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101.

लौटती हुई मानसूनी हवाओं की ऋतु कब होती है ?(A) मार्च-मई(B) अक्टूबर-नवम्बर(C) जनवरी-फरवरी(D) जुलाई-अगस्त

Answer»

(B) अक्टूबर-नवम्बर

102.

कोरिआलिस बल किसे कहते हैं?

Answer»

पृथ्वी के अपनी धुरी पर घूमने के कारण उत्पन्न आभासी बल को कोरिआलिस बल कहते हैं। कोरिआलिस बल के कारण पवन उत्तरी गोलार्द्ध में दाहिनी ओर और दक्षिणी गोलार्द्ध में बायीं ओर मुड़ जाती है। हवाओं के इस प्रकार मुड़ने को ‘फेरेल का नियम’ कहते हैं।

103.

अन्तः उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र किसे कहते हैं?

Answer»

ये विषुवतीय अक्षांशों में विस्तृत गर्त एवं निम्न दाब का क्षेत्र होता है। यहीं पर उत्तर-पूर्वी एवं दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक पवनें आपस में मिलती हैं। यह अभिसरण क्षेत्र विषुवत् वृत्त के लगभग समानांतर होता है, लेकिन सूर्य की आभासी गति के साथसाथ यह उत्तर या दक्षिण की ओर खिसकता है।

104.

रिक्त स्थानों की पूर्ति-भारत में अधिकतर (75 से 90 प्रतिशत तक) वर्षा जून से …………. तक होती है।भारत में पश्चिमी चक्रवातों से होने वाली वर्षा ………….. की फ़सल के लिए लाभप्रद होती है।आम्रवृष्टि ……………… की फ़सल के लिए लाभदायक होती है।भारत के ………….. तट पर सर्दियों में वर्षा होती है।भारत के तटवर्ती क्षेत्रों में ……………… जलवायु मिलती है।

Answer»
  1. सितम्बर
  2. रबी
  3. फूलों
  4. कोरोमण्डल
  5. सम।
105.

निम्नलिखित विधानों के कारण दीजिए:शीत ऋतु में तमिलनाडू में वर्षा होती है ।

Answer»

शीत ऋतु में हवाएँ स्थल भाग से जल भाग की ओर चलती है । इन हवाओं में नमी की मात्रा कम होती है ।

  • जब ये पवने बंगाल की खाड़ी पर होकर गुजरते हुए नमी ग्रहण कर लेती है ।
  • तमिलनाडू का (कारोमण्डल) तट इनके मार्ग में आ जाता है ।
  • इस कारण शीत ऋतु में तमिलनाडू में वर्षा होती है ।
106.

लौटती हुई मानसून के समय मौसमी विशेषताओं को प्रस्तुत कीजिए।

Answer»

लौटती हुई मानसून के समय मौसम की दशाएँ इस प्रकार होती हैं-

⦁    अक्टूबर-नवम्बर को मध्यकाल लौटती हुई मानसून का समय होता है। यह वर्षा ऋतु के गर्म मौसम से सर्दी के शुष्क मौसम में परिवर्तित होने का समय है।

⦁    भारत के पूर्वी तट के डेल्टाई क्षेत्र में चक्रवात सामान्यतः आते रहते हैं। गोदावरी, कृष्णा एवं कावेरी नदियों में सघन आबादी वाले डेल्टा प्रदेशों में अक्सर चक्रवात आते हैं, जिसके कारण बड़े पैमाने पर जान एवं माल की क्षति होती है।

⦁    कभी-कभी ये चक्रवात ओडिशा, पश्चिम बंगाल एवं बांग्लादेश के तटीय क्षेत्रों में भी पहुँच जाते हैं। कोरोमंडल तट पर अधिकतर वर्षा इन्हीं चक्रवातों तथा अवदाबों से होती हैं।

⦁    दिन में आर्द्रता अधिक व तापमान उच्च होता है जबकि रातें ठण्डी, और सुहानी होती हैं। इसे सामान्यतः ‘क्वार की उमस’ के नाम से जाना जाता है।

⦁    अक्टूबर के उत्तरार्द्ध में, विशेषकर उत्तरी भारत में तापमान तेजी से गिरने लगता है। नवम्बर के प्रारंभ में, उत्तर पश्चिम भारत के ऊपर निम्न दाब वाली अवस्था बंगाल की खाड़ी पर स्थानांतरित हो जाती है। यह स्थानांतरण चक्रवाती निम्न दाब से संबंधित होता है, जो कि अंडमान सागर के ऊपर उत्पन्न होता है।

107.

‘क्वार की उमस’ से आप क्या समझते हैं?

Answer»

मानसून की वापसी होने से आसमान निर्मल होता है और तापमान में वृद्धि होती है। दिन का तापमान उच्च होता. है जबकि रातें ठण्डी एवं सुहानी होती हैं। स्थल अभी भी आई होता है। दिन में उच्च तापमान व आर्द्रता वाली अवस्था के कारण दिन का मौसम कष्टकारी होता है। इसे सामान्यतः ‘क्वार की उमस के नाम से जाना जाता है।

108.

पश्चिमी विक्षोभ से आप क्या समझते हैं?

Answer»

भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान एवं नेपाल में भूमध्य सागर से उत्पन्न होने वाले अतिरिक्त उष्णकटिबंधीय तूफानों को पश्चिमी विक्षोभ कहा जाता है जो सर्दियों के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भागों में अचानक वर्षा एवं हिमपात का कारण बनते हैं।

109.

शीत ऋतु की अवस्था एवं उसकी विशेषताएँ बताएँ।।

Answer»

उत्तरी भारत में शीत ऋतु मध्य नवम्बर से शुरू होकर फरवरी तक विद्यमान रहती है। इस मौसम में आकाश मेघरहित एवं स्वच्छ रहता है। तापमान कम रहता है और मन्द गति से हवाएँ चलती हैं। तापमान दक्षिण से उत्तर की ओर बढ़ने पर घटता जाता है। दिसम्बर एवं जनवरी सबसे ठंडे महीने होते हैं। उत्तर में तुषारापात सामान्य है तथा हिमालय के उपरी ढालों पर हिमपात होता है। इस ऋतु में देश में उत्तर-पूर्वी व्यापारिक पवनें प्रवाहित होती हैं। ये स्थल से समुद्र की ओर बहती हैं तथा इसलिए देश के अधिकतर भाग में शुष्क मौसम होता है। इन पवनों के कारण कुछ मात्रा में वर्षा तमिलनाडु के तट पर होती है, क्योंकि वहाँ ये पवनें समुद्र से स्थल की ओर बहती हैं जिससे ये अपने साथ आर्द्रता लाती हैं।

देश के उत्तरी भाग में, एक कमजोर उच्च दाब का क्षेत्र बन जाता है, जिसमें हलकी पवनें इस क्षेत्र से बाहर की ओर प्रवाहित होती हैं। उच्चावच से प्रभावित होकर ये पवन पश्चिम एवं उत्तर-पश्चिम से गंगा घाटी में बहती है। शीत ऋतु में उत्तरी मैदानों में पश्चिम एवं उत्तर-पश्चिम से चक्रवाती विक्षोभ का अंतर्वाह विशेष लक्षण है। यह कम दाब वाली प्रणाली भूमध्यसागर एवं पश्चिमी एशिया के ऊपर उत्पन्न होती है तथा पश्चिमी पवनों के साथ भारत में प्रवेश करती है। इसके कारण शीतकाल में मैदानों में वर्षा होती है तथा पर्वतों पर हिमपात, जिसकी उस समय बहुत अधिक आवश्यकता होती है। यद्यपि शीतकाल में वर्षा की कुल मात्रा कम होती है, लेकिन ये रबी फसलों के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण होती है।

110.

