Explore topic-wise InterviewSolutions in .

This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.

1.

GDP का पूरा नाम लिखो ।

Answer»

GDP का पूरा नाम : Gross Domestic Product है ।

2.

C.S.O. का पूरा नाम लिखिए ।

Answer»

C.S.O. का पूरा नाम – Central Statistical Organization है ।

3.

NNP का पूरा नाम लिखो ।

Answer»

NNP का पूरा नाम – Net National Product है ।

4.

GNP का पूरा नाम लिखो ।

Answer»

GNP का पूरा नाम – Gross National Product है ।

5.

NDP का पूरा नाम लिखो ।

Answer»

NDP का पूरा नाम – Net Domestic Product है ।

6.

अंतर दीजिए : GDP और NDP .

Answer»

GDP और NDP:

GDPNDP
देश की सीमा के अंदर ही समस्त देशवासियों द्वारा उत्पन्न की गई सभी तैयार वस्तुओं और सेवाओं के मौद्रिक मूल्य को सकल घरेलू उत्पाद (GDP) कहते हैं ।देश की सीमा के अंदर ही समस्त देशवासियों द्वारा उत्पन्न की गई सभी प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में लगे यंत्रों के घिसावट होता है उसे आंतरिक उत्पादन में से घटाने पर प्राप्त आय को शुद्ध आंतरिक आय (NDP) कहते हैं ।
इसमें विदेशों से प्राप्त आय का समावेश नहीं होता है ।इसमें शुद्ध विदेशी आय का समावेश होता है ।
इसमें विदेशी साधनों को जोड़ा या घटाया नहीं जाता मात्र स्वदेशी साधनों का ही समावेश होता है ।इसमें स्वदेशी साधनों के साथ-साथ विदेशी साधनों से प्राप्त शुद्ध आय को जोड़ा जाता है ।
GDPMP = GNPMP – विदेशों में से प्राप्त शुद्ध साधन आय ।NDP = GDP – घिसाई

7.

अंतर दीजिए :GNP और NNP.

Answer»

GNP और NNP:

GNPNNP
किसी भी देश में एक वर्ष की समयावधि में उत्पन्न की गई सभी तैयार वस्तुओं और सेवाओं के कुल बाजारमूल्य को कुल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) कहते हैं ।कुल राष्ट्रीय उत्पाद में से घिसाई की रकम घटाने के बाद जो शेष आय बचती है तो उसे शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNP) कहते हैं ।
इसमें विदेशों से भी प्राप्त आय का समावेश होता है ।इसमें शुद्ध विदेशी आय का समावेश होता है ।
इसमें देश के अन्दर विदेशी साधनों के बदले में जो आय होती है उसे राष्ट्रीय आय में घटा दिया जाता है और विदेशों में देशी साधनों के बदले में प्राप्त आय को जोड़ दिया जाता है ।इसमें उत्पादन प्रक्रिया के दरम्यान साधनों, यंत्रों, मकान आदि की घिसावट होती है । मूल्य घटता है उसे कुल राष्ट्रीय उत्पाद में से घटा दिया जाता है ।
GNP = GDP + विदेशों में से प्राप्त शुद्ध आयNNP = GNP – घिसाई

8.

मद्राकीय खर्च के घटकों की संख्या है ?(A) 4(B) 2(C) 1(D) 10

Answer»

सही विकल्प है (A) 4

9.

निम्न में से किस बात को GNP की गणना में ले सकते हैं ?(A) होस्पीटल में किया जानेवाला ऑपरेशन(B) गृहिणी का गृहकार्य(C) शिक्षक अपनी संतान को पढ़ाये(D) बाथरूम में गाया जानेवाला गीत

Answer»

सही विकल्प है (A) होस्पीटल में किया जानेवाला ऑपरेशन

10.

“राष्ट्रीय आय के योग को अन्तिम उत्पाद योग कहा जा सकता है।” यह कथन है(क) प्रो० मार्शल का(ख) प्रो० पीगू का(ग) प्रो० फिशर का(घ) प्रो० शूप का

Answer»

सही विकल्प है (घ) प्रो० शूप का।

11.

उपयोग (उपभोग) पर आधारित राष्ट्रीय आय की परिभाषा देनेवाले अर्थशास्त्री …………………..(A) मार्शल(B) पिगु(C) फिशर(D) एडम स्मिथ

Answer»

सही विकल्प है (C) फिशर

12.

कुल उपभोग को राष्ट्रीय आय की गणना के लिए आवश्यक समझते हैं(क) प्रो० मार्शल(ख) प्रो० फिशर(ग) प्रो० पीगू(घ) प्रो० शूप

Answer»

सही विकल्प है  (ख) प्रो० फिशर।

13.

ऐ. सी. पिगु की राष्ट्रीय आय की परिभाषा किस पर आधारित थी ?(A) मुद्रा पर(B) उत्पादन पर(C) उपभोग पर(D) वास्तव

Answer»

सही विकल्प है (A) मुद्रा पर

14.

पुराने मकान की खरीदी राष्ट्रीय आय में गिनी जाएगी कि नहीं ? क्यों ?

