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This section includes InterviewSolutions, each offering curated multiple-choice questions to sharpen your knowledge and support exam preparation. Choose a topic below to get started.
| 1. | राज्य सूची में कितने विषय हैं? | 
| Answer» राज्य सूची में 62 विषय हैं। | |
| 2. | उस परिस्थिति का उल्लेख कीजिए, जब संसद राज्य सूची के किसी विषय पर कानून बना सकती है। | 
| Answer» यदि राज्यसभा अपने 2/3 बहुमत से राज्य सूची में निहित किसी विषय को राष्ट्रीय महत्त्व का घोषित कर दे। | |
| 3. | समवर्ती सूची पर कानून निर्मित करने का अधिकार किसको प्राप्त है?(क) केन्द्र को(ख) राज्य को(ग) केन्द्र तथा राज्य दोनों को(घ) केन्द्र-शासित प्रदेश को | 
| Answer» सही विकल्प है (ग) केन्द्र तथा राज्य दोनों को | |
| 4. | केन्द्र तथा राज्यों में शक्तियों का विभाजन की तीन सूचियों में से शिक्षा किस सूची में है। | 
| Answer» शिखा को समवर्ती सूची में सम्मिलित किया गया है। | |
| 5. | भारत के संविधान में शक्तिशाली केन्द्र की स्थापना क्यों की गई है? | 
| Answer» भारत के संविधान में शक्तिशाली केन्द्र की स्थापना इसलिए की गई है, क्योकि – | |
| 6. | भारत में संघीय व्यवस्था का भविष्य किस बात पर निर्भर करता है? संक्षेप में विवेचना कीजिए। | 
| Answer» भारत में संघीय व्यवस्था का भविष्य केन्द्र-राज्य संबंधों के सफल संचालन पर निर्भर करता है। केन्द्र तथा राज्यों का संबंध कतिपय तात्कालिक समस्याओं के समाधान पर निर्भर करेगा। ये समस्याएँ हैं-केन्द्र द्वारा राज्यों को अपने क्षेत्र में अधिक-से-अधिक स्वतन्त्रता प्रदान करना, केन्द्रीय वित्तीय संसाधनों का राज्यों के मध्य न्यायपूर्ण विभाजन, खाद्य समस्या तथा रिजर्व बैंक में राज्यों द्वारा ओवर ड्राफ्ट लेना। इन समस्याओं में दोनों सरकारों के बीच सहयोग होना चाहिए न कि प्रतिस्पर्धा तथा विरोध। | |
| 7. | केन्द्र और राज्यों के मध्य वित्तीय सम्बन्धों की परीक्षण कीजिए। | 
| Answer» वित्तीय क्षेत्र में संविधान के द्वारा संघ व राज्य सरकारों के क्षेत्र अलग-अलग कर दिये गये हैं। तथा दोनों ही सरकारें सामान्यतया अपने-अपने क्षेत्र में स्वतन्त्रतापूर्वक कार्य करती हैं। इस सम्बन्ध में संविधान द्वारा की गयी व्यवस्था निम्न प्रकार है – पहले प्रकार के कर ऐसे हैं जो केन्द्र द्वारा लगाये और वसूल किये जाते हैं, पर जिनकी सम्पूर्ण आय राज्यों में बाँट दी जाती है। इस प्रकार के करों में प्रमुख रूप से उत्तराधिकार कर, सम्पत्ति कर, समाचार-पत्र कर आदि आते हैं। दूसरे प्रकार के वे कर हैं, जो केन्द्र निर्धारित करता, किन्तु राज्य एकत्रित करते और अपने उपयोग में लाते हैं। स्टाम्प शुल्क करं एक ऐसा ही कर है। केन्द्र शासित क्षेत्रों में इन करों की वसूली केन्द्रीय सरकार करती है। तीसरे प्रकार के कर वे हैं जो केन्द्र द्वारा लगाये व वसूल किये जाते हैं, पर जिनकी शुद्ध आय संघ व राज्यों के बीच बाँट दी जाती है। कृषि आय के अतिरिक्त अन्य आय पर कर प्रमुख रूप से इसी प्रकार का कर है। राज्यों को अनुदान – संविधान के अनुच्छेद 275 के अनुसार जिन राज्यों को संसद विधि द्वारा अनुदान देना निश्चित करे उन राज्यों को अनुदान दिया जाएगा। ये अनुदान पिछड़े हुए वर्गों को ऊँचा उठाने और अन्य विकास योजनाओं को पूरा करने के लिए दिये जाएँगे। सार्वजनिक ऋण प्राप्ति की व्यवस्था – संघीय सरकार अपनी संचित निधि की जमानत पर संसद की आज्ञानुसार ऋण ले सकती है। राज्यों की सरकारें भी विधानमण्डल द्वारा निर्धारित सीमा तक ऋण ले सकती हैं। संघीय सरकार विदेशों से भी ऋण ले सकती है, किन्तु राज्य सरकारें ऐसा नहीं कर सकतीं। वित्त आयोग – संविधान के अनुच्छेद 280 में व्यवस्था में की गयी है कि प्रति 5 वर्ष बाद राष्ट्रपति एक वित्त आयोग की स्थापना करेगा। इस आयोग के द्वारा संघ और राज्य सरकारों के बीच करों के वितरण, भारत की संचित निधि में से धन के व्यय तथा वित्तीय व्यवस्था से सम्बन्धित अन्य विषयों पर सिफारिश करने का कार्य किया जाएगा। | |
