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6851.

प्राचीन भारतीय शिक्षा की दो असफलताओं पर प्रकाश डालिए। या वैदिककालीन शिक्षा के दो दोषों की विवेचना कीजिए।

Answer»

प्राचीन भारतीय शिक्षा की दो असफलताएँ (दोष) निम्नलिखित हैं|

1. व्यावसायिक शिक्षा का अभाव-उस काल में विद्यार्थियों को अन्य सभी कर्म सिखाये जाते थे, जो उन्हें अनुशासित, धार्मिक, चरित्रवान व अच्छा नागरिक बनाते थे, किन्तु रोजगारोन्मुखी शिक्षा का अभाव ही था। अत: बहुत कम लोग शिक्षा ग्रहण करने में रुचि लेते थे।
2. धार्मिकता व आध्यात्मिकता का अत्यधिक समावेश—उस काल की पूरी शिक्षा गुरु पर आधारित थी और अधिकांशतः गुरु अपने उपदेशों में धार्मिक एवं आध्यात्मिक बातों का ही समावेश रखते थे। भौतिक जीवन में काम आने वाली बातों पर चर्चा करना निकृष्ट माना जाता था।

6852.

प्राचीन काल में भारत में स्त्री-शिक्षा की क्या स्थिति थी ?

Answer»

प्राचीन काल में भारत में स्त्री-शिक्षा का प्रचलन था। इसका मुख्य प्रमाण हैप्राचीनकालीन विदुषी स्त्रियाँ; जैसे कि–घोषा, गार्गी, मैत्रेई, अपाला, शकुन्तला, अनुसूइया आदि। वैसे इस बात का कोई प्रमाण नहीं कि उस काल में स्त्रियों के लिए अलग से शिक्षण-संस्थाएँ थीं। ऐसा माना जाता है कि उस काल में बालिकाएँ घर पर ही रह कर विद्या प्राप्त करती थीं। सामान्य रूप से माता-पिता, भाई अथवा कुल पुरोहित द्वारा बालिकाओं को शिक्षा प्रदान की जाती थी। कुछ सम्पन्न परिवारों में बालिकाओं की शिक्षा के लिए घर पर ही शिक्षक भी नियुक्त किए जाते थे।

6853.

बौद्धकालीन शिक्षा का परम उद्देश्य क्या स्वीकार किया गया था ?

Answer»

बौद्धकालीन शिक्षा को परम उद्देश्य निर्वाण की प्राप्ति माना गया था।

6854.

प्राचीनकालीन शिक्षा-व्यवस्था में उपनयन संस्कार का सामान्य परिचय प्रस्तुत कीजिए। या उपनयन संस्कार से आप क्या समझते हैं?

Answer»

विचारकों का मत है कि ब्राह्मणों को 5वें वर्ष, क्षत्रिय को छठे वर्ष और वैश्य को 8वें वर्ष में विद्याध्ययन प्रारम्भ कर देना चाहिए। शूद्रों को विद्याध्ययन करने का अधिकार नहीं था। शिक्षा प्रारम्भ करने से पूर्व प्रत्येक बालक का उपनयन संस्कार किया जाता था। प्राचीन काल में बिना उपनयन संस्कार के बालक ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता थे। इसके द्वारा बालक को गुरु मन्त्र का उपदेश दिया जाता था।

6855.

बौद्धकालीन शिक्षा के दो मुख्य स्तर कौन-कौन-से थे ?

Answer»

बौद्धकालीन शिक्षा के दो मुख्य स्तर थे:-प्राथमिक शिक्षा तथा उच्च शिक्षा।

6856.

बौद्धकालीन शिक्षा के मुख्य दोषों का उल्लेख कीजिए।

Answer»

बौद्धकालीन शिक्षा में निम्नलिखित दोष थे

⦁    धार्मिक ज्ञान पर विशेष बल देना।
⦁    तकनीकी कौशल के विषयों की शिक्षा का अभाव होना।
⦁    सैनिक तथा शारीरिक शिक्षा का अभाव होना।
⦁    समाज की ओर ध्यान होते हुए भी निवृत्ति मार्ग का अनुसरण करना।
⦁    शिक्षा में शारीरिक श्रम के महत्त्व की उपेक्षा होना।
⦁    शिक्षकों तथा छात्रों में अनुशासन-संयम के नियमों में शिथिलता होना।
⦁    अनाचार फैलने से स्त्री शिक्षा का विकास अवरुद्ध होना।
⦁    लोकतन्त्र के नाम पर स्वेच्छाचारिता का प्रवेश और विकास होना।
⦁    जनसाधारणका दृष्टिकोण संकुचित और दूषित हो जाना।
⦁    शिक्षा और जीवन दोनों की प्रगति रुक-सी गई।

6857.

बौद्धकालीन शिक्षा के मुख्य गुणों का उल्लेख कीजिए।

Answer»

बौद्धकालीन शिक्षा के निम्नलिखित मुख्य गुणों का उल्लेख किया जा सकता है

⦁    प्राथमिक एवं उच्च स्तर पर सभी प्रकार की शिक्षा की व्यवस्था होना।
⦁    जाति-पाँति के भेदभाव को दूर कर धनी व निर्धन, पुरुष व स्त्री सभी लोगों के लिए शिक्षा का प्रबन्ध होना।
⦁    विभिन्न प्रकार के विद्यालयों, विश्वविद्यालयों तथा शिक्षा केन्द्रों की स्थापना होना।
⦁    जीवनोपयोगी, ज्ञानात्मक एवं कौशलात्मक विषयों को संगठित करना।
⦁    संयम, नियम-पालन, अनुशासन व आदर्शों पर ध्यान देना।
⦁    पाठ्य-पुस्तके,रचना, सुरक्षा तथा पुस्तकालयों का विकास करना।
⦁    स्त्री शिक्षा, व्यवसायिक, शिल्प एवं ललित कलाओं की शिक्षा का विकास करना।
⦁    प्राचीन आधार पर होते हुए भी नवीन शिक्षा की ओर उन्मुख होना।
⦁    सामाजिक एवं सामुदायिक जीवन की प्रगति पर बल देना।
⦁    राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय भावना से छात्रों का नैतिक, धार्मिक, ज्ञानात्मक, आर्थिक एवं राजनीतिक विकास करना।

6858.

बौद्धकालीन सामान्य शिक्षण संस्थानों को किस नाम से जाना जाता था?

Answer»

बौद्धकालीन सामान्य शिक्षण संस्थाओं को बौद्ध मठ के नाम से जाना जाता था।

6859.

बौद्धकालीन शिक्षा में अनुशासन की क्या व्यवस्था थी ?