Answer»

पुराने मकान की खरीदी राष्ट्रीय आय में नहीं गिनी जाएगी क्योंकि नए मकान की कीमत को राष्ट्रीय आय में गिन लिया गया होगा । पुनः गिनेंगे तो दोहरी गणना होगी जिससे राष्ट्रीय आय का वास्तविक ख्याल नहीं आयेगा ।

15.

गृहिणी के गृहकार्य की सेवा का समावेश राष्ट्रीय आय में क्यों नहीं होता है ?

Answer»

गृहिणी के गृहकार्य की सेवा के बदले (प्रतिफल) के स्वरूप में कुछ भी प्राप्त नहीं होता है (आय-खर्च शून्य होती है) इसलिए गृहिणी के गृहकार्य की सेवा का समावेश राष्ट्रीय आय में नहीं होता है ।

16.

प्रतिफल भुगतान अर्थात् क्या ?

Answer»

उत्पादन के साधनों को उसके बदले में चुकाये गये प्रतिफल को प्रतिफल भुगतान कहते हैं । जैसे : जमीन को किराया, पूँजी को ब्याज, श्रम को वेतन तथा नियोजन को लाभ प्रतिफल के रुप में प्राप्त होता है ।

17.

आरोपित किराया’ (भाड़ा) अर्थात् क्या ?

Answer»

हम जिस मकान में रहते हैं, उसका इतना किराया मिलता ऐसा मानकर जो किराया गिन लेते हैं उसे आरोपित किराया भाड़ा. कहते हैं ।

18.

राष्ट्रीय आय के तीन पहलू आय, खर्च एवं ………………………. है ।(A) श्रम(B) जमीन(C) नियोजन(D) उत्पादन

Answer»

सही विकल्प है (D) उत्पादन

19.

शुद्ध आय अर्थात् क्या ?

Answer»

विदेश में से होनेवाली कुल आय और विदेश में होनेवाले कुल भुगतान के बीच के अन्तर को शुद्ध आय कहते हैं ।

20.

घिसाई अर्थात क्या ?

Answer»

घिसाई अर्थात् उपभोग (उपयोग) के कारण पूँजी साधन की कीमत में क्रमशः और स्थायी कमी यह घिसाई है ।

21.

अलिप्त अर्थतंत्र में निम्न में से कौन-सा क्षेत्र नहीं है ?(A) परिवार(B) इकाईयाँ(C) उद्योग(D) विदेश-व्यापार

Answer»

सही विकल्प है (D) विदेश-व्यापार

22.

प्रो. पिगु किसे राष्ट्रीय आय कहते हैं ?

Answer»

अर्थशास्त्री ऐ. सी. पिगु के अनुसार : राष्ट्रीय आय वस्तुओं और सेवाओं का ऐसा प्रवाह है कि जिसका भुगतान मुद्रा द्वारा किया जाता है । अथवा उसे मुद्रा में सरलता से प्रस्तुत कर सकते है । दूसरे शब्दों में कहे तो विदेशी आय सहित समाज की कुल आय जो मुद्रा के द्वारा सरलता से माप सकते हैं उसे राष्ट्रीय आय कहते हैं । इस प्रकार पिगु की परिभाषा मुद्रालक्षी है ।

23.

करचोरी किसे कहते हैं ?

Answer»

करदाता जब कर भरने के दायित्व से चूके तो उसे करचोरी कहते हैं । करचोरी गैरकानूनी है ।

24.

अलिप्त अर्थतंत्र किसे कहते हैं ?

Answer»

जिस अर्थतंत्र में विदेश व्यापार अनुपस्थित हो तो उसे अलिप्त अर्थतंत्र कहते हैं । (आयात-निर्यात का समावेश नहीं होता है ।)

25.

दोहरी गणना किसे कहते हैं ?

Answer»

जब राष्ट्रीय आय की गणना में किसी वस्तु या सेवा का मूल्य एक की अपेक्षा अनेक बार गणना की जाये तो उसे दोहरी गणना कहते हैं ।

26.

अर्थतंत्र के कितने प्रकार हैं ? कौन-कौन से ?

Answer»

अर्थतंत्र के दो प्रकार हैं :

  1. अलिप्त अर्थतंत्र
  2. मुक्त (खुला) अर्थतंत्र
27.

मुक्त (खुला) अर्थतंत्र किसे कहते हैं ?

Answer»

जिस अर्थतंत्र में सरकार और विदेश व्यापार की भूमिका हो, सरकार अनेक कार्य करती है । देश में आयात-निर्यात भी होता है उसे खुला (मुक्त) अर्थतंत्र कहते हैं ।

28.

उत्पादन किसे कहते हैं ?

Answer»

निश्चित समय दरम्यान उपलब्ध साधनों द्वारा जितने प्रमाण में वस्तुएँ उत्पन्न हों तो उसे उत्पादन कहते हैं ।

29.

अर्थतंत्र के मुख्य प्रकार कितने हैं ?(A) एक(B) दो(C) तीन(D) चार

Answer»

सही विकल्प है (B) दो

30.