दिल्ली और जोधपुर में अधिकतर वर्षा लगभग तीन महीनों में होती है, लेकिन त्रिवेन्द्रम (तिरुवन्तपुरम् ) और शिलांग में वर्ष के नौ महीनों तक वर्षा होती है। क्यों?

Answer»

दिल्ली और जोधपुर में अधिकतर वर्षा केवल आगे बढ़ते हुए मानसून की ऋतु में होती है। इन नगरों में इस ऋतु की अवधि केवल तीन मास की होती है। इसके विपरीत त्रिवेन्द्रम (तिरुवन्तपुरम्) एक तटीय प्रदेश है तथा शिलांग एक पर्वतीय प्रदेश। इन प्रदेशों में आगे बढ़ते हुए मानसून की ऋतु के साथ-साथ पीछे हटते मानसून की ऋतु तथा ग्रीष्म ऋतु के अन्त में भी पर्याप्त वर्षा होती है। इस प्रकार इन स्थानों पर वर्षा की अवधि लगभग 9 मास होती है।

111.

बंगाल की खाड़ी से आनेवाली मानसूनी हवाएँ भारत में किन-किन प्रदेशों में वर्षा करती है ?

Answer»

बंगाल की खाड़ी से आनेवाली मानसूनी हवाएँ पश्चिम बंगाल से प्रवेश करती है ।

  • ये पवनें आगे बढ़कर मेघालय में खूब बारीस करती है । मेघालय की गारो, खासी, जंयतियाँ पहाड़ी ढलानों पर खूब वर्षा होती हैं ।
  • पश्चिम की ओर मुडकर बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश तथा हरियाणा तक के क्षेत्रों में बारीस करती है ।
112.

वृष्टि छाया क्षेत्र से आप क्या समझते हैं?

Answer»

वह क्षेत्र जो किसी पर्वत की पवनविमुख ढाल पर पड़ता है वृष्टि छाया क्षेत्र कहलाता है। ऊँचे पर्वत ठण्डी व गर्म पवनों के लिए रुकावट का काम करते हैं किन्तु यदि ये वर्षा करने वाली पवनों को रोकने के लिए पर्याप्त ऊँचे होते तो ये वर्षा भी करा सकते थे। पर्वत की पवनविमुख ढाल शुष्क रह जाती है। उदाहरण के लिए, पश्चिमी घाट तथा पूर्वी घाट भारत के प्रमुख वृष्टि छाया क्षेत्र हैं।

113.

पर्वतीय वर्षा केवल पर्वतों पर होती है, स्पष्ट करें।

Answer»

जब मानसून के बादल समुद्र से धरातल की तरफ आते हैं तो समुद्र के ऊपर से आने के कारण उनमें काफी नमी हो जाती है। कई बार इनके रास्ते में पर्वत रुकावट बन जाते हैं तथा यह बादल ऊपर उठ जाते हैं। ऊपर जाकर यह ठण्डे हो जाते हैं तथा इनमें संघनन शुरू हो जाता है। इस कारण वहाँ पर वर्षा शुरू हो जाती है। क्योंकि इस प्रकार की वर्षा का कारण पर्वत होते हैं इसलिए यह केवल पर्वतीय क्षेत्रों में होती है।

114.

भारत में वर्षण के वार्षिक वितरण का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।

Answer»

वर्षण से अभिप्राय वर्षा, हिमपात तथा आर्द्रता के अन्य रूपों से है। भारत में वर्षण का वितरण बहुत ही असमान है। भारत के पश्चिमी तट तथा उत्तर पूर्वी भागों में 300 सें० मी० से अधिक वार्षिक वर्षा होती है। परन्तु पश्चिमी राजस्थान तथा इसके निकटवर्ती पंजाब, हरियाणा तथा गुजरात के क्षेत्रों में वार्षिक वर्षा की मात्रा 50 सें० मी० से भी कम है। इसी प्रकार दक्कन के पठार के आन्तरिक भागों तथा लेह (कश्मीर) के आसपास के प्रदेशों में भी बहुत कम वर्षा होती है। देश के शेष भागों में साधारण वर्षा होती है। हिमपात हिमालय के उच्च क्षेत्रों तक सीमित रहता है।

115.

सूनामी कौन सी भाषा का शब्द है ?(i) फ्रांसीसी(ii) जापानी(iii) पंजाबी(iv) अंग्रेजी।

Answer»

सही विकल्प है (ii) जापानी।

116.

भारत में होने वाली मानसूनी वर्षा एवं उसकी विशेषताएँ बताएँ।

Answer»

भारत में वार्षिक वर्षा की औसत मात्रा 118 सेंटीमीटर के लगभग है। यह समस्त वर्षा मानसूनी पवनों द्वारा प्राप्त होती है।

इस मानसूनी वर्षा की विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

⦁    भारत में मानसून की अवधि जून से शुरू होकर सितम्बर के मध्य तक होती है। इसकी औसत अवधि 100 से 120 दिन तक होती है। मानसून के आगमन के साथ ही सामान्य वर्षा में अचानक वृद्धि हो जाती है। यह वर्षा लगातार कई दिनों तक होती रहती है। आर्द्रतायुक्त पवनों के जोरदार गरज व चमक के साथ अचानक आगमन को ‘मानसून प्रस्फोट’ के नाम से जाना जाता है।

⦁    मानसून में आई एवं शुष्क अवधियाँ होती हैं जिन्हें वर्षण में विराम कहा जाता है।

⦁    वार्षिक वर्षा में प्रतिवर्ष अत्यधिक भिन्नता होती है।

⦁    यह कुछ पवनविमुखी ढलानों एवं मरुस्थल को छोड़कर भारत के शेष क्षेत्रों को पानी उपलब्ध कराती है।

⦁    वर्षा का वितरण भारतीय भूदृश्य में अत्यधिक असमान है। मौसम के प्रारंभ में पश्चिमी घाटों की पवनमुखी ढालों पर भारी वर्षा होती है अर्थात् 250 सेमी से अधिक। दक्कन के पठार के वृष्टि छाया क्षेत्रों एवं मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, तथा लेह में बहुत कम वर्षा होती हैं। सर्वाधिक वर्षा देश के उत्तरपूर्वी क्षेत्रों में होती है।

⦁    उष्णकटिबंधीय दबाव की आवृत्ति एवं प्रबलता मानसून वर्षण की मात्रा एवं अवधि को निर्धारित करते हैं।
⦁    भारत के उत्तर पश्चिमी राज्यों से मानसून सितम्बर के प्रारंभ में वापसी शुरू कर देती है। अक्टूबर के मध्य तक यह देश के उत्तरी हिस्से से पूरी तरह लौट जाती है और दिसम्बर तक शेष भारत से भी मानसून लौट जाता है।

⦁    मानसून को इसकी अनिश्चितता के कारण भी जाना जाता है। जहाँ एक ओर यह देश के कुछ हिस्सों में बाढ़ ला देता है, वहीं दूसरी ओर यह देश के कुछ हिस्सों में सूखे का कारण बन जाता है।

भारत में मानसूनी वर्षा के प्रभाव को निम्न रूप में देखा जा सकता है-

⦁    मानसून भारत को एक विशिष्ट जलवायु पैटर्न उपलब्ध कराती है। इसलिए विशाल क्षेत्रीय भिन्नताओं की उपस्थिति के बावजूद मानसून देश और इसके लोगों को एकता के सूत्र में पिरोने वाला प्रभाव डालती है।

⦁    भारतीय कृषि मुख्य रूप से मानसून से प्राप्त पानी पर निर्भर है। देरी से, कम या अधिक मात्रा में वर्षा का फसलों पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।

⦁    वर्षा के असमान वितरण के कारण देश में कुछ सूखा संभावित क्षेत्र हैं जबकि कुछ बाढ़ से ग्रस्त रहते हैं।

117.