Answer»

बौद्धकालीन शिक्षा में छात्रों के लिए अनुशासित रहना अति आवश्यक था। प्रत्येक छात्र को विद्यालय के नियमों तथा रहन-सहन एवं खान-पान के नियमों का पालन करना पड़ता था। नियम और अनुशासन भंग तथा दुराचरण पर गुरु विद्यार्थी को दण्ड देता था, विद्यालय से निकाल देता था तथा विद्याध्ययन से कुछ समय के लिए वंचित कर देता था। छात्रों के प्रत्येक अपराध की सूचना गुरु द्वारा संघ को दी जाती थी और संघ की ‘प्रतिभारत’ सभा द्वारा दण्ड दिया जाता था। इसमें विद्यार्थी अपना अपराध सभी के सामने स्वीकार करता था। अनुशासनहीनता बढ़ने पर सभी छात्र दण्ड पाते थे।

6860.

आलोचकों के अनुसार बौद्धकालीन शिक्षा में जीवन के किस पक्ष को समुचित महत्त्व प्रदान नहीं किया गया था ?

Answer»

आलोचकों के अनुसार बौद्धकालीन शिक्षा में जीवन के लौकिक पक्ष को समुचित महत्त्व प्रदान नहीं किया गया था।

6861.

बौद्धकालीन शिक्षा-प्रणाली में किस वर्ग के व्यक्तियों को शिक्षा के अधिकार से वंचित रखा गया था ?

Answer»

बौद्धकालीन शिक्षा-प्रणाली में चाण्डाल वर्ग के व्यक्तियों को शिक्षा के अधिकार से वंचित रखा गया था।

6862.

बौद्धकाल में स्त्री-शिक्षा की क्या व्यवस्था थी ?

Answer»

बौद्धकाल में स्त्रियों अर्थात् बालिकाओं को शिक्षा दिए जाने की सुचारु व्यवस्था थी। इसका प्रमाण है कि इस काल में अनेक विदुषी स्त्रियों का उल्लेख हुआ है; जैसे–अनुपमा, सुमेधा, विजयंका तथा शुभा। बौद्धकाल में अनेक स्त्रियों ने बौद्ध-धर्म के प्रचार एवं प्रसार में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था। परन्तु यह भी सत्य है कि बौद्धकाल में केवल उच्च वर्ग के परिवारों की स्त्रियाँ ही उत्तम शिक्षा प्राप्त कर पाती थीं। वास्तव में बौद्ध मठों में प्रारम्भ में स्त्रियों का प्रवेश निषिद्ध था। अत: बालिकाओं की शिक्षा की कोई सार्वजनिक व्यवस्था नहीं थी।

6863.

बौद्धकाल में मुख्य रूप से शिक्षण की किस प्रणाली को अपनाया जाता था ?

Answer»

बौद्धकाल में मुख्य रूप से शिक्षण की मौखिक प्रणाली को अपनाया जाता था।

6864.

बौद्धकालीन शिक्षा प्रणाली के नियमानुसार बालक की शिक्षा आरम्भं करते समय किस संस्कार को आयोजित किया जाता था ?

Answer»

बालक की शिक्षा को एम्भ करते समय प्रव्रज्या संस्कार आयोजित किया जाता था।

6865.

उपनयन संस्कार का सम्बन्ध है -(i) बौद्धकाल से,(ii) वैदिक काल से।

Answer»

उपनयन संस्कार का सम्बन्ध है -

(ii) वैदिक काल से।

6866.

प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली के अन्तर्गत समाज के किस वर्ण के बालकों को उपनयन संस्कार का अधिकार प्राप्त नहीं था ?

Answer»

प्राचीन भारतीय शिक्षा-प्रणालीकै अन्तर्गत शूद्र वर्ण के बालकों को उपनयन संस्कार का अधिकार प्राप्त नहीं था।

6867.

बौद्धकालीन शिक्षा में अपनाई जाने वाली मुख्य शिक्षा-विधियों का सामान्य परिचय दीजिए।

Answer»

बौद्ध काल में शिक्षण की प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित थीं-

⦁    शिक्षक द्वारा शिक्षण विधि-प्रतिदिन शिक्षक द्वारा प्रातः 7 बजे से 11 बजे तक और फिर 2 बजे से सायं 5 या 6 बजे तक शिक्षा दी जाती थी। पहले पुराने पाठ का स्मरण कराया जाता था, तत्पश्चात् नया पाठ पढ़ाया जाता था।
⦁    प्रवचन या व्याख्यान विधि-शिक्षक अपनी इच्छानुसार विषय के ऊपर प्रवचन या व्याख्यान देता था। शिक्षक शुद्ध उच्चारण और कण्ठस्थलीकरण पर विशेष बल देता था।
⦁    वाद-विवाद विधि-शिक्षक सत्यों को प्रमाणित करने के लिए वाद-विवाद और शास्त्रार्थ विधि का प्रयोग करते थे। इस विधि में सिद्धान्त, हेतु, उदाहरण, साम्य, विरोध, प्रत्यक्ष, अनुमान तथा निष्कर्ष या आगम प्रमाणों का प्रयोग किया जाता था।
⦁    प्रश्नोत्तर विधि-शिक्षक छात्रों की शंकाओं का समाधान विषयों के स्पष्टीकरण और छात्रों में जिज्ञासा उत्पन्न करने के लिए प्रश्नोत्तर विधि का प्रयोग करते थे।
⦁    मॉनीटोरियल विधि-कक्षा के कुशाग्र बुद्धि छात्र द्वारा या उच्च कक्षा के छात्रों द्वारा निम्न कक्षा के छात्रों को पढ़ाने का प्रबन्ध किय्य जाता था।
⦁    पुस्तक अध्ययन विधि-सम्यक् ज्ञान पुस्तक में रहता था, अतएव पुस्तक अध्ययन की विधि अपनाई गई थी।
⦁    सम्मेलन विधि-पूर्णिमा और प्रतिपदा के दिन संघ के सभी छात्र एवं अध्यापक एक साथ मिलते थे और वहीं ज्ञान-धर्म की चर्चा होती थी।
⦁    निदिध्यासन विधि-धर्म एवं अध्यात्म के विषय के लिए यह विधि अपनाई जाती थी। इससे अन्तर्ज्ञान प्राप्त किया जाता था।
⦁    देशाटन, भ्रमण और निरीक्षण विधि—छात्र विभिन्न स्थानों में भ्रमण व देशाटन करके ज्ञान प्राप्त करते थे और प्रकृति की विभिन्न वस्तुओं का निरीक्षण करते थे।
⦁    व्यावसायिक व प्रयोगात्मक विधि-व्यावसायिक एवं औद्योगिक विषयों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए छात्र कुशल कारीगरों की देख-रेख में रहता था और दक्षता तथा प्रवीणता का अर्जन करता था। वह स्वयं काम करता था और अन्य लोगों के काम करने के तरीके का अवलोकन भी करता था।

6868.