राष्ट्रीय आय एक माप है(क) देश के कुल निर्यात की(ख) देश के कुल आयात की।(ग) देश के कुल उत्पाद की(घ) देश की कुल सरकारी आय की

Answer»

सही विकल्प है (ग) देश के कुल उत्पाद की।

31.

राष्ट्रीय उत्पाद किसे कहते हैं ?

Answer»

वर्ष के दरम्यान उत्पादन के साधनों से देश के अलग-अलग क्षेत्रों में अंतिम स्वरूप की वस्तुएँ और सेवाओं के कुल उत्पादनमूल्य के योग को राष्ट्रीय उत्पाद कहते हैं ।

32.

किराया + वेतन + ब्याज + लाभ = ……………………..(A) राष्ट्रीय उत्पाद(B) शुद्ध आय(C) राष्ट्रीय आय(D) विदेशी आय

Answer»

सही विकल्प है (C) राष्ट्रीय आय

33.

बाजार कीमत पर निबल राष्ट्रीय उत्पाद (NNP)- अप्रत्यक्ष कर+सरकारी सहायता = ?(क) साधन लागतों पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद(ख) बाजार कीमतों पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद(ग) बाजार कीमतों पर निवल घरेलू उत्पाद(घ) साधन लागतों पर निवल घरेलू उत्पाद

Answer»

(क) साधन लागतों पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद।

34.

शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद को परिभाषित कीजिए।

Answer»

सकल राष्ट्रीय उत्पादन (G.N.P) में से मूल ह्रास व्यय, चल पूँजी का प्रतिस्थापन व्यय, अचल पूँजी का मूल्य ह्रास, मरम्मत और प्रतिस्थापन के लिए किया गया व्यय, कर, बीमे की प्रीमियम आदि को घटाने के पश्चात् जो शेष रहता है उसे शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद कहते हैं।

35.

निम्नलिखित में से कौन राष्ट्रीय आय मापने की विधि नहीं है? (क) सम्पत्ति गणना-विधि(ख) उत्पादन गणना-विधि(ग) व्यय गणना-विधि(घ) आय गणना-विधि

Answer»

सही विकल्प है (क) सम्पत्ति गणना-विधि।

36.

कुल राष्ट्रीय उत्पाद किसे कहते हैं ?

Answer»

किसी अर्थव्यवस्था में वस्तुओं व सेवाओं के अन्तिम उत्पादन के मौद्रिक मूल्य (बाजार कीमतों के आधार पर) को कुल राष्ट्रीय आय कहते हैं तथा सेवाओं के अन्तिम भौतिक उत्पादन के योग को कुल राष्ट्रीय उत्पादन कहते हैं।

37.

राष्ट्रीय आय की गणना करने की किन्हीं दो विधियों के नाम लिखिए।

Answer»

(i) उत्पादन गणना-विधि तथा
(ii) आय गणना-विधि।

38.

फिशर ने राष्ट्रीय आय की परिभाषा में किस पक्ष पर विशेष महत्त्व दिया है ?

Answer»

प्रो० फिशर ने राष्ट्रीय आय की परिभाषा में उत्पादन के स्थान पर उपभोग पक्ष को अधिक महत्त्व दिया है।

39.

राष्ट्रीय आय क्या है ? विस्तारपूर्वक समझाइए।

Answer»

