InterviewSolution
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बाल्यावस्था में दी जाने वाली शिक्षा के स्वरूप को स्पष्ट कीजिए। |
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Answer» बाल्यावस्था की शिक्षा (Childhood of Education) बाल्यावस्था की किसी भी रूप में उपेक्षा नहीं की जा सकती, क्योंकि यह वह अवस्था है जब कि आधारभूत दृष्टिकोणों, मूल्यों और आदर्शों का पर्याप्त सीमा तक निर्माण हो जाता है। अत: बाल्यावस्था में बालक की शिक्षा का स्वरूप निर्धारित करते समय निम्नलिखित बातों पर विशेष रूप से ध्यान देना आवश्यक है 1. अवस्थानुकूल शिक्षा- प्रत्येक बालक की शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक तथा अन्य आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर ही शिक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए। |
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किशोरावस्था के विकास के सिद्धान्त हैं(क) तीन(ख) दो(ग) चार(घ) पाँच |
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Answer» सही विकल्प है (ख) दो |
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शैशवावस्था में दी जाने वाली शिक्षा का सामान्य परिचय दीजिए।याशैशवावस्था में शिक्षा का स्वरूप क्या होना चाहिए? समझाइए। |
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Answer» शैशवावस्था की शिक्षा (Infancy of Education) शैशवावस्था विकास की प्रारम्भिक अवस्था है, इसलिए इस काल को शिक्षा का आधार भी कहें तो अनुचित नहीं होगा। फ्रॉयड के अनुसार, “मनुष्य चार-पाँच वर्षों में ही जो कुछ बनना होता है, बन जाता है। इसी प्रकार एडलर ने कहा है, “शैशवावस्था सम्पूर्ण जीवन का क्रम निर्धारित कर देती हैं।” इस अवस्था की शिक्षा में हमें निम्नांकित बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए| 1. शारीरिक विकास का प्रयास- माता-पिता एवं शिक्षक सभी को शिशु को स्वस्थ बनाने का विशेष प्रयत्न करना चाहिए। शिशु को सन्तुलित भोजन, उपयुक्त आवास एवं स्वस्थ क्रियाओं के लिए अवसर देना चाहिए। |
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पुस्तकालय के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।याशिक्षा के अभिकरण के रूप में पुस्तकालय के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।यापुस्तकालय की उपयोगिता बताइए। |
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Answer» पुस्तकालय शिक्षा का एक औपचारिक अभिकरण है। पुस्तकालय में अनेक प्रकार की पुस्तकों का संकलन होता है। पुस्तकें ज्ञान का भण्डार होती हैं तथा असंख्य सूचनाओं का अधिकाधिक स्रोत भी। ज्ञात-प्राप्ति का इच्छुक कोई भी बालक या व्यक्ति पुस्तकालयों से अत्यधिक लाभ प्राप्त कर सकता है। निर्धन तथा ज्ञान-प्राप्ति के इच्छुक बालकों के लिए तो पुस्तकालय वरदानस्वरूप हैं। पुस्तकालय के वातावरण में गहन अध्ययन करना सरल एवं सुविधाजनक होता है। |
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शिक्षा के निष्क्रिय साधनों या अभिकरणों से क्या आशय है ? |
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Answer» शिक्षा के निष्क्रिय साधन या अभिकरण (Passive Agencies of Education) शिक्षा के वे अभिकरण हैं, जिनके अन्तर्गत शिक्षा की प्रक्रिया से सम्बद्ध दो पक्षों में से केवल एक पक्ष ही प्रभावित होता है। इस व्यवस्था के अन्तर्गत दूसरा पक्ष सामान्य रूप से निष्क्रिय ही रहता है। शिक्षा के निष्क्रिय अभिकरण इस अर्थ में निष्क्रिय हैं। वे दूसरों को तो प्रभावित करते हैं, किन्तु स्वयं दूसरों से प्रभावित नहीं होते। यह भी कहा जा सकता है कि इस व्यवस्था के अन्तर्गत शिक्षा ग्रहण करने वाला तो कुछ-न-कुछ अवश्य सीखता एवं ज्ञान अर्जित करता है, परन्तु शिक्षा प्रदान करने वाला पक्ष न तो कुछ सीखता है और न ही ज्ञान अर्जित करता है। इस वर्ग के मुख्य अभिकरण हैं—रेडियो, चलचित्र, दूरदर्शन तथा पत्र-पत्रिकाएँ आदि। |
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शिक्षा के सक्रिय साधनों या अभिकरणों से क्या आशय है ? |
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Answer» शिक्षा के सक्रिय साधनं या अभिकरण (Active Agencies of Education) शिक्षा के वे अभिकरण हैं, जिनके अन्तर्गत शिक्षा पाने वाले तथा शिक्षा देने वाले दोनों ही के व्यक्तित्व एक-दूसरे से प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होते हैं। इस व्यवस्था के अन्तर्गत दोनों ही एक-दूसरे पर क्रिया और प्रतिक्रिया करते हैं तथा इस भाँति दोनों के आचरण में रूपान्तरण होता है। इस वर्ग के मुख्य अभिकरण हैं-विद्यालय, परिवार, समाज, राज्य, धर्म तथा समाजकल्याण केन्द्र आदि। |