| 8. | क्या कुछ प्रदेशों में शासन के लिए विशेष प्रावधान होने चाहिए? क्या इससे दूसरे प्रदेशों में नाराजगी पैदा होती है? क्या इन विशेष प्रावधानों के कारण देश के विभिन्न क्षेत्रों के बीच एकता मजबूत करने में मदद मिलती है? | 
| Answer» संघीय प्रशासन के सिद्धान्तों के अनुसार सभी राज्यों के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए। सभी राज्यों में विकास कार्य समान होने चाहिए। भारत में ऐसा नहीं है। भारत में कुछ छोटे राज्य हैं, कुछ बड़े। राज्यसभा में राज्यों का असमान प्रतिनिधित्व है। जम्मू-कश्मीर को संविधान के अनुच्छेद 370 के अन्तर्गत विशेष दर्जा दिया गया है जिसके आधार पर जम्मू-कश्मीर की राज्य के रूप में अपनी प्रभुसत्ता है। इसी प्रकार से उत्तर-पूर्वी राज्यों (असम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश व त्रिपुरा) के विकास के लिए विशेष प्रावधान हैं। इन राज्यों के राज्यपाल को विशेष शक्तियाँ प्राप्त हैं। कमजोर और पिछड़े राज्यों के विकास के लिए विशेष सुविधाएँ देना अनुचित नहीं है और न ही अन्य प्रदेशों को इससे असहमत होना चाहिए। सभी राज्यों की आवश्यकताओं को पूरा किया जाना चाहिए जिससे राष्ट्रीय एकता, अखण्डता को कोई खतरा उत्पन्न न हो। | |
| 9. | “भारत का संविधान अर्द्ध-संघीय शासन-व्यवस्था की स्थापना करता है।” इस कथन की विवेचना कीजिए।या“भारत का संविधान संघात्मक भी है और एकात्मक भी।” व्याख्या कीजिए।या“भारतीय संविधान का रूप संघात्मक है, लेकिन उसकी आत्मा एकात्मक।” इस कथन की समीक्षा कीजिए।याभारत के संघवाद के पक्ष में चार तर्क दीजिए।या“भारत एक संघात्मक राज्य है।” इस कथन का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।याभारतीय संघात्मक व्यवस्था के एकात्मक लक्षणों का वर्णन कीजिए।याभारतीय संविधान में संघ और राज्यों के बीच शक्तियों में बँटवारे का आधार और महत्त्व बताइए। | 
| Answer» भारत एक विशाल तथा विभिन्नताओं वाला राज्य है। इस प्रकार के राज्य का प्रबन्ध एक केन्द्रीय सरकार द्वारा सफलतापूर्वक चलाया जाना कठिन ही नहीं अपितु असम्भव भी है। इसी कारण भारत में संघीय शासन-व्यवस्था को अपनाया गया है। लेकिन इसके बावजूद भारत में संघात्मक स्वरूप सम्बन्धी विवाद पाया जाता है, क्योंकि भारतीय संविधान में न तो कहीं ‘संघात्मक और न ही कहीं ‘एकात्मक’ शब्द का प्रयोग किया गया है। भारतीय संविधान के संघीय स्वरूप सम्बन्धी अपने विचारों को व्यक्त करते हुए प्रो० डी० एन० बनर्जी ने उचित ही कहा है कि “भारतीय संविधान स्वरूप में संघात्मक तथा भावना में एकात्मक है।” भारतीय संविधान के संघीय स्वरूप को भली प्रकार से समझने के लिए हमें इसके दोनों पक्षों (संघात्मक तथा एकात्मक) का अध्ययन करना पड़ेगा जो कि निम्नलिखित हैं भारतीय संविधान की संघीय विशेषताएँ (लक्षण) हालांकि भारतीय संविधान में ‘संघ’ शब्द का उपयोग नहीं किया गया है, लेकिन फिर भी व्यवहार में संघात्मक शासन-प्रणाली को ही स्वीकार किया गया है। भारतीय संविधान में कहा गया है कि भारत राज्यों का एक ‘संघ’ होगा। इस तथ्य की अवहेलना नहीं की जा सकती कि भारतीय संविधान में एकात्मक तत्त्व विद्यमान हैं, लेकिन यह भी अटल सत्य है कि भारतीय संविधान में संघात्मक प्रणाली के भी समस्त लक्षण