बौद्धकाल में बालक की शिक्षा के पूर्ण होने के अवसर पर किस संस्कार को सम्पन्न किया जाता था ?

Answer»

बौद्धकाल में बालक की शिक्षा के पूर्ण होने के अवसर पर उपसम्पदा संस्कार सम्पन्न किया जाता था।

6869.

बुद्ध के समय में पबज्जा (प्रव्रज्या) संस्कार कैसे मनाया जाता था?

Answer»

प्रव्रज्या संस्कार’ बौद्ध शिक्षा प्रणाली की प्रमुख विशेषता थी। यह संस्कार बालक की शिक्षा प्रारम्भ करने के अवसर पर आयोजित किया जाता था। ‘पबज्जा’ का शाब्दिक अर्थ है-‘बाहर जाना। अत: यह संस्कार,बालक द्वारा अपना घर छोड़कर शिक्षा ग्रहण के लिए किसी बौद्ध मठ के लिए गमन करने का द्योतक है। | पबज्जा संस्कार का विवरण ‘विनयपिटक’ में दिया गया है। इसके अनुसार, इस अवसर पर बालक सिर के बाल मुंडवाकर एवं पीले वस्त्र धारण कर मठ के भिक्षुओं के सम्मुख एक श्लोक का तीन बार पाठ करता था। यह श्लोकोथा “बुद्धं शरणं गच्छामि, धम्मं शरणं गच्छामि, संघं शरणं गच्छामि” इस प्रकार विधिवत् शपथ ग्रहण करने के उपरान्त बालक को प्रधान भिक्षु द्वारा सामान्य उपदेश दिया जाता था, जिसमें उसे मुख्य रूप से दस आदेश दिए जाते थे। उदाहरणत: चोरी न करना, जीवहत्या न करना, असत्य न बोलना अशुद्ध आचरण नहीं करना आदि।

वस्तुतः ये आदेश विद्यार्थियों के लिए आचार-संहिता के समान थे। इस उपदेश के उपरान्त बालक को मठ की सदस्यता प्राप्त हो जाती थी तथा उसे नव-शिष्य, श्रमण या सामनेर कहा जाता था।
 

6870.

बौद्ध शिक्षा का अन्तिम लक्ष्य था(क) चरित्र-निर्माण(ख) व्यक्तित्व का विकास(ग) जीविकोपार्जन(घ) निर्वाण-प्राप्ति

Answer»

सही विकल्प है (घ) निर्वाण-प्राप्ति

6871.

उपनयन शिक्षा संस्कार किस काल में होता था ?(क) वैदिक काल(ख) बौद्ध काल ।(ग) मुस्लिम काल

Answer»

सही विकल्प है (क) वैदिक काल

6872.

आधुनिक भारतीय शिक्षा के लिए बौद्ध-शिक्षा की देन को स्पष्ट कीजिए।

Answer»

आधुनिक भारतीय शिक्षा के लिए बौद्ध-शिक्षा की देन बौद्धकालीन भारतीय शिक्षा की कुछ मौलिक विशेषताएँ थीं, जिनके कारण इस शिक्षा-प्रणाली ने सम्पूर्ण भारतीय शिक्षा-व्यवस्था पर विशेष प्रभाव डाला। बौद्धकालीन शिक्षा प्रणाली एवं व्यवस्था के कुछ तत्त्व ऐसे थे जिनका अनुकरण आगामी भारतीय शिक्षा-व्यवस्था में भी किया जाता रहा तथा आज भी हमारी शिक्षा में उन्हें किसी-न-किसी रूप में देखा जा सकता है। इन तत्त्वों को बौद्धकालीन शिक्षा की आधुनिक भारतीय शिक्षा की देन माना जा सकता है। इन तत्त्वों या कारकों का सामान्य परिचय निम्नवर्णित है-

⦁    आधुनिक युर्ग में सब कहीं पाये जाने वाले सामान्य विद्यालय मूल रूप से बौद्धकालीन शिक्षा-प्रणाली की ही देन है, क्योंकि सर्वप्रथम बौद्धकाल में ही सामान्य विद्यालय स्थापित हुए थे।
⦁    वर्तमान समय में सार्वजनिक प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था है, इसे प्रारम्भ करने का श्रेय भी बौद्धकालीन शिक्षा-प्रणाली को ही था।
⦁    आधुनिक युग में स्त्री-शिक्षा को विशेष आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है। इस अवधारणा को भी सर्वप्रथम बौद्धकालीन शिक्षा-प्रणाली में ही प्रस्तुत किया गया था; अतः इसे भी बौद्ध-शिक्षा की ही देन माना जाता है।
⦁    आधुनिक युग में छात्रों के सुचारु शारीरिक विकास के लिए विद्यालयों में खेल-कूद तथा शारीरिक व्यायाम की विशेष व्यवस्था की जाती है। इस व्यवस्था को भी सर्वप्रथम बौद्धकालीन शिक्षा-व्यवस्था में ही लागू किया गया था; अत: इसे उसी की देन माना जाता है।
⦁    वर्तमान समय में प्राविधिक तथा विज्ञान सम्बन्धी शिक्षा को विशेष महत्त्व दिया जाता है। इस प्रकार की शिक्षा का प्रचलन भी सर्वप्रथम बौद्धकाल में ही हुआ था; अतः वर्तमान शिक्षा के लिए यह बौद्धकालीन शिक्षा की ही देन माना जा सकता है।
⦁    बौद्धकालीन शिक्षा की एक अन्य सराहनीय देन है–शिक्षा के क्षेत्र में व्यावसायिक शिक्षा तथा लाभप्रद विषयों को सम्मिलित करना। आज भी इस वर्ग की शिक्षा को अति आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
⦁    आधुनिक युग में शिक्षा के क्षेत्र में लौकिक तथा सामान्य विषयों के समावेश को विशेष प्राथमिकता दी जाती है। इस प्रचलन को भी बौद्धकाल में ही प्रारम्भ किया गया था।
⦁    बौद्धकालीन शिक्षा की एक देन शिक्षा के क्षेत्र में सामूहिक प्रणाली को अपनाना, शिक्षण के लिए। बहु-शिक्षक व्यवस्था को लागू करना भी है। आज भी इन व्यबस्थाओं को अपनाया जा रहा है।
⦁    बौद्धकालीन शिक्षा की एक देन शिक्षा के क्षेत्र में विभिन्न स्तरों की शिक्षा की अवधि को निर्धारित करना भी रही है।
⦁    आज प्रत्येक शिक्षण संस्था के सँभी नियम पूर्व-निर्धारित तथा निश्चित होते हैं। शिक्षण संस्थाओं में इस व्यवस्था को प्रारम्भ करने का श्रेय बौद्धकालीन शिक्षा को ही है; अत: इसे भी उसकी देन माना जा सकता है।
⦁    आज शिक्षा के क्षेत्र में अवसरों की समानता की अवधारणा को आवश्यक माना जा रहा है। मौलिक रूप से यह अवधारणा बौद्ध शिक्षा की ही देन है।
⦁    आज अधिकांश विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण करने वाले बालक अपने घरों में अपने परिवार के साथ ही रहते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में इस व्यवस्था को प्रारम्भ करने का श्रेय बौद्ध शिक्षा-प्रणाली को ही | है, अत: इस व्यवस्था को भी बौद्ध शिक्षा की देन ही स्वीकार किया जाता है।