लू क्या होती है ?

Answer»

गर्म ऋतु में कम दबाव का क्षेत्र उत्पन्न होने के कारण चलने वाली धूल भरी हवाओं को लू कहा जाता है।

118.

भारत की वार्षिक औसत वर्षा कितनी है?

Answer»

भारत की वार्षिक औसत वर्षा 118 सें० मी० है।

119.

उत्तर-भारत में पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा की मात्रा क्यों घटती जाती है?

Answer»

हवाओं में निरंतर कम होती आर्द्रता के कारण उत्तर भारत में पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा की मात्रा कम होती जाती है। बंगाल की खाड़ी से उठने वाली आर्द्र पवनें जैसे-जैसे आगे और आगे बढ़ती हुई देश के आंतरिक भागों में जाती हैं, वे अपने साथ लायी गयी अधिकतर आर्द्रता खोने लगती हैं।                         

इसी के परिणामस्वरूप पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा धीरे-धीरे घटने लगती है। राजस्थान एवं गुजरात के कुछ भागों में बहुत कम वर्षा होती है। कोलकाता से दिल्ली की ओर बढ़ने पर वर्षा धीरे-धीरे घटती जाती है। उदाहरण के लिए, कोलकाता में जहाँ 162 सेमी वर्षा होती है वहीं वाराणसी में 107 सेमी तथा दिल्ली में 56 सेमी वर्षा होती है। मानसून शाखा का दबाव और उसकी आर्द्रता पश्चिम की ओर क्रमशः घटती जाती है। यही कारण है कि मानसून की इस शाखा के दिल्ली तक पहुँचते-पहुँचाते वर्षा करने की क्षमता घटती जाती है।

120.

पर्वतीय वर्षा एवं वृष्टि-छाया प्रदेश किसे कहते हैं?

Answer»

निम्न वायुभार उच्च वायुभार को अपनी ओर आकर्षित करता है। यदि उच्च वायुभार राशि किसी जल आप्लावित क्षेत्र से होकर गुजरे तो वह आर्द्रतायुक्त हो जाती है। जब इसके मार्ग में कोई पर्वत शिखर या पठार अवरोधस्वरूप उपस्थित होता है तो वायुराशि द्रवीभूत होकर वर्षा करती है। इस प्रकार होने वाली वर्षा को पर्वतीय वर्षा या उच्चावचीय वर्षा कहते हैं। मध्यवर्ती अक्षांशों में शरद् ऋतु एवं शीत ऋतु के आरम्भ में तथा मानसूनी प्रदेशों में ग्रीष्म ऋतु में इसी प्रकार की वर्षा होती है।
वायुराशियों द्वारा अवरोध के सम्मुख वाले भाग में अत्यधिक वर्षा होती है, जबकि विमुख भागों तक पहुँचते-पहुँचते वायुराशियों की आर्द्रता समाप्त हो जाती है। इन प्रदेशों को वृष्टि-छाया प्रदेश के नाम से पुकारा जाता है। उदाहरण के लिए भारत में दक्षिण-पश्चिमी मानसूनी पवनों की अरब सागरीय शाखा द्वारा पश्चिमी घाट के वायु अभिमुख ढाल पर 640 सेमी (महाबलेश्वर में) वर्षा हो जाती है, जबकि इसके विमुख ढाल पर पुणे में मात्रा 50 सेमी या उससे भी कम वर्षा होती है। अत: दक्षिण भारत का यह क्षेत्र वृष्टि-छाया प्रदेश कहलाता है।

121.

नक्शे पर समान वर्षा, क्षेत्र को जोड़ने वाली रेखाओं को क्या कहते हैं ?(i) आइसोथर्म(ii) आईसोहाईट(iii) आईसोबार(iv) कोई नहीं।

Answer»

(ii) आईसोहाईट।

122.

देश की सबसे अधिक वर्षा कौन-सी पहाड़ियों में होती है ?

Answer»

मेघालय की पहाड़ियों में।

123.

मासिनराम की वार्षिक वर्षा की मात्रा कितनी है ?

Answer»

1141 से० मी०।

124.

वर्षा का क्रमभंग किसे कहते हैं ?

Answer»

मानसूनी वर्षा कुछ दिनों तक एकसाथ पड़ती है, उस समय वर्षा न हों ऐसे भी दिन आते हैं और फिर से वर्षा के दिन आते हैं । इस घटना को वर्षा का क्रमभंग कहते हैं ।

125.

गुजरात में वर्षा कम क्यों होती है ?

Answer»

गुजरात में बहुत ऊँचे पर्वत या घने जंगल नहीं है, इस कारण इन हवाओं में नमी का पूर्णतः संघनन की संभावना कम रहती है, इस कारण गुजरात में बारिस कम होती हैं ।

126.

दक्षिण-पश्चिम मानसून की अरब सागर शाखा से भारत के किन भागों में वर्षा होती है?

Answer»

दक्षिण-पश्चिम मानसून की अरब सागर शाखा को तीन उपशाखाओं में बाँटा जा सकता है-

⦁    पश्चिमी घाट को प्रभावित करने वाली शाखा
⦁    विंध्या-सर्तपुड़ा मध्य शाखा
⦁    सौराष्ट्र-कच्छ शाखा।

1. पश्चिमी घाट शाखा – अरब सागर शाखा जब दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर गतिशील होती है, तो पश्चिमी घाट उसके मार्ग में अवरोधक बन जाते हैं। यहाँ इन पवनों को बाध्य होकर ऊपर चढ़ना पड़ता है। इस प्रक्रिया में संघनन बहुत तेजी से होता है। फलतः पश्चिमी घाट के पवनाभिमुख ढालों पर भारी वर्षा होती है। यह देश के अधिक वर्षा प्राप्त करने वाले क्षेत्रों में गिना जाता है। पश्चिमी घाट के पूर्वी भागों में ये पवनें बहुत कम वर्षा कर पाती हैं। पश्चिम तटीय भागों में दक्षिण से उत्तर की ओर कम वर्षा होती है। मालाबार तट अधिक वर्षा प्राप्त करता है, जबकि कोंकण तट पर कम वर्षा होती है।

2. विंध्या-सतपुड़ा मध्य शाखा – यह शाखा विंध्या और सतपुड़ा पर्वतों के मध्य में होकर अपना मार्ग बनाती है। नर्मदा घाटी को पार कर छोटानागपुर तथा राजमहल की पहाड़ियों तक पहुँचाती है। इस क्षेत्र में पहुँचकर यहाँ अपेक्षाकृत अधिक वर्षा करने में समर्थ होती है। इस शाखा से पश्चिम से पूर्व की ओर वर्षा कम होती जाती है।

3. सौराष्ट्र-कच्छ शाखा – यह शाखा गुजरात तथा राजस्थान से होकर पंजाब के मैदान तक पहुँचती है। इसके मार्ग में अरावली का विस्तार पवनों के समानांतर है। अतः यह शाखा बेरोक-टोक हिमालय प्रदेश के पर्वतीय भागों तक पहुँचती । है। यहाँ हिमालय से अवरोध पाकर कश्मीर, पंजाब तथा हरियाणा में सामान्य वर्षा करने में समर्थ होती है।

127.