विद्यमान हैं, जिन्हें निम्नलिखित रूप में व्यक्त किया जा सकता है – (1) संविधान की सर्वोच्चता – संघात्मक शासन में संविधान को सर्वोच्च स्थान दिया जाता है। संविधान और संविधान द्वारा बनाये गये कानून देश के सर्वोच्च कानून होते हैं। भारतीय संविधान में संवैधानिक सर्वोच्चता का उल्लेख नहीं है, लेकिन फिर भी संविधान की सर्वोच्चता को इस रूप में स्वीकार किया गया है कि भारतीय राष्ट्रपति, संसद इत्यादि सभी संविधान से शक्तियाँ ग्रहण करते हैं और वे संविधान से ऊपर नहीं हैं। इसके अतिरिक्त, भारतीय राष्ट्रपति द्वारा शपथ ग्रहण करते समय यह स्पष्ट किया जाता है कि वह संविधान की रक्षा करेंगे इसके साथ ही भारत की संसद अथवा विधानसभा द्वारा ऐसा कोई कानून पारित नहीं किया जा सकता जो संविधान के विपरीत हो। अतः कहा जा सकता है कि भारत में संविधान की सर्वोच्चता को स्वीकार किया गया है। भारतीय संविधान की एकात्मक विशेषताएँ (लक्षण) (1) इकहरी (एकल) नागरिकता – एकात्मक सरकार में इकहरी नागरिकता के सिद्धान्त को अपनाया जाता है, व्यक्ति प्रान्तों के नागरिक न होकर सम्पूर्ण देश के नागरिक होते हैं भारतीय संविधान के अन्तर्गत इसी सिद्धान्त को स्वीकार किया गया है अर्थात् सभी भारतीयों को चाहे वे किसी भी प्रान्त के निवासी क्यों न हों, उन्हें भारतीय नागरिक के रूप में स्वीकार किया गया है। यह एकात्मक तत्त्व का महत्त्वपूर्ण प्रतीक है। | |
| 10. | ज्यादा,स्वायत्तता की चाह में प्रदेशों ने क्या माँगें उठाई हैं? | 
| Answer» 1960 से निरन्तर विभिन्न राज्यों से प्रान्तीय स्वतन्त्रता की माँग निरन्तर उठाई जाती रही है। पश्चिम बंगाल, पंजाब, तमिलनाडु, जम्मू-कश्मीर व कुछ उत्तर पूर्वी राज्यों से विशेष रूप से यह माँग आती रही है- ⦁    केन्द्र व राज्यों के मध्य शक्तियों का विभाजन राज्यों के पक्ष में होना चाहिए। | |
| 11. | केंद्र तथा राज्य संबंधों में राज्यपाल की भूमिका की विवेचना कीजिए। | 
| Answer» राज्य का अध्यक्ष राज्यपाल होता है। उसकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है और वह राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त अपने पद पर रहता है। राज्यपाल की नियुक्ति पाँच वर्ष के लिए की जाती है; परन्तु वास्तविकता यह है कि वह अपनी नियुक्ति तथा पदच्युति के लिए केंद्रीय सरकार पर आश्रित रहता है। उसकी यही आश्रियता केंद्र तथा राज्य संबंधों में तनाव का कारण बन जाती है। जब केंद्र तथा राज्य में विभिन्न दलों की सरकार हो तो राज्य सरकार यह दावा करती है कि राज्यपाल की नियुक्ति उसके परामर्श से की जाए। परन्तु केंद्रीय सरकार अपनी पसंद के व्यक्ति को इस पद पर नियुक्त करके राज्य सरकार पर नियन्त्रण रखने का प्रयत्न करती है। राज्यपाल को कुछ ऐसे अधिकार भी प्राप्त हैं जिनका प्रयोग वह अपनी इच्छा से करता है, मंत्रिमण्डल की सलाह पर नहीं। ये अधिकार महत्त्वपूर्ण भी हैं। राज्य में संवैधानिक मशीनरी के असफल होने की रिपोर्ट वह अपने विवेक से करता है जिसके आधार पर केंद्र राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करता है। केंद्र ने अनेक बार उन राज्यों से जहाँ अन्य दल की सरकार थी, राज्यपाल से मनमाने ढंग से ऐसी रिपोर्ट ली और राष्ट्रपति शासन लागू कराया। राज्यपाल के ऐसे कार्यों ने केंद्र-राज्य संबंधों में तनाव को बढ़ाया है। दिसम्बर 1992 की अयोध्या घटना के पश्चात् केंद्र ने भाजपा द्वारा शासित चारों राज्योंउत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश तथा राजस्थान में राज्यपाल की रिपोर्टों के आधार पर राष्ट्रपति , शासन लागू कर दिया था। राज्यपाल का एक अधिकार जिसका प्रयोग वह अपने विवेक से करता है और