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जन-संचार माध्यम शिक्षा के कौन-से अभिकरण हैं?याजन-संचार माध्यमों की क्या उपयोगिता है? |
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Answer» जन-संचार के माध्यम शिक्षा के अनौपचारिक अंभिकरण (Informal Agencies of Education) हैं। जन-संचार के मुख्य माध्यम हैं–प्रेस, आकाशवाणी, दूरदर्शन, चलचित्र, पत्र-पत्रिकाएँ आदि। आजकल इण्टरनेट भी इस क्षेत्र में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान प्रदान कर रहा है। शिक्षा के इन अभिकरणों से शिक्षा प्राप्त करने के लिए नियमित रूप से न तो प्रवेश लेना पड़ता है और न ही निर्धारित नियमों का पालन करना पड़ता है। ये आजीवन शिक्षा प्रदान करने वाले अभिकरण हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि जन-संचार के माध्यम शिक्षा के अनौपचारिक अभिकरण हैं। वर्तमान परिस्थितियों में जन-संचार के माध्यमों को व्यापक शिक्षा के दृष्टिकोण से अत्यधिक उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योकि इनके माध्यम से कोई भी व्यक्ति कभी भी ज्ञान अर्जित कर सकता है। ये शिक्षा के सुलभ एवं सुविधापूर्ण अभिकरण हैं। इनमें अधिक समय तथा धन भी खर्च नहीं करना पड़ता। |
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शिक्षा प्रदान करने वाले तथा शिक्षा ग्रहण करने वाले पक्षों के आपसी सम्बन्धों के आधार पर शिक्षा के अभिकरणों के मुख्य रूप से कौन-कौन से प्रकार निर्धारित किए गए हैं ? |
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Answer» ⦁ शिक्षा के सक्रिय अभिकरण तथा ⦁ शिक्षा के निष्क्रिय अभिकरण। |
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आपके विचार के अनुसार शिक्षा के औपचारिक तथा अनौपचारिक साधनों या अभिकरणों ” में से कौन-से साधन अधिक महत्त्वपूर्ण हैं ? |
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Answer» शिक्षा के मुख्य रूप से दो प्रकार के अभिकरण माने गए हैं जिन्हें क्रमश: शिक्षा के औपचारिक तथा अनौपचारिक अभिकरण कहा जाता है। शिक्षा के ये दोनों ही अभिकरण अपने-अपने क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण हैं। औपचारिक शिक्षा की आवश्यकता समाज की जटिलता के साथ बढ़ती जाती है। आधुनिक युग में ज्ञान, विज्ञान एवं तकनीकी कुशलता में आशातीत वृद्धि हुई है, जिसके परिणामस्वरूप औपचारिक शिक्षा का काफी विस्तार हुआ है, किन्तु इस विस्तार के साथ ही प्रत्यक्ष सम्पर्क और विद्यालयी अनुभवों में अवांछनीय अन्तर होने का डर भी है। ऐसा इस कारण है, क्योंकि शिक्षा के दोनों साधनों के बीच उचित सन्तुलन नहीं रखी जा सका। किसी एक साधन को अनावश्यक रूप से महत्त्व दे दिया गया, जब कि दूसरे की उपेक्षा कर दी गई। वास्तव में, औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों ही साधनों को बराबर मूल्य एवं महत्त्व प्रदान किया जाना चाहिए। |
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शैक्षिक योग्यता का प्रमाण-पत्र शिक्षा के किस प्रकार के अभिकरणों द्वारा प्रदान किया जाता हैं ? |
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Answer» शैक्षिक योग्यता का प्रमाण-पत्र शिक्षा के औपचारिक अभिकरणों द्वारा प्रदान किया जाता है। |
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शिक्षा के उन अभिकरणों को क्या कहा जाता है जिनमें शिक्षा ग्रहण करने वाले तथा शिक्षा प्रदान करने वाले दोनों पक्ष एक-दूसरे से प्रभावित होते हैं ? |
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Answer» शिक्षा के इस प्रकार के अभिकरणों को शिक्षा के सक्रिय अभिकरण कहा जाता है। |
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मकतब एवं मदरसे तथा गुरुकुल शिक्षा के किस प्रकार के अभिकरण हैं ? |
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Answer» मकतब एवं मदरसे तथा गुरुकुल शिक्षा के औपचारिक अभिकरण हैं। |
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निम्नलिखित कथन सत्य हैं या असत्य⦁ विद्यालय ही शिक्षा का मुख्यतम औपचारिक अभिकरण है।⦁ शिक्षा के अनौपचारिक अभिकरणों का न तो कोई महत्त्व है और न ही कोई आवश्यकता।⦁ व्यावहारिक जीवन में कुशलता अर्जित करने में शिक्षा के अनौपचारिक अभिकरण सहायक होते हैं।⦁ संग्रहालय शिक्षा के औपचारिक अभिकरण हैं।⦁ राज्य शिक्षा का अभिकरण नहीं है।⦁ रेडियो शिक्षा का निष्क्रिय साधन है। |
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Answer» ⦁ सत्य, ⦁ असत्य, ⦁ सत्य, ⦁ सत्य, ⦁ असत्य, ⦁ सत्य। |
