होता है तथा सामाजिक उत्थान में सहायता प्राप्त होती है। |
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किस काल में महिलाएँ समान मंच पर पुरुषों से शास्त्रार्थ करती थीं?(क) वैदिक काल में(ख) पौराणिक काल में(ग) मध्य काल में(घ) किसी भी काल में नहीं |
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Answer» सही विकल्प है (क) वैदिक काल में |
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सामाजिक (प्रौढ) शिक्षा की समस्याएँ क्या हैं? इन समस्याओं के समाधान के उपाय बताइए।याभारतवर्ष में प्रौदों के लिए शिक्षा-प्रसार में क्या-क्या बाधाएँ हैं? याप्रौढ शिक्षा के प्रसार की बाधाओं को दूर करने के लिए सुझाव दीजिए। |
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Answer» सामाजिक शिक्षा (प्रौढ़ शिक्षा) की मुख्य समस्याएँ 1. व्यापक निरक्षरता : |
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अखिल भारतीय प्रौढ शिक्षा परिषद्’ की स्थापना कब हुई?(क) 1937 ई० में(ख) 1938 ई० में(ग) 1939 ई० में(घ) 1940 ई० में |
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Answer» सही विकल्प है (ग) 1939 ई० में। |
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सामाजिक शिक्षा का उद्देश्य है (क) शिक्षा प्रमाण-पत्र देना(ख) साक्षरता प्रदान करना(ग) जीवनोपयोगी ज्ञान देना(घ) मनोरंजन देना |
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Answer» सही विकल्प है (ग) जीवनोपयोगी ज्ञान देना |
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भारत में किस क्षेत्र (ग्रामीण अथवा नगरीय) के प्रौढ स्त्री-पुरुषों को सामाजिक शिक्षा की अधिक आवश्यकता है? |
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Answer» भारत में ग्रामीण क्षेत्र के प्रौढ़ स्त्री-पुरुषों को सामाजिक शिक्षा की अधिक आवश्यकता है। |
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सामाजिक शिक्षा के पक्ष माने गये हैं(क) प्रौढ़ स्त्री-पुरुषों को साक्षर बनाना(ख) प्रौढ़ स्त्री-पुरुषों में शिक्षित मस्तिष्क का विकास करना(ग) प्रौढ़ स्त्री-पुरुषों में नागरिकता की भावना का विकास करना(घ) उपर्युक्त सभी |
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Answer» सही विकल्प है (घ) उपर्युक्त सभी |
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निम्नलिखित कथन सत्य हैं या असत्य⦁ सामाजिक कुरीतियों एवं बुराइयों को समाप्त करने के लिए स्त्री-शिक्षा अति आवश्यक है।⦁ कुछ अन्धविश्वास तथा सामाजिक रूढ़ियाँ स्त्री-शिक्षा के मार्ग में बाधक हैं।⦁ मध्यकाल में स्त्री-शिक्षा की सुव्यवस्था थी।⦁ ईसाई मिशनरियों ने स्त्री-शिक्षा के प्रसार में उल्लेखनीय योगदान दिया है।⦁ वर्तमान समय में सहशिक्षा को प्रोत्साहन देकर स्त्री-शिक्षा का अधिक प्रसार किया जा सकता है। |
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Answer» ⦁ सत्य |
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भारत में प्रौढ शिक्षा का आरम्भ कब हुआ?(क) 1908 ई० में(ख) 1910 ई० में(ग) 1921 ई० में(घ) 1922 ई० में |
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Answer» सही विकल्प है (ख) 1910 ई० में |
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सामाजिक शिक्षा का प्रमुख कार्यक्रम क्या है? |
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Answer» सामाजिक शिक्षा का प्रमुख कार्यक्रम समस्त प्रौढ़ स्त्री-पुरुषों को आधुनिक जीवनोपयोगी ज्ञान प्रदान करना है। |
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निम्नलिखित कथन सत्य हैं या असत्य⦁ प्रौढ़ स्त्री-पुरुषों को शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था को सामाजिक शिक्षा कहते हैं।⦁ केवल साक्षरता प्रदान करने से सामाजिक शिक्षा के लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता।⦁ सामाजिक शिक्षा के अन्तर्गत केवल व्यावसायिक शिक्षा ही प्रदान की जाती है।⦁ नगरीय क्षेत्रों में सामाजिक शिक्षा पूर्णरूप से अनावश्यक है।⦁ सामाजिक शिक्षा के अन्तर्गत हर प्रकार का जीवनोपयोगी ज्ञान प्रदान किया जाता है। |
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Answer» ⦁ सत्य |
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विकास की किस अवस्था में सीखने की दर सर्वाधिक होती है ? |
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Answer» विकास की शैशवावस्था में सीखने की दर सर्वाधिक होती है। |
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शैशवावस्था की मुख्य विशेषता है(क) नैतिक बोध की प्रधानता(ख) जटिल संवेगों का प्रदर्शन(ग) काम-प्रवृत्ति का प्रकाशन(घ) अनुकरण द्वारा सीखने की प्रधानता |
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Answer» (घ) अनुकरण द्वारा सीखने की प्रधानता |
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विकास की किस अवस्था में यौन-प्रवृत्ति सुप्तावस्था में होती है ?(क) शैशवावस्था(ख) बाल्यावस्था(ग) किशोरावस्था(घ) प्रौढ़ावस्था |
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Answer» सही विकल्प है (ख) बाल्यावस्था |
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शैशवावस्था में सुचारु विकास के लिए किस बात का विशेष ध्यान रखना अनिवार्य है ?(क) आज्ञापालन(ख) अध्ययन(ग) नैतिकता(घ) पोषण |
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Answer» सही विकल्प है (घ) पोषण |
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विकास की किस अवधि को प्रारम्भिक विद्यालय की आयु’ कहा जाता है ?(क) शैशवावस्था(ख) बाल्यावस्था(ग) किशोरावस्था(घ) प्रौढ़ावस्था |
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Answer» सही विकल्प है (ख) बाल्यावस्था |
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किशोरावस्था जीवन का(क) अधिक महत्त्वपूर्ण काल है(ख) महत्त्वपूर्ण काल है(ग) अत्यधिक महत्त्वपूर्ण काल है(घ) कम महत्त्वपूर्ण काल है |
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Answer» सही विकल्प है (ग) अत्यधिक महत्त्वपूर्ण काल है |
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वीर पूजा की अवस्था कहलाती है(क) शैशवावस्था(ख) बाल्यावस्था(ग) किशोरावस्था(घ) प्रौढ़ावस्था |
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Answer» सही विकल्प है (ग) किशोरावस्था |
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विकास की किस अवस्था में शारीरिक परिवर्तनों से सम्बन्धित समस्याएँ प्रबल होती हैं ?(क) शैशवावस्था(ख) बाल्यावस्था(ग) किशोरावस्था(घ) युवावस्था |
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Answer» सही विकल्प है (ग) किशोरावस्था |
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