राज्यपालों ने केंद्रीय सरकार के हित में इसका अत्यधिक प्रयोग किया है, वह है राज्य विधानमण्डल द्वारा पास किए गए। किसी बिल को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजना। इससे राज्य की विधायिका शक्ति प्रभावित होती है और बिल राष्ट्रपति के पास बहुत दिनों तक उसकी स्वीकृति के लिए पड़े रहते हैं। इस प्रकार केंद्र-राज्य संबंधों की दृष्टि से राज्यपाल की भूमिका अत्यन्त विवादास्पद रही है और इसने केंद्र और राज्यों के बीच कटुता और तनाव की स्थिति को बढ़ाया है। | |
| 12. | बहुत-से प्रदेश राज्यपाल की भूमिका को लेकर नाखुश क्यों हैं? | 
| Answer» भारतीय राजनीति में वर्तमान में सर्वाधिक चर्चित पद राज्यपाल का है। देश के अधिकांश राज्यों को अपने यहाँ के राज्यपालों से किसी-न-किसी रूप में शिकायत रहती है। इसका एक प्रमुख कारण यह है कि अधिकांश राज्यपालों की राजनीतिक पृष्ठभूमि होती है जिसके आधार पर केन्द्र के शासक दल द्वारा उनकी नियुक्ति की जाती है। इस कारण राज्यपाल निरपेक्ष रूप से अपने कर्तव्यों को पूरा नहीं करते। इनकी भूमिका केन्द्र के प्रतिनिधि के रूप में होती है जिसके आधार पर इनकी जिम्मेदारी केन्द्र के हितों की रक्षा करना होता है परन्तु ये केन्द्र में जिस दल की सरकार होती है उसके रक्षक बन जाते हैं जिससे राज्यों की सरकारों और राज्यपालों में टकराव उत्पन्न हो जाता है। | |
| 13. | उत्तर भारत के प्रदेशों-राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश तथा बिहार के अधिकांश लोग हिंदी बोलते हैं। यदि इन सभी प्रांतों को मिलाकर एक प्रदेश बना दिया जाए तो क्या ऐसा करना संघवाद के विचार से संगत होगा? तर्क दीजिए। | 
| Answer» यदि उत्तर भारत के प्रदेशों-राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश तथा बिहार जो कि सभी हिन्दी भाषी हैं, सभी को मिला दिया जाए तो भाषाई व सांस्कृतिक दृष्टि से तो वे सभी एक-इकाई के रूप में इकट्ठे हो सकते हैं परन्तु प्रशासनिक सुविधा की दृष्टि से यह उचित नहीं होगा। संघीय प्रशासन का प्रमुख आधार प्रशासनिक सुविधा है। देश में छत्तीसगढ़, उत्तराखण्ड व झारखण्ड का निर्माण प्रशासनिक आधार पर किया गया है। | |
| 14. | भारतीय संघ में कितने राज्य हैं? | 
| Answer» भारत में राज्यों की कुल संख्या 29 है। | |
| 15. | राज्यपाल की विवेकीय शक्तियाँ समझाइए। | 
| Answer» जिन शक्तियों को राज्यपाल स्वयं मुख्यमंत्री व मन्त्रिमण्डल के परामर्श के बिना प्रयोग करता है, उन्हें उसकी विवेकीय शक्तियाँ कहते हैं। राज्यपाल के पास अनेक विवेकीय शक्तियाँ हैं जिनमें प्रमुख निम्नलिखित हैं – ⦁    राज्यपाल किसी ऐसे बिल को, जिसे विधानसभा ने पास कर दिया हो, राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेज सकता है। | |
| 16. | भारतीय संविधान की ऐसी चार विशेषताओं का उल्लेख करें जिनमें प्रादेशिक सरकार की अपेक्षा केन्द्रीय सरकार को ज्यादा शक्ति प्रदान की गई। | 
| Answer» निम्नलिखित चार विशेषताएँ ऐसी हैं जिनके आधार पर केन्द्र को अधिक शक्तिशाली बनाया गया है- ⦁    केन्द्र के पक्ष में शक्तियों का विभाजन, | |
| 17. | संविधान के दो संघात्मक तत्त्व बताइए। | 
| Answer» ⦁    लिखित संविधान तथा | |
| 18. | भारतीय संविधान के दो एकात्मक लक्षण बताइए। | 
| Answer» ⦁    शक्तिशाली केन्द्र तथा | |
| 19. | भारतीय संविधान में निहित एकात्मक तत्त्वों का उल्लेख कीजिए। | 
| Answer» भारतीय संविधान यद्यपि संघात्मक है परन्तु उसमें अनेक एकात्मक तत्त्वों का भी समावेश किया गया है। इसी कारण के० सी० क्लीयर ने इसे ‘अर्द्ध-संघात्मक राज्य की संज्ञा प्रदान की है। भारत की संघात्मक व्यवस्था में निम्नलिखित एकात्मक तत्त्व पाए जाते हैं – ⦁    भारत में इकहरी नागरिकता है। | |