पूर्वी भारत में किन क्षेत्रों में अधिक वर्षा होती है ?

Answer»

पूर्वी भारत में मेघालय के गारो, खाँसी, जंयतिया पहाड़ियों के ढ़ालों पर अधिक बारिस होती है ।

128.

उत्तरी भारत में शीत ऋतु में पश्चिमी विक्षोभों द्वारा उत्पन्न मौसमी दशाएं उत्तर-पूर्वी पवनों से किस प्रकार भिन्न हैं? कारणों सहित व्याख्या कीजिए।

Answer»

उत्तरी भारत में पश्चिमी विक्षोभों के द्वारा शीत बढ़ जाती है तथा उत्तरी-पश्चिमी भारत में वर्षा होती है। उत्तरी-पूर्वी मानसून पवनें स्थल से समुद्र की ओर चलती हैं। इनमें जलकण नहीं होते। अत: यह वर्षा नहीं करतीं। केवल खाड़ी बंगाल को लांघने वाली उत्तरी-पूर्वी पवनें जल कण सोख लेती हैं और दक्षिण-पूर्वी तट पर वर्षा करती हैं।

129.

अरब सागर व बंगाल की खाड़ी वाली पवनें किन स्थानों पर एक-दूसरे से मिल जाती हैं।

Answer»

अरब सागर व बंगाल की खाड़ी वाली मानसून पवनें पंजाब तथा हिमाचल प्रदेश में आपस में मिलती हैं।

130.

भारत की जलवायु किस प्रकार की होती, यदि अरब सागर, बंगाल की खाड़ी तथा हिमालय पर्वत न होते? तापमान तथा वर्षण (वृष्टि) के सन्दर्भ में समझाइए।

Answer»
  1. यदि अरब सागर न होता तो पश्चिमी घाट के पश्चिमी भाग पर अधिक वर्षा न होती। इसके अतिरिक्त पश्चिमी तटीय भागों के तापमान में विषमता आ जाती।
  2. यदि बंगाल की खाड़ी न होती तो देश के पूर्वी तट (तमिलनाडु आदि) पर सर्दियों की वर्षा न होती। इसके अतिरिक्त यहां के तापमान में भी विषमता आ जाती।
  3. यदि हिमालय पर्वत न होता तो भारत मानसूनी वर्षा से वंचित रह जाता। यहां ठण्ड भी अत्यधिक होती।
131.

शीत ऋतु में उत्तरी भारत में होने वाली वर्षा का क्या कारण है? इस वर्षा का महत्त्व भी बताइए।

Answer»

शीत ऋतु में उत्तरी भारत में पश्चिमी विक्षोभों द्वारा वर्षा होती है। इनकी उत्पत्ति भूमध्य सागर से होती है। ये विक्षोभ मार्ग में फारस की खाड़ी तथा केस्पियन सागर से कुछ आर्द्रता ग्रहण कर लेते हैं और उत्तरी भारत में पहुँचकर हल्की वर्षा करते हैं।

उत्तरी भारत में होने वाली शीतकालीन वर्षा रबी की फसल, विशेष रूप से गेहूँ के लिए अत्यन्त लाभप्रद होती है।

132.

मानसून के आगमन की विशेषताएँ बताइए।

Answer»

मानसून के आगमन की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

⦁    मानसून की शुरुआत जून माह में होती है। जून के प्रारंभ में उत्तरी मैदानों में निम्न दाब की अवस्था तीव्र हो जाती है। यह दक्षिणी गोलार्द्ध की व्यापारिक हवाओं को आकर्षित करता है। ये अपने साथ इस महाद्वीप में बहुत अधिक मात्रा में नमी लाती है।

⦁    मानसून से संबंधित एक अन्य परिघटना है, ‘वर्षा में विराम’। वर्षा में विराम का अर्थ है कि मानसूनी वर्षा एक समय में कुछ दिनों तक ही होती हैं। मानसून में आने वाले ये विराम मानसूनी गर्त की गति से संबंधित होते हैं।

⦁    मानसून को इसकी अनिश्चितता के कारण जाना जाता है। जब यह एक हिस्से में बाढ़ का कारण बनता है, उसी समय यह किसी दूसरे भाग में अकाल का कारण बन सकता है।

⦁    मौसम के प्रारंभ में पश्चिम घाट के पवनमुखी भागों में भारी वर्षा लगभग 250 सेमी से अधिक होती है। दक्कन का पठार एवं मध्य प्रदेश के कुछ भागों में भी वर्षा होती है, यद्यपि ये क्षेत्र वृष्टि छाया क्षेत्र में आते हैं।

⦁    इस मौसम की अधिकतर वर्षा खासी पहाड़ी के दक्षिणी श्रृंखलाओं में स्थित मॉसिनराम विश्व में सबसे अधिक औसत वर्षा प्राप्त करता है।

133.

भारतीय मानसूनी वर्षा की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

Answer»

भारतीय वर्षा की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

1. मानसूनी वर्षा–भारतीय वर्षा को लगभग 75% भाग दक्षिण-पश्चिमी मानसूनों द्वारा प्राप्त होता है, अर्थात् कुल वार्षिक वर्षा का 75% वर्षा ऋतु में, 13% शीत ऋतु में, 10% वसन्त ऋतु में तथा 2% ग्रीष्म ऋतु में प्राप्त होता है।

2. वर्षा की अनिश्चितता—भारतीय मानसूनी वर्षा का प्रारम्भ अनिश्चित है। मानसून कभी शीघ्र | आते हैं तो कभी देर से। कभी-कभी वर्षा ऋतु में सूखा पड़ जाता है तथा कभी अत्यधिक वर्षा से बाढ़े तक आ जाती हैं। किसी वर्ष वर्षा नियत समय से पूर्व ही आरम्भ हो जाती है एवं निश्चित समय से पूर्व ही समाप्त हो जाती है।

3. वितरण की असमानता-भारतीय वर्षा का वितरण बड़ा ही असमान है। कुछ भागों में वर्षा 490 सेमी या उससे अधिक हो जाती है, जबकि कुछ भाग ऐसे हैं जहाँ वर्षा का औसत 12 सेमी से भी कम रहता है।

4. मूसलाधार वर्षा–भारत में वर्षा अनवरत गति से नहीं होती, वरन् कुछ दिनों के अन्तराल से होती है। कभी-कभी वर्षा मूसलाधार रूप में होती है और एक ही दिन में 50 सेमी तक हो जाती है। यह मिट्टी का अपरदन करती है, जिससे मिट्टी के उत्पादक तत्त्व बह जाते हैं।

5. असमान वर्षा–कुछ भागों में वर्षा बड़ी तीव्र गति से होती है तथा कुछ भागों में केवल बौछारों के रूप में। एक ओर मॉसिनराम गाँव (चेरापूँजी) में 1,354 सेमी से भी अधिक वर्षा होती है, तो वहीं राजस्थान में केवल 10 सेमी से भी कम। कुछ स्थानों पर वर्षा की प्राप्ति असन्दिग्ध रहती है। वर्षा हो भी सकती है और नहीं भी। भारत के उत्तरी मैदान में तथा दक्षिणी भागों में ऐसी ही स्थिति पायी जाती है।

6. वर्षा की अल्पावधि-भारत में वर्षा के दिन बहुत ही कम होते हैं। उदाहरण के लिए–चेन्नई में | 50 दिन, मुम्बई में 75 दिन, कोलकाता में 118 दिन तथा अजमेर में केवल 30 दिन।

7. वर्षा की निश्चित अवधि–कुल वर्षा का लगभग 80% जून से सितम्बर तक प्राप्त हो जाता है, फलत: वर्ष का दो-तिहाई भाग सूखा ही रह जाता है, जिससे फसलों की सिंचाई करनी पड़ती है।

8. पर्वतीय वर्षा–भारत की लगभग 95% वर्षा पर्वतीय है, जबकि मात्र 5% वर्षा ही चक्रवातों द्वारा होती है।

9. वर्षा की निरन्तरता—भारत में प्रत्येक मास में किसी-न-किसी क्षेत्र में वर्षा होती रहती है। शीतकालीन चक्रवातों द्वारा जनवरी एवं फरवरी महीनों में उत्तरी भारत में वर्षा होती है। मार्च में चक्रवात असोम एवं पश्चिम बंगाल राज्यों में सक्रिय रहते हैं। इनसे तब तक वर्षा होती है जब तक दक्षिण-पश्चिमी मानसून पुनः चलना न आरम्भ कर दें।

134.

