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This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.

1.

सर्व शिक्षा अभियान प्रारम्भ किया गया याभारत में सर्व शिक्षा अभियान (एस०एस०ए०) किस वर्ष में शुरू किया गया था ? (क) 1986 ई० में(ख) 2001-02 ई० में(ग) 1 अप्रैल, 1992 ई० में(घ) इनमें से कोई नहीं

Answer»

सही विकल्प है  (ख) 2001-02 ई० में।

2.

ट्राइसेम कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य था(क) ग्रामीण युवाओं को स्वरोजगार हेतु प्रशिक्षण देना(ख) शहरी युवाओं को स्वरोजगार हेतु प्रशिक्षण देना(ग) ग्रामीण एवं शहरी युवाओं को स्वरोजगार हेतु प्रशिक्षण देना(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं

Answer»

(क) ग्रामीण युवाओं को स्वरोजगार हेतु प्रशिक्षण देना।

3.

जवाहर ग्राम समृद्धि योजना प्रारम्भ की गयी(क) 1960 ई० में(ख) 1965 ई० में(ग) 1969 ई० में(घ) 1999 ई० में

Answer»

सही विकल्प है  (घ) 1999 ई० में।

4.

रोजगार आश्वासन योजना प्रारम्भ की गयी(क) 2 अक्टूबर, 1993 ई० में(ख) 2 अक्टूबर, 1995 ई० में(ग) 2 अक्टूबर, 1999 ई० में(घ) 2 अक्टूबर, 2001 ई० में

Answer»

सही विकल्प है  (क) 2 अक्टूबर, 1993 ई० में।

5.

ट्राइसेम योजना प्रारम्भ की गयी(क) 15 अगस्त, 1979 ई० को(ख) 2 अक्टूबर, 1980 ई० को(ग) 5 सितम्बर, 1982 ई० को(घ) 15 अगस्त, 1983 ई० को

Answer»

सही विकल्प है  (क) 15 अगस्त, 1979 ई० को।

6.

सामाजिक वानिकी का मुख्य उद्देश्य है(क) इमारती लकड़ी की आपूर्ति(ख) चारे की आपूर्ति(ग) ईंधन लकड़ी की आपूर्ति(घ) इनमें से कोई नहीं

Answer»

सही विकल्प है  (घ) इनमें से कोई नहीं।

7.

प्रधानमन्त्री ग्राम सड़क योजना आरम्भ की गयी थी (क) वर्ष 1999 में(ख) वर्ष 2000 में(ग) वर्ष 2001 में(घ) वर्ष 2002 में

Answer»

सही विकल्प है  (ख) वर्ष 2000 में।

8.

निम्नलिखित में से कौन-सी बेरोजगारी दूर करने की एक योजना है(क) महिला समृद्धि योजना(ख) ट्राइसेम(ग) गंगा कार्य योजना(घ) मिलियन कूप योजना

Answer»

सही विकल्प है  (ख) ट्राइसेम।

9.

ग्रामीण महिलाओं को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने एवं उनमें बचत की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन देने के लिए महिला समृद्धि योजना कब प्रारम्भ की गयी थी?(क) 2 अक्टूबर, 1992 ई० को(ख) 2 अक्टूबर, 1993 ई० को(ग) 2 अक्टूबर, 1995 ई० को(घ) 1 जनवरी, 1996 ई० को।

Answer»

सही विकल्प है  (ख) 2 अक्टूबर, 1993 ई० को।

10.

देश में किस संक्रामक रोग का उन्मूलन कर दिया गया है?(क) एड्स(ख) कुष्ठ रोग(ग) मलेरिया(घ) चेचक

Answer»

सही विकल्प है  (घ) चेचक।

11.

ग्रामीण विद्युतीकरण निगम कब स्थापित किया गया ? (क) 1969 ई० में(ख) 1974 ई० में(ग) 1979 ई० में(घ) 1984 ई० में

Answer»

सही विकल्प है  (क) 1969 ई० में।

12.

स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना प्रारम्भ की गयी(क) 1 अप्रैल, 1999 ई० में(ख) 1 अप्रैल, 2000 ई० में(ग) 1 अप्रैल, 2001 ई० में(घ) इनमें से कोई नहीं

Answer»

सही विकल्प है  (क) 1 अप्रैल, 1999 ई० में।

13.

स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना को समझाइए।

Answer»

स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना को एक अप्रैल, 1999 ई० से प्रारम्भ किया गया था। इस योजना का उद्देश्य लघु उद्यमों को बढ़ावा देना तथा ग्रामीण निर्धनों को अपने स्व-सहायता समूहों (एस०एच०जी०) में संगठित करने में सहायता प्रदान करना है।

14.

प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना’ को समझाइए।

Answer»

ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों के जीवन-स्तर में सुधार लाने के समग्र उद्देश्य से स्वास्थ्य, प्राथमिक शिक्षा, पेय जल, आवास तथा ग्रामीण सड़कों जैसे पाँच महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में ग्रामीण स्तर पर विकास हेतु यह योजना वर्ष 2000-01 में प्रारम्भ की गयी।

15.

प्राथमिक शिक्षा के लिए पोषणिक सहायता कार्यक्रम कब से प्रारम्भ किया गया?

Answer»

प्राथमिक शिक्षा के लिए पोषणिक सहायता कार्यक्रम 15 अगस्त, 1995 ई० से प्रारम्भ किया गया।

16.

सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना की विशेषता लिखिए।

Answer»

25 सितम्बर, 2001 को केन्द्र द्वारा प्रायोजित इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अतिरिक्त एवं सुनिश्चित अवसर उपलब्ध कराने के साथ-साथ खाद्यान्न उपलब्ध कराना है।

17.

राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम कब शुरू किया गया ?

Answer»

राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम 15 अगस्त, 1945 में शुरू हुआ।

18.

‘काम के बदले अनाज’ कार्यक्रम कब आरम्भ हुआ था?

Answer»

‘काम के बदले अनाज’ कार्यक्रम पाँचवीं पंचवर्षीय योजना में 1974 में आरम्भ हुआ था।

19.

सघन कृषि जिला कार्यक्रम (IADP) कब प्रारम्भ किया गया था?

Answer»

सघन कृषि जिला कार्यक्रम वर्ष 1960-61 ई० में प्रारम्भ किया गया था।

20.

अन्नपूर्णा योजना क्या है?

Answer»

निर्धन एवं असहाय वरिष्ठ नागरिकों को निःशुल्क खाद्यान्न उपलब्ध कराने के लिए यह योजना चलाई जा रही है।

21.

संगम योजना पर अति संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

Answer»

15 अगस्त, 1996 ई० को सरकार ने विकलांगों के कल्याण के लिए जिन समाज-कल्याण योजनाओं की घोषणा की, उनमें संगम योजना एक प्रमुख योजना है। इस योजना के अन्तर्गत विकलांगों को एक समूह के रूप में संगठित करके प्रत्येक समूह को आर्थिक क्रियाओं के संचालन हेतु ₹ 15,000 की आर्थिक सहायता देने का प्रावधान किया गया है। विकलांगों के प्रत्येक समूह को ‘संगम’ नाम दिया गया।

22.

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी ने ग्रामीण क्षेत्रों में क्या योगदान दिये हैं?

Answer»

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी ने ग्रामीण क्षेत्रों में निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण योगदान दिये हैं
⦁    उन्नत बीज, ट्रैक्टर आदि उपकरण, रासायनिक उपकरण, कीटनाशक दवाएँ आदि सभी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की देन हैं।
⦁    गोबर गैस प्लाण्ट से महिलाओं को धुएँ से मुक्ति मिली है।
⦁    ग्रामीण औद्योगीकरण को बढ़ावा मिला है।
⦁    परिवहन, संचार-सुविधाओं का विकास हुआ है।
⦁    ग्रामीण विकास में सहायता मिली है।

23.