| 20. | भारतीय संविधान संघात्मक है या एकात्मक? | 
| Answer» भारतीय संविधान संघात्मक भी है और एकात्मक भी। | |
| 21. | भारत को एक संघात्मक राज्य क्यों कहा जाता है? | 
| Answer» भारत 28 राज्यों तथा 9 संघशासित प्रदेश से बना हुआ एक संघ है और इसमें संघात्मक राज्य की सभी विशेषताएँ हैं, इसलिए इसे संघात्मक राज्य कहा जा सकता है। | |
| 22. | भारतीय संविधान की संघात्मकता की किन्हीं दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। | 
| Answer» ⦁    संविधान की सर्वोच्चता तथा | |
| 23. | एक संघात्मक राज्य में उच्चतम (सर्वोच्च)न्यायालय क्यों आवश्यक है? | 
| Answer» संघ और इकाइयों के बीच विवादों को हल करने के लिए संघात्मक राज्य में एक उच्चतम (सर्वोच्च) न्यायालय का होना आवश्यक है। | |
| 24. | भारतीय राजनीति पर अनुच्छेद 370 के प्रभाव की विवेचना कीजिए। | 
| Answer» वर्तमान में अनुच्छेद 370 विवादास्पद बना हुआ है क्योंकि इसके कारण कश्मीर को विशेष स्थिति प्राप्त है जो उसको शेष भारत से मनोवैज्ञानिक ढंग से पृथक् करती है। कश्मीर को यह विशेष स्थिति तत्कालीन अंतर्राष्ट्रीय स्थिति को देखते हुए अस्थायी रूप से प्रदान की गई थी परन्तु राजनीतिज्ञों न इसे राजनीतिक लाभ के लिए स्थायी बना दिया। अनुच्छेद 370 के कारण ही कश्मीर को अपना अलग संविधान बनाने का अधिकार प्राप्त हुआ है। भारतीय संघ में केवल जम्मू-कश्मीर ही ऐसा राज्य है जिसका पृथक् संविधान है। वहाँ पर कोई भी गैर कश्मीरी भारतीय, भूमि नहीं खरीद सकता है तथा स्थायी रूप से निवास नहीं बना सकता है जबकि 1947 ई० में कश्मीर से पाकिस्तान गए लोगों को पुनः कश्मीर वापस लौटने तथा वहाँ बसने का अधिकार है। | |
| 25. | भारत में संघीय व्यवस्था को क्यों अपनाया गया है? व्याख्या कीजिए। | 
| Answer» भारतीय संविधान ने संघात्मक शासन-प्रणाली की व्यवस्था की है। भारत में वर्षों तक अंग्रेजों का शासन रहा। भारत की अपनी परिस्थितियाँ ऐसी थीं कि अंग्रेजों ने भी 1935 के अधिनियम द्वारा भारत में संघीय प्रणाली की व्यवस्था की थी। स्वतन्त्रता के पश्चात् संविधान निर्माताओं ने इसी व्यवस्था को अपनाया। भारतीय संविधान निर्माताओं द्वारा निम्नलिखित कारणों से संघात्मक व्यवस्था को अपनाया गया – | |
| 26. | भारत का संघात्मक स्वरूप अन्य संघों से किस प्रकार भिन्न है? | 
| Answer» विश्व के अनेक राज्यों में संघात्मक शासन व्यवस्था को अपनाया गया है। स्वतन्त्रता-प्राप्ति के उपरान्त भारत में भी संघात्मक शासन व्यवस्था की नींव डाली गई। हमने अपनी संघात्मक व्यवस्था को अमेरिका से न लेकर कनाडा से ग्रहण किया है। हमने संघ के लिए यूनियन शब्द का प्रयोग किया है। भारत के संघ को विद्वानों ने कमजोर संघ अथवा अर्द्ध-संघ के नाम से सम्बोधित किया है। भारत के संघ में संघात्मक सरकार के सभी लक्षणों का समावेश किया गया है परन्तु फिर भी भारत का संघात्मक स्वरूप अन्य संघों से अनेक प्रकार से भिन्न है। जैसे (1) भारतीय संविधान में कहीं पर भी संघात्मक शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है, इसमें केवल यह कहा गया है कि भारत राज्यों का संघ है। | |
| 27. | “भारत का ढाँचा संघात्मक है, किन्तु उसकी आत्मा एकात्मक है।” यह किसका कथन है?(क) दुर्गादास बसु(ख) जस्टिस सप्रू(ग) एम०वी० पायली(घ) रणजीत सिंह सरकारिया | 
| Answer» सही विकल्प है (ग) एम०वी० पायली। | |
| 28. | संघात्मक शासन-प्रणाली के गुण लिखिए। | 
| Answer» संघात्मक शासन-प्रणाली के गुण संघात्मक शासन-प्रणाली के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं – | |
| 29. | संघात्मक शासन के अर्थ को स्पष्ट कीजिए। | 
| Answer» संघात्मक शासन व्यवस्था वह शासन व्यवस्था होती है जिसमें दो प्रकार की सरकारें होती हैं। वह सरकार, जो समस्त देश का प्रशासन करती है, ‘संघीय सरकार’ कहलाती है तथा दूसरी वह सरकार, जो राज्य का प्रशासन करती है, ‘राज्य-सरकार’ कहलाती है। फ्रीमैन के शब्दों में, “संघात्मक शासन वह है जो दूसरे राष्ट्रों के साथ संबंध में एक राज्य के समान हो, परन्तु आन्तरिक दृष्टि से यह अनेक राज्यों का योग हो।’ डायसी के शब्दों में, “संघात्मक राज्य एक ऐसे राजनीतिक उपाय के अतिरिक्त कुछ नहीं है जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय एकता तथा राज्यों के अधिकारों में मेल स्थापित करना है।” | |
| 30. | वित्त आयोग की नियुक्ति कौन करता है? | 
| Answer» वित्त आयोग की नियुक्ति राष्ट्रपति करती है। | |
| 31. | राज्य पुनर्गठन आयोग (1956) के अध्यक्ष कौन थे? | 
| Answer» राज्य पुनर्गठन आयोग के अध्यक्ष फजल अली थे। | |
| 32. | 42वें संविधान संशोधन द्वारा निम्नलिखित में से कौन-सा विषय समवर्ती सूची में सम्मिलित किया गया है?(क) कृषि(ख) जेल(ग) पुलिस(घ) वन | 
| Answer» सही विकल्प है (घ) वन | |
| 33. | केन्द्र-राज्य संबंधों से जुड़े मसलों की जाँच के लिए सरकारिया आयोग कब गठित किया गया था?(क) सन् 1947 में(ख) सन् 1983 में(ग) सन् 1984 में(घ) सन् 1985 में | 
| Answer» सही विकल्प है (ख) सन् 1983 में | |
| 34. | आपातकालीन स्थिति में भारतीय संघ का ढाँचा हो जाता है –(क) पूर्ण संघात्मक(ख) अर्द्ध-संघात्मक(ग) एकात्मक(घ) कोई प्रभाव नहीं | 
| Answer» सही विकल्प है (ग) एकात्मक। | |
| 35. | संघ सूची में सम्मिलित किन्हीं दो विषयों का उल्लेख कीजिए। | 
| Answer» ⦁    रक्षा तथा | |
| 36. | भारतीय संघवाद के विशिष्ट लक्षणों की संक्षेप में विवेचना कीजिए। | 
| Answer» भारतीय संघवाद के विशिष्ट लक्षण निम्नलिखित हैं – ⦁    संविधान के उपबन्धों द्वारा औपचारिक रूप में स्थापित, भारतीय संघीय व्यवस्था का स्वरूप प्रादेशिक है। | |
| 37. | राष्ट्रपति शासन से क्या आशय है? | 
| Answer» भारतीय संविधान में राज्यों में राष्ट्रपति शासन की व्यवस्था अनुच्छेद 356 के अन्तर्गत की गई है। यह निम्नलिखित परिस्थितियों में लागू किया जा सकता है – ⦁    किसी राज्य में कानून व्यवस्था भंग हो जाने की स्थिति में। | |
| 38. | नए राज्यों की माँग केन्द्र-राज्य सम्बन्धों में तनाव का कारण किस प्रकार है? | 
| Answer» भारत की संघीय व्यवस्था में नए राज्यों के गठन की माँग को लेकर भी तनाव रहा है। राष्ट्रीय आन्दोलन ने अखिल भारतीय राष्ट्रीय एकता को नहीं बल्कि समान भाषा, क्षेत्र और संस्कृति के आधार पर एकता को भी जन्म दिया। हमारा राष्ट्रीय आन्दोलन लोकतन्त्र के लिए भी एक आन्दोलन था। अतः राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान यह भी तय किया गया कि यथासम्भव समान संस्कृति और भाषा के आधार पर राज्यों का गठन होगा। इससे स्वतन्त्रता के बाद भाषाई आधार पर राज्यों के गठन की माँग उठी। सन् 1954 में राज्य पुनर्गठन आयोग की स्थापना की गई जिसने प्रमुख भाषाई समुदायों के लिए भाषा के आधार पर राज्यों के गठन की सिफारिश की सन् 1956 में कुछ राज्यों का पुनर्गठन हुआ। इससे भाषाई आधार पर राज्यों के गठन की शुरुआत हुई और यह प्रक्रिया आज भी जारी है। सन् 1960 में गुजरात और महाराष्ट्र का गठन हुआ; सन् 1966 में पंजाब और हरियाणा को अलग-अलग किया गया। बाद में पूर्वोत्तर के राज्यों का पुनर्गठन किया गया और अनेक नए राज्यों; जैसे—मेघालय, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश अस्तित्व में आए। 