भारत की जलवायु दशाओं की क्षेत्रीय विषमताओं को उपयुक्त उदाहरण देते हुए समझाइए।

Answer»

भारत में विभिन्न प्रकार की जलवायु दशाएँ पाई जाती हैं। एक स्थान से दूसरे स्थान और एक ऋत से दूसरी ऋतु में तापमान एवं वर्षा में पर्याप्त अन्तर पाया जाता है। भारतीय जलवायु में निम्नलिखित विषमताएँ उल्लेखनीय हैं

1. तापन्तर–तापमान का जलवायु पर विशिष्ट प्रभाव पड़ता है। भारत में राजस्थान और दक्षिण-पश्चिमी पंजाब जैसे ऐसे भी स्थान हैं जहाँ तापमान 55° सेल्सियस तक पहुँच जाता है, जबकि दूसरी ओर जम्मू और कश्मीर में कारगिल के समीप ऐसे स्थान हैं जहाँ तापमान -45° सेल्सियस तक नीचे चला जाता है।

2. वर्षा की निश्चित अवधि–सामान्यतया भारत में मानसूनी वर्षा की अवधि 15 जून से 15 सितम्बर तक होती है। इस समय देश में 75% से 90% तक वर्षा हो जाती है। इस अवधि को वर्षा ऋतु कहा जाता है। इस प्रकार वर्षा का अधिकांश भाग वर्षारहित रहता है, केवल कुछ छिट-पुट क्षेत्रों में ही सामान्य वर्षा हो पाती है।

3. मूसलाधार वर्षा-भारत में वर्षा बहुत ही तीव्र गति से (मूसलाधार) होती है। कभी-कभी एक ही दिन में 50 सेमी तक वर्षा हो जाना सामान्य-सी बात है। वर्षा की तीव्रता के कारण अधिकांश जल
अनावश्यक ही बह जाता है। इस कारण मृदा का अपरदन होता है तथा वह अनुत्पादक हो जाती है।

4. अनिश्चित वर्षा–भारत में दक्षिण-पश्चिमी मानसून की सबसे बड़ी विषमता उसकी अनिश्चितता है। कभी-कभी वर्षा अत्यधिक हो जाती है जिससे बाढ़ आ जाती है या कभी-कभी वर्षा बिल्कुल ही नहीं हो पाती है जिससे सूखा पड़ जाता है। इसी कारण भारतीय कृषि मानसून का जुआ कहलाती है।

5. वर्षा की अनियमितता–भारत में वर्षा पूर्णतया मानसून पर निर्भर करती है। यदि मानसून शीघ्र आ जाता है तो वर्षा भी शीघ्र ही आरम्भ हो जाती है। इसके विपरीत मानसून के देर.से आने पर वर्षा भी देर से ही आरम्भ होती है।

6. वर्षा का असमान वितरण–देश में वर्षा का वितरण बड़ा ही असमान है। एक ओर माँसिनराम गाँव (चेरापूंजी के निकट) में वार्षिक वर्षा का औसत 1,354 सेमी रहता है, तो दूसरी ओर राजस्थान में यह औसत केवल 5 सेमी से 10 सेमी के मध्य ही रहता है।

135.

भारत की अधिकांश वर्षा गर्मियों में होती है-कारणों का उल्लेख करते हुए भारत में वर्षा का वितरण लिखिए।याभारत की मानसून ऋतु का वर्णन कीजिए।यादक्षिण-पश्चिमी मानसून की वर्षा से प्रभावित किन्हीं दो क्षेत्रों का उल्लेख कीजिए।याभारत में दक्षिण-पश्चिमी मानसून द्वारा होने वाली वर्षा का वर्णन कीजिए।याआगे बढ़ता हुआ मानसून’-भारत की इस ऋतु का वर्णन कीजिए।

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भारत की वर्षा ऋतु (मानसून ऋतु)

वर्षा ऋतु ( आगे बढ़ते हुए मानसून की ऋतु )–जून से सितम्बर के मध्य सम्पूर्ण देश में व्यापक रूप से वर्षा होती है। वर्षा का 75% से 90% भाग इसी अवधि में प्राप्त हो जाता है।

दक्षिण-पश्चिमी मानसून की उत्पत्तिग्रीष्म ऋतु में देश के उत्तर-पश्चिमी मैदानी भागों में निम्न वायुदाब का क्षेत्र विकसित हो जाता है। जून के प्रारम्भ तक निम्न वायुदाब का यह क्षेत्र इतना प्रबल हो जाता है कि दक्षिण गोलार्द्ध की व्यापारिक पवनें भी इस ओर खिंच आती हैं। इन दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक पवनों की उत्पत्ति समुद्र से होती है। हिन्द महासागर में विषुवत् वृत्त को पार करके ये पवनें बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर में पहुँच जाती हैं। इसके बाद ये भारत के वायु-संचरण का अंग बन जाती हैं। विषुवतीय गर्म धाराओं के ऊपर से गुजरने के कारण ये भारी मात्रा में आर्द्रता ग्रहण कर लेती हैं। विषुवत् वृत्त पार करते ही इनकी दिशा दक्षिण-पश्चिम हो जाती है। इसीलिए इन्हें दक्षिण-पश्चिमी मानसून’ कहा जाता है।

मानसून का फटनावर्षावाहिनी पवनें बड़ी तेज चलती हैं। इनकी औसत गति 30 किमी प्रति घण्टा होती है। उत्तर-पश्चिम के दूरस्थ भागों को छोड़कर ये पर्वनें एक महीने के अन्दर-अन्दर सारे भारत में फैल जाती हैं। आर्द्रता से लदी इन पवनों के साथ ही बादलों का प्रचण्ड गर्जन तथा बिजली का चमकना शुरू हो जाता है। इसे मानसून का ‘फटना’ अथवा ‘टूटना’ कहते हैं।

दक्षिण-पश्चिमी मानसून की शाखाएँभारत की प्रायद्वीपीय स्थिति के कारण मानसून की दो शाखाएँ। हो जाती हैं