राष्ट्रीय आय का अर्थ एवं परिभाषाएँ
‘राष्ट्रीय आय अथवा लाभांश उत्पादन के साधनों द्वारा किसी एक निश्चित समय में (प्रायः एक वर्ष में) उत्पादन किये गये पदार्थों एवं सेवाओं की शुद्ध मात्रा होती है अर्थात् एक वर्ष की अवधि में किसी देश में जितनी वस्तुओं और सेवाओं का कुल उत्पादन होता है, उसे ही उस देश की वास्तविक
राष्ट्रीय आय कहते हैं। राष्ट्रीय आय या राष्ट्रीय लाभांश की परिभाषा भिन्न-भिन्न अर्थशास्त्रियों ने भिन्न प्रकार से दी है, जिनमें से कुछ परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं
(i) प्रो० मार्शल के अनुसार – ‘किसी देश के श्रम और पूँजी उसके प्राकृतिक साधनों पर कार्य करके, प्रतिवर्ष भौतिक तथा अभौतिक पदार्थों तथा समस्त प्रकार की सेवाओं की एक शुद्ध मात्रा उत्पन्न करते हैं। इसमें विदेशी विनियोग से प्राप्त आय भी जोड़ देनी चाहिए। यही देश की शुद्ध वास्तविक वार्षिक आय या राष्ट्रीय लाभांश है।’
शुद्ध आय से मार्शल का अभिप्राय है, कुल उत्पादन (Gross Product) में से ये राशियाँ घटा देनी चाहिए
⦁    चल पूँजी का प्रतिस्थापना व्यय,
⦁    अचल पूँजी का मूल्य ह्रास, मरम्मत और प्रतिस्थापना के लिए किया गया व्यय,
⦁    कर,
⦁    बीमे की प्रीमियम आदि।
गुण – मार्शल की परिभाषा सरल और स्पष्ट है। मार्शल की परिभाषा में निम्नलिखित बातें पायी जाती हैं
⦁    राष्ट्रीय लाभांश देश में उत्पन्न होने वाली वास्तविक उत्पत्ति (Net Product) का योग है।
⦁     इसमें सभी प्रकार की सेवाएँ भी सम्मिलित की जाती हैं।
⦁    इसमें विदेशों से प्राप्त होने वाली निबल आय भी सम्मिलित की जाती है।
⦁    राष्ट्रीय लाभांश की गणना प्रतिवर्ष की जाती है।
प्रो० मार्शल की परिभाषा की आलोचनाएँ
⦁     राष्ट्रीय आय की गणना अत्यन्त कठिन है। प्रो० मार्शल ने पदार्थों एवं सेवाओं को राष्ट्रीय आय की गणना का आधार माना है; अत: उनकी गणना करना तथा समस्त पदार्थों का मूल्य ज्ञात करना कठिन होता है। इस कारण राष्ट्रीय आय की गणना ठीक-ठीक नहीं हो सकती।।
⦁    प्रो० मार्शल की परिभाषा सैद्धान्तिक दृष्टि से अत्यन्त श्रेष्ठ होते हुए भी व्यावहारिक दृष्टि से पूर्ण नहीं है।
(ii) प्रो० पीगू के विचार –  पीगू ने मार्शल की परिभाषा की कमियों को दूर करने का प्रयत्न किया। प्रो० पीगू ने राष्ट्रीय लाभांश की निम्नलिखित परिभाषा दी है-“राष्ट्रीय लाभांश किसी समुदाय की वास्तविक आय (जिसमें विदेशों से प्राप्त आय भी सम्मिलित है) का वह भाग है जो द्रव्य के द्वारा मापा जा सकता है।”
प्रो० पीगू ने राष्ट्रीय आय में उत्पत्ति के केवल उसी भाग को सम्मिलित किया है जिसका द्रव्य में मूल्यांकन किया जा सकता है।

आलोचनाएँ
⦁    प्रो० पीगू की परिभाषा में संकीर्णता का दोष विद्यमान है, क्योंकि प्रो० पीगू के अनुसार, राष्ट्रीय आय समस्त उत्पादन नहीं, वरन् उसका केवल वह भाग है जिसे द्रव्य में मापा जा सकता है।
⦁     प्रो० पीगू की परिभाषा में विरोधाभास पाया जाता है। यदि कोई कार्य द्रव्य के बदले में किया जाए तब वह राष्ट्रीय आय में सम्मिलित किया जाएगा और यदि वही कार्य सेव-भाव से किया जाए तो राष्ट्रीय आय में सम्मिलित नहीं किया जाएगा।

गुण – प्रो० पीगू की परिभाषा में संकीर्णता एवं विरोधाभास के अवगुण होते हुए भी यह अधिक व्यावहारिक है तथा इसके द्वारा राष्ट्रीय लाभांश की गणना सरलतापूर्वक की जा सकती है।
प्रो० फिशर के विचार – प्रो० मार्शल तथा प्रो० पीयू ने राष्ट्रीय आय की परिभाषा उत्पादन की दृष्टि से की है, जबकि प्रो० फिशर ने राष्ट्रीय आय की परिभाषा उपभोग की दृष्टि से की है।
(iii) प्रो० फिशर के अनुसार, “राष्ट्रीय लाभांश अथवा आय में केवल वे सेवाएँ सम्मिलित की जा सकती हैं जो कि अन्तिम उपभोक्ताओं को प्राप्त होती हैं, चाहे वे सेवाएँ भौतिक परिस्थितियों से उत्पन्न हुई हों या मानवीय परिस्थितियों से।
प्रो० फिशर ने अपनी परिभाषा में इस बात पर विशेष बल दिया है कि राष्ट्रीय आय में वर्ष की वास्तविक उत्पत्ति का केवल वह भाग सम्मिलित किया जाता है जिसका प्रत्यक्ष रूप से उपभोग किया जाता है। उन्होंने बताया कि एक पियानो या ओवर कोट जो इस वर्ष मेरे लिए बनाया गया है, इस वर्ष की आय का अंश नहीं है, बल्कि केवल पूँजी में वृद्धि है। केवल वे सेवाएँ जो इस वर्ष के भीतर मुझे प्राप्त हैं, आय में सम्मिलित की जाएँगी।
आलोचना
प्रो० फिशर का मत तर्कसंगत है, किन्तु व्यावहारिक दृष्टि से अनुपयुक्त है, क्योंकि इस आधार पर राष्ट्रीय आय की गणना करना असम्भव है।
उपर्युक्त तीनों विचारकों की परिभाषाओं का विश्लेषण करने के उपरान्त हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि प्रो० मार्शल की परिभाषा ही अधिक उचित है।

40.