1990 के दशक में नए राज्य बनाने की माँग को पूरा करने तथा अधिक प्रशासकीय सुविधा के लिए कुछ बड़े राज्यों का विभाजन किया गया। बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश को विभाजित कर तीन नए राज्य क्रमश: झारखण्ड, उत्तराखण्ड और छतीसगढ़ बनाए गए। कुछ क्षेत्र और भाषाई समूह अब भी अलग राज्य के लिए संघर्ष कर रहे हैं जिनमें आन्ध्र प्रदेश में तेलंगाना, उत्तर प्रदेश में हरित प्रदेश और महाराष्ट्र में विदर्भ प्रमुख हैं। सन् 2014 में आन्ध्र प्रदेश को विभाजित कर ‘तेलंगाना राज्य का गठन कर दिया गया। | |
| 39. | केन्द्र व राज्यों के मध्य विधायी सम्बन्धों की विवेचना कीजिए। | 
| Answer» संघात्मक शासन व्यवस्था की यह विशेषता होती है कि इसमें केन्द्र और इकाई राज्य सरकारों के मध्य शक्तियों, अधिकारों एवं कार्यों का संविधान द्वारा स्पष्ट विभाजन कर दिया जाता है, जिससे केंद्र एवं राज्य-सरकारों के मध्य किसी भी प्रकार का विवाद उत्पन्न न हो, दोनों सरकारें अपने-अपने कार्यों एवं उत्तरदायित्वों का समुचित रूप से पालन कर सकें और सम्पूर्ण देश में शान्ति एवं सुरक्षा का वातावरण बना रहे। केंद्र व राज्य के मध्य विधायी संबंध संविधान ने विधि या कानून का निर्माण करने से संबंधित विषयों की तीन सूचियाँ बनाई हैं। इन सूचियों को बनाने का उद्देश्य केंद्र और राज्यों की सरकारों के मध्य विधि-निर्माण संबंधी क्षेत्रों को विभक्त करनी है। ये सूचियाँ निम्नलिखित हैं – 1. संघ सूची (Union List) – इस सूची के अंतर्गत उन विषयों को रखा गया है, जिन पर केवल केंद्र सरकार की कानूनों का निर्माण कर सकती है। ये विषय बहुत महत्त्वपूर्ण एवं राष्ट्रीय स्तर के हैं। इस संघ सूची में 97 विषय हैं। इस सूची के प्रमुख विषय–रक्षा, वैदेशिक मामले, युद्ध व संधि तथा बैंकिंग आदि हैं। अतः इन सूचियों के विवरण से स्पष्ट हो जाता है कि केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकारों के विधि-निर्माण से संबंधित अधिकार-क्षेत्र पृथक्-पृथक् हैं। इस विभाजन के आधार पर यह भी स्पष्ट होता है कि केन्द्र सरकार राज्य सरकार की तुलना में अधिक शक्तिसम्पन्न है। यद्यपि समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बनाने का अधिकार दोनों सरकारों को प्राप्त होता है; किन्तु सामान्यतया इन विषयों पर संसद ही कानूनों का निर्माण करती है तथा मतभेद होने की स्थिति में संघ सरकार का कानूनी मान्य होता है। [नोट – 42वें संवैधानिक संशोधन 1976 के द्वारा राज्य सूची के चार विषय (शिक्षा, वन, वन्य जीव-जन्तुओं और पक्षियों का रक्षण तथा नाप-तौल (समवर्ती सूची में सम्मिलित कर दिए गए तथा समवर्ती सूची में एक नया विषय जनसंख्या नियन्त्रण और परिवार नियोजन’ जोड़ा गया। अब समवर्ती सूची में 52 विषय और राज्य सूची में 62 विषय रह गए हैं।] राज्य सूची के विषयों पर कानून-निर्माण की संसद की शक्ति – संविधान ने संसद को विशेष परिस्थितियों में राज्य सूची के विषयों पर भी कानून बनाने का अधिकार दिया है। ये परिस्थितियाँ निम्नलिखित हैं – 1. संकटकाल की घोषणा के समय – आपातकाल में राज्य सूची के अंतर्गत आने वाले विषयों पर संसद को विधि-निर्माण का पूर्ण अधिकार प्राप्त है। | |
| 40. | केंद्र तथा राज्य के मध्य तनाव के सांविधानिक कारण लिखिए। | 