(1) अरब सागर की शाखा- अरब सागर की शाखा सबसे पहले पश्चिमी घाट के पर्वतों से टकराकर सह्याद्रि के पवनाभिमुख ढालों पर भारी वर्षा करती है। पश्चिमी घाट को पार करके यह शाखा दकन के पंठार और मध्य प्रदेश में पहुँच जाती है। वहाँ भी इससे पर्याप्त मात्रा में वर्षा होती है। तत्पश्चात् इसका प्रवेश गंगा के मैदानों में होता है, जहाँ बंगाल की खाड़ी की शाखा भी आकर इसमें मिल जाती है। अरब सागर के मानसून की शाखा का दूसरा भाग सौराष्ट्र के प्रायद्वीप तथा कच्छ में पहुँच जाता है। इसके बाद यह पश्चिमी राजस्थान और अरावली पर्वत-श्रेणियों के ऊपर से गुजरता है। वहाँ इसके द्वारा बहुत हल्की वर्षा होती है। पंजाब और हरियाणा में पहुँचकर यह शाखा भी बंगाल की खाड़ी की शाखा में मिलकर हिमालय के पश्चिमी भाग में भारी वर्षा करती है।

(2) बंगाल की खाड़ी की शाखाबंगाल की खाड़ी की मानसून शाखा म्यांमार (बर्मा) तट की ओर तथा बांग्लादेश के दक्षिण-पूर्वी भागों की ओर बढ़ती है। परन्तु म्यांमार के तट के साथ-साथ फैली अराकान पहाड़ियाँ इस शाखा के बहुत बड़े भाग को भारतीय उपमहाद्वीप की दिशा में मोड़ देती हैं। इस प्रकार यह पश्चिमी दिशा से न आकर दक्षिण तथा दक्षिण-पूर्वी दिशाओं से आती है। विशाल हिमालय तथा उत्तर-पश्चिमी भारत के निम्न वायुदाब के प्रभाव से यह शाखा दो भागों में बँट जाती है। एक शाखा पश्चिम की ओर बढ़ती है तथा गंगा के मैदानों को पार करती हुई पंजाब के मैदानों तक पहुँचती है। इसकी दूसरी शाखा ब्रह्मपुत्र की घाटी की ओर बढ़ती है। यह उत्तर-पूर्वी भारत में भारी वर्षा करती है। इसकी एक उपशाखा मेघालय में गारो और खासी की पहाड़ियों से टकराती है और वहाँ खूब वर्षा करती है। सबसे अधिक वर्षा मॉसिनराम (Mausinram) (मेघालय) में होती है। यहाँ वार्षिक वर्षा को औसत 11,405 मिलीमीटर है।

वर्षा का वितरण– दक्षिण-पश्चिमी मानसून से होने वाली वर्षा के वितरण पर उच्चावच का बहुत प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए-पश्चिमी घाट के पवनविमुख ढालों पर 250 सेमी से अधिक वर्षा होती है। इसके विपरीत पश्चिमी घाट के पवनाभिमुख ढालों पर 50 सेमी से भी कम वर्षा होती है। इसी प्रकार उत्तर-पूर्वी राज्यों में भी भारी वर्षा होती है, परन्तु उत्तरी मैदानों में वर्षा की मात्रा पूर्व से पश्चिम की ओर घटती जाती है। इस विशिष्ट ऋतु में  कोलकाता में लगभग 120 सेमी, पटना में 102 सेमी, इलाहाबाद में 91 सेमी तथा दिल्ली में 56 सेमी वर्षा होती है।

136.

परिभ्रमण और परिक्रमण गति का मानव जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है ?

Answer»

परिभ्रमण और परिक्रमण गति का सीधा प्रभाव मानव के भोजन, पोशाक, आवास और आर्थिक प्रवृत्ति पर पड़ता है ।

137.

किसी क्षेत्र की जलवायु को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों को वर्णन कीजिए।

Answer»

किसी क्षेत्र की जलवायु को छह प्राकृतिक कारक प्रभावित करते हैं, जिनका विवरण इस प्रकार है-

(1) उच्चावचे – ऊँचे पर्वत शीतल व गर्म वायु को रोकने का कार्य करते हैं। यदि इन पर्वतों की ऊँचाई इतनी हो कि वे वर्षा लाने वाली वायु के मार्ग को रोकने में सक्षम होते हैं तो वे उस क्षेत्र में वर्षा लाने में समर्थ होते हैं। पर्वतों के पवनविमुख ढाल अपेक्षाकृत सूखे रहते हैं।

(2) वायुदाब एवं पवनें – किसी क्षेत्र-विशेष को वायुदाब एवं उसकी पवनें उस क्षेत्र की अक्षांशीय स्थिति एवं ऊँचाई पर निर्भर करती हैं। इस प्रकार यह तापमान एवं वर्षण की प्रवृत्ति को भी प्रभावित करता है।

(3) महासागरीय धाराएँ – समुद्र की ओर से स्थल की ओर आने वाली पवनों के साथ-साथ महासागरीय धाराएँ भी तटीय क्षेत्रों की जलवायु को प्रभावित करती हैं। उदाहरण के लिए, कोई भी तटीय क्षेत्र जहाँ गर्म या ठण्डी जलधाराएँ प्रवाहित होती हैं और वायु की दिशा समुद्र से तट की ओर होती है, तब वह तट गर्म या ठण्डा हो जाएगा।

(4) सागर तट से दूरी – जैसे-जैसे स्थलीय क्षेत्र की सागर से दूरी बढ़ती जाती है, तो इसका समकारी प्रभाव घटने लगता है। इस तरह यह तापमान तथा वर्षा की प्रवृत्ति को प्रभावित करता है। इसे महाद्वीपीय अवस्था कहते हैं। महाद्वीपीय व्यवस्था का आशय है कि गर्मी में बहुत अधिक गर्मी और सर्दी में बहुत अधिक ठण्ड पड़ती है।

(5) स्थलीय क्षेत्र की ऊँचाई – भारत के उत्तर में पर्वत हैं जिनकी औसत ऊँचाई लगभग 6,000 मीटर है। भारत का तटीय क्षेत्र भी विशाल है, जहाँ अधिकतम ऊँचाई लगभग 30 मीटर है। हिमालय पर्वत मध्य एशिया से आने वाली सर्द हवाओं को इस उपमहाद्वीप में आने से रोकता है यही कारण है कि मध्य एशिया की अपेक्षा भारत में ठंड अपेक्षाकृत कम होती है। जैसे-जैसे हम पृथ्वी की सतह से ऊँचे स्थानों की ओर जाते हैं, वायुमंडल विरल होता जाता है तथा तापमान गिरने लगता है। इसलिए पहाड़ियाँ गर्मियों में अपेक्षाकृत ठण्डी होती हैं।

(6) अक्षांशीय स्थिति – पृथ्वी की गोलाई के कारण, इसे प्राप्त सौर ऊर्जा की मात्रा अक्षांशों के अनुसार अलग-अलग होती है। तापमान विषुवत् वृत्त से ध्रुवों की ओर घटता जाता है। कर्क वृत्त देश के मध्य भाग, पश्चिम में कच्छ के रन से लेकर पूर्व में मिजोरम से होकर गुजरती है। देश का लगभग आधा भाग कर्क रेखा के दक्षिण में स्थित है, जो उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में आता है। कर्क रेखा के उत्तर में स्थित शेष भाग उपोष्ण कटिबंध में आता है। इसलिए भारत की जलवायु में उष्णकटिबंधीय जलवायु एवं उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु दोनों की विशेषताएँ पाई जाती हैं।

138.

ग्रीष्मकालीन मानसूनी पवनों की दिशा का वर्णन कीजिए।

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ग्रीष्मकालीन मानसूनी पवनों की दिशा उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम होती है।

139.

यदि अरब सागर, बंगाल की खाड़ी तथा हिमालय पर्वत न होते तो भारत की जलवायु पर क्या प्रभाव पडता?