अन्त्योदय अन्न-योजना के उद्देश्य बताइए।

Answer»

इस योजना का उद्देश्य निर्धनों को अन्न सुरक्षा उपलब्ध कराना है। यह योजना 25 दिसम्बर, 2000 ई० को लागू की गयी। इस योजना के अन्तर्गत देश के एक करोड़ निर्धनतम परिवारों को प्रति माह 25 किलोग्राम अनाज विशेष रियायती मूल्य पर उपलब्ध कराया जाएगा।

24.

ग्रामीण विद्युतीकरण निगम की स्थापना कब की गयी?

Answer»

जुलाई, 1969 ई० में ग्रामीण विद्युतीकरण निगम की स्थापना की गयी।

25.

कमान क्षेत्र विकास कार्यक्रम का उद्देश्य लिखिए।

Answer»

इस कार्यक्रम का उद्देश्य देश की चुनी हुई बड़ी और मझोली परियोजनाओं की सिंचाई क्षमता को तेजी से बेहतर उपयोग सुनिश्चित करना था।

26.

सर्व शिक्षा अभियान क्या है ?

Answer»

सर्व शिक्षा अभियान’ प्राथमिक शिक्षा देने के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए चलाया गया। अभियान है।

27.

प्रधानमन्त्री रोजगार योजना का उद्देश्य बताइए।

Answer»

शिक्षित बेरोजगार युवाओं के लिए 2 अक्टूबर, 1993 ई० से प्रारम्भ की गयी प्रधानमन्त्री रोजगार योजना के अन्तर्गत 8वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान उद्योग सेवा तथा कारोबार में सात लाख लघुतर इकाइयाँ स्थापित करके लगभग 10 लाख से भी अधिक व्यक्तियों को रोजगार उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया था। 9वीं पंचवर्षीय योजना (1997-2002) में कतिपय संशोधनों के साथ इस योजना को जारी रखा गया। 

28.

रोजगार आश्वासन योजना के उद्देश्य लिखिए।

Answer»

रोजगार आश्वासन योजना (EAS) – रोजगार आश्वासन योजना 2 अक्टूबर, 1993 ई० से ग्रामीण क्षेत्रों के 257 जिलों के 1,770 विकास-खण्डों में प्रारम्भ की गयी थी। बाद में यह योजना वर्ष 1997-98 तक देश के सभी 5,448 ग्रामीण पंचायत समितियों में विस्तारित कर दी गयी। इस योजना को एकल-मजदूरी रोजगार कार्यक्रम बनाने के लिए वर्ष 1999-2000 में इसकी पुन: संरचना की गयी और 75:25 के लागत बँटवारे के अनुपात के आधार पर इसे केन्द्रीय प्रायोजित योजना के रूप में कार्यान्वित किया गया।
इस योजना का मुख्य उद्देश्य प्रत्येक परिवार से अधिकतम दो युवाओं को 100 दिन तक का लाभप्रद रोजगार उपलब्ध कराना है। योजना का दूसरा गौण उद्देश्य पर्याप्त रोजगार तथा विकास के लिए आर्थिक अधोरचना तथा सामुदायिक परिसम्पत्तियों का सृजन करना है। रोजगार आश्वासन एक माँग चालित कार्यक्रम है; अतः इसके अन्तर्गत भौतिक लक्ष्य निर्धारित नहीं किये गये हैं।

29.

सामुदायिक विकास कार्यक्रम के दो उद्देश्य बताइए।

Answer»

(1) कृषि एवं ग्रामीण उद्योगों का विकास करना तथा
(2) ग्रामीण लोगों को आत्मनिर्भर बनाना।

30.

राजीव गांधी राष्ट्रीय पेयजल मिशन की स्थापना कब हुई?

Answer»

वर्ष 1991 में राष्ट्रीय पेयजल मिशन का नाम बदलकर ‘राजीव गांधी राष्ट्रीय पेयजल मिशन कर दिया गया।

31.

राष्ट्रीय पेयजल मिशन की स्थापना कब की गयी थी?

Answer»

राष्ट्रीय पेयजल मिशन की स्थापना 1986 ई० में की गयी थी।

32.

ग्रामीण रोजगार की किन्हीं दो योजनाओं के नाम लिखिए।

Answer»

(1) रोजगार आश्वासन योजना (EAS)
(2) सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना (SGRY)।

33.

सर्व-शिक्षा अभियान के प्रमुख उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए।

Answer»

(1) 2010 ई० तक 6-14 वर्ष की आयु के सभी बच्चे स्कूली शिक्षा के आठ वर्ष पूरी करें।
(2) जीवन के लिए शिक्षा पर जोर देते हुए सन्तोषजनक स्तर की बुनियादी शिक्षा पर ध्यान देना।

34.

सामुदायिक विकास कार्यक्रम (C.D.P) कब प्रारम्भ किया गया?

Answer»

सामुदायिक विकास कार्यक्रम 2 अक्टूबर, 1952 ई० में प्रारम्भ किया गया।

35.

वनों पर आधारित किन्हीं चार उद्योगों के नाम लिखिए। 

Answer»

कागज, लकड़ी, माचिस एवं रबर उद्योग।

36.

ग्राम विकास के किन्हीं दो घटकों का उल्लेख कीजिए। याभारत में ग्रामीण विकास के किन्हीं दो प्रमुख घटकों का उल्लेख कीजिए।

Answer»

1. प्राकृतिक संसाधन (कृषि एवं गैर-कृषि उत्पाद)।
2. मानवीय संसाधन (गुणवत्ता और भंजन)।

37.

इन्दिरा आवास योजना कब प्रारम्भ की गई ?

Answer»

इन्दिरा आवास योजना 1985 में प्रारम्भ की गई।

38.

भारत सरकार ने ट्राइफेड की स्थापना कब की थी? (क) 1964 में(ख) 1987 में(ग) 1990 में(घ) 1992 में

Answer»

सही विकल्प है  (ख) 1987 में।

39.

स्वतन्त्रता के पश्चात से भारतीय शिक्षा की प्रगति पर एक निबन्ध लिखिए। या भारत में शिक्षा की प्रगति पर एक लेख लिखिए।

Answer»

शिक्षा राष्ट्र के समग्र विकास एवं उसकी समृद्धि का एक सशक्त माध्यम है। प्रजातान्त्रिक व्यवस्था में शिक्षा का प्रकाश प्रत्येक नागरिक को प्राप्त होना आवश्यक है। अत: सर्वसुलभ शिक्षा हमारी संवैधानिक प्रतिबद्धता है, परन्तु स्वतन्त्रता-प्राप्ति के 58 वर्षों के पश्चात् भी हम भारत में शत-प्रतिशत साक्षरता के लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाये हैं। वर्ष 1991 की जनगणना के अनुसार, देश में साक्षरता की दर 52.21 प्रतिशत थी। वर्ष 2011 के आँकड़ों के अनुसार देश में साक्षरता की दर 74.04 प्रतिशत है। पुरुषों व महिलाओं में साक्षरता की अलग-अलग दरें क्रमशः 82.14 प्रतिशत व 65.46 प्रतिशत रही है। साक्षरता के मामले में राज्यों में अग्रणी स्थान केरल का है और सबसे कम साक्षरता बिहार राज्य में है।