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शिक्षा की किसी भी प्रकार की प्रक्रिया के परिचालन में सहायक कारकों को माना जाता है(क) शिक्षा के अंग।(ख) शिक्षा के अभिकरण या साधन(ग) शिक्षा को प्रभावित करने वाले कारक(घ) विद्यालय |
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Answer» सही विकल्प है (ख) शिक्षा के अभिकरण या साधन |
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पूर्व-निर्धारित योजना, उद्देश्य एवं व्यवस्था के अनुसार शिक्षा प्रदान करने वाले शिक्षा के अभिकरणों को कहते हैं(क) महत्त्वपूर्ण अभिकरण(ख) औपचारिक अभिकरण(ग) अनौपचारिक अभिकरण(घ) निष्क्रिय अभिकरण |
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Answer» सही विकल्प है (ख) औपचारिक अभिकरण |
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पुस्तकालय शिक्षा का अभिकरण है(क) औपचारिक(ख) अनौपचारिक(ग) औपचारिकेत्तर(घ) सक्रिय |
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Answer» सही विकल्प है (क) औपचारिक |
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‘समुदाय’ शिक्षा के किस अभिकरण का उदाहरण है ? |
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Answer» ‘समुदाय’ शिक्षा के अनौपचारिक अभिकरण का उदाहरण है। |
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शिक्षा के अनौपचारिक अभिकरणों की विशेषता नहीं है(क) कोई निश्चित एवं पूर्व-र्निर्धारित पाठ्यक्रम नहीं होता।(ख) योग्यता का प्रमाण-पत्र दिया जाता है।(ग) कोई निश्चित स्थान नहीं होता।(घ) किसी-न-किसी रूप में आजीवन सक्रिय रहते हैं। |
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Answer» (ख) योग्यता को प्रमाण-पत्र दिया जाता है |
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“अध्यापक ही केवल शिक्षक नहीं होता, केवल स्कूल या कॉलेज ही शिक्षण संस्थाएँ नहीं हैं, वरन् ऐसी कई अन्य संस्थाएँ हैं जिनका प्रभाव शैक्षिक होता है।” यह कथन किसको है?(क) स्वामी विवेकानन्द का(ख) रेमॉण्ट का(ग) फ्रॉबेल का(घ) बी० डी० भाटिया का |
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Answer» सही विकल्प है (ख) रेमॉण्ट का |
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शिक्षा के औपचारिक अभिकरणों की विशेषता है(क) निश्चित नियमावली होती है।(ख) निर्धारित पाठ्यक्रम एवं परीक्षा का प्रावधान है।(ग) योग्यता का प्रमाण-पत्र दिया जाता है।(घ) उपर्युक्त सभी विशेषताएँ |
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Answer» सही विकल्प है (घ) उपर्युक्त सभी विशेषताएँ |
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गृह या परिवार शिक्षा के किस अभिकरण के उदाहरण हैं ?(क) औपचारिक अभिकरण(ख) अनौपचारिक अभिकरण(ग) निरौपचारिक अभिकरण(घ) निष्क्रिय अभिकरण |
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Answer» सही विकल्प है (ख) अनौपचारिक अभिकरण |
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गृह-शिक्षा की मुख्य विधियाँ कौन-कौन सी हैं ? |
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Answer» घर बच्चों की शिक्षा की महत्त्वपूर्ण संस्था है। घर एवं परिवार द्वारा बच्चों की शिक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई जाती है। इस स्थिति में गृह-शिक्षा के अन्तर्गत विभिन्न विधियों को अपनाया जाता है। गृह-शिक्षा के लिए अपनाई जाने वाली मुख्य विधियाँ अग्रलिखित हैं ⦁ खेल-विधि। ⦁ कहानी-विधि। ⦁ अभ्यास-विधि। ⦁ साहचर्य-विधि। ⦁ उत्तरदायित्व-विधि। ⦁ इन्द्रिय-प्रशिक्षण-विधि। ⦁ निर्देश-विधि। ⦁ करके सीखने की विधि। ⦁ भाषा द्वारा शिक्षा। ⦁ संगीत द्वारा शिक्षा। |
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निम्नलिखित में कौन-सा शिक्षा का निष्क्रिय अभिकरण है?(क) गिरजाघर(ख) क्लब(ग) विद्यालय(घ) टेलीविजन |
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Answer» सही विकल्प है (घ) टेलीविजन |
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स्पष्ट कीजिए कि बच्चों में मानवीय मूल्यों के विकास में परिवार का सर्वाधिक योगदान होता है। |
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Answer» बच्चों में मानवीय मूल्यों की स्थापना में परिवार का सर्वाधिक योगदान होता है। बच्चा अपने पिता से न्याय, माता से नि:स्वार्थ प्रेम तथा भाई-बहनों से भ्रातृत्व-भाव की शिक्षा लेता है। जब बच्चा बड़ा होकर समझदार बनता है तो वह अपने परिवारजनों को परस्पर सहयोग देते हुए देखता है। वह इन सभी से सहयोग की शिक्षा ग्रहण करता है। बच्चा अपने घर में ही क्षमा, सच्चाई, सहानुभूति, उदारता तथा परिश्रम के महत्त्व को समझता है। इसके अतिरिक्त बच्चे अपने परिवार से ही परोपकार के मूल्य को सीखते हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि बच्चों के मानवीय मूल्यों का सर्वाधिक विकास परिवार के द्वारा ही होता है। |