6873.

बौद्ध काल में शिक्षा आरम्भ होने की आयु थी(क) 5 वर्ष(ख) 7 वर्ष(ग) 8 वर्ष(घ) 12 वर्ष

Answer»

सही विकल्प है (ग) 8 वर्ष

6874.

बौद्ध शिक्षा का ज्ञान किस लेखक के यात्रा-विवरण से होता है?(क) सुंमाचीन(ख) फाह्याने(ग) ह्वेनसाँग(घ) इत्सिग

Answer»

सही विकल्प है (ग) ह्वेनसाँग

6875.

बौद्रकालीन शिक्षा में किस संस्कार के पश्चात् बालक को ‘श्रमण’ कहा जाता था?(क) पबज्जा(ख) उपसम्पदा(ग) उपनयन(घ) समावर्तन

Answer»

सही विकल्प है (ख) उपसम्पदा

6876.

बौद्ध काल में शिक्षा प्रारम्भ का संस्कार था(क) उपनयन(ख) उपसम्पदा(ग) पबज्जा(घ) समावर्तन

Answer»

सही विकल्प है (ग) पबज्जा

6877.

बौद्ध काल में शिक्षा का विश्वप्रसिद्ध केन्द्र था(क) जौनपुर(ख) उज्जैन(ग) नालन्दा(घ) अमरावती

Answer»

सही विकल्प है (ग) नालन्दा

6878.

वैदिक और बौद्ध शिक्षा-प्रणालियों की समानताओं और असमानताओं की विवेचना कीजिए।या वैदिककाल तथा बौद्ध-शिक्षा की समानताओं तथा असमानताओं का वर्णन कीजिए।

Answer»

प्राचीनकाल में भारत में विकसित होने वाली दो मुख्य शिक्षा प्रणालियों को क्रमशः वैदिक शिक्षा या हिन्दू-ब्राह्मणीय शिक्षा तथा बौद्धकालीन शिक्षा के रूप में जाना जाता है। बौद्धकालीन शिक्षा बौद्ध धर्म एवं दर्शन की सैद्धान्तिक मान्यताओं पर आधारित थी, परन्तु यह भी सत्य है कि बौद्ध धर्म भी एक भारतीय धर्म था तथा बौद्धकालीन शिक्षा भारतीय सामाजिक परिस्थितियों में ही विकसित हुई थी।

इस स्थिति में वैदिक शिक्षा तथा बौद्धकालीन शिक्षा में कुछ समानताएँ होना नितान्त स्वाभाविक ही था, परन्तु वैदिक-धर्म तथा बौद्ध धर्म में कुछ मौलिक तथा सैद्धान्तिक अन्तर भी है। दोनों धर्मों का सामाजिक व्यवस्था स्तरीकरण तथा जीवन के उद्देश्यों आदि के प्रति दृष्टिकोण भिन्न है। इस स्थिति में दोनों धर्मों द्वारा विकसित की गयी शिक्षा-प्रणालियों में कुछ स्पष्ट अन्तर पाया जाता है। इस स्थिति में वैदिक-शिक्षा तथा बौद्धकालीन शिक्षा के तुलनात्मक विवरण को प्रस्तुत करने के लिए इन शिक्षा-प्रणालियों में पायी जाने वाली समानताएँ तथा असमानताएँ अग्रलिखित हैं–

वैदिक तथा बौद्ध शिक्षा की समानताएँ

डॉ० अल्तेकर के अनुसार, “जहाँ तक सामान्य शैक्षिक सिद्धान्त या प्रयोग की बात है, हिन्दुओं और बौद्ध में कोई विशेष अन्तर नहीं था। दोनों प्रणालियों के समान आदर्श थे और दोनों समान विधियों का अनुसरण करती थी। इस स्थिति में इन दोनों शिक्षा-प्रणालियों में विद्यमान समानताओं का विवरण निम्नवर्णित है

⦁    दोनों शिक्षा प्रणालियाँ हर प्रकार के बाहरी नियन्त्रण से मुक्त थी अर्थात् वे अपने आप में स्कतन्त्र थी। दोनों शिक्षा व्यवस्थाओं में राज्य अथवा किसी अन्य सत्ता का कोई हस्तक्षेप नहीं था।
⦁    दोनों ही शिक्षा-प्रणालियों में शिक्षण की मौखिक विधि को अपनाया गया था।
⦁    वैदिक तथा बौद्ध शिक्षा-प्रणालियों में समान रूप में छात्रों को दिनचर्या तथा सामान्य जीवन के | नियमों का पालन करना पड़ता था।
⦁    दोनों ही शिक्षा प्रणालियों में अनुशासन की गम्भीर समस्या नहीं थी तथा अनुशासन बनाये रखने | के लिए कठोर या शारीरिक दण्ड का प्रावधान नहीं था।
⦁    दोनों शिक्षा-प्रणालियाँ धर्म-प्रधान थीं अर्थात् शिक्षा के क्षेत्र में धार्मिक एवं नैतिक मूल्यों को समुचित महत्त्व दिया गया था।
⦁    दोनों ही शिक्षा-प्रणालियों में शैक्षिक-प्रक्रिया में कुछ संस्कारों को विशेष महत्त्व दिया गया था।
⦁    दोनों ही शैक्षिक व्यवस्थाओं में शिक्षा पूर्ण रूप से निःशुल्क थी अर्थात् शिक्षा ग्रहण करने के लिए किसी प्रकार का शुल्क देने का प्रावधान नहीं था।
⦁    किसी भी शिक्षा-प्रणाली का मूल्यांकन करते समय गुरु-शिष्य सम्बन्धों को अवश्य ध्यान में रखा जाता है। वैदिक शिक्षा तथा बौद्ध-शिक्षा के सन्दर्भ में कहा जा सकता है कि इन दोनों शिक्षा प्रणालियों में गुरु-शिष्य सम्बन्ध बहुत ही मधुर, स्नेहपूर्ण, पवित्र तथा पारस्परिक व कर्तव्यों पर आधारित थे। यह समानता विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण मानी जाती है।
⦁    ये दोनों ही शिक्षा-प्रणालियाँ विभिन्न निर्धारित नियमों द्वारा परिचालित होती थीं। शिक्षा प्रारम्भ | करने की आयु शिक्षा की अवधि आदि पूर्ण रूप से नियमित तथा निश्चित थी।
⦁    वैदिक शिक्षा तथा बौद्ध शिक्षा-व्यवस्था के अन्तर्गत शैक्षिक वातावरण सम्बन्धी समानता थी। गुरुकुल तथा बौद्ध मठ सामान्य रूप से गाँव या नगर से कुछ दूर प्राकृतिक रमणीक वातावरण में ही स्थापित किये जाते थे।
⦁    वैदिक शिक्षा तथा बौद्ध-शिक्षा में समान रूप से छात्रों द्वारा सादा तथा सरल जीवन व्यतीत किया जाता था तथा सदाचार को विशेष महत्त्व दिया जाता था। व्यवहार में सादा जीवन उच्च-विचार के आदर्श को अपनाया जाता था।