भारत एक ग्राम-प्रधान देश है। यदि भारत के ग्रामों का आर्थिक विकास होता है तो सम्पूर्ण भारत का आर्थिक विकास होता है। परन्तु दुर्भाग्य की बात है कि शिक्षा की दृष्टि से भारतीय ग्रामीण क्षेत्र आज भी पिछड़ी हुई स्थिति में हैं। शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में साक्षरता का प्रतिशत बहुत कम है। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी निर्धनता, अन्ध-विश्वास आदि व्याप्त है, जिसका प्रमुख कारण निरक्षरता ही भारत में इस समय शिक्षा पर किया जाने वाला कुल व्यय सकल घरेलू उत्पाद का 3.8 प्रतिशत (1998 के आधार वर्ष) है। शिक्षा पर योजनागत व्यय में पहली पंचवर्षीय योजना से आगे तीव्र वृद्धि भी हुई है। नौवीं पंचवर्षीय योजना में इस क्षेत्र को उच्च प्राथमिकता दी गयी है। इस क्षेत्र को उपलब्ध निधियों में तीन गुना वृद्धि इसका सूचक है। शिक्षा के लिए कुल योजनागत आवंटन में बुनियादी शिक्षा को सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है।

राष्ट्रीय शिक्षा-नीति, 1986 और वर्ष 1992 में यथा समीक्षित इसके कार्यक्रम में सभी क्षेत्रों में शिक्षा के सुधार और विस्तार, शिक्षा प्राप्त करने में वैषम्य की समाप्ति, सभी स्तरों पर शिक्षा के स्तर तथा उसकी प्रासंगिकता में सुधार किये जाने के साथ तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा पर जोर देने की बात कही गयी है। शिक्षा नीति का उद्देश्य सभी के लिए शिक्षा प्राप्त करना रहा है, जिसमें प्राथमिक क्षेत्र स्वतन्त्र हो और 6-14 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों को कक्षा पाँच तक नि:शुल्क और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा, निरक्षरता का पूर्ण उन्मूलन, व्यवसायीकरण, विशेष जरूरतों वाले बच्चों पर ध्यान देना, महिलाओं, कमजोर वर्गों और अल्पसंख्यकों की शिक्षा पर विशेष ध्यान देना है। वर्ष 1950-51 से वर्ष 2010-11 की अवधि के दौरान प्राथमिक स्कूलों की संख्या में तीन गुनी और उच्च प्राथमिक विद्यालयों की संख्या में 15 गुनी वृद्धि हुई है। इस समय राज्य और केन्द्रीय विधान के द्वारा स्थापित 326 विश्वविद्यालय, 131 सम-विश्वविद्यालय और 113 निजी विश्वविद्यालय हैं। उच्च शिक्षा क्षेत्र में मान्यता रहित संस्थानों के अतिरिक्त 1,520 महिला महाविद्यालयों सहित लगभग 11,831 महाविद्यालय हैं।

छठे अखिल भारतीय शिक्षा सर्वेक्षण 1993 ई० के अनुसार, ग्रामीण बस्तियों की 83 प्रतिशत और ग्रामीण जनसंख्या के 94 प्रतिशत हिस्से को 1 किमी की परिधि में प्राथमिक स्कूलों की सुविधा उपलब्ध है। ग्रामीण बस्तियों के 76% और ग्रामीण जनसंख्या के 85 प्रतिशत हिस्से को 3 किमी की परिधि में उच्च प्राथमिक स्कूलों की सुविधा उपलब्ध है। 1993 ई० के पश्चात् से प्राथमिक और उच्च प्राथमिक शिक्षा की उपलब्धता में पर्याप्त सुधार हुआ है।

देश में सकल नामांकन अनुपात महत्त्वपूर्ण रूप से सुधरकर प्राथमिक स्तर के लिए 42.6 प्रतिशत (1950-51) से बढ़कर 94.90 प्रतिशत (1999-2000) और उच्च प्राथमिक स्तर के लिए 12.7 प्रतिशत (1950-51) से बढ़कर 58.79 प्रतिशत (1999-2000) हो गया है। ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों में पुरुष व महिला दोनों की साक्षरता में प्रशंसनीय सुधार हुआ है।

40.

राष्ट्रीय शिक्षा-नीति, 1986 ई० पर एक लेख लिखिए।

Answer»

मानवीय सम्भावनाओं के विकास में शिक्षा एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। बदलते समय की चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रत्येक देश अपनी शिक्षा-व्यवस्था विकसित करता है। भारत के सन्दर्भ में विकासोन्मुख शिक्षा-व्यवस्था हमारे अतीत के अनुभवों व वर्तमान की आवश्यकताओं पर आधारित होकर हमारी जनता के साथ-साथ मानवता के लिए एक अच्छे भविष्य का निर्माण कर सकेगी।
राष्ट्रीय शिक्षा-नीति का निर्माण व क्रियान्वयन इसी सन्दर्भ में देखा व समझा जाना चाहिए। संसद ने 1986 ई० के अपने बजट अधिवेशन में राष्ट्रीय शिक्षा-नीति को स्वीकार किया था। इसमें शिक्षा के क्षेत्र में सामान्य निर्देशों व विशेष महत्त्व के क्षेत्रों की ओर संकेत किया गया है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 ई० इस मूलभूत सिद्धान्त पर आधारित है-“शिक्षा वर्तमान और भविष्य में विशिष्ट पूँजी निवेश है। इसका अर्थ है कि शिक्षा सभी के लिए है। शिक्षा समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और प्रजातन्त्र जो हमारे संविधान के आदर्श हैं, के उद्देश्यों को आगे बढ़ा सकती है और अर्थव्यवस्था के विशेष क्षेत्रों में प्रशिक्षित जनशक्ति प्रदान कर सकती है।

1. शिक्षा के बारे में राष्ट्रीय दृष्टिकोण – शिक्षा-नीति शिक्षा के प्रति एक व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करती है। यह इस बात की ओर संकेत करती है कि राष्ट्रीय शिक्षा-व्यवस्था के विकास के लिए निरन्तर प्रयत्नों की आवश्यकता है। राष्ट्रीय शिक्षा-व्यवस्था का अर्थ एक समान व संकीर्ण व्यवस्था नहीं है। यह एक व्यापक ढाँचे के अन्तर्गत लचीला रुख अपनाने की अनुमति देती है। राष्ट्रीय शिक्षा के सिद्धान्त का अर्थ है
⦁    सभी के लिए शिक्षा, सफलता व उच्च स्तर प्राप्ति के अवसर,
⦁    शिक्षा का समान ढाँचा,
⦁    एक राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की रूपरेखा तथा
⦁     हर चरण में एक निश्चित अध्ययन का स्तर।

2. समानता के लिए शिक्षा – राष्ट्रीय शिक्षा-नीति असमान अवसरों को दूर करने तथा उन सभी लोगों को शिक्षा के समान अवसर देने पर जोर देती है, जिन्हें अभी यह अवसर नहीं मिल पाया है

(i) लड़कियों के लिए – राष्ट्रीय शिक्षा नीति सभी के अधिकारों में वृद्धि करने के लिए सकारात्मक भूमिका निभाएगी। शिक्षा द्वारा स्त्रियों के सम्मान के स्तर में वृद्धि की जाएगी, स्त्रियों के अध्ययन को प्रोत्साहन दिया जाएगा तथा उनके विकास के लिए सक्रिय कार्यक्रम अपनाये जाएँगे। स्त्रियों में अशिक्षा को दूर करने, शिक्षा के अवसर में आने वाली बाधाओं को दूर करने व उन्हें
आरम्भिक शिक्षा में बनाये रखने के लिए सर्वाधिक प्राथमिकता दी जाएगी। इसके लिए विशेष साधन प्रदान किये जाएँगे तथा उसके बारे में निरन्तर सूचना प्राप्त की जाएगी।
(ii) अनुसूचित जातियों के लिए  – राष्ट्रीय शिक्षा नीति में अनुसूचित जातियों सहित समाज में पिछड़े वर्ग के सभी लोगों के लिए शिक्षा के समुचित क्षेत्र में प्रोत्साहन की सिफारिश की गयी है।
(iii) अनुसूचित जनजातियों के लिए – जनजाति क्षेत्र में स्कूल खोलने को प्राथमिकता दी जाएगी। आरम्भिक वर्षों के लिए विशेष पढ़ाई की व्यवस्था की जाएगी जिससे उन्हें क्षेत्रीय भाषा में शिक्षा देने का प्रबन्ध हो सके। अनुसूचित जातियों की भाँति यहाँ भी अध्यापक शिक्षित जनजाति के युवकों में से चुने जाएँगे।