राष्ट्रीय आय की गणना-विधियाँ कौन-कौन-सी हैं ? समझाइए।याराष्ट्रीय आय मापने की प्रमुख विधियाँ बताइए। याराष्ट्रीय आय अनुमान की विभिन्न अवधारणाओं की व्याख्या कीजिए।याराष्ट्रीय आय क्या है? राष्ट्रीय आय के आकलन (नापने) की किसी एक विधि की विवेचना कीजिए।याराष्ट्रीय आय क्या है? इसे मापने की उत्पादन गणना विधि अथवा आय गणना विधि में से किसी एक विधि का वर्णन कीजिए। याराष्ट्रीय आय मापने की किसी एक विधि को समझाइए। याराष्ट्रीय आय को अनुमानित करने की उत्पादन विधि का वर्णन कीजिए। याराष्ट्रीय आय मापने की उत्पादन विधि को समझाइए।

Answer»

राष्ट्रीय आय की गणना-विधियाँ 
राष्ट्रीय आय की गणना करने के लिए निम्नलिखित विधियों का प्रयोग किया जाता है

1. उत्पादन गणना-विधि – इस विधि में देश के सभी प्रकार के उत्पादकों का कुल उत्पादन ज्ञात किया जाता है। कुल उत्पादन ज्ञात करने के लिए वे समस्त वस्तुएँ व सेवाएँ जिनका विक्रय किया गया है, स्वयं प्रयोग की गयी वस्तुएँ तथा बचे हुए स्टॉक को जोड़ दिया जाता है। कुल उत्पादन में से ह्रास व अप्रचलन घटाकर शुद्ध उत्पादन ज्ञात कर लिया जाता है। सभी उत्पादकों के शुद्ध उत्पादन के योग में समस्त राष्ट्र का वास्तविक कुल घरेलू उत्पादन तथा शुद्ध विदेशी आय जोड़ देने से कुल राष्ट्रीय लाभांश ज्ञात हो जाता है। इस रीति के अन्तर्गत एक वर्ष में वस्तुओं व सेवाओं के उत्पादन के मौद्रिक मूल्य का योग निकाला जाता है तथा देश के वस्तुओं व सेवाओं के उत्पादन सम्बन्धी आँकड़े एकत्रित किये जाते हैं। इस विधि को वस्तु-सेवा गणना-विधि भी कहा जाता है।
इस विधि का प्रमुख दोष यह है कि इसमें कभी-कभी वस्तुओं की दोहरी गणना हो जाती है। दूसरे, इस रीति के अनुसार सेवाओं का मूल्यांकन करना कठिन हो जाता है।
2. आय गणना-विधि – इस विधि में देश के सभी व्यक्तियों की आय ज्ञात करके उन्हें जोड़ दिया जाता है। इस प्रकार कुल राष्ट्रीय आय ज्ञात हो जाती है। इस विधि को प्रयोग में लाने के लिए जो व्यक्ति आयकर देते हैं उनकी आय तो आय कर विभाग से मालूम कर ली जाती है और जो लोग आयकर नहीं देते, उनकी आय पारिवारिक बजट व अन्य सूचनाएँ एकत्रित करके ज्ञात की जाती है। परन्तु जो व्यक्ति आय कर नहीं देते उनके सम्बन्ध में वास्तविक जानकारी प्राप्त करना एक कठिन कार्य है। इसलिए आय का सही ज्ञान नहीं हो पाता है।
3. व्यय गणना-रीति – इस रीति के अनुसार सभी नागरिकों द्वारा किया गया व्यय एवं बचतों को जोड़ दिया जाता है। यही जोड़ राष्ट्रीय आय कहलाता है। इस बात को हम इस प्रकार कह सकते हैं। कि व्यक्तिगत आय = उपभोग व्यय + बचते या राष्ट्रीय आय = राष्ट्रीय उपभोग व्यय + राष्ट्रीय बचते। किसी देश का विनियोग राष्ट्रीय बचत पर निर्भर होता है या बचतों के बराबर होता है। इसलिए इस रीति को ‘उपभोग विनियोग रीति’ भी कहा जाता है। इस विधि की सबसे बड़ी कमी यह है कि देश के सभी व्यक्तियों के उपभोग व्यय सम्बन्धी आँकड़ों व बचतों की सही जानकारी प्राप्त नहीं हो पाती है। इस कारण राष्ट्रीय आय की गणना करना कठिन होता है।
4. मिश्रित विधि – इस विधि के समर्थक डॉ० वी० के० आर० वी० राव हैं। इस प्रणाली में उत्पादन गणना-रीति व आय गणना-रीति दोनों का मिला-जुला उपयोग किया जाता है। कृषि, खनिज तथा उद्योगों के क्षेत्र में उत्पादन गणना-रीति और व्यापार, परिवहन, प्रशासनिक सेवाओं व अन्य सेवाओं आदि के क्षेत्र में आय गणना-रीति का उपयोग किया जाता है। भारत की राष्ट्रीय आय का अनुमान लगाने के लिए राष्ट्रीय आय समिति ने इसी गणना विधि का प्रयोग किया था। इस मिली-जुली विधि का प्रयोग हमारे देश के लिए उपयुक्त है।

41.