वैदिक तथा बौद्ध शिक्षा की असमानताएँ

वैदिक तथा बौद्ध शिक्षा प्रणालियों में विद्यमान असमानताओं का सामान्य विवरण निम्नवर्णित है|

⦁    वैदिक काल में शिक्षा की व्यवस्था मुख्य रूप से गुरुकुलों में होती थी, जबकि बौद्धकाल में यह
व्यवस्था बौद्ध-मठों एवं विहारों में होती थी। वैदिक काल में सामान्य विद्यालय नहीं थे, परन्तु | बौद्धकाल में इस प्रकार के विद्यालय स्थापित हो गये थे।
⦁    “वैदिक काल में शिक्षा का माध्यम संस्कृत भाषा थी, जबकि बौद्धकाल में शिक्षा का माध्यम पालि | भाषा तथा कुछ क्षेत्रीय भाषाएँ थीं।।
⦁    वैदिक काल में शिक्षा प्रदान करने का कार्य ब्राह्मण करते थे, जबकि बौद्धकाल में ऐसा बन्धन नहीं था। किसी भी जाति का योग्य व्यक्ति शिक्षा प्रदान कर सकता था।
⦁    वैदिक काल में शिक्षा का स्वरूप व्यक्तिगत एवं पारिवारिक था, जबकि बौद्धकाल में यह स्वरूप । सामूहिक एवं संस्थागत था।
⦁    वैदिक काल में केवल सवर्णो को शिक्षा प्रदान की जाती थी, जबकि बौद्धकाल में किसी प्रकार का जातिगत भेदभाव नहीं था।
⦁    वैदिक काल में छात्रों का जीवन अधिक कठोर एवं तपोमय था, जबकि बौद्धकाल में यह कठोरता घट गयी।
⦁    वैदिक काल में शिक्षा अनिवार्य रूप से शिक्षके-केन्द्रित थी, जबकि बौद्धकाल में छात्रों को भी कुछ स्वतन्त्रता एवं अधिकार प्राप्त थे।
⦁    वैदिक काल में वैदिक धर्म, दर्शन एवं साहित्य की शिक्षा दी जाती थी परन्तु बौद्ध-शिक्षा के अन्तर्गत बौद्ध धर्म एवं दर्शन को शिक्षा के पाठ्यक्रम में अधिक महत्त्व दिया जाता था।
⦁     वैदिककालीन प्रायः सभी शिक्षण-संस्थाओं में एकतन्त्रवादी सत्ता-व्यवस्था का बोलबाला था, परन्तु बौद्धकाल में प्राय: सभी शिक्षण संस्थाओं में जनतान्त्रिक सत्ता-व्यवस्था को प्राथमिकता दी जाती थी।

 

6879.

मध्यकाल में किन संस्थाओं में प्राथमिक शिक्षा प्रदान की जाती थी ?

Answer»

मध्यकाल में प्राथमिक शिक्षा मकतबों में प्रदान की जाती थी।

6880.

प्रव्रज्या संस्कार का सम्बन्ध है(क) वैदिक शिक्षा से(ख) बौद्ध शिक्षा से.(ग) मुस्लिम शिक्षा से(घ) ब्रिटिश शिक्षा से

Answer»

सही विकल्प है (ख) बौद्ध शिक्षा से

6881.

बौद्ध काल में प्राथमिक शिक्षा के प्रमुख केन्द्र थे(क) देव मन्दिर(ख) बौद्ध मठ(ग) बौद्ध विहार(घ) बौद्ध संघाराम

Answer»

सही विकल्प है (ख)बौद्ध मठ

6882.

विक्रमशिला विश्वविद्यालेस की स्थापना हुई थी(क) बौद्ध काल में(ख) वैदिक काल में(ग) मुस्लिम काल में(घ) ब्रिटिश काल में

Answer»

सही विकल्प है (क) बौद्ध काल में

6883.

बौद्ध काल में ‘महोपाध्याय किसे पढाते थे?(क) सामनेर(ख) गृहस्थ(ग) शिक्षक(घ) धम्म

Answer»

सही विकल्प है (घ) धम्म

6884.

4 वर्ष, 4 माह, 4 दिन की आयु पर कौन-सा शिक्षा संस्कार होता है?(क) उपनयन(ख) प्रव्रज्या(ग) बिस्मिल्लाह(घ) उपसम्पदा

Answer»

सही विकल्प है (ग) बिस्मिल्लाह

6885.

मध्यकालीन शिक्षा किस धर्म से प्रभावित थी ?(क) इस्लाम धर्म(ख) पारसी धर्म(ग) यहूदी धर्म(घ) अरबी धर्म

Answer»

सही विकल्प है (क) इस्लाम धर्म

6886.

मुस्लिम काल में बिस्मिल्लाह रस्म अदा की जाती थी जब बालक हो जाता था(क) 3 वर्ष, 3 माह, 3 दिने का(ख) 4 वर्ष, 4 माहे, 4 दिन का(ग) 5 वर्ष, 5 माह, 5 दिन का(घ) 6 वर्ष, 6 माह, 6 दिन का

Answer»

सही विकल्प है (ख) 4 वर्ष, 4 माह, 4 दिन का

6887.