(iv) अन्य पिछड़े वर्ग व क्षेत्र के लिए – शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े हुए वर्गों को खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, समुचित प्रोत्साहन दिया जाएगा।

(v)अल्पसंख्यकों के लिए –  कुछ अल्पसंख्यक समूह शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़े हुए हैं, वे शिक्षा से वंचित हैं। इन समूहों के लिए शिक्षा की व्यवस्था पर अधिक ध्यान दिया जाएगा।

(vi) विकलांगों के लिए –  जिला मुख्यालयों पर विकलांग छात्रों के लिए विकलांगों को व्यावसायिक शिक्षा देने के भी पर्याप्त प्रबन्ध होंगे। राष्ट्रीय शिक्षा-नीति के अन्तर्गत अपंग लोगों की विशेष कठिनाइयों को दूर करने के लिए प्राथमिक कक्षा के अध्यापकों के प्रशिक्षण पर जोर दिया गया है।

(vii) शिक्षा का समान ढाँचा – शिक्षा आयोग (1964-66) ने 10+2+3 के रूप में सारे देश के लिए समान ढाँचे की सिफारिश की है। 1968 के बाद देश के अधिकांश राज्यों ने इस ढाँचे को स्वीकार किया है और बाकी राज्य इसे अपनाने की प्रक्रिया में जुटे हैं। इस उपलब्धि की प्रशंसा करते हुए राष्ट्रीय शिक्षा-नीति, 1986 ने सिफारिश की है कि प्रथम दसवर्षीय शिक्षा में 5 वर्ष प्राथमिक, 3 वर्ष उच्च प्राथमिक व 2 वर्ष माध्यमिक शिक्षा को दिये जाएँ। 5 वर्ष प्राथमिक व 3 वर्ष उच्च प्राथमिक, इस प्रकार कुल मिलाकर 8 वर्ष की आरम्भिक शिक्षा होगी।

3. राष्ट्रीय पाठ्यक्रम ढाँचा – राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने एक राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की रूपरेखा बनायी है, जिसमें कुछ समान तत्त्व होंगे। साथ ही कुछ ऐसे तत्त्व भी होंगे जहाँ लचीली नीति अपनायी जाएगी। आरम्भिक व माध्यमिक स्तर पर पाठ्यक्रम की आधारभूत विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
⦁    विकास के राष्ट्रीय लक्ष्य की प्राप्ति के लिए मानव संसाधनों का विकास।
⦁    सभी बच्चों के लिए प्राथमिक, उच्च प्राथमिक एवं माध्यमिक स्तर तक व्यापक सामान्य शिक्षा का प्रावधान।
⦁    प्राइमरी, उच्च प्राइमरी तथा माध्यमिक स्तर पर पढ़ाई की समान रूपरेखा।
⦁    पाठ्यक्रम में भारत का स्वतन्त्रता आन्दोलन, संवैधानिक दायित्व, राष्ट्रीय अस्मिता को मजबूत बनाना, भारत की समान संस्कृति परम्परा, समता, प्रजातन्त्र, धर्मनिरपेक्षता, स्त्री-पुरुष समानता, पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक विभेद का निराकरण तथा वैज्ञानिक स्वभाव का निर्माण ये प्रमुख तत्त्व हैं। जो समान रूप से सभी स्कूलों में पढ़ाए जाएँगे।

41.

भारत में योजना आयोग के स्थान पर किस आयोग की स्थापना की गई ?

Answer»

नीति आयोग की।

42.

वन अनुसन्धान संस्थान कहाँ स्थित है? (क) जोधपुर(ख) देहरादून(ग) बंगलुरु(घ) राँची

Answer»

सही विकल्प है  (ख) देहरादून।

43.

संक्रामक रोगों पर नियन्त्रण के सन्दर्भ में किये गये सरकारी प्रयास पर टिप्पणी लिखिए।

Answer»

चेचक, मलेरिया, हैजा, प्लेग, फाइलेरिया, क्षय रोग (टी०बी०), कुष्ठ रोग आदि संक्रामक रोगों के नियन्त्रण को नियोजन काल में उच्च प्राथमिकता दी गयी।
चेचक का उन्मूलन कर दिया गया और देश को अप्रैल, 1977 ई० से इस रोग से मुक्त घोषित कर दिया गया है।
राष्ट्रीय मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम 1958 ई० में आरम्भ किया गया। वर्ष 1976 ई० में जहाँ 65 लाख व्यक्ति मलेरिया से पीड़िते हुए, वहीं चलाये गये कार्यक्रमों के कारण वर्ष 2010 में केवल 12 लाख व्यक्ति ही इस रोग से पीड़ित हुए।
देश की जनसंख्या का लगभग पाँचवाँ भाग फाइलेरिया से प्रभावित क्षेत्रों में रहता है। उत्तर प्रदेश, गुजरात एवं आन्ध्र प्रदेश के कुछ चुने हुए जिलों में प्रयोग के तौर पर 1978 में फाइलेरिया नियन्त्रण
की एक व्यूहरचना लागू की गयी थी। मार्च, 1989 ई० में राष्ट्रीय फाइलेरिया नियन्त्रण कार्यक्रम लागू । किया गया, जिससे इस संक्रामक रोग को नियन्त्रित करने में पर्याप्त सफलता मिली है।
भारत में क्षय रोग (टी०बी०) एक मुख्य स्वास्थ्य समस्या है। पूरे विश्व के क्षय रोगियों का एक-तिहाई भाग भारत में है। वर्तमान में क्षय रोग पूर्णत: उपचार योग्य है। देश के राष्ट्रीय क्षय रोग नियन्त्रण कार्यक्रम को विश्व बैंक की सहायता से चलाया जा रहा है।
कुष्ठ रोग यद्यपि देश के सभी भागों में पाया जाता था, किन्तु तमिलनाडु, ओडिशा, आन्ध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, सिक्किम, नागालैण्ड, महाराष्ट्र, कर्नाटक, मणिपुर तथा बिहार में इस रोग का विस्तार बहुत अधिक था। वर्तमान में कुष्ठ रोग पर नियन्त्रण पा लिया गया है तथा अब 13 राज्यों में प्रति 10,000 जनसंख्या पर केवल एक कुष्ठ रोगी है। राष्ट्रीय कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम भी देश में विश्व बैंक की सहायता से चलाया जा रहा हैं।
देश में एड्स सर्वाधिक गम्भीर जनस्वास्थ्य समस्या के रूप में सामने आया है। वर्ष 1998 से राष्ट्रीय स्तर पर एक निगरानी कार्यक्रम को हाथ में लिया गया है जो एच०आई०वी० के जीवाणुओं से ग्रस्त कुल रोगियों की संख्या का अनुमान लगाता है। एड्स के सर्वाधिक मामले कर्नाटक, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर तथा नागालैण्ड राज्यों में पाये गये हैं। राष्ट्रीय एड्स नियन्त्रण कार्यक्रम भी देश में विश्व बैंक की सहायता से चलाया जा रहा है।

44.