प्रो० फिशर द्वारा दी गयी राष्ट्रीय आय की परिभाषा लिखिए।

Answer»

प्रो० फिशर के अनुसार, “वास्तविक राष्ट्रीय आय कुल उत्पादन का वह भाग है जो सम्बन्धित वर्ष में उपभोग किया जाता है।”

42.

राष्ट्रीय आय समिति पर टिप्पणी लिखिए।

Answer»

राष्ट्रीय आय समिति
भारत सरकार ने सन् 1949 में एक राष्ट्रीय आय समिति की स्थापना की, जिसके अध्यक्ष प्रो० महालनोबिस थे। राष्ट्रीय आय समिति का कार्य राष्ट्रीय आय सम्बन्धी आँकड़ों को एकत्रित करना और राष्ट्रीय आय व प्रति व्यक्ति आय के सन्दर्भ में प्रतिवेदन तैयार करना था। राष्ट्रीय आय अनुमान विधियों में सुधार हेतु सुझाव देना भी समिति का कार्य था। इस समिति ने राष्ट्रीय अनुमान की एक श्रेष्ठ विधि अपनायी। समिति ने आवश्यकतानुसार उत्पादन गणना-रीति व आय गणना-रीति दोनों का प्रयोग किया तथा राष्ट्रीय आय के अनुमान प्रस्तुत किये। राष्ट्रीय आय समिति ने अपनी अन्तिम रिपोर्ट 1954 में दी थी। इस समिति के अनुसार, सन् 1948-49 में देश की कुल राष्ट्रीय आय ₹8,650 करोड़ तथा 1950 में ₹ 9,530 करोड़ थी। इस प्रकार सन् 1950-51 में भारतीय प्रति व्यक्ति आय र 266 थी।

43.

राष्ट्रीय आय की गणना सम्बन्धी कठिनाइयों का वर्णन कीजिए। याराष्ट्रीय आय क्या है ? भारत की राष्ट्रीय आय की गणना में मुख्य कठिनाइयों को बताइए।

Answer»

भारत में राष्ट्रीय आय की गणना सम्बन्धी कठिनाइयाँ
भारत में राष्ट्रीय आय को ज्ञात करने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना होता है।

इनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं
1. वस्तुओं व सेवाओं का मूल्य मुद्रा में जानने में कठिनाई  – राष्ट्रीय आय की गणना मुद्रा या द्रव्य में की जाती है। परन्तु हम अपने दैनिक जीवन में देखते हैं कि अनेक वस्तुएँ तथा सेवाएँ ऐसी होती । हैं जिनके मूल्य को द्रव्य में नहीं मापा जा सकता; जैसे-माँ व स्त्री की सेवाएँ, प्रेम, दया, अपने द्वारा उत्पादित वस्तुओं को स्वयं उपभोग करना आदि। राष्ट्रीय आय की गणना के लिए समस्त उत्पादित वस्तुओं का द्राव्यिक मूल्य ज्ञात करना अनिवार्य है। भारत में कृषक स्व-उत्पादित वस्तुओं का एक बड़ा भाग स्वयं ही उपभोग कर लेते हैं। अत: भारत में कृषि क्षेत्र में उत्पादित वस्तुओं का ठीक-ठीक द्राव्यिक मूल्य ज्ञात करना अत्यन्त कठिन कार्य है।
2. आँकड़ों का विश्वसनीय न होना – राष्ट्रीय आय का अनुमान तभी ठीक प्रकार से लगाया जा सकता है, जबकि उत्पादन आय से सम्बन्धित प्राप्त होने वाले आँकड़े ठीक एवं विश्वसनीय हों। परन्तु भारत की जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग अशिक्षित है। अत: वह अपने आय-व्यय का हिसाब ठीक प्रकार से नहीं रख पाता है, जिसके कारण राष्ट्रीय आय की गणना करने में कठिनाई आती है।
3. व्यावसायिक विशिष्टीकरण का अभाव – हम जानते हैं कि देश में जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग कृषि कार्य में लगा हुआ है। कृषि पर जनसंख्या का भार इतना अधिक है कि कृषकों की जीविका केवल कृषि से नहीं चल पाती है। अतः अपनी जीविका को चलाने के लिए कुटीर उद्योग चलाने पड़ते हैं या लघु उद्योगों में कार्य करना होता है। इस कथन से स्पष्ट हो जाता है कि देश में व्यावसायिक विशिष्टीकरण का अत्यन्त अभाव है जिससे देश की राष्ट्रीय आय को अनुमान करना अत्यन्त कठिन कार्य हो जाता है।
4. विभिन्न क्षेत्रों की भिन्न-भिन्न परिस्थितियाँ – भारत में विभिन्न क्षेत्रों की परिस्थितियाँ भिन्न-भिन्न हैं। अत: किसी क्षेत्र विशेष सम्बन्धी जानकारी को अन्य क्षेत्रों में प्रयोग में नहीं लाया जा सकता। इसके परिणामस्वरूप राष्ट्रीय आय की गणना में अनेक व्यावसायिक बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
5. दोहरी गणना की सम्भावना बनी रहना – राष्ट्रीय आय में प्राय: दोहरी गणना की सम्भावना बनी रहती है।
6. अविकसित देशों में राष्ट्रीय आय की उचित गणना का न होना – प्रायः अविकसित देशों में राष्ट्रीय आय की उचित गणना नहीं हो पाती है। इसका प्रमुख कारण यह है कि अविकसित देशों की अर्थव्यवस्था में अनेक वस्तुओं व सेवाओं का आदान-प्रदान द्रव्य के माध्यम से नहीं होता है।
7. मूल्य ह्रास का सही अनुमान न होना – मूल्य ह्रास वे प्रतिस्थापन का अनुमान सही ने लगा पाना, क्योंकि ये अनुमानित समय के पूर्व ही घटित हो सकते हैं; अतः सही राष्ट्रीय आय की गणना कठिन है।
8. मूल्यांकन की समस्या – उत्पादन गणना विधि के अनुसार उत्पादित वस्तुओं की मात्राओं को मूल्यों से गुणा करके विभिन्न गुणनफलों के योग को राष्ट्रीय आय कहा जाता है। परन्तु इसमें यह कठिनाई है कि गणना करते समय थोक या फुटकर कौन-सी कीमत से गणना करनी चाहिए, स्पष्ट नहीं होता।
9. हस्तान्तरण आय और उत्पादक आय में भेद करना कठिन – जबे सरकार बाजार से ऋण लेकर उनका प्रयोग अनुत्पादक कार्यों में करती है, तब ऐसे ऋणों पर ब्याज ‘हस्तान्तरण आय कहलाती है। परन्तु जब उनको प्रयोग उत्पादक कार्यों में होता हैं तो उन ऋणों पर ब्याज उत्पादक आय’ कहलाती है। राष्ट्रीय आय में हस्तान्तरण आय को नहीं जोड़ा जाता, जबकि उत्पादक आय को जोड़ा जाता है। यह ज्ञात करना कठिन है कि ऋण का कितना भाग उत्पादक है और कितना अनुत्पादक, जिससे राष्ट्रीय आय का अनुमान सही नहीं होता है।
10. कुटीर उद्योगों का उत्पादन – कुटीर उद्योग प्रायः अशिक्षित व्यक्तियों द्वारा संचालित होते हैं जो कि अपने व्यवसाय के ठीक-ठीक आँकड़े रखने में असमर्थ होते हैं। अत: इस क्षेत्र के उत्पादक आँकड़े अविश्वसनीय होते हैं।
11. वस्तुओं और सेवाओं का चुनाव – वस्तुओं और सेवाओं के चुनाव के सम्बन्ध में यह निर्णय करना अत्यधिक कठिन हो जाता है कि अमुक वस्तु अर्द्धनिर्मित है या अन्तिम।