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बच्चों को शिक्षित करने के दृष्टिकोण से उनके प्रति माता-पिता का व्यवहार कैसा होना चाहिए? |
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Answer» माता-पिता का एक मुख्य दायित्व है:-बच्चों को उचित ढंग से शिक्षित करना तथा शिक्षा की ओर उन्मुख करना। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए माता-पिता को बच्चों के प्रति सदैव सन्तुलित एवं निष्पक्ष व्यवहार करना चाहिए। माता-पिता को अपने बच्चों की रुचि, योग्यता एवं क्षमता आदि को जानने का प्रयास करना चाहिए तथा उन्हीं के अनुसार बच्चों को शिक्षित करने का प्रयास करना चाहिए। साथ ही बच्चों की क्षमताओं एवं रुचियों को उचित दिशा में विकसित करने के भी प्रयास करने चाहिए। परिवार का कोई बच्चा यदि दुर्भाग्यवश किसी क्षेत्र में पिछड़ा हुआ हो तो उस बालक के प्रति विशेष ध्यान देना चाहिए। उसकी अवहेलना नहीं की जानी चाहिए तथा उनके प्रति सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करना चाहिए। माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों को सदैव आवश्यक प्रोत्साहन प्रदान करते रहे। इसके अतिरिक्त यह भी आवश्यक है। कि बच्चों को समुचित स्वतन्त्रता प्रदान करके अनुशासन में रहना सिखाया जाए। |
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स्पष्ट कीजिए कि परिवार ही बालक की शिक्षा की प्राचीनतम संस्था है। |
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Answer» परिवार बालक की शिक्षा की प्राचीनतम संस्था है। आदिम काल में जब सभ्यता का कुछ भी विकास नहीं हुआ था तब भी बालक को प्रशिक्षित करने का कार्य परिवार द्वारा ही किया जाता था। बच्चों को शिकार करने, कन्द-मूल खोजने, शत्रु से मुकाबला करने के दाँव-पेंच परिवार द्वारा ही सिखाए जाते थे। वर्तमान विद्यालयों के विकास से पूर्व भी हर प्रकार की शिक्षा की व्यवस्था परिवार द्वारा ही की जाती थी। स्पष्ट है कि परिवार ही बालक की शिक्षा की प्राचीनतम संस्था है। |
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घर को शिक्षा का पभावशाली अभिकरण कैसे बनाया जा सकता है? |
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Answer» निःसन्देह घर-परिवार बालक की शिक्षा का एक अत्यधिक महत्त्वपूर्ण अभिकरण है। शिक्षा के इस अभिकरण को और अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए कुछ बातों को ध्यान में रखना अति आवश्यक है। सर्वप्रथम घर-परिवार को चाहिए कि वह बालक के शारीरिक, मानसिक, भावात्मक, सांस्कृतिक चारित्रिक एवं नैतिक विकास पर समुचित ध्यान दें। इसके लिए हरै सँम्भव उपाय किया जाना चाहिए। परिवार द्वारा बच्चों को समुचित धार्मिक शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए। परिवार को बच्चों के सम्पूर्ण व्यक्तित्व के विकास का ध्यान रखना चाहिए। इसके साथ-ही-साथ घर-परिवार को विद्यालय के साथ पूर्ण सहयोग रखना चाहिए। वास्तव में परिवार द्वारा शिक्षा की प्रक्रिया को प्रारम्भ किया जाता है तथा विद्यालय द्वारा उसे विस्तृत रूप दिया जाता है। इस स्थिति में परिवार का सहयोग अति उपयोगी सिद्ध होता है। यदि परिवार द्वारा इन सब बातों को ध्यान में रखा जाता है तो निश्चित रूप से घर-परिवार बालक की शिक्षा का एक अधिक प्रभावशाली अभिकरण बन सकता है। |
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गृह-शिक्षा के लिए अपनायी जाने वाली मुख्य विधियों का विवरण प्रस्तुत कीजिए। |
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Answer» गृह-शिक्षा की विधियाँ (Methods of Home Education) घर-परिवार को शिशु की प्रथम पाठशाला माना जाता है। घर पर रहकर ही शिशु हर प्रकार का प्रारम्भिक ज्ञान प्राप्त करता है। स्पष्ट है कि बच्चे की शिक्षा में घर-परिवार द्वारा महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी जाती है। अब प्रश्न उठता है कि गृह-शिक्षा को सुचारु एवं उत्तम बनाने के लिए किन विधियों को अपनाया जाता है। गृह-शिक्षा के लिए अपनायी जाने वाली मुख्य विधियों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है 1. खेल-विधि-गृह- शिक्षा में खेलों का विशिष्ट स्थान है। खेलों में बालक की जन्मजात एवं सहज रुचि होती है। खेल द्वारा आत्म-प्रकाशन का उचित अवसर मिलता है और इसके माध्यम से बच्चे अपनी सृजनात्मक प्रवृत्तियों तथा क्षमताओं का अधिकतम अभिप्रकाशन कर सकते हैं। यही नहीं, खेल बालक के. समाजीकरण का प्रभावशाली साधन भी हैं। खेल में बालक पास-पड़ोस के बच्चों के सम्पर्क में आता है और उनसे अच्छी-अच्छी बातें