भारत में स्वास्थ्य से सम्बद्ध समस्याओं के क्या कारण हैं? सरकार ने इस समस्या को हल करने के लिए क्या कदम उठाये हैं?याभारत में स्वास्थ्य समस्या पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

Answer»

भारत में स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या गम्भीर है। देश में मुख्य बीमारियाँ; जैसे – मलेरिया, कालाजार, क्षय रोग, कुष्ठ रोग, कैन्सर, अन्धता, एड्स आदि लगातार बढ़ती जा रही हैं। भारत में स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या के निम्नलिखित कारण हैं

1. कुपोषण – देश की लगभग 46 प्रतिशत जनसंख्या की मासिक आय इतनी कम है कि वे अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं को पूरा करने में भी असमर्थ हैं। परिणामस्वरूप उनका जीवन-स्तर अत्यन्त निम्न है। ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता स्तर के नीचे रहने वाली जनसंख्या की मासिक आय केवल ₹62 और शहरी क्षेत्रों में ₹71 है। स्पष्ट है कि इस आय द्वारा कोई व्यक्ति अपनी न्यूनतम आवश्यकता, दो समय का भोजन, तन ढकने को सामान्य वस्त्र और रहने को सामान्य आवास भी पूरा नहीं कर सकता। इस प्रकार देश की जनसंख्या का इतना बड़ा भाग अत्यन्त दीन-हीन स्थिति में जीवन व्यतीत कर रहा है। पौष्टिक आहार तो उनके लिए कल्पना समान है। जो माताएँ शिशुओं को जन्म दे रही हैं, उन शिशुओं को न तो दूध प्राप्त हो रहा है और न ही माताओं को पौष्टिक आहार मिल रहा है। इसके अभाव में शिशु व माता मृत्यु को प्राप्त हो रहे हैं या अन्य बीमारियों से प्रभावित हो रहे हैं।
2. पर्यावरण प्रदूषण – पर्यावरणीय प्रदूषण मानव-जाति, समस्त जीव-जन्तुओं एवं वनस्पति के जीवन के लिए भयावह है। प्रदूषण से जान लेवा बीमारियाँ; जैसे–फेफड़े की और साँस की बीमारियाँ, ब्रोंकाइटिस, फेफड़ों के कैन्सर, हैजा, पीलिया आदि बढ़ती जा रही हैं जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव मानव के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है।
3. बढ़ती हुई गन्दगी – ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में गन्दगी बढ़ती जा रही है। निर्धनता व अज्ञानता के कारण भारत में अधिकांश व्यक्ति स्वच्छता की ओर पर्याप्त ध्यान नहीं देते। वे अनेक प्रकार की ऐसी बीमारियों के शिकार हो जाते हैं, जिससे उनका स्वास्थ्य खराब हो जाता है।
4. स्वास्थ्य सुधारों की समस्या – ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सालयों का अभाव है। यदि कोई चिकित्सालय है भी तो वहाँ पर दवाइयों तथा उपकरणों का अभाव है। योग्य एवं अनुभवी डॉक्टर गाँवों में रहना पसन्द नहीं करते। चिकित्सालयों एवं डॉक्टरों के अभाव में स्वास्थ्य बिगड़ जाता है।
5. ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता की ओर ध्यान देना – गाँव के व्यक्ति स्वच्छता की ओर विशेष ध्यान नहीं देते हैं। गाँव के पास कूड़ा-करकट इकट्ठा करना, मल-मूत्र त्याग करना, गन्दे तालाबों से पशुओं को पानी पिलाना व नहलाना, खुले हुए बिना छत के कुओं का होना आदि बातें स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं।
6. स्वास्थ्य के नियमों के प्रति अज्ञानता – अधिकांश ग्रामीण जन आज भी अशिक्षित हैं। उन्हें सन्तुलित आहार, दिनचर्या, योग आदि के विषय में पूर्ण जानकारी नहीं होती है। वे कार्य में इतने अधिक व्यस्त रहते हैं कि स्वास्थ्य की ओर ध्यान ही नहीं दे पाते।
7. अशिक्षा एवं अन्धविश्वास – भारत के ग्रामीण क्षेत्रों की अधिकांश जनता अशिक्षित है; अतः रोगी को अच्छे डॉक्टरों से उपचार न कराकर भूत-प्रेत आदि में विश्वास करके बीमारी को भाग्य के सहारे छोड़ देते हैं, जिसके कारण रोगी गम्भीर रोग से पीड़ित हो जाते हैं तथा दिन-प्रतिदिन उनका स्वास्थ्य बिगड़ता जाता है।
8. निर्धनता – भारत जैसे विकासशील देश में गरीबी का दुश्चक्र चलता रहता है जिससे व्यक्ति निर्धनता की स्थिति में ही बना रहता है। निर्धनता के कारण पर्याप्त भोजन का अभाव रहता है जिससे लोग कुपोषण के शिकार होते हैं और उनका स्वास्थ्य खराब रहता है।

सरकार द्वारा उठाये गये कदम
स्वतन्त्रता के पश्चात् से देश में चिकित्सा, स्वच्छता तथा शिक्षा-सम्बन्धी सुविधाओं के विकास पर विशेष ध्यान दिया गया है। यही कारण है कि देश में जहाँ एक ओर मृत्यु-दर में तेजी से कमी आयी है, वहीं स्त्री तथा पुरुष दोनों की जीवन-प्रत्याशा बढ़ती जा रही है। सरकार ने विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में स्वास्थ्य के प्रति विशेष ध्यान दिया है। स्वतन्त्रता के बाद स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार का श्रेय निम्नलिखित घटकों को जाता है
⦁    संक्रामक बीमारियों के नियन्त्रण कार्यक्रम।
⦁    ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य देखभाल के लिए उचित संरचना (अस्पताल, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, आदि) निर्माण।
⦁     स्वास्थ्य सुविधाओं एवं स्वास्थ्यकर्मियों की संख्या में वृद्धि।
⦁    चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसन्धान का विकास।
⦁    परिवार-कल्याण कार्यक्रम का विस्तार एवं जन्म-दर में कमी।
केन्द्रीय आयोजन पंरिव्यय का लगभग 54 प्रतिशत मलेरिया, तपेदिक, कुष्ठ रोग, एड्स, दृष्टिहीनता आदि के नियन्त्रण हेतु केन्द्रीय प्रायोजित रोग-नियन्त्रण कार्यक्रमों हेतु रखा गया है। रोग-नियन्त्रण कार्यक्रमों के लिए विभिन्न द्विपक्षीय और बहुपक्षीय एजेन्सियों से भारी विदेशी सहायता भी जुटाई गयी है।
गत चार वर्षों के दौरान, केन्द्र और राज्य सरकारों ने प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों का सुदृढ़ीकरण, चल स्वास्थ्य क्लिनिकों का उपयोग, ओषधियों तथा उपभोज्य की आपूर्ति के सम्भारतन्त्र में सुधार और प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों को गैर-सरकारी संगठनों को सौंपने जैसे महत्त्वपूर्ण प्रयास किये हैं। सात राज्यों ने विश्व बैंक की सहायता से प्रथम रेफरल यूनिटों, जिला अस्पतालों की स्थापना हेतु परियोजनाएँ प्रारम्भ की हैं और उनके साथ गरीबी रेखा से ऊपर के लोगों के लिए प्रयोक्ता प्रभारों का चार्ज करने विषयक एक अवयव की शुरुआत की है। तृतीयक स्वास्थ्य देखभाल केन्द्रों में भी दक्ष जनशक्ति, उपस्कर तथा उपभोज्य के सामान्य अभाव के साथ जटिल नैदानिक तथा रोगोपचार तौर-तरीकों की तेजी से माँग बढ़ रही है।
नवीं योजना में क्षमता निर्माण सम्बन्धी निधि-व्यवस्था, गरीबी रेखा से ऊपर के लोगों के सम्बन्ध में प्रयोक्ता प्रभारों की उगाही और देखभाल की बढ़ती लागत को पूरा करने हेतु वैकल्पिक तौर-तरीकों का पता लगाने जैसे उपायों को भी रेखांकित किया गया है।

45.