44.

राष्ट्रीय आय में द्रव्य को सबसे अधिक महत्त्व दिया है(क) प्रो० मार्शल ने(ख) प्रो० पीगू ने(ग) प्रो० फिशर ने(घ) एडम स्मिथ ने

Answer»

सही विकल्प है  (ख) प्रो० पीगू ने।

45.

राष्ट्रीय आय से आप क्या समझते हैं? इसके महत्त्व पर प्रकाश डालिए।

Answer»

राष्ट्रीय आय का महत्त्व
1. राष्ट्रीय आय से देश की वर्तमान आर्थिक स्थिति का ज्ञान होता है – किसी राष्ट्र की आर्थिक सम्पन्नता उसके द्वारा प्रतिवर्ष उपार्जित आय पर निर्भर होती है। किसी देश की राष्ट्रीय आय को देखकर यह अनुमान लगा लिया जाता है कि देश की वर्तमान आर्थिक स्थिति किस प्रकार की है ? यदि किसी देश की राष्ट्रीय आय कम है तो इसका अर्थ है कि देश की वर्तमान आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है तथा राष्ट्रीय आय में वृद्धि करने की आवश्यकता है।
2. भविष्य का विकास सम्बन्धी प्रवृत्तियों का ज्ञान – राष्ट्रीय आय से किसी देश की वर्तमान आर्थिक स्थिति का ही नहीं बल्कि उसके भावी विकास का भी पता लग जाता है। यदि राष्ट्रीय आय में निरन्तर वृद्धि होती जा रही है तब भविष्य में आर्थिक विकास अच्छा होगा तथा लोगों का जीवन-स्तर ऊँचा होगा। यदि देश में राष्ट्रीय आय कम है तथा उसकी विकास दर भी कम है तो इसका स्पष्ट अर्थ है। कि देश का भविष्य उज्ज्वल नहीं है।
3. देश के आर्थिक कल्याण का ज्ञान – किसी देश की राष्ट्रीय आय तथा उसके आर्थिक कल्याण में घनिष्ठ सम्बन्ध है, “राष्ट्रीय आय को आर्थिक कल्याण का मापक कहा जाता है। अन्य बातें समान रहने पर किसी देश की राष्ट्रीय आय जितनी अधिक होती है उसका आर्थिक कल्याण भी उतना ही अधिक होता है तथा राष्ट्रीय आय के कम हो जाने पर आर्थिक कल्याण घट जाता है।
4. राष्ट्रीय आय से देश के लोगों के रहन – सहन के स्तर का ज्ञान-राष्ट्रीय आय को देखकर यह पता लग जाता है कि देश के लोगों का रहन-सहन का स्तर किस प्रकार का है। देश में प्रति व्यक्ति आय जितनी अधिक होती है लोगों का ज़ीवन-स्तर भी उतना ही ऊँचा होता है। प्रति व्यक्ति आय का कम होना निम्न जीवन-स्तर का सूचक होता है।
5. भिन्न देशों की आर्थिक प्रगति की तुलना – राष्ट्रीय आय के द्वारा दो विभिन्न देशों की आर्थिक प्रगति की तुलना की जा सकती है तथा यह भी अनुमान लगाया जा सकता है कि देश के आर्थिक विकास के लिए अभी कितनी सम्भावनाएँ शेष हैं।
6. आर्थिक नियोजन में महत्त्व – राष्ट्रीय आय को देखकर ही देश के भावी विकास सम्बन्धी योजनाएँ तैयार की जाती हैं। देश के आर्थिक नियोजन को सफल बनाने के लिए राष्ट्रीय आय का ज्ञान आवश्यक है।
7. राष्ट्रीय आय का पूँजी-निर्माण में महत्त्व – पूँजी-निर्माण किसी देश के आर्थिक विकास के लिए आवश्यक है। पूँजी-निर्माण बचत पर निर्भर होता है, बचत प्रति व्यक्ति आय एवं राष्ट्रीय आय से प्रभावित होती है; अतः राष्ट्रीय आय पूँजी-निर्माण को प्रभावित करती है।