सीखता है। खेलों द्वारा दी गई शिक्षा सरल एवं स्वाभाविक होती है। अतः शुरू से ही घर के बच्चों को खेल-विधि द्वारा शिक्षा देने का अधिकाधिक प्रयास करना चाहिए। माता-पिता का दायित्व है। कि वे अपने परिवार में भाँति-भाँति के खेलों का आयोजन कर बच्चों को खेलने के लिए प्रोत्साहित करें। एक ओर जहाँ खेलों द्वारा बालक को मौलिकता, सहयोग, सद्भाव, भाई-चारा, परोपकार तथा आत्मनिर्भरता की शिक्षा दी जा सकती है, वहीं दूसरी ओर परिवार में खेल के माध्यम से कहानियाँ, इतिहास, वर्णमाला तथा गिनती का ज्ञान भी आसानी से कराया जा सकता है। आजकल शिशुओं को मॉण्टेसरी व किण्डरगार्टन शिक्षा-पद्धतियों द्वारा मनोवैज्ञानिक आधार पर खेल-विधि द्वारा ही उत्तम शिक्षा दी जाती है। 2. कहानी-विधि-छोटे बच्चे कहानी सुनना पसन्द करते हैं। कहानी के माध्यम से उनकी कल्पना, विचार एवं तर्क-शक्ति का विकास होता है। पुराने जमाने से ही बड़े-बड़े लोग घर के बच्चों को धार्मिक, पौराणिक तथा शिक्षाप्रद कहानियाँ सुनाते आए हैं जो बालक के ज्ञान, गह-शिक्षा की विधियाँ सामाजिक व नैतिक गुणों के विकास में मदद देती हैं। कहानियाँ छोटी, रोचक और आयु के अनुसार होनी चाहिए। |
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गृह-शिक्षा के मुख्य सिद्धान्तों का विवरण प्रस्तुत कीजिए। |
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Answer» गृह-शिक्षा के सिद्धान्त (Principles of Home Education) परिवार को शिक्षा का प्रभावशाली साधन बनाने के लिए निम्नलिखित सामान्य सिद्धान्तों पर विचार किया जा सकता है 1. शारीरिक विकास का सिद्धान्त- बालक के शारीरिक विकास का सीखने की क्रियाओं पर गहरा प्रभाव पड़ता है। अभिभावकों को शरीर विज्ञान के सामान्य सिद्धान्तों का पर्याप्त ज्ञान होना चाहिए ताकि बालक के शारीरिक विकास की विभिन्न अवस्थाओं के अनुसार शिक्षा की समुचित व्यवस्था की जा सके। शरीर वैज्ञानिक मानते हैं कि बाल-जीवन के पहले 6 वर्षों में बच्चे के स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। उसके सन्तुलित एवं पौष्टिक आहार, व्यक्तिगत स्वतन्त्रता, गृह-शिक्षा के सिद्धान्त स्वच्छ व हवादार आवास, चलने-फिरने, बोलने तथा व्यवहार के शारीरिक विकास का सिद्धान्त तौर-तरीकों पर भी ध्यान देना चाहिए। घर में बालक को शिक्षा देते समय शारीरिक विकास का सिद्धान्त अभिभावकों के लिए परमे। उपयोगी सिद्ध होता है। |
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परिवार के मुख्य शैक्षणिक कार्यों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।याघर अथवा परिवार के शैक्षिक कार्यों का विस्तार से वर्णन कीजिए। |
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Answer» प्रसिद्ध विद्वान् ऑगबर्न तथा निमकॉफ ने परिवार के सात कार्य निर्धारित किए हैं-धार्मिक, आर्थिक, शैक्षिक, पारिवारिक स्थिति, प्रेम सम्बन्धी, रक्षा सम्बन्धी तथा मनोरंजन सम्बन्धी। उन्होंने इन कार्यों में शैक्षिक कार्यों को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण माना है। पारिवारिक शिक्षा के कुछ महत्त्वपूर्ण उद्देश्य एवं कार्य निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत स्पष्ट किए जा सकते हैं– परिवार के मुख्य शैक्षणिक कार्य 1.शारीरिक विकास- शरीर का स्वास्थ्य और उसका समुचित विकास मनुष्य के जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है। कहते हैं स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का वास होता है। अतः बालक के शारीरिक स्वास्थ्य एवं विकास हेतु पौष्टिक, सन्तुलित भोजन तथा नियमित दिनचर्या को प्रबन्ध किया जाना चाहिए। परिवार बालक के शारीरिक विकास हेतु पौष्टिक भोजन, वस्त्र, मनोरंजन, व्यायाम, खेलकूद, उचित वातावरण, चिकित्सा और विश्राम आदि की व्यवस्था करता है। इसीलिए परिवार का पहला शैक्षिक उद्देश्य एवं कार्य बालक का शारीरिक विकास है। |
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परिवार से आप क्या समझते हैं ? एक संस्था के रूप में परिवार के शैक्षिक महत्व को स्पष्ट कीजिए।या“गृह बालक की शिक्षा की प्रथम पाठशाला है।” इस कथन की समीक्षा कीजिए।याबालक/बालिका की शिक्षा में गृह का क्या महत्त्व है ?याशिक्षा के अभिकरण के रूप में घर के महत्व पर प्रकाश डालिए।याशिक्षा के अभिकरण के रूप में परिवार की भूमिका का वर्णन कीजिए। |