शिक्षा के सामाजिक आधारभूत ढाँचे को सुदृढ़ करने के लिए केन्द्रीय सरकार द्वारा चलायी गयी योजनाओं में से किन्हीं तीन का वर्णन कीजिए।यासर्व शिक्षा अभियान पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए। 

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शिक्षा की दृष्टि से साधनहीन लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति करने और शिक्षा हेतु सामाजिक आधारभूत ढाँचे को मजबूत बनाने के लिए केन्द्रीय सरकार द्वारा अनेक योजनाएँ प्रारम्भ की गयी हैं, जो निम्नलिखित हैं
⦁    ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड (ओ०बी०)
⦁    जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम (डी०पी०ई०पी०)
⦁    अनौपचारिक शिक्षा (एन०एफ०ई०)
⦁    शिक्षा गारण्टी योजना और वैकल्पिक तथा नवीन शिक्षा (ई०जी०एस०एण्डए०ई०आई०)
⦁    महिला समाख्या, शिक्षक शिक्षा (टी०ई०)
⦁    दोपहर के भोजन की योजना-लोक जुम्बिश, शिक्षाकर्मी परियोजना (जी०एस०के०पी०)
⦁    वर्ष 2001-02 में राज्यों के साथ मिलकर ‘सर्व शिक्षा अभियान

उपर्युक्त योजनाओं में से तीन का वर्णन निम्नलिखित है,

1. ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड – ‘प्रारम्भिक शिक्षा सबको दी जाए’ यह हमारी शिक्षा-नीति का एक महत्त्वपूर्ण लक्ष्य है। हमारे संविधान में 14 वर्ष तक के सभी बच्चों के लिए नि:शुल्क शिक्षा का प्रावधान है। राष्ट्रीय शिक्षा-नीति, 1986 ई० और प्रोग्राम ऑफ ऐक्शन’ के अन्तर्गत प्राथमिक शिक्षा को सभी दृष्टियों से सुधारने के लिए कई सुझाव दिये गये हैं, इनमें से एक है – ‘ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड’। यह एक प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति है। इसका लक्ष्य है-प्राथमिक स्कूलों को दी जाने वाली भौतिक सुविधाओं में आवश्यक सुधार। ‘ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड में अभी तक के सभी प्राइमरी स्कूलों को दी जाने वाली कम-से-कम सुविधाओं का स्तर निश्चित किया गया है।
⦁    प्रत्येक प्राथमिक स्कूल को कम – से – कम दो बड़े कमरे दिये जाएँ जो हर मौसम में काम आ सकें। उनके साथ एक बड़ा बरांडा और दो टॉयलेट होने चाहिए–एक लड़कों के लिए और दूसरा लड़कियों के लिए।
⦁    प्रत्येक प्राथमिक स्कूल में कम – से – कम दो शिक्षक होने चाहिए। अगर सम्भव हो सके तो एक महिला शिक्षिका भी होनी चाहिए।
⦁    प्रत्येक प्राथमिक स्कूल को आवश्यक अध्ययन-अध्यापन सामग्री दी जाए; जैसे – ग्लोब, नक्शे, शिक्षण-चार्ट, कार्यानुभव क्रियाकलापों के टूल्स, विज्ञान किट, गणित किट, पाठ्य-पुस्तकें, पाठ्यरूम, पत्रिकाएँ आदि।
2. अनौपचारिक शिक्षा – ऐसे बच्चे जो बीच में स्कूल छोड़ गये हैं या जो ऐसे स्थान पर रहते हैं, जहाँ स्कूल नहीं हैं या जो काम में लगे हैं और वे लड़कियाँ जो दिन के स्कूल में पूरे समय नहीं आ सकतीं, इन सबके लिए एक विशाल और व्यवस्थित अनौपचारिक शिक्षा का कार्यक्रम चलाया गया है।
अनौपचारिक शिक्षा केन्द्रों में सीखने की प्रक्रिया को सुधारने के लिए आधुनिक टेक्नोलॉजी के उपकरणों की सहायता ली जाएगी। इन केन्द्रों में अनुदेशक के तौर पर काम करने के लिए स्थानीय समुदाय के प्रतिभावान् और निष्ठावान् युवकों और युवतियों को चुना जाएगा और उनके प्रशिक्षण की विशेष व्यवस्था की जाएगी। अनौपचारिक धारा में शिक्षा प्राप्त करने वाले बच्चे योग्यतानुसार औपचारिक धारा के विद्यालयों में प्रवेश पा सकेंगे। इस बात पर पूरा ध्यान दिया जाएगा कि अनौपचारिक शिक्षा का स्तर औपचारिक शिक्षा के समतुल्य हो। अनौपचारिक शिक्षा केन्द्रों को चलाने का अधिकतर कार्य स्वयंसेवी संस्थाएँ और पंचायती राज की संस्थाएँ करेंगी। इस कार्य के लिए इन संस्थाओं को पर्याप्त धन, समय पर दिया जाएगा। इस महत्त्वपूर्ण क्षेत्र का उत्तरदायित्व सरकार पर होगा।
3. सर्व शिक्षा अभियान – वर्ष 2001-02 में राज्यों के साथ मिलकर, सर्व शिक्षा अभियान, प्रारम्भ करके एक समयबद्ध समेकित दृष्टिकोण अपनाकर सभी को प्राथमिक शिक्षा देने के उद्देश्य को पूरा करने के लिए महत्त्वपूर्ण उपाय किये गये। ‘सर्व शिक्षा अभियान’ की योजना को विकेन्द्रीकृत किया। जाएगा और सामुदायिक स्वामित्व और अनुवीक्षण को उच्चतम प्राथमिकता दी जाएगी। यह कार्यक्रम आगे चलकर विदेशी सहायता प्राप्त कार्यक्रमों सहित सभी मौजूदा कार्यक्रमों को अपनी संरचना में सम्मिलित कर लेगा, जिसमें कार्यक्रम कार्यान्वयन की इकाई जिला होगी।
यह मिशन के रूप में प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमीकरण हेतु एक केन्द्र प्रायोजित स्कीम है। इस नये ढाँचे के अन्तर्गत केन्द्रीय और केन्द्र द्वारा प्रायोजित श्रेणी में राज्यों की भागीदारी एवं परामर्श से प्राथमिक शिक्षा के सभी विद्यमान कार्यक्रमों को समाविष्ट किया जाना है। सर्व शिक्षा अभियान के लक्ष्य निम्नलिखित हैं

⦁    वर्ष 2003 तक 6 – 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चे स्कूलों/शिक्षा गारण्टी केन्द्रों/ब्रिज पाठ्यक्रमों में हों।
⦁    वर्ष 2007 तक 6 – 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चे पाँच वर्ष की प्राथमिक शिक्षा पूरी करें।
⦁    वर्ष 2010 तक 6 – 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चे स्कूली शिक्षा के आठ वर्ष पूरे करें।
⦁    जीवन के लिए शिक्षा पर जोर देते हुए सन्तोषजनक स्तर की बुनियादी शिक्षा पर ध्यान देना।
⦁    प्राथमिक स्तर पर वर्ष 2007 तक और बुनियादी शिक्षा के स्तर पर वर्ष 2010 तक सभी लिंग – सम्बन्धी और सामाजिक वर्गीकरण के अन्तरों को समाप्त करना।
⦁    वर्ष 2010 तक सार्वजनिक तौर पर स्कूली शिक्षा लेना।

46.