मध्यकालीन शिक्षा का माध्यम कौन-सी भाषा थी ?(क) तुर्की(ख) अरबी(ग) फ़ारसी(घ) उर्दू

Answer»

सही विकल्प है (ग) फारसी

6888.

निम्नलिखित कथन सत्य हैं या असत्य-⦁    मध्यकाल में शिक्षा का नितान्तै अभाव था।⦁    मध्यकाल में शिक्षा का आधार इस्लाम धर्म था।⦁    मध्यकाल में स्त्री-शिक्षा के लिए अलग से व्यापक व्यवस्था थी।⦁    मध्यकालीन शिक्षा का ऍकृ मुख्य उद्देश्य, लौकिक प्रगति एवं सुख-समृद्धि प्राप्त करना भी था।⦁    मध्यकालीन शिक्षा का मुख्य माध्यम फारसी भाषा ही थी।

Answer»

⦁    असत्य,
⦁    सत्य,
⦁    असत्य,
⦁    सत्य,
⦁    सत्य

6889.

भारतीय शैक्षिक विकास के सन्दर्भ में प्राचीन तथा मध्यकालीन शैक्षिक व्यवस्था में अन्तर स्पष्ट कीजिए। प्राचीनकाल और मध्यकाल की शैक्षिक विशेषताओं का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत कीजिए।

Answer»

भारतीय शैक्षिक विकास के इतिहास पर दृष्टिपात करते हुए प्राचीन तथा मध्यकालीन शैक्षिक व्यवस्था के निम्नलिखित अन्तरों का उल्लेख किया जा सकता है

⦁    प्राचीनकालीन भारतीय शिक्षा-व्यवस्था का आधार हिन्दू वैदिक) धार्मिक एवं दार्शनिक सिद्धान्त ही थे। इससे भिन्न मध्यकालीन शिक्षा का विकास शुद्ध रूप से इस्लाम धर्म के सिद्धान्तों के आधार पर हुआ था।
⦁    प्राचीनकालीन भारतीय शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ज्ञान की प्राप्ति तथा आध्यात्मिक विकासे स्वीकार किया गया था। इससे भिन्न मध्यकालीन शिक्षा के अन्तर्गत भले ही ज्ञान प्राप्ति को समुचित महत्त्व प्रदान किया गया था परन्तु इस काल में शिक्षा का एक मुख्य उद्देश्य लौकिक जीवन को अधिक-से-अधिक सम्पन्न, समृद्ध एवं सुखी बनाना भी था।
⦁    प्राचीन वैदिक परम्परा के अनुसार बालक की शिक्षा को आरम्भ करते समय उपनयन नामक संस्कार सम्पन्न किया जाता था। इससे भिन्न मध्यकाल में शिक्षा-आरम्भ के अवसर पर ‘बिस्मिल्लाह’ या ‘बिस्मिल्लाहखानी रस्म को सम्पन्न किया जाता था।
⦁    प्राचीनकाल अथवा वैदिककाल में गुरुकुल ही मुख्य शिक्षण संस्थाएँ थी। इससे भिन्न मध्यकाल की मुख्य शिक्षण-संस्थाएँ मकतब तथा मदरसे थीं।
⦁    प्राचीन भारतीय शैक्षिक मान्यताओं के अनुसार शिक्षा ग्रहण करने के काल में छात्रों के लिए सादा एवं सरल जीवन व्यतीत करना अनिवार्य था। उन्हें सामान्य रूप से जीवन की समस्त सुख-सुविधाओं से दूर रहना पड़ता था। इससे भिन्न मध्यकालीन प्रचलन के अनुसार मदरसों में शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों को जीवन की समस्त सुख-सुविधाएँ उपलब्ध हुआ करती थीं जिससे वे ऐश एवं आराम का जीवन व्यतीत करते थे।
⦁    प्राचीनकालीन भारतीय शिक्षा शुद्ध रूप से हिन्दू धर्म-संस्कृति की समर्थक एवं पोषक थी। इनसे भिन्न मध्यकालीन शिक्षा की घनिष्ठ सम्बन्ध इस्लामिक धर्म-संस्कृति से था।
⦁    प्राचीन भारतीय शिक्षा (वैदिक शिक्षा) का माध्यम संस्कृत भाषा थी, बौद्ध काल में यह स्थान पालि भाषा ने ले लिया था परन्तु मध्यकाल में फारसी भाषा को ही शिक्षा का मुख्य माध्यम बना लिया गया था।
⦁    प्राचीनकालीन शैक्षिक व्यवस्था में कठोर एवं दण्ड पर आधारित अनुशासन का कोई प्रावधान नहीं था परन्तु मध्यकालीन शैक्षिक व्यवस्था के अन्तर्गत अनुशासन बनाए रखने के लिए शारीरिक दण्ड का भी प्रावधान था।

6890.

मध्यकालीन शिक्षा का आरम्भ किस संस्कार से होता है ?(क) प्रव्रज्या(ख) उपसम्पदा(ग) उपर्नयन(घ) बिस्मिल्लाह

Answer»

सही विकल्प है (घ) बिस्मिल्लाह

6891.

मुस्लिम काल में प्राथमिक शिक्षा प्रारम्भ करने की क्या आयु थी?

Answer»

मुस्लिम काल (मध्य काल) में बालक की प्राथमिक शिक्षा प्रारम्भ करने की आयु 4 वर्ष, 4 माह, 4 दिन थी।

6892.

मध्यकाल में व्यावसायिक शिक्षा के कौन-कौन-से रूप प्रचलित थे ?

Answer»

मध्यकाल में व्यावसायिक शिक्षा के प्रचलित मुख्य रूप थे—

⦁    हस्तकलाओं की शिक्षा,
⦁    चिकित्साशास्त्र की शिक्षा,
⦁    सैन्य शिक्षा तथा
⦁    विभिन्न ललित कलाओं की शिक्षा।

 

6893.

मध्यकालीन शिक्षा-व्यवस्था में उच्च शिक्षा के छात्रों को कौन-कौन-सी मुख्य उपाधियाँ दी जाती थीं?

Answer»

मध्यकाल में उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों को कामिल फाजिल तथा आलिम नामक उपाधियाँ दी जाती थीं।

6894.

भारत में मध्यकाल में शिक्षा के मुख्य केन्द्र कौन-कौन-से थे ? या मुगलकालीन शिक्षा के प्रमुख चार केन्द्रों के नाम लिखिए।

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भारत में मध्यकाल में शिक्षा के मुख्य केन्द्र-आगरा, दिल्ली, लाहौर, अजमेर, मुल्तान, मालवा, गुजरात तथा जौनपुर में थे।

6895.