| Answer» केन्द्र तथा राज्यों के मध्य तनाव के सांविधानिक कारण समय-समय पर केन्द्र तथा राज्य सरकारों के मध्य उपस्थित होने वाले संघर्ष एवं तनावों के कारणों को निम्नलिखित वर्गों में रखा गया है – (1) भारतीय संविधान में शक्तियों का वितरण केन्द्र के पक्ष में अधिक है। संघ सूची तथा समवर्ती सूची में केन्द्रीय कार्यपालिका तथा व्यवस्थापिका को इतने अधिकार प्रदान किए गए हैं कि राज्यों की स्वायत्तता पर आँच आ सकती है। 1970 में तमिलनाडु सरकार द्वारा नियुक्त राजमन्नार समिति ने सिफारिश की थी कि – (2) राज्य सदैव यह अनुभव करते हैं कि उनकी विधायी तथा प्रशासनिक शक्तियाँ सीमित हैं तथा उन्हें अपने निर्णयों के कार्यान्वयन में केन्द्र के निर्णय का इन्तजार करना पड़ता है। जब केन्द्र तथा राज्य में एक ही दल की सरकार रहती है तब तो समस्या प्रबल नहीं हो पाती है, किन्तु विपरीत स्थिति में तनाव प्रायः बढ़ जाता है। उदाहरणार्थ-1967 के पश्चात् राज्यों में गैर-कांग्रेसी सरकारें बनीं तो शक्तियों के पुनः वितरण की आवाज विशेष रूप से उठाई गई। | |
| 41. | केन्द्र और राज्यों के प्रशासनिक सम्बन्धों पर प्रकाश डालिए। | 
| Answer» केन्द्र और राज्यों के प्रशासनिक सम्बन्ध श्री दुर्गादास बसु के शब्दों में, “संघीय व्यवस्था की सफलता और दृढ़ता संघ की विविध सरकारों के बीच अधिकाधिक सहयोग तथा समन्वय पर निर्भर करती है। इसी कारण प्रशासनिक सम्बन्धों की व्यवस्था करते हुए जहाँ राज्यों को अपने-अपने क्षेत्रों में सामान्यतः स्वतन्त्रता प्रदान की गयी है वहाँ इस बात का भी ध्यान रखा गया है कि राज्यों के प्रशासनिक तन्त्र पर संघ का नियन्त्रण बना रहे और संघ तथा राज्यों के बीच संघर्ष की सम्भावना कम-से-कम हो जाए। राज्य सरकारों पर संघीय शासन के नियन्त्रण की व्यवस्था निम्नलिखित उपायों के आधार पर की गयी है – (1) राज्य सरकारों को निर्देश – केन्द्र द्वारा राज्यों को निर्देश सामान्यतया संघीय व्यवस्था के अनुकूल नहीं समझे जाते हैं, लेकिन भारतीय संघ में केन्द्र द्वारा राज्य सरकारों को निर्देश देने की व्यवस्था की गयी है। संविधान के अनुच्छेद 256 में स्पष्ट कहा गया है कि “प्रत्येक राज्य की कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग इस प्रकार होगा कि संसद द्वारा निर्मित कानूनों का पालन सुनिश्चित रहे। | |
| 42. | संघ (केन्द्र) सूची का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए। | 
| Answer» संघ (केन्द्र) सूची के अन्तर्गत उन विषयों को रखा गया है, जिन पर केवल केन्द्र सरकार ही कानूनों का निर्माण कर सकती है। ये विषय बहुत महत्त्वपूर्ण एवं राष्ट्रीय स्तर के हैं। संघ सूची में 97 विषय हैं। इस सूची में प्रमुख विषय–रक्षा, वैदेशिक मामले, युद्ध व सन्धि तथा बैंकिंग हैं। | |
| 43. | भारत में केन्द्र तथा राज्यों के संबंधों पर केन्द्र की स्थिति किस प्रकार की प्रतीत होती है? | 
| Answer» केन्द्र तथा राज्यों के मध्य संबंधों के विश्लेषण से यह स्पष्ट हो जाता है कि भारत में केन्द्रीय सरकार को अधिक शक्तिशाली बनाने का प्रयास किया गया है। राज्यों की स्वायत्तता की अपेक्षा केन्द्र को शक्तिशाली बनाने पर अत्यधिक बल दिया गया है। वास्तव में, बजाय इसके कि केन्द्र के हस्तक्षेप पर प्रतिबन्ध लगाए जाते, संविधान ने राज्यों की शक्तियों पर प्रतिबंध लगाए हैं। भारतीय संविधान में अनेक ऐसे प्रावधानों की व्याख्या की गई है, जिन्होंने राज्यों की स्थिति पर विपरीत प्रभाव डाला है तथा राज्यों को संघ सरकार के अधीन कर दिया है। इस स्थिति को देखते हुए आलोचकों को यह कहने का अवसर प्राप्त हुआ है कि भारतीय संघ पूर्ण रूप से एक संघीय राज्य नहीं है। | |
| 44. | संविधान का अनुच्छेद 370 किस राज्य से संबंधित है? | 
| Answer» संविधान का अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर राज्य से संबंधित है। | |
| 45. | ‘यूनियन’ शब्द किस देश के संविधान से लिया गया है?(क) ऑस्ट्रेलिया(ख) कनाडा(ग) ब्रिटेन(घ) संयुक्त राज्य अमेरिका | 
| Answer» सही विकल्प है (ख) कनाडा | |