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Answer» गृह या परिवार का अर्थ एवं परिभाषा(Meaning and Definition of Home or Family) गृह या परिवार समाज का लघु रूप और सामाजिक व्यवस्था का प्रमुख आधार है। व्यक्ति का समाजीकरण परिवार के माध्यम से ही होता है। मनुष्य शिशु के रूप में परिवार में जन्म लेता है, पालित-पोषित एवं विकसित होता है। शैक्षिक प्रक्रिया के अन्तर्गत सीखने की दृष्टि से शिशु अवस्था को आदर्श काल माना गया है। इस अवस्था के विकास में गृह या परिवार का सर्वाधिक योगदान होता है। नि:सन्देह परिवार, शिक्षा का प्रभावशाली अभिकरण या साधन होने के कारण बालक की शिक्षा में प्राथमिक एवं महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। प्रसिद्ध समाजशास्त्री पी० वी० यंग एवं मैक का विचार है, “परिवार सबसे पुराना और मौलिक मानव-समूह है। पारिवारिक ढाँचे का विशिष्ट स्वरूप एक समाज से दूसरे समाज में भिन्न हो सकता है और होता है, पर सब जगह परिवार के मुख्य कार्य हैं-बच्चे का पालन करना और उसे समाज की संस्कृति से परिचित कराना–सारांश में उसका समाजीकरण करना।” सामाजिक संगठनों में सर्वाधिक प्राचीन तथा प्रमुख संगठन ‘परिवार’ है। यह समाज की एक महत्त्वपूर्ण इकाई है और सबसे अधिक मौलिक सामाजिक समूह भी है। एकांकी परिवार में सामान्यत: पति-पत्नी और उनके बच्चे होते हैं, जब कि संयुक्त परिवार में पति या पत्नी के माता-पिता, उनके अन्य भाई-बहन या दो-तीन पीढ़ियों के सदस्य एक साथ मिलकर रहते हैं। ‘परिवार’ शब्द का अंग्रेजी रूपान्तर ‘Family’ शब्द ‘Famulus’ से बना है, जिसका अर्थ है’Servant’ नौकर। यही कारण है कि कुछ प्राचीन समाजों में नौकरों को भी परिवार का ही सदस्य माना जाता था। ⦁ क्लेयर के अनुसार, “परिवार से हम सम्बन्धों की वह व्यवस्था समझते हैं, जो माता-पिता और उनकी सन्तानों के बीच पायी जाती है।” संस्था के रूप में परिवार का शैक्षिक महत्त्व परिवार सदैव ही बालक पर अपना स्थायी प्रभाव छोड़ता है। बालक का जन्म, विकास और समाजीकरण परिवार से ही शुरू होता है। उसकी आधारभूत आवश्यकताएँ भी घर या परिवार से ही पूरी होती हैं। परिवार के वातावरण का प्रभाव बालक के विकास के सभी स्तरों पर पड़ता है। लॉरी का कथन है, “शैक्षिक इतिहास । के सभी स्तरों पर परिवार बालक की शिक्षा का प्रमुख साधन है।” अधिकांशत: बालक वैसा ही बनता है, जैसा उसका परिवार उसे बनाना चाहता है। अपने परिवार के सदस्यों का अनुकरण करके ही बच्चे अच्छे या बुरे गुण सीखते हैं। एक ओर जहाँ शिवाजी मराठा, गोपालकृष्ण गोखले, महात्मा गांधी और लोकमान्य तिलक आदि महापुरुषों का सदाचरण अपने परिवार की आदर्श पृष्ठभूमि पर आधारित था, वहीं दूसरी ओर एच० सी० एण्डरसन यह भी प्रमाण देते हैं, “हमारे अपराधियों में से 80 प्रतिशत अपराधी असहानुभूतिपूर्ण परिवारों से आते हैं।’ बालक की शिक्षा के सन्दर्भ में समाज की मौलिक संस्था परिवार का महत्त्व निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत स्पष्ट किया जा सकता है– परिवार : बालकों की प्रथम पाठशाला (Family: Child’s First School) विश्व के सभी शिक्षाशास्त्रियों ने बालक की शिक्षा के सन्दर्भ में परिवार के महत्त्व को एकमत से स्वीकार किया है। आदि काल से आज तक बालक की शिक्षा को श्रीगणेश घर-परिवार के आँगन से होता आया है। और परिवार की शिक्षा ने ही सदैव उसके संस्कारों पर अमिट छाप छोड़ी है। बाल-मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि मनुष्य के व्यक्तित्व, चरित्र, आचरण, व्यवहार, आदर्श एवं जीवन-मूल्यों का बीजारोपण उसकी शैशवावस्था में परिवार के माध्यम से होता है। मैजिनी कहते हैं, “बालक नागरिकता का सुन्दरतम् पाठ माता के चुम्बन और पिता के दुलार से सीखता है।” महात्मा गांधी की दृष्टि में, “बालक को प्रथम पाँच वर्षों में जो शिक्षा प्राप्त होती है वह फिर कभी नहीं मिलती।” मॉण्टेसरी विद्यालय को ‘बालघर’ (Children’s Home) मानते हुए शिशु शिक्षा में परिवार के वातावरण को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कारक स्वीकार करते हैं। पेस्टालॉजी का स्पष्ट विचार है, “घर ही शिक्षा का सर्वोत्तम साधन और बालक का प्रथम विद्यालय है।” इस भाँति, निष्कर्ष रूप में परिवार का वातावरण ही बालक का भविष्य निर्धारित करता है और कुल मिलाकर यह चित्र उभरता है कि परिवार बालकों की प्रथम पाठशाला है। इसी के समर्थन में बोगाईस के शब्द यहाँ उद्धृत करने योग्य हैं, “परिवार-समूह मानव की प्रथम पाठशाला है। प्रत्येक व्यक्ति की अनौपचारिक शिक्षा सामान्य रूप से परिवार में ही प्रारम्भ होती है। बालक की शिक्षा-प्राप्ति का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण समय परिवार में ही व्यतीत होता है।” |
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बच्चों के नैतिक विकास के लिए गृह-शिक्षा के अन्तर्गत किस विधि को अपनाना चाहिए? |
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Answer» कहानी विधि को अपनाकर बच्चों का समुचित नैतिक विकास किया जा सकता है। |