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⦁    यदि हिमालय पर्वत न होता तो भारत मानसूनी वर्षा से वंचित रह जाता क्योंकि मानसूनी हवाएँ हिमालय से टकरा कर वर्षा करने के बजाय उससे आगे निकल जातीं तथा वर्षा कहीं और होती। हिमालय न होता तो उत्तर में चीन से आने वाली भयानक बर्फीली हवाएँ उत्तर-भारत को जमा देतीं।

⦁    यदि अरब सागर न होता तो पश्चिमी घाट के पश्चिमी भाग पर अधिक वर्षा न होती। इसके अतिरिक्त पश्चिमी तटीय भागों के तापमान में विषमता आ जाती।

⦁    यदि बंगाल की खाड़ी न होती तो देश के पूर्वी तट (तमिलनाडु) पर शीत ऋतु में वर्षा न होती। इसके अलावा यहाँ के तापमान में भी विषमता आ जाती।

140.

भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में अधिक वर्षा के दो कारणों का उल्लेख कीजिए।

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भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में अधिक वर्षा के दो कारण निम्नलिखित हैं।

  • बंगाल की खाड़ी की मानसून शाखा का विभाजन, भारतीय उपमहाद्वीप में प्रवेश के बाद, उच्च हिमालय तथा उत्तर-पश्चिमी भारत के निम्न वायुभार के प्रभाव से दो भागों में हो जाता है। इस मानसून की दूसरी शाखा उत्तर एवं उत्तर-पूर्व दिशा से ब्रह्मपुत्र नदी की घाटी में प्रवेश करती है, जिससे भारत के उत्तर-पूर्वी भागों में भारी वर्षा होती है।
  • भारत की 75-90% वर्षा ग्रीष्मकालीन मानसूनों द्वारा प्राप्त होती है। यही कारण है कि वर्षा के वितरण में पर्याप्त असमानताएँ पायी जाती हैं। भारत के उत्तर-पूर्वी भाग में उच्चावचीय लक्षणों के कारण 300 सेमी से भी अधिक वार्षिक वर्षा होती है।
141.

पीछे हटते हुए मानसून की ऋतु में मौसम की विभिन्न दशाओं तथा वर्षा के वितरण का वर्णन कीजिए।

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अक्टूबर और नवम्बर के महीने में भारत में पीछे हटते हुए मानसून की ऋतु पायी जाती है। इस ऋतु में मानसून का निम्न वायुदाब का गर्त कमजोर पड़ जाता है और इसका स्थान उच्च वायुदाब ले लेता है। परिणामस्वरूप मानसून पीछे हटने लगता है। इस समय तक इन पवनों में आर्द्रता की मात्रा पर्याप्त कम हो चुकी होती है। अत: इसके द्वारा बहुत कम वर्षा होती है। भारतीय भू-भागों पर इसका प्रभाव-क्षेत्र सिकुड़ने लगता है। और पृष्ठीय पवनों की दिशा उलटनी शुरू हो जाती है। अक्टूबर तक मानसून उत्तरी मैदानों से पीछे हट जाता है।

अक्टूबर-नवम्बर के दो महीने, एक संक्रान्ति काल है। इस काल में वर्षा ऋतु के स्थान पर शुष्क ऋतु का आगमन प्रारम्भ हो जाता है। मानसून के हटने से आकाश साफ हो जाता है और तापमान फिर से बदलने लगता है। परन्तु भूमि अभी भी आर्द्र बनी रहती है। उच्च तापमान तथा आर्द्रता के कारण मौसम कष्टदायक हो जाता है। इस कष्टदायक मौसम को ‘क्वार की उमस’ कहते हैं। अक्टूबर के उत्तरार्द्ध में मौसम बदलने लगता है और विशेषकर उत्तरी मैदानों में तापमान तेजी से गिरने लगता है।

नवम्बर के प्रारम्भ में उत्तर-पश्चिमी भारत के निम्न वायुदाब का क्षेत्र बंगाल की खाड़ी की ओर खिसक जाता है। इस अवधि में अण्डमान सागर में चक्रवात बनने लगते हैं। इनमें से कुछ चक्रवात दक्षिणी प्रायद्वीप के पूर्वी तटों को पार कर जाते हैं और इन क्षेत्रों में भारी तथा व्यापक वर्षा करते हैं। ये उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात अधिकतर गोदावरी, कृष्णा और कावेरी के डेल्टाई प्रदेशों में ही आते हैं। ये बहुत ही विनाशकारी होते हैं। कोई भी वर्ष इनकी विनाशलीला से खाली नहीं जाता। कभी-कभी ये चक्रवात सुन्दरवन और बांग्लादेश में भी पहुँच जाते हैं। कोरोमण्डल तट पर अधिकतर वर्षा इन्हीं चक्रवातों और अवदाबों के कारण होती है।

142.

भारत में कम वर्षा वाले तीन क्षेत्र कौन-कौन-से हैं ?

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कम वर्षा वाले क्षेत्रों से अभिप्राय ऐसे क्षेत्रों से है, जहाँ 50 सेमी से भी कम वार्षिक वर्षा होती है। ये क्षेत्र हैं

  • पश्चिमी राजस्थान तथा इसके निकटवर्ती पंजाब, हरियाणा तथा गुजरात के क्षेत्र।
  • सह्याद्रि के पूर्व में फैले दकन के पठार के आन्तरिक भाग।
  • कश्मीर में लेह के आस-पास का प्रदेश।
143.

भारतीय जलवायु पर चक्रवातीय एवं प्रतिचक्रवातीय तूफानों को क्या प्रभाव पड़ता है?

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चक्रवातों एवं प्रतिचक्रवातों का मौसम व जलवायु पर विशेष प्रभाव पड़ता है। इनका ऊपरी वायु संचरण से भी गहरा सम्बन्ध होता है। ये कभी-कभी इतने प्रबल हो जाते हैं कि वायु के सामान्य परिसंचरण को अस्पष्ट कर देते हैं। चक्रवात अरब सागर एवं बंगाल की खाड़ी में चलते हैं तथा तटीय क्षेत्रों को प्रभावित करते हैं। बंगाल की खाड़ी में चलने वाले चक्रवातों से कभी-कभी भारी धन-जन की हानि होती है। वास्तव में चक्रवात में वायुदाब बाहर से अन्दर की ओर कम होता जाता है। समदाब रेखाएँ वृत्ताकारे या अण्डकार होती हैं। अल्पतम वायुदाब केन्द्र दो गर्त-रेखाओं का प्रतिच्छेदन बिन्दु होती है। इसी कारण इनमें वायु बाहर से अन्दर की ओर चलती है। चक्रवात बहुत बड़े क्षेत्र पर फैले होते हैं जिनका व्यास छोटे क्षेत्रों में कई सौ किमी जबकि बड़े चक्रवातों को कई हजार किमी में होता है। इस प्रकार चक्रवात से प्रभावित क्षेत्र का मौसम बड़ा ही खराब होता है।
प्रतिचक्रवात सामान्यत: साफ मौसम का प्रतीक समझा जाता है, परन्तु इसमें सदैव मौसम साफ नहीं रहता। इसका मौसम इसकी वायुराशि के गुणों और ग्रीष्म एवं शीत ऋतु पर निर्भर रहता है। ग्रीष्म ऋतु में प्रतिचक्रवात में शुष्क, गरम मौसम एवं स्वच्छ आकाश होता है जिसमें उच्च दैनिक ताप परिसर पाए जाते हैं। शीत ऋतु में जिन प्रतिचक्रवातों में ध्रुवीय ठण्डी एवं शुष्क वायु होती है, उनमें निम्न ताप और स्वच्छ आकाश के साथ रात्रि में पाला पड़ता है। परन्तु जिन प्रतिचक्रवातों में ध्रुवीय समुद्री वायु होती है, उनमें आकाश स्तरी मेघों से ढक जाता है, जिसे प्रतिचक्रवाती अंधकार कहते हैं। ऐसी दशा में बड़े नगरों के उद्योगों द्वारा प्रदूषण की गम्भीर समस्या उत्पन्न हो जाती है और कुहरा छाया रहता है।

144.