ग्रामीण स्वच्छता पर एक निबन्ध लिखिए। इसके लिए सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदमों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।

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स्वच्छता के अन्तर्गत मल-मूत्र को हटाने, वर्षा-जल और प्रवाहित द्रव्य के निकास तथा कूड़ा-करकट के निस्तारण के प्रबन्ध आते हैं। उचित एवं पर्याप्त स्वच्छता स्वास्थ्य, उत्पादकता एवं जीवन की गुणवत्ता में सुधार की अनिवार्य शर्ते हैं। देश में स्वच्छता की स्थिति विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में दयनीय है।
केन्द्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम ग्रामीण लोगों के रहन-सहन को सुधारने तथा महिलाओं को गोपनीयता तथा अस्मिता प्रदान करने के उद्देश्य से वर्ष 1986 में शुरू किया गया। स्वच्छता की धारणा में ठोस व तरल कूड़ा-करकट, जिसमें मानव मल-मूत्र भी सम्मिलित है, का सुरक्षित तरीके से समापन और व्यक्तिगत, घरेलू तथा वातावरण की स्वच्छता सम्मिलित है। केन्द्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम के अन्तर्गत आवंटित केन्द्रीय निधियों से राज्यों को क्षेत्र की न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के अन्तर्गत उपलब्ध कराये गये संसाधनों की अनुपूर्ति की जाती है।

इस कार्यक्रम के उद्देश्य निम्नलिखित हैं

⦁     ग्रामीण जनता, विशेषकर गरीबी की रेखा से नीचे बसर करने वाले परिवारों को स्वच्छता सुविधाएँ उपलब्ध कराने में तेजी लाना, जिससे ग्रामीण जलापूर्ति के प्रयासों में सहायता मिले।
⦁     स्वैच्छिक संगठनों तथा पंचायती राज संस्थाओं की सहायता से और स्वास्थ्य शिक्षा के माध्यम से सफाई के प्रति जागरूकता पैदा करना।
⦁     सभी विद्यमान शुष्क शौचालयों को कम लागत वाले स्वच्छ शौचालयों में बदलकर सिर पर मैला ढोने की प्रथा को समाप्त करना।
⦁    अन्य उद्देश्यों के लिए कम लागत वाली और उपयुक्त प्रौद्योगिकियों को प्रोत्साहन देना।

कार्यक्रम के घटक
⦁    गरीबी की रेखा से नीचे जीवन व्यतीत करने वाले परिवारों के लिए, जहाँ आवश्यक हो, 80 प्रतिशत सब्सिडी सहित अलग-अलग शौचालयों का निर्माण करना।
⦁     अन्य परिवारों को सैनिटरी मार्ट सहित बाजारों से सुविधाएँ प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहन देना।
⦁    सैनिटरी मार्ट की स्थापना में मदद करना।
⦁     चयनित क्षेत्रों में जोरदार जागरूकता अभियान शुरू करना।
⦁     विशेष रूप से महिलाओं के लिए स्वच्छ शौचालय परिसरों की स्थापना करना।
⦁    शौचालयों के स्थानीय रूप से उपयुक्त तथा स्वीकार्य मॉडलों को प्रोत्साहन देना।
⦁    तरल व ठोस कूड़ा-करकट के निपटान के लिए सोखता-गड़ों का निर्माण करके गाँव की पूर्ण स्वच्छता को बढ़ावा देना।

सरकार द्वारा उठाये जा रहे कदम – केन्द्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम को वर्ष 1999 में नये सिरे से तैयार किया गया, जिसका उद्देश्य ग्रामीण गरीब लोगों को पर्याप्त स्वच्छता सुविधाएँ उपलब्ध कराना, स्वास्थ्य शिक्षा के सम्बन्ध में जागरूकता बढ़ाना, मौजूद सभी शुष्क शौचघरों को कम लागत के सुलभ शौचालयों में परिवर्तित कर सिर पर मैला ढोने की समस्या का उन्मूलन करना है। इसके अन्तर्गत देश में विभिन्न चरणों में समग्र तौर पर स्वच्छता अभियानों को कार्यान्वयन किया जा रहा है। प्रथम चरण के अन्तर्गत राज्यों द्वारा 58 पायलट जिलों में कार्यान्वयन हेतु पहचान की गयी और इसे सम्पूर्ण देश में 150 जिलों तक बढ़ाया गया है।
ग्रामीण स्कूल स्वच्छता कार्यक्रम को एक मुख्य अवयव के रूप में और ग्रामीण लोगों की प्रारम्भिक स्तर पर इसे व्यापक स्वीकृति के तौर पर आरम्भ किया गया है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य नौवीं योजना के अन्त तक सभी ग्रामीण स्कूलों में शौचघरों का निर्माण कराना है।
नौवीं योजना के प्रारम्भ में स्वच्छता सुविधाओं के साथ ग्रामीण जनसंख्या का कवरेज नौवीं योजना के प्रारम्भ में लगभग 17 प्रतिशत था। इसमें इस योजना के प्रथम कुछ वर्षों के दौरान लगभग तीन प्रतिशत अथवा इसके आसपास वृद्धि हुई।
गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले व्यक्तियों विशेष रूप से अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति तथा मुक्त बन्धुआ श्रमिकों के लिए व्यक्तिगत सुलभ शौचालयों का निर्माण किया जाता है।
वर्ष 2007-08 के बजट में ₹1,060 करोड़ की ग्रामीण स्वच्छता के लिए व्यवस्था की गयी है, जो 75 प्रतिशत आवंटनों सहित राज्यों द्वारा निर्णय किये जाने वाले चयनित जिलों में सम्पूर्ण सफाई अभियान के लिए है।

47.

ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा-व्यवस्था पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

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स्वास्थ्य विकास में उच्चतम प्राथमिकता ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त स्वास्थ्य सेवा (देखभाल) व्यवस्था के निर्माण को दी गयी है। यह मद न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रमों तथा नये बीस सूत्री कार्यक्रम में सम्मिलित की गयी है। जून, 1999 ई० तक ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था जिसमें स्वास्थ्य सेवा को परिवार नियोजन के साथ संयोजित किया गया है, के अन्तर्गत देश में उपकेन्द्र, प्राथमिक केन्द्र तथा सहायक स्वास्थ्य केन्द्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र थे। सन् 2000 तक 5,000 जनसंख्या के लिए (पहाड़ी तथा आदिवासी क्षेत्रों में 3,000 के लिए) एक उपकेन्द्र तथा 30,000 जनसंख्या (पहाड़ी तथा आदिवासी क्षेत्रों में 20,000) के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया था, जिसे वर्ष 1990-91 में ही प्राप्त कर लिया गया।

प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र – प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा का केन्द्र बिन्दु है। यह योजना पहली पंचवर्षीय योजना में आरम्भ की गयी थी। उस समय से इनकी संख्या में वृद्धि हो गयी है। वर्ष 1977-78 से वर्तमान ग्रामीण डिस्पेन्सरियों का दर्जा बढ़ाकर उन्हें एक नये वर्ग सहायक स्वास्थ्य केन्द्रों में बदल दिया गया। उनके कार्यों में अब लोक स्वास्थ्य कार्य भी जोड़ दिया गया है।
उपकेन्द्र – उपकेन्द्र परिवार कल्याण कार्यक्रम के लिए अति आवश्यक है, क्योंकि इन उपकेन्द्रों से ग्रामीण लोगों को सेवाएँ और सप्लाई (सामग्री) प्रदान की जाती है। पिछले समय में सहायक नर्स-दाइयों की सीमित प्रशिक्षण क्षमता तथा वित्तीय संसाधनों की कमी के कारण उपकेन्द्रों की स्थापना में बाधा पड़ी है। हाल के वर्षों में इनमें पुन: तेज प्रगति हुई है और जिन उपकेन्द्रों के पास अपने भवन नहीं थे, उन्हें अपने भवन देने का लक्ष्य रखा गया है।
सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र – 1,00,000 व्यक्तियों के लिए एक गुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र स्थापित करने की योजना है, जिसमें कम-से-कम 30 बिस्तर उपलब्ध हों तथा साथ ही स्त्री रोग चिकित्सा, शारीरिक रोग चिकित्सा, शल्य चिकित्सा और ओषधि सहित विशिष्ट सुविधाएँ उपलब्ध हों।

48.