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बालक की शिक्षा में घर-परिवार के योगदान को स्पष्ट कीजिए। |
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Answer» बालक की शिक्षा में घर-परिवार का योगदान बालक की शिक्षा की प्रक्रिया घर-परिवार से ही प्रारम्भ होती है। शिक्षा अपने आप में एक अत्यधिक व्यापक एवं बहुपक्षीय प्रक्रिया है। शिक्षा की प्रक्रिया के प्रत्येक पक्ष में घर-परिवार का सर्वाधिक योगदान है। सर्वप्रथम हम कह सकते हैं कि बालक को भाषा का ज्ञान परिवार द्वारा ही प्रदान किया जाता है। भाषा का ज्ञान औपचारिक शिक्षा अर्जित करने के लिए अनिवार्य शर्त है। शिक्षा के लिए शिष्टाचार एवं अच्छी आदतों की भी आवश्यकता होती है। परिवार इस कार्य में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। परिवार ही बालक की आदतों, रुचियों एवं कुछ अभिवृत्तियों के विकास में आधारभूत योगदान प्रदान करता है। शिक्षा के लिए बालक का शारीरिक, मानसिक, भावात्मक एवं सांस्कृतिक विकास भी आवश्यक होता है। विकास के इन विभिन्न पक्षों में घर-परिवार का उल्लेखनीय योगदान होता है। शिक्षा का एक पक्ष व्यावसायिक शिक्षा भी है। बालक की व्यावसायिक शिक्षा में भी घर-परिवार द्वारा महत्त्वपूर्ण योगदान प्रदान किया जाता है। पारम्परिक रूप से प्रत्येक परिवार का कोई-न-कोई पारिवारिक व्यवसाय होता था। इस दशा में परिवार के बालक स्वाभाविक रूप से ही अपने पारिवारिक व्यवसाय के प्रति उन्मुख हो जाते थे तथा उन्हें परिवार में अपने व्यवसाय का प्रशिक्षण प्राप्त हो जाता था। आज भी परिवार का वातावरण बालक के व्यवसाय-वरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इन सबके अतिरिक्त यह भी सत्य है कि बालक की सम्पूर्ण औपचारिक शिक्षा की व्यवस्था में भी परिवार का विशेष योगदान होता है। |
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“परिवार समूह ही प्रथम मानवीय विद्यालय है, परिवार में प्रत्येक व्यक्ति की अनौपचारिक शिक्षा सामान्यतया आरम्भ होती है। बालक का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण समय परिवार में ही बीतता है।” यह कथन किसका है ? |
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Answer» प्रस्तुत कथन बोगास का है। |
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गृह-शिक्षा के अन्तर्गत बच्चे विभिन्न कार्यों को सर्वाधिक किस विधि द्वारा सीखते हैं ? |
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Answer» गृह-शिक्षा के अन्तर्गत बच्चे विभिन्न कार्यों को करना सर्वाधिक अनुकरण विधि द्वारा सीखते हैं। |
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बच्चों को उत्तरदायित्व वहन करने की शिक्षा किस प्रकार से दी जा सकती है? |
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Answer» बच्चों को छोटे-छोटे घरेलू कार्य सौंपकर उत्तरदायित्व वहन करने की शिक्षा प्रदान की जा सकती है। |
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आपके मतानुसार बच्चों के शिक्षण की प्राचीनतम संस्था कौन-सी है ? |
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Answer» बच्चों के शिक्षण की प्राचीनतम संस्था परिवार है। |
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“बालक नागरिकता का सुन्दरतम पाठ माता के चुम्बन और पिता के दुलार से सीखता है।” यह कथन किसका है ? |
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Answer» प्रस्तुत कथन मैजिनी का है। |
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बच्चों के सामान्य विकास तथा व्यावहारिक शिक्षा में सर्वाधिक योगदान किसका होता है? |
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Answer» बच्चों के सामान्य विकास तथा व्यावहारिक शिक्षा में सर्वाधिक योगदान परिवार का ही होता है। |
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आपके विचार से गृह-शिक्षा किस प्रकार की होनी चाहिए? |
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Answer» हमारे विचार से गृह-शिक्षा बाल-केन्द्रित होनी चाहिए। |
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“माताएँ आदर्श अध्यापिकाएँ हैं और घर द्वारा दी जाने वाली अनौपचारिक शिक्षा सबसे अधिक प्रभावशाली और स्वाभाविक है।” यह कथन किसका है ? |
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Answer» प्रस्तुत कथन फ्रॉबेल का है। |
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परिवार द्वारा बच्चों को दी जाती है(क) आज्ञापालन एवं कर्तव्यपालन की शिक्षा(ख) सहयोग एवं अन्य सद्गुणों की शिक्षा(ग) शारीरिक स्वास्थ्य के नियमों की शिक्षा(घ) उपर्युक्त सभी प्रकार की शिक्षा |