जलवायु का अध्ययन किस विज्ञान के अन्तर्गत आता है?1. जीव विज्ञान2. सस्य विज्ञान3. जलवायु विज्ञान4. वनस्पति विज्ञान

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सही विकल्प है 3. जलवायु विज्ञान

145.

जाड़ों में वर्षा वाले भारत के दो क्षेत्रों का उल्लेख कीजिए।

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शीत ऋतु में स्थलीय पवनें शुष्क होती हैं; अतः प्रायः सम्पूर्ण देश में मौसम शुष्क रहता है। परन्तु निम्नलिखित दो क्षेत्रों में जाड़ों में भी वर्षा होती है

  • देश के उत्तर-पश्चिमी भाग-भूमध्य सागर की ओर से आने वाले पश्चिमी विक्षोभों से कुछ वर्षा देश के उत्तर-पश्चिमी भागों में होती है।
  • तमिलनाडु तट-तमिलनाडु तट पर भी शीतकाल में वर्षा होती है। उत्तर-पूरब की ओर से चलने वाली स्थलीय मानसून पवनें जब बंगाल की खाड़ी को पार कर तमिलनाडु तट पर पहुँचती हैं, तो ये कुछ आर्द्रता ग्रहण कर लेती हैं तथा तटों पर वर्षा करती हैं।
146.

अल्पवृष्टि तथा अतिवृष्टि का वर्णन कीजिए।

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1. अल्पवृष्टि

अल्पवृष्टि का तात्पर्य वर्षा न होने से है जिसके कारण अकाल की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। जलाभाव के कारण फसलें नष्ट हो जाती हैं। नदी, तालाब, कुएँ सूखने लगते हैं। पानी का घोर संकट उत्पन्न हो जाता है। जिससे सभी प्रकार के जीवों का जीवन संकटग्रस्त हो जाता है। पशुओं के लिए पानी तथा चारे की समस्या , पैदा हो जाती है।

2. अतिवृष्टि

अतिवृष्टि का तात्पर्य ऐसी अत्यधिक वर्षा से है जो लाभ की अपेक्षा हानि पहुँचाती है। अतिवृष्टि से नदी, जलाशय, तालाब सभी जल से भर जाते हैं। नदियों में बाढ़ आ जाती है जिससे उनके किनारे बसे गाँव, नगर तथा फसलें प्रभावित हो जाती हैं। अतिवृष्टि से बहुत-से लोग घर-विहीन हो जाते हैं। बाढ़ के बाद अनेक प्रकार के संक्रामक रोग फैलने लगते हैं। अतिवृष्टि का सर्वाधिक प्रभाव फसलों पर पड़ता है। इससे सामान्य जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है।

147.

जलवायु का मानव की किन-किन प्रवृत्तियों पर प्रभाव पड़ता है ?

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जलवायु का प्रभाव खान-पान, रहन-सहन, स्वभाव, आवास, कृषि, आर्थिक प्रवृत्ति आदि पर पड़ता है ।

148.

जलवायु का प्राकृतिक वनस्पति व जीव-जन्तुओं पर क्या प्रभाव पड़ता है ?

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पर्यावरण के सभी अंगों में जलवायु मानव-जीवन को सबसे अधिक प्रभावित करती है। भारत में कृषि राष्ट्र के अर्थतन्त्र की धुरी है, जो वर्षा की विषमता से सबसे अधिक प्रभावित होती है। मानसूनी वर्षा बड़ी ही अनियमित एवं अनिश्चित है। जिस वर्ष वर्षा अधिक एवं मूसलाधार रूप में होती है तो अतिवृष्टि के परिणामस्वरूप बाढ़ आ जाती हैं तथा भारी संख्या में धन-जन का विनाश करती हैं। इसके विपरीत जिन क्षेत्रों में वर्षा कम होती है या अनिश्चितता की स्थिति होती है तो अनावृष्टि के कारण सूखा पड़ जाता है, जिससे फसलें सूख जाती हैं तथा पशुधन को भी पर्याप्त हानि उठानी पड़ती है। जलवायु का प्राकृतिक वनस्पति व जीव-जन्तुओं पर प्रभाव निम्नलिखित है-

1. प्राकृतिक वनस्पति पर प्रभावकिसी देश की प्राकृतिक वनस्पति न केवल धरातल और मिट्टी के गुणों पर निर्भर करती है, वरन् वहाँ के तापमान और वर्षा का भी उस पर प्रभाव पड़ता है, क्योंकि पौधे के विकास के लिए वर्षा, तापमान, प्रकाश और वायु की आवश्यकता पड़ती है; उदाहरणार्थभूमध्यरेखीय प्रदेशों में निरन्तर तेज धूप, कड़ी गर्मी और अधिक वर्षा के कारण ऐसे वृक्ष उगते हैं; जिनकी पत्तियाँ घनी, ऊँचाई बहुत और लकड़ी अत्यन्त कठोर होती है। इसके विपरीत मरुस्थलों में काँटेदार झाड़ियाँ भी बड़ी कठिनाई से उग पाती हैं; क्योंकि यहाँ वर्षा का अभाव होता है। वास्तव में जलवायु वनस्पति का प्राणाधार है।

2. जीव-जन्तुओं पर प्रभाव– जलवायु की विविधता ने प्राणियों में भी विविधता स्थापित की है। जिस प्रकार विभिन्न जलवायु में विभिन्न प्रकार की वनस्पतियाँ पायी जाती हैं, वैसे ही विभिन्न जलवायु प्रदेशों में अनेक प्रकार के जीव-जन्तु पाये जाते हैं; उदाहरणार्थ-कुछ जीव-जन्तु वृक्षों की शाखाओं पर रहकर सूर्य की गर्मी और प्रकाश प्राप्त करते हैं; जैसे-नाना प्रकार के बन्दर, चमगादड़ आदि। इसके विपरीत कुछ जीव-जन्तु जल में निवास करते हैं; जैसेमगरमच्छ, दरियाई घोड़े आदि। ठीक इससे भिन्न प्रकार के प्राणी टुण्ड्री प्रदेश में पाये जाते हैं जिनके शरीर पर लम्बे और मुलायम बाल होते हैं, जिनके कारण वे कठोर शीत से अपनी रक्षा करते हैं।

149.

किस दिन मकर रेखा पर सूर्य की किरणें लंबवत् पड़ती है ?(A) 26 जनवरी(B) 22 दिसम्बर(C) 21 जून(D) 10 फरवरी

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सही विकल्प है (B) 22 दिसम्बर

150.

केरल तथा कर्नाटक के तटीय भागों में मानसून से पूर्व होने वाली वर्षा की बौछारें शीघ्र आगे नहीं बढ़ पातीं। इसका क्या कारण है?

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केरल तथा कर्नाटक के तटीय भागों में ग्रीष्म ऋतु के अन्त में मानसून से पूर्व ही वर्षा होती है। परन्तु इस वर्षा की बौछारें शीघ्र आगे नहीं बढ़ पातीं। इसका कारण यह है कि इस समय दक्कन के पठार पर अपेक्षाकृत उच्च वायुदाब की पेटी का विस्तार रहता है।