मठ व्यवस्था महत्त्वपूर्ण तत्त्व था(क) वैदिक शिक्षा का(ख) इस्लाम शिक्षा को(ग) जैन शिक्षा का(घ) बौद्ध शिक्षा का

Answer»

सही विकल्प है (घ) बौद्ध शिक्षा का

6896.

मध्यकालीन भारतीय शिक्षा-प्रणाली किस धर्म पर आधारित थी?

Answer»

मध्यकालीन भारतीय शिक्षा-प्रणाली इस्लाम धर्म पर आधारित थी।

6897.

मध्यकालीन शिक्षा के केन्द्रों के बारे में लिखिए। मध्यकालीन शिक्षण संस्थाओं के रूप में मकतब तथा ‘मदरसों का सामान्य परिचय दीजिए।

Answer»

मकतबों में मौखिक शिक्षण विधि के प्रयोग से बालकों को शिक्षा दी जाती थी। बालकों को कलमा एवं कुरान की आयतें रटनी पड़ती थीं। कक्षा के सभी छात्र एक साथ पहाड़े बोलकर कण्ठस्थ’ करते थे। प्रारम्भ में सरकण्डे की कलम से तख्ती पर लिखना सिखाया जाता था और बाद में कलम से कागज पर लिखना सिखाया जाता था। मध्य युग में बालकों को उच्च शिक्षा मदरसों में दी जाती थी। मदरसे भी दो प्रकार के होते थे—प्रथम, वे जहाँ धार्मिक, साहित्यिक तथा सामाजिक शिक्षा दी जाती थी और द्वितीय, वे जहाँ चिकित्साशास्त्र और अन्यान्य प्रकार की शिक्षा दी जाती थी। मदरसों में छात्रों के रहने की भी व्यवस्था होती थी और अन्य आवश्यक सुविधाएँ भी।

6898.

मध्यकालीन शिक्षा के सन्दर्भ में मदरसा तथा उच्च शिक्षा का सामान्य परिचय प्रस्तुत कीजिए।

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मदरसा तथा उच्च शिक्षा का सामान्य परिचय निम्न प्रकार है|

1. मदरसा का अर्थ-मध्य युग में बालकों को उच्च शिक्षा मदरसों में दी जाती थी। मदरसा शब्द का निर्माण अरबी भाषा में ‘दरस शब्द से हुआ है, जिसका अर्थ है ‘भाषण देना। अत: मदरसा वह स्थान था, जहाँ भाषण दिए जाते हैं। मदरसे भी दो प्रकार के होते थे—प्रथम, वे जहाँ धार्मिक, साहित्यिक तथा सामाजिक शिक्षा दी जाती थी और द्वितीय, वे जहाँ चिकित्साशास्त्र और अन्यान्य प्रकार की शिक्षा दी जाती थी। मदरसों में छात्रों के रहने की भी व्यवस्था होती थी तथा वहाँ उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों को पर्याप्त सुविधाएँ उपलब्ध होती थीं। मदरसों का शैक्षिक वातावरण सराहनीय होता था क्योंकि शिक्षक-शिष्य सम्बन्ध घनिष्ठ तथा मधुर होते थे।
2. पाठ्यक्रम-मदरसों के पाठ्यक्रम को दो भागों में बाँटा जा सकता है
⦁    लौकिक शिक्षा-इसके अन्तर्गत अरबी साहित्य, व्याकरण एवं गद्य, इतिहास, गणित, दर्शनशास्त्र, नीतिशास्त्र, यूनानी शिक्षा, ज्योतिष, कानून आदि विषय सम्मिलित थे। |
⦁    धार्मिक शिक्षा-इसके अन्तर्गत कुरान, मुहम्मद साहब की परम्परा, इस्लामी कानून (शरीयत) तथा इस्लामी इतिहास की शिक्षा दी जाती थी।
3. शिक्षण विधि-मदरसों में भाषण की प्रधानता थी। छात्रों को स्वाध्याय की ओर प्रेरित करके ग्रन्थावलोकन का अभ्यास कराया जाता था। विद्यार्थियों को प्रयोगात्मक और सैद्धान्तिक दोनों प्रकार की शिक्षा दी जाती थी।

6899.

मध्यकालीन भारतीय शिक्षा के मुख्य दोष बताइए।

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मध्यकालीन शिक्षा के दोष

मध्यकालीन शिक्षा में निम्नलिखित दोष थे-

1. सांसारिकता की प्रधानत-मध्यकाल में विलासिता, मध्यकालीन शिक्षा के दोष ऐश्वर्य और सुख-सुविधाओं पर अधिक बल दिया गया था, सांसारिकता की प्रधानता। इसलिए विद्यार्थियों का ध्यान भी आध्यात्मिकता से हटकर सांसारिक भोग-विलास में लग जाता था।
2. धार्मिक कट्टरता-मध्यकाल में शिक्षा के द्वारा इस्लाम धर्म जनसाधारण की शिक्षा का अभाव के प्रचार पर ही बल दिया जाता था, इसलिए व्यक्तियों में धार्मिक अमनोवैज्ञानिकता कट्टरता फैलने लगी। इससे समाज में साम्प्रदायिक सौहार्द पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
3. शिक्षा-केन्द्रों का अस्थायित्व-विद्यालयों की स्थापना लेखन व पाठन में समन्वय का और संचालन का उत्तरदायित्व धनी व्यक्तियों के ऊपर निर्भर था। अभाव इस कारण धनी व्यक्तियों की मृत्यु के साथ ही प्राय: विद्यालय भी बन्द हो जाता था। इस कारण बालकों की शिक्षा व्यवस्थित रूप से नहीं चल पाती थी।
4. जनसाधारण की शिक्षा का अभाव-मध्य युग में धनी व्यक्ति ही विद्यालयों की स्थापना करते थे। इसलिए पर्याप्त संख्या में विद्यालयों का अभाव था। इस कारण जनसाधारण के बालकों को शिक्षा प्राप्त करने की सुविधा नहीं मिलती थी।
5. अमनोवैज्ञानिकता-इस युग में बालकों को मनोवैज्ञानिक ढंग से शिक्षा नहीं दी जाती थी, क्योंकि शिक्षा देते समय बालकों की व्यक्तिगत विशेषताओं को ध्यान में नहीं रखा जाता था।
6. नारी शिक्षा की उपेक्षा-मध्य युग में स्त्री की शिक्षा पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता था, जिससे समाज का एक महत्त्वपूर्ण वर्ग एवं भाग अविकसित रह जाता था। |
7. शारीरिक दण्ड की प्रधानता-इस युग में शिक्षक छात्रों को बड़ी निर्दयता के साथ शारीरिक दण्ड देते थे, जिससे उनकी रुचि अध्ययन की ओर नहीं हो पाती थी।
8. लेखन व पाठन में समन्वय का अभाव-इस युग में पहले बालकों को पढ़ना सिखाया जाता था और उसके पश्चात् उन्हें लिखने की शिक्षा दी जाती थी। इस प्रकार लेखन और पाठन में समन्वय का अभाव था।
9. अरबी-फारसी की प्रधानता-मध्यकाल में अरबी और फारसी भाषा को अधिक महत्त्व दिया जाता था और हिन्दी एवं अन्य क्षेत्रीय भाषाओं की उपेक्षा की गई थी।
10. दोषपूर्ण पाठ्यक्रम-पाठ्यक्रम में धार्मिकता की प्रधानता और वैधानिकता का अभाव था। इस कारण असन्तुलित पाठ्यक्रम द्वारा बालकों को शिक्षा दी जाती थी। निष्कर्ष–उपर्युक्त विवेचन से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि मध्यकालीन शिक्षा सामाजिक जीवन की वास्तविकताओं के अनुकूल नहीं थी। धर्म प्रधान शिक्षा जीवन के प्रत्येक क्षेत्र का समुचित विकास करने में सक्षम नहीं थी। डॉ० युसूफ हुसैन ने ठीक ही लिखा है-“मध्यकालीन शिक्षा प्रणाली का मुख्य दोष यह था कि उसमें छात्रों के परिशुद्ध निरीक्षण तथा व्यावहारिक निर्णय प्रदान करने की क्षमता नहीं थी। यह बड़ी असभ्य, निर्जीव और पुस्तकीय थी।”