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Answer» सही विकल्प है (घ) उपर्युक्त सभी प्रकार की शिक्षा |
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“घर ही शिक्षा का सर्वोत्तम साधन और बालक का प्रथम विद्यालय है।”यह कथन किसका है?(क) पेस्टालॉजी(ख) बोगास(ग) फ्रॉबेल(घ) महात्मा गांधी |
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Answer» सही विकल्प है (क) पेस्टालॉजी |
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अजित प्रेरकों को किन-किन वर्गों में बाँटा जाता है? |
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Answer» अर्जित प्रेरकों को दो वर्गों में बाँटा जाता है- (i) व्यक्तिगत अर्जित प्रेरक तथा (ii) सामाजिक अर्जित प्रेरक। |
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प्रेरकों की प्रबलता के मापन की मुख्य विधियों का उल्लेख कीजिए। |
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Answer» प्रेरकों की प्रबलता के मापन के लिए सामान्य रूप से अग्रलिखित तीन विधियों को अपनाया जाता है – (1) अवरोध विधि – प्रेरकों की प्रबलता-मापन की एक मुख्य विधि अवरोध विधि (Obstruction Method) है। इस विधि की सैद्धान्तिक मान्यता यह है कि यदि प्रेरक प्रबल है तो सम्बन्धित लक्ष्य की प्राप्ति के मार्ग में आने वाले अपेक्षाकृत बड़े अवरोधों को भी व्यक्ति या प्राणी पार कर जाता है। इस विधि के अन्तर्गत प्रेरकों की प्रबलता की माप तुलनात्मक आधार पर की जा सकती है। भिन्न-भिन्न प्रबलता वाले प्रेरकों की दशा में एकसमान अवरोध उपस्थित करके प्राप्त परिणामों के आधार पर उनकी प्रबलता की माप की जा सकती है। |
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प्रेरकों की प्रबलता के मापन के लिए अपनायी जाने वाली विधियों का उल्लेख कीजिए। |
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Answer» (i) अवरोध विधि, (ii) शिक्षण विधि तथा (iii) चुनाव विधि। |
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चार मुख्य जन्मजात प्रेरकों का उल्लेख कीजिए। |
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Answer» (i) भूख, (ii) प्यास, (iii) नींद तथा (iv) काम। |
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नवजात शिशु के जीवन में पाये जाने वाले मुख्य प्रेरकों का उल्लेख कीजिए। |
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Answer» नवजात शिशु के व्यवहार को परिचालित करने वाले मुख्य प्रेरकों का सामान्य विवरण निम्नलिखित है – (1) भूख – भूख प्रत्येक प्राणी के जीवन की आधारभूत आवश्यकता है। जन्म के उपरान्त मानव-शिशु भी भूख की आवश्यकता के कारण स्वाभाविक क्रियाएँ व व्यवहार प्रकट करता है। वस्तुतः भूख लगने पर रक्त के रासायनिक अंशों में परिवर्तन के कारण वेदना उत्पन्न होती है तथा शरीर में व्याकुलता बढ़ती है। नवजात शिशु इस ‘भूख-वेदना’ को अभिव्यक्ति देने के लिए हाथ-पैर हिलाता है या रोता-चिल्लाता है। माँ, बच्चे के इस व्यवहार को पहचानने में सक्षम होती है और उसकी आवश्यकता सन्तुष्ट करने की चेष्टा करती है। आवश्यकता-पूर्ति के बाद भूखे का प्रेरक शान्त हो जाता है। |
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किन्हीं दो जन्मजात प्रेरकों के नाम लिखिए तथा संक्षेप में उनका महत्त्व स्पष्ट कीजिए। |
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Answer» मुख्य जन्मजात प्रेरक हैं-भूख, प्यास, काम, नींद, मातृत्व व्यवहार तथा मल-मूत्र-त्याग। |
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जन्मजात प्रेरक क्या हैं?याजैविक अभिप्रेरकों को स्पष्ट कीजिए तथा उनके नाम लिखिए। |
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Answer» प्रेरकों के दो मुख्य प्रकार यावर्ग निर्धारित किये गये हैं, जिन्हें क्रमशः जन्मजात प्रेरक तथा अर्जित प्रेरक कहा गया है। जन्मजात प्रेरकों को आन्तरिक प्रेरक तथा जैविक प्रेरक भी कहा जाता है। जन्मजात या आन्तरिक प्रेरक व्यक्ति में जन्म से ही विद्यमान होते हैं तथा इन्हें सीखना नहीं पड़ता। यही कारण है कि इन्हें प्राथमिक या शारीरिक प्रेरक भी कहा जाता है। ये प्रेरक व्यक्ति के जीवन के आधार हैं। तथा इनके पूर्ण न होने से व्यक्ति का शारीरिक एवं मानसिक सन्तुलन भी बिगड़ जाता है। व्यक्ति के जीवन में जन्मजात प्रेरकों का अत्यधिक महत्त्व है। जीवन के सुचारु परिचालन में इन प्रेरकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। हम यह भी कह सकते हैं कि इन प्रेरकों के अभाव में जीवन का चल पाना प्रायः सम्भव नहीं होता। मुख्य जन्मजात प्रेरक हैं-भूख, प्यास, काम, नींद, तापक्रम, मातृत्व व्यवहार तथा मल-मूत्र त्याग। |
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