सामाजिक वानिकी से आप क्या समझते हैं?

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वनों का समाजोन्मुख बनाकर सम्वर्द्धन तथा संरक्षण की नीति को सामाजिक वानिकी नीति कहा जाता है।

49.

सामाजिक वानिकी के क्या लाभ हैं? यासामाजिक वानिकी से प्राप्त होने वाले किन्हीं दो प्रमुख लाभों का उल्लेख कीजिए।

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⦁     सामाजिक वानिकी द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों की परती एवं बेकार पड़ी भूमि का व्यावसायिक उपयोग किया जाना सम्भव होता है।
⦁     सामाजिक वानिकी द्वारा मृदा में नमी का संरक्षण बनाए रखना सम्भव हो पाता है, जिससे बाढ़ और सूखे का प्रकोप कम हो जाता है।

50.

सामाजिक वानिकी किसे कहते हैं? सामाजिक वानिकी की आवश्यकता एवं महत्त्व को बताइए।

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सामाजिक वानिकी का अर्थ
वनों को समाजोन्मुख बनाकर सम्वर्द्धन तथा संरक्षण की नीति को सामाजिक वानिकी नीति कहा गया है।” वनों के समीप के ग्रामीण वनों से अनियन्त्रित चारा एवं लकड़ी काटते हैं। ठेकेदार आदि लाभ के लोभ में वनों की अनियमित एवं अनियन्त्रित कटाई कर देते हैं जिसके कारण दिन-प्रतिदिन वनों का ह्रास हो रहा है। वनों के विनाश को देखकर वन-विभाग द्वारा वनों के रक्षण की नीति अपनायी गयी। ग्रामीणों को चारा तथा लकड़ी काटने पर वन विभाग द्वारा रोक लगा दी गयी। इस प्रकार वन-विभाग द्वारा वनों की सुरक्षा होने लगी। वन विभाग की कंड़ी सुरक्षा के कारण लोगों को असुविधा होने लगी जिसके कारण सामान्य जन का वनों से लगाव कम हो गया। ऐसी स्थिति में वन नीति पर पुनर्विचार किया गया तथा यह अनुभव किया गया कि वनों का विकास तभी सम्भव है जब वनों तथा सामान्य लोगों के मध्य पारस्परिक निर्भरता तथा उत्तरदायित्व का विकास किया जाए, वनों को समाजोन्मुख बनाकर ही वनों का विकास एवं संरक्षण किया जा सकता है।
सामाजिक वानिकी कार्यक्रम के अन्तर्गत समाज के लोग स्वयं वृक्षों को लगाते हैं, वनों को सुरक्षा प्रदान करते हैं तथा वनों के विकास में सहयोग देते हैं। यह योजना जन सहयोग पर आधारित है। लक्ष्य यह कि कोई भी भूमि जहाँ पेड़ लग सकते हैं पेड़ों से खाली न रहे। ग्राम समाजों, विकास खण्डों, जिला पंचायतों, स्कूलों, कॉलेजों एवं विश्वविद्यालयों के माध्यम से वृहद् स्तर पर वृक्षारोपण का कार्यक्रम क्रियान्वित किया जाए। वनों की सुरक्षा के लिए अलग चरागाह होने चाहिए।

सामाजिक वानिकी की आवश्यकता एवं महत्त्व
सन्तुलित पर्यावरण की संरचना पर मानव-जीवन का सुख निर्भर है और वन सन्तुलित पर्यावरण का प्रमुख घटक है। यह तभी सम्भव है जब हम अपनी प्राकृतिक निधियों को नष्ट न होने दें, बल्कि उन्हें संजोकर रखें। पर्यावरण में सन्तुलन होगा तो वर्षा होगी, स्वच्छ जल मिलेगा तथा वन बने रहेंगे, परिणामस्वरूप वनों की रक्षा से पर्यावरण सन्तुलित होगा, जिससे सम्पूर्ण प्राणि-जगत् को कल्याण होगा। वातावरण और पारिस्थितिकी में सन्तुलन स्थापित होगा।
वृक्ष जन्म से लेकर मृत्यु तक हमारे साथी हैं। मनुष्य प्राचीन काल से अद्यतन दैनिक आवश्यकताओं की वस्तुएँ वनों से ही प्राप्त करता आ रहा है; यथा-भवन निर्माण हेतु इमारती लकड़ी, बाँस, घास, फर्नीचर की लकड़ी, ओषधियाँ, खाने के लिए विभिन्न प्रकार के फल-फूल आदि।
सुखमय भविष्य एवं स्वच्छ पर्यावरण के लिए वृक्षों को लगाना, वनों का संरक्षण एवं सम्वर्द्धन करना अति आवश्यक है। वृक्षों के द्वारा ही पर्यावरण के प्रदूषण पर नियन्त्रण किया जा सकता है। वृक्षारोपण से रोजगार के अवसर उपलब्ध होते हैं। कुछ वृक्ष ओषधियाँ प्रदान करते हैं। उपर्युक्त बातों से सामाजिक वानिकी की उपयोगिता सिद्ध होती है। इसी से विश्व-कल्याण एवं मानव-कल्याण सम्भव है।
पालतू पशुओं एवं वन्य-जन्तुओं के लिए घास-पत्ती, फल-फूल तथा आवासीय सुविधा वृक्षों से ही प्राप्त होती है। मांसाहारी पशु-शाकाहारी जन्तुओं पर आश्रित रहते हैं। शाकाहारी जन्तु वनस्पतियों पर आश्रित रहते हैं। इस प्रकार सभी जीवधारी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वनस्पतियों पर आश्रित रहते हैं। 

अनेक उद्योगों के लिए कच्चा माल वृक्षों से ही प्राप्त होता है; जैसे – दियासलाई, कागज, प्लाइवुड, पैकिंग केस, लाख, कत्था, तारपीन, बिरोजा, खेलकूद का सामान तथा विभिन्न प्रकार के काष्ठोपकरण हेतु उपयोगी काष्ठ।
वृक्ष प्राण-वायु (ऑक्सीजन) प्रदान करते हैं। श्वसन में प्रत्येक जीवधारी अशुद्ध वायु (कार्बन डाइ-ऑक्साइड) छोड़ते हैं और शुद्ध वायु (ऑक्सीजन) ग्रहण करते हैं। वृक्ष अशुद्ध वायु (कार्बन डाइ-ऑक्साइड को अपने भोजन बनाने में ग्रहण करते हैं और शुद्ध वायु (ऑक्सीजन) छोड़ते हैं। यह शुद्ध वायु हमें सभी प्राणियों की प्राण वायु है। इस प्रकार वृक्ष वायुमण्डल में विभिन्न गैसों को सन्तुलन बनाये रखते हैं।
वृक्षों से जलवायु का नियन्त्रण एवं भूमि संरक्षण होता है। वर्षा को सन्तुलित करना, गर्मी-सर्दी को अनुकूल रखना तथा हवा व पानी के वेग को नियन्त्रित रखकर मिट्टी के कटाव को रोकना, वृक्षों और वनों का ही काम है।