6900.

मध्यकालीन शिक्षा के मुख्य गुणों का सामान्य विवरण प्रस्तुत कीजिए।

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मध्यकालीन शिक्षा के गुण

मध्यकालीन शिक्षा में निम्नांकित गुण थे

1. अनिवार्य शिक्षा-इस्लाम धर्म के अनुसार शिक्षा ईश्वर की प्राप्ति में सहायता करती थी, इसलिए शिक्षा को अनिवार्य स्वीकार किया गया था। बालिकाओं के लिए शिक्षा अनिवार्य नहीं थी।
2. धार्मिक एवं लौकिक शिक्षा को समेस्वय-इस युग की शिक्षा की प्रमुख विशेषता धार्मिक और लौकिक शिक्षा में समन्वय की स्थापना थी। शिक्षा के द्वारा बालकों को धार्मिक आचरण के लिए प्रेरित किया जाता था। शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य इस्लाम धर्म का प्रचार करना था। मुसलमान धर्म को केवल स्वर्ग-प्राप्ति का साधन नहीं मानते थे, लेकिन हिन्दू इसे सांसारिक सुख तथा समृद्धि-प्राप्ति का साधन मानते थे। इसीलिए धार्मिक भावना के साथ-साथ विद्यार्थियों के रहन-सहन और जीवन में भौतिक सुख-सुविधाओं को भी ध्यान में रखा जाता था। इस प्रकार ईश्वर की प्राप्ति का लक्ष्य रखते हुए भी विद्यार्थियों में सांसारिक भावना प्रधान रहती थी।
3. निःशुल्क शिक्षा-मध्यकाल में छात्रों से कोई शुल्क नहीं लिया जाता था, वरन् पूर्णतया नि:शुल्क शिक्षा की व्यवस्था थी।
4. शिक्षा संस्थाओं का उपयुक्त वातावरण- शिक्षा | मध्यकालीन शिक्षा के गुण संस्थाओं में छात्रों को अध्ययन के लिए उपयुक्त वातावरण मिलता अनिवार्य शिक्षा था। उन्हें शान्त, कोलाहलहीन व मनोरम स्थानों में बनवाया जाता था। धार्मिक एवं लौकिक शिक्षा का
5. व्यापक पापक्रम-मध्यकाल में बहुत विस्तृत व व्यापक समन्वय पाठ्यक्रम लागू किया गया था। छात्रों को साहित्य, भाषा, व्याकरण, निःशुल्क शिक्षा गणित, ज्योतिष, इतिहास, भूगोल, कानून, दर्शन, तर्कशास्त्र, कृषि, शिक्षा संस्थाओं का उपयुक्त चिकित्सा, अर्थशास्त्र इत्यादि विषय पढ़ाए जाते थे। वातावरण
6. व्यावहारिक शिक्षा-मध्यकाल में व्यावहारिक शिक्षा पर में व्यापक पाठ्यक्रम बहुत अधिक बल दिया गया था। बालकों को ऐसे विषयों का ज्ञान व्यावहारिक शिक्षा दिया जाता था, जो जीवन में उपयोगी होते थे।
पुरस्कार और छात्रवृत्तियों ।
7. पुरस्कार और छात्रवृत्तियाँ-इस युग में छात्रों के लिए हुचरित्र-निर्माण पुरस्कार और छात्रवृत्तियों की व्यवस्था की जाती थी, जिससे छात्र अविगत सके। पढ़ने के लिए अधिक-से-अधिक प्रोत्साहित हो सकें। सरस साहित्य को विकास
8. चरित्र-निर्माण-बालकों को ऐसी शिक्षा दी जाती थी, के इतिहास रचना : जिससे बालकों में नैतिकता का विकास होता था और उनका चरित्र आदर्श बनता था।
9. व्यक्तिगत सम्पर्क- मध्यकाल में शिक्षक और विद्यार्थियों के बीच बहुत मधुर सम्बन्ध रहते थे, क्योंकि एक ही छात्रावास में शिक्षक और विद्यार्थी दोनों रहा करते थे।
10.सरस साहित्य का विकास-मध्यकाल में श्रृंगार रस को प्रधानता दी जाती थी। इस काल में इसी कारण सरस साहित्य और कलाओं को अत्यधिक प्रोत्साहन मिला।
11. इतिहास रचना-मुस्लिम शासकों में अपने समय का इतिहास स्वयं लिखने की प्रवृत्ति थी। अतः तत्कालीन बातों की जानकारी उनके विवरण से प्राप्त होती है।
12. विशिष्ट शिक्षाओं को प्रोत्साहन-मध्यकाल में सैनिक शिक्षा, संगीत, वास्तुकला, शिल्पकला जैसी विशिष्ट शिक्षाओं को विशेष प्रोत्साहन प्राप्त हुआ।