46.

प्रति व्यक्ति आय क्या है?

Answer»

किसी देश की राष्ट्रीय आय को उस देश की कुल जनसंख्या से भाग देने पर हमें प्रति व्यक्ति आय प्राप्त हो जाती है।

47.

यदि देश में प्रति व्यक्ति आय ₹60,000 हो और देश की जनसंख्या 120 करोड़ हो, तो राष्ट्रीय आय की गणना कीजिए।

Answer»

राष्ट्रीय आय = प्रति व्यक्ति आय x देश की जनसंख्या

= 60,000 x 12000000000 

= 720000000000000

= ₹72 लाख करोड़

48.

राष्ट्रीय आय की गणना की रीतियाँ हैं(क) उत्पादन गणना-रीति(ख) आय गणना-रीति(ग) व्यय गणना-रीति(घ) ये तीनों

Answer»

सही विकल्प है  (घ) ये तीनों।

49.

राष्ट्रीय आय के आर्थिक विकास में योगदान की व्याख्या कीजिए।

Answer»

राष्ट्रीय आय एवं आर्थिक विकास
आर्थिक विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा दीर्घकाल में किसी अर्थव्यवस्था की वास्तविक राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है। अत: किसी देश के द्वारा अपनी वास्तविक राष्ट्रीय आय बढ़ाने हेतु सभी उत्पादन साधनों का कुशलतम प्रयोग करना ही आर्थिक विकास है।
आर्थिक विकास और राष्ट्रीय आय का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध हैं। किसी देश का आर्थिक विकास करने का अर्थ उस देश की राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि के साथ-साथ देश के सर्वांगीण विकास एवं सामाजिक कल्याण में वृद्धि करना भी है, जिससे उसके प्रत्येक निवासी का जीवन-स्तर ऊँचा उठ सके तथा मानव के आर्थिक कल्याण में वृद्धि हो सके। इसी प्रकार यदि किसी देश की राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है तो इसका भी यही अर्थ है कि देश के आर्थिक विकास का प्रयत्न किया जा रहा है। राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होने से निर्धनता दूर होगी, देशवासियों को पर्याप्त सुविधाएँ उपलब्ध हो सकेंगी और उनका जीवन सुखमय होगा।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि राष्ट्रीय आय व आर्थिक विकास एक-दूसरे के सहयोगी हैं।’ किसी देश में राष्ट्रीय आय में उत्तरोत्तर वृद्धि उसकी आर्थिक प्रगति की सूचक होती है। राष्ट्रीय आय के आधार पर ही विकसित, विकासशील व पिछड़े देशों के मध्य तुलना की जाती है। प्रायः उच्च राष्ट्रीय आय व उच्च प्रति व्यक्ति आय वाले देशों को विकसित देश कहा जाता है। इसके विपरीत कम आय वाले देशों को विकासशील देश कहा जाता है। इस प्रकारे स्पष्ट है कि आर्थिक विकास व राष्ट्रीय आय में घनिष्ठ सम्बन्ध है।

50.

भारत में प्रति व्यक्ति आय कम होने के मुख्य कारण बताइए।

Answer»

(1) राष्ट्रीय आय में वृद्धि जनसंख्या में वृद्धि की अपेक्षा कम है।
(2) पूँजी निर्माण की गति धीमी है।